Shri Janaki Ji Arti (श्रीजानकीजी)

श्रीजानकीजी (Shri Janaki Ji) आरति कीजै जनक-ललीकी । राममधुपमन कमल-कलीकी ॥ रामचंद्र मुखचंद्र चकोरी । अंतर साँवर बाहर गोरी। सकल सुमंगल सुफल फलीकी ॥ पिय दृगमृग जुग बंधन डोरी । पीय प्रेम रस-राशि किशोरी। पिय मन गति विश्राम थलीकी ॥ रूप-रास-गुननिधि जग स्वामिनि। प्रेम प्रबीन राम अभिरामिनि। सरबस धन ‘हरिचंद’ अलीकी ॥