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साल में दो बार क्यों मनाया जाता है हनुमान जी का जन्मोत्सव, जानिए रहस्य

Hanuman Janm Katha (हनुमान जन्म कथा): Lord Hanuman को शक्ति, भक्ति और समर्पण का प्रतीक माना जाता है। वे भगवान राम के परम भक्त हैं और Ramayan Epic में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका से सभी परिचित हैं। Hanuman Ji के भक्त उन पर अटूट श्रद्धा रखते हैं और Mahabali Hanuman भी अपने Devotees की रक्षा करते हैं। Chaitra Purnima पर Hanuman Jayanti 2025 मनाई जाती है। इस साल चैत्र माह की पूर्णिमा यानी 12 April 2025 को हनुमान जयंती का उत्सव मनाया जाएगा। वहीं Valmiki Ramayan के अनुसार, Kartik Month Krishna Paksha Chaturdashi को Hanuman Janmotsav मनाया जाता है। इस साल कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी 19 October 2025 को है। अब आपके मन में सवाल उठ रहा होगा कि आखिर दो बार Lord Hanuman Birthday क्यों मनाया जाता है। आइए, विस्तार से जानते हैं। Chaitra Purnima and Hanuman Jayanti चैत्र मास की पूर्णिमा को Hanuman Jayanti Festival के रूप में मनाया जाता है। इसके पीछे एक पौराणिक कथा है। जब बाल Hanuman ने सूर्य को फल समझकर खाने की कोशिश की, तो Indra Dev ने उन पर Vajra से प्रहार किया। इससे Hanuman Ji मूर्छित हो गए। इससे उनके पिता Pawan Dev (Wind God) क्रोधित हो गए और उन्होंने हवा रोक दी। इससे पूरे ब्रह्मांड पर संकट आ गया। Gods of Hinduism की प्रार्थना के बाद Lord Brahma ने Hanuman Ji को दूसरा जीवन दिया। तब सभी देवताओं ने उन्हें अपनी-अपनी Divine Powers प्रदान कीं। जिस दिन उन्हें नया जीवन मिला, वह Chaitra Purnima Tithi थी। इसलिए इस दिन को Hanuman Jayanti Celebration के रूप में मनाया जाता है। Kartik Chaturdashi and Hanuman Janmotsav वहीं Kartik Month Krishna Chaturdashi को Hanuman Janmotsav के रूप में मनाया जाता है। Valmiki Ramayan के अनुसार, Hanuman Ji का Actual Birth इसी दिन हुआ था। इसलिए इस तिथि को उनके Spiritual Birthday के रूप में मनाने की परंपरा है।

चैत्र नवरात्रि की नवमी पर कर लें ये खास उपाय, मातारानी होंगी प्रसन्न

Navratri Remedies (Navratri ke Upay): चैत्र नवरात्रि की नवमी तिथि (Navami Tithi of Chaitra Navratri) मां दुर्गा की Worship के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस दिन Goddess Siddhidatri की पूजा की जाती है, जो सभी प्रकार की Spiritual Powers और Siddhis को प्रदान करने वाली हैं। Mata Durga को प्रसन्न करने और उनका Blessings प्राप्त करने के लिए नवमी तिथि पर कुछ विशेष spiritual rituals किए जा सकते हैं: 1. Kanya Pujan (Girl Worship Ceremony): नवमी के दिन कन्या पूजन का विशेष महत्व है। नौ कन्याओं (जो 2 से 10 वर्ष की हों) को मां दुर्गा के नौ रूपों के प्रतीक के रूप में आमंत्रित करें। उन्हें स्वच्छ स्थान पर बैठाएं, उनके पैर धोएं और रोली-कुमकुम से तिलक करें। उन्हें स्वादिष्ट भोजन (जैसे Puri, Kala Chana, Halwa) खिलाएं और दक्षिणा व उपहार (Gifts for Girls) भेंट करें। कन्याओं को विदा करते समय उनसे आशीर्वाद लें। कन्या पूजन माता को अत्यंत प्रिय है और यह एक powerful Navratri ritual माना जाता है। 2. Havan and Yagya: नवमी के दिन Fire Ritual (Havan) करना बहुत शुभ माना जाता है। आप घर पर ही किसी Pandit की सहायता से या स्वयं Durga Saptashati Mantras से हवन कर सकते हैं। हवन में Barley, Sesame Seeds, Guggul, Pure Ghee और अन्य हवन सामग्री अर्पित करें। Havan Smoke से घर की Negative Energy दूर होती है और Positive Vibes का संचार होता है। 3. Special Worship of Maa Siddhidatri: नवमी के दिन Maa Siddhidatri की Special Puja करें। उन्हें Lotus Flower अर्पित करें, जो उनका प्रिय पुष्प है। 'ॐ देवी सिद्धिदात्र्यै नमः' मंत्र का 108 बार Chanting करें। Maa Siddhidatri Aarti गाएं और उन्हें Halwa, Kala Chana और Poori का Bhog लगाएं। अपनी Wishes मां के समक्ष रखें। 4. Durga Saptashati Path: यदि संभव हो तो नवमी के दिन Durga Saptashati का Full Recitation करें। यदि पूरा पाठ करना संभव न हो तो इसके महत्वपूर्ण अध्याय जैसे Durga Kavach, Kilik Stotra और Argala Stotra का पाठ अवश्य करें। इससे Divine Blessings मिलती हैं। 5. Charity and Donations (Daan-Punya): नवमी के दिन Underprivileged लोगों को Donation देना बहुत शुभ माना जाता है। आप Grains, Clothes, Cash या अपनी श्रद्धा अनुसार किसी भी वस्तु का दान कर सकते हैं। यह act of kindness मां दुर्गा को प्रसन्न करता है। 6. Use of Yellow Color: नवमी के दिन Yellow Color का विशेष महत्व है। पूजा में Yellow Dress पहनें और मां दुर्गा को Yellow Flowers अर्पित करें। यह color positivity और auspiciousness का प्रतीक माना जाता है। 7. Apology Prayer (Kshama Yachna): Navratri के दौरान यदि कोई गलती हो गई हो तो नवमी के दिन Mata Durga से Forgiveness मांगें। सच्चे मन से मांगी गई क्षमा को मां अवश्य स्वीकार करती हैं। 8. Durga Chalisa Path: Maa Durga की स्तुति में Durga Chalisa Recitation करना भी अत्यंत फलदायी होता है और यह आपकी Spiritual Energy को बढ़ाता है। 9. Creative Activities: नवमी के दिन Creative Work में शामिल होना शुभ होता है। आप Arts, Music या किसी भी Positive Activity में अपना समय लगा सकते हैं। 10. Stay Positive: इस दिन पूर्ण रूप से Positive Thoughts में रहें और माँ दुर्गा के प्रति Devotion बनाए रखें। Negative Thinking से बचें।

श्री राम की कृपा पाने के लिए करिए इन मंत्रों का जाप, होगा सौभाग्य का उदय

Ram Navami 2025:R Chaitra Navratri 2025 के अंतिम दिन Ram Navami Festival का पावन पर्व मनाया जाता है। इस बार Ram Navami Date रविवार, 06 अप्रैल 2025 को है। शास्त्रों के अनुसार हिन्दुओं के आराध्य और Lord Vishnu Avatar भगवान श्रीराम ने त्रेता युग में चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को Madhyahna Muhurat (Midday Time) में जन्म लिया था। इसी दिन का उत्सव मनाने के लिए हर साल चैत्र माह में नवरात्र की नवमी तिथि पर रामनवमी मनाई जाती है। इस दिन पूरी दुनिया के Shri Ram Devotees अपने आराध्य Maryada Purushottam Lord Rama की पूरे मन और श्रद्धा से पूजा करते हैं। इस दिन भगवान के जन्म समय यानी मध्याह्न बेला (Midday Puja Time) तक Ram Navami Vrat (Fasting) रखा जाता है। Lord Rama साहस और वीरता का पर्याय हैं। उनकी पूजा से व्यक्ति में Inner Courage and Strength का संचार होता है। श्रीराम की छवि मर्यादा पुरुषोत्तम की है, जिनके पूजन से घर में Peace, Prosperity, and Happiness का वातावरण निर्मित होता है। इसलिए भगवान राम के आशीर्वाद को पाने के लिए Ram Navami Puja Vidhi (Rituals) से भगवान श्रीराम की पूजा करनी चाहिए। पूजा के साथ ही Lord Ram Mantra Chanting करने का भी विधान है। इस आलेख में हम आपको वे अत्यंत प्रभावशाली 108 Powerful Shri Ram Mantras बता रहे हैं, जिनके जाप से आपका कल्याण होगा। 1. ॐ परस्मै ब्रह्मने नम: 2. ॐ सर्वदेवात्मकाय नमः 3. ॐ परमात्मने नम: 4. ॐ सर्वावगुनवर्जिताया नम: 5. ॐ विभिषनप्रतिश्थात्रे नम: 6. ॐ जरामरनवर्जिताया नम: 7. ॐ यज्वने नम: 8. ॐ सर्वयज्ञाधिपाया नम: 9. ॐ धनुर्धराया नम: 10. ॐ पितवाससे नम: 11. ॐ शुउराया नम: 12. ॐ सुंदराया नम: 13. ॐ हरये नम: 14. ॐ सर्वतिइर्थमयाया नम: 15. ॐ जितवाराशये नम: 16. ॐ राम सेतुक्रूते नम: 17. ॐ महादेवादिपुउजिताया नम: 18. ॐ मायामानुश्हा चरित्राया नम: 19. ॐ धिइरोत्तगुनोत्तमाया नम: 20. ॐ अनंतगुना गम्भिइराया नम: 21. ॐ राघवाया नम: 22. ॐ पुउर्वभाश्हिने नम: 23. ॐ मितभाश्हिने नम: 24. ॐ स्मितवक्त्राया नम: 25. ॐ पुरान पुरुशोत्तमाया नम: 26. ॐ अयासाराया नम: 27. ॐ पुंयोदयाया नम: 28. ॐ महापुरुष्हाय नम: 29. ॐ परमपुरुष्हाय नम: 30. ॐ आदिपुरुष्हाय नम: 31. ॐ स्म्रैता सर्वाघा नाशनाया नम: 32. ॐ सर्वपुंयाधिका फलाया नम: 33. ॐ सुग्रिइवेप्सिता राज्यदाया नम: 34. ॐ सर्वदेवात्मकाया परस्मै नम: 35. ॐ पाराया नम: 36. ॐ पारगाया नम: 37. ॐ परेशाया नम: 38. ॐ परात्पराया नम: 39. ॐ पराकाशाया नम: 40. ॐ परस्मै धाम्ने नम: 41. ॐ परस्मै ज्योतिश्हे नम: 42. ॐ सच्चिदानंद विग्रिहाया नम: 43. ॐ महोदराया नम: 44. ॐ महा योगिने नम: 45. ॐ मुनिसंसुतसंस्तुतया नम: 46. ॐ ब्रह्मंयाया नम: 47. ॐ सौम्याय नम: 48. ॐ सर्वदेवस्तुताय नम: 49. ॐ महाभुजाय नम: 50. ॐ महादेवाय नम: 51. ॐ राम मायामारिइचहंत्रे नम: 52. ॐ राम मृतवानर्जीवनया नम: 53. ॐ सर्वदेवादि देवाय नम: 54. ॐ सुमित्रापुत्र सेविताया नम: 55. ॐ राम जयंतत्रनवरदया नम: 56. ॐ चित्रकुउता समाश्रयाया नम: 57. ॐ राम राक्षवानरा संगथिने नम: 58. ॐ राम जगद्गुरवे नम: 59. ॐ राम जितामित्राय नम: 60. ॐ राम जितक्रोधाय नम: 61. ॐ राम जितेंद्रियाया नम: 62. ॐ वरप्रदाय नम: 63. ॐ पित्रै भक्ताया नम: 64. ॐ अहल्या शाप शमनाय नम: 65. ॐ दंदकारंय पुण्यक्रिते नम: 66. ॐ धंविने नम: 67. ॐ त्रिलोकरक्षकाया नम: 68. ॐ पुंयचारित्रकिइर्तनाया नमः 69. ॐ त्रिलोकात्मने नमः 70. ॐ त्रिविक्रमाय नमः 71. ॐ वेदांतसाराय नमः 72. ॐ तातकांतकाय नमः 73. ॐ जामद्ग्ंया महादर्पदालनाय नमः 74. ॐ दशग्रिइवा शिरोहराया नमः 75. ॐ सप्तताला प्रभेत्त्रे नमः 76. ॐ हरकोदांद खान्दनाय नमः 77. ॐ विभीषना परित्रात्रे नमः 78. ॐ विराधवाधपन दिताया नमः 79. ॐ खरध्वा.सिने नमः 80. ॐ कौसलेयाय नमः 81. ॐ सदाहनुमदाश्रिताय नमः 82. ॐ व्रतधाराय नमः 83. ॐ सत्यव्रताय नमः 84. ॐ सत्यविक्रमाय नमः 85. ॐ सत्यवाचे नमः 86. ॐ वाग्मिने नमः 87. ॐ वालिप्रमाथानाया नमः 88. ॐ शरणात्राण तत्पराया नमः 89. ॐ दांताय नमः 90. ॐ विश्वमित्रप्रियाय नमः 91. ॐ जनार्दनाय नमः 92. ॐ जितामित्राय नमः 93. ॐ जैत्राय नमः 94. ॐ जानकिइवल्लभाय नमः 95. ॐ रघुपुंगवाय नमः 96. ॐ त्रिगुनात्मकाया नमः 97. ॐ त्रिमुर्तये नमः 98. ॐ दुउश्हना त्रिशिरो हंत्रे नमः 99. ॐ भवरोगस्या भेश्हजाया नमः 100. ॐ वेदात्मने नमः 101. ॐ राजीवलोचनाय नमः 102. ॐ राम शाश्वताया नमः 103. ॐ राम चंद्राय नमः 104. ॐ राम भद्राया नमः 105. ॐ राम रामाय नमः 106. ॐ सर्वदेवस्तुत नमः 107. ॐ महाभाग नमः 108. ॐ मायामारीचहन्ता नमः इन मंत्रों के उच्चारण के बाद भगवान राम की आरती करें : आरती कीजै श्री रघुवर जी की,सत् चित् आनन्द शिव सुन्दर की। दशरथ तनय कौशल्या नन्दन,सुर मुनि रक्षक दैत्य निकन्दन। अनुगत भक्त भक्त उर चन्दन,मर्यादा पुरुषोतम वर की। आरती कीजै श्री रघुवर जी की... निर्गुण सगुण अनूप रूप निधि,सकल लोक वन्दित विभिन्न विधि। हरण शोक-भय दायक नव निधि,माया रहित दिव्य नर वर की। आरती कीजै श्री रघुवर जी की... जानकी पति सुर अधिपति जगपति,अखिल लोक पालक त्रिलोक गति। विश्व वन्द्य अवन्ह अमित गति,एक मात्र गति सचराचर की। आरती कीजै श्री रघुवर जी की... शरणागत वत्सल व्रतधारी,भक्त कल्प तरुवर असुरारी। नाम लेत जग पावनकारी,वानर सखा दीन दुख हर की। आरती कीजै श्री रघुवर जी की... राम जी की आरती श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन,हरण भवभय दारुणम्। नव कंज लोचन, कंज मुख करकंज पद कंजारुणम्॥ श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन... कन्दर्प अगणित अमित छवि,नव नील नीरद सुन्दरम्। पट पीत मानहुं तड़ित रूचि-शुचिनौमि जनक सुतावरम्॥ श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन... भजु दीनबंधु दिनेशदानव दैत्य वंश निकन्दनम्। रघुनन्द आनन्द कन्द कौशलचन्द्र दशरथ नन्द्नम्॥ श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन... सिर मुकुट कुंडल तिलकचारू उदारु अंग विभूषणम्। आजानुभुज शर चाप-धर,संग्राम जित खरदूषणम्॥ श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन... इति वदति तुलसीदास,शंकर शेष मुनि मन रंजनम्। मम ह्रदय कंज निवास कुरु,कामादि खल दल गंजनम्॥ श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन... मन जाहि राचेऊ मिलहिसो वर सहज सुन्दर सांवरो। करुणा निधान सुजानशील सनेह जानत रावरो॥ श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन... एहि भाँति गौरी असीससुन सिय हित हिय हरषित अली। तुलसी भवानिहि पूजी पुनि-पुनिमुदित मन मन्दिर चली॥ श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन...

महावीर जयंती 2025 शुभकामनाएं: अपने प्रियजनों को भेजें ये सुंदर और प्रेरणादायक विशेज

Mahavir Jayanti 2025 Wishes in Hindi: महावीर जयंती Jain Religion Festival के सबसे पवित्र और महत्वपूर्ण पर्वों में से एक है। यह पर्व जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर Lord Mahavir की जयंती के रूप में मनाया जाता है। Mahavir Jayanti 2025 Date की बात करें तो 2025 में यह पर्व 10 अप्रैल को मनाया जाएगा। इस दिन श्रद्धालु भगवान महावीर के जीवन, उपदेशों और Principles of Non-Violence (Ahimsa), Truth (Satya), Celibacy (Brahmacharya), Non-Possessiveness (Aparigraha) जैसे सिद्धांतों को याद करते हैं और उनके बताए मार्ग पर चलने का संकल्प लेते हैं। इस पावन अवसर पर लोग एक-दूसरे को Mahavir Jayanti Greetings in Hindi भेजते हैं। Lord Mahavir Teachings ने हमें सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी। उनके उपदेश आज भी जीवन को शांत, संयमित और सफल बनाने का रास्ता दिखाते हैं। ऐसे में, जब आप अपने दोस्तों और परिवार को Happy Mahavir Jayanti Quotes भेजते हैं, तो यह न सिर्फ शुभकामनाएं होती हैं, बल्कि उनके जीवन में सकारात्मकता का संदेश भी बन जाती हैं। अगर आप भी अपने प्रियजनों को इस महावीर जयंती पर कुछ खास और दिल से भेजना चाहते हैं, तो यहां आपके लिए हैं Top 20 Mahavir Jayanti Wishes, जो आप WhatsApp, Facebook, Instagram Story या Status for Mahavir Jayanti के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। महावीर जयंती 2025 शुभकामना संदेश हिंदी में (Mahavir Jayanti Wishes in Hindi): 1. "अहिंसा का पाठ पढ़ाया, सत्य का मार्ग दिखाया, भगवान महावीर ने जीवन का सार सिखाया। महावीर जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं!" 2. "सत्य, अहिंसा और करुणा की प्रेरणा, भगवान महावीर का यही है मंत्र अद्वितीय। महावीर जयंती की मंगलकामनाएं।" 3. "जो सत्य और त्याग के पथ पर चले, महावीर वही जो सबका दुःख हर ले। Happy Mahavir Jayanti 2025!" 4. "अहिंसा परमो धर्मः, यही मंत्र अपनाओ हर कदम। भगवान महावीर की जयंती पर हार्दिक शुभकामनाएं!" 5. "महावीर के विचारों को अपनाएं, जीवन को सुंदर और शांत बनाएं। महावीर जयंती की शुभकामनाएं!" 6. "भगवान महावीर के सिद्धांतों पर चलें, अंदर की शांति और सच्चाई से मिलें। Mahavir Jayanti Mubarak Ho!" 7. "चलो अहिंसा का दीप जलाएं, महावीर स्वामी की शिक्षाओं को अपनाएं। महावीर जयंती की हार्दिक बधाई!" 8. "दया, करुणा और संयम की राह पर चलो, जीवन को सफल और सुखी बना लो। महावीर जयंती की मंगलकामनाएं।" 9. "सत्य और प्रेम का हो मार्गदर्शन, हर जीवन में हो शांति और अनुशासन। Mahavir Jayanti Wishes in Hindi!" 10. "बिना हिंसा के भी जीत होती है, ये भगवान महावीर ने दुनिया को सिखाया है। महावीर जयंती पर शांति और प्रेम की शुभकामनाएं।" महावीर जयंती व्हाट्सएप स्टेटस 2025 के लिए (Mahavir Jayanti WhatsApp Status in Hindi): 11. "सत्य अहिंसा का पाठ पढ़ाएं, हर दिल में करुणा जगाएं। Happy Mahavir Jayanti 2025!" 12. "अहिंसा का संदेश फैलाओ, महावीर की राह अपनाओ। महावीर जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं!" 13. "ना हो क्रोध, ना हो छल, बस हो शांति और सबका कल्याण। महावीर जयंती मुबारक हो!" 14. "भगवान महावीर की शिक्षाएं सदा अमर रहें, हम सभी का जीवन उज्ज्वल बनाएं।" 15. "जो अंदर जीत ले, वही सच्चा विजेता। महावीर ने हमें यही सिखाया है। शुभ महावीर जयंती!" 16. "संयम से जीवन जीना, यही है असली सफलता की कुंजी। महावीर जयंती पर यही सीख अपनाएं।" 17. "हर घर में हो अहिंसा की बात, हर मन में हो शांति की बात। महावीर जयंती की ढेरों शुभकामनाएं!" 18. "त्याग और तपस्या की प्रतिमूर्ति, भगवान महावीर को शत्-शत् नमन।" 19. "सभी को मिले शांति और संयम का आशीर्वाद, महावीर जयंती की बहुत-बहुत बधाई।" 20. "महावीर स्वामी की शिक्षाएं हैं अमूल्य धरोहर, चलो उनके पदचिन्हों पर चलकर जीवन बनाएं बेहतर।"

भगवान महावीर चालीसा : जय महावीर दया के सागर

Mahavir Chalisa in Hindi: Jain Dharma अनुसार Bhagwan Mahavir Jain Religion के 24वें Tirthankar हैं। वर्ष 2025 में Mahavir Jayanti 10 अप्रैल, Thursday को मनाई जाएगी। यह दिन Lord Mahavir Birth Anniversary की याद में मनाया जाता है। Mahavir Swami का मानना था कि हमें दूसरों के प्रति वहीं thoughts and behavior रखना चाहिए जो हम स्वयं के लिए पसंद करते हैं। Bhagwan Mahavir का Ghantakarna Mahavir Mool Mantra सबसे अधिक powerful mantra माना गया है। श्री महावीर चालीसा : Mahavir Chalisa दोहा : सिद्ध समूह नमों सदा, अरु सुमरूं अरहन्त। निर आकुल निर्वांच्छ हो, गए लोक के अंत ॥ मंगलमय मंगल करन, वर्धमान महावीर। तुम चिंतत चिंता मिटे, हरो सकल भव पीर ॥ चौपाई : जय महावीर दया के सागर, जय श्री सन्मति ज्ञान उजागर। शांत छवि मूरत अति प्यारी, वेष दिगम्बर के तुम धारी। कोटि भानु से अति छबि छाजे, देखत तिमिर पाप सब भाजे। महाबली अरि कर्म विदारे, जोधा मोह सुभट से मारे। काम क्रोध तजि छोड़ी माया, क्षण में मान कषाय भगाया। रागी नहीं नहीं तू द्वेषी, वीतराग तू हित उपदेशी। प्रभु तुम नाम जगत में सांचा, सुमरत भागत भूत पिशाचा। राक्षस यक्ष डाकिनी भागे, तुम चिंतत भय कोई न लागे। महा शूल को जो तन धारे, होवे रोग असाध्य निवारे। व्याल कराल होय फणधारी, विष को उगल क्रोध कर भारी। महाकाल सम करै डसन्ता, निर्विष करो आप भगवन्ता। महामत्त गज मद को झारै, भगै तुरत जब तुझे पुकारै। फार डाढ़ सिंहादिक आवै, ताको हे प्रभु तुही भगावै। होकर प्रबल अग्नि जो जारै, तुम प्रताप शीतलता धारै। शस्त्र धार अरि युद्ध लड़न्ता, तुम प्रसाद हो विजय तुरन्ता। पवन प्रचण्ड चलै झकझोरा, प्रभु तुम हरौ होय भय चोरा। झार खण्ड गिरि अटवी मांहीं, तुम बिनशरण तहां कोउ नांहीं। वज्रपात करि घन गरजावै, मूसलधार होय तड़कावै। होय अपुत्र दरिद्र संताना, सुमिरत होत कुबेर समाना। बंदीगृह में बँधी जंजीरा, कठ सुई अनि में सकल शरीरा। राजदण्ड करि शूल धरावै, ताहि सिंहासन तुही बिठावै। न्यायाधीश राजदरबारी, विजय करे होय कृपा तुम्हारी। जहर हलाहल दुष्ट पियन्ता, अमृत सम प्रभु करो तुरन्ता। चढ़े जहर, जीवादि डसन्ता, निर्विष क्षण में आप करन्ता। एक सहस वसु तुमरे नामा, जन्म लियो कुण्डलपुर धामा। सिद्धारथ नृप सुत कहलाए, त्रिशला मात उदर प्रगटाए। तुम जनमत भयो लोक अशोका, अनहद शब्दभयो तिहुँलोका। इन्द्र ने नेत्र सहस्र करि देखा, गिरी सुमेर कियो अभिषेखा। कामादिक तृष्णा संसारी, तज तुम भए बाल ब्रह्मचारी। अथिर जान जग अनित बिसारी, बालपने प्रभु दीक्षा धारी। शांत भाव धर कर्म विनाशे, तुरतहि केवल ज्ञान प्रकाशे। जड़-चेतन त्रय जग के सारे, हस्त रेखवत्‌ सम तू निहारे। लोक-अलोक द्रव्य षट जाना, द्वादशांग का रहस्य बखाना। पशु यज्ञों का मिटा कलेशा, दया धर्म देकर उपदेशा। अनेकांत अपरिग्रह द्वारा, सर्वप्राणि समभाव प्रचारा। पंचम काल विषै जिनराई, चांदनपुर प्रभुता प्रगटाई। क्षण में तोपनि बाढि-हटाई, भक्तन के तुम सदा सहाई। मूरख नर नहिं अक्षर ज्ञाता, सुमरत पंडित होय विख्याता। सोरठा : करे पाठ चालीस दिन नित चालीसहिं बार। खेवै धूप सुगन्ध पढ़, श्री महावीर अगार ॥ जनम दरिद्री होय अरु जिसके नहिं सन्तान। नाम वंश जग में चले होय कुबेर समान ॥

महावीर जयंती कब है, जानिए पूजा करने का मुहूर्त और तरीका

Mahavir Jayanti 2025: Panchang के अनुसार, प्रतिवर्ष Chaitra Month के 13वें दिन अर्थात Chaitra Shukla Trayodashi Tithi पर Bhagwan Mahavir Jayanti मनाई जाती है। Jain Calendar के अनुसार 2025 में Mahavir Jayanti गुरुवार, 10 अप्रैल को मनाई जाएगी। यह festival Lord Mahavir Birth Anniversary की याद में मनाया जाता है। Jain Mythology के अनुसार Bhagwan Mahavir Jain Dharma के 24वें Tirthankar हैं। बता दें कि इस साल Lord Mahavir Swami 2623rd Anniversary मनाई जाएगी। Worldwide, यह दिन Jain Devotees द्वारा prayers, fasting, events, donation activities आदि के साथ मनाया जाता है। Trayodashi Tithi Start - 09 अप्रैल 2025 को शाम 10:55 बजे से। Trayodashi Tithi End - 11 अप्रैल 2025 को रात 01:00 बजे। According to Tithi, Mahavir Jayanti Thursday, 10 April 2025 को मनाई जाएगी। Mahavir Swami Puja Vidhi (Lord Mahavir Worship Method) Shri Mahavir Jin Puja को Shri Vardhman Jin Puja भी कहते हैं। Puja Start करने के पूर्व इसे एक बार जरूर पढ़ लें जिससे कि worship के दौरान त्रुटि न हो। ।। श्री महावीर जिन-पूजा ।। छन्द मत्तगयन्द: श्रीमत वीर हरें भवपीर, भरें सुखसीर अनाकुलताई। केहरि अंक अरीकरदंक, नए हरि पंकति मौलि सुआई॥ मैं तुमको इत भापत हों प्रभु, भक्ति समेत हिये हरषाई। हे करुणा-धन-धारक देव, इहां अब तिष्ठहु शीघ्रहि आई॥ ओं ह्रीं श्री वर्द्धमान जिनेन्द्र! अत्र अवतर अवतर। संवीषट्। ओं ह्रीं श्री वर्द्धमान जिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः। स्थापनम्‌। ॐ ह्रीं श्री वर्द्धमान जिनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव। वषट्। छन्द अष्टपदी: क्षीरोदधिसम शुचि नीर, कंचन भृंग भरों। प्रभु वेग हरो भवपीर, यातें धार करों॥ श्रीवीर महा अतिवीर, सन्मति नायक हो। जय वर्द्धमान गुणधीर, सन्मतिदायक हो॥1॥ ॐ ह्रीं श्री महावीर जिनेन्द्राय जन्मजरामृत्यु विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा। मलयागिर चन्दनसार, केसर संग घसों। प्रभु भवआताप निवार, पूजत हिय हुलसों। श्रीवीर... ॐ ह्रीं श्री महावीर जिनेन्द्राय भवातापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा॥2॥ तंदुलसित शशिसम शुद्ध, लीनो थार भरी। तसु पुंज धरों अविरुद्ध, पावों शिवनगरी। श्रीवीर... ॐ ह्रीं श्री महावीरजिनेन्द्राय अक्षयपद प्राप्तये अक्षतान्‌ निर्वपामीति स्वाहा॥3॥ सुरतरु के सुमन समेत, सुमन सुमन प्यारे। सो मनमथ भंजन हेत, पूजों पद थारे॥ श्रीवीर... ॐ ह्रीं श्री महावीरजिनेन्द्राय कामबाण विध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा॥4॥ रसरज्जत सज्जत सद्य, मज्जत थार भरी। पद जज्जत रज्जत अद्य, भज्जत भूख अरी॥ श्रीवीर... ॐ ह्रीं श्री महावीरजिनेन्द्राय क्षुधारोग विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा॥5॥ तमखंडित मंडित नेह, दीपक जोवत हों। तुम पदतर हे सुखगेह, भ्रमतम खोवत हों॥ श्रीवीर... ॐ ह्रीं श्री महावीरजिनेन्द्राय मोहांधकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा॥6॥ हरिचंदन अगर कपूर, चूर सुगंध करा। तुम पदतर खेवत भूरि, आठौं कर्म जरा॥ श्रीवीर... ॐ ह्रीं श्री महावीरजिनेन्द्राय अष्टकर्म दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा॥7॥ रितुफल कल-वर्जित लाय, कंचन थार भरों। शिव फलहित हे जिनराय, तुम ढिंग भेंट धरों। श्री वीर महा अतिवीर, सन्मति नायक हो। जय वर्द्धमान गुणधीर, सन्मति दायक हो॥ ॐ ह्रीं श्री महावीरजिनेन्द्रायमोक्षफल प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा॥8॥ जल फल वसु सजि हिम थार, तन मन मोद धरों। गुणगाऊँ भवदधितार, पूजत पाप हरों॥ श्रीवीर... ओं ह्रीं श्री महावीरजिनेन्द्राय अनर्ध्यपद प्राप्तये अर्घ निर्वपामीति स्वाहा॥9॥ पंचकल्याणक राग टप्पा: मोहि राखो हो सरना, श्री वर्द्धमान जिनरायजी, मोहि राखो.॥ गरभ साढ़सित छट्ट लियो थित, त्रिशला उर अघ हरना। सुर सुरपति तित सेव करौ नित, मैं पूजूं भवतरना॥ मोहि... ॐ ह्रीं आषाढ़ शुक्ल षष्टयां गर्भमंगल मंडिताय श्री महावीर जिनेन्द्राय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा॥1॥ जनम चैत सित तेरस के दिन, कुण्डलपुर कनवरना। सुरगिरि सुरगुरु पूज रचायो, मैं पूजों भवहरना॥ मोहि राखो हो...॥ ॐ ह्रीं चैत्रशुक्ला त्रयोदश्यां जन्ममंगलप्राप्तया श्री महावीर जिनेन्द्राय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा॥2॥ मंगसिर असितमनोहर दशमी, ता दिन तप आचरना। नृप कुमार घर पारन कीनों, मैं पूजों तुम चरना॥ मोहि। राखो हो...॥ ॐ ह्रीं मार्गशीर्षकृष्णदशम्यां तपोमंगलमंडिताय श्री महावीर जिनेन्द्राय अर्घ निर्वपामोति स्वाहा॥3॥ शुक्लदशै वैसाख दिवस अरि, घात चतुक क्षय करना। केवललहि भवि भवसर तारे, जजो चरन सुख भरना॥ मोहि राखो हो...॥ ॐ ह्रीं वैशाखशुक्ल-दशम्यां केवलज्ञानमंडिताय श्री महावीर जिनेन्द्राय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा॥4॥ कातिक श्याम अमावस शिवतिय, पावापुरतैं वरना। गणफनिवृन्द जजें तित बहुविध, मैं पूजों भयहरना॥ मोहि राखो हो...॥ ॐ ह्रीं कार्तिककृष्णअमावस्यायां मोक्षमंगलप्राप्ताय श्री महावीरजिनेन्द्राय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा॥5॥ जयमाला छंद हरिगीता (28 मात्रा) : गणधर अशनिधर, चक्रधर हलधर, गदाधर वरवदा। अरुं चापधर, विद्यासुधर तिरशूलधर सेवहिं सदा॥ दुखहरन आनंदभरन तारन, तरन चरन रसाल हैं। सुकुमाल गुण मनिमाल उन्नत भालकी जयमाल है॥1॥ छंद घत्तानन्द : जय त्रिशलानंदन, हरिकृतवंदन, जगदानंदन चंदवरं। भवतापनिकंदन, तनकनमंदन, रहित सपंदन नयन धरं॥2॥ छंद त्रोटक : जय केवलभानु-कला-सदनं। भवि-कोक-विकाशन कंदवनं। जगजीत महारिपु मोहहरं। रजज्ञान-दृंगावर चूर करं॥1॥ गर्भादिक-मंगलमंडित हो। दुखदारिदको नितखंडित हो। जगमाहिं तुम्हीं सतपंडित हो। तुमही भवभाव-विहंडित हो॥2॥ हरिवंश सरोजनको रवि हो। बलवंत महंत तुम्हीं कवि हो। लहि केवलधर्म प्रकाश कियो। अबलों सोइमारग राजतियो॥3॥ पुनि आप तने गुण माहिं सही। सुरमग्न रहैं जितने सबही। तिनकी वनिता गुनगावत हैं। लय माननिसों मनभावत हैं॥4॥ पुनि नाचत रंग उमंग-भरी। तुअ भक्ति विषै पग एम धरी। झननं झननं झननं झननं। सुर लेत तहां तननं तननं॥5॥ घननं घननं घनघंट बजै॥ दृमदं दृमदं मिरदंग सजै। गगनांगन-गर्भगता सुगता। ततता ततता अतता बितता॥6॥ धृगतां धृगतां गति बाजत है। सुरताल रसालजु छाजत है। सननं सननं सननं नभ में। इकरूप अनेक जु धारि भ्रमें॥7॥ कई नारि सुबीन बजावत हैं। तुमरो जस उज्ज्वल गावत हैं। करताल विषै करताल धरैं। सुरताल विशाल जुनाद करैं॥8॥ इन आदि अनेक उछाह भरी। सुरभक्ति करें प्रभुजी तुमरी। तुमही जग जीवन के पितु हो। तुमही बिन कारनते हितु हो॥9॥ तुमही सब विघ्न विनाशन हो। तुमही निज आनंदभासन हो। तुमही चितचिंतितदायक हो। जगमाहिं तुम्हीं सबलायक हो॥10॥ तुमरे पन मंगल माहिं सही। जिय उत्तम पुन्य लियो सबही। हमको तुमरी शरणागत है। तुमरे गुन में मन पागल है॥11॥ प्रभु मोहिय आप सदा बसिये। जबलों वसु कर्म नहीं नसिये। तबलों तुम ध्यान हिये वरतो। तबलों श्रुतचिंतन चित्त रतो॥12॥ तबलों व्रत चारित चाहतु हों। तबलों शुभभाव सुगाहतु हों। तबलों सतसंगति नित्त रहो। तबलों मम संजम चित्त गहो॥13॥ जबलों नहिं नाश करों अरिको, शिव नारि वरों समता धरिको। यह द्यो तबलों हमको जिनजी। हम जाचतु हैं इतनी सुनजो॥14॥ घत्तानंद : श्रीवीर जिनेशा नमित सुरेशा, नाग नरेशा भगति भरा। 'वृंदावन' ध्यावै विघन नशावै बाँछित पावै शर्म वरा॥15॥ ॐ ह्रीं श्री वर्द्धमान जिनेन्द्राय महार्घं निर्वपामीति स्वाहा। दोहा : श्री सन्मति के जुगल पद, जो पूजैं धरि प्रीति। वृंदावन सो चतुर नर, लहैं मुक्ति नवनीत॥ ॥ पुष्पांजलिं क्षिपामि ॥

राम नवमी पर उपवास करने का क्या है खास नियम?

Ram Navami 2025: Fasting types कई प्रकार होते हैं। Nitya Vrat, Naimittik Vrat, Kamya Vrat आदि के अंतर्गत ही Morning Fasting, Half Fasting, Single Meal Fasting, Liquid Fasting, Fruit Fasting, Milk Fasting, Buttermilk Fasting, Complete Fasting, Weekly Fasting, Light Fasting, Strict Fasting, Broken Fasting, Long Fasting आदि बताए गए हैं। इसमें Naimittik Vrat और Kamya Vrat specific date fasting के अंतर्गत आते हैं। प्रत्येक fast को करने के अपने नियम हैं। 1. Ram Navami Vrat के समय 8 Prahar Fasting करने का भी विधान है। इसका अर्थ है कि भक्तों को sunrise to next sunrise fasting का पालन करना चाहिए। परंतु कई जगहों पर 4 Prahar Fasting रखते हैं, यानी sunrise to sunset fasting। 2. Ram Navami Fast तीन भिन्न-भिन्न उद्देश्यों से रखा जा सकता है: -Naimittik Vrat – जिसे बिना किसी कारण के किया जाता है। -Nitya Vrat – जिसे जीवनपर्यंत बिना किसी desire or wish के किया जाता है, यानी हर Ram Navami पर। -Kamya Vrat – जिसे किसी विशेष wish fulfillment के लिए किया जाता है। 3. Forgiveness, Truth, Kindness, Charity, Purity, Sense Control, God Worship, Fire Sacrifice, Contentment, और No Stealing – ये 10 rules संपूर्ण fasting rituals में आवश्यक माने गए हैं। 4. अनेक बार drinking water, betel leaf consumption, day sleeping, sexual activities करने से fasting impurity हो जाती है। 5. Fasting person को bronze utensils, honey, और other’s food consumption का त्याग करना चाहिए। साथ ही expensive clothes, ornaments, perfumes, और scented items का उपयोग नहीं करना चाहिए। लेकिन hygiene maintenance को निषेध नहीं कहा गया है।

नवरात्रि में भूल कर भी ना करें ये गलतियां, माता के कोप से अनिष्ट का बनती हैं कारण

Chaitra Navratri vrat mistakes: नवरात्रि, Maa Durga Puja का विशेष समय है, जहाँ भक्त उनकी कृपा पाने के लिए नौ दिनों तक उनकी worship करते हैं। इन दिनों में माता के 9 रूपों की विधिवत prayer करने से माता अपने भक्तों पर विशेष कृपा बनाए रखती हैं और उनसे प्रसन्न होती हैं। वहीं कुछ ऐसे कर्म भी हैं जिनसे बचना चाहिए, क्योंकि मान्यता है कि इन्हें करने से Goddess Durga अप्रसन्न हो सकती हैं। नवरात्रि में भूल कर भी नहीं करना चाहिए ये काम -Hungry person को भोजन न कराना: नवरात्रि में poor and needy को भोजन कराना पुण्य का काम माना जाता है। भूखे को भोजन न कराना bad luck का कारण बन सकता है। -Water, food आदि चीजों को व्यर्थ बर्बादी: Food and water wastage करना देवी Annapurna का अपमान माना जाता है, जिससे घर में poverty आती है। -Poor or labor exploitation: नवरात्रि में किसी भी weak or poor person को सताना देवी माँ की anger का कारण बनता है। -Animal cruelty: Animals and birds को सताना पाप माना जाता है और इससे negative energy उत्पन्न होती है। -Disrespect of Kanya (girls): नवरात्रि में young girls को Goddess Durga form माना जाता है, इसलिए उनका सम्मान करना आवश्यक है। उनका अपमान करने से Maa Durga क्रोधित हो सकती हैं। इन कार्यों से बचकर नवरात्रि में Maa Durga blessings प्राप्त की जा सकती है।

लक्ष्मी पंचमी व्रत कब रखा जाता है, क्या है इसका महत्व?

2025 Laxmi Panchami: Laxmi Panchami Vrat चैत्र मास के Shukla Paksha Panchami Tithi को रखा जाता है। यह व्रत Goddess Laxmi Puja को समर्पित है और इसे Wealth and Prosperity Goddess Worship करने का एक शुभ दिन माना जाता है। Maa Laxmi Blessings प्राप्त करने और अपने जीवन को सुखमय बनाने के लिए Laxmi Panchami Fast एक उत्तम अवसर है। 2025 में कब रखा जाएगा व्रत: घर में Goddess Laxmi Arrival Festival मनाने वाला यह पर्व इस बार April 2, 2025 (Wednesday) को पड़ रहा है। इस दिन Laxmi Puja Panchami Tithi का प्रारंभ April 2, 2025, at 02:32 AM से होकर समापन April 2, 2025, at 11:49 PM पर हो रहा है। अतः Laxmi Panchami Festival Wednesday, April 2, 2025 को मनाया जाएगा। Laxmi Panchami Vrat Importance: Chaitra Shukla Panchami Fast करने से Goddess Laxmi Blessings for Wealth and Prosperity प्राप्त होती है। इस दिन की गई Shri Laxmi Worship मनोवांछित फल प्रदान करती है। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत से Financial Stability and Success आती है। यह व्रत Economic Problems Solution में सहायक है और Happiness and Peace in Life लाता है। Laxmi Panchami Puja Vidhi: -इस दिन सुबह जल्दी उठकर Holy Bath and Clean Clothes धारण करें। -Maa Laxmi Idol or Picture Setup करें और चौकी पर स्थापित करें। -Goddess Laxmi Offering Rituals जैसे Flowers, Fruits, Incense, Diyas, and Naivedya अर्पित करें। -Maa Laxmi Mantra Chanting करें और Aarti करें। -कुछ लोग इस दिन Fasting on Laxmi Panchami रखते हैं। -Charity and Donation करना शुभ माना जाता है। -इस दिन Kanakdhara Stotra, Laxmi Stotram, and Shri Suktam Path करें। Vrat Benefits: -Maa Laxmi Divine Blessings प्राप्त होती हैं। -Happiness and Peaceful Life मिलती है। -Good Fortune and Prosperity का आशीर्वाद मिलता है। -Increase in Wealth and Financial Growth होती है। -Freedom from Financial Problems मिलती है।

Ram Navami 2025: कैसे मनाएं श्रीराम जन्मोत्सव

श्री राम नवमी 2025: 06 अप्रैल 2025 रविवार के दिन Shri Ram Navami Festival का महापर्व मनाया जाएगा। Chaitra Month Shukla Paksha Navami को Lord Shri Ram Birth Anniversary मनाई जाती है। पूरे देश में Ram Janmotsav Celebrations की धूम रहती है। खासकर Ayodhya City Decoration की जाती है और धूमधाम से यह उत्सव मनाया जाता है। कई शहरों में Shri Ram Palki Yatra भी निकाली जाती है। आओ जानते हैं कि इस दिन कैसे मनाते हैं Ram Navami Mahotsav। कैसे मनाएं Shri Ram Janmotsav? -इसी दिन Lord Ram Childhood Form Worship होती है। -Lord Shri Ram Birth Time दिन में 12 बजे के आसपास हुआ था। -Shri Ram Puja Muhurat: सुबह 11:08 मिनट से दोपहर 01:39 मिनट तक। -इस दिन Ramayan Path करते हैं। Ram Raksha Stotra Reading भी किया जाता है। -कई जगह Bhajan Kirtan Event का भी आयोजन किया जाता है। -Lord Ram Idol Decoration की जाती है, फूल-माला से सजाकर पालने में झुलाया जाता है। -कई जगहों पर Palki Yatra or Shobha Yatra निकाली जाती है। -घर और मंदिरों में Shri Ram Puja के बाद Panjiri Prasad Distribution किया जाता है। -Ayodhya Grand Ram Janmotsav Celebration का भव्य आयोजन होता है।

प्रभु श्रीराम के जन्म के 5 प्रामाणिक सबूत

Archaeological Evidence of Existence of Ram: देश के ऐसे कई लोग हैं जो Lord Ram के कभी होने के अस्तित्व पर सवाल उठाते हैं। वे Ramayan को एक mythological text मानते हैं। ऐसा करने वाले लोग वे हैं जो Indian civilization और Hindu religion history को अच्‍छे से नहीं जानते हैं या वे लोग हैं जो atheist हो चले हैं। ऐसे लोगों को history study निष्‍पक्ष रहकर करना चाहिए। आज हम बताते हैं Lord Ram existence के 5 historical evidence यानी प्रमाण। 1. Shri Ram ki Vanshavali (Genealogy of Lord Ram): वंशावली उसी की होती है जो कभी earth पर मौजूद रहा है। कभी किसी fictional character की lineage और descendants का किसी ancient text में जिक्र नहीं होता है। Lord Ram's descendants आज भी इस धरती पर मौजूद हैं। सभी Suryavanshi Shri Ram's son Luv and Kush lineage से संबंध रखते हैं। यह living proof है। Louisiana University, USA के प्रो. Subhash Kak ने अपनी पुस्तक 'The Astronomical Code of Rigveda' में Shri Ram's 63 ancestors का वर्णन किया है जिन्होंने Ayodhya पर शासन किया था। Genealogy of Ram का वर्णन उन्होंने क्रमश: इस प्रकार किया— Manu, Ikshvaku, Vikukshi, Kakutstha, Vishwarasva, Yuvanashva, Mandhata, Purukutsa, Harishchandra, Bhagirath, Dilip, Sagara, Dasharath और फिर Ram। 2. Archaeological Evidence (Puratatvik Praman): Lord Ram से जुड़े 200+ archaeological sites खोज लिए गए। Renowned historian and archaeologist Dr. Ram Avatar ने Lord Ram and Goddess Sita’s life events से जुड़े 200+ locations का पता लगाया है, जहां Ram and Sita रुके थे। इनमें मुख्य स्थान शामिल हैं— जहां आज भी तत्संबंधी स्मारक स्थल विद्यमान हैं, जहां श्रीराम और सीता रुके या रहे थे। वहां के स्मारकों, भित्तिचित्रों, गुफाओं आदि स्थानों के समय-काल की जांच-पड़ताल वैज्ञानिक तरीकों से की गई है। इन स्थानों में से प्रमुख के नाम है- सरयू और तमसा नदी के पास के स्थान, प्रयागराज के पास श्रृंगवेरपुर तीर्थ, सिंगरौर में गंगा पार कुरई गांव, प्रायागराज, चित्रकूट (मप्र), सतना (मप्र), दंडकारण्य के कई स्थान, पंचवटी नासिक, सर्वतीर्थ, पर्णशाला, तुंगभद्रा, शबरी का आश्रम, ऋष्यमूक पर्वत, कोडीकरई, रामेश्‍वरम, धनुषकोडी, रामसेतु और नुवारा एलिया पर्वत श्रृंखला। 3. Maharishi Valmiki (Primary Historical Evidence): सर्वप्रथम ऋषि वाल्मीकि ने ही श्रीराम की कथा लिखी थी। वाल्मीकि जी श्रीराम के ही काल में थे। 14 वर्ष के वनवास के बाद उन्हीं के आश्रम में माता सीता ने रुककर लव और कुश को जन्म दिया था। वाल्मीकि जी ने अपने ग्रंथ में श्रीराम के जीवन से जुड़े करीब 400 से ज्यादा स्थानों का वर्णन किया है जो आज भी भारत की धरती पर मौजूद है। वहां जाकर आप पुरातात्विक अवशेष को देख सकते हैं। इसी के साथ ऐसे कई अभिलेख भी मिल जाएंगे जो राम के होने को प्रमाणित करते हैं। उन्होंने राम के जन्म काल के ग्रह नक्षत्रों का भी वर्णन किया है जिससे उनके जन्म का समय 5,114 ईस्वी पूर्व निकलकर आता है। श्रीवाल्मीकि ने रामायण की संरचना श्रीराम के राज्याभिषेक के बाद वर्ष 5075 ईपू के आसपास की होगी (1/4/1- 2)। श्रुति-स्मृति की प्रथा के माध्यम से पीढ़ी-दर-पीढ़ी परिचलित रहने के बाद वर्ष 1000 ईपू के आसपास इसको लिखित रूप दिया गया होगा। इस निष्कर्ष के बहुत से प्रमाण मिलते हैं। रामायण की कहानी के संदर्भ निम्नलिखित रूप में उपलब्ध हैं- कौटिल्य का अर्थशास्त्र (चौथी शताब्दी ईपू), बौ‍द्ध साहित्य में दशरथ जातक (तीसरी शताब्दी ईपू), कौशाम्बी में खुदाई में मिलीं टेराकोटा (पक्की मिट्‍टी) की मूर्तियां (दूसरी शताब्दी ईपू), नागार्जुनकोंडा (आंध्रप्रदेश) में खुदाई में मिले स्टोन पैनल (तीसरी शताब्दी), नचार खेड़ा (हरियाणा) में मिले टेराकोटा पैनल (चौथी शताब्दी), श्रीलंका के प्रसिद्ध कवि कुमार दास की काव्य रचना 'जानकी हरण' (सातवीं शताब्दी), आदि। 4. Research on Ram (Scientific Studies): राम हुए या नहीं, इस पर कई शोध हुए। उनमें से एक शोध फादर कामिल बुल्के ने भी किया। उन्होंने राम की प्रामाणिकता पर शोध किया और पूरी दुनिया में रामायण से जुड़े करीब 300 रूपों की पहचान की। 'प्ले‍नेटेरियम' : राम के बारे में एक दूसरा शोध चेन्नई की एक गैरसरकारी संस्था भारत ज्ञान द्वारा किया गया। 6 वर्षों के शोध के बाद उनके अनुसार राम के जन्म को हुए 7,138 वर्ष हो चुके हैं। उनका मानना है कि राम एक ऐतिहासिक व्यक्ति थे और इसके पर्याप्त प्रमाण हैं। राम का जन्म 5,114 ईस्वी पूर्व हुआ था। वाल्मीकि रामायण में लिखी गई नक्षत्रों की स्थिति को 'प्ले‍नेटेरियम' नामक सॉफ्टवेयर से गणना की गई तो उक्त तारीख का पता चला। यह एक ऐसा सॉफ्टवेयर है, जो आगामी सूर्य और चंद्र ग्रहण की भविष्यवाणी कर सकता है और पिछले लाखों वर्षों की ग्रह स्थिति और मौसम की गणना कर सकता है। सरोज बाला, अशोक भटनागर और कुलभूषण मिश्र द्वारा लिखित एवं वेदों पर वैज्ञानिक शोध संस्थान (आई-सर्व) हैदराबाद द्वारा प्रकाशित 'वैदिक युग एवं रामायणकाल की ऐतिहासिकता : समुद्र की गहराइयों से आकाश की ऊंचाइयों तक के वैज्ञानिक प्रमाण' नामक शोधग्रंथ में भी इसका उल्लेख मिलता है। 5. Rameshwaram Shivling & Ram Setu: 14 years exile के अंतिम 2 years, Lord Ram ने Dandakaranya forests से निकलकर search for Sita Mata शुरू की। Ram's army ने Rameshwaram की ओर कूच किया। Epic Ramayan के अनुसार, Lord Ram ने Lord Shiva की worship के लिए Rameshwaram Jyotirlinga स्थापित किया। इसके बाद, Nal and Neel के माध्यम से world’s first bridge (Ram Setu) समुद्र पर बनाया। आज इसे Ram Setu (Adam's Bridge) कहा जाता है, लेकिन इसका मूल नाम Nal Setu था। NASA satellite images से यह प्रमाणित हुआ कि यह man-made structure है।

Gangaur Teej 2025: गणगौर तीज का महत्व, पूजन विधि और पौराणिक कथा

Gangaur Vrat 2025: गणगौर तीज, जिसे Gangaur Vrat के नाम से भी जाना जाता है, Rajasthan, Madhya Pradesh, Gujarat, और Haryana में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण Hindu festival है। यह त्योहार Chaitra month के Shukla Paksha की Tritiya Tithi को मनाया जाता है। बता दें कि इस बार Gangaur Teej 2025 में 01 April, Monday को मनाई जाएगी। Gangaur Teej ka Mahatva (Importance of Gangaur Teej) Gangaur festival मुख्य रूप से विवाहित महिलाओं द्वारा अपने husband की long life और good fortune के लिए मनाया जाता है। Unmarried girls भी best life partner की कामना के लिए इस व्रत को करती हैं। धार्मिक मान्यतानुसार Gangaur का अर्थ है 'Gan' यानी Lord Shiva और 'Gaur' यानी Goddess Parvati, इसलिए इस दिन Shiva and Parvati Puja की जाती है। यह त्योहार spring season के आगमन और harvest festival का भी प्रतीक है। Chaitra Krishna Ekadashi के दिन प्रातः holy bath करके गीले वस्त्रों में ही रहकर घर के ही किसी sacred place पर लकड़ी की बनी टोकरी में wheatgrass (Jaware) sowing की जाती है तथा immersion (visarjan) तक व्रती को ekasana (one-time meal) करना चाहिए। Gangaur Teej Puja Vidhi (Pooja Rituals of Gangaur Teej) 1. Gangaur Puja Chaitra month के Krishna Paksha Tritiya से शुरू होती है और Shukla Paksha Tritiya तक चलती है। 2. इस दौरान, महिलाएं clay idol of Goddess Gauri बनाती हैं और उन्हें सजाती हैं। 3. Gangaur day पर, महिलाएं सुबह जल्दी उठकर holy bath लेती हैं और new clothes पहनती हैं। 4. वे Gauri and Lord Shiva idols की पूजा करती हैं और उन्हें flowers, fruits, sweets, and other offerings अर्पित करती हैं। 5. वे Gangaur Katha सुनती हैं और traditional songs गाती हैं। 6. कुछ महिलाएं इस दिन fasting (vrat) भी रखती हैं। 7. Gangaur day पर, महिलाएं अपने hands and feet पर Mehendi (Henna) लगाती हैं। 8. वे अपने family and friends के साथ त्योहार मनाती हैं और traditional food का आनंद लेती हैं। 9. Gangaur Poojan में Goddess Gauri's ten forms— Gauri, Uma, Latika, Subhaga, Bhagmalini, Manokamna, Bhavani, Kamda, Saubhagyavardhini, और Ambika आदि की पूजा की जाती है। -मान्यतानुसार इस व्रत को करने से happiness, prosperity, children, wealth, तथा good fortune की प्राप्ति होती है और जीवन blessed हो जाता है। Gangaur Katha (Mythological Story of Gangaur Teej) Gangaur ki Mythological Story के अनुसार एक बार Lord Shiva तथा Goddess Parvati Narad Muni के साथ भ्रमण को निकले। चलते-चलते वे Chaitra Shukla Tritiya के दिन एक गांव में पहुंच गए। उनके आगमन का समाचार सुनकर गांव की high-class women उनके स्वागत के लिए delicious food बनाने लगीं। Cooking करते-करते उन्हें काफी विलंब हो गया। किंतु ordinary-class women turmeric (haldi) and rice (akshat) लेकर पहले ही Goddess Parvati Pooja हेतु पहुंच गईं। Goddess Parvati ने उनके devotion and faith को स्वीकार कर Suhag Ras उन पर छिड़क दिया। वे eternal marital bliss (Akhand Suhagan) प्राप्ति का blessing पाकर लौटीं। तत्पश्चात high-class women अनेक प्रकार के delicious dishes (pakwan) लेकर Goddess Parvati and Lord Shiva Puja करने पहुंचीं। उन्हें देखकर Lord Shiva ने Goddess Parvati से कहा, "तुमने सारा Suhag Ras तो ordinary women को ही दे दिया, अब high-class women को क्या दोगी?" Goddess Parvati ने उत्तर दिया, "Prannath (Beloved Husband), आप चिंता मत कीजिए। उन स्त्रियों को मैंने केवल outer material-based Suhag Ras दिया है, परंतु मैं इन high-class women को अपनी उंगली चीरकर अपने रक्त का Suhag Ras दूंगी।" यह Suhag Ras, जिसके fate में पड़ा, वह blessed हो गई और lifelong marital happiness प्राप्त किया। जब स्त्रियों ने पूजन समाप्त कर दिया, तब पार्वती जी ने अपनी उंगली चीर कर उन पर छिड़क दिया तथा जिस पर जैसा छींटा पड़ा, उसने वैसा ही सुहाग पा लिया। तत्पश्चात भगवान शिव की आज्ञा से पार्वती जी ने नदी तट पर स्नान किया और बालू की शिव-मूर्ति बनाकर पूजन करने लगीं। पूजन के बाद बालू के पकवान बनाकर शिव जी को भोग लगाया। प्रदक्षिणा करके नदी तट की मिट्टी से माथे पर तिलक लगाकर दो कण बालू का भोग लगाया। इतना सब करते-करते पार्वती को काफी समय लग गया। काफी देर बाद जब वे लौटकर आईं तो महादेव जी ने उनसे देर से आने का कारण पूछा। उत्तर में पार्वती जी ने झूठ ही कह दिया कि वहां मेरे भाई-भावज आदि मायके वाले मिल गए थे। उन्हीं से बातें करने में देर हो गई। परंतु महादेव तो महादेव ही थे। वे कुछ और ही लीला रचना चाहते थे। अत: उन्होंने पूछा- 'पार्वती! तुमने नदी के तट पर पूजन करके किस चीज का भोग लगाया था और स्वयं कौन-सा प्रसाद खाया था?' स्वामी! पार्वती जी ने पुन: झूठ बोल दिया- 'मेरी भावज ने मुझे दूध-भात खिलाया। उसे खाकर मैं सीधी यहां चली आ रही हूं।' यह सुनकर शिव जी भी दूध-भात खाने के लालच में नदी तट की ओर चल दिए। पार्वती जी दुविधा में पड़ गईं। तब उन्होंने मौन भाव से भगवान भोलेशंकर का ही ध्यान किया और प्रार्थना की- 'हे भगवन्! यदि मैं आपकी अनन्य दासी हूं तो आप इस समय मेरी लाज रखिए।' यह प्रार्थना करती हुईं पार्वती जी भगवान शिव के पीछे-पीछे चलती रहीं। उन्हें दूर नदी के तट पर माया का महल दिखाई दिया। उस महल के भीतर पहुंचकर वे देखती हैं कि वहां शिव जी के साले तथा सलहज आदि सपरिवार उपस्थित हैं। उन्होंने गौरी तथा शंकर का भावभीना स्वागत किया। वे 2 दिनों तक वहां रहे। तीसरे दिन पार्वती जी ने शिव से चलने के लिए कहा, पर शिव जी तैयार नहीं हुए। वे अभी और रुकना चाहते थे। तब पार्वती जी रूठकर अकेली ही चल दीं। ऐसी हालत में भगवान शिव जी को पार्वती के साथ चलना ही पड़ा। नारद जी भी साथ-साथ चल दिए। चलते-चलते वे बहुत दूर निकल आए। उस समय भगवान सूर्य अपने धाम (पश्चिम) को पधार रहे थे। अचानक भगवान शंकर पार्वती जी से बोले- 'मैं तुम्हारे मायके में अपनी माला भूल आया हूं।' 'ठीक है, मैं ले आती हूं', पार्वती जी ने कहा और वे जाने को तत्पर हो गईं, परंतु भगवान ने उन्हें जाने की आज्ञा न दी और इस कार्य के लिए ब्रह्मपुत्र नारद जी को भेज दिया, ले‍किन वहां पहुंचने पर नारद जी को कोई महल नजर नहीं आया। वहां तो दूर-दूर तक जंगल ही जंगल था जिसमें हिंसक पशु विचर रहे थे। नारद जी वहां भटकने लगे और सोचने लगे कि कहीं वे किसी गलत स्थान पर तो नहीं आ गए? मगर सहसा ही बिजली चमकी और नारद जी को शिव जी की माला एक पेड़ पर टंगी हुई दिखाई दी। नारद जी ने माला उतार ली और शिव जी के पास पहुंचकर वहां का हाल बताया।शिव जी ने हंसकर कहा- 'नारद! यह सब पार्वती की ही लीला है।' इस पर पार्वती बोलीं- 'मैं किस योग्य हूं?' तब नारद जी ने सिर झुकाकर कहा- 'माता! आप पतिव्रताओं में सर्वश्रेष्ठ हैं। आप सौभाग्यवती समाज में आदिशक्ति हैं। यह सब आपके पतिव्रत का ही प्रभाव है। संसार की स्त्रियां आपके नाम-स्मरण मात्र से ही अटल सौभाग्य प्राप्त कर सकती हैं और समस्त सिद्धियों को बना तथा मिटा सकती हैं। तब आपके लिए यह कर्म कौन-सी बड़ी बात है?' नारद जी ने आगे कहा कि 'महामाये! गोपनीय पूजन अधिक शक्तिशाली तथा सार्थक होता है। आपकी भावना तथा चमत्कारपूर्ण शक्ति को देखकर मुझे बहुत प्रसन्नता हुई है। मैं आशीर्वाद रूप में कहता हूं कि जो स्त्रियां इसी तरह गुप्त रूप से पति का पूजन करके मंगलकामना करेंगी, उन्हें महादेव जी की कृपा से दीर्घायु वाले पति का संसर्ग मिलेगा।' इसलिए गणगौर पर माता पार्वती और भगवान शिव की पूजन किया जाता है। और गणगौर तीज को देवी पार्वती और भगवान शिव के प्रेम और समर्पण के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है।

चैत्र नवरात्रि और शारदीय नवरात्रि कैसे मनाते हैं, जानें 5 प्रमुख बातें

Worship of Mother Durga: चैत्र Navratri और Sharadiya Navratri दोनों ही Hindu Dharma में Maa Navdurga को समर्पित महत्वपूर्ण festivals हैं। इन दोनों ही पर्वों पर नौ दिनों तक Mata Durga की पूजा-आराधना की जाती है। Akhand Jyoti जलाई जाती है तथा Ashtami-Navami Tithi पर Devi Puja के साथ-साथ Kanya Bhoj भी करवाया जाता है। इस बार 30 March से Chaitra Navratri का प्रारंभ हो रहा है तथा इसका समापन 6 April 2025 को Shri Ram Navami के साथ होगा। हालांकि, इन दोनों में कुछ महत्वपूर्ण अंतर हैं। आइए जानते हैं Chaitra तथा Sharad Navratri के प्रमुख 5 अंतर... 1. Navratri का समय: • यह Navratri Chaitra Maas के Shukla Paksha की Pratipada Tithi से शुरू होती है, जो आमतौर पर March या April में आती है। यह Navratri Hindu New Year की शुरुआत का प्रतीक भी है। Chaitra Navratri Chaitra Maas के Shukla Paksha की Pratipada से Navami तक मनाई जाती है। यह Navratri Vasant Ritu में आती है, इसलिए इसे Vasant Navratri भी कहा जाता है। Chaitra Navratri में Sharadiya Navratri की तरह ही rituals एवं अनुष्ठानों का पालन किया जाता है। • Sharadiya Navratri Ashwin Maas के Shukla Paksha की Pratipada Tithi से शुरू होती है, जो आमतौर पर September या October में आती है। Sharadiya Navratri Ashwin Maas के Shukla Paksha की Pratipada से Navami तक मनाई जाती है। यह Navratri Sharad Ritu में आती है, इसलिए इसे Sharadiya Navratri कहा जाता है। Sharadiya Navratri के दौरान Ghatasthapana एवं Sandhi Puja Muhurat अधिक लोकप्रिय हैं। 2. Mahatva: • Chaitra Navratri में Maa Durga के साथ-साथ Bhagwan Ram की भी पूजा की जाती है। Chaitra Navratri के नौवें दिन Shri Ram Navami मनाई जाती है, जो Bhagwan Ram के जन्म का प्रतीक है। इस अवसर पर Navdurga Puja के साथ-साथ Shri Ram का पूजन भी किया जाता है। • Sharadiya Navratri Maa Durga की Mahishasur पर विजय का प्रतीक है। इस Navratri के दसवें दिन Dussehra मनाया जाता है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। Ram-Ravan Yudh के समय स्वयं Prabhu Shri Ram ने Maa Durga की Aradhana करके उनसे विजयी होने का आशीष लिया था तथा बुराई के प्रतीक Ravan पर उन्होंने जीत हासिल करके विजय पताका फहराई थी। 3. Utsav का स्वरूप: • Chaitra Navratri में नौ दिनों तक Vrat और Puja-Path का अधिक महत्व होता है तथा इन दिनों Upvaas रखकर Falahaari भोजन ग्रहण किया जाता है। कई लोग इस समयावधि में Chappal का त्याग करते हैं तो कई लोग Maun Vrat धारण करते हैं। • Sharadiya Navratri में Vrat और Puja-Path के साथ-साथ Garba और Dandiya जैसे सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाता है, जिसे हर जगह बहुत ही धूमधाम से नौ दिनों तक Dandiya Raas का आयोजन करके Mata की Aradhana की जाती है तथा कई स्थानों पर Kanya Bhoj का आयोजन किया जाता है। 4. Parv की भिन्नता: • Chaitra Navratri का पर्व North India में अधिक लोकप्रिय है। Chaitra Navratri की शुरुआत Maharashtra में Gudi Padwa से और Andhra Pradesh, Karnataka में Ugadi Festival से होती है। • Sharadiya Navratri Gujarat, West Bengal, Madhya Pradesh और Maharashtra जैसे राज्यों में अधिक लोकप्रिय है। इस अवसर पर पर्व का उत्साह देखते ही बनता है। खासकर युवाओं में यह पर्व अधिक लोकप्रिय हो चला है। 5. Samapan: • Chaitra Navratri का समापन Ram Navami के दिन होता है। इस दिन Prabhu Shri Ram के Janmotsav के साथ-साथ Chaitra Navratri का समापन भी होता है। • Sharadiya Navratri का समापन Vijayadashami/ Dussehra के दिन होता है तथा इस दिन Ayudh Puja, Shastra Pujan का विशेष महत्व है। यह दिन Sharadiya Navratri की समाप्ति तथा बुराई पर अच्छाई की विजय के प्रतीक स्वरूप में मनाया जाता है। और इस तरह दोनों ही Navratri में Maa Durga की Puja-Aradhana की जाती है और दोनों का अलग लेकिन अपना-अपना धार्मिक महत्व है।

नवरात्रि 2025 : देवी शैलपुत्री की पूजा विधि, मंत्र और आरती

Devi Shailputri: रविवार, 30 मार्च 2025 से Chaitra Navratri प्रारंभ हो रही है। पहले दिन यानी Pratipada को Mata Shailputri की पूजा होगी। Shailputri का अर्थ पर्वत राज Himalaya की पुत्री। यह माता का प्रथम अवतार था जो Sati के रूप में हुआ था। यहां जानते हैं माता की पूजा विधि, मंत्र, आरती, कथा और पूजन का शुभ मुहूर्त। शैलपुत्री का मंत्र श्लोक: वन्दे वांच्छितलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्‌ । वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्‌ ॥ Maa Shailputri Puja Vidhi सबसे पहले Maa Shailputri की Image स्थापित करें और उसके नीचे लकड़ी की चौकी पर Red Cloth बिछाएं। इसके ऊपर Kesar से 'Sham' लिखें और उसके ऊपर Manokamna Purti Gutika रखें। तत्पश्चात् हाथ में Red Flowers लेकर Shailputri Devi का ध्यान करें। मंत्र इस प्रकार है- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे ॐ शैलपुत्री देव्यै नम:। Mantra के साथ ही हाथ के Flowers, Manokamna Gutika एवं Maa Shailputri Image के ऊपर छोड़ दें। इसके बाद Prasad अर्पित करें तथा Maa Shailputri Mantra का जाप करें। इस Mantra का जप कम से कम 108 times करें। शैलपुत्री का मंत्र- ॐ शं शैलपुत्री देव्यै: नम:। Mantra Count पूर्ण होने के बाद Maa Durga के चरणों में अपनी Wishes व्यक्त करके Maa Durga से Prarthana करें तथा Aarti and Kirtan करें। Mantra के साथ ही हाथ के Flowers, Manokamna Gutika एवं Maa Shailputri Image के ऊपर छोड़ दें। इसके बाद Bhog अर्पित करें तथा Maa Shailputri Mantra का जाप करें। यह जप कम से कम 108 times होना चाहिए। ध्यान मंत्र वन्दे वांच्छित लाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्‌ । वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्‌ ॥ अर्थात- देवी वृषभ पर विराजित हैं। शैलपुत्री के दाहिने हाथ में त्रिशूल है और बाएं हाथ में कमल पुष्प सुशोभित है। यही नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा है। नवरात्रि के प्रथम दिन देवी उपासना के अंतर्गत शैलपुत्री का पूजन करना चाहिए। स्तोत्र पाठ प्रथम दुर्गा त्वंहि भवसागर: तारणीम्। धन ऐश्वर्य दायिनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यम्॥ त्रिलोजननी त्वंहि परमानंद प्रदीयमान्। सौभाग्यरोग्य दायनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यहम्॥ चराचरेश्वरी त्वंहि महामोह: विनाशिन। मुक्ति भुक्ति दायनीं शैलपुत्री प्रणमाम्यहम्॥ शैलपुत्री माता की आरती: शैलपुत्री मां बैल पर सवार शैलपुत्री मां बैल पर सवार। करें देवता जय जयकार। शिव शंकर की प्रिय भवानी। तेरी महिमा किसी ने ना जानी। पार्वती तू उमा कहलावे। जो तुझे सिमरे सो सुख पावे। ऋद्धि-सिद्धि परवान करे तू। दया करे धनवान करे तू। सोमवार को शिव संग प्यारी। आरती तेरी जिसने उतारी। उसकी सगरी आस पुजा दो। सगरे दुख तकलीफ मिला दो। घी का सुंदर दीप जला के। गोला गरी का भोग लगा के। श्रद्धा भाव से मंत्र गाएं। प्रेम सहित फिर शीश झुकाएं। जय गिरिराज किशोरी अंबे। शिव मुख चंद्र चकोरी अंबे। मनोकामना पूर्ण कर दो। भक्त सदा सुख संपत्ति भर दो। माता का भोग- प्रतिपदा तिथि को मां शैलपुत्री को नैवेद्य के रूप में गाय का घी अर्पित करके ब्राह्मण को दान कर दें।

गुड़ी पड़वा से शुरू हो रही है 8 दिन की चैत्र नवरात्रि, हाथी पर सवार होकर आएंगी माता रानी, जानिए फल

Chaitra Navratri 2025 Date: Chaitra Pratipada से Hindu New Year की शुरुआत होती है। इसी दिन से Chaitra Maas की Navratri भी प्रारंभ होती है। Chaitra Maas की Navratri 30 March 2025 Sunday से प्रारंभ होकर 6 April को इसका समापन होगा। 29 March 2025 को शाम 04:27 PM से Pratipada Tithi प्रारंभ होगी जो 30 March 2025 को 12:49 PM समाप्त होगी। Udaya Tithi के अनुसार Chaitra Navratri Pratipada 30 March को रहेगी। 8 Days Navratri: Chaitra Navratri इस बार 8 दिन की ही रहेगी। 6 April को Ram Navami के साथ ही इसका समापन हो जाएगा। 5 April को Ashtami और 6 April को Ram Navami रहेगी। Navratri का Paran यानी व्रत खोलना 7 April को सुबह रहेगा। Gaja पर सवार होकर आ रही Mataji: Gaja यानी Elephant। इस बार Ambe Mata Elephant पर सवार होकर आ रही है। कहा जा रहा है कि इससे Varsha अच्छी होगी। यह Farmers के लिए शुभ है। Crop Production बढ़ेगा। देश के Grain Reserves में बढ़ोतरी होगी। India में इससे Wealth और Prosperity बढ़ेगी। Inflation Control रहेगा। Mata की इस सवारी को Peace और Prosperity का प्रतीक भी माना जाता है। Sadhana का काल: Chaitra Maas में कई लोग Tantra Sadhana भी कहते हैं। इस काल को Siddhis के लिए अच्छा काल माना जाता है। Sadhaks की मनोकामना पूर्ण होगी और उनके जीवन में Happiness और Prosperity आएगी। इस दौरान Chandi Path, Durga Saptashati Path और Durga Ashtakam का Path करने से लाभ मिलता है।

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Chaitra Navratri 2025 Date: Chaitra Pratipada से Hindu New Year की शुरुआत होती है। इसी दिन से Chaitra Maas की Navratri भी प्रारंभ होती है। Chaitra Maas की Navratri 30 March 2025 Sunday से प्रारंभ होकर 6 April को इसका समापन होगा। 29 March 2025 को शाम 04:27 PM से Pratipada Tithi प्रारंभ होगी जो 30 March 2025 को 12:49 PM समाप्त होगी। Udaya Tithi के अनुसार Chaitra Navratri Pratipada 30 March को रहेगी। 8 Days Navratri: Chaitra Navratri इस बार 8 दिन की ही रहेगी। 6 April को Ram Navami के साथ ही इसका समापन हो जाएगा। 5 April को Ashtami और 6 April को Ram Navami रहेगी। Navratri का Paran यानी व्रत खोलना 7 April को सुबह रहेगा। Gaja पर सवार होकर आ रही Mataji: Gaja यानी Elephant। इस बार Ambe Mata Elephant पर सवार होकर आ रही है। कहा जा रहा है कि इससे Varsha अच्छी होगी। यह Farmers के लिए शुभ है। Crop Production बढ़ेगा। देश के Grain Reserves में बढ़ोतरी होगी। India में इससे Wealth और Prosperity बढ़ेगी। Inflation Control रहेगा। Mata की इस सवारी को Peace और Prosperity का प्रतीक भी माना जाता है। Sadhana का काल: Chaitra Maas में कई लोग Tantra Sadhana भी कहते हैं। इस काल को Siddhis के लिए अच्छा काल माना जाता है। Sadhaks की मनोकामना पूर्ण होगी और उनके जीवन में Happiness और Prosperity आएगी। इस दौरान Chandi Path, Durga Saptashati Path और Durga Ashtakam का Path करने से लाभ मिलता है।

चैत्र नवरात्रि 30 मार्च से, कैसे करें देवी आराधना, जानें घट स्थापना के मुहूर्त

इस बार तृतीया तिथि क्षय होने से अष्टरात्रि में होगी देवी आराधना

Chaitra Navratri 2025: इस माह की दिनांक 30, दिन Sunday से Chaitra Navratri प्रारंभ होने जा रही है। हमारे Sanatan Dharma में Navratri का पर्व बड़े ही श्रद्धा भाव से मनाया जाता है। Hindu Year में Chaitra, Ashadha, Ashwin और Magha मासों में चार बार Navratri का पर्व मनाया जाता है, जिसमें दो Navratri को Pragat एवं शेष दो Navratri को Gupt Navratri कहा जाता है। Chaitra और Ashwin मास के Navratri में Goddess Durga की प्रतिमा स्थापित कर उनकी पूजा-आराधना की जाती है, वहीं Ashadha और Magha मास में की जाने वाली देवी पूजा 'Gupt Navratri' के अंतर्गत आती है। जिसमें केवल Goddess Durga के नाम से Akhand Jyoti प्रज्वलित कर या Jaware की स्थापना कर Devi की आराधना की जाती है। आज से Chaitra Maas की Navratri प्रारंभ होने रही है। Ashtaratri में होगी Goddess Worship: Panchang अनुसार Nav Samvatsar 2082 में Goddess Worship का पर्व आठ रात्रि तक मनाया जाएगा क्योंकि Chaitra Maas के Shukla Paksha की Tritiya 'Kshaya' Tithi है। Shastra अनुसार जो Tithi दो Surya Uday स्पर्श ना करे उसे Panchang में Kshaya Tithi माना जाता है। Chaitra Shukla Tritiya का प्रारंभ दिनांक 31 March 2025 को प्रात: 09:13 AM से होगा एवं समाप्ति दिनांक 01 April 2025 को प्रात: 05:44 AM होगी, जबकि 31 March एवं 01 April दोनों ही दिन सूर्योदय क्रमश: प्रात: 06:13 AM एवं प्रात: 06:12 AM पर होगा अर्थात सूर्योदय के समय दोनों ही दिन Tritiya Tithi नहीं होने से 'Tritiya' Kshaya Tithi होगी। Tritiya Tithi के Kshaya होने से इस वर्ष Chaitra Navratri में Goddess Worship आठ रात्रि में होगी। Durga Ashtami दिनांक 05 April 2025 को एवं Shri Ram Navami 06 April 2025 को रहेगी। आइए जानते हैं कि इस Navratri में किस प्रकार Goddess Worship करना श्रेयस्कर रहेगा। मुख्य रूप से Goddess Worship को हम तीन भागों में विभाजित कर सकते हैं- Ghat Sthapana, Akhand Jyoti प्रज्वलित करना व Jaware स्थापित करना- Devotees अपने सामर्थ्य के अनुसार उपर्युक्त तीनों ही कार्यों से Navratri का प्रारंभ कर सकते हैं अथवा क्रमश: एक या दो कार्यों से भी प्रारंभ किया जा सकता है। यदि यह भी संभव नहीं तो केवल Ghat Sthapana से Goddess पूजा का प्रारम्भ किया जा सकता है। Saptashati Path व Japa- Goddess पूजा में Durga Saptashati के Path का बहुत महत्व है। यथासम्भव Navratri के नौ दिनों में प्रत्येक श्रद्धालु को Durga Saptashati का Path करना चाहिए किन्तु किसी कारणवश यह संभव नहीं हो तो Goddess के Navarna Mantra का Japa यथाशक्ति अवश्य करना चाहिए। !! नवार्ण मंत्र- 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै' !! Purnahuti Havan व Kanya Bhoj- नौ दिनों तक चलने वाले इस पर्व का समापन Purnahuti Havan एवं Kanya Bhoj कराकर किया जाना चाहिए। Purnahuti Havan Durga Saptashati के मंत्रों से किए जाने का विधान है किन्तु यदि यह संभव ना हो तो Goddess के 'Navarna Mantra', 'Siddha Kunjika Stotra' अथवा 'Durga Ashtottara Shatanama Stotra' से Havan सम्पन्न करना श्रेयस्कर रहता है। Chaitra Navratri Ghat Sthapana Muhurat- Navratri के यह नौ दिन Goddess Durga की पूजा-उपासना के दिन होते हैं। अनेक श्रद्धालु इन नौ दिनों में अपने घरों में Ghat Sthapana कर Akhand Jyoti की स्थापना कर नौ दिनों का उपवास रखते हैं। आइए जानते हैं कि Navratri में Ghat Sthapana एवं Akhand Jyoti प्रज्वलन का शुभ Muhurat कब है- Abhijit Muhurat- Madhyahna 12:00 PM से Madhyahna 12:48 PM तक Pratah:- 09:19 AM से 10:51 AM तक (Labh) Aparahna- 10:51 AM से Madhyahna 12:23 PM तक (Amrit) Madhyahna- 01:56 PM से 03:28 PM तक (Shubh) Sayankal- 06:33 PM से Raat 08:01 PM तक (Shubh) Raat- 08:01 PM से Raat 09:28 PM तक (Amrit) Sarvashreshtha Muhurat- Akhand Jyoti- Aparahna- 11:59 AM से Madhyahna 12:23 PM तक (Abhijit+Amrit) जो Devotees Akhand Jyoti प्रज्वलित करना चाहते हैं वे बाती के रूप Kalawa (Mouli) का प्रयोग करें, इससे Goddess Lakshmi का आशीर्वाद प्राप्त होता है एवं Sadhak पर सदैव Lakshmi की अनुकम्पा बनी रहती है। विभिन्न Lagnas में Ghat Sthapana कर Akhand Jyoti प्रज्वलित किए जाने का फल भी निम्न प्रकार से प्राप्त होता है- 1. Mesh Lagna- Wealth Gain 2. Vrish Lagna- Death 3. Mithun Lagna- Child Loss 4. Kark Lagna- All Siddhis 5. Singh Lagna- Intelligence Loss 6. Kanya Lagna- Lakshmi Prapti 7. Tula Lagna- Prosperity 8. Vrishchik Lagna- Gold Gain 9. Dhanu Lagna- Insult 10. Makar Lagna- Punya Prapti 11. Kumbh Lagna- Wealth and Prosperity 12. Meen Lagna- Suffering

3 वर्षों बाद रामनवमी पर बनेगा दुर्लभ 'रविपुष्य योग' का महासंयोग

Ram Navami 2025 Date & Rare Ravi Pushya Yoga हमारे Sanatan Dharma (सनातन धर्म) में कुछ पर्व एवं Hindu Festivals अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं, जैसे Maha Shivratri, Shri Krishna Janmashtami, Shri Ram Navami, Durga Ashtami आदि। यदि इन महत्वपूर्ण पर्वों पर कोई Shubh Yoga (Auspicious Yoga) बन जाए, तो यह संयोग और भी Rare & Highly Auspicious हो जाता है। इस वर्ष, Shri Ram Navami पर एक Rare Planetary Alignment बनने जा रहा है, जो 13 Years After (13 वर्षों बाद) आया है। Ram Navami 2025 का शुभ पर्व Chaitra Shukla Navami (06 April 2025) को मनाया जाएगा। जैसा कि विदित है, Lord Ram Birth Anniversary के शुभ अवसर पर, Shri Ram Avatar (प्रभु श्रीराम का प्राकट्य) हुआ था। Pushya Nakshatra (Pusya Star) को Jyotish Shastra (Vedic Astrology) में अत्यंत शुभ माना गया है, और Lord Ram का जन्म इसी नक्षत्र में हुआ था। जब Pushya Nakshatra Thursday (गुरुवार) या Sunday (रविवार) को आता है, तो यह Guru Pushya & Ravi Pushya Yoga बनाता है, जो Highly Sacred & Powerful Yogas माने जाते हैं। इस वर्ष 13 वर्षों बाद, Ram Navami 2025 पर Ravi Pushya Nakshatra का शुभ संयोग 12:00 PM (अपरान्ह 12 बजे) रहेगा। यह Highly Auspicious Yog (शुभ योग), Ram Navami’s Spiritual Energy को Infinitely Multiplied कर देगा। इस Rare Ravi Pushya Nakshatra Yoga की शुरुआत 06 April 2025 को Morning 05:33 AM से होगी और पूरे दिन प्रभावी रहेगा। इससे पहले यह Auspicious Alignment वर्ष 2012 में बना था। हालांकि, वर्ष 2019 में भी Ravi Pushya Yoga था, लेकिन वह मात्र 07:40 AM तक था, और Lord Ram’s Birth Time (12:00 PM) तक उपस्थित नहीं था। इसलिए, यह सिद्ध होता है कि यह Rare & Sacred Conjunction 13 Years Later पुनः बन रहा है।

नवरात्रि की नौवीं देवी मां सिद्धिदात्री की कथा

Maa Siddhidatri: Navratri Ninth Day (मां सिद्धिदात्री) Pauranik Manyata (Mythological Belief) के अनुसार, एक बार पूरे Brahmand (Universe) में Andhkar (Darkness) छा गया था। उस अंधकार में एक छोटी सी Kiran (Divine Ray) प्रकट हुई। धीरे-धीरे यह Divine Light बड़ी होती गई और फिर इसने एक Divya Nari (Celestial Goddess) का रूप धारण कर लिया। Maa Siddhidatri ने प्रकट होकर Tridev (Brahma, Vishnu, Mahesh) को जन्म दिया। Shiva Ji ने इनकी Aaradhana (Worship) की, और Devi ने उन्हें Siddhiyan (Supernatural Powers) प्रदान कीं। इसी कारण Devi Bhagwati का Navam Swaroop (Ninth Form) Maa Siddhidatri कहलाया। Siddhidatri Devi की कृपा से ही Shiva Ji का आधा शरीर Devi Ka (Goddess Form) हो गया, जिसके कारण उनका एक नाम Ardhanarishwar पड़ा। एक अन्य Pauranik Katha (Mythological Story) के अनुसार, जब सभी Devi Devta (Gods & Goddesses) Mahishasur (Demon) के Atrocities से परेशान हो गए, तो सभी Devtas ने Tridev (Brahma, Vishnu, Mahesh) की Sharan (Refuge) ली। फिर तीनों Devta ने अपने Tej (Divine Energy) से Maa Siddhidatri को जन्म दिया। इसके बाद, सभी Devtas ने Maa को अपने Shastra (Weapons) प्रदान किए और Mata ने Mahishasur से युद्ध कर उसका Ant (Destruction) कर दिया।

नवरात्रि की आठवीं देवी मां महागौरी की कथा

Eighth Day of Navratri: Maa Mahagauri (मां महागौरी) Param Kripalu Maa Mahagauri कठिन Tapasya (Penance) कर Gaur Varna (Fair Complexion) को प्राप्त कर Bhagwati Mahagauri के नाम से संपूर्ण Vishva (World) में विख्यात हुईं। Pauranik Katha (Mythological Story) के अनुसार, Bhagwan Shiva को Pati Roop (Husband Form) में पाने के लिए, इन्होंने हजारों सालों तक कठिन Tapasya की थी, जिससे इनका Rang (Skin Color) काला पड़ गया था। बाद में Lord Shiva ने Ganga Jal (Sacred Ganges Water) से इनके Varna (Complexion) को फिर से Gaur (Fair) कर दिया, और तब से यह Mahagauri के नाम से जानी गईं। अपने Parvati Roop में इन्होंने Bhagwan Shiva को Pati Roop में प्राप्त करने के लिए Kathor Tapasya (Severe Penance) की थी। इनकी Pratigya (Vow) थी- 'Vriye'ham Varadam Shambhum Naanyam Devam Maheshwarat' (Narada Pancharatra)। Goswami Tulsidas Ji के अनुसार, इन्होंने Bhagwan Shiva के Varan (Acceptance) के लिए Hard Sankalp (Firm Resolution) लिया था: जन्म कोटि लगि रगर हमारी। बरऊं संभु न त रहऊं कुंआरी॥ इस Kathor Tapasya के कारण इनका Sharir (Body) एकदम Kaala (Dark) पड़ गया। इनकी Tapasya से प्रसन्न होकर Bhagwan Shiva ने इनके Sharir को Ganga Ji के Pavitra Jal (Sacred Water) से Malkar (Washing) शुद्ध किया, जिससे इनका Tej (Radiance) Vidyut Prabha (Lightning Glow) के समान Kantiman Gaur (Bright and Fair) हो उठा। तभी से इन्हें Mahagauri कहा जाने लगा।

नवरात्रि की चतुर्थ देवी मां कूष्मांडा की कथा

Maa Kushmanda Katha (देवी कूष्मांडा माता की कथा) देवी Kushmanda Mata की कथा के अनुसार जब Creation of Universe नहीं हुई थी तब उस समय चारों ओर Darkness था। देवी Kushmanda, जिनका Face सैकड़ों Suns की Radiance से Illuminated है, उस समय प्रकट हुईं। उनके Smile से Universe Creation की प्रक्रिया शुरू हुई और जिस प्रकार Flower में Egg (Anda) का जन्म होता है, उसी प्रकार Kusum अर्थात Flower के समान Mata Ki Hansi से Brahmand (Cosmos) का जन्म हुआ। अतः यह देवी Kushmanda के रूप में विख्यात हुईं। इस देवी का निवास Surya Mandal (Solar System) के Center में है और यह Sun Orbit को अपने Signals से नियंत्रित रखती हैं। वह देवी जिनके Udar (Abdomen) में Trividh Taap Yukt Sansar (Three Types of Cosmic Heat) स्थित है, वह Kushmanda Devi हैं। देवी Kushmanda इस Chara-Achara Jagat (Living & Non-living World) की Adhishthatri Devi हैं। Navratri के Fourth Day पर देवी को Kushmanda के रूप में Worship किया जाता है। अपनी Mild, Gentle Smile के द्वारा Anda (Brahmand) को उत्पन्न करने के कारण इस देवी को Kushmanda नाम से अभिहित किया गया है। जब Universe नहीं था, चारों तरफ Complete Darkness था, तब इसी देवी ने अपने Eeshat Hasya (Divine Smile) से Cosmic Creation की थी। इसीलिए इसे Srishti Ki Adiswaroopa (Primordial Form of Creation) या Adishakti (Supreme Energy) कहा गया है।

गुड़ी पड़वा पर कैसे बनाएं और सजाएं गुड़ी, जानें क्या है जरूरी सामग्री?

गुड़ी पड़वा 2025: Hindu New Year की शुरुआत Chaitra Shukla Pratipada से होती है। इसे Maharashtra में Gudi Padwa कहते हैं। प्रत्येक Marathi Family इस दिन अपने घर के बाहर Gudi लगाकर उसकी पूजा करता है। आइए यहां जानते हैं इस संबंध में रोचक जानकारी, ये Gudi क्या होती है, इसे कैसे बनाते हैं और इसके लिए लगने वाली जरूरी सामग्री क्या-क्या है? Material of Gudi Gudi Ki Samagri: एक Danda (Stick), Silk Saree या Chunri, Yellow Cloth, Fruits, Flowers, Flower Garland, Kadve Neem Ke 5 Patte (Bitter Neem Leaves), Aam Ke 5 Patte (Mango Leaves), Rangoli, Paat, Lota या Glass, Prasad और Pooja Samagri। What is Gudi? Gudi Kya Hoti Hai: Gudi Padwa दो शब्दों से मिलकर बना है, जिसमें Gudi का अर्थ होता है Victory Flag, और Padwa का मतलब होता है Pratipada Tithi। Gudi एक प्रकार से Dhvaj (Flag) होता है। यहां लेख में नीचे बताया गया है कि यह किस तरह बनाया जाता है। How to Decorate Gudi (कैसे सजाते हैं Gudi) Marathi Families घर के दरवाजे के बाहर Gudi लगाते हैं, जबकि अन्य लोग Flag फहराते हैं। Gudi को अच्छे से Decorate करने के लिए उस पर Flower Garland, Fresh Flowers, आदि लगाए जाते हैं। Gudi को Paat पर रखकर उसकी Pooja की जाती है। Gudi सजाने से पहले इस दिन घर के द्वार को सुंदर तरीके से Decorate किया जाता है। Entrance Gate को Mango Leaves Toran बनाकर लगाया जाता है और सुंदर Fresh Flowers से Entrance को Decorate किया जाता है। इसके साथ ही Rangoli बनाई जाती है। How to Make Gudi (कैसे बनाएं Gudi) 1. Gudi के लिए Wooden Stick लें। 2. Stick को Clean कर लें और उसके ऊपर Silk Cloth या Saree बांधें। 3. एक Neem Branch, 5 Mango Leaves, Flower Garland, Sugar Garland को लगाएं और उसके ऊपर से Copper, Brass या Silver Kalash (Lota/Glass) रखें। 4. जिस स्थान पर Gudi लगानी हो, उसे Clean और Sanitize कर लेना चाहिए। 5. Gudi Placement Area पर पहले Rangoli बनाई जाती है, वहां एक Paat रखा जाता है और उसके ऊपर Wooden Stick रखी जाती है। 6. तैयार Gudi को Main Entrance, Rooftop या Balcony में किसी ऊँचे स्थान पर लगाया जाता है। 7. Gudi को अच्छी तरह से Tie करके और उस पर Fragrance, Flowers और Incense Stick लगाकर Gudi Pooja करनी चाहिए। 8. Incense Stick लगाने के बाद Diya से Gudi Ki Pooja करते हैं। 9. फिर Milk-Sugar, Peda का Prasad अर्पित करना चाहिए। 10. Afternoon Time में Sweet Prasad चढ़ाना चाहिए। इस दिन परंपरा के अनुसार Shrikhand-Puri या Puran Poli का Bhog लगाया जाता है। 11. Evening Sunset Time पर Haldi-Kumkum, Flowers, Akshat आदि अर्पित करके Gudi को उतारा जाता है। 12. सभी Hindu Families इस दिन एक-दूसरे को Hindu New Year Wishes देते हैं।

चैत्र नवरात्रि 2025: मां दुर्गा के आशीर्वाद से अपनों को भेजें शुभकामनाएं और प्रेरणादायक कोट्स

Chaitra Navratri Wishes and Quotes in Hindi: चैत्र Navratri 2025 का शुभ पर्व आने वाला है और पूरे देश में इसकी तैयारियां जोरों पर हैं। यह पर्व न केवल Spiritual Significance (आध्यात्मिक रूप से महत्वपूर्ण) रखता है बल्कि यह हमें Positivity (सकारात्मकता), Strength (शक्ति) और Devotion (भक्ति) से भर देता है। Maa Durga's Nine-Day Worship (मां दुर्गा के नौ दिवसीय पूजन) के दौरान भक्तगण Fasting (व्रत रखते हैं), Rituals (पूजा-पाठ करते हैं) और अपने प्रियजनों को Chaitra Navratri Greetings (चैत्र नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं भेजते हैं)। अगर आप भी अपने Friends (दोस्तों), Family (परिवार) या Social Media (सोशल मीडिया) पर Chaitra Navratri 2025 Messages (शुभकामनाएं और कोट्स) भेजना चाहते हैं, तो यहां कुछ बेहतरीन Navratri Quotes & Wishes (संदेश) दिए गए हैं जो आपकी Faith (भक्ति) को और मजबूत करेंगे। चैत्र नवरात्रि पर शुभकामनाएं और बधाई संदेश 1. "मां दुर्गा की कृपा बनी रहे, सुख-समृद्धि आपके द्वार खड़ी रहे, यह नवरात्रि लाए आपको अपार खुशियां, मां के आशीर्वाद से हर इच्छा पूरी रहे।" 2. "शेरों वाली माता का दरबार सजा है, खुशियों का मेला लगा है, नवरात्रि के इस पावन अवसर पर, मां का आशीर्वाद हर घर पर बरसा है।" 3. "जो मां के दर पर शीश झुकाता है, माँ उसकी हर मनोकामना पूरी करती हैं, इस नवरात्रि आपकी हर मुराद पूरी हो, मां जगदंबा का आशीर्वाद आपके साथ हो।" 4. "मां दुर्गा की कृपा बनी रहे, जीवन में कभी कोई दुख न रहे, नवरात्रि का यह शुभ अवसर लाए, अपार खुशियां और ढेरों प्यार।" 5. "सच्चे मन से मां को जो पुकारता है, मां उसकी हर समस्या का समाधान करती हैं, इस नवरात्रि मां आपको हर दुख से मुक्ति दें, और आपका जीवन खुशियों से भर दें।" चैत्र नवरात्रि 2025 विशेस (Chaitra Navratri Wishes in Hindi) 6. "सच्चे मन से जो करता मां दुर्गा की भक्ति, उसका जीवन बन जाता है एक नई शक्ति, नवरात्रि की ढेरों शुभकामनाएं!" 7. "मां दुर्गा की कृपा बनी रहे, घर में सुख-शांति का वास रहे, जीवन में खुशहाली बनी रहे, यही मेरी मां से प्रार्थना है!" 8. "नवरात्रि का ये पावन पर्व आपके जीवन को नई ऊंचाइयों तक ले जाए, मां दुर्गा की कृपा से आपके सारे कष्ट दूर हो जाएं।" 9. "मां की कृपा से आपके घर में सुख-समृद्धि बनी रहे, हर दिन मंगलमय हो, यही शुभकामनाएं!" 10. "शक्ति, भक्ति और आनंद से भरपूर हो आपका नवरात्रि उत्सव, मां की कृपा से आपका जीवन सुखमय हो!" 11. "जब-जब धरती पर पाप बढ़ता है, मां का आह्वान किया जाता है, नवरात्रि के इस पावन अवसर पर मां से प्रार्थना करें कि वे हर दुख हर लें।" 12. "मां दुर्गा की शक्ति से, हर बाधा पार करेंगे, मां के आशीर्वाद से, नए जीवन की शुरुआत करेंगे!" 13. "मां जगदंबे का आशीर्वाद मिले, हर संकट से छुटकारा मिले, इस नवरात्रि मां आपकी हर मनोकामना पूरी करें।" 14. "नवरात्रि का ये पर्व है अनोखा, हर दिल में जोश और उमंग का शोर, मां के आशीर्वाद से आए नई रोशनी, हर मन में बस जाए मां का नाम!" 15. "जो सच्चे मन से करता मां की भक्ति, उसकी झोली खुशियों से भर जाती, यह नवरात्रि आपके जीवन में खुशियां लाए!" चैत्र नवरात्रि 2025 कोट्स (Navratri Quotes in Hindi) 16. "दुर्गा है शक्ति का स्वरूप, नवरात्रि में करें शक्ति की उपासना, हर बुराई से लड़ने की शक्ति मिलेगी, मां के आशीर्वाद से जीवन सफल बनेगा।" 17. "मां के नौ रूप, नौ वरदान, नवदुर्गा के साथ आपका जीवन हो धन्य, यह नवरात्रि आपके जीवन में लाए सुख-समृद्धि और शांति।" 18. "शक्ति की उपासना का पर्व है नवरात्रि, मां की कृपा पाने का अवसर है नवरात्रि, भक्ति में लीन हो जाओ, मां की गोद में समा जाओ।" 19. "मां अम्बे का आशीर्वाद बना रहे, हर मुश्किल से छुटकारा मिले, इस नवरात्रि मां आपकी हर मनोकामना पूरी करें।" 20. "मां दुर्गा की कृपा से, हर संकट से छुटकारा पाएंगे, मां के आशीर्वाद से, जीवन में उजाला लाएंगे।"

नवरात्रि की दूसरी देवी मां ब्रह्मचारिणी की कथा

Brahmacharini Ki Katha: देवी Brahmacharini की कथा के अनुसार पूर्वजन्म में इस देवी ने Himalaya’s House में पुत्री रूप में जन्म लिया था। Narad Muni's Guidance से Lord Shiva as Husband प्राप्त करने के लिए घोर Tapasya (Penance) की थी। इस कठिन तपस्या के कारण इन्हें Tapascharini (Ascetic Goddess) अर्थात्‌ Brahmacharini नाम से अभिहित किया गया। एक हजार वर्ष तक इन्होंने केवल Fruits & Flowers Diet अपनाया और सौ वर्षों तक केवल Ground-Dwelling & Leaf Diet किया। कुछ दिनों तक कठिन Fasting (Upvaas) रखा और खुले आकाश के नीचे Severe Weather Conditions (Rain & Sun) के घोर कष्ट सहे। तीन हजार वर्षों तक Broken Bilva Leaves Diet लिया और Lord Shiva Worship (Shiva Aradhana) करती रहीं। इसके बाद उन्होंने Dry Bilva Leaves Eating भी त्याग दिया। कई हजार वर्षों तक Waterless & Foodless Fasting (Nirjal Nirahar Tapasya) किया। Leafless Fasting के कारण ही इन्हें Aparna नाम प्राप्त हुआ। कठिन Penance (Tapasya) के कारण Devi's Body अत्यधिक क्षीण हो गई। Deities, Sages (Rishis), Siddhas, & Munis सभी ने Brahmacharini’s Penance को Unparalleled Holy Act (Punya Karya) बताया, सराहना की और कहा- "हे देवी! आज तक किसी ने इतनी कठोर तपस्या नहीं की। यह केवल तुम्हीं से संभव थी।" उन्होंने देवी से कहा, "तुम्हारी Desire (Manokamna) पूर्ण होगी और Lord Chandramouli Shiva (Lord of Crescent Moon) तुम्हें पति रूप में प्राप्त होंगे। अब तुम तपस्या छोड़कर घर लौट जाओ। जल्द ही तुम्हारे पिता तुम्हें बुलाने आ रहे हैं।" इस देवी की कथा का सार यह है कि Life Struggles (Jeevan Ke Kathin Sangharsh) में भी Mind Should Not Waver (Man Vichlit Nahi Hona Chahiye)। Maa Brahmacharini’s Blessings (Devi Kripa) से All Siddhis (Divine Powers) प्राप्त होती हैं। Navratri Second Day Puja (Durga Puja Day 2) पर देवी के इसी स्वरूप की उपासना की जाती है।

नवरात्रि की प्रथम देवी मां शैलपुत्री की कथा

Shailputri Devi: मां दुर्गा को सर्वप्रथम Goddess Shailputri के रूप में पूजा जाता है। Himalaya's Daughter होने के कारण उनका नामकरण हुआ Shailputri। इनका वाहन Nandi (Bull) है, इसलिए यह देवी Vrisharudha (Bull-Riding Goddess) के नाम से भी जानी जाती हैं। इस देवी ने दाएं हाथ में Trident (Trishul) धारण कर रखा है और बाएं हाथ में Lotus (Kamal) सुशोभित है। यही देवी First Form of Durga हैं। ये ही Goddess Sati के नाम से भी जानी जाती हैं। उनकी एक मार्मिक Mythological Story है। एक बार जब Prajapati Daksha ने Yagna (Sacrificial Ritual) किया तो इसमें सारे Deities (Devtas) को निमंत्रित किया, लेकिन Lord Shiva को नहीं। Goddess Sati यज्ञ में जाने के लिए विकल हो उठीं। Lord Shiva ने कहा कि सारे Deities को निमंत्रित किया गया है, लेकिन उन्हें नहीं। ऐसे में वहां जाना उचित नहीं है। Sati's Strong Will देखकर Shiva ने उन्हें Yagna में जाने की अनुमति दे दी। Sati जब घर पहुंचीं तो सिर्फ Mother (Maa) ने ही उन्हें स्नेह दिया। बहनों की बातों में Sarcasm & Mockery था। Lord Shiva के प्रति भी Disrespect & Insult का भाव था। Daksha Prajapati ने भी उनके प्रति Humiliating Words कहे। इससे Sati को अत्यधिक कष्ट पहुंचा। वे अपने Husband’s Disrespect को सहन न कर सकीं और Self-Immolation (Yoga Agni Dahana) द्वारा अपने शरीर को भस्म कर लिया। इस Painful Incident से व्यथित होकर Lord Shiva ने उस Yagna Destruction (Yagna Vidhvansh) करा दिया। यही Sati अगले जन्म में King Himalaya's Daughter के रूप में जन्मीं और Goddess Shailputri कहलाईं। Parvati and Hemavati भी इसी देवी के अन्य नाम हैं। Shailputri's Marriage भी Lord Shiva से हुआ और वे Shiva's Divine Consort (Ardhangini) बनीं। Goddess Shailputri's Importance & Power अनंत है।

गणगौर व्रत 2025: शिव-गौरी की कृपा पाने के लिए ऐसे मनाएं गणगौर, जानें पूजा विधि, दिनभर की रस्में और जरूरी सामग्री

क्या है गणगौर का अर्थ और महत्व, जानिए क्यों सुहागिनों के लिए खास है ये पर्व

गणगौर व्रत (Gangaur Vrat) भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसे विशेष रूप से Rajasthan, Madhya Pradesh, Uttar Pradesh और Gujarat में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यह व्रत Goddess Parvati और Lord Shiva के मिलन का प्रतीक है, जिसमें कुंवारी कन्याएं Good Husband की प्राप्ति के लिए और विवाहित महिलाएं अपने Husband's Long Life और Happy Married Life के लिए व्रत रखती हैं। Gangaur Vrat 2025 में भी महिलाएं पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ इस पावन पर्व को मनाएंगी। आइए, जानते हैं Gangaur Puja Vidhi, दिनभर के नियम और आवश्यक Puja Samagri के बारे में। Gangaur का अर्थ क्या है? Gangaur शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है - "Gan" और "Gaur"। "Gan" का अर्थ होता है Lord Shiva और "Gaur" का अर्थ है Goddess Parvati, जिन्हें Gauri भी कहा जाता है। इस प्रकार, Gangaur का अर्थ है Shiva Parvati Divine Union, जो Love, Devotion, and Eternal Marital Bliss का प्रतीक है। Gangaur Festival विशेष रूप से Married Women और Unmarried Girls द्वारा मनाया जाता है, जो Maa Gauri से Happy Married Life और Ideal Life Partner की प्रार्थना करती हैं। Rajasthan, Madhya Pradesh, Uttar Pradesh और Gujarat में यह पर्व बड़ी श्रद्धा और धूमधाम से मनाया जाता है। Gangaur Vrat कैसे मनाते हैं? वैसे तो Gangaur Vrat की शुरुआत Holi Festival के बाद से ही हो जाती है। Married and Unmarried Women इस पर्व को पूरे नियम और निष्ठा के साथ करती हैं। 16 Days Vrat रखने वाली महिलाएं हर दिन सुबह जल्दी उठकर Bathing Rituals के बाद Clean Clothes पहनती हैं और Clay Idols of Gangaur (Gauri) and Isar (Lord Shiva) की स्थापना कर उनकी Puja Archana करती हैं। इस व्रत में महिलाएं दिनभर Fasting रखती हैं और शाम को Maa Gauri को Water Offering (Jal Arpan) करने के बाद ही कुछ ग्रहण करती हैं। Gangaur Mata को Marital Symbols (Suhaag Items) चढ़ाई जाती हैं, जैसे Bangles (Choodi), Bindi, Kumkum, Mahavar, Sindoor, Chunari आदि। साथ ही, Prasad Offering के रूप में Halwa, Puri और Sweet Dishes बनाए जाते हैं। Gangaur Vrat में दिनभर क्या किया जाता है? सुबह की शुरुआत व्रती महिलाएं प्रातःकाल जल्दी उठकर Holy Bath करके Maa Gangaur (Gauri) and Lord Shiva (Isar) की Puja करती हैं। विवाहित महिलाएं Solah Shringar (Sixteen Adornments) करती हैं और Maa Gauri Shringar Samagri अर्पित करती हैं। दिनभर महिलाएं Vrat Observance रखती हैं और Gangaur Bhajans (Devotional Songs) गाती हैं। शाम को Maa Gauri Special Puja होती है और Water Offering Ritual के साथ व्रत का समापन किया जाता है। अंतिम दिन महिलाएं River, Pond, or Water Body Immersion (Visarjan) करती हैं। Gangaur Puja Vidhi (Gangaur Vrat Puja Vidhi in Hindi) 1. Early Morning Bath & Clean Dress: गणगौर व्रत के दिन प्रातः स्नान करके साफ-सुथरे वस्त्र धारण करें। 2. Idol Preparation: भगवान Shiva and Maa Gauri Clay Idols को तैयार करके उन्हें सुंदर वस्त्रों से सजाएं। 3. Puja Rituals: विधिपूर्वक Lord Shiva & Maa Parvati Puja करें। पूजा में Marital Offerings (Suhaag Samagri) अर्पित करें। 4. Tilak Ceremony: भगवान शिव और माता पार्वती को Roli, Chandan, Akshat, Kumkum से तिलक करें। 5. Durva Grass Offering: उनके चरणों में Durva Grass अर्पित करें और श्रद्धा भाव से Dhoop-Deep (Incense and Lamp) प्रज्वलित करें। 6. Bhog Offering: भगवान को प्रेमपूर्वक Churma Prasad (Sweet Offering) अर्पित करें। 7. Holy Water Ritual: एक थाली में Betel Leaves (Paan), Areca Nut (Supari), Silver Coin (Chandi Ka Sikka), Milk (Doodh), Curd (Dahi), Ganga Jal, Turmeric (Haldi), Kumkum, Durva Grass रखकर Sacred Water (Suhaag Jal) तैयार करें। 8. Sprinkling Ritual: दूर्वा से इस Sacred Water Sprinkling (Jal Arpan) को भगवान शिव और माता गौरी पर करें और फिर घर के अन्य सदस्यों पर छिड़कें, जिससे परिवार पर Divine Blessings बनी रहें। Gangaur Puja के लिए आवश्यक सामग्री (Gangaur Puja Samagri List) गणगौर पूजा के लिए कुछ विशेष सामग्री की आवश्यकता होती है, जो इस प्रकार है - ✔ Clay Idols of Maa Gangaur (Gauri) & Isar (Shiva) ✔ Red Chunari (Red Scarf), Sindoor (Vermillion), Bangles, Bindi, Kumkum, Mahavar, Kajal ✔ Roli, Akshat, Turmeric (Haldi), Flowers (Phool), Fruits (Fal), Panchamrit ✔ Diya (Oil Lamp), Dhoop (Incense), Kapoor (Camphor), Ganga Jal (Holy Water) ✔ Prasad Offerings: Halwa, Puri, Sweet Dishes ✔ Wheat & Barley Sprouts (Germinated Grains for Maa Gangaur Offering) Gangaur Vrat का महत्व (Gangaur Vrat Significance) Gangaur Vrat Importance बहुत अधिक है। इस व्रत को करने से Married Women (Suhagan Ladies) को Akhanda Saubhagya (Unbroken Marital Bliss) और Husband's Long Life Blessing प्राप्त होता है, जबकि Unmarried Girls को Desired Life Partner (Ideal Groom) का आशीर्वाद मिलता है। ऐसा माना जाता है कि Maa Parvati ने भी Lord Shiva as Husband प्राप्त करने के लिए कठोर तप किया था, जिससे उन्हें Shiva’s Blessing मिला था। इसी कारण Gangaur Vrat को Eternal Marital Blessing Festival माना जाता है।

हिंदू नववर्ष पर घर के सामने क्यों बांधी जाती है गुड़ी?

Gudi Padwa 2025: Chaitra Pratipada से Hindu New Year की शुरुआत होती है। इसी दिन से Chaitra Navratri भी प्रारंभ होती है। Hindu New Year को Gudi Padwa Festival भी कहते हैं। Udayatithi के अनुसार Chaitra Navratri Pratipada 30 मार्च 2025, रविवार को रहेगी। Gudi Padwa को Nav Samvatsar भी कहते हैं और दक्षिण भारत में इसे Ugadi Festival एवं Yugadi Festival कहा जाता है। Hindu New Year 2025 पर Marathi Community के लोग अपने घर के आगे Gudi Flag बांधते हैं, जो कि Victory Flag का प्रतीक होती है, जबकि अन्य समाज के लोग Bhagwa Dhwaj (Saffron Flag) लहराते हैं। Marathi Community Gudi Decoration कर उसकी पूजा करके घर के द्वारा पर ऊंचे स्थान पर इसे स्थापित करते हैं। Gudi Padwa Meaning दो शब्दों से मिलकर बना है, जिसमें Gudi का अर्थ Victory Flag और Padwa का मतलब Pratipada Tithi होता है। कई लोगों की मान्यता है कि इसी दिन Lord Shri Ram ने Bali के अत्याचारी शासन से दक्षिण की प्रजा को मुक्ति दिलाई थी। Bali's Oppression से मुक्त हुई प्रजा ने घर-घर में उत्सव मनाकर Victory Flag (Gudi) फहराए। आज भी घर के आंगन में Gudi Hoisting करने की परंपरा Maharashtra Festival Culture में प्रचलित है। इसीलिए इस दिन को Gudi Padwa Festival नाम दिया गया। Gudi Padwa Food & Recipes Maharashtra Cuisine में इस दिन Puran Poli Recipe या Sweet Roti बनाई जाती है। इसमें जो चीजें मिलाई जाती हैं, वे हैं - Jaggery (Gur), Salt, Neem Flowers, Tamarind (Imli) और Raw Mango (Kachha Aam)। Jaggery मिठास के लिए, Neem Flowers कड़वाहट मिटाने के लिए, और Tamarind & Mango जीवन के Sweet and Sour Flavors का प्रतीक होते हैं।

चैत्र नवरात्रि की सप्तमी, अष्टमी और नवमी तिथि का क्या है महत्व?

वर्ष में चार Navratri Festivals होती हैं। Chaitra Navratri, Paush Navratri, Ashadha Navratri और Ashwin Navratri माह में आती हैं। Chaitra Maas में Vasant Navratri, Ashwin Maas में Sharadiya Navratri और Paush एवं Ashadha Maas में Gupt Navratri रहती है। सभी Navratri Dates में Saptami, Ashtami और Navami Tithi का विशेष महत्व रहता है। इन तिथियों पर Navratri Vrat का समापन करते हैं। Navratri Fast के समापन के दौरान कई तरह के Navratri Food Recipes बनाते हैं। आइए जानते हैं इन तिथियों का महत्व। 1. Saptami Tithi Significance Saptami Tithi के स्वामी Surya Dev हैं और इसका विशेष नाम Mitra Pada है। शुक्रवार को पड़ने वाली Saptami Mrityuda और बुधवार की Saptami Siddhida होती है। Ashadha Krishna Saptami शून्य होती है। इस दिन किए गए कार्य अशुभ फल देते हैं। इसकी दिशा Vayavya Disha है। Surya Dev, Rath Saptami, Bhanu Saptami, Sheetala Saptami, Achala Saptami आदि कई Saptami Vrat रखने का प्रचलन है। Saptami ki Devi Sheetala Mata और Maa Kalaratri हैं। क्या न खाएं: Saptami Ke Din Palm Fruit खाना निषेध है। इसको इस दिन खाने से रोग होता है। 2. Ashtami Tithi Significance इस तिथि को Ashtami Tithi, Aatham या Athmi भी कहते हैं। Kalavati Naam की यह तिथि Jaya Sangyak है। मंगलवार की Ashtami Siddhida और बुधवार की Ashtami Mrityuda होती है। इसकी दिशा Ishaan Disha है। Ashtami Ki Devi Maa Mahagauri हैं। क्या न खाएं: Ashtami Ke Din Coconut खाना निषेध है, क्योंकि इसके खाने से बुद्धि का नाश होता है। इसके अलावा Amla, Sesame Oil, Red Leafy Vegetables, तथा Bronze Utensils में भोजन करना निषेध है। 3. Navami Tithi Significance Navami Tithi Chaitra Maas में Shunya Sangyak होती है और इसकी दिशा Purva Disha है। शनिवार को Navami Siddhida और गुरुवार को Navami Mrityuda। अर्थात शनिवार को किए गए कार्य में सफलता मिलती है और गुरुवार को किए गए कार्य में सफलता की कोई गारंटी नहीं। Navami Ki Devi Maa Siddhidatri हैं। क्या न खाएं: Navami Ke Din Bottle Gourd (Lauki) खाना निषेध है, क्योंकि इस दिन Lauki Ka Sevan Gau-Mans ke Saman माना गया है।

पापमोचनी एकादशी व्रत की पूजा विधि, उपवास रखने के मिलेंगे 10 फायदे

Papamochani Ekadashi in 2025: Chaitra month में Kamada Ekadashi और Papamochani Ekadashi आती है। Kamada Ekadashi Vrat से Rakshasa Yoni liberation मिलती है और यह all desires fulfillment करती है। Papamochani Ekadashi Vrat के दिन Apsara Manjughosha Katha सुनने से freedom from all sins मिलती है। इस बार यह Ekadashi 25 March 2025 को रखी जाएगी, जबकि Vaishnav Papamochani Ekadashi 26 March को होगी। Ekadashi fasting benefits से व्यक्ति problems-free life जीता है और उसे wealth & prosperity प्राप्त होती है। Papamochani Ekadashi के दिन gossiping & lying से बचना चाहिए। Papamochani Ekadashi Vrat Puja Vidhi - Early morning bath करें और clean clothes पहनें। - Lord Vishnu idol or image को altar पर स्थापित करें। - Yellow flowers, fruits, incense, lamp, Naivedya अर्पित करें। - Lord Vishnu mantras chanting करें। - Papamochani Ekadashi Vrat Katha Path करें या सुनें। - Full-day fasting रखें और शाम को Lord Vishnu Aarti के बाद fruits fasting meal लें। - अगले दिन Brahmin food donation & charity करें। - तत्पश्चात Parana करें। Papamochani Ekadashi Vrat Benefits (10 Key Advantages) 1. Papamochani Ekadashi fasting से freedom from all problems मिलती है और Jagran on Ekadashi से कई गुना spiritual benefits मिलते हैं। 2. Proper Ekadashi Vrat से all sins elimination और happiness & prosperity प्राप्त होती है। 3. इस व्रत से Vajpeya & Ashwamedha Yagya benefits मिलते हैं और success in all tasks मिलती है। 4. Lord Krishna to Arjuna कहते हैं कि Papamochani Ekadashi observance से sins removal और अंत में moksha attainment होती है। 5. Religious belief के अनुसार, Ekadashi fasting with rituals से desires fulfillment होती है। 6. इस दिन Lord Vishnu Puja with yellow flowers करने से divine blessings प्राप्त होती हैं। 7. Navgraha Puja on Ekadashi से positive results मिलते हैं और Chandra Dosha removal होता है। 8. Ekadashi fasting से mind purification होती है और negative thoughts elimination होती है। 9. Extreme difficult situations में भी यह व्रत रखने से Lord Vishnu blessings से समस्याओं का समाधान होता है। 10. This fast removes sins जैसे Brahmahatya, gold theft, alcohol consumption, violence, and abortion sins के दोष से मुक्ति मिलती है।

पापमोचनी एकादशी कब है, क्या है इसका महत्व?

Papamochani Ekadashi 2025: Hindu scriptures के अनुसार Papamochani Ekadashi Vrat Lord Vishnu को समर्पित है। Papamochani Ekadashi का अर्थ है sins destruction Ekadashi। यह व्रत Chaitra month Krishna Paksha Ekadashi तिथि को रखा जाता है। इस व्रत को करने से freedom from sins मिलती है और जीवन में happiness & prosperity आती है। इस दिन Vishnu Purana Path करना beneficial रहता है। Papamochani Ekadashi 2025 Date: Vedic Panchang के अनुसार, Chaitra month Krishna Paksha Ekadashi तिथि 25 March को सुबह 05:05 AM शुरू हो रही है और तिथि का समापन 26 March को सुबह 03:45 AM पर होगा। Udaya Tithi के अनुसार Papamochani Ekadashi Vrat 25 March को रखा जाएगा। Papamochani Ekadashi Importance: Religious beliefs के अनुसार, Papamochani Ekadashi Vrat करने से व्यक्ति को freedom from all sins मिलती है। इस व्रत से Lord Vishnu blessings प्राप्त होती हैं और जीवन में happiness & prosperity आती है। Papamochani Ekadashi fasting के दिन tamasic food का सेवन न करें और हर प्रकार के intoxication से दूर रहें। इस दिन harming any living being नहीं करना चाहिए। यह एकादशी truthfulness & honesty की सीख देती है। इस तिथि पर anger control करें और stay calm रहना उत्तम रहता है। Papamochani Ekadashi fasting Lord Vishnu grace पाने और happy life बनाने का उत्तम अवसर है। Papamochani Ekadashi Vrat Puja Vidhi: - Early morning bath करके clean clothes धारण करें। - Lord Vishnu idol or image को altar पर स्थापित करें। - Yellow flowers, fruits, incense, lamp, Naivedya अर्पित करें। - Lord Vishnu mantras chanting करें। - Papamochani Ekadashi Katha Path करें या सुनें। - Full-day fasting रखें और शाम को Lord Vishnu Aarti के बाद fruits fasting meal लें। - अगले दिन Brahmin food donation & charity करें। - तत्पश्चात Parana करें।

चैत्र नवरात्रि 2025: नवरात्रि के पहले दिन भूलकर भी न करें ये 10 काम, बढ़ सकती हैं परेशानियां

Chaitra Navratri 2025: Hindu New Year की शुरुआत Chaitra Navratri से होती है। 30 मार्च 2025 से Chaitra month Navratri प्रारंभ हो रही है। इस बार Navratri 8 days की रहेगी। 6 अप्रैल Ram Navami के दिन इसका समापन होगा। 5 अप्रैल को Ashtami Pooja होगी। Chaitra Navratri को साधना और सिद्धि के लिए उत्तम Navratri festival माना जाता है, जबकि Sharadiya Navratri में माता की आराधना होती है। Chaitra Navratri में भूलकर भी 10 कार्य न करें अन्यथा संपूर्ण वर्ष नकारात्मकता रहेगी। 1. Vrat fasting रखने वालों को beard trimming और hair cutting नहीं करवाने चाहिए। इसी के साथ नौ दिनों तक nail cutting नहीं करना चाहिए। 2. इन दिनों में सभी को Brahmacharya discipline का पालन करना चाहिए। Physical relationship बनाने से Vrat benefits नहीं मिलता है और नियम खंडित होता है। 3. अगर माता के नाम की Akhand Jyoti जला रहे हैं तो इन दिनों घर खाली छोड़कर कहीं नहीं जाना चाहिए। 4. एक बार Vrat Sankalp लेने के बाद उसे तोड़ना नहीं चाहिए। यदि आपको कोई disease or fever हो जाए तो Vrat break किया जा सकता है। 5. Vrat followers को 9 दिनों तक खाने में grains, onion, garlic, non-veg, tobacco, white salt का सेवन नहीं करना चाहिए। Navratri Falahar एक ही स्थान पर बैठकर ग्रहण करें। 6. इन दिनों fasting people को 9 दिन तक lemon cutting नहीं करना चाहिए। 7. इन दिनों Navratri fasting करने वाले लोगों को slippers, shoes, bag, belt आदि leather products का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। 8. Navratri 9 days fasting करने वालों को dirty or unwashed clothes पुनः धारण नहीं करने चाहिए। 9. इन दिनों यदि Durga Saptashati Path, Chalisa or Mantra पढ़ रहे हैं तो पढ़ते हुए बीच में से ना उठे और ना ही दूसरों से बातचीत करें, इससे इनका पूरा फल नहीं मिलता है और negative energies इसका फल ले जाती हैं। 10. Vishnu Purana के अनुसार, Navratri Vrat के समय दिन में सोना prohibited है।

कोलकाता का कालीघाट मंदिर: 51 शक्तिपीठों में शामिल, मां काली की सोने से बनी है जीभ

Kalighat Shaktipeeth Kolkata: चैत्र नवरात्रि की शुरूआत होने वाली है। Hindu Religion में Navratri Festival का विशेष महत्व होता है। Navratri पर देवी दुर्गा के नौ अलग-अलग स्वरूपों की विशेष रूप से पूजा की जाती है। भारत के अलावा Nepal और Bangladesh में मां के कई प्राचीन मंदिर हैं। Devi Bhagavata Purana में 108, Kalika Purana में 26, Shiva Charitra में 51, Durga Saptashati और Tantra Chudamani में Shakti Peeth की संख्या 52 बताई गई है। सामान्यतः 51 Shakti Peeth माने जाते हैं। Tantra Chudamani में लगभग 52 Shakti Peeths के बारे में बताया गया है। इस आलेख में हम आपको माता सती के Kalighat Shaktipeeth के बारे में जानकारी दे रहे हैं जो Kolkata, West Bengal में स्थित है। Kalighat Kolkata Kalika Shaktipeeth: मां काली को देवी दुर्गा की Das Mahavidya में से एक माना जाता है। मां काली के चार रूप हैं - Dakshina Kali, Shamshan Kali, Matri Kali और Mahakali। West Bengal Kolkata के Kalighat में माता के बाएं पैर का अंगूठा गिरा था। इसकी शक्ति है Kalika और भैरव को Nakuleshwar कहते हैं। इसे Dakshineshwar Kali Temple भी कहते हैं। यहां पर देवी काली की चांदी से बनी मूर्ति है। Kalighat Temple में स्थापित मां काली की मूर्ति की जीभ सोने की बनी हुई है। Ramakrishna Paramhansa की आराध्या देवी मां कालिका का Kolkata में विश्व प्रसिद्ध मंदिर है। कुछ की मान्यता अनुसार इस स्थान पर Sati's Right Foot Fingers गिरी थीं। इसलिए यह सती के 51 Shakti Peeths में शामिल है। इस स्थान पर 1847 में Jan Bazaar Queen Rani Rashmoni ने मंदिर का निर्माण करवाया था। 25 एकड़ क्षेत्र में फैले इस मंदिर का निर्माण कार्य सन् 1855 पूरा हुआ। Kalighat Area कोलकाता के उत्तर में Vivekananda Bridge के पास स्थित है। मंदिर का समय कालीघाट मंदिर के द्वार भक्तों के लिए सुबह 5:00 बजे से रात 10:30 बजे तक खुले रहते हैं। वहीँ शनिवार और रविवार को मंदिर देर रात तक खुला रहता है और मंदिर के दरवाजे रात 11:30 बजे बंद होते हैं। इसी के साथ त्योहारों और विशेष दिनों के दौरान कालीघाट काली मंदिर के दर्शन का समय बदल दिया जाता है। दुर्गा अष्टमी के दिन यहां बहुत बड़े स्तर पर पूजा का आयोजन किया जाता है। सामान्य दिनों में पूजा, सुबह 5:30 से 7:00 बजे तक, भोग राग, दोपहर 2:00 बजे से 3:00 बजे तक और शाम को आरती, 6:30 से 7:00 बजे तक होती है। कैसे बने शक्तिपीठ : पौराणिक कथा के अनुसार जब महादेव शिवजी की पत्नी सती अपने पिता राजा दक्ष के यज्ञ में अपने पति का अपमान सहन नहीं कर पाई तो उसी यज्ञ में कूदकर भस्म हो गई। शिवजी जो जब यह पता चला तो उन्होंने अपने गण वीरभद्र को भेजकर यज्ञ स्थल को उजाड़ दिया और राजा दक्ष का सिर काट दिया। बाद में शिवजी अपनी पत्नी सती की जली हुई लाश लेकर विलाप करते हुए सभी ओर घूमते रहे। जहां-जहां माता के अंग और आभूषण गिरे वहां-वहां शक्तिपीठ निर्मित हो गए। हालांकि पौराणिक आख्यायिका के अनुसार देवी देह के अंगों से इनकी उत्पत्ति हुई, जो भगवान विष्णु के चक्र से विच्छिन्न होकर 108 स्थलों पर गिरे थे, जिनमें में 51 का खास महत्व है।

केदारनाथ सहित चारधाम यात्रा 2025: जानें यात्रा प्रारंभ होने की तिथि

Chardham Yatra 2025: कहा जाता है कि पुण्य फलों की प्राप्ति के लिए जीवन में एक बार Char Dham Yatra जरूर करनी चाहिए। इस यात्रा में Badrinath, Kedarnath, Gangotri और Yamunotri Dham के दर्शन किए जाते हैं। इस साल Chardham Yatra 2025 Akshaya Tritiya यानी 30 अप्रैल 2025 से शुरू होने जा रही है। इस दिन Gangotri Dham और Yamunotri Dham के दर्शन हो सकेंगे। वहीं Badrinath Temple के कपाट 04 मई 2025 को खुलेंगे और Kedarnath Dham के कपाट 02 मई 2025 को सुबह 07 बजे खुलेंगे। Char Dham Yatra Significance शास्त्रों के अनुसार Chardham Yatra करने से भक्त के पाप नष्ट हो जाते हैं और व्यक्ति जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है। इस प्रकार Char Dham Yatra करने वाले व्यक्ति को दोबारा मृत्यु लोक में जन्म नहीं लेना पड़ता और उसे Moksha की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि यह यात्रा व्यक्ति को Spiritual Journey पर भी बढ़ने में मदद करती है। Yamunotri Dham (First Stop of Char Dham Yatra) उत्तराखंड के Uttarkashi District में स्थित Yamunotri Dham चार धाम यात्रा का पहला पड़ाव है। Yamuna River को भारत की सबसे पवित्र नदियों में उच्च स्थान प्राप्त है। Yamuna River को पुराणों में Sun God की पुत्री और Yama Dev की बहन भी बताया जाता है। Yamunotri Temple का मुख्य आकर्षण देवी यमुना का मंदिर और Janki Chatti में पवित्र Hot Spring है। Gangotri Dham (Second Stop of Char Dham Yatra) उत्तराखंड के Garhwal Region में Gangotri Glacier से निकलती है। Gangotri Dham को Ganga River का उद्गम स्थल माना जाता है जिसे चारधाम यात्रा का दूसरा पड़ाव माना जाता है। Ganga River को Kalyug Ka Tirth भी कहा जाता है। मान्यता है कि Gangotri Temple के दर्शन से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। Kedarnath Dham (Third Stop of Char Dham Yatra) उत्तराखंड के Rudraprayag District में स्थित है Kedarnath Temple। पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस मंदिर का निर्माण Pandavas ने करवाया था। कालांतर में मंदिर का निर्माण Adi Guru Shankaracharya द्वारा करवाया गया था। Shiv Puran के अनुसार इस स्थान पर Lord Vishnu के अवतार Nara-Narayana पार्थिव शिवलिंग बनाकर Lord Shiva की रोजाना पूजा किया करते थे, तब शिव जी ने उन्हें वरदान दिया था कि वह यहीं विराजमान होंगे। Badrinath Dham (Final Stop of Char Dham Yatra) उत्तराखंड के Chamoli District में स्थित चार धामों में से एक है Badrinath Dham जो Lord Vishnu को समर्पित है। मान्यता है कि इस स्थान पर भगवान विष्णु 6 महीने विश्राम करते हैं। इस मंदिर की स्थापना Adi Shankaracharya द्वारा की गई थी।

चैत्र नवरात्रि पर घट स्थापना और कलश स्थापना क्यों करते हैं?

Chaitra Navratri 2025: चैत्र माह की Navratri 2025 30 मार्च 2025 रविवार से प्रारंभ होकर 6 अप्रैल को Ram Navami के बाद 7 अप्रैल को इसका समापन होगा। 4 अप्रैल को Saptami और 5 अप्रैल 2025 को Durga Ashtami रहेगी। नवरात्रि के पहले दिन Ghat Sthapana और Kalash Sthapana करते हैं। Ghat Sthapana का सबसे ज्यादा महत्व Sharadiya Navratri पर रहता है परंतु Kalash Sthapana तो सभी नवरात्रि में करते ही हैं। आओ जानते हैं कि ऐसा क्यों करते हैं। Ghat Sthapana Muhurat: प्रात: 06:13 से सुबह 10:22 के बीच। Ghat Sthapana Abhijit Muhurat: दोपहर 12:01 से 12:50 के बीच। Pratipada Tithi Start: 29 मार्च 2025 को शाम 04:27 बजे से। Pratipada Tithi End: 30 मार्च 2025 को 12:49 बजे तक। Why is Ghat Sthapana Important? Ghat अर्थात मिट्टी का घड़ा। इसे नवरात्रि के प्रथम दिन शुभ मुहूर्त में Ishan Kon में स्थापित किया जाता है। घट में मिट्टी डालकर उसमें Barley Seeds (जौ) उगाई जाती है। 8 से 9 दिनों में यह जौ उग जाती है। इस पात्र को माता Durga की प्रतिमा के समक्ष स्थापित करके इसका पूजन करें। Navratri Puja के समय ब्रह्मांड में उपस्थित शक्तियों का घट में आह्वान करके उसे कार्यरत किया जाता है। इससे घर की सभी विपदादायक तरंगें नष्ट हो जाती हैं तथा घर में Peace, Prosperity तथा Wealth बनी रहती है। Why is Kalash Sthapana Important? Kalash को Wealth, Prosperity, Fortune देने वाला तथा मंगलकारी माना जाता है। Kalash के मुख में Lord Vishnu, गले में Rudra, मूल में Brahma तथा मध्य में Devi Shakti का निवास माना जाता है। Kalash में जल होता है। उसके मुख पर Coconut (Shri Phal) रखते हैं। जल Vishnu और Varun Dev का प्रतीक है और Shri Phal माता Lakshmi का प्रतीक माना गया है। Kalash Puja के समय देवी-देवताओं का आह्वान करते हुए प्रार्थना करते हैं कि 'हे समस्त देवी-देवता, आप सभी 9 दिन के लिए कृपया Kalash में विराजमान हों।'

jhulelal jayanti 2025: भगवान झूलेलाल की कहानी

Cheti Chand Festival 2025: सिंधी समाज के हिंदुओं में Jhulelal को Varun Dev का अवतार माना जाता है। Sindhi Community के हिंदुओं को Sindhi Hindus कहा जाता है। Sindhi Province के हिंदुओं को Muslim Atrocities से बचाने के लिए ही इनका अवतार हुआ था। यह एक चमत्कारिक संत थे। Jhulelal Jayanti चैत्र शुक्ल माह की द्वितीया को आती है। इनका Prakat Utsav चैत्र प्रतिपदा से ही प्रारंभ हो जाता है। झूलेलालजी को Jinda Peer, Lal Shah, Pallaywaro, Jyotinwaro, Amar Lal, Udero Lal, Ghodewaro भी कहते हैं। इन्हें मुसलमान Khwaja Khizr Jinda Peer के नाम से पूजते हैं। Pakistani Sindhi People इन्हें 'Prabhu Lal Sai' कहते हैं। चैत्र शुक्ल पक्ष द्वितीया Samvat 1007 को उनका जन्म Nasarpur के Thakur Ratanrai के यहां हुआ था। उनकी माता का नाम Devaki था। उनके माता पिता ने उनका नाम 'Lal Udayraj' रखा था। लोग उन्हें Udaychand भी कहते थे। Sindh Province में Mirk Shah नामक एक क्रूर Muslim King के अत्याचार और Hindu Community को समाप्त करने के कुचक्र के चलते Jhulelal का 10वीं सदी में अवतार हुआ और उन्होंने Hindu-Muslim Unity का पाठ पढ़ाया। जन्म से ही Miraculous Child होने की प्रसिद्धि के चलते Mirk Shah को लगा कि यह बालक संभवत: मेरी मौत का कारण बन सकता है। अत: शाह ने Udayraj को समाप्त करवाने की योजना बनाई। शाह दल-बल सहित Udayraj को मारने के लिए निकले ही थे लेकिन Udayraj ने अपनी Divine Powers से शाह के महल में आग का कहर बरपा दिया और शाह की सेना बेबस हो गई। सेनापतियों ने देखा कि सिंहासन पर 'Lal Udayraj' बैठे हैं। जब महल भयानक आग से जलने लगा तो बादशाह भागकर 'Lal Udayraj' के चरणों में गिर पड़ा। 'लाल उदयराज' की शक्ति से प्रभावित होकर ही मिरक शाह ने शां‍ति का रास्ता अपनाकर सर्वधर्म समभाव की भावना से कार्य किया और बादशाह ने बाद में उनके लिए एक भव्य मंदिर भी बनाकर दिया था। Cheti Chand Festival: Sindhi Community के हिंदुओं, जिन्हें Sindhi Hindus कहा जाता है, उनके लिए Cheti Chand सबसे बड़ा पर्व है। भगवान Jhulelal का अवतरण इसी दिन हुआ था। जो भी 4 दिन तक विधि-विधान से भगवान Jhulelal की पूजा-अर्चना करता है, वह सभी दुःखों से दूर हो जाता है। कुछ लोग Jhulelal Chaliha Utsav मनाते हैं, अर्थात 40 दिन तक Vrat उपवास रखते हैं। Jhulelal Samadhi Sthal: पाकिस्तान के Nasarpur में Jhulelal का प्रसिद्ध Samadhi Mandir है। हालांकि यह मंदिर अब Dargah के रूप में परिवर्तित कर दिया गया है। यहां दुनियाभर से लोग आकर माथा टेकते हैं और अपनी मनोकामनाएं मांगते हैं। इन्हें मुस्लिम लोग 'Jinda Peer' और हिंदू लोग 'Prabhu Lal Sai' कहते हैं। झूले झूले झूले झूलुलाल... आयो लाल झुलेलाल. लाल उदेरो रत्नाणी करी भलायूं भाल.... आयो लाल झुलेलाल. असीं निमाणा ऐब न आणा दूला तूहेंजे दर तें वेकाणा करीं भलायूं भाल... आयो लाल झुलेलाल. झूले झूले झूले झुलेलाल...

रंग पंचमी और होली में क्या अंतर है?

Holi Rang Panchami Festival 2025: धार्मिक मान्यतानुसार Holi और Rang Panchami दोनों ही दिनों का अपना अलग-अलग महत्व (significance) और रीति-रिवाज (rituals) हैं। Holi एक सामाजिक त्योहार (social festival) है, जो बुराई पर अच्छाई (victory of good over evil) की जीत के प्रतीकस्वरूप मनाया जाता है, जबकि Rang Panchami एक धार्मिक त्योहार (spiritual festival) है जो देवताओं (deities) को समर्पित है। Holi और Rang Panchami दोनों ही रंगों (colors) के त्योहार हैं, लेकिन दोनों में कुछ महत्वपूर्ण अंतर (differences) हैं। Rang Panchami -Rang Panchami Holi के पांच दिन बाद Chaitra Krishna Panchami को मनाई जाती है। -यह त्योहार देवताओं (deities) को समर्पित है। मान्यतानुसार इस दिन देवता भी रंग खेलते हैं। -इस दिन हवा में गुलाल (Gulal powder) उड़ाने की परंपरा है, जो जीवन में खुशियों (happiness) का आगमन लेकर आता है। -यह त्योहार आध्यात्मिक (spiritual) और धार्मिक (religious) रूप से बहुत महत्व रखता है। -इसे Dev Panchami (Dev Panchami Festival) भी कहा जाता है। Holi -Holi Phalguna Purnima (Full Moon Day) को मनाई जाती है। -यह त्योहार बुराई पर अच्छाई (good over evil) की जीत का प्रतीक (symbol) है। -इस दिन Holika Dahan किया जाता है, जिसमें लकड़ियों (wood logs) और उपलों (dried cow dung cakes) से बनी होली जलाई जाती है। -अगले दिन Dhulandi मनाई जाती है, जिसमें लोग एक-दूसरे को रंग (colors) और गुलाल (Gulal powder) लगाते हैं। -Holi का त्योहार सामाजिक (social) और पारिवारिक (family) रंगों का त्योहार है। मुख्य अंतर (Key Differences) -Holi सामाजिक (social) और पारिवारिक (family) रंगों का त्योहार है, जबकि Rang Panchami का धार्मिक (spiritual) और आध्यात्मिक (divine) महत्व अधिक है। -Holi पर Holika Dahan किया जाता है, जबकि Rang Panchami पर हवा में गुलाल (Gulal Powder) उड़ाया जाता है। -Holi Phalguna Purnima को मनाई जाती है, जबकि Rang Panchami Chaitra Krishna Panchami को मनाई जाती है। -Holi में लोग एक-दूसरे को गुलाल लगाते हैं जबकि Rang Panchami में हवा में गुलाल उड़ाते हैं क्योंकि इस दिन आपके साथ-साथ देवी-देवता (deities) भी पृथ्वी पर आकर Holi खेलते हैं।

Shimigo Festival: रंगपंचमी के दिन गोवा में हिन्दू कार्निवाल की रहेगी धूम

Rangpanchami 2025: Goa को प्राचीन समय में Goparashtra कहते थे। 19 March 2025 को पूरे देश में Rang Panchami Festival मनाया जाएगा, उसी दिन Goa में इस उत्सव की खास धूम रहेगी। यहां पर इस त्योहार को Shigmo Festival के रूप में मनाया जाता है। यानी Goa में Rangpanchami को वहां की स्थानीय संस्कृति (local culture) के अनुसार मनाया जाता है। इसे Shimgo, Shimga, Shigmo या Shigmotsav के नाम से भी जाना जाता है। यह Konkanastha लोगों का त्योहार है। 1. Shimgo Festival: Shimgo उत्सव की शुरुआत तो Holika Dahan से ही हो जाती है। पहले दिन ग्राम देवता (village deity) को नहलाया जाता है और केसरिया रंग (saffron clothes) के कपड़े पहनाए जाते हैं। 5वें दिन Rangpanchami को Shimgo कहते हैं। 2. Fishermen Festival: यह त्योहार यहां के मछुआरों (fishermen) के बीच खासा लोकप्रिय (popular) है। इस त्योहार में रंगों (colors) के अलावा लोग जमकर नाच-गाना (dance & music), खाना-पीना (feast) और आमोद-प्रमोद (merrymaking) करते हैं। 3. New Year Celebration: यह त्योहार नववर्ष (New Year) के आगमन की खुशी में भी मनाया जाता है। वर्ष के अंतिम माह Phalguna Purnima और नए वर्ष के प्रथम दिन Chaitra Month Pareva का संगम होता है और इसके बाद भी उत्सव मनाते हैं। 4. Sattvik Food: इस त्योहार के दौरान, लोग मांसाहारी भोजन (non-veg food) और शराब (alcohol) के सेवन से दूर हो जाते हैं। शुद्ध और सात्विक भोजन (pure vegetarian food) करते हैं। 5. Hindu Carnival: इसे Goa के Hindu लोग Carnival के नाम से भी जानते हैं। Shigmo Mahotsav Goa में रहने वाले हिंदुओं के लिए सबसे बड़े समारोहों (grand celebration) में से एक है। इसे योद्धाओं का उत्सव (Warriors' Festival) भी कहते हैं। Shigmotsav का त्योहार रंग (colors), वेशभूषा (costumes), नृत्य (dance), संगीत (music) और परेड (parade) के साथ मनाया जाता है। परेड के माध्यम से पारंपरिक लोक नृत्य (folk dance) और पौराणिक दृश्यों (mythological scenes) का चित्रण किया जाता है। उत्सव के दौरान लोग रंग-बिरंगी पोशाक (colorful costumes) पहनते हैं, रंगीन झंडे (colorful flags) लहराते हैं और Dhol Tasha, Bansuri जैसे संगीत वाद्ययंत्र (musical instruments) बजाते हैं। 6. Shigmo Festival Beyond Goa: Goa के बाहर भी इस उत्सव की धूम है: Chhattisgarh, Madhya Pradesh, Telangana और Maharashtra के कुछ हिस्सों में Gondi-speaking communities होली को Shimga Saggum Pabun कहते हैं। यहां के स्थानीय भाषा में शिवजी (Lord Shiva) को Shambhu Shek कहा जाता है। Goa में Magha Purnima और Phalguna Purnima तक अनेक त्योहार मनाए जाते हैं। इनमें Shambhu Shek Naraka (Maha Shivratri) और Shimga Festival प्रमुख हैं।

पापमोचनी एकादशी की पौराणिक कथा

Ekadashi Story 2025: Hindu Panchang Calendar के अनुसार Chaitra महीने के Krishna Paksha की Papmochani Ekadashi वर्ष 2025 में इस बार 25 March, दिन Tuesday को मनाई जा रही है। इस दिन Bhagwan Shri Vishnu का पूजन (worship) किया जाता हैं। धार्मिक मान्यतानुसार यह दिन सभी पापों (sins) का नाश (destruction) करने वाला माना गया है। आइए जानते हैं यहां Papmochani Ekadashi की पौराणिक कथा (mythological story) - इस संबंध में प्राप्त Papmochani Ekadashi की Vrat Katha के अनुसार प्राचीन समय में Chitrarath नामक एक रमणिक वन (beautiful forest) था। इस वन में Devraj Indra Gandharva कन्याओं (heavenly maidens) तथा Devtas (deities) सहित स्वच्छंद विहार (free movement) करते थे। एक बार Medhavi नामक ऋषि (sage) भी वहां पर तपस्या (penance) कर रहे थे। वे ऋषि Shiva उपासक (devotee) तथा अप्सराएं (celestial nymphs) Shiva Drohini Anang Dasi/ Anuchari थी। एक बार Kamdev ने मुनि (sage) का तप भंग करने के लिए उनके पास Manjughosha नामक अप्सरा (Apsara) को भेजा। युवावस्था (youth) वाले मुनि अप्सरा के हाव भाव (gestures), नृत्य-गीत (dance and song) तथा कटाक्षों पर काम मोहित (enamored) हो गए। Rati-Krida करते हुए 57 वर्ष व्यतीत हो गए। एक दिन Manjughosha ने Devalok जाने की आज्ञा मांगी। उसके द्वारा आज्ञा मांगने पर मुनि को भान आया और उन्हें आत्मज्ञान (self-realization) हुआ कि मुझे Rasatal (hell) में पहुंचाने का एकमात्र कारण Apsara Manjughosha ही हैं। क्रोधित होकर उन्होंने Manjughosha को Pishachini (demoness) होने का श्राप (curse) दे दिया। ऋषि का श्राप सुनकर अप्सरा Manjughosha ने कांपते हुए मुनि से इससे मुक्ति (liberation) का उपाय (remedy) पूछा। तब मुनिश्री ने Papmochani Ekadashi का व्रत (fast) रखने को कहा और अप्सरा को मुक्ति (freedom) का उपाय बताकर पिता Chyavan के आश्रम (hermitage) में चले गए। पुत्र के मुख से श्राप देने की बात सुनकर Chyavan Rishi ने पुत्र की घोर निंदा (criticism) की तथा उन्हें Papmochani Chaitra Krishna Ekadashi का व्रत करने की आज्ञा दी। इस व्रत के प्रभाव (effect) से Manjughosha Apsara Pishachini देह से मुक्त (freed) होकर Devalok चली गई। इस प्रकार Brahmaji के मुख से कहें वचनानुसार जो कोई मनुष्य विधिपूर्वक Papmochani Ekadashi व्रत करेगा, उसके सभी पापों (sins) की मुक्ति (freedom) निश्चित ही होती है, साथ ही जो कोई इस व्रत के Mahatmya (glory) को पढ़ता या सुनता है उसको सारे संकटों (difficulties) से मुक्ति (relief) मिल जाती है। ऐसी Papmochani Ekadashi की Mahima (significance) है। अतः ऐसा कहा जाता है कि जीवन (life) के सभी पापों (sins) की मुक्ति (salvation) के लिए तथा Moksha (liberation) प्राप्ति के लिए हर मनुष्य को Chaitra Mah की Papmochani Ekadashi का व्रत अवश्य रखना चाहिए।

रंगपंचमी पर करें ये अचूक उपाय, खुशियों से भर जाएगा जीवन

रंगपंचमी के achuk upay in Hindi: 19 March 2025 Wednesday के दिन Rang Panchami का पर्व मनाया जाएगा। Holi के बाद पांचवें दिन Rang Panchami रहती है। घर में सुख (happiness), शांति (peace) और समृद्धि (prosperity) के लिए इस दिन ज्योतिष (astrology) के achuk upay करने से बहुत लाभ (benefit) होगा। यदि किसी भी प्रकार का कर्ज (loan) है तो उसे मुक्ति (debt relief) मिलेगी। विवाह (marriage) नहीं हो रहा है तो विवाह के योग (marriage prospects) बनेंगे। 1. जल (water) में Gangajal और एक चुटकी हल्दी (turmeric) डालकर स्नान (bath) करें। स्नान करने के बाद गाय के घी (ghee) का दीपक (lamp) जलाकर लाल गुलाब (red rose) के फूल लक्ष्मी नारायण (Lakshmi Narayan) जी को चढ़ाएं। फिर आसन पर बैठकर ॐ श्रीं श्रीये नमः मंत्र (mantra chanting) का तीन माला जाप (chant) करें। इसके बाद उन्हें गुड़ (jaggery) और मिश्री (sugar crystals) का भोग (offering) लगाएं। पूजा (puja) के बाद जल (water) को घर (home) में सभी ओर छिड़क (sprinkle) दें। 2. Rang Panchami के दिन कमल के फूल (lotus flower) पर बैठे Lakshmi Narayan की तस्वीर (photo) स्थापित करने के बाद उन्हें गुलाब (rose) के पुष्प (flower) या माला (garland) जरूर अर्पित करें और उनके पास जलभरा लोटा (water-filled vessel) स्थापित करें। 3. Lakshmi Narayan की पूजा (worship) के बाद सूर्य देव (Sun God) को अर्घ्य (water offering) दें। अर्घ्य के जल (water) में रोली (kumkum), अक्षत (rice) के अलावा शहद (honey) जरूर मिला लें। 4. इस दिन माता लक्ष्मी (Mata Lakshmi) को रुई (cotton) की दो बाती (two-wick) वाले घी (ghee) का दीपक (lamp) लगाएं और गुलाब (rose) की अगरबत्ती (incense stick) जलाएं। सफेद मिठाई (white sweets) और सेब (apple) चढ़ाएं। 5. शाम (evening) के समय घर के मुख्य द्वार (main entrance) पर घी का दीपक (lamp) जलाएं और माता लक्ष्मी (Mata Lakshmi) को खीर (kheer) का भोग (offering) लगाएं। 6. Rang Panchami के दिन, भगवान कृष्ण (Lord Krishna) और राधा (Radha) की पूजा (worship) करना बहुत शुभ (auspicious) माना जाता है। इस दिन, उन्हें पीले रंग (yellow color) के फूल (flowers) और गुलाल (gulal) अर्पित करें। ऐसा माना जाता है कि इससे विवाह (marriage) में आ रही सभी बाधाएं (obstacles) दूर होती हैं और मनचाहा जीवनसाथी (desired partner) मिलता है। 7. विवाह (marriage) में देरी (delay) को दूर करने के लिए, Rang Panchami के दिन भगवान विष्णु (Lord Vishnu) की पूजा (worship) करें। भगवान विष्णु को पीले वस्त्र (yellow clothes) और पीले फूल (yellow flowers) अर्पित करें, और Vishnu Sahasranama का पाठ (recitation) करें। 8. Rang Panchami के दिन, एक लाल कपड़े (red cloth) में थोड़ी सी हल्दी (turmeric) और गुलाल (gulal) बांधकर भगवान शिव (Lord Shiva) के मंदिर (temple) में अर्पित करें। ऐसा माना जाता है कि इससे विवाह (marriage) के योग (prospects) जल्दी बनते हैं। 9. Rang Panchami के दिन, गरीब कन्याओं (poor girls) को वस्त्र (clothes) और मिठाई (sweets) दान (donation) करना बहुत शुभ (auspicious) माना जाता है। यह उपाय विवाह (marriage) में आ रही बाधाओं (obstacles) को दूर करने में मदद करता है। 10. शिव-पार्वती (Shiva-Parvati) की पूजा (worship) करने से वैवाहिक जीवन (married life) में आ रही सभी परेशानियां (problems) दूर हो जाती हैं। इस दिन, उन्हें हरी चूड़ियाँ (green bangles) और सिंदूर (vermilion) अर्पित करें। ऐसा माना जाता है कि इससे शीघ्र विवाह (quick marriage) के योग (prospects) बनते हैं। 11. Rang Panchami के दिन नागदेव (Naga Dev) की पूजा (worship) करने से सभी तरह के नागदोष (Naga Dosha) दूर होते हैं क्योंकि पंचमी तिथि (Panchami Tithi) नागदेव की तिथि मानी जाती है। 12. इस दिन घर (home) में लक्ष्मी (Lakshmi), विष्णु (Vishnu), शिव (Shiva), दुर्गा (Durga), श्रीकृष्ण (Shri Krishna) को कमल का फूल (lotus flower) अर्पित करें। अगर कमल का फूल (lotus) संभव न हो तो अन्य फूल (flowers) भी ले सकते हैं। इससे घर में सुख (happiness) और शांति (peace) बनी रहेगी। 13. अपने इष्ट देवता (Ishta Devta) /कुल देवी (Kul Devi)/देवता (Deity) के साथ होली (Holi) खेलने से भी सुख (happiness) और समृद्धि (prosperity) की प्राप्ति होती है। इसलिए Holi के अवसर पर सबसे पहले उन्हें रंग (colors) अर्पित करें।

क्यों खास होता है गुड़ी पड़वा का पर्व? जानिए इससे जुड़े रोचक तथ्य

Gudi Padwa 2025: Gudi Padwa Maharashtra और Goa में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण Hindu festival है। यह Chaitra month के Shukla Paksha Pratipada को मनाया जाता है। यह त्योहार spring season की शुरुआत और New Year celebration का प्रतीक है। इस साल Gudi Padwa 2025 30 March 2025, Sunday को मनाया जाएगा। यह दिन न केवल धार्मिक बल्कि culturally significant भी है, क्योंकि यह Marathi New Year की शुरुआत का प्रतीक है। इस दिन से Chaitra Navratri भी प्रारंभ होगा। Gudi Padwa ka Mahatva Gudi Padwa कई कारणों से एक महत्वपूर्ण त्योहार है। यह Maharashtra और Goa में पारंपरिक Hindu New Year की शुरुआत का प्रतीक है। यह spring season की शुरुआत का प्रतीक है, जो new beginnings और विकास का समय है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन Lord Brahma ने universe creation किया था। यह Lord Rama की victory over Lanka और Ayodhya return का भी प्रतीक है। यह त्योहार cultural events, traditional food, और उत्सवों के साथ मनाया जाता है। Gudi Padwa ki Itihasik aur Dharmik महत्ता Gudi Padwa के दिन के साथ जुड़ी कई पौराणिक कथाएँ हैं। इनमें से एक प्रमुख कथा है Chhatrapati Shivaji Maharaj से जुड़ी, जो इस दिन को Victory Day के रूप में मनाने का कारण बनती है। कहा जाता है कि इसी दिन Shivaji Maharaj ने foreign invaders को पराजित कर विजय प्राप्त की थी। विजय के प्रतीक स्वरूप उन्होंने Victory Flag फहराया, जो Gudi Padwa tradition का हिस्सा बन गई। Gudi Padwa se Jude Rochak Tathya • Gudi Padwa के दिन, लोग अपने घरों के सामने एक Gudi flag लगाते हैं। Gudi एक bamboo stick होती है जिसे silk cloth, flowers, और copper या silver pot से सजाया जाता है। • Gudi को evil spirits ward off करने और good luck एवं prosperity लाने के लिए माना जाता है। • Gudi Padwa के दिन, लोग पारंपरिक व्यंजन जैसे कि Shrikhand और Puran Poli खाते हैं। • इस दिन, लोग new clothes पहनते हैं और अपने परिवार और दोस्तों से मिलते हैं। • Charity on Gudi Padwa का भी बहुत महत्व है। • इस दिन tree plantation करना भी बहुत शुभ माना जाता है। • Gold purchase on Gudi Padwa को भी बेहद शुभ माना जाता है।

बसौड़ा 2025: सप्तमी-अष्टमी के व्यंजन, इन पकवानों से लगाएं शीतला माता को भोग

Shitala Saptami Prasad: Basoda, जिसे Sheetla Ashtami के नाम से भी जाना जाता है, Mata Sheetla को समर्पित एक महत्वपूर्ण Hindu festival है। 2025 में, यह त्योहार 22 March को तथा 21 March Sheetla Saptami का पर्व मनाया जाएगा। इस दिन, Mata Sheetla को stale food का भोग लगाया जाता है, जिसे एक दिन पहले Saptami Tithi को तैयार किया जाता है। Saptami Tithi को तैयार किए जाने वाले traditional Indian dishes: • Sweet Rice (मीठे चावल): Rice को jaggery या sugar के साथ पकाकर मीठे चावल बनाए जाते हैं। • Rabri (राबड़ी): Millet flour को buttermilk में मिलाकर राबड़ी बनाई जाती है। • Pua (पूए): Flour और jaggery से बने मीठे पकवान। • Halwa (हलवा): Semolina या wheat flour को ghee और sugar के साथ पकाकर हलवा बनाया जाता है। • Dal-Chawal (दाल-चावल): Lentils और rice को एक साथ पकाकर khichdi बनाई जाती है। • Kadhi (कढ़ी): Gram flour और yogurt से बनी कढ़ी। • Gulgule (गुलगुले): Sweet fritters जो flour और jaggery से बनाए जाते हैं। • Pakora (पकौड़े): Savory fritters जो gram flour और vegetables से तैयार होते हैं। Ashtami Tithi ko lagaye jane wale bhog: • Saptami Tithi को तैयार किए गए सभी stale food व्यंजन। • Curd (दही) • Lassi (लस्सी) • Buttermilk (मट्ठा) Traditional belief के अनुसार, Mata Sheetla को प्रसन्न करने हेतु इस दिन stale food ग्रहण किया जाता है, जिससे chickenpox, measles, और अन्य skin diseases के प्रकोप से हमारी सुरक्षा होती है।

शीतला सप्तमी-अष्टमी पर बासी खाने का भोग क्यों लगाया जाता है? क्या है इस दिन का आपकी सेहत से कनेक्शन

जानें शीतला माता को ठंडा भोजन चढ़ाने के पीछे का महत्व, वैज्ञानिक और धार्मिक कारण

Shitala Saptami 2025: भारत में धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं का अपना विशेष महत्व है। Shitala Saptami और Shitala Ashtami का पर्व Hindu Religion में विशेष महत्व रखता है। इसे Basoda Festival भी कहा जाता है। इस दिन Shitala Mata Puja की जाती है और उन्हें Stale Food Offering का भोग लगाया जाता है। Shitala Mata Puja में विशेष रूप से Stale Food Bhog अर्पित किया जाता है। यह पर्व Chaitra Month Krishna Paksha की Saptami और Ashtami Tithi को मनाया जाता है। Shitala Saptami 2025 Date 21 March को और Shitala Ashtami 2025 Date 22 March को रहेगी। इस दिन Shitala Mata Puja कर घर-परिवार की Happiness, Prosperity, और Health की कामना की जाती है। Shitala Saptami-Ashtami Importance Shitala Saptami और Ashtami का पर्व Holi Festival के बाद मनाया जाता है। इसे 'Basoda Festival' भी कहा जाता है। Shitala Saptami Festival विशेष रूप से North India, Rajasthan, Madhya Pradesh, और Gujarat में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन Shitala Mata की पूजा कर Stale Food Prasad चढ़ाया जाता है। मान्यता है कि Shitala Mata को ठंडा और बासी भोजन अत्यंत प्रिय है। इस दिन महिलाएं प्रातःकाल उठकर Shitala Mata Temple में जाकर पूजन करती हैं और वहां Stale Food Offering का प्रसाद चढ़ाती हैं। मुख्य रूप से Jaggery, Churma, Stale Poori, Bajra Roti, और Kadhi का भोग लगाया जाता है। Why is Stale Food Offered on Shitala Saptami? Balance of Heat and Coolness: Holi Festival गर्मी का प्रतीक होता है, जबकि Shitala Mata को शीतलता का प्रतीक माना जाता है। Stale Food Bhog शीतलता का प्रतीक है और इसे ग्रहण कर मां को प्रसन्न किया जाता है। Religious Significance: धार्मिक मान्यता के अनुसार, Holi के दिन ताजे खाने का भोग चढ़ाया जाता है, जबकि Shitala Saptami पर बासी भोजन का। इससे जीवन में Calmness और Patience का महत्व दर्शाया जाता है। Prevention from Infectious Diseases: प्राचीन समय में Smallpox, Measles, जैसी बीमारियां अधिक फैलती थीं। इस दिन खाना न पकाने की परंपरा इसलिए भी है ताकि भोजन में धूल-मिट्टी और संक्रमण न लगे। Is Stale Food Beneficial for Health? बासी खाने को लेकर अलग-अलग धारणाएं प्रचलित हैं। कुछ लोग इसे सेहत के लिए हानिकारक मानते हैं, जबकि कुछ इसे Digestive System के लिए लाभकारी मानते हैं। Benefits of Stale Food 🕒Aids Digestion: बासी खाना ठंडा होने के कारण Digestive System पर अतिरिक्त दबाव नहीं डालता। 🕒Rich in Probiotics: बासी चावल और दही में प्राकृतिक रूप से Probiotics होते हैं जो Gut Health के लिए अच्छे माने जाते हैं। 🕒Energy Booster: बासी खाने में ऊर्जा बनाए रखने के लिए आवश्यक Nutrients भी होते हैं। Shitala Saptami-Ashtami 2025 पर बासी खाने का भोग लगाने की परंपरा का वैज्ञानिक आधार भी है। गर्मी के मौसम में ताजे खाने की तुलना में Properly Stored Stale Food खाने से Digestion Process में सहायता मिलती है। यही कारण है कि इस दिन Stale Food Offering चढ़ाया जाता है और प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है। Shitala Saptami-Ashtami Festival केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक ही नहीं, बल्कि Healthy Lifestyle का भी संदेश देता है। हालांकि, यदि आप सेहत को प्राथमिकता देते हैं, तो Stale Food को लेकर सावधानी जरूर बरतें।

Ram Navami 2025: रामनवमी कब है, क्या है प्रभु श्रीराम की पूजा का शुभ मुहूर्त और योग?

Ram Navami 2025: चैत्र माह के Shukla Paksha की Navami के दिन Lord Rama का जन्मोत्सव मनाया जाता है। इसे परंपरा से Ram Navami Festival कहते हैं। Hindus के लिए यह सबसे बड़ा दिन होता है। इस बार Ram Navami 2025 Date का पर्व 06 April 2025 Sunday के दिन मनाया जाएगा। Ram Navami Puja Muhurat सुबह 11:08 से दोपहर 01:39 के बीच रहेगा। Ram Navami Madhyahna Time दोपहर 12:24 पर रहेगा। इसके अलावा भी कई Shubh Muhurat रहेंगे। Navami Tithi: Navami Tithi Start Time - 05 April 2025, Evening 07:26 PM. Navami Tithi End Time - 06 April 2025, Evening 07:22 PM. Udaya Tithi के अनुसार 06 April 2025 को Ram Navami रहेगी। Lord Rama का जन्म दिन में ही Abhijit Muhurat में हुआ था। Ram Navami Puja Muhurat: Morning Muhurat: 04:34 AM से 06:05 AM के बीच। Abhijit Muhurat: 11:58 AM से 12:49 PM के बीच। Vijay Muhurat: 02:30 PM से 03:20 PM के बीच। Godhuli Muhurat: 06:41 PM से 07:03 PM के बीच। Sandhya Muhurat: 06:41 PM से 07:50 PM के बीच। Shubh Yoga: Ravi Pushya Yoga, Sarvartha Siddhi Yoga, और Ravi Yoga पूरे दिन रहेगा। Best Muhurat for Puja: सबसे श्रेष्ठ है Abhijit Muhurat। Ram Navami Puja Vidhi (Puja Rituals): 🎵Early Morning Preparation: प्रात:काल जल्दी उठकर Ram Janmotsav की तैयारी करते हैं। 🎵Ram Lalla Jhula Preparation: Ram Lalla के लिए झूला या पालना सजाते हैं। 🎵Lord Rama Idol Decoration: भगवान राम की मूर्ति को फूल-माला से सजाते हैं और विधिवत रूप से झुले में विराजमान करते हैं। 🎵Swinging the Idol: भगवान राम की मूर्ति को पालने में झुलाते हैं। 🎵Offering Bhog: उनके लिए भोग तैयार करके उन्हें भोग लगाते हैं। 🎵Traditional Prasad Offerings: भोग और प्रसाद में Kesar Bhat, Kheer, Kalakand, Barfi, Gulab Jamun, Halwa, Puran Poli, Laddu, Seviyan, Panchamrit, Dhaniya Panjiri, और Saunth Panjiri का प्रसाद बनाते हैं। 🎵Shodashopachar Puja: भगवान को भोग लगाकर उनकी षोडशोपचार पूजा करते हैं। 🎵Ram Lalla Aarti: पूजा के बाद Ram Lalla Aarti गाते हैं। 🎵Tulsi and Lotus in Puja: पूजा में Tulsi Leaves और Lotus Flower अवश्य होना चाहिए। 🎵Tilak Ceremony: पूजा आरती के बाद घर की सबसे छोटी महिला सभी लोगों के माथे पर Tilak लगाती हैं। 🎵First Prasad Offering: घर के सबसे छोटे बच्चों को सबसे पहले Prasad देकर भोजन कराते हैं। 🎵Ramayan and Ram Raksha Stotra Recitation: इसके बाद पूरे दिन Ramayan Path करते हैं या फिर Ram Raksha Stotra का पाठ पढ़ते हैं। 🎵Bhajan-Kirtan: कई घरों में Bhajan-Kirtan का भी आयोजन किया जाता है। 🎵Navami Vrat Vidhi: यदि Navami Vrat रखा है तो Siddhidatri Mata Puja और आरती करने के बाद व्रत का पारण करते हैं।

होलाष्टक की 3 पौराणिक कथा और 5 ज्योतिषीय महत्व

Mythology And Astrological Significance of Holashtak: होली और अष्टक अर्थात होलाष्टक। होली के 8 दिन पहले के दिनों को होलाष्‍टक कहते हैं जो कि अशुभ माने जाते हैं। आओ जानते हैं होलाष्टक की 3 प्रचलित पौराणिक कथा और 5 ज्योतिषीय महत्व। होलाष्टक की 3 पौराणिक कथा (3 Mythology of Holashtak): 1. Holi ki katha - Story of Holika and Prahlad: Pauranik katha के अनुसार, Raja Hiranyakashipu ने अपने बेटे Bhakt Prahlad को Bhagwan Shri Hari Vishnu की Bhakti से दूर करने के लिए Aath din tak kathin yatnayein दीं। Aathve din, Varadan prapt Holika, जो Hiranyakashipu ki Behan थी, Bhakt Prahlad को Goad में लेकर बैठी और Agni me jal gayi, लेकिन Bhakt Prahlad bach gaye। Aath din yatna के कारण इन Aath dino ko ashubh माना जाता है। 2. Shiva aur Kamdev ki kahani - Shiva and Kamdev Story: Himalaya Putri Parvati चाहती थीं कि उनका विवाह Bhagwan Bholenath से हो जाए और दूसरी ओर Devta जानते थे कि Brahma ke varadan के चलते Tarakasur ka vadh Shiva ka putra ही कर सकता है। लेकिन Shivji ki Tapasya में लीन थे। तब Devtaon ke kehne par Kamdev ने Shiva ki Tapasya bhang करने का जोखिम उठाया। उन्होंने Prem Baan चलाया और Bhagwan Shiva की Tapasya bhang हो गई। Shivji ko bahut krodh aaya और उन्होंने अपनी Teesri aankh खोल दी। Kamdev ka sharir unke krodh ki jwala me bhasm हो गया। Kamdev 8 din tak har prakar se Shiva ki Tapasya bhang करने में लगे रहे। अंत में Shiva ne Falgun Ashtami पर Kamdev ko bhasm कर दिया। बाद में Devi-Devtaon ने Shiva को Tapasya bhang करने का कारण बताया। फिर Shiva ne Parvati को देखा और Parvati ki Aradhana सफल हुई। Shiva ne unhe apni Patni के रूप में स्वीकार कर लिया। इसीलिए Holi ki Agni me Vasanatmak Aakarshan ko Pratikatmak roop se jalakar Sacche Prem ka Vijay Utsav मनाया जाता है। 3. Shri Krishna aur Gopiyan - Shri Krishna and the Gopis: कहते हैं कि Holi ek din ka parv nahi बल्कि Aath din ka tyohaar है। Bhagwan Shri Krishna Aath din tak Gopiyan sang Holi khelte रहे और Dhulendi ke din, अर्थात Holi par Rango me sane kapdon ko Agni ke hawale कर दिया। तब से Aath din tak yeh Parv मनाया जाने लगा। 5 ज्योतिष महत्व (5 Astrological Significance): 1. Jyotish manyata के अनुसार, इस दिन से Mausam Parivartan होता है, Surya ka Prakash tez हो जाता है और साथ ही Hawaayen bhi thandi रहती हैं। ऐसे में व्यक्ति Rog ki chapet में आ सकता है और उसके मन की स्थिति Avsaad grast रहती है। 2. Phalgun Shukla Ashtami से Nature me Nakaratmak Urja का प्रवेश हो जाता है। इसीलिए Mangalik karya varjit माने जाते हैं। हालांकि Holashtak ke aath din को Vrat, Poojan aur Havan की दृष्टि से अच्छा समय माना गया है। 3. Jyotish Vidwano के अनुसार, Ashtami ko Chandra, Navami Tithi ko Surya, Dashami ko Shani, Ekadashi ko Shukra, Dwadashi ko Guru, Trayodashi ko Budh, Chaturdashi ko Mangal, तथा Purnima ko Rahu Ugra Swabhav के हो जाते हैं। इन Grahon ke Nirbal होने से Manushya ki Nirnay Kshamata क्षीण हो जाती है। इस कारण Vyakti Apne Swabhav ke Vipreet फैसले कर लेता है। यही कारण है कि व्यक्ति के मन को Vrat, Poojan, Havan, Rango aur Utsah की ओर मोड़ दिया जाता है। 4. Holashtak को Jyotish drishti में Ek Dosh माना जाता है। Vivaahit Mahilao को इस दौरान Mayke me rehne की सलाह दी जाती है। विशेष रूप से इस समय Vivah, naye nirmaan aur naye karyon ko aarambh नहीं करना चाहिए। ऐसा Jyotish Shastra का कथन है। इन दिनों किए गए कार्यों से Kasht, Peeda, Kalaha, तथा Akaal Mrityu ya Bimari होने की आशंका बढ़ जाती है। 5. Jyotishiyo के अनुसार, Holashtak ka prabhav Teerth Kshetra में maan nahi jata है।

होली की अनजानी कथा : इलोजी और होलिका की प्रेम गाथा

Holika Dahan 2025 : धार्मिक शास्त्रों के अनुसार Holika Dahan festival का पर्व Vishnu bhakt Prahlad की कथा से जुड़ा है। Holika उनकी Bua थी और Hiranyakashipu उनके Pitaji थे। Holika को Brahmaji ने Agni se jalkar nahi marne का वरदान दिया था। इसी वरदान के चलते Holika ने Hiranyakashipu के कहने पर Bhakt Prahlad को अपनी Goad में बैठाकर Agni Kund में बैठ गई थीं। हालांकि Varadan ke durupyog करने के चलते वे Agni Kund में जल गईं लेकिन Shri Hari की कृपा से Prahlad बच गए। इसी कारण सभी लोग Holika को Khalnayika मानते हैं, परंतु Holika ki apni ek dardbhari kahani भी है। आओ जानते हैं उसी कहानी को- यह कहानी हमें Himachal ki Lok Katha में मिलती है। Janshruti के आधार पर यह माना जाता है कि Holika ki ek prem katha भी थी। उसे वहां पर एक Bebas Preyasi के तौर पर देखा जाता है, जो अपने Priyatam से मिलने के खातिर Maut ko gale लगा लेती है। Holika महान Asur Raja Hiranyakashipu की Behan थी और उसका विवाह Iloji से तय हुआ था और विवाह Purnima को तय हुआ था। हालांकि उसी समय Hiranyakashipu अपने बेटे Prahlad ki Vishnu Bhakti से परेशान था। सभी उपाय करने के बाद भी वह उसे Maut ke ghat उतार नहीं पा रहा था। तब उसने Holika ke samne Prahlad ko Agni me jalaane का प्रस्ताव रखा, जिसे Holika ne manne se inkar कर दिया। होलिका के इनकार करने के कारण हिरण्यकश्यप ने उसके विवाह में व्यवधान डालने की धमकी थी। आखिरकार मजबूर होकर होलिका ने भाई की बात मान ली और प्रहलाद को लेकर अग्नि में बैठने की बात स्वीकार कर ली। होलिका अग्नि की उपासक थी और उसे अग्नि का भय नहीं था। जिस दिन होलिका का विवाह होना था उसी दिन उसे यह कार्य भी करना था। दूसरी ओर होलिका का जिससे विवाह हो रहा था, वह इन सभी बातों से अनजान था। उसका नाम इलोजी था और वह बारात लेकर आ रहा था। इधर मंडप सजा था और उधर होलिका प्रहलाद को जलाने के प्रयास में स्वयं जलकर भस्म हो गई। जब इलोजी बारात लेकर पहुंचा तब तक होलिका की देह खाक हो चुकी थी। इलोजी यह सब देखकर बहुत दु:खी हुआ और वह यह सहन नहीं कर पाया और उन्होंने भी उसी अग्नि कुंड में कूद गया, लेकिन तब तक आग बुझ चुकी थी। अपना संतुलन खोकर वे राख और लकड़ियां लोगों पर फेंकने लगे। वह पागल जैसे हो गया और फिर इस अवस्था में उसने अपना पूरा जीवन गुजारा। आज भी होलिका-इलोजी की प्रेम कहानी हिमाचल प्रदेश के लोग गाकर याद रखते हैं।

Holi Katha: होली की कथा से जुड़ी है कामदेव और शिव की कहानी

Holi ki katha Hindu calendar के अनुसार Hindu year के अंतिम माह यानी Phalgun month की पूर्णिमा को Holika Dahan किया जाता है। बता दें कि Holi ki pauranik katha चार घटनाओं से जुड़ी हुई है। पहली Holika aur bhakt Prahlad, दूसरी Kamdev aur Lord Shiva, तीसरी Raja Prithu aur rakshasi Dhundhi और चौथी Lord Krishna aur Putana। आइए यहां जानते हैं Kamdev aur Lord Shiva की Holi se judi pauranik aur pramanik katha इस कथा के अनुसार जब माता सती अपने पिता दक्ष के यज्ञ में कूदकर भस्म हो जाती है तो उसके बाद शिव जी गंगा और तमसा नदी के संगम किनारे गहन तपस्या में लीन हो जाते हैं। इस दौरान दो घटनाएं घटती हैं पहली तो यह कि तारकासुर नामक असुर तपस्या करके ब्रह्मा से अमरता का वरदान मांगता है तो ब्रह्मा जी कहते हैं कि यह संभव नहीं कुछ और मांगों- तो वह यह वरदान मांग लेता है कि मुझे सिर्फ शिव पुत्र ही मार सके, क्योंकि तारकासुर जानता था कि सती तो भस्म हो गई है और शिव जी तपस्या में लीन है जो हजारों वर्ष तक लीन ही रहेंगे। ऐसे में शिव का कोई पुत्र ही नहीं होगा तो मेरा वध कौन करेगा? यह वरदान प्राप्त करके वह तीनों लोक पर अपना आतंक कायम कर देता है और स्वर्ग का अधिपति बन जाता है। दूसरी घटना यह कि इसी दौरान माता सती अपने दूसरे जन्म में हिमवान और मैनादेवी के यहां पार्वती के रूप में जन्म लेकर शिव जी की तपस्या में लीन हो जाती है उन्हें पुन: प्राप्त करने हेतु। जब यह बात देवताओं को पता चलती है तो सभी मिलकर विचार करते हैं कि कौन शिव जी की तपस्या भंग करें। सभी माता पार्वती के पास जाकर निवेदन करते हैं। माता इसके लिए तैयार नहीं होती है। ऐसे में सभी देवताओं की अनुशंसा पर कामदेव और देवी रति शिवजी की तपस्या भंग करने का जोखिम उठाते हैं। शिव जी के सामने फाल्गुन मास में कामदेव और रति नृत्य और गान करते हैं और फिर कामदेव आम के पेड़ के पीछे छिपकर एक-एक करके अपने पुष्प बाण को शिवजी पर छोड़ते हैं। अंत में एक बाण उनके हृदय पर लगता है जिसके चलते शिव जी की तपस्या भंग हो जाती है। तपस्या भंग होते ही उन्हें आम के पेड़ के पीछे छुपे कामदेव नजर आते हैं तो वे क्रोध में अपने तीसरे नेत्र से कामदेव को भस्म कर देते हैं। यह देखकर देवी रति के साथ ही सभी देवी और देवता दु:खी हो जाते हैं। अपने पति की राख को देखकर देवी रति विलाप करने लगती हैं और कहती हैं कि इसमें मेरे पति की कोई गलती नहीं थी। मेरे साथ क्या करो भोलेनाथ। मेरे पति को पुन: जीवित करो। जब भगवान शिव को यह ज्ञात होता है कि संसार के कल्याण के लिए देवताओं की बनाई योजना के तहत ही कामदेव कार्य कर रहे थे तो उनका क्रोध शांत होता है। तब वे राख में से देवी रति के पति कामदेव की आत्मा को प्रकट कर देते हैं और फिर शिव देवी रति को वचन देते हैं कि द्वापर युग में य‍दुकुल में जब श्रीविष्णु कृष्ण रूप में जन्म लेंगे तो उनके पुत्र के रूप में तुम्हारे पति का जन्म होगा, जिसका नाम प्रद्युम्न रहेगा। उस काल में संभरासुर का वध करने के बाद तुम्हारे पति से पुन: तुम्हारा मिलन होगा। इस वरदान से सभी देवता खुश हो जाते हैं। शिव जी पार्वती से विवाह करने की सहमति भी देते हैं। यह सुनकर प्रसन्न होकर सभी देवता फूल और रंगों की वर्षा करके खुशियां मनाते हैं और दूसरे दिन उत्सव मनाते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार होलिका का दहन होली के दिन किया जाता है और दूसरे दिन धुलैंडी पर रंग खेला जाता है। धुलैंडी पर रंग खेलने की शुरुआत देवी-देवताओं को रंग लगाकर की जाती है। इसके लिए सभी देवी-देवताओं का एक प्रिय रंग होता है और उस रंग की वस्तुएं उनको समर्पित करने से शुभता मिलती है, उनकी कृपा प्राप्त होती है, जीवन में समृद्धि मिलती है, खुशहाली आती है और धन-धान्य से घर भरे हुए होते हैं। इस तरह होली के पर्व से जुड़ी यह कथा होली के त्योहार पर अवश्य पढ़ना या सुनना चाहिए।

होली पर परिवार और दोस्तों को भेजें ये रंगारंग संदेश, रिश्तों में बढ़ेगी मिठास

Happy Holi 2025: Celebrate the Festival of Colors with Joy!

Holi Festival 2025 नजदीक आते ही हर कोई इस त्योहार को लेकर उत्सुक रहता है। इस साल Holi 2025 Date गुरुवार, 13 मार्च 2025 को मनाया जाएगा। इस दिन Good Over Evil Victory का जश्न मनाने के लिए Holika Dahan 2025 किया जाएगा। लकड़ियों और उपलों से बनी Holika Bonfire Rituals को जलाकर Remove Negativity and Welcome Positivity की परंपरा के बाद अगले दिन 14 मार्च को Dhulandi 2025 Date यानी Festival of Colors 2025 मनाया जाएगा। Holi Greetings 2025 को और भी खुशगवार बनाने के लिए हम यहां कुछ Holi Wishes in Hindi और Holi Messages 2025 दे रहे हैं जिन्हें आप अपने Friends and Family Holi Wishes के रूप में भेजकर उन्हें Happy Holi 2025 Greetings दे सकते हैं। होली 2025 के लिए शुभकामनाएं और संदेश 1. रूठे यार को मनाना है, इस बार गिले शिकवे मिटाना है, तो आ गया होली का त्योहार, आओ गले मिलकर करें नई शुरुआत। होली 2025 की हार्दिक शुभकामनाएं! 2. रंगों की बौछार आपके और आपके परिवार के लिए ढेर सारी खुशियां,स्वास्थ्य और धन लेकर आए। आपको और आपके परिवार को छोटी होली की बहुत-बहुत बधाई! 3. होलिका दहन और छोटी होली की आपको और आपके परिवार को बहुत-बहुत शुभकामनाएं। 4. चली पिचकारी उड़ा है गुलाल, रंग बरसे नीले हरे लाल, मुबारक हो आपको छोटी होली का त्योहार। होली 2025 की ढेरों शुभकामनाएं! 5. चांद तारे छुप गए, बीत गया अंधकार, धूप सुनहरी देख कर, जाग गया संसार, दिन आपका गुजरे अच्छा; करते है दुआ हजार, भेज रहे हैं आपको इस संदेश के जरिए ढेर सारा प्यार 6. रूठा है कोई तो आज उसे मनाओ, आज तो सारी गलती भूल जाओ, लगा दो दोस्ती का रंग सबको यारों, आज होली मनाओ तो ऐसी मनाओ। होली 2025 की शुभकामनाएं! 7. लाल गुलाबी रंग गुलाल उड़ रहा, झूम रहा है सारा संसार, खुशियों की आई है बहार अपार। होली 2025 की ढेरों शुभकामनाएं! 8. स्वीट-स्वीट सी रहे आपकी बोली, खुशियां ही खुशियां हो आपकी झोली। मेरी तरफ से मुबारक हो आपको होली। होली 2025 की हार्दिक शुभकामनाएं! 9. होलिका की आग में जल जाएं सारे दुख-दर्द, खुशियों के रंग से महक उठे हर आंगन। होली 2025 की हार्दिक शुभकामनाएं! 10. जिस तरह होलिका हो गई थी जलकर राख, उसी तरह आपके जीवन के भी दूर हो जाएं सारे दुख-दर्द। होली 2025 की हार्दिक शुभकामनाएं! 12. होलिका की आग मन की सारी बुराइयों को जलाए, आपको होलिका दहन की हार्दिक शुभकामनाएं! 13. होली से एक दिन पहले सारे दुख-दर्द जला दो, नई खुशी और नई उमंग के साथ रंगों का पर्व मना लो। होली 2025 की हार्दिक शुभकामनाएं! 14. पिचकारी की धार, गुलाल की बौछार अपनों का प्यार, यही है होली का त्योहार आपको और आपके परिवार को होली की शुभकामनाएं! 15. अच्छाई की जीत हुई है, हार गई आज बुराई है, देखो होलिका दहन की शुभ घड़ी आज आई है। होली 2025 की हार्दिक शुभकामनाएं!

होली पर 3 अशुभ योग, रखें 3 सावधानियां और जानें कब खेलें होली

13 मार्च 2025 को Holika Dahan 2025 Date के दिन Bhadra Kaal Timing रात्रि 11 बजकर 28 मिनट तक रहेगा। इसके बाद ही Holika Dahan Shubh Muhurat के अनुसार होली जला सकते हैं। इसके बाद दूसरे दिन Holi 2025 Date रहेगी। इस दिन तीन अशुभ योग बन रहे हैं। पहला 14 मार्च 2025 शुक्रवार को शाम 06:58 बजे Surya Gochar 2025 में Brihaspati Meena Rashi में प्रवेश करेंगे। सूर्य के Meena Rashi Gochar को Meena Sankranti 2025 कहते हैं। Sankranti Kaal Shubh Ashubh को शुभ नहीं माना जाता है। दूसरा, सूर्य के Meena Rashi Transit से ही Kharmas Start Date 2025 यानी Malmas 2025 प्रारंभ हो जाएंगे और तीसरा, इस दिन सुबह 10:41 से प्रभावी माना जाएगा और इसका समापन दोपहर 02:18 बजे तक Chandra Grahan 2025 Date and Time का प्रभाव रहेगा। यानी यह तीन अशुभ योग बन रहे हैं- Meena Sankranti Effects, Kharmas Effects 2025, और Chandra Grahan Effects 2025। इसी के साथ ही Tithi Dispute in Hindu Calendar भी है। Purnima Tithi के बाद खेलते हैं Holi 2025: -Holika Dahan 2025 Date Purnima Night को होता है, जबकि Holi Festival 2025 Date Purnima Tithi के बाद Pratipada Tithi को खेली जाती है। -Delhi Time के अनुसार 13 मार्च को सुबह 10:35 पर Purnima Tithi Start Time होगी और अगले दिन यानी 14 मार्च को दोपहर 12:23 पर Purnima Tithi End Time होगी। -कुछ ज्योतिषियों के अनुसार 14 मार्च को दोपहर बाद Pratipada Tithi 2025 मानकर Holi Celebration 2025 खेल लेना चाहिए, जबकि कुछ का मानना है कि Udaya Tithi 2025 यानी 15 मार्च को Holi Kab Hai 2025 मनाना चाहिए। Holi Safety Tips 2025 – 3 सावधानियां: 1. Avoid Alcohol and Drugs on Holi: Holi 2025 Date and Time में 3 अशुभ योग हैं और Ugra Grah Effects भी हैं, इसलिए Tamasic Food और अत्यधिक Alcohol Consumption न करें। अपने Mind and Mental Health को काबू में रखें, अन्यथा Holi Accidents होने में देर नहीं लगती। Play Safe Holi और नशे से बचें, क्योंकि अधिक नशा आपके Health Effects on Holi को प्रभावित कर सकता है और कई बार Unfortunate Incidents on Holi का कारण बनता है। 2. Avoid Violence and Hooliganism on Holi: Holi Festival 2025 भाईचारे का पर्व है, इसलिए Holi Violence से दूर रहें। Celebrate Holi with Colors और Holi to Panchami Festival को मिलजुलकर मनाएं। यह और भी जरूरी हो जाता है जब Chandra Grahan 2025 Effects और Meena Sankranti 2025 Effects हों। ऐसे समय में Mind Restlessness on Holi हो सकता है, इसलिए संयम बनाए रखें। 3. Avoid Shubh and Manglik Work on Holi: Holi 2025 Shubh Ashubh Muhurat के अनुसार इस दिन किसी भी प्रकार का Shubh or Manglik Work न करें। विशेष रूप से New House Construction Muhurat 2025, Griha Pravesh Muhurat 2025, और New Business Start on Holi जैसे कार्यों को टाल देना चाहिए। कोई भी कार्य करते समय Holi Precautions का पालन करें।

होली के बाद रंगीन कपड़ों को घर में रखने से बचें, जानिए सही उपाय और कारण

what to do with holi clothes: होली रंगों का त्योहार है, और इस दिन हम सभी colors में सराबोर हो जाते हैं। इस festival में हर उम्र के लोग जीवन का तनाव भूल कर vibrant colors का आनंद लेते हैं। लेकिन अक्सर मन में सवाल आता है कि Holi celebration में जिन clothes को पहना गया था उनका क्या करना चाहिए। आइए आज आपकी इसी जिज्ञासा का उत्तर देते हैं। जिन clothes worn during Holi को पहन कर होली खेली है उनके लिए ज्योतिष में कुछ नियम हैं। आइए उन्हें विस्तार से आपको बताते हैं। होली खेले हुए कपड़ों का क्या करें? 🟡 Don't wear again: होली खेलने के बाद रंगों से सने कपड़ों को दोबारा नहीं पहनना चाहिए। ज्योतिष के अनुसार ये clothes नकारात्मक ऊर्जा लिए होते हैं, इसलिए Holi clothes को दोबारा धोकर नहीं पहनना चाहिए। 🟡 Donate them: होली खेले हुए कपड़ों को धोकर किसी जरूरतमंद को donate कर देना चाहिए। यह एक अच्छा तरीका है जिससे आप किसी की मदद भी कर सकते हैं। 🟡 Donate before evening: ज्योतिष के अनुसार होली खेले हुए कपड़ों को शाम होने से पहले ही donate कर देना चाहिए। दान करने से पहले कपड़ों को अच्छे से धोना चाहिए ताकि उनमें से पूरा color निकल जाए। इस प्रकार, Holi clothes, जिन्हें होली के दौरान पहना गया हो, को सही तरीके से नष्ट करना या दान करना शुभ माना जाता है और यह नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने का भी एक उपाय है।

'भद्रा' उपरांत करें होलिका-दहन, जानें मुहूर्त और होली की विशेष साधनाएं और अनुष्ठान

Holika Dahan 2025: इस वर्ष देश भर में रंगों का त्योहार Holi 2025 Date 13 March को मनाया जाएगा एवं 14 March Dhulandi 2025 खेला जाएगा। Holika Dahan 2025 प्रतिवर्ष की भांति Phalgun Shukla Purnima तिथि की रात्रि को होगा। Shastra According to Bhadra Kaal में Holika Dahan वर्जित माना जाता है। 13 मार्च को भद्राकाल रात्रि 11 बजकर 28 मिनट तक रहेगा। अत: भद्राकाल व्यतीत हो जाने के उपरांत अर्थात् रात्रि 11 बजकर 28 मिनट के उपरांत ही होलिका-दहन किया जा सकेगा। भद्राकाल में होलिका दहन करने से राजा को हानि व प्रजा को कष्ट होता है व राष्ट्र में विद्रोह एवं अशांति होती है। भद्राकाल में होलिका-दहन किया जाना शास्त्रानुसार निषिद्ध है। 13 मार्च को मृत्युलोक में है भद्रा का वास: इस वर्ष फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा को चन्द्रमा के सिंह राशि में स्थित होने से भद्रा का वास 'मृत्युलोक' में रहेगा। शास्त्रानुसार 'मृत्युलोक' की भद्रा सर्वाधिक हानिकारक व त्याज्य मानी जाती है। अत: इस वर्ष होलिका दहन भद्राकाल के व्यतीत होने के उपरांत रात्रि 11 बजकर 28 मिनट के पश्चात ही किया जाना श्रेयस्कर रहेगा। होली का धुआं यदि पूर्व दिशा की ओर जाए तो देश में सुख रहेगा, आग्नेय कोण की ओर जाए आगजनी, यदि दक्षिण दिशा की ओर जाए तो सत्ता-परिवर्तन होगा व अकाल की संभावना, नैऋत्य की ओर जाए कृषि की हानि हो, पश्चिम दिशा की ओर होली का धुआं जाने से राज्य में अकाल की संभावना होती है, वायव्य दिशा की ओर जाने से चक्रवात एवं आंधी तूफान की संभावना एवं उत्तर व ईशान दिशा की ओर होली का धुआं जाने से धन-धान्य व सुख-समृद्धि होती है। यदि होली का धुआं चारों दिशाओं में पृथक-पृथक जाए तो यह राष्ट्रसंकट का द्योतक होता है। होली पर करें विशेष साधनाएं: शास्त्रानुसार होलिका दहन प्रतिवर्ष फ़ाल्गुन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को किया जाता है। आमजन के लिए होली रंग, हर्ष व उल्लास का त्योहार है। इस दिन लोग परस्पर बैर-भाव एवं द्वेष को विस्मरण पुन: प्रेम के रंग में रंग जाते हैं। साधकों की दृष्टि से होली; साधना के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर होता है। होली की रात्रि साधकगण विशेष साधनाएं संपन्न कर लाभ प्राप्त करते हैं। होलिका दहन की रात्रि में किए गए अनुष्ठान से शीघ्र ही सिद्धियों की प्राप्ति होती है। 1. कामनापूर्ती के लिए अनुष्ठान: यह प्रयोग साधक की मनोवांछित कामनाओं की पूर्ति करने में सहायक होता है। दिन- होलिक दहन वाले दिन समय-प्रात: स्थान-हनुमान मंदिर सामग्री-तिल या सरसों का तेल, फ़ूल वाली लौंग, 5 दीपक अनुष्ठान- इस अनुष्ठान के लिए साधक किसी हनुमान मंदिर में जाकर हनुमान जी के विग्रह के समक्ष 5 दीपक में तेल, लौंग व बाती डालकर प्रज्वलित करे। दीप प्रज्वलन के पश्चात् साधक निम्न मंत्र की '108 माला' की संख्या में जप करें। इस जप-अनुष्ठान में मूंगे की माला प्रयुक्त करनी आवश्यक है। इस प्रयोग को पूर्ण श्रद्धाभाव व नियम से करने से साधक की मनोवांछित इच्छाओं की प्राप्ति की संभावना प्रबल होती है। मंत्र- 'ॐ सर्वतोभद्राय मनोवांछितं देहि ॐ फट्' 2. धनलाभ के लिए अनुष्ठान: यह प्रयोग साधक के आर्थिक संकट को दूर धनागम कराने में सहायक होता है। दिन- होलिक दहन वाली रात्रि समय-होलिका दहन के पश्चात् स्थान-घर का पूजा स्थान सामग्री-चौकी, गोमती चक्र, काले तिल, घी का पंचमुखा दीपक अनुष्ठान- इस अनुष्ठान के लिए साधक स्नान के उपरांत स्वच्छ वस्त्र धारण कर अपने घर के पूजा स्थान में बैठकर इस प्रयोग को संपन्न करे। सर्वप्रथम भगवान के विग्रह के समक्ष घी का पंचमुखा दीपक प्रज्वलित करे, तत्पश्चात् चौकी पर काले तिल की 5 ढेरियां बनाकर उन पर एक-एक 'गोमती चक्र' स्थापित करे। इस क्रिया के पश्चात् निम्न मंत्र की '108 माला' की संख्या में जप करें। इस जप-अनुष्ठान में स्फटिक की माला प्रयुक्त करनी आवश्यक है। इस प्रयोग को पूर्ण श्रद्धाभाव व नियम से करने से साधक को आर्थिक संकटों से मुक्ति प्राप्त होकर उसे धन लाभ होने की संभावना प्रबल होती है। मंत्र- 'ॐ ह्रीं श्रीं धनं देहि ॐ फट्' होलिका दहन मुहूर्त: शास्त्रानुसार होलिका भद्रा काल में किया जाना वर्जित है। भद्राकाल में होलिका दहन से राष्ट्र में अशांति व विद्रोह की संभावना प्रबल होती है। अत: होलिका दहन भद्रा रहित शुभ लग्न किया जाना श्रेयस्कर होता है। होलिका दहन के लिए निम्न समय का मुहूर्त सर्वश्रेष्ठ शुभ है। रात्रि- 11:30 से मध्यरात्रि 01:58 तक।

Holi 2025: 13 को होलिका दहन के बाद 14 को छोड़कर 15 मार्च को ही क्यों मनाई जाएगी रंगों की होली? जानिए कारण!

When is Holi 2025?: 7 मार्च 2025 से Holashtak 2025 प्रारंभ हो गए हैं। 13 मार्च को रात 10:44 बजे के बाद Holika Dahan होगा। मान्यता के अनुसार Holika Dahan 2025 के दूसरे दिन Holi Festival मनाया जाता है जिसे Dhulandi भी कहते हैं। यानी 14 March Holi 2025 खेली जानी चाहिए, परंतु कुछ ज्योतिषी कह रहे हैं कि Holi 2025 Date 14 नहीं, बल्कि 15 March Holi Celebration होगी। ऐसा क्यों? आइए जानते हैं Correct Date of Holi 2025। Phalgun Purnima Tithi for Holika Dahan - Holika Dahan on Purnima Night होता है। Delhi Time के अनुसार 13 March 2025 at 10:35 AM पर Purnima Tithi Start होगी और अगले दिन 14 March 2025 at 12:23 PM पर समाप्त होगी। Panchang Differences and Local Timing के अनुसार तिथि में 1 से 5 मिनट तक का अंतर हो सकता है। - कुछ ज्योतिषियों के अनुसार 14 March Afternoon में Pratipada Tithi मानकर Holi Playing सही है, जबकि कुछ का मानना है कि Udaya Tithi के अनुसार 15 March Holi Festival 2025 मनानी चाहिए। Why Some Regions Celebrate Holi on 15 March? - Udaya Tithi System के अनुसार Holika Dahan Purnima Tithi में और Holi Celebration Phalgun Krishna Paksha Pratipada में मनाने की परंपरा है। - Mithila Region Holi 2025 15 मार्च को मनाई जाएगी, जबकि बाकी क्षेत्रों में 14 March Holi Festival रहेगा। - Shastra and Astrological View के अनुसार Holika Dahan Purnima Night में होता है, इसलिए 13 March Night Holika Dahan के बाद 14 March Holi 2025 Date को Dhulandi Festival मनाना सही होगा, क्योंकि Holi Playing Festival रात का नहीं, बल्कि दिन का त्योहार है।

Holashtak 2025: इस एक उपाय से बदल जाएगी किस्मत, हनुमानजी देंगे अपार धन और समृद्धि!

Worship Hanuman on the Night of Holashtak: 7 मार्च से 14 मार्च 2025 तक Holashtak 2025 रहेगा। Holika Dahan के पहले 8 दिनों का Holashtak Period रहता है। ऐसे में Phalgun Krishna Paksha Ashtami to Purnima तक सभी Auspicious Activities पर प्रतिबंध रहता है। Holashtak Puja करने और Bhagwan Smaran Bhajan करने से Good Fortune की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि Holashtak Remedies करने से कई प्रकार के लाभ प्राप्त किए जा सकते हैं। जानिए इस दिन Bajrangbali Special Remedies कौन-से हैं जो आपको Wealth and Prosperity दिला सकते हैं। Hanuman Ji Puja Vidhi (Worship Rituals) 1. Holashtak Puja at Night: किसी भी रात Main Entrance पर Flour Panchmukhi Deepak जलाएं। यदि Tuesday or Saturday हो तो और भी शुभ होता है। ऐसा करने से Hanuman Ji Blessings प्राप्त होती है। इसी के साथ रात को Hanuman Ji Special Worship करें और उनसे Wish Fulfillment के लिए प्रार्थना करें। 2. Hanuman Chalisa and Hanuman Bahuk Path: Holashtak Period में Hanuman Chalisa and Hanuman Bahuk Recitation को 3 बार करने से Financial Stability मिलती है। Financial Crisis धीरे-धीरे समाप्त होने लगता है। 3. Shri Sukt and Mangal Rin Mochan Stotra Path: Holashtak Remedies for Debt Relief के रूप में Shri Sukt and Mangal Rin Mochan Stotra का पाठ करना चाहिए। इससे Financial Problems समाप्त होकर Debt-Free Life प्राप्त होती है। 4. Ram Raksha Stotra, Hanuman Chalisa, Vishnu Sahasranama Path: Family Prosperity, Happiness, and Peace के लिए Ram Raksha Stotra, Hanuman Chalisa, और Vishnu Sahasranama Chanting करें।

इस बार हनुमान जयंती पर बन रहे हैं शुभ संयोग, जानिए पूजा का शुभ मुहूर्त

Hanuman Jayanti 2025: वर्ष 2025 में Hanuman Jayanti 12 अप्रैल शनिवार के दिन रहेगी। उत्तर भारत में Chaitra Purnima के दिन Hanuman Jayanti Festival मनाते हैं। Andhra Pradesh तथा Telangana में Hanuman Janmotsav Chaitra Purnima से प्रारम्भ होकर Vaishakh Krishna Paksha के दौरान दसवें दिन समाप्त होती है। Tamil Nadu में Hanuman Jayanti Margashirsha Amavasya के दौरान मनाया जाता है। Karnataka में, Margashirsha Shukla Trayodashi को Hanuman Jayanti Celebration होती है। इस बार Hanuman Jayanti 2025 Date and Time पर कई Auspicious Yoga बन रहे हैं। जानिए क्या रहेगा Hanuman Jayanti Puja Muhurat। Purnima Tithi Start- 12 अप्रैल 2025 को तड़के 03:21 बजे Purnima Tithi End- 13 अप्रैल 2025 को प्रात: 05:51 बजे तक। Udaya Tithi के अनुसार 12 अप्रैल को Hanuman Jayanti 2025 रहेगी। Auspicious Combination: इस दिन Saturday रहेगा। इस दिन शाम 06:08 तक Hasta Nakshatra रहेगा। Hanuman Puja Shubh Muhurat Abhijit Muhurat: सुबह 11:56 से दोपहर 12:48 के बीच। Amrit Kaal: सुबह 11:23 से दोपहर 01:11 के बीच। Godhuli Muhurat: शाम 06:44 से 07:06 के बीच। Sandhya Puja Muhurat: शाम 06:45 से रात्रि 07:52 के बीच। Nishith Kaal Muhurat: मध्यरात्रि 11:59 से 12:44 के बीच। Morning Puja Muhurat: सुबह 07.35 से सुबह 09.10 तक। Evening Puja Muhurat: शाम 06.45 से रात 08.09 तक। Puja Vidhi (Rituals) -Early Morning Bath लेकर Vrat Sankalp लें और Puja Preparation करें। -Hanuman Idol or Picture को Red or Yellow Cloth बिछाकर लकड़ी के पाट पर रखें और आप खुद Kusha Aasan पर बैठें। -Hanuman Ji Idol Bath कराएं और यदि Hanuman Picture है तो उसे साफ करें। -Dhoop, Deepak जलाकर Hanuman Puja Start करें। -Hanuman Ji Tilak Rituals करें – Sindoor, Chandan, Gandh लगाएं और Flower Garland चढ़ाएं। -यदि Abhishek of Hanuman Ji करना चाहते हैं तो Panchamrit Abhishek करें (दूध, दही, घी, शहद और शक्कर)। -Panchopchar Puja के बाद Naivedya Offer करें। Salt, Chili, and Oil का प्रयोग Naivedya in Hanuman Puja में नहीं होता। -Jaggery and Gram Prasad जरूर अर्पित करें। Kesari Boondi Laddu, Besan Laddu, Churma, Malpua, or Malai Mishri का भोग लगाएं। -यदि कोई Wish Fulfillment चाहते हैं तो Paan Bidi अर्पित करें और Hanuman Ji Wish Rituals करें। -Hanuman Aarti करें और Naivedya Prasad को सभी में बांटें।

होली पर इन रोमांटिक शायरियों से चढ़ाएं प्यार का रंग, अपनों को भेजें ये खूबसूरत होली शायरी और संदेश

रूठों को मनाने के लिए Attitude और Funny होली शायरी, विशेस और व्हाट्सएप स्टेटस शायरी

Holi 2025 shayari in hindi: होली सिर्फ festival of colors का त्योहार नहीं, बल्कि दिलों को जोड़ने और खुशियों को फैलाने का भी दिन होता है। जब तक friends, family, and loved ones को Holi wishes न भेजें, तब तक इस त्योहार का मज़ा अधूरा लगता है। Holi special Shayari और best wishes भेजकर आप अपने अपनों के चेहरे पर मुस्कान ला सकते हैं। इस खास मौके पर हम आपके लिए लाए हैं 20 amazing Holi Shayari, जो love, friendship, fun, and attitude से भरी हुई हैं। चाहे आप WhatsApp status लगाना चाहें, Instagram caption ढूंढ रहे हों, या friends and family को Holi messages भेजना चाहें, ये शायरियां आपकी Holi celebration को और भी खास बना देंगी। रोमांटिक होली शायरी (Holi Shayari Love) 1. रंगों में घुली लड़की क्या गुल खिलाएगी, मेरे जैसे दीवाने को होली पर याद आएगी! 2. तेरा हुस्न भी गुलाल से कम नहीं, रंग लगाने की इजाजत दे तो खेलें होली! 3. होली में रंगों का मज़ा तब बढ़ जाता है, जब अपने सनम का रंग चेहरे पर लग जाता है! 4. तेरी यादों के रंग से भीग जाऊं इस बार, इस होली पर बस तेरा इंतजार! 5. पिचकारी की धार, गुलाल की बौछार, रंगों में रंगी दुनिया, हो प्यार ही प्यार! दोस्तों के लिए होली शायरी (Holi Shayari for Friends) 6. दोस्ती की होली खेलें इस बार, गुलाल की जगह बिखेरें प्यार! 7. रंग बरसे भीगे चुनरवाली, दोस्ती की होली में मस्ती निराली! 8. ना गिला करते हैं, ना शिकवा करते हैं, होली पर सिर्फ प्यार का इज़हार करते हैं! 9. दोस्ती की टोली, रंगों की होली, हंसी-खुशी में रंग जाए हर गली-गली! 10. बुरा ना मानो होली है, दोस्ती में थोड़ी मस्ती जरूरी है! एटीट्यूड वाली होली शायरी (Holi Attitude Shayari 2 Lines) 11. जो जलते हैं हमें देखकर, होली पर गुलाल भी उन्हीं के घर जाकर मलेंगे! 12. कहते हैं होली पर दुश्मनों को भी गले लगाना चाहिए, हम तो अपने दुश्मनों को पानी में डुबाकर रंग लगाएंगे! 13. हमारी होली की टोली सबसे निराली, रंग लगाने की रज़ामंदी नहीं, फिर भी लगाएंगे लाली! 14. रंग देंगे तुझे इस तरह कि पहचान ना सकेगा कोई, होली खेलोगे हमसे तो कुछ यादगार होगा! 15. किसी ने मुझसे पूछा, होली में कितने रंग भरोगे? मैंने कहा – जो रूठे हैं, उन्हें मनाने तक खेलेंगे! व्हाट्सएप स्टेटस होली शायरी (Holi Whatsapp Status Shayari) 16. रंगों का त्योहार है, खुशियों की बौछार है, गिले-शिकवे भूलकर आओ मिलकर खेलें होली इस बार! 17. गुलाल का रंग, गुजिया की मिठास, खुशी का खुमार और अपनों का साथ! 18. रंग लगाकर भूल जाएं सारे ग़म, होली है भाई, बस मस्त रहो हरदम! 19. खुशबू बनकर गुलों से उड़ा करते हैं, होली में रंगों की तरह बिखर जाते हैं! 20. होली में रंग आपका चेहरा बदल सकता है, लेकिन एक प्यारी मुस्कान आपके दिल को रंगीन बना सकती है!

होली के बाद रंगपंचमी कब है, क्या करते हैं इस दिन?

Rang Panchami 2025: Holi Festival के बाद Falgun Month की पंचमी तिथि के दिन Rang Panchami का पर्व मनाया जाता है। इस बार Rang Panchami 2025 का त्योहार 19 March 2025 Wednesday को मनाया जाएगा। Holi Celebration यानी Dhulendi Festival की तरह ही Rang Panchami Festival रंगों वाला त्योहार है। इस त्योहार को खासकर Madhya Pradesh और Chhattisgarh में ज्यादा मनाया जाता है, जबकि अन्य जगह Dhulendi Celebration की धूम रहती है। Rang Panchami Festival को Krishna Panchami तथा Dev Panchami के रूप में भी जाना जाता है। Panchami Tithi Start: 18 March 2025 को रात 10:09 बजे से। Panchami Tithi End: 20 March 2025 को मध्यरात्रि 12:36 बजे तक। उपरोक्त मान से 19 March 2025 को Panchami Tithi पूरे दिन और रात रहेगी। Puja Muhurat (Auspicious Time for Worship) Amrit Kaal: सुबह 10:57 से दोपहर 12:44 के बीच। रंगपंचमी पर क्या करते हैं? 1. Colors & Gulal: Dhulendi Festival और Rang Panchami Celebration पर रंग खेलने की परंपरा है। इस दिन लोग एक-दूसरे को Organic Colors और Gulal Powder लगाकर उत्सव मनाते हैं। 2. Thandai & Bhang: इस दिन कई लोग Toddy या Bhang Drink पीते हैं, जो उचित है या अनुचित, यह हम नहीं जानते। इसी दिन Thandai Drink पीने का भी रिवाज है। इसमें Milk, Saffron, Almonds, Pistachios, Cardamom, Sugar, Muskmelon Seeds, Poppy Seeds, Grapes आदि मिलाए जाते हैं। Kaanji Drink, Bhang, Thandai इस पर्व के विशेष पेय होते हैं। 3. Pakoras & Snacks: इस दिन Fritters & Bhajiyas खाने का प्रचलन है। शाम को स्नान आदि से निवृत्त होने के बाद Gilki Pakoras का मजा लिया जाता है। 4. Traditional Sweets & Dishes: अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग पकवान बनाए जाते हैं। जैसे Maharashtra में Puran Poli बनाई जाती है। इस दिन Gilki Pakoras, Dahi Vada, Gujiya, Rabri Kheer, Besan Sev, Aloo Puri आदि व्यंजन बनाए जाते हैं। घरों में बने पकवानों का भोग लगाया जाता है। इस आग में नई फसल की Wheat Crop & Gram को भी भूना जाता है। 5. Dance & Music Festival: इस दिन Folk Dance & Music का विशेष प्रचलन है। Tribal Communities में विशेष Traditional Dance & Singing Festival होता है। वहां के हाट बाजारों में युवक-युवतियां मिलकर ढोल की थाप और Flute Tunes पर नृत्य करते हैं। 6. Holi Songs & Folk Music: Holi Festival के दिन Traditional Holi Songs गाए जाते हैं। गांवों में लोग देर रात तक Holi Geet गाते और नाचते हैं। कुछ Regional Folk Songs सदियों से गाए जा रहे हैं। 7. Processions & Ger Parade: मालवा क्षेत्र में Holi & Rang Panchami Procession निकालने की परंपरा है, जिसे Ger Parade कहते हैं। इसमें Bands, Drums, Dance, Singing आदि होते हैं। 8. Worship & Rituals: Holika Dahan Puja में Holika, Prahlad & Lord Narasimha की पूजा होती है, जबकि Dhulendi Festival पर Lord Vishnu & Goddess Lakshmi Puja होती है। Rang Panchami Festival पर Lord Krishna & Radha Rani की पूजा की जाती है। खासतौर पर Barsana Temple में इस दिन विशेष पूजा और दर्शन लाभ मिलता है। मान्यता है कि इस दिन Astrology Remedies & Pooja से कुंडली के दोष समाप्त हो जाते हैं। 9. Animal Decoration & Worship: गांवों में Cattle Worship & Decoration की परंपरा है। Cows, Buffaloes & Bulls के शरीर पर Natural Tattoo Designs बनाए जाते हैं, उनके Horns Decorated किए जाते हैं, और गले में Bells बांधकर पूजा की जाती है। 10. Holi Milan Ceremony: समाज और परिवारों में Holi Milan Ceremony रखी जाती है। इस दिन सभी लोग एक-दूसरे से Warm Greetings & Hug Exchange करके Reconciliation करते हैं। इसमें Color Play, Sweets Distribution & Feasting होता है।

होली पर जलाएं आटे के 5 दीपक, कर्ज से करेंगे मुक्त

Holika Dahan Upay 2025: फाल्गुन मास की पूर्णिमा को Holika Dahan किया जाता है। इस बार 13 मार्च 2025, गुरुवार की रात को Holika Burning Ceremony होगी। इसके बाद 14 मार्च को Dhulandi Festival यानी रंगों वाली Holi Festival मनाई जाएगी। Holika Dahan 2025 Muhurat के अनुसार इस दिन Bhadra Kaal रहेगा, जबकि अगले दिन Lunar Eclipse 2025 रहेगा। Holika Dahan Rituals में कई तरह के Vedic Astrology Remedies किए जाते हैं, लेकिन यहां जानिए 5 सरल और अचूक उपाय। Flour Lamp Remedy for Financial Problems & Debt Removal: Light Five Flour Lamps: जीवन की हर बाधा दूर करने के लिए होली का यह उपाय Traditional Holi Remedies के रूप में गांवों में खूब आजमाया जाता है। अगर किसी शुभ कार्य में बड़ी बाधा आ रही हो या Severe Financial Crisis का सामना कर रहे हों, तो इसे Holi Night Remedy के रूप में आजमा सकते हैं। 📌आटे का Five-Faced Lamp Mustard Oil Lamp for Wealth से भरें। 📌इसमें Black Sesame Seeds, Betasha (Sugar Candy), Vermillion (Sindoor) और एक Copper Coin डालें। Holika Fire Ritual for Loan & Debt Relief: 📌Holika Fire Puja में इस दीप को जलाकर घर से Aarti Ritual की तरह उतारें। 📌फिर इसे किसी Deserted Crossroad (T-Junction Ritual) पर रखकर बिना पीछे देखे वापस आएं। 📌घर पहुंचकर Spiritual Cleansing के लिए हाथ-पैर धोकर प्रवेश करें। यदि आप Debt Problems से परेशान हैं, तो Holika Dahan Night Ritual के दौरान इस उपाय को करने से Loan Clearance & Financial Stability प्राप्त कर सकते हैं। ये Holika Dahan Puja Remedies, Holika Fire Rituals for Wealth, और Holi Festival Astrology Remedies जीवन में सुख-समृद्धि और सफलता लाने में अत्यधिक प्रभावी माने जाते हैं। आप चाहें तो होलिका दहन के दिन ये उपाय करें:- 1. Negative Energy Cleansing: Holika Dahan Fire Ritual के दौरान अपने शरीर का उबटन Holika Fire Sacrifice में अर्पित करने से Negative Energies दूर होती हैं। 2. Evil Eye Protection Remedies: 📌Home, Shop & Workplace Cleansing: Sea Salt Cleansing Ritual या Mustard Seeds (Rai) Cleansing करके Holika Fire Ritual में दहन करने से Evil Eye Protection होती है। 📌Cow Dung Cakes Ritual: अपने हाथ से Cow Dung Cakes बनाएं और बहनें इन्हें अपने भाई के ऊपर से 7 बार वार लें। फिर ये Sacred Fire Ritual में डालें, जिससे भाई की Evil Eye Protection होगी। 3. Career & Job Success Remedy: Burning Coconut in Holika Fire करने से Career Growth और Job Stability मिलती है। 4. Home Peace & Family Harmony: Barley Flour (Jau Atta) Fire Offering करने से Home Peace & Prosperity आती है। 5. Obstacle & Financial Problems Removal: 📌Gomti Chakra, Cowries & Betasha Offering से जीवन की सभी बाधाएँ समाप्त होती हैं। 📌11 Holika Parikrama करके सूखे Coconut Fire Sacrifice करने से Wealth & Prosperity मिलती है। 6. Holika Fire Offering for Wealth & Success: Coconut, Betel Leaf (Paan), and Areca Nut (Supari) Holika Puja में चढ़ाने से Success & Fortune Activation होती है। 7. Rahu Dosha Remedies: Rahu Planet Remedies on Holi के अनुसार, एक Coconut Shell (Nariyal Ka Gola) में Flaxseed Oil (Alsi Ka Tel) और थोड़ा Jaggery (Gud) डालकर इसे Holika Fire Sacrifice में अर्पित करने से Rahu Dosha Nivaran होता है। 8. Wealth & Financial Growth: Holika Fire Puja में हर परिवार के सदस्य को Ghee-Soaked Cloves (2), Betasha (1), and Betel Leaf (1) Fire Offering करना चाहिए। 9. Fear & Anxiety Removal: Unknown Fear Removal Mantra: 📌Dry Coconut with Jata, Black Sesame, and Yellow Mustard Fire Ritual करें। 📌इसे Holika Fire Sacrifice में डालने से Spiritual Protection & Anxiety Removal मिलती है। 10. Poverty & Debt Clearance: Black Cloth Money Spell: 📌एक Black Cloth में Black Sesame (Kale Til), 7 Cloves (Laung), 3 Areca Nuts (Supari), 50gm Mustard Seeds (Sarson), और Black Soil रखकर Holika Fire Cleansing Ritual करें। 📌इससे Financial Problems, Debt Clearance, और Poverty Removal संभव होता है। इन Holika Dahan Puja Remedies, Holika Fire Astrology Remedies, और Holi Festival Rituals का पालन करने से Wealth, Prosperity, Career, Health, और Protection from Evil Energies संभव है।

काशी में क्यों खेली जाती है श्मशान की राख से होली, मसाने की होली में रंग की जगह क्या है चिता की भस्म का भेद

Masane Ki Holi 2025: Kashi’s Unique Festival of Ashes Sanatan Dharma में Holi Festival एक महत्वपूर्ण उत्सव है। पूरे देश में यह त्योहार अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है। Braj में Laddu Holi और Lathmar Holi का आकर्षण होता है। साथ ही, भारत में Holi रंग और Gulal से खेली जाती है। लेकिन अगर हम Kashi's Holi की बात करें, तो यहां Holi पर एक अनोखा ही दृश्य देखने को मिलता है, जब Shamshan Ki Raksh (Cremation Ashes) से Lord Shiva के संग Holi खेली जाती है। Masane Ki Holi Date & Rituals Kashi में Falgun Month के Shukla Paksha Ekadashi के अगले दिन हर साल Masane Ki Holi Festival का आयोजन होता है। इस अनोखी Holi Celebration में हजारों लोग शामिल होते हैं। इस दिन Chita Bhasm (Cremation Ashes) से Holi खेली जाती है और Devon Ke Dev Mahadev की विशेष Puja Archana की जाती है। आइए जानते हैं कि Kashi में Chita Bhasm Se Holi खेलने की परंपरा क्यों है। Why is Holi Played with Cremation Ashes in Kashi? Masane Ki Holi को Chita Bhasm Holi के नाम से भी जाना जाता है। यह Holi Celebration Lord Shiva को समर्पित है और इसे Victory Over Death का प्रतीक माना जाता है। Religious Significance के अनुसार, जब Lord Shiva ने Yamraj (God of Death) को हराया, तब उन्होंने Cremation Ashes से Holi खेली थी। तभी से इस परंपरा को यादगार बनाने के लिए हर साल Masane Ki Holi खेली जाती है। यह Holi Festival दो दिनों तक मनाया जाता है: 1. पहले दिन लोग Chita Ki Raksh (Cremation Ashes) को एकत्रित करते हैं। 2. दूसरे दिन, Mahashmashan Manikarnika Ghat पर Shamshan Ki Holi खेली जाती है। How is Masane Ki Holi Celebrated? Chita Bhasm Se Holi खेलने का यह अद्भुत दृश्य केवल Kashi में ही देखने को मिलता है। Masan Ki Gali में लोग Har Har Mahadev के जयकारों के साथ Victory Over Death का उत्सव मनाते हैं। Falgun Shukla Dwadashi को Lord Shiva, अपने Aghor Roop में Kashi’s Mahashmashan Manikarnika Ghat पर जलती Chita के बीच Cremation Ashes Holi खेलते हैं। यह उत्सव ऐसा होता है कि एक तरफ Cremation Fire जलती है और दूसरी तरफ Devotional Songs, Bhajans, and Music के बीच Holi Festival मनाया जाता है। Moksha at Manikarnika Ghat मान्यता है कि Death in Kashi को Moksha (Salvation) प्राप्त होती है। Manikarnika Ghat पर जिनका Antim Sanskar (Last Rites) होता है, उन्हें Lord Shiva स्वयं Mukti (Liberation) प्रदान करते हैं। Hindu Beliefs के अनुसार, जब कोई Shav (Dead Body) Mahashmashan Manikarnika Ghat पर पहुंचता है, तो Lord Shiva अपने आराध्य Lord Ram के Feet Dust रूपी Chita Bhasm को अपने माथे पर लगाकर Maryada Purushottam को सम्मान अर्पित करते हैं।

होलाष्टक का क्या है महत्व, क्यों नहीं करते हैं कोई मांगलिक कार्य?

Holashtak 2025: Holika Dahan से पूर्व के आठ दिनों की अवधि को कहते हैं। इस अवधि में समस्त Auspicious and Mangalik Works का निषेध होता है। वर्ष 2025 में Holashtak Falgun Shukla Paksha Ashtami Tithi दिनांक 07 मार्च 2025 से प्रारंभ होगा एवं Falgun Purnima दिनांक 13 मार्च 2025 को यह समाप्त होगा। इन 8 दिनों का क्या है महत्व और क्यों नहीं करते हैं कोई Mangalik Karya, जानिए। Bhakt Prahlad's Ordeal Bhakt Prahlad के पिता Hiranyakashipu ने Prahlad's Devotion को भंग करने और उनका ध्यान अपनी ओर करने के लिए लगातार 8 दिनों तक तमाम तरह की यातनाएं और कष्ट दिए थे। इसलिए कहा जाता है कि Holashtak के इन 8 दिनों में किसी भी तरह का कोई Auspicious Activity नहीं करना चाहिए। यह 8 दिन वहीं Holashtak Period के दिन माने जाते हैं। Holika Dahan के बाद ही जब Prahlad जीवित बच जाते हैं, तो उनकी जान बच जाने की खुशी में ही दूसरे दिन Festival of Colors - Holi or Dhulandi मनाई जाती है। यह Victory of Good over Evil का त्योहार है। Kama Dev Incineration (Destruction of Desire) राजा Himalaya's Daughter Parvati चाहती थीं कि उनका विवाह Lord Shiva से हो जाए परंतु Shiva जी अपनी Meditation में लीन थे। तब Kama Dev पार्वती की सहायता के लिए आए। उन्होंने Love Arrow चलाया और Lord Shiva's Meditation भंग हो गई। Shiva जी को बहुत क्रोध आया और उन्होंने अपनी Third Eye खोल दी। Kama Dev's Body उनके क्रोध की ज्वाला में Burned to Ashes हो गया। जिस दिन Lord Shiva ने Kama Dev को भस्म किया था वह दिन Falgun Shukla Ashtami थी। तभी से Holashtak Rituals की प्रथा आरंभ हुई। जब Kama Dev's Wife Rati Lord Shiva से उन्हें पुनर्जीवित करने की प्रार्थना करती हैं। Rati's Devotion को देखकर Shiva जी इस दिन Kama Dev को Second Birth में उन्हें फिर से Rati Milan का वचन दे देते हैं। Kama Dev बाद में Lord Krishna's Son Pradyumna के रूप में जन्म लेते हैं। फिर Lord Shiva ने Goddess Parvati को देखा। Parvati's Worship सफल हुई और Shiva जी ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया। इसलिए पुराने समय से Holi Fire में Symbolic Destruction of Lustful Desires कर अपने True Love's Victory का उत्सव मनाया जाता है। Eight Planets Become Aggressive (Astrological Significance of Holashtak) Astrology Experts के अनुसार Ashtami को Moon (Chandra), Navami Tithi को Sun (Surya), Dashami को Saturn (Shani), Ekadashi को Venus (Shukra) और Dwadashi को Jupiter (Guru), Trayodashi को Mercury (Budh), Chaturdashi को Mars (Mangal) तथा Purnima को Rahu उग्र स्वभाव के हो जाते हैं। इन Planets' Weakness से मनुष्य की Decision-Making Ability क्षीण हो जाती है। इस कारण मनुष्य अपने Natural Behavior के विपरीत फैसले कर लेता है। यही कारण है कि व्यक्ति के मन को Colors and Festivities की ओर मोड़ दिया जाता है। इसलिए Auspicious Works वर्जित माने गए हैं। Holashtak's Eight Days को Fasting (Vrat), Worship (Puja) and Havan की दृष्टि से अच्छा समय माना गया है। Natural Reasons (Scientific Reasons for Holashtak) Astrological Beliefs के अनुसार इस दिन से Seasonal Change होता है, Sunlight Intensity बढ़ जाती है और साथ ही Cold Winds भी चलती हैं। ऐसे में व्यक्ति Health Issues की चपेट में आ सकता है और मन की स्थिति भी Depression Prone रहती है। इसीलिए Mangalik Activities वर्जित मानी जाती हैं। हालांकि Holashtak's Eight Days को Fasting (Vrat), Worship (Puja) and Havan की दृष्टि से Auspicious Period माना गया है।

चैत्र नवरात्रि 2025 का प्रारंभ कब होगा, घट स्थापना का क्या है मुहूर्त?

Chaitra Navratri 2025: Holi के बाद Gudi Padwa Festival का पर्व मनाया जाता है और तभी से Chaitra Navratri का 9 दिवसीय पर्व प्रारंभ होता है। Chaitra Month की Navratri 30 मार्च 2025 रविवार से प्रारंभ होकर 6 अप्रैल को Rama Navami रहेगी। 7 अप्रैल को इसका समापन होगा। 4 अप्रैल को Saptami और 5 अप्रैल 2025 को Durga Ashtami रहेगी। कई घरों में Maha Ashtami के दिन ही Parana हो जाता है जबकि कई घरों में Maha Navami को Parana होगा। Ghatasthapana Muhurat - प्रात: 06:13 से सुबह 10:22 के बीच। Ghatasthapana Abhijit Muhurat - दोपहर 12:01 से 12:50 के बीच। Pratipada Tithi Start - 29 मार्च 2025 को शाम 04:27 बजे से। Pratipada Tithi End - 30 मार्च 2025 को 12:49 बजे तक। Udayatithi के अनुसार Chaitra Navratri Pratipada 30 मार्च को रहेगी। वर्ष में चार Navratri Festivals होती हैं, उनमें से Chaitra Navratri पहली Navratri है। Chaitra Month Hindu Calendar का प्रथम माह होता है। इन दौरान Kuldevi Worship का महत्व रहता है जबकि Ashwin Month में Sharadiya Navratri के दौरान उत्सव और आराधना का पर्व मनाया जाता है। इसके अलावा 2 Gupt Navratri होती हैं। Chaitra Navratri Puja या अधिकांश Rituals Sharadiya Navratri की तरह ही होते हैं। Sharadiya Navratri में Ghatasthapana Muhurat एवं Sandhi Puja Muhurat महत्वपूर्ण माना गया है जबकि Chaitra Navratri में भी इन Auspicious Timings की आवश्यकता होती है। Kanya Pujan Vidhi (Kanya Puja Rituals): - Navratri Navami पर Havan (Yagna) के बाद Kanya Pujan का खास महत्व रहता है। - धार्मिक मान्यता के अनुसार 2 से 10 वर्ष की आयु की कन्या Kumari Puja के लिए उपयुक्त होती हैं। - सभी कन्याओं को Kusha Mat पर या लकड़ी के Wooden Seat पर बैठाकर उनके पैरों को Water या Milk से धोएं। - फिर पैर धोने के बाद उनके पैरों में Mahavar लगाकर उनका Shringar (Adorn) करें और फिर उनके माथे पर Akshat (Rice Grains), Flowers और Kumkum Tilak लगाकर उनकी Puja and Aarti करें। - इसके बाद सभी कन्याओं को Sacred Food Offering कराएं। साथ ही एक Languriya (Small Boy) को Kheer, Puri, Prasad, Halwa, Chana Sabzi आदि खिलाएं। - भोजन कराने के बाद उन्हें Dakshina (Offering Money) दें, उन्हें Handkerchief, Chunri, Fruits, Toys देकर उनका Charan Sparsh (Feet Touching Ritual) करके उन्हें खुशी-खुशी विदा करें।

फाल्गुन अमावस्या पर जानें महत्व, दान सामग्री, उपाय और इस दिन क्या न करें?

What to do on Falgun Amavasya: फाल्गुन माह में आने वाली Amavasya in Hindu calendar को 'Falgun Amavasya' कहा जाता है। Significance of Amavasya हिन्दू धर्म में विशेष महत्व रखती है। यह तिथि Pitru Puja and Tarpan के लिए समर्पित होती है। Falgun Amavasya 2025 पितरों को प्रसन्न करने और Pitru Dosh Nivaran के लिए बेहद अहम होती है। इस बार Amavasya date 2025 फाल्गुन माह में 27 जनवरी को पड़ रही है। Falgun Amavasya Significance Falgun Amavasya importance के दिन holy river bath on Amavasya और दान करने से बहुत पुण्य मिलता है। Tarpan and Pind Daan on Amavasya करने से पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है और उनका आशीर्वाद मिलता है। Pitru Dosha remedies on Amavasya के लिए इस दिन ancestral rituals करना शुभ माना जाता है। पितरों के आशीर्वाद से घर में peace and prosperity आती है। Charity on Amavasya का भी विशेष महत्व बताया गया है। मान्यता है कि इस दिन donating food and clothes करने से financial problems solutions मिलते हैं। What to Donate on Falgun Amavasya? • Grains donation on Amavasya • Clothes donation for good karma • Sesame seeds (Til) donation for ancestors • Blankets donation for needy • Bed donation for peace and prosperity • Oil donation for Pitru Shanti What Not to Do on Falgun Amavasya? • इस दिन avoid eating non-veg on Amavasya। • इस दिन avoid alcohol on Amavasya। • इस दिन do not harm animals। 5 Powerful Remedies for Falgun Amavasya: 1. Pitru Tarpan for ancestral blessings: इस दिन ancestral offerings on Amavasya करने से पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है। 2. Charity and donation for good karma: Helping the poor on Amavasya से पुण्य फल की प्राप्ति होती है। 3. Worship of Peepal tree for Pitru Dosh Nivaran: Peepal tree puja करने से ancestral curse removal होता है। 4. Kaal Sarp Dosh remedies on Amavasya: Kaal Sarp Yog Puja करना इस दिन शुभ माना जाता है। 5. Hanuman Puja for problem-solving: Lord Hanuman worship on Amavasya से जीवन की सभी परेशानियां दूर होती हैं।

भारत के इन शहरों में मनाई जाती है अनोखी होली, दुनियाभर से उमड़ते हैं पर्यटक, जानिए क्या हैं परम्पराएं

Holi 2025: भारत में Holi festival सिर्फ एक त्यौहार नहीं है बल्कि यह एक जज्बा है। Holi in India एक ऐसा त्यौहार है जो सारी ऊंच-नीच और भेदभाव को मिटाकर festival of colors के रूप में एकता का संदेश देती है। इसीलिए हमारे देश में celebration of Holi के लिए एक अलग जोश और उमंग देखने को मिलता है। वैसे तो Holi celebrations in India पूरे देश में उत्साह और उमंग के साथ मनाए जाते हैं। लेकिन यदि आप इस बार best places to celebrate Holi in India में कुछ अलग और नया अनुभव करना चाहते हैं, तो आज इस आलेख में हम आपको बताएंगे भारत के वे शहर जहां की Holi festival in India विश्व प्रसिद्ध है। Lathmar Holi Barsana and Nandgaon Holi लठमार की खास परंपरा के साथ पूरी दुनिया में अलग पहचान रखती है। यहां की Holi celebrations in Vrindavan का इतिहास हमारी परंपरा और संस्कृति से जुड़ा है। मान्यता है कि जब Lord Krishna Holi celebrations के दौरान नंदगांव से अपने ग्वाल मित्रों के साथ बरसाना आए, तो वे Radha Rani Holi और गोपियों के साथ होली खेलने लगे। इससे तंग आकर Radha Rani and Gopis ने श्री कृष्ण और ग्वालों पर लट्ठ लेकर दौड़ा। तभी से Lathmar Holi in Barsana की परंपरा चली आ रही है। Laddu Holi Laddu Holi in Barsana भी सिर्फ बरसाना में ही देखने को मिलती है। कहा जाता है कि एक बार जब Radha Rani Holi festival के लिए नंदगांव गईं, तो नंदबाबा ने पुरोहितों को Holi invitation के रूप में भेजा। वृषभानु जी ने पुरोहितों का सत्कार किया और उन्हें Laddu Holi tradition के रूप में लड्डू खिलाए। लेकिन गोपियों ने शर्त में पुरोहितों के गालों पर गुलाल मल दिया। उस समय पुरोहितों के पास Holi sweets - laddu थे, तो उन्होंने गोपियों पर laddu throwing Holi की शुरुआत कर दी। Hampi Holi अगर आप historical Holi celebration in India का त्योहार ऐतिहासिक धरोहरों के बीच मनाना चाहते हैं तो आपको Holi in Hampi जाना चाहिए। Hampi Holi festival में आप भक्ति और रंगों के साथ हमारी UNESCO Heritage Site Holi का भी आनंद ले सकेंगे। यही खासियत Holi celebrations in South India को विशेष बनाती है। Traditional Holi songs और folk dance during Holi इस त्योहार की मौज-मस्ती को दोगुना कर देते हैं। यहां Tungabhadra river holy dip लेने की परंपरा भी है, जो sacred river in South India मानी जाती है। Musical and Baithaki Holi अगर आप musical Holi in India का अनुभव लेना चाहते हैं, तो आपके लिए Kumaon Holi in Uttarakhand सबसे अनुकूल है। यहां Kumaoni Holi festival केवल रंगों तक सीमित नहीं होता बल्कि Indian classical music Holi और भक्ति के रस से भरा होता है। Kumaon Holi celebration में पारंपरिक Holi ragas and folk songs सुनने को मिलते हैं। यहां होली तीन प्रकार से मनाई जाती है – Baithaki Holi, Khari Holi, और Mahila Holi festival। Shigmotsav - Goa Holi Festival Goa Holi festival 14 दिनों तक चलता है जिसे Shigmotsav or Shigmo festival in Goa कहा जाता है। यहां Holi carnival in Goa हर छोटे-बड़े गांव और शहर में ढोल और संगीत के साथ पारंपरिक folk dance and Holi parades के रूप में मनाया जाता है। इस दौरान Holi floats and temple rituals का आयोजन किया जाता है, जिससे Holi tourism in Goa को बढ़ावा मिलता है।

महाशिवरात्रि की कथा

Mahashivratri Vrat Katha: महाशिवरात्रि व्रत की कथा के अनुसार पूर्व काल में Chitrabhanu नामक एक Hunter था, जो Animals Hunting करके अपने Family का पालन करता था। वह एक Moneylender का कर्जदार था, लेकिन समय पर Debt Payment न कर सका। Angry Moneylender ने शिकारी को Shivmath में बंद कर दिया। संयोग से उस दिन Mahashivratri थी, और शिकारी ने ध्यानमग्न होकर Shivratri Katha सुनी। शाम होते ही साहूकार ने उसे अपने पास बुलाया और ऋण चुकाने के विषय में बात की। शिकारी अगले दिन सारा ऋण लौटा देने का वचन देकर बंधन से छूट गया। अपनी दिनचर्या की भांति वह जंगल में शिकार के लिए निकला। लेकिन दिनभर बंदी गृह में रहने के कारण भूख-प्यास से व्याकुल था। शिकार खोजता हुआ वह बहुत दूर निकल गया। जब अंधकार हो गया तो उसने विचार किया कि रात जंगल में ही बितानी पड़ेगी। वह वन में एक तालाब के किनारे एक बेल के पेड़ पर चढ़ कर रात बीतने का इंतजार करने लगा। बिल्व वृक्ष के नीचे शिवलिंग था जो बिल्वपत्रों से ढंका हुआ था। शिकारी को उसका पता न चला। पड़ाव बनाते समय उसने जो टहनियां तोड़ीं, वे संयोग से शिवलिंग पर गिरती चली गई। इस प्रकार दिनभर भूखे-प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बिल्वपत्र भी चढ़ गए। एक पहर रात्रि बीत जाने पर एक गर्भिणी हिरणी तालाब पर पानी पीने पहुंची। शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर ज्यों ही प्रत्यंचा खींची, हिरणी बोली, 'मैं गर्भिणी हूं। शीघ्र ही प्रसव करूंगी। तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे, जो ठीक नहीं है। मैं बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत हो जाऊंगी, तब मार लेना।' शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी और हिरणी जंगली झाड़ियों में लुप्त हो गई। प्रत्यंचा चढ़ाने तथा ढीली करने के वक्त कुछ बिल्व पत्र अनायास ही टूट कर शिवलिंग पर गिर गए। इस प्रकार उससे अनजाने में ही प्रथम प्रहर का पूजन भी सम्पन्न हो गया। कुछ ही देर बाद एक और हिरणी उधर से निकली। शिकारी की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। समीप आने पर उसने धनुष पर बाण चढ़ाया। तब उसे देख हिरणी ने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया, 'हे शिकारी! मैं थोड़ी देर पहले ऋतु से निवृत्त हुई हूं। कामातुर विरहिणी हूं। अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूं। मैं अपने पति से मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊंगी।' शिकारी ने उसे भी जाने दिया। दो बार शिकार को खोकर उसका माथा ठनका। वह चिंता में पड़ गया। रात्रि का आखिरी पहर बीत रहा था। इस बार भी धनुष से लग कर कुछ बेलपत्र शिवलिंग पर जा गिरे तथा दूसरे प्रहर की पूजन भी सम्पन्न हो गई। तभी एक अन्य हिरणी अपने बच्चों के साथ उधर से निकली। शिकारी के लिए यह स्वर्णिम अवसर था। उसने धनुष पर तीर चढ़ाने में देर नहीं लगाई। वह तीर छोड़ने ही वाला था कि हिरणी बोली, 'हे शिकारी!' मैं इन बच्चों को इनके पिता के हवाले करके लौट आऊंगी। इस समय मुझे मत मारो। शिकारी हंसा और बोला, सामने आए शिकार को छोड़ दूं, मैं ऐसा मूर्ख नहीं। इससे पहले मैं दो बार अपना शिकार खो चुका हूं। मेरे बच्चे भूख-प्यास से व्यग्र हो रहे होंगे। उत्तर में हिरणी ने फिर कहा, जैसे तुम्हें अपने बच्चों की ममता सता रही है, ठीक वैसे ही मुझे भी। हे शिकारी! मेरा विश्वास करों, मैं इन्हें इनके पिता के पास छोड़कर तुरंत लौटने की प्रतिज्ञा करती हूं। हिरणी का दीन स्वर सुनकर शिकारी को उस पर दया आ गई। उसने उस मृगी को भी जाने दिया। शिकार के अभाव में तथा भूख-प्यास से व्याकुल शिकारी अनजाने में ही बेल-वृक्ष पर बैठा बेलपत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंकता जा रहा था। पौ फटने को हुई तो एक हृष्ट-पुष्ट मृग उसी रास्ते पर आया। शिकारी ने सोच लिया कि इसका शिकार वह अवश्य करेगा। शिकारी की तनी प्रत्यंचा देखकर मृग विनीत स्वर में बोला, हे शिकारी! यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन मृगियों तथा छोटे-छोटे बच्चों को मार डाला है, तो मुझे भी मारने में विलंब न करो, ताकि मुझे उनके वियोग में एक क्षण भी दुःख न सहना पड़े। मैं उन हिरणियों का पति हूं। यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ क्षण का जीवन देने की कृपा करो। मैं उनसे मिलकर तुम्हारे समक्ष उपस्थित हो जाऊंगा। मृग की बात सुनते ही शिकारी के सामने पूरी रात का घटनाचक्र घूम गया, उसने सारी कथा मृग को सुना दी। तब मृग ने कहा, 'मेरी तीनों पत्नियां जिस प्रकार प्रतिज्ञाबद्ध होकर गई हैं, मेरी मृत्यु से अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएंगी। अतः जैसे तुमने उन्हें विश्वासपात्र मानकर छोड़ा है, वैसे ही मुझे भी जाने दो। मैं उन सबके साथ तुम्हारे सामने शीघ्र ही उपस्थित होता हूं।' शिकारी ने उसे भी जाने दिया। इस प्रकार प्रात: हो आई। उपवास, रात्रि-जागरण तथा शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ने से अनजाने में ही पर शिवरात्रि की पूजा पूर्ण हो गई। पर अनजाने में ही की हुई पूजन का परिणाम उसे तत्काल मिला। शिकारी का हिंसक हृदय निर्मल हो गया। उसमें भगवद्शक्ति का वास हो गया। थोड़ी ही देर बाद वह मृग सपरिवार शिकारी के समक्ष उपस्थित हो गया, ताकि वह उनका शिकार कर सके। किंतु जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता एवं सामूहिक प्रेमभावना देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई। उसने मृग परिवार को जीवनदान दे दिया। अनजाने में शिवरात्रि के व्रत का पालन करने पर भी शिकारी को मोक्ष की प्राप्ति हुई। जब मृत्यु काल में यमदूत उसके जीव को ले जाने आए तो शिवगणों ने उन्हें वापस भेज दिया तथा शिकारी को शिवलोक ले गए। शिव जी की कृपा से ही अपने इस जन्म में राजा चित्रभानु अपने पिछले जन्म को याद रख पाए तथा महाशिवरात्रि के महत्व को जान कर उसका अगले जन्म में भी पालन कर पाए।

Mahashivratri 2025 : महाशिवरात्रि पर आज रात कब खोले जाएंगे महाकाल मंदिर के पट?

Ujjain Mahashivratri 2025: 26 फरवरी 2025 बुधवार के दिन Ujjain Mahakaleshwar Jyotirlinga के दर्शन के लिए 25 फरवरी Midnight को ही Temple Gates खोल दिए जाएंगे। इस बार रात 2:30 AM पर Mahakal Temple Gates Opening Time रहेगा और बताया जा रहा है कि करीब 44 Hours तक Baba Mahakal Darshan संभव होगा। इस बार Trigrahi Yoga में Maha Shivratri Festival मनाया जा रहा है। Mahakal Temple के पट खुलने से बंद होने तक के Anushthan: 1. 17 फरवरी को 12 Jyotirlingas में एकमात्र Shri Mahakaleshwar Jyotirlinga Temple में Shiv Navratri Festival Falgun Krishna Panchami से शुरू हुआ। 2. 26 फरवरी Maha Shivratri Night में Lord Mahakaleshwar Abhishek, Bhasma Aarti और Panchamrit Puja होगी। 3. 27 फरवरी को विशेष Saptadhanya Offering की जाएगी और Lord Mahakal का Shringar होगा। 4. Mahashivratri Bhasma Aarti हेतु Shri Mahakaleshwar Mandir Gates प्रात: 2:30 AM पर खुलेंगे। 5. Bhasma Aarti Timing: 7:30 AM - 8:15 AM Dadyodak Aarti, 10:30 AM - 11:15 AM Bhog Aarti, और 12 PM से Ujjain Tehsil Special Puja Abhishek होगा। 6. 4 PM: Holkar and Scindia State Puja, इसके बाद Panchamrit Abhishek और Lord Mahakal को Sweet Warm Milk Offering। 7. 11 PM से 27 फरवरी 6 AM तक Maha Abhishek Puja होगी। 8. Lord Mahakaleshwar Chandra Mukut, Tripund, और अन्य Ornaments से Decorate किए जाएंगे। 9. Silver Coin & Bilva Patra Offering Lord Mahakal पर न्योछावर किए जाएंगे। 10. Sehra Aarti होगी और Lord Mahakal को Different Sweets, Fruits & Panch Meva Bhog अर्पित किया जाएगा। 11. 27 फरवरी 2025 को प्रात: Sehra Darshan के बाद साल में एक बार होने वाली 12 PM Bhasma Aarti होगी। 12. Bhasma Aarti के बाद Bhog Aarti और Shiv Navratri Parana संपन्न होगा। 13. 27 फरवरी Evening में Puja, Sandhya Aarti & Shayan Aarti के बाद Shri Mahakaleshwar Mandir Gates Closing Time होगा।

महाशिवरात्रि 2025: जानिए शिवलिंग पर जल चढ़ाने की सही विधि और रुद्राभिषेक का महत्व

26 फरवरी 2025 बुधवार के दिन Trigrahi Yoga में Maha Shivratri Festival मनाया जा रहा है। इस दिन Shivling Jalabhishek, Panchamrit Abhishek और Rudrabhishek किया जाता है। इस Abhishek से समस्त तरह के Sins का नाश होकर जातक Longevity प्राप्त करता है और इसी के साथ ही उसके जीवन में Happiness, Peace और Prosperity आती है। Shivling पर प्रात: 5 से 11 AM के बीच में Water Offering विशेष रूप से फलदायी होगा। इसके बाद शाम को Pradosh Kaal में भी जल चढ़ा सकते हैं। Maha Shivratri पर Shivling पर Water चढ़ाने का सही तरीका 1. Shivling Water Offering के लिए Copper, Silver या Brass Vessel का उपयोग करें, Steel का नहीं। 2. Shivling पर Water Offering करते समय आपका मुंह North Direction की ओर होना चाहिए, East Direction की ओर नहीं, क्योंकि East Direction Shiva का Main Entrance माना जाता है। 3. Shivling पर धीरे-धीरे Water अर्पित करना चाहिए क्योंकि Lord Shiva को Dharanjali पसंद है। एक Small Stream के रूप में जल चढ़ाया जाना चाहिए। 4. Lord Shiva Milk Offering के लिए Copper Vessel का उपयोग न करें, Brass Vessel का उपयोग करें। 5. हमेशा Sitting Position में ही Shivling पर Water अर्पित करें, Standing Position में नहीं। 6. Shivling पर जल अर्पित करते समय "Om Namah Shivaya" Panchakshari Mantra का जाप करें। 7. Shivling पर जल हमेशा Right Hand से ही चढ़ाएं और Left Hand को Right Hand से स्पर्श करें। 8. Shivling पर कभी भी Conch (Shankh) से Water न चढ़ाएं। 9. Shivling पर Water कभी भी One Hand से अर्पित न करें। 10. जल चढ़ाने के बाद Shivling पर Bilva Patra रखें। Bilva Patra रखने के बाद ही Shivling की Half Circumambulation (Ardh Parikrama) करें। Rudrabhishek Puja की Simple Vidhi: Puja Samagri: Bhang, Dhatura, Bilva Patra, Milk, Curd, Ghee, Honey, Sugar, Pomegranate, Seasonal Fruits, Bhasm, Chandan, White Flowers, Water Vessel, Ganga Jal, Shiva Bhog, Prasad आदि। 1. Shivling को North Direction में स्थापित करके, East Facing होकर Rudrabhishek करें। 2. पहले Lord Shiva को Pure Water से स्नान कराएं, फिर Ganga Jal से Snan कराएं। इसे Jalabhishek कहते हैं। 3. Sugarcane Juice, Honey, Curd, Milk यानी Panchamrit समेत जितने भी Liquid Substances हैं, उनसे Shivling Abhishek करें। 4. Abhishek करते समय Lord Shiva Panchakshari Mantra "Om Namah Shivaya", Mahamrityunjaya Mantra या Rudrashtakam Mantra का जाप करें। 5. इसके बाद Lord Shiva को Chandan और Bhasm का Lep लगाएं। 6. फिर Pan Leaf, Bilva Patra सहित बाकी Puja Samagri अर्पित करें। 7. इसके बाद Lord Shiva’s Favorite Bhog अर्पित करें। 8. फिर Rudrashtak Path करें। 9. इसके बाद 108 Times Shiva Mantra का जाप करें और Aarti उतारें। 10. Aarti के बाद Prasad Distribution करें।

महाशिवरात्रि पर कुंभस्नान: आस्था, पवित्रता और आध्यात्मिक ऊर्जा का संगम

महाशिवरात्रि, भगवान शिव की आराधना का पावन पर्व है, जिसे संपूर्ण भारत में श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है। इस दिन कुंभस्नान का विशेष महत्व होता है, जहां हजारों भक्त पवित्र नदियों में स्नान कर अपनी आत्मा और मन को शुद्ध करने का प्रयास करते हैं। मान्यता है कि इस स्नान से न केवल शरीर बल्कि आत्मा भी पवित्र होती है और जीवन के नकारात्मक प्रभावों से मुक्ति मिलती है। कुंभस्नान को Spiritual Cleansing का माध्यम माना जाता है, जहां भक्त अपने सभी पापों से मुक्ति पाने के लिए पवित्र जल में डुबकी लगाते हैं। यह Divine Connection स्थापित करने का एक विशेष अवसर होता है, जहां शिवभक्त भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए ध्यान और साधना करते हैं। इस पावन अवसर पर कुंभस्थल का वातावरण मंत्रों की गूंज और आध्यात्मिक ऊर्जा से भर जाता है, जिससे वहां मौजूद सभी श्रद्धालुओं को Positive Energy का अनुभव होता है। महाशिवरात्रि पर कुंभस्नान करने से न केवल भक्तों की आत्मा शुद्ध होती है बल्कि यह Karma Cleansing का भी एक महत्वपूर्ण अवसर होता है। इस दिन की गई साधना, ध्यान और पूजा व्यक्ति को शांति और आध्यात्मिक जागरूकता प्रदान करती है। ऐसा माना जाता है कि इस शुभ दिन पर शिव की आराधना और कुंभस्नान करने से जीवन में Divine Blessings प्राप्त होती हैं, जिससे सभी कष्टों का अंत हो जाता है। महाशिवरात्रि पर कुंभस्नान केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि Inner Transformation का अवसर है। यह पर्व हमें भगवान शिव की भक्ति में लीन होकर Spiritual Awakening का अनुभव करने का अनमोल अवसर प्रदान करता है, जहां हम न केवल बाहरी, बल्कि आंतरिक रूप से भी स्वयं को निर्मल और उर्जावान महसूस कर सकते हैं।

कैलाश पर्वत और मानसरोवर: शिव के दिव्य धाम का रहस्य

कैलाश पर्वत और मानसरोवर झील भगवान शिव के दिव्य धाम माने जाते हैं। 22,028 फीट ऊंचा यह पर्वत एक विशाल पत्थर का Pyramid है, जो सदैव बर्फ से ढका रहता है। वैज्ञानिकों के अनुसार, इसे "Axis Mundi" या ब्रह्मांड की धुरी कहा जाता है, जहां अद्भुत Energy Flow होता है। कैलाश पर्वत एक Self-Manifested Mountain है और इसे Earth's Center माना जाता है। यह पर्वत चार दिशाओं के समान संरचित है और इसके चारों ओर Powerful Magnetic Field का प्रभाव देखा गया है। यहां स्थित Lake Manasarovar शुद्ध पानी की उच्चतम झीलों में से एक है, जबकि Rakshas Tal खारे पानी की झील है। इस क्षेत्र में कई बार Mysterious Lights and Sound Waves को महसूस किया गया है, जिसे वैज्ञानिक अब तक स्पष्ट रूप से नहीं समझ पाए हैं। यहां तपस्वी और सिद्ध ऋषि आज भी Spiritual Masters से Telepathic Contact साधने का दावा करते हैं। कैलाश पर्वत पर चढ़ाई Restricted मानी जाती है, हालांकि 11वीं सदी में Tibetan Yogi Milarepa ने इस पर चढ़ाई की थी, लेकिन उन्होंने इसके रहस्यों पर कभी कुछ नहीं कहा। यह स्थान धार्मिक और वैज्ञानिक दृष्टि से आज भी Mystery and Faith का अद्भुत संगम है।

महाशिवरात्रि 2025 के दिन शिवलिंग पर जल चढ़ाने का सबसे शुभ मुहूर्त

Mahashivratri Puja Time: Falgun month की Krishna Chaturdashi पर Mahashivratri का पर्व मनाया जाता है। इस बार 26 February 2025 Wednesday के day Mahashivratri का festival मनाया जाएगा। Mahashivratri पर यदि आप Shivling पर एक लोटा Water अर्पित करना चाहते हैं तो इसके 2 Best Timing हैं। आइए जानते हैं कि वे कौनसे 2 Time हैं। 1. Amrit Kaal और Choghadiya: Amrit Kaal – Morning 07:28 to 09:42 2. Pradosh Kaal: Shastra अनुसार Pradosh Kaal Sunset से 2 Ghadi (48 minutes) तक रहता है। कुछ scholars इसे Sunset से 2 Ghadi पहले और बाद तक भी मानते हैं। इसी के साथ Sandhi Kaal प्रारंभ होता है। Evening Time: 06:17 to 06:42 चार प्रहर की पूजा का समय: First Prahar Puja Time – Evening 06:19 to Night 09:26 Second Prahar Puja Time – Night 09:26 to Midnight 12:34 (27 February) Third Prahar Puja Time – Midnight 12:34 to Midnight 03:41 (27 February) Fourth Prahar Puja Time – Early Morning 03:41 to 06:48 (27 February) How to Celebrate Mahashivratri: Mahashivratri के दिन कई लोग Fasting रखते हैं। इस दिन Falahar किया जाता है और Grains ग्रहण नहीं किए जाते हैं। भगवान Shiva की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। Shivling Abhishek किया जाता है, जिसमें Milk, Curd, Honey, Ganga Jal और Bel Patra से अभिषेक करें। Bilva leaves, Dhatura, Flowers आदि अर्पित करें। Morning Rituals: Mahashivratri के day early morning Bath करें और Clean Clothes पहनें। भगवान Shiva Idol या Shivling को Chauki पर स्थापित करें। Flowers, Rice, Incense, Lamp अर्पित करें। "Om Namah Shivaya" Mantra का जाप करें। Mahashivratri Vrat Katha & Bhajan: Shivratri के दिन Shiva Katha पढ़ें या सुनें। कई लोग रातभर जागकर Bhajan-Kirtan करते हैं। Nishita Kaal में पूजा का Best Muhurat रात 11:00 से 1:00 AM के बीच होता है। Milk, Curd, Honey, Ganga Jal और Bel Patra से Shivling का Abhishek करें। Aarti करें और भगवान Shiva से मनोकामना पूर्ण करने की प्रार्थना करें। Mahashivratri Mythology: Mahashivratri से जुड़ी कई Mythological Stories प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार Lord Shiva & Goddess Parvati का विवाह इस दिन हुआ था। दूसरी कथा के अनुसार इस दिन Shiva ने Halahal Poison पीकर संसार को बचाया था।

फुलेरा दूज कब है, क्यों मनाते हैं ये त्योहार?

Phulera Dooj 2025: फुलेरा Dooj एक Hindu festival है जो हर साल Falgun month के Shukla Paksha की Dwitiya Tithi को मनाया जाता है। यह festival Spring season के आगमन और Radha-Krishna के love का प्रतीक है। वर्ष 2025 में Phulera Dooj पर्व 01 March को मनाया जाएगा। Phulera Dooj कितनी तारीख को है: Delhi time अनुसार इस साल Phulera Dooj का पर्व 01 March 2025, day Saturday को मनाया जाएगा। Hindu Panchang के अनुसार, Falgun month के Shukla Paksha की Dwitiya Tithi की शुरुआत 01 March 2025 को morning 03:16 AM से शुरू होगी और अगले day यानी 02 March 2025, day Sunday को night 12:09 AM पर समाप्त होगी। ऐसे में Udaya Tithi के हिसाब से Phulera Dooj 01 March ही मनाई जा रही है। Phulera Dooj क्यों मनाते हैं: बता दें कि Phulera Dooj मनाने के पीछे कई Religious और Mythological stories प्रचलित हैं। Phulera Dooj को Radha-Krishna के love का प्रतीक माना जाता है। इस day Radha और Krishna ने एक दूसरे के साथ Flowers की Holi खेली थी। इसलिए, इस day लोग एक-दूसरे को Flowers और Abir-Gulal लगाते हैं और Radha-Krishna की Bhakti में लीन रहते हैं। यह festival Spring season के स्वागत का भी प्रतीक है। इस समय Nature में नए Flowers खिलते हैं और greenery छा जाती है। इसलिए, इस festival को Nature के beauty और happiness का उत्सव भी माना जाता है। Religious belief अनुसार Phulera Dooj को एक Abujh Muhurat माना जाता है। इसका अर्थ है कि इस day कोई भी Auspicious work बिना किसी Muhurat के किया जा सकता है। इसलिए, इस day Wedding, Griha Pravesh, और अन्य Manglik works करना शुभ माना जाता है। Phulera Dooj एक joyful और उत्साहपूर्ण festival है। यह हमें Love, Nature, और Happiness का संदेश देता है। इस day लोग एक-दूसरे के साथ मिलकर Love और Brotherhood का संदेश फैलाते हैं।

महाशिवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि: संपूर्ण जानकारी और आवश्यक सामग्री

Mahashivratri Vrat and Puja Vidhi: भगवान Shiva हिंदुओं की प्रमुख आराध्य deity हैं। Mahashivratri festival शिव भक्तों के लिए विशेष महत्व रखता है। Hindu Puranas के अनुसार इस दिन भगवान Shiva का प्राकट्य और विवाह दोनों हुआ था। इसीलिए इस विशेष दिन Lord Shiva worship का महत्व बहुत अधिक है। Mantrashala पर आज हम आपको बताते हैं Mahashivratri Vrat Vidhi की सही और प्रामाणिक विधि। साथ ही जानिए कैसे करनी चाहिए Shiva Puja और उन्हें क्या अर्पित करना चाहिए। Shivratri से एक दिन पूर्व Trayodashi Tithi में Shiv Ji Puja करनी चाहिए और Vrat Sankalp लेना चाहिए। इसके उपरांत Chaturdashi Tithi को Nirahar Vrat रखना चाहिए। Mahashivratri के दिन भगवान Shiva को Ganga Jal Abhishek करने से विशेष पुण्य प्राप्त होता है। Mahashivratri Puja Vidhi: इस दिन Shivling Abhishek को Panchamrit Snan कराकर 'Om Namah Shivay' मंत्र से पूजा करनी चाहिए। इसके बाद Ratri ke Chaar Prahar Puja करनी चाहिए और अगले दिन प्रातःकाल Brahmin Daan Dakshina देकर Vrat Parana करना चाहिए। Vrat Vidhan: नित्य नैमित्यक क्रिया शौचादि से निवृत्ति के वाद व्रत का संकल्प,पूजन हवन, शिव अभिषेक नमक-चमक से, ब्रह्मचर्य का पालन, अक्रोध, श्रद्धा भक्ति। Puja Samagri: Scented Flowers, Bilva Patra, Dhatura, Bhang, Ber, Aamra Manjari, Jau ki Baal, Mandaara Flowers, Cow Milk, Sugarcane Juice, Curd, Pure Desi Ghee, Honey, Holy Ganga Water, Sacred Water, Camphor, Incense Sticks (Dhoop), Deepak, Rui Batti, Chandan, Five Fruits, Panch Mewa, Panch Ras, Ittar, Gandh Roli, Mouli Janeyu, Shiv Parvati Shringar Samagri, Vastra Abhushan, Gold, Silver, Dakshina Puja Ke Bartan, Kushasan आदि। Vrat and Puja Mantra: ॐ नमः शिवाय का जाप या मनन श्रद्धा व ध्यान से। Bilva Patra चढ़ाने का मंत्र: नमो बिल्ल्मिने च कवचिने च नमो वर्म्मिणे च वरूथिने च नमः श्रुताय च श्रुतसेनाय च नमो दुन्दुब्भ्याय चा हनन्न्याय च नमो घृश्णवे॥ दर्शनं बिल्वपत्रस्य स्पर्शनम्‌ पापनाशनम्‌। अघोर पाप संहारं बिल्व पत्रं शिवार्पणम्‌॥ त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रिधायुधम्‌। त्रिजन्मपापसंहारं बिल्वपत्रं शिवार्पणम्‌॥ अखण्डै बिल्वपत्रैश्च पूजये शिव शंकरम्‌। कोटिकन्या महादानं बिल्व पत्रं शिवार्पणम्‌॥ गृहाण बिल्व पत्राणि सपुश्पाणि महेश्वर। सुगन्धीनि भवानीश शिवत्वंकुसुम प्रिय। इसके बाद Shivratri Vrat Katha का वाचन करें। Mriga aur Shikari Ki Katha, Shivling Prakat Katha, तथा Shiv Puran Katha पढ़नी चाहिए। इस प्रकार Mahashivratri Vrat and Puja विधि को अपनाकर Lord Shiva Blessings प्राप्त कर सकते हैं।

महाशिवरात्रि: रात्रि के चार प्रहर में पूजन का शुभ समय और विधि

Mahashivratri Puja Vidhi: Phalgun माह की Krishna Chaturdashi पर Mahashivratri का पर्व मनाया जाता है। इस बार 26 February 2025, Wednesday के दिन Mahashivratri का पर्व मनाया जाएगा। Mahashivratri ki Puja Pradosh Kaal और Nishith Kaal सहित night के 4 Prahar में होती है। Shivratri में night का विशेष importance होता है। Chaturdashi Tithi: Chaturdashi Tithi Start: 26 February 2025 को सुबह 11:08 AM Chaturdashi Tithi End: 27 February 2025 को सुबह 08:54 AM चार प्रहर की पूजा का समय: 1. Ratri Pratham Prahar Puja Time: Evening 06:19 PM से Night 09:26 PM के बीच। 2. Ratri Dwitiya Prahar Puja Time: Night 09:26 PM से Midnight 12:34 AM के बीच। (27 February) 3. Ratri Tritiya Prahar Puja Time: Midnight 12:34 AM से Midnight 03:41 AM के बीच। (27 February) 4. Ratri Chaturth Prahar Puja Time: Early Morning 03:41 AM से Morning 06:48 AM के बीच। (27 February) Mahashivratri Puja ka Shubh Muhurat: Day Shubh Muhurat: Amrit Kaal Morning 07:28 AM - 09:00 AM Evening Shubh Muhurat: Godhuli Muhurat 06:17 PM - 06:42 PM Night Shubh Muhurat: Nishith Kaal Midnight 12:09 AM - 12:59 AM Day Amrit Choghadiya: Morning 08:15 AM - 09:42 AM Night Shubh & Amrit Choghadiya: Night 07:53 PM - 11:00 PM Mahashivratri Par Shivling Ki Puja Vidhi: -Morning Snan के बाद Lord Shiva का स्मरण कर Vrat एवं Puja Sankalp लें। -Home Puja के लिए Red या Yellow Cloth बिछाकर उस पर Ghata एवं Kalash स्थापित करें। -Big Plate में Shivling या Shiva Murti रखकर Puja Platform पर स्थापित करें। -Dhoop, Deep जलाएं और Kalash Puja करें। -Kalash Puja के बाद Shivling Abhishek करें। -Jal Abhishek के बाद Panchamrit Abhishek करें, फिर दोबारा Water Abhishek करें। -Sandalwood (Chandan), Bhasm लगाकर Flowers & Garland अर्पित करें। -Ring Finger से Attar, Gandh, Chandan आदि अर्पित करें। -16 Puja Samagri एक-एक करके अर्पित करें। -Naivedya (Bhog) & Prasad चढ़ाएं (Naivedya में Salt, Chili, Oil का प्रयोग न करें)। -Shiva Aarti करें और Prasad Distribution करें। यह पूजा विधि Mahashivratri 2025 में Lord Shiva Blessings प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है।

महाशिवरात्रि पर इस विधि से घर बैठे पाएं महाकुंभ स्नान का पुण्य

Mahashivratri 2025 par kaise ghar par paen Kumbh Snan ka Punya: महाशिवरात्रि का पावन पर्व Lord Shiva को समर्पित है। इस दिन Shiv Puja करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। Maha Kumbh Snan का पुण्य प्राप्त करने के लिए दूर-दूर से लोग Prayagraj पहुंचते हैं। लेकिन अगर आप भीड़ या दूरी की वजह से महाशिवरात्रि पर Prayag जाकर Sangam में डुबकी नहीं लगा सकते तो भी आप घर बैठे Kumbh Mela Snan का पुण्य प्राप्त कर सकते हैं। Mahashivratri par Amrit nahi, Shahi Snan महाशिवरात्रि पर Sangam Snan को Amrit Snan की मान्यता नहीं मिलेगी, क्योंकि Amrit Snan तब होता है जब Surya Makar और Brihaspati Vrishabh Rashi में हों। लेकिन अब Surya Kumbh Rashi में गोचर हैं, इसलिए महाशिवरात्रि पर Shahi Snan होगा। Ghar par Maha Kumbh Snan ka Punya prapt karne ke liye kya karein? 🔹 Shuddhata ka Dhyan Rakhein: Kumbh Snan के लिए पवित्रता बहुत महत्वपूर्ण होती है। इसलिए स्नान से पहले अपने शरीर को अच्छी तरह से साफ करें। 🔹 Brahma Muhurat me Uthkar Snan Karein: Brahma Muhurat में उठकर स्नान करना बहुत शुभ माना जाता है। 🔹 Ganga Jal milakar Snan Karein: अगर आपके पास Ganga Jal है तो उसे स्नान के पानी में मिलाएं। अगर Ganga Water उपलब्ध नहीं है तो किसी भी Sacred River Water का उपयोग करें। 🔹 Mantra Jaap Karein: स्नान करते समय निम्नलिखित Hindu Mantra का जाप करें: "गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति। नर्मदे सिंधु कावेरी जलेस्मिन् सन्निधिं कुरू।" अगर आप इस मंत्र का जाप नहीं कर सकते तो Har Har Gange का जाप करें। 🔹 Shivling ka Poojan Karein: स्नान के बाद Shivling Puja करें, Jal Abhishek करें और Dhoop-Deep जलाएं। 🔹 Vrat Rakhein: Mahashivratri Vrat रखना शुभ माना जाता है। 🔹 Daan Karein: जरूरतमंदों को Donation करें, जैसे Food Donation, Clothes Donation, और Dakshina। 🔹 Raat Bhar Jagran: रात भर Bhajan Kirtan करें और Lord Shiva Bhakti में लीन रहें। Maha Kumbh Snan ka Mahatva Kumbh Mela Snan का धार्मिक महत्व बहुत अधिक है। मान्यता है कि Sacred Bath in Ganga से सभी Paap धुल जाते हैं और Moksha की प्राप्ति होती है। Maha Kumbh Mela Snan का पुण्य प्राप्त करना बेहद शुभ माना जाता है। अगर आप Mahashivratri 2025 पर Kumbh Mela Prayagraj में नहीं जा पा रहे हैं, तो उपरोक्त विधि से घर बैठे भी Maha Kumbh Snan का पुण्य प्राप्त कर सकते हैं। #Mahashivratri2025 #KumbhSnan #ShahiSnan #MahaKumbh #ShivPuja #ShivBhakti #HarHarMahadev #GangaSnan #Spirituality #HinduRituals #ShivlingPooja #ShivMantra

शिव चालीसा पढ़ते समय ये गलतियां तो नहीं करते हैं आप?

शिव Chalisa Path: कुछ Shiva भक्त प्रतिदिन, कुछ Somvar को, कुछ Chaturdashi को और अधिकतर लोग Shivratri या Maha Shivratri पर Shiv Chalisa का पाठ करते हैं। Shiv Chalisa का पाठ आप भी करते हैं जो आपके लिए यह जानना जरूरी है कि कहीं आप पाठ करते समय ये 7 गलतियां तो नहीं कर रहे हैं? यदि करते हैं तो पाठ का फल आपको नहीं मिलेगा और हो सकता है कि इसका पाप भी लगे। तो चलिये जानते हैं कि कौनसी हैं वे 7 गलतियां। 1. Path करते वक्त फालतू के विचार आना: यदि आप Shiv Chalisa पढ़ते वक्त फालतू की बातें सोचते हैं, आपके मन में गलत विचार आते हैं या आपका ध्यान कहीं और किसी बात पर रहता है तो आपको पाठ का फल नहीं मिलेगा। इसलिए मन को शांत रखें और पूर्ण श्रद्धा और भक्ति के साथ Shiv Chalisa Path करें। किसी अन्य विचार में न भटकें, केवल Lord Shiva पर ध्यान केंद्रित करें। 2. Path करते समय पवित्रता का ध्यान न रखना: यदि आप बिना स्नान आदि से निवृत्त होकर गंदे या काले कपड़े पहनकर यानी अपवित्र रहकर Shiv Chalisa का Path करते हैं तो यह अपराध माना जाएगा। इससे पाप लगता है। Shiv Chalisa पढ़ने से पहले स्नान करके Swachh वस्त्र धारण करें। Pooja स्थान और शरीर की Shuddhi का विशेष ध्यान रखें। Path करने से पहले या बाद में Non-Veg, Alcohol, Tobacco आदि का सेवन न करें। Pooja से पहले और बाद में तामसिक भोजन नहीं करना चाहिए। अपवित्र स्थान में Shiv Chalisa Path न करें। 3. असमय ही Path करना: Shiv Chalisa का Path सुबह, Pradosh Kaal में या Ratri Kaal में करना चाहिए। दोपहर में Shiv Chalisa का पाठ नहीं करना चाहिए। मोटे तौर पर दोपहर 12 बजे से शाम 4 बजे के बीच Path नहीं करना चाहिए। कई लोग निश्चित समय निर्धारित नहीं करते हैं और जब मन करता है या फुर्सत मिलती है तब Shiv Chalisa पढ़ने लग जाते हैं, जो कि गलत आदत है। 4. Path का अशुद्ध उच्चारण: Shiv Chalisa पढ़ते समय उच्चारण पर विशेष ध्यान दें। Shiv Chalisa पढ़ते समय Words का सही Pronunciation करें। गलत उच्चारण से Shiv Chalisa Path का प्रभाव कम हो सकता है। 5. Path करते वक्त रुकना: Shiv Chalisa का Path करते समय बीच में रुकना नहीं चाहिए। कई लोग Shiv Chalisa पाठ को बीच में ही रोककर बात करने लग जाते हैं, सलाह देने लग जाते हैं या पूछे गए प्रश्न का उत्तर देने लग जाते हैं। यह गलती नहीं करना चाहिए। इससे यह सिद्ध होता है कि आप Shiv Chalisa Path के प्रति Serious नहीं हैं। 6. Path का अहंकार न करें: Shiv Chalisa Path करते समय विनम्रता और श्रद्धा बनाए रखें। इसे किसी दिखावे या अहंकार के लिए न करें। इसे पढ़कर खुद को Lord Shiva का महान भक्त न समझने लगे। 7. Sankalp से पढ़ें Shiv Chalisa: यदि आपने Nitya यानी Daily Shiv Chalisa Path करने का Sankalp लिया है तो उसकी निरंतरता बनाए रखें और उसी समय पर Path करें जिस समय पर आप करते हैं। कई लोग प्रति Somvar Path करने का Sankalp लेते हैं तो उसका पालन करें। विशेष रूप से Sawan Maas, Somvar और Maha Shivratri के दिन इसका Path करना अत्यंत फलदायी होता है। #ShivChalisa #ShivaBhakti #Mahadev #Shivratri #LordShiva #ChalisaPath #ShivAarti #PoojaVidhi #Spirituality #ShivMantra #BhaktiMarg

महाशिवरात्रि पर जानिए शिवजी के 12 ज्योतिर्लिंग के 12 रहस्य

12 Secrets of 12 Jyotirlingas of Lord Shiva: देशभर में स्थित Jyotirlingas सभी Swayambhu माने जाते हैं। 12 Jyotirlinga Puja या Darshan से जो Punya प्राप्त होता है, वह किसी अन्य Shivling के पूजन से नहीं मिलता। 1. Somnath Jyotirlinga इसे सबसे प्रथम Jyotirlinga माना जाता है, जिसे Lord Chandra ने स्थापित किया था। Somnath Temple गुजरात के Saurashtra Region में स्थित है। इसका Magnetic Power से हवा में स्थित होने की मान्यता है। Mahmud of Ghazni ने इस Shiva Lingam को तोड़ दिया था। 2. Mallikarjuna Jyotirlinga यह Jyotirlinga Andhra Pradesh के Srisailam Mountain पर स्थित है, जिसे Dakshin Kailash भी कहा जाता है। यह Krishna River के तट पर है और Lord Ganesha तथा Kartikeya की कथा से जुड़ा हुआ है। 3. Mahakaleshwar Jyotirlinga यह Jyotirlinga Madhya Pradesh के Ujjain में Shipra River के तट पर स्थित है। इसे Mahakal कहा जाता है क्योंकि यह अपने भक्तों को Akala Mrityu से बचाते हैं। 4. Omkareshwar Jyotirlinga यह Jyotirlinga Madhya Pradesh में Narmada River के किनारे स्थित है। यहां Vindhya Mountain ने Lord Shiva की Aradhana की थी। Omkareshwar Temple एक द्वीप पर स्थित है, जिसका आकार ॐ (Om Symbol) के समान है। 5. Kedarnath Jyotirlinga यह Jyotirlinga Uttarakhand Himalayas में Badrinath Dham के पास स्थित है। इस स्थान की कथा Pandavas से जुड़ी है। यह मंदिर Adi Shankaracharya Samadhi के लिए प्रसिद्ध है और यहाँ 6 months तक दीपक जलता रहता है, भले ही यह बर्फ में ढका हो। 6. Bhimashankar Jyotirlinga यह Jyotirlinga Maharashtra Sahyadri Hills में Bhima River के तट पर स्थित है। यह Nashik से 180 किमी दूर है। यहाँ Lord Shiva ने Bheemasura Demon का वध किया था। इसे Mokteshwar Mahadev के नाम से भी जाना जाता है। 7. Kashi Vishwanath Jyotirlinga यह Jyotirlinga Varanasi Uttar Pradesh में Ganga River के तट पर स्थित है। यहाँ जो मरता है, उसे Moksha मिलता है। Lord Shiva स्वयं Tarak Mantra सुनाकर मोक्ष प्रदान करते हैं। Kashi को Shiva’s Trident पर स्थित बताया जाता है। 8. Trimbakeshwar Jyotirlinga यह Jyotirlinga Maharashtra के Nashik से 25 किमी दूर Godavari River के तट पर स्थित है। यह स्थान Rishi Gautam and Goddess Ganga की कथा से जुड़ा है। यहां एक छोटे गड्ढे में तीन छोटे-छोटे Shivlings स्थित हैं। 9. Baidyanath Jyotirlinga यह Jyotirlinga Jharkhand Deoghar में स्थित है। Ravana ने घोर तपस्या कर Lord Shiva से Shivling प्राप्त किया था, जिसे वह Lanka में स्थापित करना चाहता था, लेकिन Shiva Leela से यह यहीं स्थापित हो गया। इसे Kamana Linga भी कहा जाता है। 10. Nageshwar Jyotirlinga यह Jyotirlinga Gujarat Dwarka से 25 किमी की दूरी पर स्थित है। यहां Lord Shiva को Nag Devta के रूप में पूजा जाता है। Daruka Demon की कथा इससे जुड़ी हुई है। 11. Rameshwaram Jyotirlinga यह Jyotirlinga Tamil Nadu में स्थित है और Lord Rama से जुड़ा हुआ है। Shri Ram ने यहां Bala Shiva Lingam बनाकर Shiva Puja की थी और Ravana पर विजय प्राप्त करने का आशीर्वाद मांगा था। 12. Grishneshwar Jyotirlinga यह Jyotirlinga Maharashtra Aurangabad में स्थित है, जो Ajanta-Ellora Caves के पास है। यह Lord Shiva’s Bhakta Ghusma की कथा से जुड़ा है और Vansh Vriddhi एवं Moksha प्रदान करने वाला माना जाता है।

Mahashivratri 2025: महाशिवरात्रि और शिवरात्रि में क्या है अंतर?

Mahashivratri 2025: Maha Shivratri 2025 और Shivratri दोनों ही Lord Shiva को समर्पित हैं, लेकिन Maha Shivratri का महत्व Shivratri से अधिक है। Maha Shivratri Festival साल में एक बार आता है और इसे Lord Shiva’s Most Important Festival माना जाता है, जबकि Shivratri हर महीने पड़ती है। Maha Shivratri vs. Shivratri – Key Differences 1.Shivratri: यह हर महीने Krishna Paksha Chaturdashi Tithi को आती है, इसलिए इसे Masik Shivratri भी कहा जाता है। Maha Shivratri: यह साल में एक बार, Phalgun Month Krishna Paksha Chaturdashi Tithi को आती है। 2. Shivratri: यह Lord Shiva Puja and Worship का एक सामान्य दिन है। Maha Shivratri: यह Lord Shiva’s Most Significant Festival है। इसे Lord Shiva and Goddess Parvati Marriage के रूप में भी मनाया जाता है। इसका महत्व Shivratri से अधिक माना गया है। 3. Shivratri: इस दिन Lord Shiva’s Regular Puja की जाती है। Maha Shivratri: इस दिन Special Shiva Puja की जाती है। रात्रि के चारों प्रहरों में Shiva Worship Rituals का विधान है। इस दिन Fasting, Vrat, and Night Jagran का विशेष महत्व है। 4. Shivratri: हर महीने आने वाली Shivratri को Lord Shiva’s Blessings प्राप्त करने का विशेष दिन माना जाता है। Maha Shivratri: Maha Shivratri Night को Lord Shiva and Goddess Parvati Divine Union की रात माना जाता है। इस रात Lord Shiva अपने भक्तों को विशेष आशीर्वाद देते हैं। 5. Shivratri: यह Devotion and Dedication to Lord Shiva प्रकट करने का एक अवसर है। Maha Shivratri: यह Lord Shiva’s Power and Glory का प्रतीक है। यह हमें Bhakti, Sacrifice, and Renunciation का संदेश देता है।

जानकी जयंती 2025: माता सीता का जन्म कब और कैसे हुआ था?

Sita ashtami 2025: जानकी जयंती 2025 इस बार 20 February, Thursday को मनाई जा रही है। इस दिन Goddess Sita का जन्म होने के कारण इस तिथि को Janaki Prakatotsav के रूप में भी मनाया जाता है। Vedic Panchang के अनुसार, Sita Ashtami या Janaki Jayanti का पर्व Phalgun Month के Krishna Paksha Ashtami Tithi को मनाया जाता है। इसी दिन Kalashtami भी मनाई जाएगी। कब मनाई जाएगी जानकी जयंती 2025: Phalgun, Krishna Ashtami Start – 20 February को सुबह 09:58 AM End – 21 February को सुबह 11:57 AM इस बार Ashtami Tithi की शुरुआत Thursday, 20 February 2025 को सुबह 9:58 AM पर होगी। यह तिथि 21 February, Friday को सुबह 11:57 AM पर समाप्त होगी। Udaya Tithi को देखते हुए Janaki Jayanti को Calendar Discrepancy के कारण 20 और 21 February को मनाया जा सकता है। माता सीता का जन्म कैसे हुआ था: Goddess Sita, जिन्हें Janaki या Janakputri के नाम से जाना जाता है, Hindu Religion में पूजनीय देवी हैं। वे Maryada Purushottam Lord Rama की पत्नी और Mithila King Janak की पुत्री थीं। Ramayana में वर्णित Goddess Sita Birth Story के अनुसार, एक बार King Janak Yajna के लिए भूमि तैयार कर रहे थे। जब वे Ploughing the Land कर रहे थे, तब उन्हें Earth में एक Treasure Box मिली। उस Box में एक Beautiful Baby Girl लेटी हुई थी। King Janak ने उस कन्या को अपनी पुत्री के रूप में स्वीकार किया। Janakputri हल से मिली होने के कारण Sita को 'Sita' कहा गया। उन्हें Janaki इसलिए कहा जाता है क्योंकि वह King Janak की पुत्री थीं और Janak को Videha King भी कहा जाता था, इसलिए Sita को Vaidehi भी कहा गया। धार्मिक मान्यता: धार्मिक मान्यतानुसार Goddess Sita को Goddess Lakshmi Avatar भी माना जाता है। वे Courage, Sacrifice, and Love की प्रतिमूर्ति हैं। इसी कारण Janaki Jayanti के दिन Mata Sita Puja की जाती है और उनके Virtues को याद किया जाता है। साथ ही, Goddess Sita Lord Rama's Shakti होने के कारण Phalgun Krishna Ashtami के दिन Married Women व्रत रखती हैं। वे Husband's Long Life और Happy Married Life की कामना से Lord Rama and Goddess Sita Worship करती हैं और Sita’s Qualities को प्राप्त करने की भावना से Vrat रखती हैं।

chaturthi 2025: द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी के दिन कब होगा चंद्रोदय?

Sankashti Chaturthi Sunday: Dwijpriya Sankashti Chaturthi हर महीने Krishna Paksha Chaturthi Tithi को मनाई जाती है। यह दिन Bhagwan Ganesh को समर्पित है, जो सभी बाधाओं को दूर करने वाले और Riddhi-Siddhi के दाता हैं। इस दिन Vrat रखकर और Puja Vidhi से Shri Ganesh को प्रसन्न किया जाता है। Hindu Calendar के अनुसार, इस बार फरवरी के महीने में Phalgun Krishna Chaturthi, यानी Dwijpriya Sankashti Chaturthi Vrat, Sunday, 16 February 2025 को पड़ रहा है। Sankashti Chaturthi Tithi & Chandroday Time: Hindu Panchang के अनुसार हर Chandra Month में दो Chaturthi Tithi होती हैं। Purnima के बाद आने वाली Krishna Paksha Chaturthi को Sankashti Chaturthi तथा Amavasya के पश्चात आने वाली Shukla Paksha Chaturthi को Vinayaka Chaturthi के रूप में मनाया जाता है। अतः Phalgun Mahina Krishna Paksha Chaturthi को Dwijpriya Sankashti Chaturthi के नाम से जाना जाता है। Sankashti का अर्थ है, Samast Sankat Se Mukti। 📅 Delhi Time के अनुसार: Dwijpriya Sankashti Chaturthi – Sunday, 16 February 2025 Phalgun Krishna Chaturthi Start: 15 February 2025, 11:52 AM Chaturthi Tithi Ends: 17 February 2025, 02:15 AM Chandroday Time (Moonrise Time): 09:39 PM Auspicious Muhurat (Shubh Muhurat) for Puja: Brahma Muhurat: 05:16 AM – 06:07 AM Abhijit Muhurat: 12:13 PM – 12:58 PM Godhuli Muhurat: 06:10 PM – 06:35 PM Amrit Kaal: 09:48 PM – 11:36 PM Vijay Muhurat: 02:28 PM – 03:12 PM Ganesh Puja Vidhi (Shri Ganesh Puja Vidhi): 1️⃣ Morning Rituals: सुबह जल्दी उठकर Snan (Bath) करें और साफ वस्त्र धारण करें। Puja Sthal (Worship Place) को साफ करें और एक Chauki (Puja Chowki) पर Lal Kapda (Red Cloth) बिछाएं। 2️⃣ Shri Ganesh Sthapana: Bhagwan Ganesh की प्रतिमा या चित्र Chauki पर स्थापित करें। Lal Pushp (Red Flowers), Akshat (Rice), Durva, Modak, Dhoop, Deep, Naivedya, Fruits, Mithai आदि सामग्री इकट्ठा करें। 3️⃣ Puja Rituals: -Shri Ganesh Ji को Jal & Panchamrit Snan कराएं। -Lal Vastra (Red Cloth) अर्पित करें। -Pushp, Akshat, Durva, Modak अर्पित करें। -'ॐ गं गणपतये नमः' Mantra का जाप करें। -Ganesh Stuti या Atharvashirsha Path करें। 0Dhoop-Deep जलाकर Aarti करें। -Naivedya Fruits, Modak, Mithai अर्पित करें और Bhagwan Ganesh से अपनी Manokamna कहें। 4️⃣ Vrat Vidhi (Fasting Rules): Sankashti Chaturthi Vrat का पालन करें और दिन भर Upvaas (Fast) रखें। शाम को Chandroday (Moonrise) के बाद Arghya देकर Vrat खोलें। Sankashti Chaturthi Vrat Benefits: 🔹 Dwijpriya Sankashti Chaturthi के दिन Vighnaharta Shri Ganesh की Puja करने से Life Problems, Obstacles और Negativity समाप्त होती है। 🔹 Vrat Karne Se Bhagwan Ganesh Ki Kripa Se Prosperity, Happiness Aur Success Milti Hai। 🔹 Chaturthi Vrat करने से Shri Ganesh Ji का आशीर्वाद मिलता है और सभी Manokamna पूर्ण होती हैं। Sankashti Chaturthi 2025 पर Ganesh Puja करें और Bhagwan Ganesh से Blessings प्राप्त करें! 🙏✨

महाशिवरात्रि पर भोलेनाथ को चढ़ाएं ये विशेष भोग, जानें रेसिपी

Maha Shivratri 2025 Bhog Samagri: Mahashivratri इस बार 26 February 2025 को मनाई जा रही है। इस दिन Bhagwan Shiva को कई तरह के special Bhog लगाए जाते हैं। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि आप अपनी Shraddha और Parampara के अनुसार Bhog में बदलाव कर सकते हैं। इनमें से कुछ इस प्रकार हैं: • Panchamrit: Doodh, Dahi, Ghee, Shahad और Shakkar को मिलाकर Panchamrit तैयार किया जाता है। इसे Bhagwan Shiva को अर्पित करना बेहद शुभ माना जाता है। • Kheer: Doodh और Chawal से बनी Kheer Bhagwan Shiva को प्रिय है। इसे Mahashivratri के दिन Bhog के रूप में चढ़ाना चाहिए। • Halwa: Sooji या Aata का Halwa बनाकर भी Bhagwan Shiva को Bhog लगाया जा सकता है। • Bhaang: कुछ स्थानों पर Mahashivratri के दिन Bhaang का भी Bhog लगाया जाता है। • Fruits: Bhagwan Shiva को fruits भी अर्पित किए जाते हैं। आप उन्हें Ber, Dhatura, Kela आदि phal चढ़ा सकते हैं। यहां एक विशेष Bhog Recipe दी गई है: सामग्री: •Sooji - 1 कप •Ghee - 1/2 कप •Shakkar (Sugar) - 1 कप •Pani (Water) - 2 कप •Elaichi Powder - 1/2 चम्मच •Meve (Dry Fruits) - 1/4 कप (कटे हुए) विधि: 1. एक Pan में Ghee गरम करें और Sooji को सुनहरा होने तक Bhun लें। 2. एक अन्य Pan में Shakkar और Pani डालकर Ubal लें। 3. Bhuni Hui Sooji में Chashni डालें और अच्छी तरह Mila लें। 4. Elaichi Powder और Meve डालकर Mix करें। 5. Halwa को थोड़ी देर तक Pakayein जब तक कि वह Gadha न हो जाए। 6. अब Bhagwan Shiva को Sooji Halwa का Bhog लगाएं। Mahashivratri के दिन Shiva Puja के साथ यह Bhog अर्पित करने से Divine Blessings प्राप्त होती हैं और जीवन में Peace, Prosperity और Happiness आती है। 🕉️

विजया एकादशी कब है, जानिए पूजा का शुभ मुहूर्त और व्रत का फल

Vijaya Ekadashi on Monday, 24 February: हर साल Falgun Maas के Krishna Paksha की Ekadashi Tithi को Vijaya Ekadashi Vrat मनाया जाता है। Hindu Panchang के अनुसार, इस साल Vijaya Ekadashi सोमवार, February 24, 2025 को है। यह Vrat Bhagwan Vishnu को समर्पित है। इस दिन Bhagwan Vishnu की पूजा-अर्चना की जाती है और Vrat रखा जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार Vijaya Ekadashi का Vrat Bhagwan Shri Vishnu को समर्पित है। इस दिन Bhagwan Vishnu की Puja-Archana करने से व्यक्ति के जीवन में सभी प्रकार की सुख-समृद्धि, Aishwarya तथा Shanti आती है। यह Vrat Shatruon पर Vijay प्राप्त दिलाने तथा सभी कार्यों में Success पाने के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। इस Ekadashi का अधिक महत्व होने के कारण यह Business, Job तथा हर प्रकार से Beneficial मानी जाती है। Vijaya Ekadashi Parana Time 2025: Parana (Vrat तोड़ने का) Time February 25 को – सुबह 06:50 AM से 09:08 AM तक। Parana Tithi के दिन Dwadashi Samapan Time – दोपहर 12:47 PM। Vijaya Ekadashi Monday, February 24, 2025 Shubh Muhurat: Ekadashi Tithi Start: February 23, 2025, दोपहर 01:55 PM से। Ekadashi Tithi End: February 24, 2025, दोपहर 01:44 PM तक। Udaya Tithi के अनुसार, Vijaya Ekadashi का Vrat February 24, 2025 को रखा जाएगा। Vijaya Ekadashi Puja Vidhi: • Vijaya Ekadashi के दिन सुबह Brahma Muhurat में उठकर Snan करें। • पूजा स्थल को Clean करें और Bhagwan Vishnu की Murti या चित्र स्थापित करें। • Bhagwan Vishnu को Phool, Phal, Dhoop, Deep और Naivedya अर्पित करें। • 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' मंत्र का जाप करें। • Vijaya Ekadashi Katha पढ़ें या सुनें। • दिनभर Upvas रखें और रात में Bhagwan Vishnu की Puja करें। • अगले दिन Dwadashi Tithi को Vrat का Parana करें। Vijaya Ekadashi Vrat Ka Fal: •Vijaya Ekadashi Vrat करने से व्यक्ति के सभी Paap नष्ट होते हैं और उसे Moksha की प्राप्ति होती है। •इस Vrat को करने से Enemies पर विजय प्राप्त होती है और सभी कार्यों में Success मिलती है। •धार्मिक मान्यता के अनुसार, Vijaya Ekadashi Vrat करने से Vajpeya Yagya के समान फल मिलता है। •इस Ekadashi पर Bhagwan Vishnu की Puja करने से जीवन में Happiness, Prosperity और Peace आती है। •इस Ekadashi Vrat की Katha पढ़ने या सुनने मात्र से व्यक्ति सभी Sins से मुक्त हो जाता है। •इस दिन Shri Vishnu के साथ Lakshmi Ji की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। •Ekadashi के दिन Pitru Tarpan से Ancestors प्रसन्न होते हैं और उन्हें Moksha प्राप्त होता है। •यह Vrat Spiritual Growth और Divine Blessings के लिए बेहद शुभ माना जाता है। 🙏

Falgun Maah 2025: फाल्गुन मास का क्या है महत्व और क्यों पुराणों में हैं इसकी महिमा का गान?

Falgun Maas Ka Mahatva: Hindu Mahino का मौसम और ऋतुओं पर आधारित विशेष महत्व होता है। Hindu Panchang का अंतिम महीना Falgun Maas होता है। Falgun Maas में Mahashivratri और Holi Festival ये दो सबसे बड़े त्योहार पड़ते हैं, जो बहुत धूमधाम से मनाए जाते हैं। इस माह की Purnima को Falgun Nakshatra में आने के कारण ही इस माह का नाम Falgun पड़ा है। Falgun Maas Ka Mahatva: 🌿 इस महीने से धीरे-धीरे Summer Season की शुरुआत होती है और Winter Season कम होने लगता है। 🌿 Falgun Month के दौरान Shishir Ritu यानी Autumn Season समाप्त होने लगता है और Vasant Ritu का आगमन होता है। 🌿 इस समय प्रकृति पर Aging Effect दिखाई देता है, वृक्षों के पत्ते झड़ने लगते हैं और चारों ओर Foggy Weather छाया रहता है। 🌿 इस ऋतु से Season Cycle के पूर्ण होने का संकेत मिलता है और नए वर्ष की शुरुआत की सुगबुगाहट सुनाई देती है। 🌿 इस माह में Lord Shiva, Chandra Dev, Kamdev, Lord Krishna और Lord Vishnu के Narasimha Avatar की पूजा की जाती है। इस माह में Bhakti, Spiritual Awakening और New Life Celebrations का विशेष महत्व होता है। 🌿 Falgun Maas में अपने Diet और Lifestyle में बदलाव करना महत्वपूर्ण माना गया है, जैसे कि Grains Consumption कम करके Seasonal Fruits का सेवन अधिक करना शुभ माना जाता है। Chandra Dev Ki Upasana: Chandra Dev का जन्म Falgun Maas में हुआ था, इसलिए इस माह में Chandra Puja का विशेष महत्व है। Hindu Dharma के अनुसार, Chandra Dev भी प्रमुख देवताओं में से एक हैं और Lord Shiva ने उन्हें अपने Forehead पर धारण किया है। Falgun Maas में Chandra Dev, Lord Shiva और Lord Krishna की उपासना करना अत्यंत फलदायी माना जाता है। Kamdev Aur Lord Shiva: यह महीना Kamdev Aur Lord Shiva की कथा से भी जुड़ा हुआ है। जब Kamdev ने Lord Shiva की Tapasya भंग की, तो Lord Shiva ने उन्हें Bhasm कर दिया था। लेकिन बाद में जब Lord Shiva को इसका कारण पता चला, तो उन्होंने Rati को Pradyumna Avatar में Kamdev के पुनर्जन्म का आशीर्वाद दिया। Lord Krishna Ki Pooja: Falgun Maas में Lord Krishna की Aaradhana का विशेष महत्व है। इस माह में Lord Krishna के तीन स्वरूपों की पूजा की जाती है— Bal Krishna: संतान प्राप्ति के लिए Yuva Krishna: दांपत्य जीवन सुखद बनाने के लिए Guru Krishna: मोक्ष और वैराग्य प्राप्त करने के लिए Phag Utsav Aur Holi Festival: इस माह में Lord Krishna और Radha Rani की पूजा होती है क्योंकि इसी महीने Phag Utsav मनाया जाता है। Falgun Maas को Happiness and Joy का महीना भी कहा जाता है। Narasimha Puja Aur Holashtak: Lord Vishnu ने Narasimha Avatar लेकर Bhakt Prahlad की Hiranyakashyap से रक्षा की थी। इस माह में Holashtak भी आता है, जिसमें 8 Days तक कोई भी Auspicious Ceremony नहीं की जाती। Daan Punya Aur Pitru Tarpan: इस माह में Charity का विशेष महत्व है। Pure Ghee, Mustard Oil, Seasonal Fruits, Grains और Clothes दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। इसके अलावा, Pitru Tarpan करने से Ancestors का आशीर्वाद प्राप्त होता है। Ganesh Puja Aur Til Ka Mahatva: Falgun Maas Shukla Paksha की Chaturthi Tithi पर Lord Ganesha की विशेष पूजा करने की मान्यता है। Til (Sesame) से Havan और Bhog लगाना अत्यंत शुभ माना जाता है। इस प्रकार, Falgun Maas धार्मिक, आध्यात्मिक और प्राकृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।

चित्रकूट: तीर्थों का तीर्थ क्यों माना जाता है? जानिए इसके धार्मिक महत्व और श्रीराम की तपोभूमि के रूप में इसकी विशेषता

Chitrakoot: Hindu Dharma में Tirth Sthano का विशेष महत्व होता है। Prayagraj को Tirthraj कहा जाता है, लेकिन मान्यताओं के अनुसार Chitrakoot को Tirthon Ka Tirth कहा जाता है। Chitrakoot को Lord Ram की Tapobhoomi माना जाता है। Ramayan के अनुसार, Lord Ram ने अपने Vanvas का अधिकांश समय Chitrakoot में बिताया था। यहां उन्होंने Mata Sita और Laxman के साथ रहकर Tapasya की थी। इसीलिए Chitrakoot का Lord Ram से गहरा नाता है। Chitrakoot का धार्मिक महत्व: एक मान्यता के अनुसार Magh Mela के दौरान Prayagraj में सभी Tirths का आह्वान किया जाता है लेकिन Chitrakoot वहां नहीं पहुंचता। इस पर एक बार Prayagraj ने Lord Ram से Chitrakoot की शिकायत की और उनके ना आने का कारण पूछा। तब Shri Ram ने कहा था कि Chitrakoot मेरा Nivas है और मैंने अपने Nivas का आपको राजा नहीं बनाया है। यह भी एक कारण है जिससे Chitrakoot को बड़ा Tirth माना जाता है। क्यों Chitrakoot को माना जाता है Tirthon Ka Tirth? Ramayan में Chitrakoot का वर्णन बहुत विस्तार से मिलता है। Lord Ram ने Chitrakoot में ही अपने Vanvas का अधिकांश समय बिताया था। Lord Ram ने स्वयं कहा था कि Chitrakoot उनका Nivas है। Chitrakoot को Lord Ram की Tapobhoomi माना जाता है। जब Lord Ram ने अपने पिता Dashrath का Shraddh किया था, तब सभी Devi-Devta Chitrakoot में Shuddhi Bhoj के लिए आए थे। यहां की Natural Beauty देख सभी Devta मोहित हो गए और वापस जाने के विचार भूल गए। इसलिए ऐसा माना जाता है कि सभी Devtas का Nivas Chitrakoot में है और यहां जाने से Devtas का Aashirwad प्राप्त होता है। Chitrakoot की Natural Beauty भी इसे एक Sacred Place बनाती है। यहां के Dense Forests, Mountains और Rivers मन को मोहित कर लेते हैं।

Falgun month: फाल्गुन मास के व्रत और त्योहारों की पूरी सूची

Phalguna Vrat Tyohar Calendar: वर्ष 2025 में Phalguna Month की शुरुआत 13 February, दिन Thursday से हो चुकी है तथा इस महीने का समापन 14 March को होगा। Phalguna Hindu Panchang का अंतिम Month है तथा इस माह कई Vrat और Festivals पड़ते हैं। मान्यतानुसार Vasant Season के आगमन से यह Month Love के लिहाज से भी महत्वपूर्ण कहा गया है। इस Month Mahashivratri तथा Holi का पर्व भी मनाया जाता है। 1. 16 February Dwijpriya Sankashti Chaturthi: प्रतिमाह Krishna Paksha की Chaturthi Tithi को Sankashti Ganesh Chaturthi का Vrat रखा जाता है। इस दिन विधिपूर्वक Lord Ganesha की पूजा करने से सभी कष्टों से मुक्ति मिलने की भी मान्यता है। 2. 20 February SeetAshtami Festival: इस अवसर पर 20 February को Shri Janaki Prakatotsav या SeetAshtami Festival मनाया जाएगा तथा Mata Shabari Jayanti भी मनाई जाएगी। 3. 22 February Guru Ramdas Navami: इस वर्ष 22 February को Phalguna मास की Krishna Navami Tithi पर Ramdas Navami मनाई जा रही है। 4. 24 February Vijaya Ekadashi: February में Vijaya Ekadashi Vrat 24 February को मनाया जाएगा, जो कि Phalguna मास के Krishna Paksha की Ekadashi Tithi पर मनाया जाता है। मान्यतानुसार इस Ekadashi Vrat से Lord Vishnu और Goddess Lakshmi की कृपा प्राप्त होती है। 5. 25 February Bhaum Pradosh Vrat: कर्ज से मुक्ति दिलाने वाला Bhaum Pradosh Vrat 25 February को मनाया जा रहा है, जो कि Phalguna Krishna Paksha की Trayodashi Tithi पर पड़ता है। यह Vrat Punyafal देने वाला तथा समस्त सुख-सुविधाओं की प्राप्ति कराने वाला माना गया है। 6. 26 February Mahashivratri Festival: इस वर्ष Mahashivratri 26 February, Wednesday को मनाई जाएगी, जो कि Phalguna Month के Krishna Paksha की Chaturdashi Tithi पर पड़ती है तथा Lord Shiva और Goddess Parvati को समर्पित यह पर्व मनाया जाता है। इस Vrat के पूजन से Bholenath अपने भक्तों की समस्त इच्छाएं पूर्ण करते हैं। 7. 27 February Phalguna Amavasya: इस बार 27 February, Thursday को Phalguna मास की Amavasya मनाई जा रही है, जिसे Phalguni Amavasya के नाम से भी जाना जाता है। 8. 2 March Ramzan Month: इस वर्ष 2 March से Ramzan Month शुरू होने की उम्मीद है, 30 दिनों तक चलने वाले Ramzan Month में लोग Roza रखकर Vrat रखते हैं तथा Moon Visibility के हिसाब से 31 March को Ramzan समाप्त होगा। 9. 3 March Vinayaki Chaturthi: इस वर्ष 3 March को Vinayaki Chaturthi Vrat किया जाएगा, जो कि Phalguna Month के Shukla Paksha की Chaturthi Tithi पर मनाया जाएगा। यह Vrat Vighnaharta Lord Ganesha को समर्पित होता है। 10. 7 March Holashtak Start: हर साल Holi से 8 दिन पहले Holashtak का आरंभ होता है, जो कि Holika Dahan तक जारी रहता है। इस बार Phalguna Month में Holashtak 7 March, Friday से शुरू होकर 14 March तक चलेगा। 11. 8 March International Women’s Day: प्रतिवर्ष की तरह इस बार भी 8 March को महिलाओं को समर्पित दिन International Women’s Day मनाया जाएगा। 12. 10 March Amalaki Ekadashi: Amalaki Ekadashi Vrat 10 March को किया जाएगा। साथ ही Phalguna Month में इस Ekadashi के पड़ने के कारण इसे Rangbhari Ekadashi भी कहा जाता है। यह Vrat Moksha प्राप्ति दिलाने वाला माना गया है। 13. 11 March Khatu Shyam Mela: Phalguna Month की Dwadashi Tithi पर 11 March को Khatu Shyam Ji Mela तथा Bhaum Pradosh Vrat रखा जाएगा। 14. 13 March Holika Dahan: इस वर्ष 13 March Phalguna Shukla Chaturdashi Tithi तथा Vratadi Purnima पर Holika Dahan किया जाएगा। 15. 14 March Holi Dhulandi Festival: वर्ष 2025 में Phalguna Month के अंतिम दिन यानी 14 March को Phalguna Purnima के अवसर पर Snan-Daan Purnima और Colors Festival Holi मनाया जाएगा। यह दिन Colors से Holi खेलने हेतु महत्वपूर्ण माना जाता है।

Mahashivratri 2025: महाशिवरात्रि पर करें ये 5 अचूक उपाय, मिलेगी शिव कृपा और अपार लाभ!

Shivratri Ke Upay 2025 Shravan Maas Shivratri और Phalgun Mahashivratri का पर्व बहुत ही शुभ माना जाता है। Holi से पहले Phalgun Krishna Paksha Chaturdashi के दिन Mahashivratri festival मनाया जाता है। इस बार 26 February 2025, Wednesday को Mahashivratri celebration होगा। Mahashivratri Puja Shubh Muhurat: 🔹 Brahma Muhurat: स्नान का समय 05:09 AM - 05:59 AM 🔹 Amrit Kaal: सुबह 07:28 AM - 09:00 AM 🔹 Nishita Kaal Puja Time: मध्यरात्रि 12:09 AM - 12:59 AM इस दिन Lord Shiva blessings प्राप्त करने के लिए आप आजमा सकते हैं 5 powerful remedies। 5 Effective Remedies for Mahashivratri 2025 1️⃣ Diya Lighting: Mahashivratri night में Shiva Temple में Diya (lamp) जलाएं जो पूरी रात जलता रहे। इससे financial problems दूर होकर wealth and prosperity प्राप्त होती है। 2️⃣ Flour Shivling (Aate ka Shivling): Mahashivratri पर Flour Shivling बनाकर Water Abhishek करें। इस उपाय से childbirth (Santaan Prapti) के योग बनते हैं। 3️⃣ Feeding Bull (Nandi Puja): Shiva’s vehicle Nandi (Bull) को green fodder खिलाएं। इससे happiness, prosperity और problem resolution होता है। 4️⃣ Food Donation (Ann Daan): Mahashivratri day पर poor and needy people को food donation करें। इससे ancestral blessings, never-ending wealth, और peace मिलती है। 5️⃣ Fruits and Leaves Rituals: 21 Bilva Patra (Bel leaves) पर Sandalwood (Chandan) से ॐ नमः शिवाय लिखें और Shivling पर अर्पित करें। Shami tree leaves और Jasmine flowers चढ़ाने से abundant wealth and prosperity मिलती है। Mahashivratri 2025 के ये spiritual remedies करने से Lord Shiva blessings, financial stability, और success प्राप्त होती है।

महाकुंभ से वापसी पर जरूर लाएं ये पवित्र वस्तुएं, घर में आएगी समृद्धि और शुभता!

What to Bring at Home from Mahakumbh

कुंभ मेला India's largest religious fair है। हर बार जब यह आयोजित होता है, लाखों श्रद्धालु दूर-दूर से यहां आते हैं। इस मेले में holy bath को बहुत शुभ माना जाता है। अब तक करोड़ों की संख्या में लोग Sacred Sangam में स्नान कर चुके हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि Kumbh Mela से कुछ विशेष चीजें लाने से घर में happiness, prosperity, and spiritual growth होती है? यदि आप Sangam Snan के लिए Prayagraj जाते हैं तो आज हम आपको इन विशेष चीजों के बारे में बता रहे हैं जिन्हें घर लौटने पर आपको साथ लाना चाहिए। आइये जानते हैं वो कौनसी चीजें हैं। कुंभ मेले से लाई जाने वाली महत्वपूर्ण चीजें 🔹 Ganga Water: Ganga Jal को सबसे पवित्र माना जाता है। मान्यता है कि Ganga water में अद्भुत शक्तियां होती हैं। इसे घर में रखने से negative energy दूर होती है और positive energy का संचार होता है। Ganga Jal से prayer rituals करने और स्नान करने से peace of mind और health benefits होते हैं। 🔹 Sangam Ki Mitti (Sacred Soil from Sangam): Kumbh Mela में तीन नदियों का Triveni Sangam होता है। इस Sacred Soil को बहुत पवित्र माना जाता है। इसे घर में रखने से peace, prosperity, and happiness आती है। इस मिट्टी को puja place पर रखने से positive energy flow होता है। 🔹 Shivling: Kumbh Mela से Shivling लाना बहुत शुभ माना जाता है। Shivling को घर में स्थापित करने से Lord Shiva blessings प्राप्त होती हैं। Shivling worship करने से सभी wishes fulfilled होती हैं। 🔹 Tulsi (Holy Basil Plant): Tulsi plant को बहुत पवित्र माना जाता है। इसे घर में लगाने से peace, prosperity, and health benefits होते हैं। Tulsi worship करने से spiritual benefits मिलते हैं। कैसे करें इन वस्तुओं का उपयोग? ✔ Ganga Water: Copper vessel में रखें और daily puja में उपयोग करें। ✔ Sacred Soil: Clay pot में रखें और worship area में स्थापित करें। ✔ Shivling: घर के temple या Tulsi garden में स्थापित करें और regular puja करें। ✔ Tulsi Plant: Balcony या courtyard में लगाएं और daily watering करें। Kumbh Mela से लाई गई ये चीजें हमारे जीवन में positive vibrations का संचार करती हैं। इन चीजों को घर में रखने से हमारा जीवन harmony and prosperity से भर जाता है।

श्रीसूक्त का पाठ करने का क्या है सही तरीका? शुक्रवार को करें पाठ, दरिद्रता होगी दूर

श्री सूक्त (Shri Sukt) ऋग्वेद Rigveda से लिया गया है। शास्त्रों के अनुसार नित्य Shri Sukt का पाठ करने वाले जातक को इस संसार में समस्त सुखों happiness and prosperity की प्राप्ति होती है। उसे money और fame की कोई भी कमी नहीं होती है। नित्य नहीं कर सकते हैं तो प्रति Friday के दिन Shri Sukt पाठ करना चाहिए। कैसे करें श्री सूक्त का पाठ: 1. स्नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ white या pink clothes धारण करें। 2. फिर एक पाट पर Goddess Lakshmi की तस्वीर या मूर्ति रखें। 3. उनके पास ही Shri Yantra की स्थापना करें। 4. इसके बाद incense sticks और diya प्रज्वलित करें। 5. फिर lotus flower मां लक्ष्मी को अर्पित करें। 6. इसके बाद Shri Yantra एवं Goddess Lakshmi के चित्र के सामने खड़े होकर Shri Sukt का पाठ करें। यंत्र पूजा: Shri Yantra, Mahalakshmi Yantra, Dhan Varsha Yantra, Vyapar Vriddhi Yantra, Navagraha Yantra, Laxmi Kuber Yantra में से कोई एक यंत्र बनाएं और उसकी नित्य पूजा करें। घर के North-East corner में Shri Yantra को copper plate, silver plate या Bhojpatra पर बनवाकर रखें। फिर उनमें Pran Pratishtha करने के बाद उसकी पूजा करें। Shri Sukt की ऋचाओं से नियमित havan करने से विभिन्न कष्ट दूर होकर luxury and wealth की प्राप्ति होती है। Alakshmi की अकृपा प्राप्त होने से एक ओर जहाँ debts, illness, और poverty से मुक्ति मिलती है, वहीं दूसरी ओर Lakshmi blessings से success and prosperity की प्राप्ति होती है। इस मंत्र में Shri Sukt के पंद्रह छंदों में words vibration और sound energy से अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी के ध्वनि शरीर का निर्माण किया जाता है। मंत्र: माता लक्ष्मी के मंत्र - ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद। श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महालक्ष्मी नमः॥... इस मंत्र की Lotus seed mala से प्रतिदिन जप करने से लाभ होगा। इसके अलावा Daridrata Nashak Lakshmi Mantra या Daridrata Nashak Hanuman Mantra का जप भी कर सकते हैं। माता का भोग: Friday के दिन Goddess Lakshmi के मंदिर जाकर conch shell (shankh), kaudi (cowrie shells), lotus, makhana (fox nuts), sugarcane, और batasha अर्पित करें। ये सब Mahalakshmi को बहुत प्रिय हैं।

गंगा में स्नान नहीं कर पा रहे तो करें नर्मदा स्नान, मिलेगा संगम स्नान से भी अधिक पुण्य – जानें शास्त्रों की मान्यता

नर्मदा नदी के तो मात्र दर्शन करने से ही नष्ट हो जाते हैं जीवन के समस्त पाप

Ganga Triveni Sangam: Ganga को छोड़कर India की सभी Rivers धरती की Rivers हैं। उनमें से Sindhu, Saraswati, Vitasta, Brahmaputra, Narmada, Shipra, Godavari, Krishna और Kaveri River को सबसे Holy माना गया है। इन सबसे Holy Rivers में भी Narmada को और भी Sacred और श्रेष्ठ बताया गया है। Puranas में Narmada River को Ganga से भी श्रेष्ठ और Moksha प्रदान करने वाली River कहा गया है। यदि आप Prayagraj MahaKumbh में Ganga Snan नहीं कर पाए हैं तो Narmada Snan करके Ganga Snan से कहीं अधिक Punya प्राप्त कर सकते हैं। Narmada को Tapasvini कहा गया है। Religious Scriptures के अनुसार Narmada को India की सबसे Ancient Rivers में से एक माना जाता है। Puranas, Vedas, Mahabharata और Ramayana सभी ग्रंथों में इसका उल्लेख है। Narmada River का Origin Madhya Pradesh के Amarkantak स्थान से होता है और Gujarat के Khambhat की Gulf में इसका विलय हो जाता है। करीब 1300 km की यात्रा में Narmada Mountains, Forests और कई Ancient Pilgrimage Sites से होकर गुजरती है। Narmada Snan कहां करें: 1. Omkareshwar 2. Maheshwar 3. Mandleshwar 4. Narmadapuram 5. Nemawar 6. Mamleshwar 7. Amarkantak 8. Jabalpur Bhedaghat 9. Bawangaja 10. Mandla 11. Shoolpani 12. Bharuch Puranas में Narmada की महिमा: 1. 'गंगा कनखले पुण्या, कुरुक्षेत्रे सरस्वती, ग्रामे वा यदि वारण्ये, पुण्या सर्वत्र नर्मदा।' (अर्थात- Ganga Kankhal में और Saraswati Kurukshetra में पवित्र है, लेकिन Village हो या Forest, Narmada हर जगह पुण्य प्रदायिनी है।) 2. त्रिभीः सास्वतं तोयं सप्ताहेन तुयामुनम् सद्यः पुनीति गांगेयं दर्शनादेव नार्मदम्।- मत्स्यपुराण (सरस्वती में तीन दिन, Yamuna में सात दिन और Ganga में एक दिन Snan से पावन होता है, लेकिन Narmada के Darshan मात्र से व्यक्ति पवित्र हो जाता है।) 3. Puranas में वर्णित है कि Narmada जी Vairagya की अधिष्ठात्री मूर्तिमान स्वरूप हैं, Ganga ज्ञान की, Yamuna भक्ति की, Godavari ऐश्वर्य की, Krishna कामना की, Brahmaputra तेज की, और Saraswati विवेक के प्रतिष्ठान के लिए संसार में आई हैं। 4. Matsya Purana में कहा गया है कि Yamuna का Water एक सप्ताह में, Saraswati का तीन दिन में, Ganga का उसी दिन और Narmada का Water उसी क्षण पवित्र कर देता है। 5. Indian Puranas के अनुसार Narmada River को Patal की River माना जाता है। Narmadapuram से आगे बहते हुए यह River Nemawar में बहती है। Nemawar नगर में Narmada River का Nabhi Sthal है। कहा जाता है कि इस River के भीतर कई Paths हैं, जिनसे Patal Lok पहुंचा जा सकता है। 6. Skanda Purana में वर्णित है कि King Hiranyateja ने 14,000 Divine Years की घोर Tapasya से Lord Shiva को प्रसन्न कर Narmada को पृथ्वी पर लाने का वरदान मांगा। Shiva जी के आदेश से Narmada मगरमच्छ के आसन पर विराज कर Udayachal पर्वत पर उतरीं और पश्चिम दिशा की ओर बहकर आगे चली गईं। 7. Skanda Purana के Reva Khand में Rishi Markandeya ने लिखा है कि Narmada के तट पर Lord Vishnu के सभी Avatars ने आकर उनकी स्तुति की। 8. Adi Guru Shankaracharya ने Narmadashtak में Narmada को "Sarva Tirtha Nayakam" से संबोधित किया है, यानी उन्हें सभी तीर्थों का अग्रज माना गया है। 9. Puranas में वर्णित है कि संसार में एकमात्र Narmada River ही है, जिसकी Parikrama देवता, Siddha, Naag, Yaksha, Gandharva, Kinnar, Human आदि सभी करते हैं। कहते हैं कि कभी भी Narmada को Cross नहीं करना चाहिए। India में कई Rivers पश्चिम से पूर्व की ओर बहकर Bay of Bengal में मिलती हैं, लेकिन Narmada (Reva River) एकमात्र ऐसी River है, जो East से West की ओर बहकर Arabian Sea में जाकर मिलती है।

Kumbh Sankranti 2025: कुंभ संक्रांति का क्या है खास महत्व और पूजा विधि

Kumbh Sankranti : Sun Kumbh Sankranti एक महत्वपूर्ण Astronomical घटना है, जब Sun Makar Rashi से Kumbh Rashi में प्रवेश करता है। यह घटना Hindu Panchang के अनुसार Magh Maas में होती है। Kumbh Sankranti का होना बेहद शुभ माना जाता है। Kumbh Sankranti को MahaKumbh के नाम से भी जाना जाता है और इसे Donation, Punya और Snan के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। वर्ष 2025 में यह दिन 12 February, दिन Wednesday को पड़ रहा है, जब Kumbh Sankranti मनाई जाएगी। Sun Kumbh Sankranti का Importance: Religious एवं Jyotish Shastra की मान्यतानुसार Kumbh Sankranti के दिन Punya Kaal का विशेष महत्व होता है। इस समय में किए गए Religious कार्य, जैसे कि Snan, Donation और Pooja, विशेष फलदायी माने जाते हैं। Kumbh Sankranti के दिन Holy Rivers में Snan करने से Moksha की प्राप्ति होती है और सभी Sins नष्ट हो जाते हैं। साथ ही इस दिन Sun God की विशेष Pooja-अर्चना की जाती है। Sun को आत्मा का कारक माना जाता है, और उनकी Pooja करने से Long Life और Good Health की प्राप्ति होती है। Kumbh Rashi के Swami Shani Dev हैं, जो कि Lord Sun के पुत्र हैं। इस दिन Sun और Shani का मिलन होता है, इसलिए Kumbh Sankranti का महत्व और भी बढ़ जाता है। इस दिन Shani Dev को प्रसन्न करने के लिए विशेष Upay किए जाते हैं। इस दिन Til का विशेष महत्व है। इसलिए Til से बने पदार्थों का सेवन करें और Til का Donation करें। बता दें कि इस बार 12 February को Magh Purnima के दिन Prayagraj MahaKumbh में Triveni Sangam Kumbh Snan भी होगा। Kumbh Sankranti की Pooja Vidhi: 1. Sun Kumbh Sankranti के दिन प्रात:काल Early Morning उठकर Snan करें और Clean Clothes पहनें। 2. Lord Sun Narayan के सामने Vrat का Sankalp लें। 3. फिर Copper के Lota में Water, Til, Durva और Akshat मिलाकर Sun God को Arghya दें। Arghya देते समय 'ॐ सूर्याय नमः' Mantra का Jaap करें। 4. Lord Sun की Pooja करके उन्हें Flowers, Fruits, Dhoop, Deep, Naivedya आदि अर्पित करें। 5. Kumbh Sankranti की Katha पढ़ें या सुनें। 6. इस दिन Donation करना बहुत शुभ माना जाता है। अत: इस दिन अपने सामर्थ्य अनुसार Food, Clothes, Til, Jaggery, Blanket आदि Donation करना Beneficial होता है। 7. Sun-Kumbh Sankranti के Lord Sun के Mantras का Jaap करें। 8. Kumbh Sankranti Tithi पर या इस दिन Satvik Food ग्रहण करें। 9. Kumbh Sankranti के दिन Holy Rivers में Snan करने का विशेष महत्व है। यदि यह संभव न हो तो घर पर ही Snan के Water में Gangajal मिलाकर Snan कर लें। 10. इस दिन Pitra Tarpan भी करना चाहिए। अत: Pitra Tarpan, Black Til युक्त Water Arghya अवश्य दें। Religious मान्यता के मुताबिक Kumbh Sankranti एक महत्वपूर्ण पर्व है। इस दिन विधिपूर्वक Pooja-अर्चना करने से व्यक्ति के सभी Problems दूर होते हैं और उसे Happiness, Prosperity और Moksha की प्राप्ति होती है।

Ravidas jayanti 2025: गुरु रविदास जयन्ती कब है, जानिए उनके बारे में 5 रोचक बातें

प्रतिवर्ष Magh Maas Ki Purnima के दिन Guru Ravidas Jayanti मनाई जाती है। इस बार English Calendar के अनुसार 12 February 2025, Wednesday को यह जयंती मनाई जाएगी। Sant Ravidas का जन्म Magh Purnima को 1376 CE में हुआ था। उनका जन्म Uttar Pradesh, Varanasi के Govardhanpur Village में हुआ था। Shri Ram Bhakt Ravidas Ji Chamar Samaj से होने के कारण Shoemaking Profession से जुड़े थे। ऐसा करने में उन्हें बहुत खुशी मिलती थी और वे पूरी लगन तथा परिश्रम से अपना कार्य करते थे। क्यों मनाते हैं Ravidas Jayanti Sant Ravidas एक महान Spiritual Guru थे। उनके काल में हजारों शिष्य थे और आज उनके लाखों अनुयायी हैं। उनके अनुयायी Holy Rivers Snan कर उन्हें याद करते हैं। इसके बाद वे उनके जीवन से जुड़ी Great Events और Miracles को याद करके प्रेरणा लेते हैं। समाज में Unity बनी रहे और लोग Caste System को भूलकर एक रहें, इसलिए उनके भक्त Birthplace और Samadhi Sthal पर एकत्रित होकर Jayanti Celebration करते हैं। 1. Sant Ravidas के गुरु Swami Ramanand Sant Ravidas Ji बचपन से ही Bhakti Movement में लीन रहते थे। कहते हैं कि उनकी प्रतिभा को जानकर Swami Ramanand ने उन्हें अपना Disciple बनाया। Swami Ramanandacharya Vaishnav Bhakti Dhara के महान Saint थे। Sant Kabir, Sant Pipa, Sant Dhanna और Sant Ravidas उनके शिष्य थे। Sant Kabir ने 'Santan Mein Ravidas' कहकर इन्हें मान्यता दी है। 2. Mirabai थी उनकी शिष्या Rajasthan की Krishna Bhakt Poetess Mirabai की Sant Ravidas से मुलाकात का कोई आधिकारिक विवरण नहीं मिलता, लेकिन कहते हैं कि Mirabai Ke Guru Ravidas Ji ही थे। संत रविदास ने कई बार Mirabai Ki Jaan Bachayi थी। मीराबाई के एक पद से उनके गुरु का पता चलता है:- ‘गुरु मिलिआ संत गुरु रविदास जी, दीन्ही ज्ञान की गुटकी.’ ‘मीरा सत गुरु देव की करै वंदा आस. जिन चेतन आतम कहया धन भगवन रैदास..’ 3. कैसे पड़ा नाम Ravidas? कहते हैं कि Magh Purnima को जब Sant Ravidas Ji का जन्म हुआ, वह Sunday था, इसलिए इनका नाम Ravidas रखा गया। Punjab में इन्हें Ravidas कहा जाता है, जबकि Uttar Pradesh, Madhya Pradesh, Rajasthan में Raidas नाम से जाना जाता है। Gujarat, Maharashtra में Rohidas और West Bengal में Ruidas कहते हैं। कुछ Ancient Manuscripts में इन्हें Rayadas, Redas, Remdas, Raudas के नाम से भी जाना जाता है। 4. Guru Granth Sahib में शामिल पद Sant Ravidas ने अपनी Poetry के लिए Braj Bhasha का उपयोग किया है। इसमें Awadhi, Rajasthani, Khari Boli और Urdu-Farsi Words का भी मिश्रण है। Sant Ravidas Ke Lagbhag 40 Pad Sikh Religion के पवित्र ग्रंथ Guru Granth Sahib में भी सम्मिलित किए गए हैं। 5. Sant Ravidas का Temple Varanasi में Sant Ravidas का Grand Temple Aur Math स्थित है, जहां सभी जाति के लोग दर्शन के लिए आते हैं। Varanasi Mein Guru Ravidas Park भी है, जो Nagwa Area में उनके सम्मान में बनाया गया है। इसे Guru Ravidas Smarak Aur Park के नाम से जाना जाता है।

Magh purnima 2025: पितृदोष से मुक्ति का सबसे बड़ा दिन माघ पूर्णिमा, मात्र 2 उपाय करें

Pitra Dosh Ke Upay: Magh Purnima के दिन स्वयं Shri Hari Vishnu Ganga Jal में निवास करते हैं। Magh Purnima पर Ganga Snan से Vishnu की कृपा मिलती है। यह दिन Pitra Dosh Nivaran के लिए सबसे खास माना गया है। वर्ष 2025 में 12 February, Wednesday को Magh Maas की Purnima मनाई जा रही है। इस Prayagraj Kumbh Mela में Maha Snan होगा। आप कहीं पर हों, इस दिन Pitra Dosh Mukti के लिए 2 अचूक उपाय करना न चूकें। Mantra - "ॐ पितृगणाय विद्महे जगत धारिणी धीमहि तन्नो पितृो प्रचोदयात्।" 1. Shiv Puja और Tarpan सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर Surya Dev को अर्घ्य देने के पश्चात Pitra Tarpan नदी तट पर करें। इसके बाद Shiv Mandir में जाकर Shivling Puja करें। Ganga Jal, Kaccha Doodh, Kali Til, Safed Aakde ke Phool, Bilva Patra, Bhaang, और Dhatura अर्पित करें। इसके बाद Pitra Sukta, Gajendra Moksha, Pitra Stotra, Pitra Kavach का पाठ करें और Kapoor Aarti करें। 2. Deep Daan Magh Purnima पर Nadi Tat पर या River में Deep Daan करने को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। इससे Devi Devta Prasanna होते हैं और Punya की प्राप्ति होती है। इसी के साथ Pitra Dosh Mukti भी मिलती है। इस दिन Tulsi Ji के नीचे Ghee Ka Diya जलाने से Maa Lakshmi का आशीर्वाद प्राप्त होता है। Financial Problems दूर करने के लिए Magh Purnima के दिन 11 Kauri को Haldi Se Rangkar Mata Lakshmi को अर्पित करें और फिर इन्हें Lal Kapda में बांधकर Tijori में रख दें।

तिल द्वादशी का महत्व: जानें पूजा विधि, व्रत के लाभ और सही उपासना तरीका

Til Dwadashi Puja 2025: तिल द्वादशी एक बहुत ही महत्वपूर्ण Hindu Vrat है, जो माघ माह के शुक्ल पक्ष की Dwadashi Tithi को मनाया जाता है। इस वर्ष 09 फरवरी 2025, रविवार को Til Dwadashi मनाई जाएगी। यह व्रत Lord Vishnu को समर्पित है और इसे बहुत ही शुभ माना जाता है। Til Dwadashi Vrat अत्यंत फलदायी है। इस दिन Sesame Seeds (Til) का विशेष महत्व होता है और तिल से बने विभिन्न प्रकार के spiritual offerings का भोग लगाया जाता है। क्यों मनाई जाती है तिल द्वादशी? तिल द्वादशी का व्रत अत्यंत फलदायी है। यह व्रत Lord Vishnu Puja के लिए किया जाता है, जो कि Universe Preserver माने जाते हैं। तिल को पवित्र और शुभ माना जाता है। अतः इस दिन Sesame Seeds Donation का विशेष महत्व होता है। इस दिन Bhishma Dwadashi भी मनाई जाती है, जो Mahabharata Warrior Bhishma Pitamah को समर्पित है। इसी दिन Jaya Ekadashi Parana भी किया जाएगा। इस दिन Til Consumption, Til Donation और Havan करने की परंपरा है। मान्यतानुसार, इस दिन तिल का दान करने से Ashwamedha Yagya के समान फल प्राप्त होता है। इस व्रत से जीवन में prosperity और खुशहाली आती है। इस व्रत में तिल का विशेष महत्व है। इसलिए भगवान विष्णु की पूजा में और दान में तिल का प्रयोग जरूर करें। इस दिन पितरों का तर्पण भी करना चाहिए। कैसे मनाई जाती है तिल द्वादशी?Early Morning Rituals: -प्रातः स्नान कर clean clothes पहनें। -Lord Vishnu Puja Sankalp लें। -भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र को Puja Chowki पर स्थापित करें। -Til, Flowers, Fruits, Dhoop, Deep, Panchamrit अर्पित करें। -मंत्र 'Om Namo Bhagavate Vasudevaya' का जाप करें। -Til Dwadashi Katha पढ़ें या सुनें। -भगवान विष्णु को Til Sweets, Til Laddu, Til Rice आदि अर्पित करें। -पूरे दिन Fasting करें, यदि संभव न हो तो Fruit Diet ले सकते हैं। -Charity के रूप में गरीबों को तिल दान करें। -द्वादशी तिथि के दिन Til Bhog ग्रहण करें। तिल द्वादशी व्रत के लाभ: ✔ Lord Vishnu’s Blessings प्राप्त होती है। ✔ जीवन के सभी obstacles दूर होते हैं। ✔ Wealth and Prosperity में वृद्धि होती है। ✔ Moksha (Liberation) की प्राप्ति होती है। ✔ Health Benefits मिलते हैं, क्योंकि तिल का सेवन Ayurveda में पवित्र माना जाता है। ✔इस व्रत को विधिपूर्वक करने से व्यक्ति के सभी कष्ट दूर होते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है

सूर्य व शनि की कुंभ राशि में युति, बढ़ेंगी हिंसक घटनाएं, जानिए क्या होगा 12 राशियों पर असर

12 फरवरी 2025 तक सूर्य मकर राशि पर रहेंगे तत्पश्चात 12 फरवरी 2025 को सूर्य का कुंभ संक्रांति काल प्रारंभ होगा Sun and Saturn Conjunction in Aquarius: सूर्य का transit period ज्योतिषीय रूप से बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि सूर्य आत्मा के कारक ग्रह हैं जिसका प्रभाव प्रत्येक व्यक्ति पर पड़ता है। वर्तमान में सूर्य Capricorn zodiac sign पर गोचर कर रहे हैं। 12 फरवरी 2025 तक सूर्य मकर राशि पर रहेंगे तत्पश्चात 12 फरवरी 2025 को सूर्य का Kumbh Sankranti period प्रारंभ होगा अर्थात सूर्य Aquarius zodiac sign में प्रवेश करेंगे। सूर्य अपने पुत्र शनि की मूल त्रिकोण राशि कुंभ में 14 मार्च 2025 तक रहेंगे। वर्तमान में Saturn planet कुंभ राशि में स्थित हैं, अर्थात एक वर्ष बाद फिर से Sun-Saturn Conjunction in Aquarius बनेगा। यह योग world events, राजनीति और 12 राशियों पर सकारात्मक एवं नकारात्मक प्रभाव डालेगा। कुंभ राशि पर सूर्य-शनि की युति ज्योतिषीय दृष्टि से शुभ नहीं मानी जाती। इसके प्रभाव से violent incidents में वृद्धि हो सकती है और राजनीति में बड़े बदलाव देखने को मिल सकते हैं। इस astrological conjunction से आतंकी घटनाएं बढ़ सकती हैं और बड़े नेताओं की सुरक्षा पर सवाल उठ सकते हैं। 12 राशियों पर प्रभाव: 🔸 Aries (मेष): मेष राशि वाले जातकों के लिए सूर्य एकादश भाव में गोचर करेंगे, जहां पर शनि ग्रह पहले से विराजमान हैं। लाभ भाव में सूर्य शनि की युति मेष राशि वाले जातकों के लिए बहुत अच्छी मानी जाती है| Sun-Saturn transit लाभ भाव में होगा, जिससे आय में वृद्धि होगी, मान-सम्मान मिलेगा और नए career opportunities मिल सकते हैं। 🔸 Taurus (वृषभ):वृषभ राशि वाले जातकों के लिए सूर्य एवं शनि की युति दशम भाव में होगी। दशम भाव में सूर्य शनि का योग पिता के स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं माना जाता तथा कार्य क्षेत्र में भी रुकावटों का सामना करना पड़ सकता है। दशम भाव में युति होने से job promotion के मौके बनेंगे लेकिन मेहनत अधिक करनी पड़ेगी। Father’s health पर ध्यान देना होगा। 🔸 Gemini (मिथुन): मिथुन राशि वाले जातकों के लिए सूर्य शनि की युति नवम भाव में होगी, नवम भाव में सूर्य शनि के योग से इन राशि वालों को यात्रा का अवसर प्राप्त हो सकता है तथा धार्मिक यात्रा के अवसर मिलेंगे | नवम भाव में युति से travel opportunities मिलेंगी, लेकिन भाई-बंधुओं से मतभेद हो सकता है। 🔸 Cancer (कर्क): कर्क राशि वाले जातकों के लिए सूर्य शनि की युति अष्टम भाव में होगी, अष्टम भाव में सूर्य शनि का योग स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं माना जाता। अतः इनको स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखना पड़ेगा, सूर्य शनि के प्रभाव से आर्थिक हानि के योग भी बन सकते हैं। अष्टम भाव में सूर्य-शनि का योग financial loss और स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म दे सकता है। 🔸 Leo (सिंह): सिंह राशि वाले जातकों के लिए सूर्य का गोचर सप्तम भाव में होगा, सप्तम भाव में सूर्य शनि के प्रभाव से जीवनसाथी के साथ में मतभेद हो सकते हैं तथा कार्य क्षेत्र में भी रुकावटों का सामना करना पड़ सकता है। सप्तम भाव में यह planetary conjunction वैवाहिक जीवन में तनाव और कार्यक्षेत्र में बाधाएं ला सकता है। 🔸 Virgo (कन्या): कन्या राशि वाले जातकों के लिए सूर्य शनि का योग छठे भाव में होगा। इसके प्रभाव से इनका शत्रु पक्ष निर्बल होगा, कर्ज से राहत मिल सकती है। छठे भाव में युति होने से loan clearance, रोजगार और financial growth होगी। 🔸 Libra (तुला): तुला राशि वाले जातकों के लिए सूर्य शनि का योग पंचम भाव में होगा, इसके प्रभाव से इनकी कार्य सिद्धि में रुकावटें आ सकती हैं तथा संतान सुख में भी कमी हो सकती है | पंचम भाव में सूर्य-शनि का योग संतान से मतभेद और career obstacles ला सकता है। 🔸 Scorpio (वृश्चिक): वृश्चिक राशि वाले जातकों के लिए सूर्य शनि का योग चतुर्थ भाव में होगा। इसके प्रभाव से उनके कार्य क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी तथा उच्च अधिकारियों के साथ में मतभेद हो सकते हैं| चतुर्थ भाव में युति होने से कार्यक्षेत्र में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी लेकिन debt relief मिल सकती है। 🔸 Sagittarius (धनु): धनु राशि वाले जातकों के लिए सूर्य शनि का योग तृतीय भाव में होगा। तृतीय भाव में सूर्य शनि के प्रभाव से व्यक्ति का पराक्रम, साहस, मान सम्मान में बढ़ोतरी होगी | तृतीय भाव में यह zodiac alignment साहस, मान-सम्मान में वृद्धि देगा और नए business opportunities देगा। 🔸 Capricorn (मकर): मकर राशि वाले जातकों के लिए सूर्य शनि का योग द्वितीय भाव में होगा, इसके प्रभाव से मकर राशि वालों के पारिवारिक मतभेद बढ़ सकते हैं।| द्वितीय भाव में यह युति family disputes और धन हानि का कारण बन सकती है। 🔸 Aquarius (कुंभ): कुंभ राशि वाले जातकों के लिए सूर्य शनि का योग लग्न भाव में होगा। इसके प्रभाव से कुंभ राशि वालों को मानसिक अशांति हो सकती है, जीवनसाथी के साथ में मतभेद हो सकते हैं| लग्न भाव में mental stress, वैवाहिक जीवन में तनाव और कार्यक्षेत्र में बाधाएं उत्पन्न कर सकता है। 🔸 Pisces (मीन): मीन राशि वाले जातकों के लिए सूर्य शनि द्वादश भाव में योग करेंगे इसके प्रभाव से उनकी विदेश यात्रा का योग बनेगा, पारिवारिक मतभेद हो सकते हैं। द्वादश भाव में यह foreign travel के योग बनाएगा और कर्ज से मुक्ति दिला सकता है।

2025 में कब है जया (अजा) एकादशी व्रत, जानें महत्व, पूजा विधि और नियम

Jaya Ekadashi 2025: वर्ष 2025 में Jaya Ekadashi Saturday, 08 February को मनाई जाएगी। धार्मिक मान्यता अनुसार Magh Shukla Paksha में पड़ने वाली यह Ekadashi Vrat heavenly abode प्राप्त कराने वाली तथा Brahmahatya और अन्य sins से मुक्ति दिलाने वाली मानी गई है। Hindu Religion और Panchang के अनुसार Ekadashi Vrat रखने वाले भक्तों को इस दिन शुभ समय में Shri Hari Vishnu की पूजा करनी चाहिए। Jaya Ekadashi का महत्व: Jaya Ekadashi Vrat को Aja Ekadashi के नाम से भी जाना जाता है। यह व्रत Magh Month के Shukla Paksha Ekadashi Tithi को रखा जाता है। Hinduism में Ekadashi का दिन Lord Vishnu को समर्पित है। साल में 24 Ekadashi पड़ती हैं। इस दिन Lord Vishnu Puja और Vrat से विशेष लाभ प्राप्त होता है। मान्यता है कि इस Ekadashi Vrat को करने से सभी sins नष्ट हो जाते हैं और व्यक्ति को Moksha (salvation) की प्राप्ति होती है। Jaya Ekadashi Vrat करने से व्यक्ति Brahmahatya और अन्य पापों से मुक्त होकर liberation प्राप्त करता है तथा ghost, evil spirits और negative energies से बचा रहता है। Jaya/Aja Ekadashi Puja Vidhi: 1. Jaya या Aja Ekadashi पर सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और clean clothes पहनें। 2. Lord Vishnu की idol या picture को Gangajal से शुद्ध करें। 3. Yellow flowers, fruits, dhoop, deepak और Akshat अर्पित करें। 4. Vishnu Mantras का जाप करें और Ekadashi Katha पढ़ें। 5. Fast (Vrat) रखें और अगले दिन Dwadashi Tithi पर Vrat Parana करें। 6. Vishnu Mantras – "ॐ नारायणाय नमः" "ॐ विष्णवे नमः" "ॐ हूं विष्णवे नमः" "ॐ नारायणाय विद्महे। वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।।" "श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे। हे नाथ नारायण वासुदेवाय।।" Jaya Ekadashi Vrat के नियम: •Jaya Ekadashi के दिन grains (Anaj) का सेवन नहीं करना चाहिए। •दिन में sleeping नहीं करना चाहिए। •Brahmacharya का पालन करें। •Donation (Daan) करें और needy people की सहायता करें। •Lord Vishnu का ध्यान करें और Mantra chanting करें। •Falahar या जल उपवास रखा जाता है। Jaya Ekadashi व्रत करने से spiritual benefits, mental peace और divine blessings प्राप्त होते हैं।

महानंदा नवमी कैसे मनाई जाती है? जानें पूजा विधि, महत्व और पौराणिक कथा

Mahananda Navami 2025: Mahananda Navami एक Hindu festival है जो Magh month के Shukla Paksha की Navami tithi को मनाया जाता है। यह पर्व विशेषकर North-East India, Odisha और West Bengal में बहुत ही उत्साह के साथ मनाया जाता है। धार्मिक मान्यतानुसार Mahananda Navami का पूजन Magh, Bhadrapada और Margashirsha month के Shukla Navami tithi पर किया जाता है। Mahananda Navami का महत्व: Mahananda Navami Vrat करने से व्यक्ति के जीवन में happiness, prosperity और peace आती है। यह vrat Devi Nanda को प्रसन्न करने और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने का एक उत्तम तरीका है। यह festival Goddess Nanda को समर्पित है, जो Mata Parvati का ही एक रूप हैं। इस दिन, भक्त Goddess Nanda की पूजा करते हैं और उनसे blessings मांगते हैं। वर्ष 2025 में Mahananda Navami का त्योहार 06 February, Thursday को मनाया जाएगा। Mahananda Navami Puja Vidhi: • सुबह स्नान करें और clean clothes धारण करें। • Puja स्थल को साफ करें और वहां एक chowki स्थापित करें। • Chowki पर Goddess Nanda की मूर्ति या तस्वीर रखें। • उन्हें flowers, fruits, sweets, dhoop और deep अर्पित करें। • Goddess Nanda Mantra का जाप करें। • Navami Katha पढ़ें या सुनें। • Aarti करें। • फिर सभी को prasad वितरित करें। • गरीबों और जरूरतमंदों को daan करें। • Vrat रखें। Mahananda Navami Mantra: "ॐ नमो भगवते नन्दायै" तथा "ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं नन्दादेव्यै नम:" का अधिक से अधिक जाप करें। Mahananda Navami Katha: श्री Mahananda Navami Vrat Katha के अनुसार, एक समय की बात है कि एक sahukar की बेटी Peepal tree की पूजा करती थी। उस Peepal में Goddess Lakshmi का वास था। Mata Lakshmi ने साहूकार की बेटी से मित्रता कर ली। एक दिन Lakshmi Ji ने साहूकार की बेटी को अपने घर बुलाकर बहुत अच्छे से hospitality दी और ढेर सारे gifts दिए। जब वह लौटने लगी, तो Lakshmi Ji ने उसे पूछा कि तुम मुझे कब बुला रही हो? अनमने भाव से उसने Lakshmi Ji को अपने घर आने का invitation तो दे दिया लेकिन वह उदास हो गई। जब साहूकार ने कारण पूछा, तो बेटी ने कहा कि Goddess Lakshmi के वैभव के आगे हमारे पास कुछ भी नहीं है, हम उनकी सेवा कैसे करेंगे? साहूकार ने समझाया कि हमें जो भी प्राप्त है, हमें उसी से उनकी सेवा करनी चाहिए। बेटी ने चौका लगाया और diya जलाकर Goddess Lakshmi का नाम लेकर बैठ गई। तभी एक cheel नौलखा हार लेकर वहां डाल गया। उसे बेचकर बेटी ने golden thali, shawl, delicious food और golden chowki की तैयारी की। थोड़ी देर बाद Goddess Lakshmi Lord Ganesha के साथ पधारीं और उसकी सेवा से प्रसन्न होकर उसे unlimited prosperity का आशीर्वाद दिया। इसलिए माना जाता है कि जो व्यक्ति Mahananda Navami के दिन Vrat रखकर Goddess Lakshmi Puja करता है, उसके घर स्थायी wealth and prosperity आती है। साथ ही bad luck और poverty का नाश होता है।

2025 में माघ पूर्णिमा की तिथि, महत्व और पवित्र नदी स्नान के लाभ

Magh Purnima Snan: वर्ष 2025 में Magh Purnima 12 फरवरी, दिन बुधवार को मनाई जा रही है। आपको बता दें कि इन दिनों Prayagraj Mahakumbh जारी है और इस अवसर पर Magh Purnima Snan के दिन Triveni Sangam पर Kumbh Amrit Snan होगा। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार Magh Purnima Bath सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है, खासकर जब इसे Ganga River में किया जाए। कहा जाता है कि माघ के महीने में holy river bath करने से मनुष्य समस्त पापों से मुक्त हो जाता हैं। Magh Purnima Snan का महत्व: Magh Purnima के दिन Ganga Snan करने से व्यक्ति के सभी पाप धुल जाते हैं और spiritual purity तथा moksha की प्राप्ति होती है। मान्यतानुसार इस दिन Lord Vishnu Ganga water में निवास करते हैं, जिससे स्नान करने वाले को उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है। साथ ही Magh River Bath बहुत punya phaldayi माना गया है। अत: Magh Purnima Snan करने से Ashwamedha Yagya के समान फल प्राप्त होता है। Ganga water में स्नान करने से शरीर के कई diseases दूर होते हैं और health benefits मिलते हैं। यदि आप holy river bath के लिए नहीं जा पा रहे हैं तो Ganga Jal मिलाकर स्नान कर सकते हैं। Ganga River में 5 डुबकी लगाने का महत्व: शास्त्रों में Ganga Bath Dips का विशेष महत्व बताया गया है। Magh Purnima के दिन 5 Holy Dips लगाने का विशेष महत्व है। इन five dips का संबंध Panch Tatva से है। मान्यता है कि इन 5 dips के माध्यम से मनुष्य Earth, Water, Fire, Air, Sky इन तत्वों के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करता है। 1. First Dip: शरीर की purification होती है। 2. Second Dip: मन की mental purity होती है। 3. Third Dip: कर्मों की karmic cleansing होती है। 4. Fourth Dip: विचारों की spiritual clarity होती है। 5. Fifth Dip: आत्मा की soul purification होती है। Magh Purnima Snan की विधि: ✔ Brahma Muhurat में उठकर holy bath करें। ✔ स्नान के दौरान "Om Namo Gangayai Vishnupade Sansthitayai Narayanyai Dashaharayai Shuddhayai Namah" मंत्र का जाप करें। ✔ स्नान के बाद Surya Dev को Arghya दें। ✔ Charity and Donation करें, जैसे अन्न, वस्त्र और दक्षिणा देना। Magh Purnima पर Ganga Snan के फायदे: ✅ Sins Removal: Ganga river bath करने से सभी पापों का नाश होता है। ✅ Moksha Attainment: Magh Purnima Snan से spiritual liberation मिलता है। ✅ Health Benefits: Holy River Snan से diseases removal और better immunity मिलती है। ✅ Mental Peace: Ganga Bath करने से stress relief और positive energy प्राप्त होती है। ✅ Financial Prosperity: Magh Snan करने से wealth and prosperity बढ़ती है। Magh Purnima Snan का धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व दोनों है, इसलिए इस दिन holy river bath अवश्य करना चाहिए। 🚩

माघ मास: धार्मिक महत्व और इस महीने किए जाने वाले प्रमुख कार्य

माघ महीने में होता है देवताओं का पृथ्वी पर आगमन, जानें इस माह का महत्व और किए जाने योग्य खास कार्य Magh Month : हिन्दू धर्म में माघ महीना एक विशेष महत्व रखता है। इसे देवताओं का महीना माना जाता है और इस महीने में किए गए पुण्य कर्मों का फल कई गुना बढ़ जाता है। माघ महीने के religious significance : यदि माघ महीने के religious importance के पीछे का कारण जानें तो यह season change का समय होता है। माघ महीने में मौसम बदलता है और ठंड कम होने लगती है। यह प्रकृति के जागरण का समय होता है। इस अवधि में सूर्य का Capricorn zodiac में प्रवेश करना भी एक astronomical event है, जिसका धार्मिक महत्व है। माघ महीने में spiritual growth के लिए कई अवसर मिलते हैं। इस महीने विशेष तिथियों पर charity and donations के कार्य करके लाभ कमाया जा सकता है। माघ महीना हिंदू धर्म में एक sacred month है। इस महीने में किए गए पुण्य कर्मों का फल कई गुना बढ़ जाता है। माघ महीने में धार्मिक अनुष्ठानों, donation and service activities करने से व्यक्ति को आत्मिक शांति और salvation (moksha) की प्राप्ति होती है। माघ महीने में holy river bath का महत्व: माघ महीने में गंगा, यमुना जैसी sacred rivers में स्नान करने का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इन नदियों में स्नान करने से सभी पाप धुल जाते हैं और moksha attainment होती है। माघ महीने में Makar Sankranti festival भी मनाया जाता है। इस दिन Sun God (Surya Dev) Capricorn sign में प्रवेश करते हैं और दिन लंबे होने लगते हैं। माघ महीने में Kumbh Mela का आयोजन किया जाता है, जो विश्व का सबसे बड़ा religious congregation है। इस मेले में लाखों श्रद्धालु Ganga river bath करने तथा पुण्य कमाने आते हैं। माघ महीने की पूर्णिमा को Maghi Purnima कहते हैं। इस दिन Ganga Snan का विशेष महत्व होता है। Arrival of Gods: माना जाता है कि माघ महीने में deities visit Earth और sacred river bath करते हैं। इसलिए इस महीने में worship of gods का विशेष महत्व है। माघ महीने में charity (daan) करने का विशेष महत्व है। माना जाता है कि इस महीने में किया गया donation कई गुना फल देता है। माघ महीने में yoga and meditation करने से विशेष लाभ मिलता है। साथ ही यदि आप प्रयागराज Mahakumbh or Sangam Snan के लिए नहीं जा पा रहे हैं तो अन्य स्थानों जैसे Narmada, Krishna, Ganga, Godavari, Kaveri आदि holy rivers में स्नान करके religious benefits प्राप्त कर सकते हैं। माघ महीने में किए जाने योग्य प्रमुख कार्य: 📖Holy bath: पवित्र नदियों में स्नान करना। 📖Charity: अन्न, वस्त्र, धन आदि का दान करना। 📖Religious scriptures reading: धार्मिक ग्रंथों का पाठ करना। 📖Worship and prayer: भगवान Vishnu and Sun God की पूजा करना। 📖Mantra chanting: विभिन्न मंत्रों का जाप करना।

प्रयागराज से पहले कहां मिलता है गंगा-यमुना का संगम? जानिए इस रहस्यमयी त्रिवेणी का नाम

देश में इस समय Prayagraj Maha Kumbh Mela में Triveni Sangam Bathing को लेकर खासा उत्साह है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि before Prayagraj, Devbhoomi Uttarakhand में भी एक Triveni Sangam है? Uttarkashi district, Yamunotri Highway पर स्थित Gangani Kund वह स्थान है, जहां Ganga-Yamuna Confluence होता है। यहां ancient kund से Bhagirathi River water Yamuna River से मिलता है। इस संगम में Kedar Ganga River भी मिलती है, जिससे यह Triveni Sangam Uttarakhand बन जाता है। Gangani Kund Mythological Story (गंगाणी कुंड की कहानी) प्राचीन मान्यताओं के अनुसार, Rishi Jamadagni अपने Tapasya period में पास के Than Village में रहते थे। वे प्रतिदिन Ganga Snan के लिए Uttarkashi जाते थे। वृद्धावस्था में यह संभव नहीं हुआ, इसलिए उन्होंने deep meditation किया। इससे प्रसन्न होकर Maa Ganga उनके निवास के समीप Gangani Kund Uttarakhand में प्रकट हुईं। Gangani Religious Significance (गंगाणी का धार्मिक महत्व) Gangani Triveni Sangam Religious Significance Prayagraj Triveni Sangam के समान ही है। Bhagirathi River water level की तरह Gangani Kund water level भी घटता-बढ़ता रहता है। यहां holy bath करने से श्रद्धालुओं के sins washed away हो जाते हैं और उन्हें Moksha (salvation) की प्राप्ति होती है। यहां कई religious rituals किए जाते हैं, जैसे कि Chudakarma, Hindu Marriage rituals, और अन्य spiritual ceremonies। Gangani Kund Jatra Festival हर साल February month में आयोजित होता है, जिसमें large number of devotees भाग लेते हैं। Gangani Triveni Sangam Neglected by Government Tehri Kingdom era में हर साल State Treasury से 20 rupees money order यहां Dhoop Deep expenses के लिए भेजा जाता था, जो Tehri King Manvendra Shah के निधन के बाद से बंद हो गया। Gangani Triveni Sangam promotion और government attention के अभाव में यह स्थान lesser-known pilgrimage site बनकर रह गया है। हालांकि, local people इसे sacred place मानते हैं। उनका कहना है कि अगर Gangani religious tourism promotion किया जाए, तो यह important Hindu pilgrimage site बन सकता है। इससे local employment generation होगा और Uttarakhand tourism economy boost मिलेगी।

नर्मदा नदी की उल्टी धारा का रहस्य: वैज्ञानिक कारण और पौराणिक कथा

Scientific Reason behind Reverse Flow of Narmada River:- Narmada River, जिसे 'Rewa River' के नाम से भी जाना जाता है, India's major rivers में से एक है। यह Madhya Pradesh and Gujarat states के लिए lifeline है, जो लाखों लोगों को water and livelihood प्रदान करती है। Narmada River Religious Significance भी बहुत अधिक है, इसे Ganga River के समान पवित्र माना जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह नदी अन्य नदियों के विपरीत, reverse direction में क्यों बहती है? Scientific Reason: Effect of Rift Valley Narmada River Reverse Flow का मुख्य कारण Rift Valley Geographical Structure है। Rift Valley एक crack-like valley होती है, जो tectonic plate movements के कारण बनती है। इस घाटी के कारण नदी का बहाव opposite slope direction में होता है। Mythological Story: A Love Legend Narmada River Reverse Flow Mystery के पीछे एक mythological story भी है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, Narmada River का विवाह Sonbhadra River के साथ तय हुआ था। लेकिन Narmada’s friend Johila को Sonbhadra पसंद आ गया और Sonbhadra River Love Story में बदल गया। जब इस बात का पता Narmada को लगा, तो इससे दुखी होकर उन्होंने आजीवन remain unmarried रहने का निर्णय लिया और flow in opposite direction में बहने लगी। Narmada River Significance Narmada River न केवल अपने reverse flow के लिए जानी जाती है, बल्कि यह biodiversity hotspot भी है। इस नदी के किनारे कई wildlife sanctuaries और national parks स्थित हैं, जो विभिन्न प्रकार के flora and fauna का घर हैं। Narmada River Reverse Flow निश्चित ही एक interesting and mysterious phenomenon है। इसके पीछे scientific and mythological reasons दोनों बताए जाते हैं। चाहे कारण जो भी हो, Narmada River India’s Sacred Rivers में से एक है, जो लाखों लोगों के जीवन को प्रभावित करती है।

भीष्म अष्टमी व्रत कब और कैसे किया जाता है, जानें पर्व के शुभ मुहूर्त, महत्व और पूजा विधि

Bhishma Ashtami Puja:- भीष्म अष्टमी को Bhishma Tarpan Divas के रूप में भी जाना जाता है। यह दिन Bhishma Pitamah को समर्पित है, जिन्होंने Mahabharata War में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। अत: इस दिन को Bhishma Tarpan Day के रूप में विशेष तौर पर मनाया जाता है। इस दिन Pitru Tarpan करने से उन्हें शांति मिलती है और उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है। Bhishma Ashtami Date and Significance Bhishma Ashtami 2025: प्रतिवर्ष Magha Month Shukla Paksha Ashtami Tithi को Bhishma Ashtami Festival मनाया जाता है। यह दिन Bhishma Tarpan Day के रूप में मनाया जाता है, जो कि हर साल Magha Month Shukla Paksha Ashtami तिथि पर पड़ता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार इस दिन विशेषकर Bhishma Pitamah तथा Pitrus का तर्पण किया जाता है। यह दिन Mahabharata Warrior Bhishma Pitamah को समर्पित है। इस दिन Charity and Punya करने का भी विशेष महत्व है। धर्मग्रंथों के अनुसार, इसी तिथि पर Bhishma Pitamah Death Anniversary मनाई जाती है और उन्हें Ichha Mrityu Vardaan प्राप्त था। अत: इसे Bhishma Ashtami Festival के तौर पर मनाया जाता है। Bhishma Ashtami 2025 Date & Muhurat वर्ष 2025 में यह तिथि 05 फरवरी, बुधवार को पड़ रही है। मान्यतानुसार इस दिन Pitru Tarpan Rituals करने से पितरों को शांति मिलती है। कहा जाता है कि Bhishma Pitamah, अपने पिता की आज्ञा का पालन करते हुए आजीवन Brahmacharya Vrat में रहे। इसलिए उन्हें Pitru Bhakt माना जाता है। अत: इस दिन Bhishma Pitamah Tarpan करने से Pitru Rina Mukti मिलती है। यह दिन Great Warrior of Mahabharata Bhishma Pitamah को समर्पित है। Bhishma Ashtami 2025 Puja Muhurat Bhishma Ashtami: 5th February 2025 (Wednesday) Madhyahna Puja Time: 11:30 AM to 01:41 PM (Duration: 2 Hours 11 Minutes) Ashtami Tithi Start: February 5, 2025, at 02:30 AM Ashtami Tithi End: February 6, 2025, at 12:35 AM Bhishma Ashtami Vrat and Puja Vidhi 1. Bhishma Ashtami Vrat के दिन प्रातः जल्दी उठकर Sacred Bath करें और साफ वस्त्र धारण करें। 2. Puja Thali में Til, Jau, Kusha, and Water रखें। 3. Pitru Puja करें और जल अर्पित करें। 4. Bhishma Pitamah Puja के लिए उनकी तस्वीर या मूर्ति को स्थापित करें। 5. फिर Bhishma Pitamah Meditation करें और जल अर्पित करें। 6. Flowers, Akshat, Dhoop, Deep अर्पित करें। 7. बहुत से लोग इस दिन Fasting on Bhishma Ashtami रखते हैं। 8. ॐ भीष्माय नमः Mantra Chanting करें। 9. Bhishma Pitamah Katha पढ़ें या सुनें। 10. इस दिन Feeding Brahmins and Charity to Poor करना शुभ माना जाता है। इस दिन Bhishma Ashtami Puja और Pitru Tarpan करने से Pitra Dosha Nivaran होता है और Pitra Kripa प्राप्त होती है।

बसंत पंचमी पर इन शुभ कार्यों के लिए मुहूर्त देखना नहीं होता आवश्यक

Basant Panchami 2025: Vasant Panchami Hindu Religion का एक महत्वपूर्ण पर्व है। यह दिन Goddess Saraswati को समर्पित है। मान्यता है कि इस दिन किए गए auspicious activities सफल होते हैं। सबसे खास बात यह है कि इस दिन बिना muhurta देखे भी shubh works किए जा सकते हैं। क्यों है Vasant Panchami विशेष? Vasant Panchami Day इसलिए विशेष माना जाता है क्योंकि इस दिन Goddess Saraswati Blessings प्राप्त होते हैं। Saraswati Mata Goddess of Knowledge हैं और माना जाता है कि इस दिन किए गए auspicious activities में Saraswati Devi Blessing मिलता है। बिना Muhurta के किए जा सकने वाले Shubh WorksStart a New Business: Vasant Panchami के दिन नया business start करना बहुत शुभ माना जाता है। माना जाता है कि इस दिन शुरू किया गया business growth करेगा। ✅ Mundan Ceremony: इस दिन बच्चे का mundan sanskar भी शुभ माना जाता है। माना जाता है कि इस दिन किया गया mundan बच्चे को intelligent बनाता है। ✅ Griha Pravesh: नए घर में प्रवेश करना यानी housewarming ceremony भी Vasant Panchami के दिन किया जा सकता है। यह दिन घर में prosperity लाने वाला माना जाता है। ✅ Bhavan Nirman Poojan or Bhoomi Poojan: अगर आप कोई नया घर बनाना चाहते हैं तो Vasant Panchami के दिन land pooja करना बहुत शुभ होता है। क्यों है Vasant Panchami Muhurta के बिना शुभ? Vasant Panchami को बिना muhurta के शुभ माना जाता है क्योंकि यह दिन Goddess Saraswati को समर्पित है। Saraswati Mata Blessings से माना जाता है कि इस दिन किया गया कोई भी auspicious activity सफल होता है। Vasant Panchami पर क्या करें?Worship Goddess Saraswati: इस दिन Saraswati Mata Pooja करने से wisdom और knowledge में वृद्धि होती है। ✅ Wear Yellow Clothes: Yellow color Saraswati’s Favorite Color है। इसलिए इस दिन yellow clothes पहनने चाहिए। ✅ Do Education-related Work: इस दिन education-related tasks करना शुभ माना जाता है। जैसे-कि किताबें पढ़ना, लिखना आदि। ✅ Encourage Children for Education: इस दिन बच्चों को education encouragement देना चाहिए। Vasant Panchami Day बहुत ही शुभ माना जाता है। इस दिन बिना muhurta देखे भी कई shubh works किए जा सकते हैं। अगर आप कोई नया काम शुरू करना चाहते हैं या फिर किसी auspicious task की योजना बना रहे हैं तो Vasant Panchami का दिन आपके लिए बहुत शुभ हो सकता है।

महाकुंभ स्नान के दौरान इन पवित्र मंत्रों का जाप करें और मिलेगा पुण्य का पूरा लाभ

Mahakumbh 2025: Mahakumbh, World’s Largest Religious Gathering, हर 12 Years में एक बार आयोजित किया जाता है। इस बार यह आयोजन Prayagraj में हुआ। लाखों Devotees Holy Sangam Bath के लिए यहां आते हैं। इस दौरान वे विभिन्न Sacred Mantras Chanting करते हैं। आइए जानते हैं इन Spiritual Mantras Importance और इनके Chanting Benefits। क्यों किया जाता है Mantra Chanting? ✅ Spiritual Concentration: Mantra Recitation मन को Focus and Meditation में मदद करता है। ✅ Purity: Sacred Mantras का जाप Sins Removal और Mind Purification में सहायक होता है। ✅ Divine Connection: Mantras के माध्यम से Devotees God’s Blessings प्राप्त करते हैं। ✅ Mental Peace: Mantra Chanting Mind Relaxation और Stress Reduction में मदद करता है। महाकुंभ में कौन से मंत्रों का जाप किया जाता है? 🔥. गंगा मंत्र (Ganga Mantra) : गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती।, नर्मदे सिंधु कावेरी जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरु।। इस Holy River Mantra का जाप करते हुए श्रद्धालु Ganga, Yamuna, Godavari आदि सभी Sacred Rivers में Spiritual Bath करने का Divine Blessings मांगते हैं। 🔥. ॐ नमः शिवाय (Om Namah Shivaya): यह Shiva Mantra बहुत ही Sacred माना जाता है। इसका जाप करने से Lord Shiva Blessings प्राप्त होते हैं। 🔥. गायत्री मंत्र: ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्। यह मंत्र वेदों का सबसे महत्वपूर्ण मंत्र माना जाता है। इसका जाप करने से बुद्धि का विकास होता है और मन शांत होता है। 🔥. महामृत्युंजय मंत्र: ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः, ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्, उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्, ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ यह मंत्र मृत्यु के भय से मुक्ति दिलाता है और दीर्घायु प्रदान करता है। Mantra Chanting Significance Mahakumbh Rituals में Sacred Mantras Recitation महत्वपूर्ण अनुष्ठान है। यह Spiritual Energy प्रदान करता है और Life Goals Achievement में मदद करता है। Chanting Mantras से Peace of Mind और Stress Relief होता है।

बसंत पंचमी पर माता सरस्वती के साथ किन देवताओं की होती है पूजा?

Annotsav 2025: Vasant Panchami के दिन Madanotsav भी रहता है, जिसे Vasantotsav कहते हैं। Madan नाम Kamdev का ही नाम है। Vasant Panchami Festival के दिन Mata Saraswati के अलावा Kamdev Worship का भी प्रचलन है। Kamdev Devta को Lord Shiva ने अपने Third Eye से भस्म कर दिया था और बाद में Rati को दिए वरदान के तहत Kamdev Rebirth Lord Krishna Son Pradyumna के रूप में हुआ। Vasant Panchami Puja में Kamdev Worship Rituals किए जाते हैं। Kamdev Puja Benefits से Married Life Harmony या Marriage Obstacles Removal होती है। Mudgal Purana के अनुसार Kamdev Presence Youth, Women, Beautiful Flowers, Music, Pollen Essence, Birds Melodious Voice, Beautiful Gardens, Vasant Ritu, Sandalwood, Passionate Mindset, Hidden Beauty, Pleasant Breeze, Luxurious Living, Attractive Clothes और Beautiful Jewelry Adorned Bodies में होती है। इसके अलावा Kamdev Power in Women खासतौर पर Eyes, Forehead, Eyebrows और Lips Influence में अधिक होती है। यौवनं स्त्री च पुष्पाणि सुवासानि महामते:। गानं मधुरश्चैव मृदुलाण्डजशब्दक:।। उद्यानानि वसन्तश्च सुवासाश्चन्दनादय:। सङ्गो विषयसक्तानां नराणां गुह्यदर्शनम्।। वायुर्मद: सुवासश्र्च वस्त्राण्यपि नवानि वै। भूषणादिकमेवं ते देहा नाना कृता मया।। Vasant Panchami Marriage Muhurat को Fortunate for Wedding माना जाता है। इस दिन Marriage Fixing, Engagement Ceremony या Wedding Rituals करना शुभ होता है।

Ratha Saptami Date 2025: रथ सप्तमी क्यों मनाई जाती है?

रथ सप्तमी : धार्मिक शास्त्रों के अनुसार Ratha Saptami एक महत्वपूर्ण Hindu Festival है, जो Magha Month के Shukla Paksha Saptami Tithi को मनाया जाता है। यह त्योहार Sun God को समर्पित है, जिन्हें ऊर्जा और जीवन का स्रोत माना जाता है। वर्ष 2025 में Ratha Saptami Festival मंगलवार, 4 February को मनाया जा रहा है। इस दिन खासकर Surya Narayan Worship की जाएगी। क्यों मनाया जाता है Ratha Saptami का त्योहार? Ratha Saptami को Achala Saptami और Surya Jayanti के नाम से भी जाना जाता है। Ratha Saptami Celebration के पीछे कई कारण हैं, पौराणिक कथाओं के अनुसार, Magha Month Shukla Paksha Saptami Tithi को Sun God Birth Anniversary थी। इसलिए इस दिन को Surya Jayanti के रूप में भी मनाया जाता है। Ratha Saptami के दिन Sun God अपने Seven Horses Chariot पर सवार होकर North Direction Journey शुरू करते हैं। यह रथ Life, Energy and Progress Symbol है। अत: Sun Chariot Symbolism के तौर पर Ratha Saptami Festival मनाई जाती है। इस संबंध में मान्यता है कि Ratha Saptami Worship करने से Health and Prosperity Benefits प्राप्त होते हैं। इस दिन Holy Bath, Donation and Fasting Rituals करने से Punya Phal मिलता है। Ratha Saptami Spring Season Arrival Symbol होने के कारण यह त्योहार Nature Cycle Representation करता है और हमें Nature Respect and Balance Inspiration देता है। अत: Ratha Saptami Hindu Festival हमें Sun God Glory and Nature Respect की याद दिलाता है। इस दिन Sun God Worship Rituals करने से हमें Health, Prosperity and Happiness Blessings प्राप्त होते हैं और Nature Balance Maintenance बना रहता है। मान्यता है कि इस दिन Sun God Worship करने से सभी Diseases and Sins Removal Benefits मिलते हैं। रथ सप्तमी की पूजा विधि: 1. रथ सप्तमी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ वस्त्र धारण करें। 2. सूर्य देव को अर्घ्य दें और व्रत का संकल्प लें। 3. सूर्य देव की प्रतिमा या चित्र को एक चौकी पर स्थापित करें। 4. उन्हें लाल पुष्प, कुमकुम, अक्षत, धूप, दीप आदि अर्पित करें। 5. 'ॐ सूर्याय नमः' मंत्र का जाप करें। 6. रथ सप्तमी की कथा पढ़ें या सुनें। 7. अंत में सूर्य देव की आरती करें। 8. सूर्य देव से अपनी मनोकामनाएं कहें।

माघ मास की गुप्त नवरात्रि की कथा

Gupta Navaratri 2025: इस वर्ष 30 जनवरी 2025, गुरुवार से Magh Maas Gupta Navratri आरंभ हो गई है। Gupta Navratri के दौरान Das Mahavidya यानी Maa Kali, Tara Devi, Tripura Sundari, Bhuvaneshwari, Mata Chhinnamasta, Tripura Bhairavi, Maa Dhumavati, Mata Baglamukhi, Matangi, और Kamala Devi की पूजा की जाती है। Tantrik Sadhana और Shakti Sadhana के इस पावन पर्व पर Gupta Navratri Katha पढ़ी या सुनी जाती है। कई धार्मिक ग्रंथों में गुप्त नवरात्रि की कथा का वर्णन मिलता है, जिनमें से कुछ प्रमुख कथाएं इस प्रकार हैं: 1. पहली कथा: एक समय Rishi Shringi अपने भक्तों को दर्शन दे रहे थे। तभी अचानक भीड़ में से एक स्त्री सामने आई और बोली कि उसके पति हमेशा Wrong Deeds में लगे रहते हैं, जिससे वह Worship और Devotion से दूर रहती है। Rishi Shringi ने उसे Gupta Navratri में Maa Durga Worship करने का सुझाव दिया और बताया कि इससे All Problems और Wishes Fulfilled होती हैं। उस स्त्री ने Gupta Navratri Puja की और Maa Durga Blessings से उसके पति के सभी Bad Habits दूर हो गए और वह Good Person बन गया। 2. दूसरी कथा: एक अन्य कथा के अनुसार, एक समय A King’s Kingdom में Severe Drought पड़ा। प्रजा Hunger से परेशान थी। राजा ने Scholars and Saints को बुलाया और समाधान पूछा। उन्होंने बताया कि Gupta Navratri में Maa Durga Puja करने से यह समस्या दूर हो सकती है। राजा ने Gupta Navratri Worship की और Maa Durga Blessings से राज्य में Heavy Rainfall हुई और प्रजा Happy and Prosperous हो गई।

2 या 3 फरवरी कब मनाई जाएगी बसंत पंचमी, जानिए तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और भोग

बसंत पंचमी 2025 : Basant Panchami festival हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है। यह त्योहार Goddess Saraswati को समर्पित है। इस दिन Maa Saraswati Puja की जाती है और उन्हें Yellow flowers और Bhog अर्पित किए जाते हैं। कब है बसंत पंचमी? हिंदू पंचांग के अनुसार, Basant Panchami माघ मास के शुक्ल पक्ष की Panchami Tithi के दिन मनाई जाती है। साल 2025 में, यह तिथि 2 फरवरी को सुबह 9 बजकर 14 मिनट से शुरू होगी और 3 फरवरी को सुबह 6 बजकर 52 मिनट पर समाप्त होगी। Udayatithi के अनुसार, Basant Panchami 2025 को 2 फरवरी को मनाई जाएगी। बसंत पंचमी का महत्व :- 1. Goddess of Wisdom की पूजा: Basant Panchami के दिन Maa Saraswati Puja की जाती है। यह दिन Vidya, Buddhi, और Kala के प्रति समर्पित है। 2. Arrival of Spring Season: Basant Panchami festival को Spring season के आगमन के उत्सव के रूप में भी मनाया जाता है। 3. Auspicious Day for Ceremonies: Basant Panchami को शुभ कार्यों के लिए भी उत्तम माना जाता है। इस दिन Marriage, Griha Pravesh और अन्य Auspicious Ceremonies किए जा सकते हैं। बसंत पंचमी की पूजा विधि 1. सुबह स्नान करके Yellow Clothes धारण करें। 2. Maa Saraswati Idol or Image को एक Yellow Cloth पर स्थापित करें। 3. Goddess Saraswati को Yellow Flowers, Sandalwood, Akshat, और Incense-Lamp अर्पित करें। 4. Maa Saraswati Vandana करें और Mantra Chanting करें। 5. Maa Saraswati को Yellow Bhog अर्पित करें। 6. Aarti करें और Prasad Distribution करें। माँ सरस्वती के लिए भोग रेसिपी सामग्री: ...1 कप Rice ...1/2 कप Sugar ...1/4 कप Ghee ...1/4 कप Dry Fruits (Almonds, Cashews, Raisins) ...1/2 चम्मच Cardamom Powder ...Saffron (Kesar) विधि: 1. Wash and Soak Rice को 30 मिनट के लिए भिगो दें। 2. एक पैन में Ghee Heat करें और उसमें Dry Fruits Roast कर लें। 3. Soaked Rice को पैन में डालें और Low Flame पर भूनें। 4. जब Rice Golden Brown हो जाए तो उसमें Sugar और 2 Cups Water डालें। 5. Low Flame पर Cook until Water Evaporates करें। 6. जब पानी सूख जाए तो उसमें Cardamom Powder और Saffron डालें। 7. अच्छी तरह मिलाएं और Serve Hot करें। बसंत पंचमी का महत्व Basant Panchami Festival Knowledge, Education, and Art के महत्व को दर्शाता है। इस दिन Maa Saraswati Puja करके हम अपने जीवन में Wisdom और Success की प्राप्ति के लिए उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

Prayagraj's Hidden Gems: Top Attractions to Explore

महा कुंभ मेला 2025: एक अद्वितीय आध्यात्मिक अनुभव प्रयागराज में हर 144 वर्षों में आयोजित होने वाला महा कुंभ मेला 2025 इस बार लगभग 40 करोड़ श्रद्धालुओं का स्वागत करने के लिए तैयार है। यह भारत की आध्यात्मिक धरोहर में डूबने का एक जीवनभर में एक बार मिलने वाला अवसर है। इस विशाल आयोजन के लिए Indian Railways ने देशभर में लगभग 3,000 Maha Kumbh 2025 Special Trains की सेवा शुरू की है, जिससे तीर्थयात्रियों को आसान और सुगम यात्रा मिल सके। जहां कुंभ के पवित्र स्नान और शाही स्नान मुख्य आकर्षण होंगे, वहीं प्रयागराज और इसके आसपास के क्षेत्र सिर्फ धार्मिक स्थलों तक सीमित नहीं हैं। यहां Sarnath के प्राचीन बौद्ध मठ, भव्य Allahabad Fort और कई ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहरें भी देखने लायक हैं। चाहे आप मेले में हिस्सा लेने आए हों या शहर के समृद्ध इतिहास और संस्कृति में गहराई से उतरना चाहते हों, प्रयागराज के ये 8 प्रमुख स्थान आपके अनुभव को अविस्मरणीय बनाएंगे। 1. त्रिवेणी संगम (Triveni Sangam) त्रिवेणी संगम वह स्थान है जिसे Prayagraj की यात्रा के दौरान आप बिल्कुल भी miss नहीं कर सकते। यह sacred confluence Ganga, Yamuna और mythical Saraswati rivers का मिलन स्थल है, जो spiritual significance से भरपूर है। Pilgrims यहां holy dip के लिए आते हैं, जबकि tourists peaceful boat ride का आनंद लेते हुए इसके tranquil और divine atmosphere में खो जाते हैं। यह एक ऐसा unique destination है जो शहर की spiritual heritage को बखूबी दर्शाता है। 2. Allahabad Fort यमुना नदी के किनारे स्थित Allahabad Fort फारसी और Mughal architecture का एक खूबसूरत संगम है, जिसे महान Emperor Akbar ने बनवाया था। यह historic structure उस era की grandeur को दर्शाती है, जहां history और art का अनूठा मेल देखने को मिलता है। किले के अंदर Patalpuri Temple में स्थित प्रसिद्ध Akshaya Vat का tree इसकी mythical और mysterious छवि को और भी खास बनाता है। यह एक ऐसा experience है जिसे आप बिल्कुल भी miss नहीं करना चाहेंगे! 3. Sarnath, Varanasi प्रयागराज से मात्र ढाई घंटे की दूरी पर स्थित, Sarnath Varanasi के पास एक tranquil village है, जो अपनी deep Buddhist roots के लिए प्रसिद्ध है। यह sacred place वह है जहां Gautama Buddha ने पहली बार Dharma के अपने teachings दिए थे। Sarnath में Dhamek Stupa, Ashoka Pillar, Chaukhandi Stupa, Sarnath Archaeological Museum, एक Tibetan Temple और peaceful Deer Park स्थित हैं, जो इसे history और spirituality lovers के लिए एक must-visit destination बनाते हैं। 4. Purwa Falls मध्य प्रदेश के Rewa district में स्थित Purwa Waterfall Tamsa River पर 70 meters की ऊंचाई से गिरता हुआ एक breathtaking view प्रस्तुत करता है। यह majestic waterfall प्रकृति की अद्वितीय शक्ति को दर्शाता है। Kumbh Mela में आए pilgrims के लिए यह एक perfect destination है, जहां वे peace और beauty से भरे इस natural spot पर जाकर अपनी spirit को refresh कर सकते हैं। यह nature की tranquility में खो जाने के लिए एक ideal retreat है। 5. Chandauli चंदौली जिले में स्थित Devdari Waterfall की खूबसूरती वास्तव में mesmerizing है, जो इसे देखने के लिए 3-hour drive को पूरी तरह से worthwhile बना देती है। Chandraprabha Wildlife Sanctuary के बीच बसा यह hidden gem nature के बीच एक serene escape का अवसर प्रदान करता है। Waterfall के साथ-साथ आप शांत Musakhand Dam का भी आनंद ले सकते हैं, जो इस region की underrated beauty को experience करने के लिए एक perfect spot है। 6. Anand Bhavan Anand Bhavan, Nehru family का ancestral home, historical और political significance का एक important site है। यह iconic building, जहां Jawaharlal Nehru ने अपने early years बिताए थे, अब एक museum है जो India’s freedom struggle से जुड़ी artifacts और stories को showcase करता है। यहां आप इसके well-preserved rooms को देख सकते हैं, vintage photographs की प्रशंसा कर सकते हैं और India’s Independence movement की rich legacy में immerse हो सकते हैं। 7. Chitrakoot "The Hill of Many Wonders" Chitrakoot, Madhya Pradesh का एक sacred destination है, जो rich cultural heritage से भरा हुआ है। इसकी spiritual significance के अलावा, यह charming city Ganesh Bagh, historic Kalinjar Fort और tranquil Panna National Park जैसे attractions की पेशकश करता है। यह Hindu mythology और epic Ramayana के अनुसार immense importance रखता है। 8. Shri Bade Hanuman Ji Temple, Prayagraj प्रसिद्ध Prayagraj Railway Station के पास स्थित, Bade Hanuman Ji Temple भगवान Hanuman को समर्पित सबसे पुराने और प्रतिष्ठित temples में से एक है। यह पवित्र स्थल हजारों श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है, विशेष रूप से Maha Kumbh Mela के दौरान, जो यहां prayers अर्पित करने और divine blessings प्राप्त करने के लिए आते हैं। इसका समृद्ध history और spiritual significance इसे pilgrims और spiritual seekers के लिए एक must-visit destination बनाता है। जैसे ही Maha Kumbh की divine festival की शुरुआत होती है, Prayagraj में एक unique energy का संचार होता है। Sacred Triveni Sangam से लेकर majestic Allahabad Fort तक, इस शहर के हर कोने में India’s heritage की एक कहानी छुपी हुई है। चाहे आप Maha Kumbh Mela के लिए pilgrim हों या historical marvels की तलाश में traveler, Prayagraj एक ऐसा destination है जो एक lasting impression छोड़ता है। इसके hidden gems का exploration करना न भूलें—यह city हर किसी के लिए कुछ न कुछ खास पेश करता है!

मौनी अमावस्या: जानें किन चीजों का दान है वर्जित और क्या है दान करने का सही तरीका

Mauni Amavasya 2025: मौनी अमावस्या हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है। इस दिन पितरों का श्राद्ध करना और दान करना विशेष महत्व रखता है। मान्यता है कि इस दिन किया गया दान पुण्य फलदायी होता है और पितरों का आशीर्वाद मिलता है। मौनी अमावस्या पर क्या दान करें? Rice: चावल का donation करना highly auspicious माना जाता है। Belief है कि rice का दान करने से home में prosperity और happiness आती है। Sesame Seeds: तिल का donation भी special significance रखता है। तिल का दान करने से Pitru Dosh से liberation मिलती है। Clothes and Blankets: Needy लोगों को clothes और blankets का donation करने से virtue प्राप्त होता है। Jaggery: गुड़ का donation करने से भी Pitru Dosh दूर होता है। Grains: Wheat, rice, pulses जैसे grains का donation भी शुभ माना जाता है। मौनी अमावस्या पर क्या न करें? Iron Items: Iron items का donation inauspicious माना जाता है। Mustard Oil: Mustard oil का donation करना भी prohibited है। Black Items: Black color items का donation avoid करना चाहिए। Salt: Salt का donation करना भी अशुभ माना गया है। दान का महत्व Donation Hindu religion में एक significant ritual है। Donation करने से न केवल virtues प्राप्त होते हैं बल्कि इससे society के weaker sections की भी help होती है। Mauni Amavasya के day किया गया donation especially fruitful होता है। दान करते समय ध्यान रखने योग्य बातें Donation करते समय mind में किसी प्रकार का greed या show-off नहीं होना चाहिए। Donation करते समय smile के साथ donation करना चाहिए। Donation करते समय recipient का respect करना चाहिए।

Mauni Amavasya 2025: मौनी अमावस्या पर क्या है मौन रहने का महत्व?

Magh Mauni Amavasya: इस बार 29 January 2025, दिन Wednesday को Mauni Amavasya मनाई जा रही है। Hindu religious belief के अनुसार Mauni Amavasya पर silence रखने का significance बहुत गहरा है। यह दिन spiritual practices और self-reflection के लिए समर्पित day माना गया है। Silence रखने से हमें अपने inner voice को सुनने का मौका मिलता है और हम अपने thoughts को बेहतर ढंग से समझ सकते हैं। Silence का importance जानें: Silence रखने से mind calm होता है और हम stress और anxiety से free हो जाते हैं। साथ ही silence रखने से हमें inner self की ओर जाने और self-reflection करने का opportunity मिलता है। Silence के time में हम अपनी inner voice को clearly सुन सकते हैं। इसके जरिए हम meditation लगाने तथा अपनी focus करने की ability को बढ़ा सकते हैं। इससे हमारे body में positive energy का flow होता है। Belief के अनुसार silence vow spiritual growth के लिए बहुत अधिक important है। इस दिन silence vow रखने से mind शांत होता है और हम inner peace प्राप्त करते हैं। इसके अलावा हम silence रहने के कारण others के प्रति अधिक sensitive हो जाते हैं। मौनी अमावस्या का महत्व क्या है: Hindu scriptures में यह day बहुत sacred कहा गया है। Belief के मुताबिक Magh month की Amavasya को Mauni, Darsha या Maghi Amavasya के नाम से जाना जाता है। तथा यह day Lord Vishnu को पाने का easy path होने के साथ ही Magh month में silence रखकर Ganga holy bath का special importance माना गया है। यदि हम specifically Mauni Amavasya की बात करें तो यह day sin redemption कहा गया है, अर्थात् माना जाता है कि इस day silence vow रखने से all sins washed away हो जाते हैं। साथ ही इस Amavasya के day ancestors का Tarpan करने से Pitru Dosh दूर होता है, क्योंकि यह day Pitru Dosh removal के लिए highly auspicious माना गया है। यदि आप भी Mauni Amavasya पर या Magh month की Amavas के day silence vow रखने की सोच रहे हैं तो कुछ precautions बरतना बहुत necessary है। जैसे- यदि आपका physical health ठीक नहीं है और आप sick हैं तो silence vow न रखें। इस duration में आप day में time-to-time water पीते रहें। Silence vow के दौरान mind को calm रखें और किसी भी type के conflicts से बचें। Silence vow के लिए peaceful और secluded place चुनें।

gupt navratri 2025: माघ गुप्त नवरात्रि में कौनसी साधना करना चाहिए?

Magh Gupt Navratri 2025: वर्ष 2025 में Magh month की Gupt Navratri की शुरुआत Thursday, 30 January 2025 से हो रही है और इसका समापन Friday, 7 February 2025 को होगा। Gupt Navratri का time occult practices की साधना करने का रहता है। इन 9 दिनों में 10 Mahavidyas में से एक Vidya की साधना करने से desired results प्राप्त होता है। Hindu religion में Gupt Navratri में 10 Mahavidyas की secret तरीके से worship की जाती है। इस Navratri में Tantra practices का भी significance है। General public को इस Navratri में सिर्फ fasting रखकर devotion ही करना चाहिए। Fasting के strict rules का पालन नहीं कर सकते हैं तो fasting न रखें अन्यथा harm होगा। इस Navratri में भूलकर भी कुछ actions नहीं करना चाहिए। गुप्त नवरात्रि की देवियां:- 1.काली, 2.तारा, 3.त्रिपुरसुंदरी, 4.भुवनेश्वरी, 5.छिन्नमस्ता, 6.त्रिपुरभैरवी, 7.धूमावती, 8.बगलामुखी, 9.मातंगी और 10.कमला। उक्त दस महाविद्याओं का संबंध अलग अलग देवियों से हैं। दस महाविद्या के तीन समूह: प्रवृति के अनुसार दस महाविद्या के तीन समूह हैं। पहला:- सौम्य कोटि (त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, मातंगी, कमला), दूसरा:- उग्र कोटि (काली, छिन्नमस्ता, धूमावती, बगलामुखी), तीसरा:- सौम्य-उग्र कोटि (तारा और त्रिपुर भैरवी)। गुप्त नवरात्रि पूजन सामग्री लिस्ट: Gupt navratri puja samgri list 1. देवी दुर्गा की प्रतिमा/ चित्र, 2. लाल चुनरी, 3. आम की पत्तियां, 4. चावल, 5. दुर्गा सप्तशती की किताब, 6. सुपारी, 7. पान के पत्ते, 8. लौंग, 9. इलायची, 10. गंगा जल, 11. चंदन, 12. नारियल, 13. कपूर, 14. जौ के बीच, 15. मिट्टी का बर्तन, 16. गुलाल और 17. लाल कलावा आदि| सभी 10 देवियों के पूजा के मंत्र:- काली : ऊँ क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं हूं हूं दक्षिण कालिके क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं हूं हूं स्वाहा:। तारा : ऐं ऊँ ह्रीं क्रीं हूं फट्। त्रिपुर सुंदरी : श्री ह्रीं क्लीं ऐं सौ: ॐ ह्रीं क्रीं कए इल ह्रीं सकल ह्रीं सौ: ऐं क्लीं ह्रीं श्रीं नम:। भुवनेश्वरी : ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं सौ: भुवनेश्वर्ये नम: या ह्रीं। छिन्नमस्ता : श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वज्रवैरोचनीयै हूं हूं फट् स्वाहा:। त्रिपुरभैरवी : ह स: हसकरी हसे।' धूमावती : धूं धूं धूमावती ठ: ठ:। बगलामुखी : ॐ ह्लीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय, जिव्हा कीलय, बुद्धिं विनाश्य ह्लीं ॐ स्वाहा:। मातंगी : श्री ह्रीं क्लीं हूं मातंग्यै फट् स्वाहा:। कमला : ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद-प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नम:। माता कालिका की करें साधना:- मंत्र : ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरि कालिके स्वाहा गुप्त नवरात्रि साधना विधि:- Gupt navratri Sadhana vidhi: - गुप्त नवरात्रि के दिन सुबह जल्दी उठकर दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर स्नान करने स्वच्छ वस्त्र धारण करें। - उपरोक्त सभी पूजन सामग्री एकत्रित करके पूजा की थाल सजाएं। - देवी मां दुर्गा की प्रतिमा को लाल रंग के वस्त्र में सजाएं। - मिट्टी के बर्तन में जौ के बीज बोएं और नवमी तक प्रतिदिन पानी का छिड़काव करें। - पूर्ण विधि के अनुसार शुभ मुहूर्त में कलश स्थापित करें। - इसमें पहले कलश को गंगा जल से भरें, उसके मुख पर आम की पत्तियां लगाएं और उस पर नारियल रखें। - कलश को लाल कपड़े से लपेट कर कलावा के माध्यम से उसे बांधें। - अब इसे मिट्टी के बर्तन के पास रख दें। - पुष्‍प, कपूर, अगरबत्ती, ज्योत आदि के साथ पंचोपचार पूजा करें। - नौ दिनों तक माता दुर्गा से संबंधित मंत्रों तथा 10 महाविद्याओं के मंत्रों का जाप करें। - और 'या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।' इस मंत्र का अधिक से अधिक जाप करें। - माता की साधना करते हुए जीवन में सुख-समृद्धि की कामना करें। - अष्टमी या नवमी तिथि को माता पूजन के बाद 9 कन्याओं का पूजन करके उन्हें भोजन कराएं तथा उनके चरण धोकर कुछ न कुछ सामग्री भेंटस्वरूप दें। - गुप्त नवरात्रि के अंतिम दिन दुर्गा पूजा के पश्चात घट विसर्जन करके मां की आरती करें, पुष्प, अक्षत चढ़ाकर कलश को बेदी से उठाएं। - इस तरह गुप्त नवरात्रि की गई पूजा-साधना से शुभ फल प्राप्त होते हैं तथा जीवन खुशनुमा होता है।

बसंत पंचमी का दूसरा नाम क्या है? जानें कैसे मनाएं सरस्वती जयंती

बसंत पंचमी एक हिन्दू त्योहार है। इसे सरस्वती जयंती के रूप में मनाया जाता है। इस दिन देवी सरस्वती, कामदेव और विष्णु की पूजा की जाती है। Vasant Basant Panchami 2025: Hindu scriptures के अनुसार Saraswati Jayanti, जिसे Basant Panchami भी कहा जाता है, Goddess Saraswati को समर्पित एक पर्व है। इस दिन schools, colleges और homes में Goddess Saraswati की पूजा की जाती है तथा wisdom, speech और intelligence की देवी से blessings प्राप्त की जाती हैं। वर्ष 2025 में Basant Panchami और Goddess Saraswati की Jayanti 02 February, Sunday को मनाई जा रही है। इस Vasant Panchami festival को Sanskrit में Vasant Panchami और Roman में Basant Panchami कहा जाता है। इसे Hindu Goddess Saraswati की Jayanti के सम्मान में Saraswati Puja भी कहा जाता है। यह त्योहार spring season के arrival की तैयारी का प्रतीक भी है। वसंत पंचमी पर Saraswati Puja का महत्व: Goddess Saraswati wisdom की देवी हैं। उनकी पूजा करने से intelligence और education में वृद्धि होती है। अत: knowledge की Goddess का आशीर्वाद लेने हेतु Vasant Panchami के दिन Goddess Saraswati का पूजा-अर्चना और mantra chanting किया जाता है। इस दिन new beginnings के लिए शुभ माना जाता है। Goddess Saraswati को music और arts की देवी भी माना गया है। अत: इस दिन music और arts से जुड़े events आयोजित किए जाते हैं। इस दिन intellect और creativity को promote करने के लिए various programs आयोजित किए जाते हैं। मां सरस्वती पूजा की विधि, कैसे मनाएं जयंती: वसंत/बसंत पंचमी के दिन सुबह स्नानादि से निवृत्त होकर पीले रंग के वस्त्र धारण करें। फिर पूजा स्थल की सजावट करें। मां सरस्वती की प्रतिमा या चित्र को एक साफ-सुथरे स्थान पर स्थापित करें। आस-पास पुष्प, दीपक, धूप और रंगोली से सजाएं। फिर मां सरस्वती के पास शास्त्र, वेद, पुस्तकें, वीणा और अन्य वाद्य यंत्र रखें। तत्पश्चात मां सरस्वती की प्रतिमा को गंगाजल, दूध, दही, शहद और घी से स्नान कराएं या अभिषेक करें। अब मां सरस्वती को सफेद या पीले रंग के वस्त्र और आभूषण पहनाएं। वसंत पंचमी के दिन नैवेद्य में पीले रंगों का विशेष महत्व होने के कारण मां सरस्वती को पीली मिठाई, पीले फल और केसरिया खीर का भोग लगाएं। मां सरस्वती के विभिन्न मंत्रों का जाप करें। जैसे: - ॐ ह्रीं ऐं ह्रीं सरस्वत्यै नमः। - 'ऎं ह्रीं श्रीं वाग्वादिनी सरस्वती देवी मम जिव्हायां। सर्व विद्यां देही दापय-दापय स्वाहा।' फिर मां सरस्वती की आरती करें। देवी सरस्वती स्तोत्र का पाठ करें। इस दिन छोटे बच्चे को विद्या आरंभ करते हैं। सरस्वती पूजा के दौरान ये कार्य नहीं करना चाहिए। जैसे- इस दिन अशुद्ध भोजन का सेवन न करें अर्थात् मांस, मछली और अंडे का सेवन नहीं करना चाहिए। इस दिन झूठ बोलने से बचना चाहिए। किसी का अपमान नहीं करना चाहिए। सरस्वती पूजा के दौरान करने योग्य कार्य : - सरस्वती जयंती के दिन बच्चों को शिक्षा के लिए प्रेरित करें तथा उन्हें शिक्षा के महत्व के बारे में बताएं। अत: घर में यदि कोई छोटा शिशु हो तो विद्यारंभ किया जा सकता है। - सरस्वती पूजा के दौरान सफेद रंग धारण करें, यह शांति और ज्ञान का प्रतीक माना जाता है। साथ ही पीले रंग भी धारण करने की मान्यता है। - इस दिन संगीत वाद्य यंत्र बजाना मां सरस्वती को प्रसन्न करता है। - इस दिन शास्त्रों का अध्ययन करना शुभ माना जाता है।

संत पंचमी पर मां सरस्वती की प्रतिमा स्थापना के शुभ नियम और विधि: पाएं मां शारदा का पूर्ण आशीर्वाद

Basant Panchami 2025: बसंत पंचमी के दिन Goddess Saraswati की पूजा का विशेष महत्व है। इस दिन मां Saraswati की प्रतिमा को घर में स्थापित करते समय Vastu Shastra के कुछ नियमों का पालन करना चाहिए। मां Saraswati की प्रतिमा स्थापित करने का महत्व मां Saraswati wisdom, music और arts की देवी हैं। इनकी पूजा करने से intelligence में वृद्धि होती है और जीवन में success मिलती है। Vastu Shastra के अनुसार, मां Saraswati की प्रतिमा को सही direction में स्थापित करने से घर में positive energy का संचार होता है और व्यक्ति को auspicious results प्राप्त होते हैं। मां Saraswati की प्रतिमा कहाँ स्थापित करें? मां Saraswati की प्रतिमा को घर में तीन directions में स्थापित किया जा सकता है: 1. East Direction: East direction सूर्योदय की दिशा होती है। Sun को knowledge और energy का स्रोत माना जाता है। East direction में मां Saraswati की प्रतिमा स्थापित करने से व्यक्ति के knowledge में वृद्धि होती है। अगर इस direction में students मुख करके study करते हैं, तो उन्हें हमेशा success मिलती है। N2. orth Direction: North direction को peace, knowledge और prosperity की Goddess Lakshmi का स्थान माना जाता है। North direction में मां Saraswati की प्रतिमा स्थापित करने से व्यक्ति के जीवन में prosperity आती है। 3. North-East Direction: North-East direction को Vastu Shastra में wisdom, intelligence और creativity का केंद्र माना जाता है। इस दिशा में मां Saraswati की प्रतिमा स्थापित करने से students को studies में success मिलती है। इन वास्तु नियमों का पालन करके Goddess Saraswati की प्रतिमा स्थापना करें और उनके blessings से जीवन में positivity, success और prosperity प्राप्त करें। मां Saraswati की प्रतिमा स्थापित करते समय ध्यान रखने योग्य बातें 1. White Color: Goddess Saraswati को white color बहुत प्रिय है। इसलिए उनकी प्रतिमा white color की होनी चाहिए, जो purity और knowledge का प्रतीक है। 2. Musical Instrument: मां Saraswati के हाथ में वीणा होती है। आप उनकी प्रतिमा के पास Veena या कोई अन्य musical instrument रख सकते हैं। यह उनकी creativity और harmony का प्रतीक है। 3. Books: Goddess Saraswati ज्ञान की देवी हैं। इसलिए उनकी प्रतिमा के पास books रखना शुभ माना जाता है। यह wisdom और learning का प्रतीक है। 4. Cleanliness: मां Saraswati की प्रतिमा को हमेशा clean रखें। यह purity और positivity को बढ़ाता है। 5. Lamp (Diya): प्रतिदिन शाम को मां Saraswati के सामने ghee का diya जलाएं। यह positivity और divine blessings का स्रोत है। मां Saraswati की प्रतिमा को सही direction (East, North या North-East) में स्थापित करने से घर में positive energy का संचार होता है और व्यक्ति को auspicious results प्राप्त होते हैं। Basant Panchami के दिन मां Saraswati की पूजा करने से life में happiness, prosperity और success प्राप्त होती है।

वसंत पंचमी पर मां सरस्वती को गुलाल चढ़ाने का महत्व: परंपरा, श्रद्धा और आस्था का संगम

Basant Panchami: बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती को गुलाल चढ़ाना एक खूबसूरत और अर्थपूर्ण परंपरा है। यह हमें ज्ञान, सृजनशीलता, और खुशी का संदेश देता है। और वसंत पंचमी के दिन को इनके जन्मोत्सव के रूप में भी मनाते हैं। बसंत पंचमी के दिन Goddess Saraswati को गुलाल चढ़ाने का एक गहरा religious और cultural महत्व है। यदि इसके significance पर नजर डालें तो गुलाल colors का प्रतीक है और spring season colors का मौसम होता है और गुलाल इसी vibrancy को दर्शाता है। Goddess Saraswati को गुलाल चढ़ाकर हम उनके grace और blessings को आमंत्रित करते हैं। गुलाल का महत्व: मान्यता के अनुसार गुलाल knowledge और creativity का भी प्रतीक है। यह positivity और prosperity का भी symbol है। इसी कारण यह भी माना जाता है कि देवी मां Saraswati वसंत पंचमी पर गुलाल चढ़ाने से intelligence में वृद्धि होती है और creativity बढ़ती है। बता दें कि Goddess Saraswati का वर्ण white है। इन्हें Sharada, Vani, Vagdevi आदि नामों से भी पुकारा जाता है। संगीत की उत्पत्ति करने के कारण यह Goddess of Music भी हैं। अत: मां Saraswati को pink, yellow या white color का गुलाल लगाना चाहिए, क्योंकि ये colors knowledge और purity का प्रतीक माने जाते हैं। साथ ही इन्हें गुलाल लगाने से surrounding environment purified होकर चारों तरफ positive energy का संचार होता है। गुलाल happiness और celebration का प्रतीक है और Vasant Panchami का दिन joy और enthusiasm से भरा होता है। अत: इस अवसर पर Goddess Saraswati को गुलाल चढ़ाकर हम इस उत्सव को और अधिक special बनाते हैं। इसे इस तरह भी समझा जा सकता है कि मां Veena Vadini को हम गुलाल चढ़ाकर उन्हें उनकी birthday पर एक तरह से शुभकामनाएं देने जैसा है। यह एक शुभ संकेत भी है और यह दर्शाता है कि हम Goddess Saraswati से blessings चाहते हैं। ऐसा भी माना जाता है कि Vasant Panchami के दिन Goddess Saraswati की पूजा करने से life में auspicious results तथा wisdom और art की प्राप्ति हो सकती है। और इस दिन मां Saraswati को गुलाल चढ़ाने से हमें special benefits प्राप्त होते हैं, क्योंकि इसी दिन से spring season का आरंभ होने के कारण यह life में prosperity, freshness और greenery का प्रतीक होने के कारण माता को गुलाल चढ़ाने से positive energy का संचार होकर अच्छा वातावरण निर्मित होता है, जो व्यक्ति को mental peace और strength देता है। यदि colors की बात करें तो गुलाल को vibrancy और joy का प्रतीक माने जाने के कारण इसे मां Saraswati पर अर्पित करने से life में नया enthusiasm और excitement की शुरुआत होना माना जाता है। इसीलिए Vasant Panchami के दिन Goddess Saraswati को गुलाल चढ़ाकर उनकी इस creativity का सम्मान किया जाता है ताकि हमारे जीवन में success, prosperity और positivity आ सके।

फरवरी 2025 के प्रमुख व्रत एवं त्योहारों की लिस्ट

February 2025 Festival List: फरवरी माह कई महत्वपूर्ण व्रत और त्योहारों से भरा हुआ है। इनके अलावा भी फरवरी महीने में कई अन्य छोटे त्योहार और व्रत भी मनाए जाते हैं। यहां आपके लिए कुछ महत्वपूर्ण व्रत की तिथियां, इसमें अलग-अलग पंचांगों के अनुसार थोड़ा अंतर आ सकता है। आप चाहे तो सटीक तिथियों के लिए स्थानीय पंचांग अथवा इन त्योहारों के बारे में अधिक जानकारी के लिए आप अपने स्थानीय पुजारी या पंडित से संपर्क कर सकते हैं। 1. विनायक चतुर्थी- 1 फरवरी 2025: यह दिन श्री गणेश जी को समर्पित है। इस दिन गणेश जी की पूजा की जाती है और विशेष भोग लगाया जाता है। 2. बसंत पंचमी- 2 फरवरी 2025: बसंत पंचमी को सरस्वती पूजा के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन ज्ञान की देवी मां सरस्वती की पूजा की जाती है तथा उनकी जयंती मनाई जाती है। 3. स्कंद षष्ठी- 3 फरवरी 2025: स्कंद षष्ठी को भगवान कार्तिकेय की जयंती के रूप में भी जाना जाता है। इस दिन कार्तिकेय की पूजा की जाती है। 4. नर्मदा जयंती- 4 फरवरी 2025: नर्मदा जयंती पर नर्मदा नदी की पूजा की जाती है। तथा उनके रखरखाव और बचाव हेतु संकल्प लिया जाता है। 5. रथ सप्तमी- 4 फरवरी 2025: रथ सप्तमी व्रत सूर्य देव को समर्पित पर्व है। इस दिन सूर्य देव की पूजा की जाती है। 6. जया एकादशी- 8 फरवरी 2025: जया एकादशी का व्रत भगवान श्रीहरि विष्णु को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है। साथ ही इस दिन भ. विश्वकर्मा प्रकटोत्सव भी मनाया जाएगा। इस दिन गुरु हरराय तथा नित्यानंद प्रभु की जयंती भी पड़ रही है। 7. माघ पूर्णिमा- 12 फरवरी 2025: माघ पूर्णिमा, हिन्दु कैलेण्डर में एक अत्यधिक महत्वपूर्ण दिन होता है। धर्म ग्रन्थों में माघ माह में किये जाने वाले पवित्र स्नान एवं तप की महिमा का वर्णन किया गया है। मान्यताओं के अनुसार, माघ माह का प्रत्येक दिन दान-पुण्य आदि गतिविधियों हेतु विशेष महत्वपूर्ण होता है। 8. द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी- 16 फरवरी 2025: द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी व्रत श्री गणेश जी को समर्पित त्योहार है और इस दिन गणेश जी की पूजा की जाती है। 9. सीताष्टमी पर्व- 21 फरवरी 2025 : इस अवसर पर श्री जानकी प्रकटोत्सव मनाया जाएगा तथा माता शबरी की जयंती भी इसी दिन होगी। 10. महाशिवरात्रि- 26 फरवरी 2025: शिव भक्तों के लिए सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में महाशिवरात्रि एक है। इस दिन भगवान शिव की पूजा रात भर की जाती है तथा उन्हें प्रसन्न किया जाता है। 11. फाल्गुन अमावस्या- 27 फरवरी 2025: इस बार फाल्गुन अमावस्या 27 फरवरी को पड़ रही है और यदि तिथि पितृदोष निवारण के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस दिन पितरों का तर्पण किया जाता है।

कुंभ मेला 2025: महाकुंभ और युद्ध का क्या है संबंध?

History of Kumbh and Conflict War and Earthquake: प्रत्येक तीन वर्षों में Kumbh Mela का आयोजन होता है। इस तरह Nashik, Prayagraj, Haridwar और Ujjain में तीन तीन वर्षों के चक्र के अनुसार प्रत्येक 12 years में पूर्ण Kumbh का आयोजन होता है। लेकिन मान्यता के अनुसार Prayagraj में प्रत्येक 144 years में Maha Kumbh का आयोजन होता है। 12 years बाद आने वाले Prayagraj Kumbh का संबंध conflict, earthquake, और war से जोड़कर भी देखा जाता रहा है। कहते हैं कि Sun पर प्रत्येक 11 years में भयानक solar explosions होते हैं, जिसके कारण धरती पर भी fire-related incidents बढ़ जाती हैं। जब भी Kumbh आने वाला रहता है, Kumbh Mela चल रहा होता है या Kumbh के समापन के बाद देश और दुनिया में बड़ी global upheavals देखी जा सकती है। 1396 का प्रयाग कुंभ: Tamerlane's invasion: वर्ष 1310 के Maha Kumbh में Mahanirvani Akhara और Ramanandi Vaishnavas के बीच हुए झगड़े ने खूनी संघर्ष का रूप ले लिया था। इसके बाद वर्ष 1398 के Ardh Kumbh में तो Tamerlane ने अचानक से ही attack कर दिया था, जिसके चलते कई जानें गई थीं। 1796 का प्रयाग कुंभ: वर्ष 1760 में Shaiva Sannyasis व Vaishnav Bairagis के बीच संघर्ष हुआ था। 1796 के Kumbh में Shaiva Sannyasis और Nirmala Sampradaya आपस में भिड़ गए थे। 1760 में, Battle of Wandiwash भारत में Britain और France के बीच की लड़ाई थी। इसी के साथ ही 1796 में France और Austria के बीच कई लड़ाइयां हुईं। Sumatra के पास France और Britain के बीच naval battles हुईं। Napoleon Bonaparte ने Mincio River के पूर्वी किनारे पर La Favorita में युद्ध लड़ा। Napoleon ने Lodi Bridge के युद्ध में Austria को हराया। Spain ने England पर war declaration की। 1942 का प्रयाग कुंभ: इस दौरान World War II चल रहा था। साल 1942 में Quit India Movement शुरू हुआ था। इसके अलावा, इस साल यूरोप में Germany ने Holocaust के तहत यहूदियों को नष्ट करने की योजना बनाई थी। अप्रैल में लाखों यहूदियों को जला दिया। इसे Holocaust कहा गया। इस वर्ष Fall of Singapore हुआ। US Navy ने Battle of Midway में Japanese Navy को हरा दिया, जो Pacific Theater में युद्ध का एक महत्वपूर्ण मोड़ था। 1954 का प्रयाग कुंभ: इस वर्ष यानी 1954 को हुए Kumbh Mela में भगदड़ से करीब 800+ people मारे गए और 2000+ लोग घायल हुए। 1954 में USA ने Bikini Atoll पर hydrogen bomb testing किया था। इसे उस समय तक का सबसे शक्तिशाली विस्फोट बताया गया था। Austria में avalanche में 200+ लोग मारे गए। Algeria के दक्षिण पश्चिमी क्षेत्र Orléansville में earthquake से 1400+ deaths हुईं। 1965 का प्रयाग कुंभ: इस वर्ष 1965 में India-Pakistan War हुआ जिसे Second Kashmir War के नाम से भी जाना जाता है। Maldives ने British Rule से आज़ादी हासिल की। Selma, Alabama में, Martin Luther King Jr. ने civil rights protesters का नेतृत्व किया और Voting Rights Act 1965 को पारित करने के लिए एक march निकाला। दूसरी ओर Vietnam War बढ़ गया, क्योंकि US President Lyndon B. Johnson ने लगातार air strikes शुरू कर दिए। 1977 का प्रयाग कुंभ: इस वर्ष 1977 का Kumbh Mela भारत में Emergency Period के तुरंत बाद हुआ था। भारत में Emergency लगी थी। Pakistan की military coup में प्रधानमंत्री Zulfikar Ali Bhutto सत्ताच्युत एवं गिरफ्तार, वहाँ General Zia-ul-Haq ने सत्ता संभाली। Arab Alliance का गठन Egypt के विरुद्ध हुआ। China और USA के बीच तनाव के साथ Soviet Union की घरेलू राजनीति में उथल पुथल का दौर रहा। 1986 का प्रयाग कुंभ: इस वर्ष 1986 के Kumbh में भारत में Ram Mandir Movement की नींव रखी गई थी। इस कुंभ के बाद ही भारत की राजनीति में उथल पुथल प्रारंभ हो चली थी। साल 1986 में Ayodhya में Ram Janmabhoomi-Babri Masjid dispute में विवादित स्थल का lock opened किया गया था। Cape Canaveral, Florida से उड़ान भरने के बाद अमेरिकी Space Shuttle Challenger explosion हुआ और सभी seven astronauts मारे गए। San Salvador में 7.5 magnitude earthquake में 1,500 deaths हुईं। 2001 प्रयाग कुंभ: वर्ष 2001 के Kumbh Mela में करीब 7 crore pilgrims ने holy dip लिया था। इसी साल 11 September को Al-Qaeda ने attack on America किया था। इस हमले में World Trade Center twin towers गिरे थे। इस हमले के बाद Global War on Terror की शुरुआत हुई थी। इस साल Bhuj, Gujarat में 7.7 magnitude earthquake आया था। इस भूकंप में लाखों लोगों की मौत हो गई थी। 2013 प्रयाग कुंभ: 2013 के Kumbh Mela में Mauni Amavasya के दिन railway station stampede में 36+ deaths हो गई थीं। भारत ने China की तरफ से हो रही incursion attempts का मुंहतोड़ जवाब दिया। Egyptian military ने राष्ट्रपति Mohammed Morsi का तख्तापलट किया। इस वर्ष बड़े earthquakes और terrorist attacks से सभी का दिल दहल गया था।

महाकुंभ में अघोरियों का डेरा, जानिए इनकी 10 खास रोचक बातें

what is aghori: कुंभ या सिंहस्थ में साधु-संतों ने डेरा जमा लिया है। इस विशाल महा-आयोजन महाकुंभ 2025 में सबसे ज्यादा अगर कोई आकर्षण का विषय है तो वह है अघोरी और नागा साधु। नागा, नाथ, अघोरी, शैव, वैष्णव, उदासीन आदि कई तरह के साधुओं के कुंभ में आम जनता अघोरी साधुओं को सबसे भयानक मानती हैं जबकि वे आम धारणा से विपरित होते हैं। 1. क्या है अघोरी शब्द का अर्थ? अघोर का अर्थ है अ+घोर यानी जो घोर नहीं हो, डरावना नहीं हो, जो सरल हो, जिसमें कोई भेदभाव नहीं हो। अघोरी को कुछ लोग औघड़ भी कहते हैं। औघड़ का अर्थ है जिसका सबकुछ खुला हुआ है। भीतर और बाहर से जो एक जैसे हैं। दूसरा अर्थ है अंड बंड, अनोखा और फक्कड़। 2. कैसे होते हैं अघोरी साधु? कफन के काले वस्त्रों में लिपटे अघोरी बाबा के गले में धातु की बनी नरमुंड की माला लटकी होती है। नरमुंड न हो तो वे प्रतीक रूप में उसी तरह की माला पहनते हैं। हाथ में चिमटा, कमंडल, कान में कुंडल, कमर में कमरबंध और पूरे शरीर पर राख मलकर रहते हैं ये साधु। ये साधु अपने गले में काली ऊन का एक जनेऊ रखते हैं जिसे 'सिले' कहते हैं। गले में एक सींग की नादी रखते हैं। इन दोनों को 'सींगी सेली' कहते हैं। 3. अघोरियों का स्वभाव कैसा होता है? अघोरी ऐसे साधु जो उन सभी चीजों को भी अपनाते हैं जिसे समाज में घृणास्पद, डरावनी या भयावन मानी जाती है। जो असली अघोरी होते हैं वे कभी आम दुनिया में सक्रिय भूमिका नहीं रखते, वे केवल अपनी साधना में ही व्यस्त रहते हैं। अघोरियों की पहचान ही यही है कि वे किसी से कुछ मांगते नहीं है।अघोरी कापालिक क्रिया करते हैं और शमशान में ही रहते हैं। अघोर बनने की पहली शर्त है अपने मन से घृणा को निकालना। अघोर क्रिया व्यक्त को सहज बनाती है। 4. क्या है अघोरपंथ: अघोरपंथ साधना की एक रहस्यमयी शाखा है अघोरपंथ। उनका अपना विधान है, अपनी विधि है, अपना अलग अंदाज है जीवन को जीने का। अघोरपंथ में खाने-पीने में किसी तरह का कोई परहेज नहीं होता। अघोरी लोग वर्जित मांस छोड़ कर बाकी सभी चीजों का भक्षण करते हैं। हालांकि कई अघोरी मांस नहीं भी खाते हैं। अघोरपंथ में श्मशान साधना का विशेष महत्व है, इसीलिए अघोरी शमशान वास करना ही पंसद करते हैं। श्मशान में साधना करना शीघ्र ही फलदायक होता है। 5. अघोर पंथ की उत्पत्ति और इतिहास: अघोर पंथ के प्रणेता भगवान शिव माने जाते हैं। अवधूत भगवान दत्तात्रेय को भी अघोरशास्त्र का गुरु माना जाता है। अघोर संप्रदाय के एक संत के रूप में बाबा किनाराम की पूजा होती है। अघोर संप्रदाय के व्यक्ति शिव जी के अनुयायी होते हैं। अघोरियों के देवी और देवता हैं- 10 महाविद्या, 8 भैरव और एकादश रुद्र। 6. प्रमुख अघोर स्थान: वाराणसी को भारत के सबसे प्रमुख अघोर स्थान के तौर पर मानते हैं। यहां बाबा कीनाराम का स्थल एक महत्वपूर्ण तीर्थ भी है। इसके बाद गुजरात के जूनागढ़ का गिरनार पर्वत जो अवधूत भगवान दत्तात्रेय की तपस्या स्थली है। इसके अलावा शक्तिपीठों, बगलामुखी, पुरी की देवी का स्थान, काली और भैरव के मुख्‍य स्थानों के पास के श्मशान में भी उनके स्थान हैं। तारापीठ का श्‍मशान, कामाख्या पीठ के श्‍मशान, रजरप्पा का श्मशान और चक्रतीर्थ उज्जैन का श्‍मशान इनकी साधना का प्रमुख केंद्र है। 7. अघोरी साधना कहां होती है? अघोरी श्‍मशान घाट में तीन तरह से साधना करते हैं- श्‍मशान साधना, शिव साधना, शव साधना। ऐसी साधनाएं अक्सर तारापीठ के श्‍मशान, कामाख्या पीठ के श्‍मशान, त्र्यम्‍बकेश्वर और उज्जैन के चक्रतीर्थ के श्‍मशान में होती है। 8. अघोरपंथ की तीन शाखाएं: अघोरपंथ की तीन शाखाएं प्रसिद्ध हैं- औघड़, सरभंगी, घुरे। इनमें से पहली शाखा में कल्लूसिंह व कालूराम हुए, जो किनाराम बाबा के गुरु थे। कुछ लोग इस पंथ को गुरु गोरखनाथ के भी पहले से प्रचलित बतलाते हैं और इसका सम्बन्ध शैव मत के पाशुपत अथवा कालामुख सम्प्रदाय के साथ जोड़ते हैं। 9. अघोराचार्य बाबा किनाराम: अघोराचार्य बाबा किनाराम का जन्म भाद्रपद में अघोर चतुर्दशी को 1601 ई. में भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के वाराणसी के पास चंदौली जिले के रामगढ़ गाँव में हुआ था। बाबा किनाराम ने बलूचिस्तान (जिसे पाकिस्तान के रूप में जाना जाता है) के ल्यारी जिले में हिंगलाज माता (अघोर की देवी) के आशीर्वाद से समाज कल्याण और मानवता के लिए अपनी धार्मिक यात्रा शुरू की थी वे अपने आध्यात्मिक गुरु बाबा कालूराम के शिष्य थे, जिन्होंने उनमें अघोर के बारे में जागरूकता पैदा की थी। उन्होंने रामगीता, विवेकसार, रामरसाल और उन्मुनिराम नामक अपनी रचनाओं में अघोर के सिद्धांतों का उल्लेख किया है। 10. कैसे बनते हैं अघोरी साधु? अघोरी साधु बनने के लिए अत्यधिक समर्पण, अनुशासन, और आत्मा को शुद्ध करने की आवश्यकता होती है। यह मार्ग केवल उन लोगों के लिए है, जो सांसारिक जीवन का पूरी तरह से त्याग कर, आत्मज्ञान और मोक्ष की खोज में जुटना चाहते हैं। इसे सबसे पहले सच्चे गुरु की खोज, फिर संसार का त्याग, फिर व्रत, तप और साधना, फिर श्मशान साधना आदि कार्य करना होते हैं। साधना के दौरान, अघोरी साधु अपने भीतर के क्रोध, भय, और नकारात्मकता का सामना करते हैं। वे स्वयं को भगवान शिव के अघोर स्वरूप से जोड़ने का प्रयास करते हैं।

कैसे बनते हैं अघोरी साधु?

How are Aghori sadhus made:- अघोरी साधु बनना एक कठिन और अत्यधिक अनुशासनपूर्ण आध्यात्मिक प्रक्रिया है। यह प्रक्रिया भारतीय सनातन परंपरा और शैव साधना से जुड़ी होती है, जिसमें भगवान शिव को आराध्य माना जाता है। अघोरी साधु बनने के लिए व्यक्ति को सांसारिक बंधनों और इच्छाओं का त्याग करना पड़ता है। यहां अघोरी बनने की प्रक्रिया के प्रमुख चरण दिए गए हैं:- 1. गुरु की खोज, दीक्षा और संसार का त्याग: अघोरी बनने के लिए व्यक्ति को पहले एक योग्य गुरु की तलाश करनी पड़ती है। गुरु अघोर परंपरा में दीक्षित और अनुभवी होते हैं। गुरु अपने शिष्य को साधना के नियम, मंत्र और अघोर मार्ग के सिद्धांत सिखाते हैं। अघोरी बनने के लिए साधक को परिवार, संपत्ति, और सांसारिक इच्छाओं को पूरी तरह त्यागना होता है। यह त्याग आध्यात्मिक मार्ग पर चलने का पहला कदम है। 2. तपस्या और श्मशान साधना: अघोरी साधु कठोर साधना करते हैं, जिसमें ध्यान, योग, और मंत्रों का जप शामिल होता है। इनकी साधना श्मशान घाटों, वीरान स्थानों, और अघोर मठों में की जाती है। वे अघोर मंत्र का जाप करते हैं, जैसे ॐ नमः शिवाय, ॐ अघोरेभ्यों अघोरेभ्यों नम: या अन्य विशिष्ट मंत्र। अघोरी साधु श्मशान घाट को अपनी साधना का केंद्र मानते हैं। वे मृत्यु और उसके रहस्यों को समझने के लिए शव साधना (मृत शरीर के पास ध्यान) करते हैं। यह प्रक्रिया उन्हें संसार और मृत्यु के भय से मुक्त करती है 3. अघोर जीवनशैली अपनाना: अघोरी साधु सभी प्रकार की भेदभावपूर्ण मानसिकता से ऊपर उठ जाते हैं। वे किसी भी वस्तु या भोजन को अपवित्र नहीं मानते और इसे बिना किसी झिझक ग्रहण करते हैं। उनकी जीवनशैली सादगीपूर्ण, निस्वार्थ और प्रकृति के करीब होती है। 4. ज्ञान और मोक्ष की प्राप्ति: साधना के दौरान, अघोरी साधु अपने भीतर के क्रोध, भय, और नकारात्मकता का सामना करते हैं। वे स्वयं को भगवान शिव के अघोर स्वरूप से जोड़ने का प्रयास करते हैं। जब साधक अपनी साधना में परिपूर्ण हो जाता है, तो उसे आध्यात्मिक ज्ञान और आत्मिक स्वतंत्रता की अनुभूति होती है। अघोरी साधु का अंतिम लक्ष्य मोक्ष (मुक्ति) प्राप्त करना होता है। 6. सावधानियां और चुनौतियां: अघोरी बनने का मार्ग अत्यंत कठिन और जोखिम भरा है। यह केवल उन लोगों के लिए है, जो आत्म-नियंत्रण और आत्म-अनुशासन का पालन कर सकते हैं। इस प्रक्रिया में मानसिक और शारीरिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। अघोरी साधु बनने के लिए अत्यधिक समर्पण, अनुशासन, और आत्मा को शुद्ध करने की आवश्यकता होती है। यह मार्ग केवल उन लोगों के लिए है, जो सांसारिक जीवन का पूरी तरह से त्याग कर, आत्मज्ञान और मोक्ष की खोज में जुटना चाहते हैं।

बसंत पंचमी पर क्या है सरस्वती पूजा का शुभ मुहूर्त और जानिए पूजा की विधि सामग्री एवं मंत्र सहित

Basant Panchami 2025: बसंत पंचमी के दिन माता सरस्वती की पूजा की जाती है। कहते हैं कि आदिशक्ति से इस दिन माता का अवतरण हुआ था। माता सरस्वती को वीणा वादिनी और शारदादेवी भी कहते हैं। माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी को बसंत उत्सव के रूप में मनाते हैं। इस बार 2 फरवरी 2025 रविवार के दिन यह उत्सव मनाया जाएगा। बसंत पंचमी पर सरस्वती पूजा का शुभ मुहूर्त:- प्रथम मुहूर्त: सुबह 07:09 से दोपहर 12:35 तक। विशेष मुहूर्त: सुबह 09:17: से दोपहर12:35 तक। अभिजीत मुहूर्त: दोपहर 12:13 से 12:57 तक। सर्वार्थ सिद्धि योग: सुबह 07:09 से मध्यरात्रि 12:52 तक। सरस्वती पूजा सामग्री:- पीले रंग के वस्त्र, एक लकड़ी की चौकी, चौकी में बिछाने के लिए पीले रंग का कपड़ा, पीले रंग के फूल और माला, सफेद चंदन, रोली, सिंदूर, आम का पत्ता, एक लोटा जल के लिए, एक पान, सुपारी, छोटी इलायची, लौंग, तुलसी दल, हल्दी, बेसन के लड्डू, बूंदी, मोतीचूर के लड्डू, मालपुआ, केसर की खीर, केसर का हलवा कलावा या मौली, घी का दीपक, अगरबत्ती, बसंत पंचमी हवन करना हो तो उसके लिए अलग से सामग्री लाना होगी। मां सरस्वती की पूजा विधि: - इस दिन श्री गणेश जी की पूजा के बाद कलश स्थापना कर देवी सरस्वती का पूजन आरंभ करने का नियम है। - माता सरस्वती की पूजा पंचोपचार या षोडशोपचार विधि से करनी चाहिए। - स्नान से निवृत्त होकर स्वच्छ केशरिया, पीले, वासंती या सफेद रंग के वस्त्र धारण करें। - पूजा स्थान को साफ करके वहां चावल की एक ढेरी रखें। - चावल की ढेरी के उपाय पाट या लाल कपड़ा बिछाएं। - मां सरस्वती के चित्र या मूर्ति को पाट पर विराजमान करें। - पाट के आगे रंगोली बनाएं। - फूलों से मां सरस्वती पूजन स्थल का श्रृंगार करें। - पीले रंग के चावल से ॐ लिखकर पूजन करें। मां सरस्वती जी के पूजा के समय यह श्‍लोक पढ़ें- ॐ श्री सरस्वती शुक्लवर्णां सस्मितां सुमनोहराम्।। कोटिचंद्रप्रभामुष्टपुष्टश्रीयुक्तविग्रहाम्। वह्निशुद्धां शुकाधानां वीणापुस्तकमधारिणीम्।। रत्नसारेन्द्रनिर्माणनवभूषणभूषिताम्। सुपूजितां सुरगणैब्रह्मविष्णुशिवादिभि:।। वन्दे भक्तया वन्दिता च मुनींद्रमनुमानवै:। - सबसे पहले देवी सरस्वती जी को स्नान कराएं, तपश्चात माता सरस्वती को सिंदूर और अन्य श्रृंगार की सामग्री अर्पित करें। - अब सफेद पुष्प, चंदन, श्वेत वस्त्रादि से देवी सरस्वती का पूजन करें। अब फूल माला चढ़ाएं। - पूजन के समय आम्र मंजरी देवी सरस्वती को अर्पित करें। - मंत्र- 'श्रीं ह्रीं सरस्वत्यै स्वाहा' से देवी सरस्वती की आराधना करें। - पीली मिठाई या वासंती रंग के व्यंजनों या वासंती खीर या केशरिया भात का भोग लगाएं। - देवीसरस्वती कवच का पाठ करें। - यदि आप अध्ययन से संबंधित कार्य करते हैं तो देवी सरस्वती को विद्या की सामग्री, ब्रश, कलम, किताब, नोटबुक आदि समस्त चीजों का पूजन करें। - यदि आप संगीत के क्षेत्र में हैं तो वाद्य यंत्रों का पूजन करें। - शारदा माता ईश्वरी, मैं नित सुमरि तोहे, हाथ जोड़ अरजी करूं विद्या वर दे मोहे इस सरल प्रार्थना को पढ़ें। - अंत में आरती के बाद प्रसाद वितरण करें। सरस्वती मंत्र- vasant panchami mantra 1. माता सरस्वती का एकाक्षरी बीज मंत्र- 'ऐं'। 2. 'सरस्वत्यै नमो नित्यं भद्रकाल्यै नमो नम:। वेद वेदान्त वेदांग विद्यास्थानेभ्य एव च।। सरस्वति महाभागे विद्ये कमललोचने। विद्यारूपे विशालाक्षी विद्यां देहि नमोस्तुते।।' 3. ॐ ह्रीं ऐं ह्रीं सरस्वत्यै नमः। 4. 'ऎं ह्रीं श्रीं वाग्वादिनी सरस्वती देवी मम जिव्हायां। सर्व विद्यां देही दापय-दापय स्वाहा।' 5. ॐ ऐं वाग्दैव्यै विद्महे कामराजाय धीमही तन्नो देवी प्रचोदयात। 6. ॐ वद् वद् वाग्वादिनी स्वाहा। 7. 'ॐ शारदा माता ईश्वरी मैं नित सुमरि तोय हाथ जोड़ अरजी करूं विद्या वर दे मोय।'

24 जनवरी 2025, शुक्रवार के शुभ मुहूर्त

Aaj ka Muhurat(शुक्रवार के शुभ मुहूर्त) : आज आपका दिन मंगलमयी रहे, यही शुभकामना है। अगरआप आज वाहन खरीदने का विचार कर रहे हैं या आज कोई नया व्यापार आरंभ करने जा रहे हैं तो आज के शुभ मुहूर्त में ही कार्य करें ताकि आपके कार्य सफलतापूर्वक संपन्न हो सकें। ज्योतिष एवं धर्म की दृष्टि से इन मुहूर्तों का विशेष महत्व है। शुभ विक्रम संवत्-2081, शक संवत्-1946, ईस्वी सन्-2025 संवत्सर नाम-कालयुक्त अयन-उत्तरायण मास-माघ पक्ष-कृष्ण ऋतु-शिशिर वार-शुक्रवार तिथि (सूर्योदयकालीन)-दशमी नक्षत्र (सूर्योदयकालीन)-अनुराधा योग (सूर्योदयकालीन)-वृद्धि करण (सूर्योदयकालीन)-विष्टि लग्न (सूर्योदयकालीन)-मकर शुभ समय- 7:30 से 10:45, 12:20 से 2:00 तक राहुकाल-प्रात: 10:30 से 12:00 बजे तक दिशा शूल-वायव्य योगिनी वास-उत्तर गुरु तारा-उदित शुक्र तारा-उदित चंद्र स्थिति-वृश्चिक व्रत/मुहूर्त-भद्रा/मूल प्रारंभ यात्रा शकुन-शुक्रवार को मीठा दही खाकर यात्रा पर निकलें। आज का मंत्र-ॐ द्रां द्रीं द्रौं स: शुक्राय नम:। आज का उपाय-लक्ष्मी मंदिर में इत्र चढ़ाएं। वनस्पति तंत्र उपाय-गूलर के वृक्ष में जल चढ़ाएं।

Kalpvas in Mahakumbh 2025: महाकुंभ में संगम पर आत्मशुद्धि का पवित्र अनुभव है कल्पवास।

Kalpvas in Mahakumbh 2025: प्रयागराज महाकुंभ में कल्पवास की परंपरा क्यों है विशेष? प्रयागराज में सूर्य के मकर राशि में प्रवेश के साथ शुरू होने वाला कल्पवास, आदिकाल से चली आ रही एक पवित्र परंपरा है। ऐसा माना जाता है कि एक महीने तक संगम के किनारे तपस्या और साधना करने से ब्रह्मा के एक दिन के बराबर पुण्य प्राप्त होता है। वेदों, महाभारत, और रामचरितमानस में इस परंपरा का उल्लेख मिलता है। आत्मशुद्धि और स्वनियंत्रण का यह आध्यात्मिक अभ्यास आज भी नई-पुरानी पीढ़ियों को जोड़ता है। समय के साथ तौर-तरीकों में बदलाव जरूर आए हैं, लेकिन श्रद्धालुओं की आस्था और संख्या में कोई कमी नहीं आई।

कल्पवास क्या है?

कल्पवास हिंदू धर्म में एक विशेष आध्यात्मिक साधना है, जिसे कुंभ मेले के दौरान किया जाता है। यह साधना स्वयं को ईश्वर के प्रति समर्पित करने, अपने पापों का प्रायश्चित करने, और आत्मा को शुद्ध करने का अवसर प्रदान करती है। महाकुंभ में कल्पवास का महत्व और भी बढ़ जाता है क्योंकि इसे विश्व का सबसे बड़ा आध्यात्मिक आयोजन माना जाता है।

कल्पवास का अर्थ और परंपरा (What is the meaning of Kalpvas?)

कल्पवास का अर्थ है, एक पूर्ण महीने तक पवित्र नदियों के किनारे रहकर तपस्या, ध्यान, और धर्म-कर्म में लीन रहना। "कल्प" का अर्थ है समय और "वास" का अर्थ है निवास। इस प्रकार, कल्पवास का अर्थ हुआ, एक निर्धारित समय के लिए आत्मा और शरीर की शुद्धि हेतु तपस्या करना। कल्पवास के दौरान भक्तजन गंगा, यमुना, और सरस्वती के त्रिवेणी संगम पर निवास करते हैं और कठोर नियमों का पालन करते हैं।

महाकुंभ में कल्पवास का महत्व (What is Kalpvas in Kumbh Mela?)

महाकुंभ में कल्पवास का अद्वितीय महत्व है। यह वह समय है जब करोड़ों भक्त संगम पर इकट्ठा होकर पवित्र नदियों में स्नान करते हैं। महाकुंभ का आयोजन हर 12 वर्षों में एक बार होता है और यह पवित्र ग्रह-नक्षत्रों की विशेष स्थिति पर आधारित होता है। कल्पवास करने से आत्मा की शुद्धि होती है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

कल्पवास के नियम और विधि (Kalpvas Rituals and Practices)

कल्पवास का पालन करने वाले साधक कुछ विशेष नियमों का पालन करते हैं। यह नियम व्यक्ति की आध्यात्मिक और मानसिक शुद्धि के लिए बनाए गए हैं। 1. नदी किनारे निवास: कल्पवासी तंबू में रहकर एक साधारण जीवन जीते हैं। 2. पवित्र स्नान: रोजाना गंगा, यमुना, या सरस्वती में स्नान करना अनिवार्य है। 3. सात्विक भोजन: केवल सात्विक भोजन का सेवन किया जाता है। मांसाहार और लहसुन-प्याज का त्याग किया जाता है। 4. ध्यान और जप: दिनभर धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन, ध्यान, और जप किया जाता है। 5. दान और सेवा: जरूरतमंदों को दान देना और सेवा करना भी कल्पवास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। 6. विनम्रता और अनुशासन: इस दौरान साधक क्रोध, अहंकार और मोह का त्याग करते हैं।

कल्पवास में क्या करें और क्या न करें (do don't kalpvas)

क्या करें: ...प्रतिदिन संगम में स्नान करें। ...धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन और भजन-कीर्तन करें। ...सात्विक आहार ग्रहण करें। ...दान-पुण्य और गरीबों की मदद करें। क्या न करें: ...शराब, और अन्य तामसिक गतिविधियों से बचें। ...क्रोध और अहंकार का त्याग करें। ...धार्मिक नियमों का उल्लंघन न करें।

कल्पवास के लाभ (Benefits of Kalpvas)

1. आध्यात्मिक शुद्धि: कल्पवास से आत्मा को शुद्ध करने का अवसर मिलता है। 2. सकारात्मक ऊर्जा: पवित्र नदियों के पास रहने और तपस्या करने से सकारात्मक ऊर्जा का अनुभव होता है। 3. धार्मिक पुण्य: संगम में स्नान और दान करने से व्यक्ति को धार्मिक पुण्य प्राप्त होता है। 4. मानसिक शांति: ध्यान और जप करने से मानसिक तनाव कम होता है। 5. स्वास्थ्य लाभ: साधारण और सात्विक जीवन जीने से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।

कल्पवास और कुंभ मेले का आध्यात्मिक संगम

महाकुंभ में कल्पवास न केवल धार्मिक प्रक्रिया है बल्कि यह समाज और संस्कृति को भी जोड़ने का माध्यम है। कुंभ मेले के दौरान कल्पवास करने वाले साधक न केवल आत्मा की शुद्धि करते हैं बल्कि भारतीय संस्कृति और परंपरा को भी सशक्त बनाते हैं। कल्पवास एक ऐसा अनुभव है, जो न केवल धार्मिक है, बल्कि व्यक्तिगत और सामूहिक विकास का प्रतीक भी है। महाकुंभ में कल्पवास का हिस्सा बनने से व्यक्ति को आत्मिक संतुष्टि मिलती है और वह जीवन में नई ऊर्जा और सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ आगे बढ़ता है। महाकुंभ में कल्पवास करना न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह आत्मा और शरीर की शुद्धि के लिए भी आवश्यक है। पवित्र नदियों के किनारे रहकर तपस्या करना, सकारात्मक ऊर्जा से भरपूर वातावरण में समय बिताना, और धार्मिक नियमों का पालन करना, यह सब कल्पवास को एक अद्वितीय अनुभव बनाता है। महाकुंभ में कल्पवास करके व्यक्ति न केवल अपने पापों का प्रायश्चित करता है, बल्कि जीवन में आध्यात्मिक और मानसिक शांति भी प्राप्त करता है।

महाकुंभ 2025 का ज्योतिषीय महत्व और 144 वर्षों का चक्र

महाकुंभ मेला 2025: 144 वर्षों में एक बार होने वाला दुर्लभ आयोजन

महाकुंभ मेला 2025 का आयोजन केवल 144 वर्षों में एक बार होता है। यह आयोजन हिंदू धर्म के सबसे पवित्र आयोजनों में से एक है। इसे विशेष रूप से ज्योतिषीय घटनाओं (Astrological Events) के आधार पर निर्धारित किया जाता है। हिंदू धर्म (Hindu Religion) में ग्रहों की स्थिति (Planetary Alignment) को अत्यधिक महत्वपूर्ण माना गया है। महाकुंभ मेला का आयोजन तभी होता है, जब बृहस्पति (Jupiter) कुंभ राशि (Aquarius) में प्रवेश करता है और सूर्य (Sun) मेष राशि (Aries) में होता है। इस दुर्लभ ग्रह योग (Rare Celestial Conjunction) को मोक्ष (Moksha) प्राप्ति और पवित्र स्नान (Holy Bath) के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। यह आयोजन धार्मिकता (Spirituality) और आध्यात्मिक उन्नति (Spiritual Awakening) का एक अनमोल अवसर प्रदान करता है।

144 वर्षों में क्यों होता है महाकुंभ?

महाकुंभ मेला हर 144 वर्षों में केवल एक बार आयोजित होता है। इसका ज्योतिषीय और गणितीय आधार यह है कि हर 12 वर्षों में एक पूर्ण कुंभ मेला (Purna Kumbh Mela) होता है। जब 12 पूर्ण कुंभ मेलों (12 × 12) का चक्र पूरा होता है, तब महाकुंभ (Mahakumbh) का आयोजन होता है।

महाकुंभ मेला कब आयोजित होता है?

जब बृहस्पति (Jupiter) कुंभ राशि (Aquarius) में स्थित हो। जब सूर्य (Sun) मेष राशि (Aries) में प्रवेश करे। यह ग्रह स्थिति (Planetary Alignment) को सृष्टि के पुनर्जन्म (Cosmic Renewal) और धार्मिक जागृति (Religious Awakening) का प्रतीक माना जाता है। महाकुंभ का अमृत योग और मोक्ष प्राप्ति का महत्व: महाकुंभ मेला का सबसे बड़ा आकर्षण है अमृत योग (Amrit Yoga)। यह समय पवित्र नदियों (Holy Rivers) में स्नान और पूजा-अर्चना के लिए सबसे शुभ माना जाता है। अमृत योग का महत्व: पापों का नाश (Eradication of Sins): यह समय गंगा (Ganga), यमुना (Yamuna) और सरस्वती (Saraswati) में स्नान करने का सर्वोत्तम अवसर प्रदान करता है। मोक्ष प्राप्ति (Moksha Attainment): माना जाता है कि इस समय पवित्र स्नान करने से पुनर्जन्म के चक्र (Cycle of Rebirth) से मुक्ति मिलती है। आध्यात्मिक ऊर्जा (Spiritual Energy): यह समय भगवान विष्णु (Lord Vishnu) और भगवान शिव (Lord Shiva) की विशेष कृपा प्राप्त करने का माना जाता है।

महाकुंभ 2025 का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व

महाकुंभ मेला 2025 का आयोजन प्रयागराज (Prayagraj) में होगा, जो त्रिवेणी संगम (Triveni Sangam) के लिए प्रसिद्ध है। यह संगम वह स्थान है जहां गंगा (Ganga), यमुना (Yamuna) और सरस्वती (Saraswati) नदियां मिलती हैं।

त्रिवेणी संगम का महत्व:

पवित्र स्नान (Holy Bath):

संगम में स्नान करने से आध्यात्मिक शक्ति (Spiritual Power) और पापों का क्षय (Destruction of Sins) होता है।

धार्मिक अनुष्ठान (Religious Rituals):

इस दौरान श्रद्धालु हवन (Havan), दान (Charity), और पूजा-पाठ (Worship) जैसे धार्मिक कर्मों में भाग लेते हैं।

ईश्वर की कृपा (Divine Grace):

संगम में पूजा करने से भगवान विष्णु (Lord Vishnu), भगवान शिव (Lord Shiva), और देवी गंगा (Goddess Ganga) की कृपा प्राप्त होती है।

महाकुंभ मेला 2025 के प्रमुख आकर्षण

धार्मिक यात्राएं (Pilgrimages): लाखों श्रद्धालु महाकुंभ मेला 2025 में आध्यात्मिक शांति (Spiritual Peace) और धार्मिक उन्नति (Religious Growth) के लिए भाग लेंगे। योग और ध्यान (Yoga and Meditation): इस आयोजन में कई योग गुरुओं (Yoga Masters) और संत-महात्माओं (Saints) द्वारा ध्यान और योग सत्र आयोजित किए जाएंगे। आध्यात्मिक प्रवचन (Spiritual Discourses): धर्म और आध्यात्मिक ज्ञान (Spiritual Knowledge) के प्रचार के लिए विशेष प्रवचन आयोजित होंगे। निष्कर्ष: महाकुंभ मेला 2025 न केवल धार्मिकता (Religiousness) का प्रतीक है, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक विरासत (Cultural Heritage) का अनमोल हिस्सा है। इस दौरान त्रिवेणी संगम में स्नान करने से पापों का नाश (Eradication of Sins), आध्यात्मिक उन्नति (Spiritual Growth) और मोक्ष (Moksha) प्राप्ति होती है। यह मेला ईश्वर की उपस्थिति (Divine Presence) का अनुभव करने और सत्य, शांति और मुक्ति (Truth, Peace, and Salvation) की खोज के लिए अद्वितीय अवसर प्रदान करता है।

Prayagraj Kumbh 2025: महाकुंभ मेले में जा रहे हैं तो जान लें ये खास जानकारी

2025 Prayagraj Kumbh Mela: 13 जनवरी से प्रयागराज कुंभ में दुनिया के सबसे बड़े मेले का आयोजन हो चुका है। पौराणिक मान्यता के अनुसार कुंभ मेला भारत का सबसे बड़ा धार्मिक मेला है, जो हर 12 साल में 4 प्रमुख स्थानों- प्रयागराज, हरिद्वार नासिक और उज्जैन में आयोजित किया जाता है और इस मेले में लाखों-करोड़ों श्रद्धालु पवित्र नदियों में स्नान करने के लिए आते हैं। कुंभ मेले का इतिहास बहुत पुराना है। और कुंभ मेले को यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया है। कुंभ मेला भारत की सांस्कृतिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस बार उत्तर प्रदेश, भारत में त्रिवेणी संगम पर आयोजित होने वाला यह मेला बहुत ही खास और अद्‍भुत रहने वाला है। कुंभ स्नान 2025 के नियम: kumbh snan ke niyam: आपको बता दें कि कुंभ स्नान के दौरान कुछ विशेष नियमों का पालन करना आवश्यक होता है। इन नियमों का पालन करने से स्नान का पुण्य फल प्राप्त होता है। तथा कुंभ स्नान को मोक्ष प्राप्ति का सबसे बड़ा साधन भी माना जाता है। कुंभ स्नान करते समय पूर्व दिशा की ओर मुंह करके खड़ा होना चाहिए। शाही स्नान: कुंभ मेले में कुछ विशेष दिनों को शाही स्नान के रूप में मनाया जाता है। इन दिनों में स्नान करने का विशेष महत्व होता है। शाही स्नान के दिन साधु-संतों के स्नान के बाद ही गृहस्थों को स्नान करना चाहिए। कुंभ मेले में धार्मिक अनुष्ठानों के साथ-साथ सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं। मेले में साधु-संतों का जमावड़ा लगता है और विभिन्न धर्मों के लोग एक साथ आते हैं। वर्ष 2025 में निम्न तिथियों पर होगा शाही स्नान 1. 13 जनवरी (पौष पूर्णिमा) - शाही स्नान संपन्न। 2. 14 जनवरी (मकर संक्रांति) - शाही स्नान संपन्न। 3. 29 जनवरी (मौनी अमावस्या) - शाही स्नान। 4. 03 फरवरी (बसंत पंचमी) - शाही स्नान। 5. 12 फरवरी (माघी पूर्णिमा) - शाही स्नान। 6. 26 फरवरी (महाशिवरात्रि) - अंतिम शाही स्नान। क्या करें : शाही स्नान के दिन साधु-संतों के बाद स्नान करें। शरीर को साफ करके स्नान करें। मन को शांत रखें। कम से कम पांच डुबकी लगाएं। क्या न करें : शाही स्नान के दिन साधु-संतों से पहले स्नान न करें स्नान करते समय साबुन, शैंपू आदि का प्रयोग न करें। नकारात्मक विचारों से दूर रहें। सिर्फ एक ही बार डुबकी न लगाएं। शाही स्नान पर रखें शुद्धता का ध्यान: स्नान करने से पहले शरीर को अच्छी तरह से साफ करना चाहिए। स्नान के दौरान साबुन, शैंपू आदि का प्रयोग नहीं करना चाहिए। मन की शुद्धि हेतु स्नान के दौरान मन को शांत रखना चाहिए और किसी भी प्रकार के नकारात्मक विचारों से दूर रहना चाहिए। और कुंभ में स्नान करते समय कम से कम 5 बार डुबकी लगाना चाहिए। इस अवसर पर स्नान के बाद दान-पुण्य के कार्य करना शुभ माना जाता है। इसके अलावा स्नान के दौरान मंत्रों का जाप करने से मन शांत होता है और पुण्य की प्राप्ति होती है। कुंभ स्नान का महत्व Prayagraj Kumbh Importance : कुंभ स्नान को मोक्ष प्राप्ति का सबसे बड़ा साधन माना जाता है। मान्यता है कि कुंभ स्नान करने से व्यक्ति के सभी पाप धुल जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसके अलावा, कुंभ स्नान से मन शांत होता है और व्यक्ति को आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त होती है। अत: कुंभ स्नान एक पवित्र अनुष्ठान है। कुंभ स्नान के नियमों का पालन करके व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

चंद्रमा की इस गलती की वजह से लगता है महाकुंभ, जानिए पौराणिक कथा

Maha Kumbh katha: हर 12 साल में एक बार कुंभ में लेकर आयोजन होता है इस बार कुंभ का आयोजन प्रयागराज में हो रहा है जहां त्रिवेणी के संगम पर लाखों श्रद्धालु पवित्र संगम में डुबकी लगाकर पुण्य की प्राप्ति करेंगे । लेकिन क्या आप जानते हैं धरती पर कुंभ के आयोजन का श्रेय चंद्रमा को जाता है जिनकी एक गलती के कारण ऐसा हुआ । आज हम आपको कुंभ से जुड़ी एक रोचक कहानी के बारे में इस लेख में बताने जा रहे हैं। जानिए चंद्रमा की किस गलती के कारण धरती पर कुंभ मेला लगता है। अमृत मंथन और चंद्रमा की भूमिका कुंभ मेले की उत्पत्ति का सीधा संबंध समुद्र मंथन से है। देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया था, जिससे अमृत निकला था। इस अमृत को पाने के लिए देवताओं और असुरों में युद्ध छिड़ गया था। अमृत कलश को लाने की जिम्मेदारी सूर्य, चंद्रमा, गुरु और शनि को दी गई थी। चंद्रमा अमृत कलश को संभालते समय थोड़ा सा अमृत पी गए। अमृत की बूंदें और चार धाम चंद्रमा ने जब अमृत पिया तो कुछ बूंदें उनके मुंह से गिर गईं। ये बूंदें धरती पर चार स्थानों पर गिरीं: प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन। मान्यता है कि इन स्थानों पर जहां-जहां अमृत की बूंदें गिरीं, वहां पवित्र नदियां बहने लगीं और ये स्थान पवित्र हो गए। इन स्थानों पर स्नान करने से मनुष्य के सभी पाप धुल जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। कुंभ मेले का महत्व इन्हीं चार स्थानों पर कुंभ मेला आयोजित किया जाता है। मान्यता है कि कुंभ मेले के दौरान इन स्थानों पर स्नान करने से व्यक्ति को अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। कुंभ मेला सिर्फ एक धार्मिक आयोजन ही नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और सभ्यता का प्रतीक है। यह मेला लाखों लोगों को एक साथ लाता है और सामाजिक एकता का प्रतीक है।

स्तोत्रम || श्री राम रक्षा स्तोत्र: Shri Ram Raksha Strotam

स्तोत्र

स्तोत्र यानी की स्तुति। स्तोत्र का निर्माण ऋषि- मुनियों ने देव व देवियों की कृपा प्राप्त करने के लिए किया। स्तोत्र का पाठ कर हम अपने आराध्य की कृपा के पात्र बनते हैं। पंडितजी की माने तो स्तोत्र सामान्य आराधना से परे है। इसका पाठ करने से जातक को सामान्य पूजा - पाठ से अधिक फल मिलता है।

स्तोत्र क्या है?

स्तोत्र, यह एक संस्कृत शब्द है। इसे स्तोत्रम, स्तोत्रम् के नाम से भी जाना जाता है। इस शब्द है जिसका अर्थ होता है "स्तोत्र, स्तवन या स्तुति। यह भारतीय धार्मिक ग्रंथों की एक साहित्यिक शैली है, जिसे मधुर गायन के लिए तैयार किया गया है। स्तोत्र एक प्रार्थना है। जो एक काव्यात्मक संरचना के साथ है। यह एक कविता हो सकती है, उदाहरण के लिए किसी देवता की प्रशंसा और व्यक्तिगत भक्ति, या अंतर्निहित आध्यात्मिक और दार्शनिक सिद्धांतों वाली कविताएँ। कई स्तोत्र देवों की प्रशंसा करते हैं, जैसे देवी, शिव या विष्णु। शब्द "स्तुति" से संबंधित है, एक ही संस्कृत मूल से आ रहा है स्तू- प्रशंसा करने के लिए, और मूल रूप से दोनों का अर्थ प्रशंसा है। उल्लेखनीय स्तोत्र है राम रक्षा स्तोत्र व शिव तांडव स्तोत्रम हैं, जो राम व शिव से कृपा प्राप्त करने के लिए है। इसी तरह से अन्य देवी व देवताओं की स्तोत्र है। स्तोत्र एक प्रकार का लोकप्रिय भक्ति साहित्य है।

स्तोत्र कैसे करें

हर कार्य को करने का एक तरीका होता है। उसी तरह से स्तोत्र का पाठ करने के लिए भी कुछ नियमों का पालन करना आवश्यक है। पंडितजी कहना है कि स्तोत्र का पाठ करने से पहले जातक शुद्ध हो, स्नान आदि कर अपने आप को भगवान की भक्ति के लिए तैयार कर लें। कुल मिलाकर स्तोत्र का पाठ करने की विधि की बात करें तो यह देव व देवी के अनुसार तय होता है। परंतु सामान्य विधि की बात करें तो हर एक स्तोत्र पाठ में अपनाया जाता है। सबसे पहले आपको स्तोत्र करने का स्थान तय करना होगा। इसके बाद आप आसन बिछा कर बैठ जाए। फिर आपको गणेश जी का ध्यान करें। फिर जिस भी देवी देवता के स्तोत्र का पाठ करना हो उसे शुरू करें। ध्यान रहें आपका ध्यान पाठ पर रहें। पूरी श्रद्धा से आप स्तोत्र का पाठ करें।पाठ पूर्ण होने के बाद जिस देव की स्तुति आप कर रहें थे उनका ध्यान करें। हुई भूल चूक क्षमा करने की याचना करें।

स्तोत्र करते समय क्या न करें?

सबसे पहली बात जो ध्यान रखना है वो यह है कि आप अतंर्मन व बाहर से शुद्ध हो। इसके बाद आपको स्तोत्र को बीच में अधूरा नही छोड़ना है। ऐसा करने से आप कृपा के नहीं क्रोध के पात्र बन जाएंगे। जिसका आपको भारी अंजाम भुगतना पड़ सकता है। इसके साथ ही जहां तक हो सके स्तोत्र को शुद्धता के साथ पाठ करें। अशुद्ध उच्चारण आपको समस्या में डाल सकती है। कुल मिलाकर आपको स्तोत्र का पाठ पूरी आस्था व श्रद्धा के साथ करना चाहिए। भूल चूक की आप क्षमा मांग लें। चाहे भूल हो या न हों। ऐसा करना आपको लिए सही रहेगा।

श्री राम रक्षा स्तोत्र: Ram Raksha Strotam

Ram Raksha Strotam: श्री राम रक्षा स्तोत्र, जैसा कि नाम से ही पता चल रहा है कि यह भगवान श्रीराम का स्तोत्र है। श्री राम रक्षा स्तोत्र की रचना बुध कौशिक ऋषि द्वारा की गई है। यह संस्कृत निष्ठ श्री राम का स्तुति गान है। इसका पाठ करने से भय का अंत होता है। इसके साथ ही व्यक्तित्व में अद्वितीय बदलाव आता है। यदि आप भगवान श्री राम के भक्त हैं तो आपको इस स्तोत्र का पाठ जरूर करना चाहिए। । श्रीगणेशायनम: । ॥ श्रीरामरक्षास्तोत्रम्‌ ॥ अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य । बुधकौशिक ऋषि: । श्रीसीतारामचंद्रोदेवता । अनुष्टुप्‌ छन्द: । सीता शक्ति: । श्रीमद्‌हनुमान्‌ कीलकम्‌ । श्रीसीतारामचंद्रप्रीत्यर्थे जपे विनियोग: ॥ ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्दद्पद्‌मासनस्थं । पीतं वासोवसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम्‌ ॥ वामाङ्‌कारूढसीता मुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभं । नानालङ्‌कारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डनं रामचंद्रम्‌ ॥ ॥ इति ध्यानम्‌ ॥ चरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम्‌ । एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम्‌ ॥1॥ ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम्‌ । जानकीलक्ष्मणोपेतं जटामुकुटमण्डितम्‌ ॥2॥ सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तं चरान्तकम्‌ । स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम्‌ ॥3॥ रामरक्षां पठॆत्प्राज्ञ: पापघ्नीं सर्वकामदाम्‌ । शिरो मे राघव: पातु भालं दशरथात्मज: ॥4॥ कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रिय: श्रुती । घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सल: ॥5॥ जिव्हां विद्दानिधि: पातु कण्ठं भरतवंदित: । स्कन्धौ दिव्यायुध: पातु भुजौ भग्नेशकार्मुक: ॥6॥ करौ सीतपति: पातु हृदयं जामदग्न्यजित्‌ । मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रय: ॥7॥ सुग्रीवेश: कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभु: । ऊरू रघुत्तम: पातु रक्ष:कुलविनाशकृत्‌ ॥8॥ जानुनी सेतुकृत्पातु जङ्‌घे दशमुखान्तक: । पादौ बिभीषणश्रीद: पातु रामोSखिलं वपु: ॥9॥ एतां रामबलोपेतां रक्षां य: सुकृती पठॆत्‌ । स चिरायु: सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत्‌ ॥10॥ पातालभूतलव्योम चारिणश्छद्‌मचारिण: । न द्र्ष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभि: ॥11॥ रामेति रामभद्रेति रामचंद्रेति वा स्मरन्‌ । नरो न लिप्यते पापै भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति ॥12॥ जगज्जेत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम्‌ । य: कण्ठे धारयेत्तस्य करस्था: सर्वसिद्द्दय: ॥13॥ वज्रपंजरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत्‌ । अव्याहताज्ञ: सर्वत्र लभते जयमंगलम्‌ ॥14॥ आदिष्टवान्यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हर: । तथा लिखितवान्‌ प्रात: प्रबुद्धो बुधकौशिक: ॥15॥ आराम: कल्पवृक्षाणां विराम: सकलापदाम्‌ । अभिरामस्त्रिलोकानां राम: श्रीमान्‌ स न: प्रभु: ॥16॥ तरुणौ रूपसंपन्नौ सुकुमारौ महाबलौ । पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ ॥17॥ फलमूलशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ । पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ ॥18॥ शरण्यौ सर्वसत्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम्‌ । रक्ष:कुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघुत्तमौ ॥19॥ आत्तसज्जधनुषा विषुस्पृशा वक्षया शुगनिषङ्‌ग सङि‌गनौ । रक्षणाय मम रामलक्ष्मणा वग्रत: पथि सदैव गच्छताम्‌ ॥20॥ संनद्ध: कवची खड्‌गी चापबाणधरो युवा । गच्छन्‌मनोरथोSस्माकं राम: पातु सलक्ष्मण: ॥21॥ रामो दाशरथि: शूरो लक्ष्मणानुचरो बली । काकुत्स्थ: पुरुष: पूर्ण: कौसल्येयो रघुत्तम: ॥22॥ वेदान्तवेद्यो यज्ञेश: पुराणपुरुषोत्तम: । जानकीवल्लभ: श्रीमानप्रमेय पराक्रम: ॥23॥ इत्येतानि जपेन्नित्यं मद्‌भक्त: श्रद्धयान्वित: । अश्वमेधाधिकं पुण्यं संप्राप्नोति न संशय: ॥24॥ रामं दूर्वादलश्यामं पद्‌माक्षं पीतवाससम्‌ । स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नर: ॥25॥ रामं लक्शमण पूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुंदरम्‌ । काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम्‌ राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथनयं श्यामलं शान्तमूर्तिम्‌ । वन्दे लोकभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम्‌ ॥26॥ रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे । रघुनाथाय नाथाय सीताया: पतये नम: ॥27॥ श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम । श्रीराम राम भरताग्रज राम राम । श्रीराम राम रणकर्कश राम राम । श्रीराम राम शरणं भव राम राम ॥28॥ श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि । श्रीरामचन्द्रचरणौ वचसा गृणामि । श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि । श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥29॥ माता रामो मत्पिता रामचंन्द्र: । स्वामी रामो मत्सखा रामचंद्र: । सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालु । नान्यं जाने नैव जाने न जाने ॥30॥ दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे तु जनकात्मजा । पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनंदनम्‌ ॥31॥ लोकाभिरामं रनरङ्‌गधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्‌ । कारुण्यरूपं करुणाकरंतं श्रीरामचंद्रं शरणं प्रपद्ये ॥32॥ वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥33॥ कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम्‌ । आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम्‌ ॥34॥ आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसंपदाम्‌ । लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम्‌ ॥35॥ भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसंपदाम्‌ । तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम्‌ ॥36॥ रामो राजमणि: सदा विजयते रामं रमेशं भजे । रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नम: । रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोSस्म्यहम्‌ । रामे चित्तलय: सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर ॥37॥ राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे । सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥38॥ । इति श्रीराम रक्षा स्तोत्र समाप्त ।

श्री राम रक्षा स्तोत्र के लाभ

श्री राम रक्षा स्तोत्र (sri ram raksha strotam) का पाठ करने के लाभों की बात करें तो ये इस प्रकार हैं – यदि आपका न्यायालय में कोई मामला लटका है तो इससे आपको लाभ होगा। ज्योतिषाचार्यों इसे लेकर उपाय भी बता बतलाएं हैं। ज्योतिष विदों की माने तो श्री राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करते समय सरसों के कुछ दानों को कटोरी में रखकर उसमें अंगूली घुमाएं और पाठ खत्म हो जाने के बाद जेब में डालकर ले जायें। जहां विपक्षी बैठा हो उसके सम्मुख इन दानों को फेंक दें। आप किसी प्रतियोगी परीक्षा, खेल, या फिर साक्षात्कार आदि के लिये जा रहे हैं तो भी अपनी जेब में इन दानों को रखकर जायें। किसी अनिष्ठ की आशंका आपको हो तो भी आप सिद्ध सरसों को अपने साथ रख सकते हैं। आपके कार्य सिद्ध होंगे।

श्री राम रक्षा स्तोत्र पाठ विधि

श्री राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करने के लिए आप प्रात:काल उठकर नित्य कर्म कर स्नान कर लें और स्वच्छ वस्त्र धारण कर पूजा गृह को शुद्ध कर लें। इसके बाद सभी सामग्रियों को एकत्रित कर आसन पर बैठ जाएं। चौकी अथवा लकड़ी के पटरे पर लाल वस्त्र बिछायें। उस पर श्री राम जी की मूर्ति स्थापित करें। हो सके तो साथ में श्रीराम दरबार की फोटो भी लगाएं। श्रीराम जी का पूरा दरबार जिसमें चारों भाई के साथ हनुमान जी भी दिखाई दें। इसके बाद श्री गणेश का आह्वाहन करें। क्योंकि गणेश पूजा के बिना कोई भी कार्य पूर्ण नहीं माना जाता है। इसके बाद आप श्री राम रक्षा स्तोत्र (Ram Raksha Strotam in Hindi) का पाठ करें। इसके बाद आप आरती कर प्रसाद बांट दें। आपको लाभ होगा।

महाकुंभ में नागा साधु क्यों निकालते हैं शाही बारात, शिव और पार्वती के विवाह से क्या है इसका संबंध

महाकुंभ भारत का सबसे बड़ा धार्मिक मेला है। इस मेले में लाखों श्रद्धालु भाग लेते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि महाकुंभ में नागा साधुओं की शाही बारात का विशेष महत्व क्यों है? असल में महाकुंभ में नागा साधुओं की शाही बारात का उल्लेख पुराणों में भी मिलता है। पुराणों में इस शाही बारात का संबंध महादेव और समुद्र मंथन के साथ जुड़ा हुआ है। शाही बारात का इतिहास पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव जब माता पार्वती से विवाह करने के लिए कैलाश से आए थे, तब उनकी बारात बहुत भव्य थी। इस बारात में देवी-देवता, गंधर्व, यक्ष, यक्षिणी, साधु-संत, तांत्रिक सभी शामिल थे। जब भगवान शिव कैलाश लौटे तो नागा साधुओं ने शिव बारात का हिस्सा न बन पाने का दुख व्यक्त किया। भगवान शिव ने उन्हें वचन दिया कि उन्हें भी शाही बारात निकालने का मौका मिलेगा। इसी वचन के अनुसार, समुद्र मंथन के बाद जब पहला महाकुंभ हुआ, तब नागा साधुओं ने भगवान शिव की प्रेरणा से शाही बारात निकाली। महाकुंभ में शाही बारात का महत्व भगवान शिव का आशीर्वाद: ऐसा माना जाता है कि महाकुंभ में नागा साधुओं की शाही बारात देखने से भगवान शिव का आशीर्वाद मिलता है। धार्मिक महत्व: यह परंपरा हिंदू धर्म की एक प्राचीन परंपरा है और इसका धार्मिक महत्व है। सांस्कृतिक विरासत: यह परंपरा हमारी सांस्कृतिक विरासत का एक अहम हिस्सा है। आध्यात्मिक अनुभव: नागा साधुओं की शाही बारात देखना एक आध्यात्मिक अनुभव होता है। शाही बारात की विशेषताएं भव्य श्रृंगार: नागा साधु भस्म, रुद्राक्ष और फूलों से भव्य श्रृंगार करते हैं। धार्मिक गीत: बारात में धार्मिक गीत गाए जाते हैं। धार्मिक अनुष्ठान: बारात के दौरान कई धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं। महाकुंभ में नागा साधुओं की शाही बारात एक ऐसी परंपरा है जो सदियों से चली आ रही है। यह परंपरा न केवल धार्मिक महत्व रखती है बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक विरासत का भी एक अहम हिस्सा है। साहि बारात में नागा साधु क्यों महत्वपूर्ण हैं? नागा साधु विशेष रूप से साहि बारात का केंद्र होते हैं। . ये साधु निर्वस्त्र (नग्न) रहते हैं और अपने शरीर पर भस्म लगाते हैं। . नागा साधुओं को सनातन धर्म के रक्षक माना जाता है। . ये कठोर तपस्या करते हैं और समाज को यह संदेश देते हैं कि धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए किसी भी परिस्थिति में तैयार रहना चाहिए। निष्कर्ष साहि बारात कुंभ मेले की सबसे भव्य और पवित्र परंपरा है। यह यात्रा नागा साधुओं और अखाड़ों की धार्मिक शक्ति और राजसी गौरव को दर्शाती है। साहि बारात यह संदेश देती है कि धर्म, संस्कृति और परंपराओं की रक्षा के लिए हमेशा जागरूक और तैयार रहना चाहिए।

2025 में कब है तिल संकटा चौथ, जानें तिथि, मुहूर्त और पूजा विधि

Sakat Chauth Vrat Kab hai 2025: पौराणिक धर्मशास्त्रों के अनुसार तिल-संकटा चौथ या सकट चौथ हिन्दू धर्म में किया जाने वाला एक महत्वपूर्ण व्रत है। वर्ष 2025 में तिल-संकटा चौथ व्रत 17 जनवरी, शुक्रवार को मनाया जा रहा है। इस दिन तिल का इस्तेमाल होने से तिल चतुर्थी तथा सकट चतुर्थी भी कहीं जाती है। यह व्रत माघ महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है और भगवान श्री गणेश को समर्पित होता है। इस दिन पानी में तिल डालकर नहाया जाता है। इस दिन विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य के लिए व्रत रखती हैं। तिल-संकटा चौथ को माघी चौथ, सकट चौथ, संकष्टी चतुर्थी, तिलकुट चौथ आदि विभिन्न नामों से जाना जाता है। सकट चौथ 2025 माघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि आरंभ: 17 जनवरी 2025, प्रातः 4 बजकर 06 मिनट पर माघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि समाप्त: 18 जनवरी 2025, प्रातः 5 बजकर 30 मिनट पर गणपति पूजा मुहूर्त- 17 जनवरी 2025 प्रातः 7:15 - प्रातः 11:12 सकट चौथ 2025 चंद्रोदय समय 17 जनवरी 2025 , रात्रि 09: 09 मिनट पर सकट चौथ व्रत क्यों किया जाता है ? सकट चौथ का दिन भगवान गणेश और सकट माता को समर्पित है। इस दिन माताएं अपने पुत्रों के कल्याण की कामना से व्रत रखती हैं। सकट चौथ के दिन भगवान गणेश की पूरे विधि विधान से पूजा की जाती है। इस पूरे दिन व्रत रखा जाता है। रात्रि में चंद्रोदय के बाद चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही व्रत का पारण किया जाता है। यही कारण है कि सकट चौथ पर चंद्रमा दर्शन और पूजन का विशेष महत्व होता है। इस दिन गणपति जी को पूजा में तिल के लड्डू या मिठाई अर्पित करते हैं, साथ में चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद व्रत पारण करते हैं। तिल-संकटा चौथ और तिल का महत्व : इस दिन भगवान गणेश को तिल-गुड़ के लड्डू, मोदक आदि भोग लगाकर पूजा जाती है। मान्यता है कि भगवान गणेश सभी विघ्नों को दूर करते हैं और अपने भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करते हैं। खासकर संतान प्राप्ति के लिए भी यह व्रत किया जाता है। इस व्रत को करने से घर में सुख-समृद्धि और दांपत्य जीवन में मधुरता आती है। तिल को बहुत पवित्र माना जाता है। तिल में कई औषधीय गुण होते हैं। तिल का सेवन करने से शरीर स्वस्थ रहता है। तिल-संकटा चौथ के दिन तिल के लड्डू बनाकर भगवान गणेश को भोग लगाया जाता है। तिल-संकटा चौथ व्रत की विधि : इस दिन सुबह स्नान करके व्रत का संकल्प लिया जाता है। पूजा के लिए गणेश जी की मूर्ति, रोली, चंदन, दीपक, धूप, आदि का प्रयोग किया जाता है। फिर उनका पूजन किया जाता है। तथा तिल के लड्डू, मोदक, नैवेद्य अर्पित किया जाता है। शाम को चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत का पारण किया जाता है। इस दिन गणेश जी की कथा सुनना बहुत शुभ माना जाता है। बता दें कि सुख-सौभाग्य, संतान पाने और परिवार के कल्याण की कामना से महिलाएं ये व्रत रखती हैं।

महाकुंभ का वैज्ञानिक महत्व

14 जनवरी मकर संक्रांति से प्रयागराज में महाकुंभ शुरू हो रहा है। हर 12 साल में होने वाला प्रयाग का यह कुंभ महाकुंभ है। 12 कुंभ होने के बाद 144 साल बाद यहां महाकुंभ आयोजित होता है। हर परिवार की तीसरी पीढ़ी को महाकुंभ देखने का मौका मिलता है। शास्त्रों और किवदंतियों में वर्णित कुंभ के महत्व को देश और दुनिया के जाने-माने ध्यान गुरु रघुनाथ गुरु जी अध्यात्म में विज्ञान की खोज श्रृंखला में वह जानकारी दे रहे हैं जो सिद्ध करते हैं कि हजारों साल पहले भी भारतीय दर्शन और विज्ञान कितना उन्नत था और हमारे पूर्वज कितने प्रगतिशील गतिशील और ज्ञानी थे। अध्यात्म में विज्ञान की खोज : ध्यानगुरु रघुनाथ गुरु जीं बताते हैं कि महाकुंभ का सिर्फ धार्मिक और आध्यात्मिक नहीं वैज्ञानिक महत्व भी है। हमारे ऋषि मुनि बहुत विद्वान और वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखते थे। माना जाता है कि देवों और असुरों के बीच सागर मंथन से अमृत कलश निकला था उस दिव्य कलश को प्राप्त करने के लिए देव और दानव में 12 दिन महाभयंकर युद्ध हुआ था। उसी समय अमृत की चार बूंद पृथ्वी पर गिरी प्रायगराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक यह उन जगह के नाम है। रघुनाथ गुरु जी बताते हैं कि देवताओं के 12 दिन पृथ्वी के 12 साल होते है। सूर्य, पृथ्वी, चंद्र और गुरु यह चारों ग्रह एक विशिष्ट संयोग में आते हैं तब सूर्य पृथ्वी के सबसे नजदीक 3 जनवरी को आता है। इसीके साथ 14 तारीख को मकर संक्रांति को सूर्य उत्तरायण होते है। पौष पौर्णिमा के दिन विशिष्ट संयोग से गुरु का कुंभ राशि में प्रवेश होता है। पूर्णिमा के दिन बृहस्पति वृषभ राशि में प्रवेश करते है। रघुनाथ गुरु जी के अनुसार सूर्य हर 12 साल में सोलर सायकल सूर्य पूरी करता है। सूर्य जब नॉर्थ से साउथ पोल घूमता है उस समय सूर्य के मॅग्नेटिक फिल्ड से पृथ्वी का वातावरण प्रभावित होता है। पृथ्वी पर रहने वाले जीव जंतुओं और मानव के लिए यह मैग्नेटिक फील्ड अत्यधिक सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न करती है'। रघुनाथ गुरु जी बताते हैं कि सूर्य चक्र का समय भी कुंभ से जुडा हुआ होता है। ठंड के दिन में जब वातावरणमें ऑक्सीजन मॉलिक्यूल का घनत्व ज्यादा होता है। वातावरण और पानी में उसे समय ऑक्सीजन की मात्रा अधिक होती है। यह ऑक्सीजन मॉलक्युलस पवित्र मां गंगा नदी, यमुना नदी, सरस्वती नदी के संगम मे मिलते है। तब पानी में डिसॉल्व ऑक्सीजन की मात्रा बढती है। हमारे ऋषि मनियों ने इस वैज्ञानिक कारण को भी ध्यान में रखकर कुंभ की परंपरा विकसित की होगी ऐसा माना जा सकता है। रघुनाथ गुरु जी बताते हैं कि गुरु ग्रह की गुरुत्वाकर्षण शक्ति, सूर्य का सूर्य चक्र और सोलर स्पॉट नॉर्थ पोल, साउथ पोल परिवर्तन के समय का मैग्नेटिक फील्ड बनती है। जो पृथ्वी पर सकारात्मक ऊर्जा सुमन रिसोनेंस फ्रिक्वान्सी से इंसान के दिमाग में अल्फा किरणों की वृद्धि करती है। इससे मनुष्य के मन को शांति मिलती है और शरीर को निरोगी जीवन देती है। सूर्य की गतिविधियों का पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र पर प्रभाव पड़ता है। जो इंसान की जैविक घड़ी जिसे नींद और जागने का चक्र कहते हैं उसे बेहतर बनाता है। रघुनाथ गुरु जी बताते हैं कि पृथ्वी, सूर्य, चंद्र और गुरु के खगोलीय संयोग से एकत्रित होकर वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न होती है। इस ऊर्जा के साथ सभी देवी-देवताओं का आशीर्वाद, साधु संतों और तपस्वियों की उपस्थिति का वातावरण ही अमृत तुल्य होता है। इस आशीर्वाद के कारण ही वातावरण में जो अमृत वर्षा होती है। पानी में PH, घुली हुई ऑक्सीजन और मिनरल्स सही मात्रा मे पानी मे मिलते है। जो पवित्र गंगा नदी के जल को आध्यात्मिक और वैज्ञानिक रूप से बहुत उपयोगी और लाभदायक बनाते हैं। इनका हमारे जीवन में बहुत फायदा होता है। आत्मिक शांति मिलती है और जीवन निरोगी होता है। रघुनाथ गुरु जी कहते हैं कि आधुनिक विज्ञान हमारी हजारों साल पुरानी परंपराओं को सिद्ध कर रहा है और सही मान रहा है। यह भारतीय संस्कृति और सनातन की पुनर्स्थापना है। जय श्री राम जय गोरखनाथ हर हर गंगे।

प्रयागराज में महाकुंभ के दौरान जरूर घूमें ये 10 घाट, गंगा आरती से लेकर कई मनोरम दृश्यों का ले सकेंगे आनंद

प्रयागराज, जिसे पहले इलाहाबाद के नाम से जाना जाता था, भारत के सबसे पवित्र शहरों में से एक है। यहां गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों का संगम होता है, जो इसे धार्मिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण बनाता है। महाकुंभ के दौरान, लाखों श्रद्धालु यहां आते हैं। इस लेख में, हम प्रयागराज के 10 प्रमुख घाटों के बारे में बताएंगे, जो महाकुंभ के दौरान घूमने लायक हैं। अगर आप कुंभ के दौरान प्रयागराज जा रहे हैं तो आपको इन घाटों पर जरूर जाना चाहिए। इन घाटों की सुंदरता और मनोरम दृश्य आपका मन मोह लेंगे। संगम घाट: संगम घाट प्रयागराज का सबसे पवित्र घाट है, जहां गंगा, यमुना और सरस्वती नदियां मिलती हैं। महाकुंभ के दौरान, लाखों श्रद्धालु यहां आकर पवित्र स्नान करते हैं। दशाश्वमेध घाट दशाश्वमेध घाट प्रयागराज का एक और प्रमुख घाट है। यहां हर शाम गंगा आरती का भव्य आयोजन होता है, जो देखने लायक होता है। अरैल घाट अरैल घाट को साधु-संतों का घाट भी कहा जाता है। यहां कई आश्रम और मठ हैं, जहां साधु-संत रहते हैं। राम घाट राम घाट का नाम भगवान राम के नाम पर रखा गया है। यहां एक सुंदर मंदिर भी है। लक्ष्मी घाट लक्ष्मी घाट को माता लक्ष्मी को समर्पित है। यहां माता लक्ष्मी का एक भव्य मंदिर है। हनुमान घाट हनुमान घाट भगवान हनुमान को समर्पित है। यहां भगवान हनुमान का एक विशाल मंदिर है। श्रीवास्तव घाट श्रीवास्तव घाट एक शांत और शांतिपूर्ण घाट है। यहां आप ध्यान और योग कर सकते हैं। नरौरा घाट नरौरा घाट एक ऐतिहासिक घाट है। यहां कई पुराने मंदिर और मस्जिदें हैं। खुसरो बाग घाट खुसरो बाग घाट को मुगल बादशाह जहांगीर के बेटे खुसरो ने बनवाया था। यहां एक सुंदर बाग भी है। किला घाट किला घाट प्रयागराज का एक ऐतिहासिक घाट है। यहां से आप प्रयागराज किले के खंडहर देख सकते हैं। महाकुंभ के दौरान क्यों घूमें ये घाट? महाकुंभ के दौरान, ये सभी घाट श्रद्धालुओं से गुलजार हो जाते हैं। यहां आप न केवल पवित्र स्नान कर सकते हैं बल्कि विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों में भी भाग ले सकते हैं। इसके अलावा, आप यहां की स्थानीय संस्कृति और परंपराओं का भी अनुभव कर सकते हैं।

महाकुंभ 2025: कुंभ में गंगा स्नान से पहले जान लें ये नियम, मिलेगा पूरा पुण्य लाभ

महाकुंभ में गंगा स्नान एक पवित्र अनुष्ठान है। हिंदू धर्म में गंगा स्नान का विशेष महत्व है खासकर ग्रस्तों के लिए महाकुंभ में गंगा स्नान की बहुत मानता है। इस पवित्र अनुष्ठान को करने के लिए कुछ नियमों का पालन करना आवश्यक होता है। इन नियमों का पालन करने से हमें पूर्ण पुण्य लाभ प्राप्त होता है

गृहस्थों के लिए गंगा स्नान के महत्वपूर्ण नियम

साधु-संतों को दें प्राथमिकता: महाकुंभ में साधु-संतों का विशेष स्थान होता है। शाही स्नान के दौरान विशेषकर साधु-संतों को पहले स्नान करने का अवसर दिया जाता है। गृहस्थों को साधु-संतों के स्नान के बाद ही स्नान करना चाहिए। ऐसा न करने पर धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पाप लग सकता है। पांच बार डुबकी: गंगा स्नान के दौरान कम से कम पांच बार डुबकी लगाना शुभ माना जाता है। यह संख्या धार्मिक महत्व रखती है और माना जाता है कि इससे पांच तत्वों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश) का शुद्धीकरण होता है। मन में पवित्र भाव: गंगा स्नान करते समय मन को पवित्र भावों से भर देना चाहिए। किसी भी प्रकार का बुरा विचार मन में नहीं लाना चाहिए। शांत वातावरण: स्नान के दौरान शांत वातावरण बनाए रखना चाहिए। शोर-शराबा करने से पवित्रता भंग होती है। साफ-सफाई: स्नान करने से पहले शरीर को अच्छी तरह से धो लेना चाहिए। दान: स्नान के बाद जरूरतमंदों को दान करना चाहिए। यह पुण्य का काम माना जाता है।

मकहाकुम्भ में गंगा स्नान का महत्व

गंगा स्नान को हिंदू धर्म में बहुत पवित्र माना जाता है। माना जाता है कि गंगा जल में स्नान करने से सभी पाप धुल जाते हैं और मन शुद्ध हो जाता है। महाकुंभ में गंगा स्नान का विशेष महत्व होता है क्योंकि इस दौरान ग्रह-नक्षत्रों की विशेष स्थिति होती है जिससे गंगा जल और अधिक पवित्र हो जाता है।

Happy Makar Sankranti 2025: Top 50 Wishes : Heartfelt Messages for WhatsApp Status, Friends, Family, Colleagues and Loved ones

Happy Makar Sankranti 2025: Celebrate the Spirit of Makar Sankranti with Messages of Joy and Gratitude for Loved Ones, Friends, and Colleagues.

For Loved One

1. May the warmth of the Sun bring endless joy and happiness to your life. Happy Makar Sankranti 2025! 2. Sending you love and good vibes this Sankranti! May your days ahead be as sweet as tilkut. 3. Let this Makar Sankranti bring new hopes, happiness, and love into your life. Wishing you a blessed day! 4. Celebrate this harvest festival with your heart full of gratitude and your life filled with love. Happy Sankranti! 5. With every ray of sunlight, may your dreams take flight this Sankranti!

For Friends

6. May our friendship soar as high as the kites in the sky this Makar Sankranti. Cheers to good times ahead! 7. Let’s celebrate the festival of joy and abundance together. Happy Makar Sankranti, my dear friend! 8. May your Sankranti be filled with kite-flying, sweet treats, and loads of laughter! 9. Here’s to brighter days and stronger bonds. Happy Makar Sankranti! 10. May this festival bring a rainbow of joy into your life. Have a fantastic Sankranti, buddy!

For Family

11. Grateful for family, love, and togetherness this Makar Sankranti. Let’s celebrate with joy and gratitude! 12. Wishing my dear family a Sankranti full of warmth, love, and cherished moments. 13. Family is like the string of a kite; it holds everything together. Happy Sankranti, my pillars of strength! 14. May our home always be filled with happiness and love, just like this festival brings! Happy Makar Sankranti! 15. On this Sankranti, let’s thank the Sun for blessing us with such a wonderful family.

For Colleagues

16. Wishing you and your family success, health, and prosperity this Makar Sankranti! 17. May this festival of harvest bring abundant growth and progress in all aspects of your life. 18. May your professional and personal life soar to new heights this Sankranti. Happy celebrations! 19. Here’s to a year full of opportunities and achievements. Happy Makar Sankranti to my amazing colleagues! 20. Let the positivity of Makar Sankranti reflect in all our work this year. Wishing you a bright future!

General Wishes

21. Let the kites of happiness and success soar high this Sankranti! 22. Celebrate the joy of harvest and the warmth of togetherness. Happy Makar Sankranti! 23. Tilgul ghya, ani goad-goad bolya! (Take sweets and speak sweetly!) Happy Sankranti! 24. May the Sun God bless you with new beginnings and endless positivity. 25. Let the colors of joy, peace, and love brighten up your life this Makar Sankranti. 26. Celebrate the festival of harvest with gratitude and a heart full of joy. 27. Wishing you wealth, health, and happiness this Makar Sankranti! 28. May the warmth of the Sun and the sweetness of til and gur fill your life with happiness. 29. Let’s welcome brighter days and bid farewell to winter blues this Makar Sankranti. 30. Celebrate the spirit of the harvest season with positivity and abundance.

Short and Sweet Status Messages

31. Happy Makar Sankranti! Stay blessed! 32. Tilgul ghya, ani anand se raha! 33. Fly high and soar beyond limits this Sankranti! 34. Sunshine, kites, and smiles – Happy Makar Sankranti! 35. Sweet moments and sweet wishes this Sankranti! 36. Soar high with your dreams this festive season! 37. Celebrate the harvest of joy and prosperity. Happy Sankranti! 38. Let the Sun shine brighter on your life this Makar Sankranti. 39. Harvest love, joy, and togetherness this festival. 40. Kites in the sky, joy in the heart – Happy Makar Sankranti!

Inspirational Wishes

41. Let this Sankranti inspire you to rise higher and brighter in life! 42. May the positivity of the Sun fill your life with endless energy and enthusiasm. 43. Every new season brings a chance to grow. Embrace the change this Sankranti! 44. Celebrate the journey of life with gratitude and hope this Makar Sankranti. 45. As the Sun begins its northern journey, let your aspirations also rise higher.

Funny and Light-Hearted Wishes

46. Let your kite soar higher than your WiFi signal this Sankranti! 47. Eat tilkut, stay sweet, and don’t count calories today. Happy Sankranti! 48. Sankranti diet: Tilkut and chura-dahi for breakfast, lunch, and dinner! 49. If your kite doesn’t fly high, at least your spirits should. Happy Sankranti! 50. Who needs a gym when kite flying gives you the best workout? Happy Sankranti!

पौष पूर्णिमा 2025 - पौष पूर्णिमा की व्रत विधि व महत्व

Paush Purnima 2025: भारतीय जनजीवन में पूर्णिमा व अमावस्या का अत्यधिक महत्व है। अमावस्या को कृष्ण पक्ष तो पूर्णिमा को शुक्ल पक्ष का अंतिम दिन होता है। लोग अपने-अपने तरीके से इन दिनों को मनाते भी हैं। पूर्णिमा यानि पूर्णो मा:। मास का अर्थ होता है चंद्र। अर्थात जिस दिन चंद्रमा का आकार पूर्ण होता है उस दिन को पूर्णिमा कहा जाता है। और जिस दिन चांद आसमान में बिल्कुल दिखाई न दे वह स्याह रात अमावस्या की होती है। हर माह की पूर्णिमा पर कोई न कोई त्यौहार अवश्य होता है। लेकिन पौष और माघ माह की पूर्णिमा का अत्यधिक महत्व माना गया है, विशेषकर उत्तर भारत में हिंदूओं के लिए यह बहुत ही खास दिन होता है।

साल 2025 में पौष पूर्णिमा तिथि व मुहूर्त

वर्ष 2025 में पौष पूर्णिमा व्रत 13 जनवरी को है। पवित्र माह माघ का स्वागत करने वाली इस मोक्षदायिनी पूर्णिमा पर प्रभु भक्ति व स्नान ध्यान, दानादि से पुण्य मिलता है। 13 जनवरी 2025, सोमवार (पौष पूर्णिमा व्रत, पौष पूर्णिमा) पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ - 13 जनवरी, सुबह 05:03 बजे से, पूर्णिमा तिथि समाप्त - 14 जनवरी, रात 03:56 बजे तक।

पौष पूर्णिमा पूजा विधि

1. पवित्र स्नान: इस दिन का प्रारंभ पवित्र नदी या किसी पवित्र जल में स्नान करने से करें। विशेष रूप से गंगा स्नान को सर्वोत्तम माना जाता है। स्नान के बाद भगवान का ध्यान करें और शुद्ध मन से पूजा की तैयारी करें। 2. भगवान विष्णु का पूजन: पौष पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का पूजन करना चाहिए। पूजा में तुलसी के पत्ते, दीपक, फूल, और मिठाइयाँ अर्पित करें। साथ ही विशेष मंत्रों का जाप करें, जैसे: "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" "ॐ श्री लक्ष्मीपतये नमः" 3. दान: इस दिन दान का विशेष महत्व है। गरीबों और ब्राह्मणों को अनाज, वस्त्र, और अन्य आवश्यक वस्तुएँ दान करें। दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है और जीवन में समृद्धि आती है। 4. व्रत और उपवास: कई लोग इस दिन व्रत रखते हैं और उपवास करते हैं। यह दिन आत्मशुद्धि और मानसिक शांति के लिए भी उपयुक्त माना जाता है।

पौष पूर्णिमा का महत्व

पौष माह की पूर्णिमा को मोक्ष की कामना रखने वाले बहुत ही शुभ मानते हैं। क्योंकि इसके बाद माघ महीने की शुरुआत होती है। माघ महीने में किए जाने वाले स्नान की शुरुआत भी पौष पूर्णिमा से ही हो जाती है। पंडितजी का कहना है ऐसी मान्यता है कि जो व्यक्ति इस दिन विधिपूर्वक प्रात:काल स्नान करता है वह मोक्ष का अधिकारी होता है। उसे जन्म-मृत्यु के चक्कर से छुटकारा मिल जाता है अर्थात उसकी मुक्ति हो जाती है। चूंकि माघ माह को बहुत ही शुभ व इसके प्रत्येक दिन को मंगलकारी माना जाता है इसलिए इस दिन जो भी कार्य आरंभ किया जाता है उसे फलदायी माना जाता है। इस दिन स्नान के पश्चात क्षमता अनुसार दान करने का भी महत्व है। 1. पाप नाश और पुण्य अर्जन: इस दिन को विशेष रूप से पापों का नाश करने और पुण्य अर्जित करने का दिन माना जाता है। इस दिन विशेष रूप से गंगा स्नान करने की परंपरा है, क्योंकि इसे पवित्र माना जाता है और यह मानसिक शांति और पुण्य के लिए लाभकारी होता है। 2. द्रव्य दान: पौष पूर्णिमा के दिन दान करने का विशेष महत्व है। विशेष रूप से इस दिन अनाज, वस्त्र, और अन्य द्रव्य दान करना पुण्य का कारण बनता है। यह दिन लोगों के बीच भाईचारे और प्रेम को बढ़ाने का एक अवसर होता है। 3. माता लक्ष्मी का पूजन: इस दिन का संबंध माता लक्ष्मी के पूजन से भी है। विशेष रूप से व्यापारियों और व्यवसायियों के लिए यह दिन लाभकारी माना जाता है। पौष पूर्णिमा के दिन व्रत रखने और विशेष पूजा करने से घर में समृद्धि और खुशहाली आती है।

पौष पूर्णिमा और कुम्भ स्नान 2025

वाराणसी के दशाश्वमेध घाट व प्रयाग में त्रिवेणी संगम पर पर डुबकी लगाना बहुत ही शुभ व पवित्र माना जाता है। प्रयाग में तो कल्पवास कर लोग माघ माह की पूर्णिमा तक स्नान करते हैं। जो लोग प्रयाग या वाराणसी तक नहीं जा सकते वे किसी भी पवित्र नदी या सरोवर में स्नान करते हुए प्रयागराज का ध्यान करें। पौष पूर्णिमा हिंदू पंचांग के अनुसार पौष माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाई जाती है। यह दिन विशेष रूप से पुण्य कमाने, तर्पण, स्नान, और दान करने के लिए महत्वपूर्ण होता है। 2025 में, पौष पूर्णिमा 13 जनवरी को मनाई जाएगी। पौष पूर्णिमा का दिन विशेष रूप से गंगा स्नान, तर्पण और दान का दिन होता है। इस दिन का महत्व इसलिए भी है क्योंकि यह शीतकाल में आता है और यह समय शरीर और मन को शुद्ध करने का होता है।

कुम्भ स्नान 2025

कुम्भ स्नान हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है। कुम्भ मेला का आयोजन हर 12 वर्ष में एक बार होता है, जो चार प्रमुख तीर्थ स्थलों - इलाहाबाद (प्रयागराज), हरिद्वार, उज्जैन, और नासिक में आयोजित होता है। 2025 में कुम्भ स्नान के मुख्य दिन प्रयागराज (इलाहाबाद) में आयोजित होंगे, और विशेष रूप से पौष पूर्णिमा (13 जनवरी 2025) को कुम्भ स्नान का महत्व होता है।

कुम्भ स्नान का महत्व

कुम्भ स्नान को धार्मिक दृष्टिकोण से अत्यधिक पुण्यकारी माना जाता है। कुम्भ मेला में स्नान करने से सभी पापों का नाश होता है और व्यक्ति को मोक्ष प्राप्ति का अवसर मिलता है। इस दिन का विशेष महत्व है क्योंकि लाखों श्रद्धालु संगम (गंगा, यमुन, और सरस्वती के संगम स्थल) में स्नान करके अपने पापों से मुक्ति प्राप्त करने की कोशिश करते हैं।

2025 में कुम्भ स्नान की तिथियाँ

कुम्भ स्नान के लिए प्रमुख तिथियाँ 2025 में इस प्रकार होंगी: 1. पौष पूर्णिमा (13 जनवरी 2025) - यह कुम्भ स्नान का सबसे पहला दिन है। 2. मकर संक्रांति (14 जनवरी 2025) - यह कुम्भ स्नान का सबसे प्रमुख दिन है। 3. माघी पूर्णिमा (6 फरवरी 2025) - इस दिन भी कुम्भ स्नान का महत्व है। 4. बसंत पंचमी (15 फरवरी 2025) - कुम्भ स्नान के अन्य प्रमुख दिन।

पौष पूर्णिमा के अवसर पर विशेष ध्यान रखने योग्य बातें

स्वच्छता: इस दिन घर की सफाई करना और स्वच्छ वातावरण बनाना महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह माँ लक्ष्मी की कृपा को आकर्षित करता है। ध्यान और साधना: इस दिन को ध्यान और साधना के लिए विशेष रूप से उपयुक्त माना जाता है। मन को शांत करके इस दिन का महत्व समझते हुए पूजा और व्रत करें। समाज सेवा: समाज सेवा और दान करने से इस दिन के पुण्य को बढ़ाया जा सकता है। विशेष रूप से जरूरतमंदों की मदद करना इस दिन का सबसे बड़ा उद्देश्य होना चाहिए।

पौष पूर्णिमा से जुड़ी विशेष कथाएँ

1. गंगा स्नान की कथा: कहा जाता है कि जब गंगा धरती पर आई थीं, तो उन्होंने अपने साथ पुण्य और शांति का आशीर्वाद भी दिया। पौष पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान करने से पुराने पापों से मुक्ति मिलती है और जीवन में समृद्धि आती है। 2. माँ लक्ष्मी की कृपा: इस दिन विशेष रूप से माँ लक्ष्मी की पूजा करने से घर में धन और समृद्धि का वास होता है। पूजा विधि में स्वच्छता का ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि यह लक्ष्मी माँ के वास के लिए उपयुक्त वातावरण तैयार करता है।

राशिफल 2025

वैदिक ज्योतिष पर आधारित राशिफल 2025 आपको आपके आने वाले कल के बारे में एक सटीक झलक और ज्योतिषीय मार्गदर्शन प्रदान करता है। हमारा यह विशेष आर्टिकल विद्वान और जानकार ज्योतिषियों द्वारा ग्रहों-नक्षत्रों की चाल और स्थिति के आधार पर तैयार किया गया है। यहाँ आपको अपने करियर, नौकरी, शिक्षा, स्वास्थ्य, प्रेम जीवन, पारिवारिक जीवन इत्यादि महत्वपूर्ण मुद्दों पर विस्तृत भविष्यवाणी पेश करने के साथ-साथ हम आपको कुछ सरल ज्योतिषीय उपायों की भी जानकारी देते हैं जिन्हें अपनाकर आप अपने जीवन में आने वाली किसी भी तरह की समस्या से छुटकारा प्राप्त कर सकते हैं।

मेष

मेष राशि वालों, राशिफल 2025 के अनुसार आपको औसत या फिर औसत से बेहतर परिणाम भी इस वर्ष मिल सकते हैं। विशेषकर मार्च के महीने तक शनि की विशेष कृपा से आप विभिन्न मामलों में अच्छे परिणाम प्राप्त कर सकेंगे। वहीं इसके बाद परिणाम तुलनात्मक रूप से कुछ कमजोर रह सकते हैं। हालांकि विदेश आदि से संबंध रखने वाले लोगों को मार्च के बाद भी अच्छे परिणाम भी मिल सकते हैं। बृहस्पति का गोचर भी मई के मध्य तक आपके आर्थिक पक्ष को मजबूत रखना चाहेगा। अर्थात सामान्य तौर पर इस वर्ष आप अपने व्यापार व्यवसाय में अच्छा करते हुए देखे जाएंगे। फिर भी साल के दूसरे हिस्से में सावधानी पूर्वक निर्वाह करने की जरूरत रहेगी। विद्यार्थियों को भी इस वर्ष अपेक्षाकृत अधिक निष्ठावान बनाकर अध्ययन करने की आवश्यकता रहेगी। यदि विवाहित हैं तो जीवनसाथी या जीवन संगिनी के स्वास्थ्य का ख्याल रखना जरूरी रहेगा। साथ ही साथ एक दूसरे के साथ संबंधों को मेंटेन करना भी जरुरी रहेगा। प्रेम प्रसंग के दृष्टिकोण से यह साल कुछ हद तक कमजोर रह सकता है।

वृषभ

वृषभ राशि वालों, राशिफल 2025 आपसे कुछ एक्स्ट्रा मेहनत करवाने के संकेत दे रहा है लेकिन मेहनत के अच्छे परिणाम देने का काम भी कर सकता है। विशेषकर मार्च 2025 तक शनि देव आपसे एक्सट्रा मेहनत करवाने के बाद अच्छे परिणाम देते हुए प्रतीत हो रहे हैं। वही मार्च 2025 के बाद मेहनत के पूरे परिणाम मिल सकते हैं। अर्थात एक्स्ट्रा मेहनत करने की जरूरत नहीं रहेगी, बल्कि जैसी मेहनत वैसे परिणाम। वहीं राहु का गोचर मई तक आपके लिए काफी अच्छी परिणाम देने का संकेत कर रहा है। मई के बाद कार्यक्षेत्र में कुछ उलझने रह सकती हैं। ऐसे में शनि और राहु दोनों की स्थितियों को देखकर ऐसा लगता है की कठिनाई तो पूरे वर्ष बरकरार रह सकती है लेकिन कठिनाई के बाद काम सफल होंगे और अच्छे परिणाम मिल सकेंगे। बृहस्पति का गोचर भी आर्थिक मामले में आपकी मेहनत के अनुरूप आपको अच्छे परिणाम देने और दिलाने का संकेत कर रहा है। शिक्षा के दृष्टिकोण से यह वर्ष अच्छा रह सकता है। वहीं विवाह और वैवाहिक जीवन से संबंधित मामलों के लिए भी इस वर्ष को अच्छा कहा जाएगा। प्रेम संबंध के लिए भी साल 2025 सामान्य तौर पर अनुकूल परिणाम दे सकता है।

मिथुन

मिथुन राशि वालों, साल 2025 तुलनात्मक रूप से बेहतर साल रह सकता है। अर्थात 2025 की तुलना में साल 2025 ज्यादा अच्छा रह सकता है। मार्च तक शनि देव भाग्य के माध्यम से कुछ सपोर्ट देना चाहेंगे। वहीं इसके बाद आपसे अधिक मेहनत लेकर अच्छे परिणाम भी दे सकते हैं। अर्थात यह साल मेहनत तो करवाएगा लेकिन परिणाम तुलनात्मक रूप से बेहतर और संतोषप्रद रह सकते हैं। राहु के गोचर को देखते हुए अपने बड़े बुजुर्गों और सहकर्मियों के साथ अच्छे संबंध रखने की कोशिश जरूरी रहेगी। पुरुषार्थ करने के साथ-साथ धर्म, अध्यात्म और परमात्मा के प्रति निष्ठा भी जरूरी रहेगी। तभी मानसिक शांति बरकरार रह सकेगी। जिसका प्रभाव आपके काम धंधे और व्यक्तिगत जीवन पर नजर आएगा। वहीं आध्यात्म से दूरी मानसिक चिंता बढ़ाने का काम कर सकती है। बृहस्पति का गोचर मई के महीने तक कमजोर लेकिन बाद में तुलनात्मक रूप से अच्छे परिणाम देना चाहेगा। अतः राशिफल 2025 के अनुसार आर्थिक मामले में इस साल आप मिले जुले परिणाम प्राप्त कर सकते हैं। परिणाम एवरेज से बेहतर भी रह सकते हैं। निजी जीवन में भी मई के बाद वाला समय ज्यादा अच्छा रह सकता है। मामला प्रेम प्रसंग का हो या फिर दांपत्य जीवन का; मई के बाद आप तुलनात्मक रूप से बेहतर परिणाम प्राप्त कर सकेंगे। विद्यार्थीगण भी मई के बाद ज्यादा अच्छे परिणाम प्राप्त कर सकेंगे।

कर्क

कर्क राशि वालों, साल 2025 आपको बड़ी समस्याओं से राहत दिलाने का काम कर सकता है। विशेषकर मार्च के बाद आपको पिछली समस्याओं से निजात मिल सकती है और आपके भीतर एक नई ऊर्जा तथा नई स्फूर्ति देखने को मिल सकती है। बड़े बुजुर्गों के मार्गदर्शन से आप बेहतर करते हुए देखे जा सकेंगे। समस्याएं अभी पूरी तरह से दूर होती हुई नहीं नजर आ रही है लेकिन समस्याओं के कम होने से आप राहत की सांस ले सकेंगे। मई तक अच्छे लाभ के योग निर्मित हो रहे हैं। वहीं मई के बाद खर्च भी बढ़ सकते हैं। हालांकि विदेश या जन्म स्थान से दूर रहने वाले लोगों को मई के बाद भी अच्छे परिणाम मिल सकते हैं लेकिन अन्य लोगों को आर्थिक और पारिवारिक मामलों में मई के बाद एक्स्ट्रा समझदारी और जागरूकता दिखाने की आवश्यकता रहेगी। राहु का गोचर भी मई के बाद तुलनात्मक रूप से कमजोर हो सकता है। अतः बीच-बीच में अप्रत्याशित रूप से कुछ परेशानियां रह सकती हैं। प्रेम विवाह और दांपत्य संबंधी मामलों के लिए मई तक का समय तुलनात्मक रूप से बेहतर कहा जाएगा। विद्यार्थीगण भी मई के पहले ही अपनी पढ़ाई की गति को मेंटेन कर लेंगे तो आगे आने वाले समय में भी अनुकूल परिणाम मिलते रहेंगे।

सिंह

सिंह राशि वालों, साल 2025 कुछ मामलों के लिए अच्छा तो कुछ मामलों के लिए कमजोर रह सकता है। अर्थात यह साल सामान्य तौर पर मिले-जुले परिणाम दे सकता है। मार्च के महीने शनि का गोचर एवरेज तो वहीं मार्च के बाद कमजोर परिणाम दे सकता है। लिहाजा व्यापार व्यवसाय और नौकरी से जुड़े मामलों में कुछ कठिनाइयां या परेशानियां देखने को मिल सकती हैं। नौकरी में स्थानांतरण या परिवर्तन करने की भी स्थितियां निर्मित हो सकती हैं। फलस्वरुप घर से दूर भी रहना पड़ सकता है। हालांकि आर्थिक मामले में यह साल सामान्य तौर पर अच्छे परिणाम दे सकता है। क्योंकि साल की शुरुआत में बृहस्पति की दृष्टि धन स्थान पर रहेगी। वहीं बाद में बृहस्पति लाभ भाव में पहुंचकर विभिन्न माध्यमों से लाभ करवाना चाहेगा। अर्थात कामों में कुछ कठिनाइयां लेकिन आर्थिक मामले में अनुकूलता देखने को मिल सकती है। निजी संबंधों में भी मई के बाद का समय ज्यादा अच्छे परिणाम दे सकता है। विवाह से संबंधित मामलों में अनुकूलता देखने को मिल सकती है। संतान आदि से संबंधित मामलों में भी अच्छे परिणाम मिल सकते हैं। वहीं शिक्षा से संबंधित मामलों में भी मई के बाद का समय ज्यादा अच्छे परिणाम देता हुआ प्रतीत हो रहा है।

कन्या

कन्या राशि वालों, साल 2025 आपके लिए एवरेज या फिर एवरेज से बेहतर परिणाम दे सकता है। हालांकि शनि के गोचर की बात की जाए तो शनि साल की शुरुआत से लेकर मार्च महीने तक काफी अच्छी परिणाम देता हुआ प्रतीत हो रहा है। वहीं बाद में शनि का गोचर कुछ मामलों में कमजोर परिणाम दे सकता है। वहीं बृहस्पति का गोचर मई के मध्य तक काफी अच्छे परिणाम दे रहा है, जबकि बाद में मिले-जुले परिणाम दे सकता है। इन सबके बीच अनुकूल बात यह रहेगी कि मई के बाद आपके प्रथम और सप्तम भाव से राहु केतु का प्रभाव समाप्त हो जाएगा। फलस्वरुप व्यापार व्यवसाय में आ रही अड़चने दूर होंगी। दांपत्य संबंधी मामलों में भी अनुकूलता देखने को मिलेगी। विवाह के मार्ग में आ रही बाधाएं दूर होंगी। स्वास्थ्य में भी तुलनात्मक रूप से बेहतरी देखने को मिल सकती है। राशिफल 2025 के अनुसार व्यावसायिक शिक्षा प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों को भी अच्छे परिणाम मिलने की संभावनाएं हैं। इस तरह से हम पाते हैं कि कुछ एक मामलों को छोड़कर ज्यादातर मामलों में यह साल आपके लिए अनुकूल परिणाम देता हुआ प्रतीत हो रहा है।

तुला

तुला राशि वालों, साल 2025 आपके लिए अधिकांश मामलों में काफी अच्छे परिणाम देता हुआ प्रतीत हो रहा है। विशेषकर मई के बाद की स्थितियां काफी अच्छी रह सकती हैं। मार्च के महीने से शनि ग्रह के गोचर की अनुकूलता आपकी पुरानी समस्याओं को दूर करके उन्नति के नए द्वार खोल सकती है। विशेषकर नौकरी आदि से संबंधित मामलों में काफी अच्छे परिणाम मिल सकते हैं। आपकी सोचने की शक्ति और प्रखर होने के कारण आप अब बेहतर योजना बनाकर व्यापार व्यवसाय में भी अच्छा कर सकेंगे। विद्यार्थीगण के जीवन में आ रही कठिनाइयां भी दूर होंगी। मई मध्य के बाद बृहस्पति ग्रह की अनुकूलता भी बड़ी कठिनाइयों को दूर करने का काम करेगी। भाग्य बेहतर ढंग से साथ देगा। बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद और मार्गदर्शन जीवन में तरक्की के द्वार खोलेगा। यदि आप विद्यार्थी हैं तो बृहस्पति शिक्षा के मामले में मदद करेगा। वहीं अन्य लोगों को आर्थिक मामले में बृहस्पति के द्वारा अच्छी अनुकूलता देखने को मिल सकती है। मई मध्य के बाद का समय प्रेम, विवाह, वैवाहिक जीवन आदि से संबंधित मामलों में अच्छी अनुकूलता देने का काम कर सकता है।

वृश्चिक

वृश्चिक राशि वालों, साल 2025 आपको मिले-जुले परिणाम दे सकता है। एक ओर जहां मार्च के बाद शनि का गोचर चतुर्थ भाव से अपनी नकारात्मकता समेटता हुआ प्रतीत हो रहा है, वहीं मई से राहु का गोचर चतुर्थ भाव में हो जाएगा। अतः कुछ बड़ी और पुरानी समस्याएं दूर हो सकती हैं लेकिन नए सिरे से भी पुनः कुछ परेशानियां भी देखने को मिल सकती हैं। हालांकि यदि आपको पेट या मस्तिष्क से संबंधित कुछ परेशानियां पिछले दिनों से रही हैं, तो उनमें आपको राहत देखने को मिल सकती है। बृहस्पति का गोचर भी मई मध्य तक सप्तम भाव से आपको अच्छी खासी अनुकूलता देता हुआ प्रतीत हो रहा है लेकिन मई मध्य के बाद बृहस्पति अष्टम भाव में जाकर कुछ कमजोर हो जाएंगे। हालांकि दूसरे भाव पर प्रभाव डालने के कारण कोई बड़ी आर्थिक समस्या नहीं आएगी लेकिन आमदनी के स्रोत कुछ हद तक धीमें रह सकते हैं। शिक्षा से संबंधित मामलों के लिए भी मई तक का समय अपेक्षाकृत अधिक अनुकूल कहा जाएगा। विवाह, सगाई, प्रेम प्रसंग और संतान आदि से संबंधित मामलों के लिए भी मई मध्य से पहले का समय ज्यादा अच्छा कहा जाएगा।

धनु

धनु राशि वालों, साल 2025 कुछ अच्छे तो कुछ कमजोर परिणाम भी दे सकता है। एक ओर जहां मार्च 2025 तक शनि का गोचर आपके लिए पूरी तरह से अनुकूल है तो वहीं मई तक बृहस्पति का गोचर कमजोर रहेगा। मई मध्य के बाद बृहस्पति का गोचर आपके लिए अनुकूल हो जाएगा। तो वहीं मार्च के बाद शनि का गोचर कमजोर हो जाएगा। इस तरह से ये दोनों प्रमुख गोचर कुछ अच्छे तो कुछ कमजोर परिणाम दे सकते हैं। हालांकि सकारात्मक परिणामों की अधिकता रहेगी क्योंकि राहु का गोचर मई के बाद से चतुर्थ भाव से अपनी नकारात्मकता दूर कर लेगा। फलस्वरुप घर गृहस्थी से संबंधित कुछ परेशानियां दूर भी होंगी अथवा पुरानी समस्याएं दूर होकर शनि के कारण कुछ नहीं समस्याएं पैदा हो सकती हैं लेकिन फिर भी बदलाव की ऊर्जा मन को तुलनात्मक रूप से प्रसन्न करने का काम कर सकती है। बृहस्पति का गोचर आर्थिक मामले में अनुकूलता देता रहेगा। फलस्वरूप कोई आर्थिक विपन्नता नहीं आएगी जबकि मई के बाद आमदनी के स्रोतों में बढ़ोतरी भी देखने को मिल सकती है। मई के बाद का समय प्रेम, दांपत्य, विवाह और शिक्षा आदि से संबंधित मामलों में बेहतर परिणाम देने का काम कर सकता है।

मकर

मकर राशि वालों, साल 2025 आपको पुरानी समस्याओं से छुटकारा दिलाने में अच्छा खासा मददगार बन सकता है। ऐसी समस्याएं जिन्हें आप लंबे समय से दूर नहीं कर पाए थे, उनके दूर होने के योग बनेंगे। घर परिवार में चल रही अशांति भी अब शांत हो जाएगी। यदि आप नौकरी इत्यादि में परिवर्तन करने की कोशिश करेंगे तो परिवर्तन भी संभव रहेगा। व्यापार व्यवसाय में भी परिवर्तन किया जा सकेगा। किसी नए व्यवसाय की शुरुआत भी संभव होगी। आप मानसिक रूप से काफी मजबूत रहेंगे। आपके निर्णय लेने की क्षमता और मजबूत होगी। बीच-बीच में कहीं से अच्छे समाचार भी सुनने को मिल सकते हैं। इन सबके बावजूद भी मई के बाद आर्थिक और पारिवारिक मामले में जागरूक रहना समझदारी का काम होगा। क्योंकि मार्च के बाद से भले ही शनि का प्रभाव दूसरे भाव से दूर हो रहा है लेकिन मई के बाद से राहु का प्रभाव शुरू हो जाएगा। अतः समस्याएं तुलनात्मक रूप से काफी हद तक काम हो जाएगी लेकिन छोटे-मोटे व्यवधान अब भी रह सकते हैं, विशेषकर आर्थिक और पारिवारिक मामलों में। अतः इन मामलों में सचेत रहना समझदारी का काम होगा। मई मध्य से पहले का समय प्रेम प्रसंग के लिए अनुकूल रहेगा। विवाह और वैवाहिक जीवन से संबंधित मामलों के लिए भी अनुकूलता दे सकेगा लेकिन मई मध्य के बाद इन मामलों के लिए समय कम सपोर्ट कर पाएगा। विद्यार्थियों के लिए सामान्य तौर पर पूरा वर्ष ही किसी न किसी तरह से मददगार बनता रहेगा।

कुंभ

कुम्भ राशि वालों, साल 2025 आपको मिले-जुले परिणाम दे सकता है। कुछ मामलों में आपको एवरेज से बेहतर परिणाम भी मिल सकते हैं। एक ओर जहां मार्च के बाद शनि का प्रभाव प्रथम भाव से दूर हो रहा है जो आपके भीतर नई स्फूर्ति, नई ऊर्जा देने का काम करेगा। आप रुके हुए कामों को गति दे सकेंगे। यात्राओं के माध्यम से भी लाभ प्राप्त कर सकेंगे। वहीं मई के बाद राहु का प्रथम भाव में गोचर इसी तरह की परेशानियां फिर से दे सकता है। हालांकि परेशानियों का स्वरूप छोटा और कमजोर रह सकता है अर्थात पहले की तुलना में परेशानियां कम होगी लेकिन पूरी तरह से दूर नहीं हो पाएंगे। अतः अपने स्वास्थ्य का ख्याल रखते हुए अपनी वास्तविक ऊर्जा के अनुरूप कार्य व्यवहार करना समझदारी का काम होगा। इससे आपका स्वास्थ्य भी अनुकूल बना रहेगा और आपके काम भी धीरे-धीरे करके पूरे होने लग जाएंगे। इस वर्ष माता के स्वास्थ्य पर ध्यान देना बहुत जरूरी रहेगा। हालांकि इन सारे हालातों के बावजूद मई मध्य के बाद बृहस्पति के गोचर की अनुकूलता आपको विभिन्न मामलों में अच्छी सफलता दिला सकती है। यदि आप विद्यार्थी हैं तो मई मध्य के बाद आपको काफी अच्छे परिणाम मिल सकते हैं। प्रेम संबंध के लिए भी गुरु का यह गोचर अनुकूल परिणाम देना चाहेगा। सगाई, विवाह और वैवाहिक जीवन के लिए भी बृहस्पति का यह गोचर अच्छा अनुकूल रहेगा लेकिन वैवाहिक जीवन में केतु बीच-बीच में छोटी-मोटी परेशानियां देना चाहेगा। तो वहीं बृहस्पति उन परेशानियों को दूर करना चाहेगा। अर्थात परेशानियां आएंगी लेकिन जल्दी ही ठीक हो जाएंगी। इसी तरह कार्य व्यवसाय नौकरी इत्यादि में भी छोटी-मोटी विसंगतियों के बाद सब कुछ ठीक-ठाक चलता रहेगा। सारांश यहां की इस वर्ष विभिन्न मामलों में छोटी-मोटी परेशानियां देखने को मिल सकती हैं लेकिन आप अपने पुरुषार्थ और अच्छी योजनाओं के कारण उन परेशानियों को दूर कर सफलता प्राप्त करते रहेंगे।

मीन

मीन राशि वालों, साल 2025 आपके लिए मिला जुला रह सकता है। एक ओर जहां मई के बाद आपके प्रथम भाव से राहु का प्रभाव दूर होकर आपके तनाव को दूर कर शांति देने का काम करेगा, वहीं मार्च के बाद से ही शनि देव आपके प्रथम भाव पर पहुंच जाएंगे और आपके भीतर अलस्य के भाव दे सकते हैं। फलस्वरुप आप अपने कार्य व्यापार को लेकर कुछ हद तक लापरवाह भी हो सकते हैं। यदि आप लापरवाह होने से बचेंगे और पूरे समर्पण के साथ काम करेंगे तो परिणाम अच्छे भी रह सकते हैं। बृहस्पति का गोचर भी इस वर्ष आपको मिले-जुले परिणाम देता रहेगा। मई मध्य से पहले बृहस्पति लाभ भाव को देखकर आपको अच्छा लाभ करवाना चाहेंगे। वहीं मई मध्य के बाद आपको आपकी ईमानदारी के अच्छे फल प्रतिफल मिलने के योग बनेंगे। घर से दूर रहने वाले विद्यार्थियों को अच्छे परिणाम मिल सकेंगे। घर से दूर रहकर कमाई करने वाले लोगों को भी अच्छे परिणाम मिल सकेंगे। बाकी जन्मभूमि के आसपास रहकर काम करने वाले लोगों को अपने काम के प्रति थोड़ा सा असंतोष रह सकता है। फिर भी ओवरऑल इस वर्ष को हम आपके लिए मिला-जुला या कुछ मामलों में एवरेज से कुछ अब तक बेहतर भी कह सकते हैं।

पोंगल 2025: पोंगल उत्सव का महत्व, अनुष्ठान, तिथि और मुहूर्त

पोंगल 2025 तिथि और मुहूर्त

पोंगल - मंगलवार, 14 जनवरी, 2025 थाई पोंगल संक्रांति क्षण - 09:03 पूर्वाह्न

पोंगल 2025

पोंगल दक्षिण भारत के राज्यों में मनाया जाने वाला एक अहम हिंदू पर्व है। उत्तर भारत में जब सूर्य देव उत्तरायण होते हैं तो मकर संक्रांति पर्व मनाया जाता है ठीक उसी प्रकार तमिलनाडु में पोंगल का त्यौहार धूमधाम से मनाया जाता है। पोंगल पर्व से ही तमिलनाडु में नव वर्ष का शुभारंभ होता है। पोंगल पर्व का इतिहास करीब एक हजार साल पुराना है। तमिलनाडु के अलावा श्रीलंका, कनाडा और अमेरिका समेत दुनिया के कई देशों में रहने वाले तमिल भाषी लोग इस पर्व को उत्साह के साथ मनाते हैं।

पोंगल का महत्व

पोंगल पर्व का मूल कृषि है। सौर पंचांग के अनुसार यह त्यौहार तमिल माह की पहली तारीख यानि 14 या 15 जनवरी को आता है। जनवरी तक तमिलनाडु में गन्ना और धान की फसल पक कर तैयार हो जाती। प्रकृति की असीम कृपा से खेतों में लहलहाती फसलों को देखकर किसान खुश हो जाते हैं और प्रकृति का आभार प्रकट करने के लिए इंद्र, सूर्य देव और पशु धन यानि गाय व बैल की पूजा करते हैं। पोंगल उत्सव करीब 3 से 4 दिन तक चलता है। इस दौरान घरों की साफ-सफाई और लिपाई-पुताई शुरू हो जाती है। मान्यता है कि तमिल भाषी लोग पोंगल के अवसर पर बुरी आदतों को त्याग करते हैं। इस परंपरा को पोही कहा जाता है।

पोंगल पर होने वाले धार्मिक कर्म कांड और अन्य आयोजन

1. पोंगल पर्व का पहला दिन देवराज इंद को समर्पित होता है इसे भोगी पोंगल कहते हैं। देवराज इंद वर्षा के लिए उत्तरदायी होते हैं इसलिए अच्छी बारिश के लिए उनकी पूजा की जाती है और खेतों में हरियाली व जीवन में समृद्धता की कामना की जाती है। इस दिन लोग घरों में पुराने हो चुके सामानों की होली जलाते हैं। इस दौरान महिलाएं और लड़कियां अग्नि के चारों ओर लोक गीत पर नृत्य करती हैं। इस परंपरा को भोगी मंटालू कहते हैं। 2. सूर्य के उत्तरायण होने के बाद दूसरे दिन सूर्य पोंगल पर्व मनाया जाता है। इस दिन पोंगल नाम की विशेष खीर बनाई जाती है। इस मौके पर लोग खुले आंगन में हल्दी की गांठ को पीले धागे में पिरोकर पीतल या मिट्टी की हांडी के ऊपर बांधकर उसमें चावल और दाल की खिचड़ी पकाते हैं। खिचड़ी में उबाल आने पर दूध और घी डाला जाता है। खिचड़ी में उबाल या उफान आना सुख और समृद्धि का प्रतीक है। पोंगल तैयार होने के बाद सूर्य देव की पूजा की जाती है। इस मौके पर लोग गाते-बजाते हुए एक-दूसरे की सुख-समृद्धि की कामना करते हैं। 3. पोंगल पर्व के तीसरे दिन यानि मात्तु पोंगल पर कृषि पशुओं जैसे गाय, बैल और सांड की पूजा की जाती है। इस मौके पर गाय और बैलों को सजाया जाता है और उनके सींगों को रंगकर उनकी पूजा की जाती है। इस दिन बैलों की रेस यानि जली कट्टू का आयोजन भी होता है। मात्तु पोंगल को केनू पोंगल के नाम से भी जाना जाता है। जिसमें बहनें अपने भाइयों की खुशहाली के लिए पूजा करती हैं। 4. चार दिवसीय पोंगल त्यौहार के आखिरी दिन कन्या पोंगल मनाया जाता है, इसे तिरुवल्लूर के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन घर को फूलों से सजाया जाता है। दरवाजे पर आम और नारियल के पत्तों से तोरण बनाया जाता है। इस मौके पर महिलाएं आंगन में रंगोली बनाती हैं। चूंकि इस दिन पोंगल पर्व का समापन होता है इसलिए लोग एक-दूसरे को बधाई और मिठाई देते हैं। यह त्यौहार मुख्य रूप से तमिलनाडु में मनाया जाता है लेकिन इस पर्व का आध्यात्मिक और धार्मिक महत्व मानव समुदाय के लिए बेहद अहम है। इस त्योहार पर गाय के दूध में उफान या उबाल को महत्व दिया जाता है । मान्यता है कि जिस तरह दूध का उबलना शुभ है ठीक उसी तरह हर मनुष्य का मन भी शुद्ध संस्कारों से उज्ज्वल होना चाहिए।

पोंगल के क्षेत्रीय नाम

कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था होने के कारण पोंगल का त्यौहार भारत के विभिन्न भागों में अलग-अलग नामों से मनाया जाता है। फसल उत्सव को विभिन्न क्षेत्रों में निम्नलिखित नामों से मनाया जाता है: उत्तर भारत में मकर संक्रांति पंजाब में लोहड़ी असम में भुगाली बिहू महाराष्ट्र में हडगा उत्सव बंगाल में पौष संक्रांति गुजरात में उत्तरायण अलग-अलग नामों से इस दिन से जुड़े उत्सवों के पीछे का अर्थ नहीं बदलता। यह त्यौहार बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता है क्योंकि परिवार जीवन की कई आशीषों के लिए आभार व्यक्त करने के लिए एक साथ आते हैं।

पोंगल मनाने का ज्योतिषीय महत्व

ज्योतिष विज्ञान के अनुसार, यह त्यौहार शीतकालीन संक्रांति के अंत का संकेत देता है जिसका अर्थ है कि इस दिन से दिन लंबे होने लगते हैं। शीतकालीन संक्रांति के दौरान, सूर्य कम अवधि के लिए आकाश में रहता है जबकि रातें लंबी होती हैं। यह त्यौहार दिन के उजाले के लंबे घंटों की शुरुआत का प्रतीक है। इस प्रकार यह त्यौहार सूर्य की गर्मी का जश्न मनाता है जो बर्फ को पिघलाएगा और खिलते हुए वसंत का संकेत देगा। इसके अलावा, इस दिन से सूर्य अपनी छह महीने लंबी उत्तर दिशा की यात्रा शुरू करता है, जिसे उत्तरायण भी कहा जाता है। यह तब होता है जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है। मकर राशि राशि चक्र प्रणाली में 10वां घर है और फसल उत्सव पर, सूर्य धनु राशि से 10वें घर में प्रवेश करता है।

January Rashifal 2025: नए साल का पहला माह जनवरी, मेष से लेकर मीन राशि वालों के लिए कैसा रहेगा?

January 2025 rashifal: जनवरी माह में सूर्य, शुक्र, मंगल और बुध ग्रह राशि परिवर्तन करने वाले हैं जिसका सभी 12 राशियों पर असर पड़ेगा। इस ग्रह गोचर के साथ ही शनि, बृहस्पति, राहु और केतु वर्तमान में जहां विराजमान हैं उसका प्रभाव भी नए वर्ष में राशियों पर रहेगा। यह बड़े ग्रह मार्च के बाद ही राशि परिवर्तन करेंगे। 1. मेष राशिफल 2025(January): मेष राशि वाले जातकों के लिए नव वर्ष 2025 का पहला माह जनवरी अतिशुभ रहेगा। इन दिनों आप पारिवारिक मांगलिक कार्यों में हिस्सा लेंगे तथा खुशनुमा समय व्यतीत करेंगे। इस महीने आपकी धन संबंधी चल रही परेशानी समाप्त होगी तथा अच्छा रुपए-पैसे का आगमन भी होगा। यदि आप नौकरीपेशा हैं तो इस समयावधि में प्रमोशन के साथ ही रुकी हुई वेतनवृद्धि की बात भी बनेगी। जनवरी में कारोबारियों को भी अच्छा-खासा मुनाफा होगा। इन दिनों महत्वपूर्ण कार्यों में आने वाली बाधाएं कम होगी। घर में खुशी का माहौल रहेगा। घर में परिवार के बुजुर्ग व्यक्तियों के सेहत पर ध्यान देना होगा। मेष राशि वालों के लिए जनवरी का महीना करियर, लव रिलेशन, निवेश, संतान, परिवार आदि के लिहाज से ठीक तथा अधिक लाभ और उन्नति देने वाला रहेगा। 2. वृषभ राशिफल 2025(January): वृषभ राशि वालों के लिए भी जनवरी 2025 का महीना अच्‍छा ही रहने वाला है। इस दौरान आपकी सुख-सुविधाओं का विस्तार होगा। धन-समृद्धि तथा ऐश्वर्य के साधन भी बढ़ेंगे। इस माह आप कार्यस्थल पर अपने व्यवहार और व्यक्तित्व में निखार लाने का अधिक प्रयास करेंगे, जिससे कार्यक्षेत्र में आपको पदोन्नति तथा इनकम में बढ़ोतरी होगी। इस समय बच्चों का पढ़ाई में मन लगेगा। आप परिवारसहित धर्म-कर्म के कार्यों में रुचि लेंगे। परिवार में भौतिक सुख के संसाधनों में वृद्धि होगी। व्यापारी वर्ग का कार्य में अच्छा मन लगेगा, जिससे धनवृद्धि होने की संभावना बढ़ेगी। बता दें कि वृषभ के जातकों के लिए यह साल तथा जनवरी माह अत्याधिक लाभ तथा शेयर मार्केट में धन निवेश से उन्नति दिलाने वाला साबित होगा। कुल मिलाकर यह महीना रोमांस, करियर, शिक्षा के क्षेत्र में लाभकारी रहेगा तथा स्वास्थ्य की दृष्टि से भी जनवरी माह ठीक ही कहा जा सकता है। 3. मिथुन राशिफल 2025(January): मिथुन राशि वाले नौकरीपेशा जातकों के लिए हैं जनवरी 2025 की शुरुआत में कार्यस्थल पर सहकर्मियों का सहयोग मिलने से आप कार्यक्षेत्र में छा जाएंगे। पढ़ाई कर रहे छात्रों को शिक्षा में अच्छे परिणाम प्राप्त होंगे। यदि कारोबारी हैं तो व्यापार में नए अवसर मिलेंगे, जिसका सही उपयोग करने से अच्छा धनलाभ भी प्राप्त करेंगे। मिथुन राशि के लोगों में साहस और पराक्रम में उन्नति भी होगी। इस माह परिवार में माता-पिता की सेह‍त पर ध्यान देना पड़ सकता है। प्रेम संबंधों तथा पारिवारिक रिश्तों के लिए यह समय बढ़िया कहा जा सकता है। आप आर्थिक दृष्‍टि से पहले की अपेक्षा और ज्यादा मजबूत होंगे। यह साल छात्रों तथा करियर से जुड़ रहे युवाओं के लिए अच्छा फल देने वाला रहेगा। कुल मिलाकर देखें तो मिथुन राशि वालों को नया साल तथा जनवरी का महीना खुशियों की सौगात लेकर आएगा, यह कहा जा सकता है। 4. कर्क राशिफल 2025(January): कर्क राशि वालों के लिए नव वर्ष 2025 का पहला महीना जनवरी करियर और नौकरी में परेशानी वाला रह सकता है। कार्यस्थल पर कलीग्स या बॉस से विवादित बातचीत के कारण कोई समस्या खड़ी हो सकती है, अत: इस महीने अपनी वाणी पर नियंत्रण रखें तथा विवाद से बचने का प्रयास करें। पढ़ाई कर रहे छात्रों के लिए यह माह अच्छा रहेगा, जिसका परिणाम आगामी समय में देखने को मिलेगा। कर्क राशि की जातकों के लिए व्यापार में अच्छा मुनाफा होने की संभावना होने के कारण यह महीना शुभ फलदायक रहेगा, लेकिन व्यापारी वर्ग तथा कारोबारियों को धन का लेन-देन करते वक्त सावधानी रखना होगी। रोमांस तथा लव लाइफ में इस महीने उतार-चढ़ाव देखने को मिलेगा। आपको सलाह दी जाती हैं कि परिवारजनों की सेहत और रिश्तों को लेकर लापरवाह न बनें, इससे नुकसान उठाना पड़ सकता है। शेयर मार्केट, धन निवेश में सावधानी बरतना होगी तथा अचानक होने वाली दुर्घटना से बचकर रहना होगा। 5. सिंह राशिफल 2025(January): सिंह राशि वाले जातकों के लिए नया साल 2025 का पहला महीना जनवरी बता रहा हैं कि यदि आप नौकरीपेशा या कारोबारी हैं तो आपको कार्यस्थल पर सकारात्मक परिणाम देखने को मिलेंगे। यह महीना तथा नव वर्ष 2025 आपके लिए उन्नति दिलाने वाला और लाभकारी साबित हो सकता है। इस दौरान आपको सम्मान प्राप्त होने की भी संभावना बन रही है। इस महीने छात्रों का पढ़ाई में मन लगेगा, जिससे वे अच्छे अंक प्राप्त करके सफलता का परचम लहराएंगे। नौकरीपेशा वर्ग की आर्थिक स्थिति औसत रहेगी। इस महीने आपके प्रेम संबंधों में सुधार होगा। व्यापारिक तथा धार्मिक यात्रा का योग भी बनेगा। माता-पिता तथा परिवारजनों की सेहत अच्छी बनी रहेगी। कुल मिलाकर जनवरी का महीना ठीक रहने वाला है। धन निवेश या शेयर मार्केट से अच्छा लाभ दिलाने वाला भी कहा जा सकता है। 6. कन्या राशिफल 2025(January): कन्या राशि वाले जातकों के लिए नव वर्ष 2025 का पहला महीना जनवरी वर्ष की शुरुआत में कार्यक्षेत्र के लिए उत्तम रहने वाला है। जनवरी माह में आपके पदोन्नति के चलते अच्छा धनलाभ अर्जित करने वाले हैं। इन दिनों बेरोजगारों को नौकरी मिलने के चांस बढ़ जाएंगे, जिससे आर्थिक स्थिति में बदलाव होगा। जनवरी में रिश्तेदारी तथा घरेलू संबंधों में सुधार होगा। इससे घर-परिवार में खुशी का माहौल रहेगा। छोटी-बड़ी व्यापारिक यात्रा का योग भी इस समय बनेगा। कुल मिलाकर कन्या वालों के लिए यह माह बहुत ही अच्छा रहने वाला है। साथ ही आप अपने पराक्रम के बल पर कार्यक्षेत्र में सुधार करने में सफल होंगे तथा इस माह सेहत अच्छी बनी रहने से अचानक होने वाले खर्चों से भी बचाव होगा। प्रेम, करियर, पढ़ाई को लेकर भी समय ठीक ही रहेगा। 7. तुला राशिफल 2025(January): तुला राशि वालों के लिए अंग्रेजी नव वर्ष 2025 का प्रथम माह जनवरी अतिउत्तम रहने वाला है। इस माह घर-परिवार या रिश्तेदारी में मांगलिक कार्य में शामिल होने का अवसर मिलेगा, जिस कारण दूरस्थ क्षेत्र के लोगों से संबंधों में मधुरता बढ़ेगी। नौकरीपेशा को कार्यक्षेत्र में सफलता प्राप्त होगी तथा धन में बढ़ोतरी भी होगी। प्रेम संबंधों में रिश्ते मजबूत होने से अविवाहित विवाह बंधन में भी बधेंगे। करियऱ शिक्षा, सेहत, नौकरी, व्यापार, कारोबारी, निवेश, म्युच्युअल फंड आदि को लेकर तुला राशि के जातकों के लिए यह समय सफलता दिलाने वाला रहेगा, लेकिन घर के बुजुर्गों के स्वास्थ्य को लेकर थोड़ा संघर्ष भी करना पड़ेगा। जनवरी 2025 का महीना तुला वालों के लिए कुल मिलाकर ठीक कहा जा सकता है। 8. वृश्चिक राशिफल 2025(January): वृश्चिक राशि वाले जातकों के लिए जनवरी का माह औसत ही रहने वाला है, क्योंकि नववर्ष का पहला महीना नौकरी के लिहाज से सामान्य रहेगा। कारोबारियों को व्यापार में मिले-जुले परिणाम प्राप्त होंगे। इस महीने पारिवारिक संबंधों में जरूर सुधार होगा, जिससे यह समय जीवन में खुशियां लेकर आएगा। साथ ही लंबे समय से चली जा रही सेहत समस्याओं का समाधान भी हो सकता है। हालांकि इस माह कुछ बातों के लिहाज से एक अच्छा समय साबित होगा। आप बाहरी कार्य में सफलता हासिल करेंगे। व्यापार, नौकरी, करियर, शिक्षा, शेयर बाजार, कार्यक्षेत्र, रोमांस, विवाह संबंध आदि को लेकर यह महीना आपके लिए सुखप्रद और लाभदायी रहेगा। कुल मिलाकर जनवरी आपके लिए हर तरह से ठीक ही रह सकता है। 9. धनु राशिफल 2025(January): धनु राशि वालों आपके लिए नव वर्ष 2025 का पहला माह जनवरी प्रसन्नता भरा रहने वाला है। इस साल आपको कुछ अच्छे समाचार प्राप्त होने की संभावना भी दिख रही है। इस महीने आपके घर में भौतिक संसाधनों में वृद्धि होगी तथा जनवरी में आपकी सुख-सुविधाओं में भी भरपूर विस्तार होगा। इस महीने नया घर खरीदने की संभावना दिख रही है। साथ ही नौकरी में सफलता वाला यह समय रहने वाला है। व्यापारी वर्ग हेतु यह माह औसत ही रहेगा। धनु राशि के जातकों के लिए इस समयावधि में गृह कलह और किस भी तरह के विवाद से बचकर रहना उचित रहेगा। अन्य सभी क्षेत्र में उत्तम फल मिलने की संभावना दिख रही है। बस आपको खुद की सेहत पर ध्यान देना होगा तथा अचानक होने वाली दुर्घटना पर नजर रखना होगी। 10. मकर राशिफल 2025(January): मकर राशि वाले जातकों के लिए जनवरी 2025 का महीना घर-परिवार, प्रेम-प्यार और दांपत्य जीवन के लिए संघर्ष भरा कहा जा सकता है।, इस माह काफी उतार-चढ़ाव जीवन में देखने को मिलेगा। हालांकि नौकरी, करियर और व्यापार में सफलता वाला रह सकता है। जॉब वालों तथा कारोबारी वर्ग इस समय किसी पर भी आंख बंद करके विश्वास नही करें। यदि माता-पिता के स्वास्थ्य को लेकर आप परेशान थे, तो उनकी सेहत में भी सुधार होगा। माह के अंतिम सप्ताह में परिस्थितियां आपके पक्ष में होने से सब कुछ ठीक होता चला जाएगा। आपको सलाह दी जाती है कि मकर राशि के लोग अधिक भावुकता में आकर कोई भी निर्णय न लें। कुछ मामलों को लेकर जैसे करियर, शिक्षा तथा सेहत को लेकर साल 2025 थोड़ा कठिनाई वाला कहा जा सकता है। 11. कुंभ राशिफल 2025(January): कुंभ राशि आपके लिए जनवरी 2025 का नया महीना शानदार रहने वाला है। जहां नौकरीपेशा को पदोन्नति के योग बनेंगे, वहीं व्यापारी वर्ग बिजनेस में अच्छी उन्नति भी करेंगे। इस समय पारिवारिक तथा मित्रों के संबंधों में सुधार होगा और रिश्ते मजबूत होंगे। बाहरी क्षेत्र से मान-सम्मान में बढ़ोतरी होगी। वैसे देखा जाए तो साल 2025 कुंभ राशि के जातकों के लिए अधिकांश रूप से शुभ ही रहने वाला है। इस समय घर-रिश्तेदारी में मांगलिक कार्यों का योग भी बन रहा है। व्यापारिक या बाहरी यात्रा के योग भी है तथा अविवाहित हैं तो विवाह के योग बनने से जो नए संबंध बन रहे हैं, वो आगामी समय में लाभकारी साबित होंगे। साथ ही करियर तथा शिक्षा के क्षेत्र में पिछले समय से चली आ रही दिक्कतें दूर होती दिखाई दे रही हैं। प्रेम संबंधों के लिए भी यह महीना बढ़िया रहेगा। कुल मिलाकर 2025 का प्रथम माह जनवरी अच्छा रहने वाला है। 12. मीन राशिफल 2025(January): मीन राशि वाले जातकों के लिए साल 2025 सकारात्मक रहेगा ऐसी संभावना बनती दिखाई दे रही है। जनवरी माह का समय आपके लिए नौकरी और व्यापार के हिसाब से शुभ परिणाम देने वाला होगा। नौकरीपेशा को इंक्रीमेंट के साथ ही उच्च पद भी प्राप्त हो सकता है। यदि कारोबारी हैं तो व्यापार में नए अवसर प्राप्त होंगे। इस साल की शुरुआत धनलाभ से होगी, जिस कारण मन प्रसन्न रहेगा। यदि आप घर से दूर या बाहर रहकर पढ़ाई कर रहे हैं तो आपके लिए भी यह अच्छा समय रहेगा, सफलता मिलने के पूरे चांस बन रहे हैं। दाम्पत्य जीवन या लव लाइफ के लिहाज से समय सामान्य ही बना रहेगा। घर-परिवार में विवाद या कलह से इस महीने बचकर रहना होगा। कुल मिलाकर मीन राशि के लिए व्यापार, जॉब, निवेश, शेयर मार्केट तथा सेहत और करियर, शिक्षा की दृष्‍टि से नव वर्ष 2025 अच्छा ही कहा जा सकता है।

The Spiritual Journey: Pilgrimage Sites in India

1.

🕉️ Introduction: The Spiritual Essence of Pilgrimage in India

India, a land of ancient traditions and diverse cultures, has always been a beacon of spirituality. For centuries, people from across the world have traveled to this sacred land seeking inner peace, enlightenment, and divine blessings. At the heart of this spiritual quest lies the tradition of pilgrimage, an age-old practice that transcends religions and regions. From the snow-clad peaks of Kedarnath to the tranquil shores of Rameshwaram, India is home to countless holy sites that hold deep religious and cultural significance. But a pilgrimage in India is more than just a journey to a sacred place—it's a transformative experience that brings devotees closer to the divine. Many of these sites come alive during festivals, drawing millions of pilgrims who gather to celebrate faith, culture, and community. Whether it's the grand Kumbh Mela at Prayagraj, the vibrant Ratha Yatra at Puri Jagannath, or the serene prayers at the Golden Temple in Amritsar, each pilgrimage site offers a unique glimpse into India’s spiritual soul. Here, we’ll take you on a journey across some of the most famous pilgrimage sites in India and explore the festivals that make them truly special. Let’s dive deep into the spiritual essence of India and discover how these sacred destinations continue to inspire millions around the world. 2.

The Connection Between Pilgrimage and Festivals

in India, pilgrimage and festivals are deeply intertwined. Many of the country’s most sacred sites are not just places of worship but also the epicenters of grand religious festivals that attract millions of devotees every year. These festivals infuse life into pilgrimage destinations, turning them into vibrant hubs of spirituality, culture, and tradition. During these festivals, pilgrims undertake long journeys to seek blessings from their deities, participate in rituals, and celebrate their faith with devotion and enthusiasm. Let’s explore some of the major pilgrimage sites and the festivals that bring them to life. 🛕 2.1 Kumbh Mela and the Sacred Rivers One of the most iconic examples of the connection between pilgrimage and festivals is the Kumbh Mela, the largest spiritual gathering in the world. Held every 12 years at four sacred sites — Prayagraj (Allahabad), Haridwar, Nashik, and Ujjain — the Kumbh Mela attracts millions of pilgrims who come to take a holy dip in the sacred rivers. Significance of Kumbh Mela: The festival is based on the legend of the churning of the ocean (Samudra Manthan), during which drops of amrit (nectar of immortality) fell at these four locations. Pilgrims believe that bathing in these rivers during the Kumbh Mela washes away sins and brings them closer to salvation. Key Pilgrimage Sites for Kumbh Mela: Prayagraj (Allahabad) – Confluence of the Ganga, Yamuna, and Saraswati rivers. Haridwar – On the banks of the holy Ganga. Nashik – On the Godavari River. Ujjain – On the Shipra River. 🎡 2.2 Puri Jagannath Temple and Ratha Yatra The Puri Jagannath Temple in Odisha is one of the most important pilgrimage sites for Vaishnavites (devotees of Lord Vishnu). The temple is famous for its annual Ratha Yatra (Chariot Festival), which draws millions of devotees from across the world. During the Ratha Yatra, the idols of Lord Jagannath, Balabhadra, and Subhadra are placed on giant wooden chariots and taken in a grand procession through the streets of Puri. Pilgrims believe that pulling the chariots or even touching the ropes brings divine blessings. Significance of the Ratha Yatra: The festival symbolizes Lord Jagannath’s annual visit to his devotees outside the temple. It also represents the idea of equality and inclusivity, as people from all walks of life participate in pulling the chariots. Key Pilgrimage Site: Puri Jagannath Temple, Odisha. 🕉️ 2.3 Vaishno Devi and Navratri The Vaishno Devi Shrine in Jammu and Kashmir is one of the most revered pilgrimage sites in India, attracting millions of devotees every year. The shrine is especially crowded during Navratri, a nine-day festival dedicated to Goddess Durga. Significance of Navratri at Vaishno Devi: Navratri is considered the most auspicious time to visit the shrine. Pilgrims undertake the 13-kilometer trek to the holy cave to seek blessings from Mata Vaishno Devi, who is believed to fulfill the wishes of her devotees. Key Pilgrimage Site: Vaishno Devi Shrine, Jammu and Kashmir. 🌸 2.4 Rameshwaram and Maha Shivaratri Rameshwaram, located in Tamil Nadu, is one of the four Char Dham pilgrimage sites and is associated with Lord Shiva. The temple sees a surge of pilgrims during Maha Shivaratri, a festival dedicated to the worship of Lord Shiva. Significance of Maha Shivaratri: On this day, devotees observe fasting and night-long prayers, believing that it helps overcome darkness and ignorance. Pilgrims also take a dip in the Agni Theertham (sacred water body) before offering prayers at the temple. Key Pilgrimage Site: Ramanathaswamy Temple, Rameshwaram.

भगवान शिवजी को ‘पशुपति’ और ‘त्रिपुरारि’ क्यों कहा जाता है?

जब शिवनंदन श्री कार्तिकेय स्वामी जिन्हें स्कन्द भी कहा जाता है ने तारकासुर का वध कर दिया तो उसके तीनों पुत्र तारकाक्ष, विद्युनमालि और कमलाकाक्ष ने उत्तम भोगों का परित्याग करके मेरूपर्वत की कन्दराओं में ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए परम उग्र तपस्या आरम्भ की। तप से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी उनको वर देने के लिए प्रकट हुए। ब्रह्म जी को साक्षात देखकर उन तीनों ने ब्रह्मा जी की स्तुति के पश्चात उनसे अजर अमर होने का वरदान माँगा। ब्रह्मा जी ने कहा की अमरत्व सबको नहीं मिल सकता, इस भूतल पर जो भी प्राणी जन्मा है अथवा जन्म लेगा वह अजर अमर नहीं हो सकता परंतु मैं तुम्हारी तपस्या से अत्यंत प्रसन्न हूँ , तुम अपने बल का आश्रय ले कर अपने मरण में किसी हेतु को माँग लो जिससे तुम्हारी मृत्यु से रक्षा हो जाए। ऐसा सुन कर उन तीनों ने ब्रह्मा जी से कहा की अत्यंत बलशाली होने पर भी हमारे पास कोई ऐसा नगर या घर नहीं है, जहाँ हम शत्रुओं से सुरक्षित रह कर सुख पूर्वक निवास कर सकें, इसलिए आप हमारे लिए ऐसे तीन नगरों या ‘पुरों’ का निर्माण करवा दीजिए जो अत्यंत अद्भुत वैभव से सम्पन्न हो और देवता भी जिसका भेदन ना कर सकें। तारकाक्ष ने अपने लिए स्वर्णमय पुर को माँगा विद्युनमालि ने चाँदी के बने हुए पुर की इच्छा की और कमलाकक्ष ने अपने लिए कठोर लोहे बना हुआ बड़ा पुर माँगा। उन तीनों के ऐसे वचन सुन कर ब्रह्मा जी ने महामायावी मय को तारकाक्ष, विद्युनमालि और कमलकाक्ष के लिए क्रमशः सोने, चाँदी और लोहे के उत्तम दुर्ग तैयार किए और इन तीनों को उनके हवाले करके स्वयं भी उन्ही में प्रवेश कर गया। असुरों के हित में तत्पर रहने वाले मय ने अत्यंत सुंदर वैभव से परिपूर्ण नगरों का निर्माण किया और उनमे सिद्धरस रूपी अमृत के कुओं की भी स्थापना कर दी। उन तीनों पुरों मे प्रवेश करके वो तीनों तारकासुर पुत्र तीनों लोकों को बाधित करने लगे। उन्होंने इंद्र सही सभी देवताओं को परास्त कर दिया और तीनों लोकों और मुनिश्वरों को अपने अधीन कर सारे जगत को उत्पीडित करने लगे। तारक पुत्रों के ताप से दग्ध हुए इंद्र सहित सभी देवता महादेव की शरण में आए और उनसे त्रिपुरा निवासी दैत्यों से जगत की सुरक्षा करने की प्रार्थना की । महादेव ने सभी देवताओं से कहा कि त्रिपुराधीष और त्रिपुरा निवासी पूजा, तप आदि से महान पुण्य कार्यों में लगे हुए हैं और ऐसा नियम है की पुण्यात्माओं पर विद्वानो को प्रहार नहीं करना चाहिए, मैं देवताओं के कष्ट को जानता हूँ परन्तु वो दैत्य भी पुण्यकर्मों से अत्यंत बलशाली हैं। जब तक तारक पुत्र वेदिक धर्म के आश्रित हैं, सब देवता मिलकर भी उनका वध नहीं कर सकते इसलिए तुम सब विष्णु की शरण में जाओ। श्री विष्णु भगवान की माया से समस्त दैत्य वेदिक धर्म से विमुख हो गए, सम्पूर्ण स्त्री-पुरुष धर्म का विनाश होने के साथ ही तीनों पुरों में दुराचार और अधर्म का विस्तार हो गया। तारकाक्ष, विद्युनमालि और कमलकाक्ष ने भी समस्त धर्मों का परित्याग कर दिया। तत्पश्चात, भगवान शिव ने अपने धनुष पर बाण चढ़ा कर उन तीनों पुरों पर छोड़ दिया। उनके उस बाण से सूर्यमंडल से निकलने वाली किरणो के समान अन्य बहुत से बाण निकले जिनसे उन पुरों का दिखना बंद हो गया और समस्त पुरवासी और पुराधीष भी निशप्राण हो कर गिर गए। सभी पुर वासियों और तारकक्ष, विद्युनमालि और कमलाकक्ष को मृत देख कर मय ने उन सब दैत्यों को उठा कर अमृत के कुओं में डाल दिया। अमृत स्पर्श होते ही सभी असुरों का शरीर अत्यंत तेजस्वी और वज्र के समान सुदृढ़ हो गया और महादेव और असुरों में पुनः भयंकर युद्ध छिड़ गया। यह देख कर भगवान विष्णु ने गौ का रूप धारण किया, ब्रह्मा जी बछड़ा बने और अन्य देवताओं ने पशुओं का रूप बना कर महादेव जी की उपासना करके उनको नमस्कार किया तथा तीनों पुरों में जाकर उस सिद्धरस के कुएँ का सारा अमृत पी गए। इसके बाद श्री विष्णु भगवान ने अपनी समस्त शक्तियों द्वारा भगवान शंकर के युद्ध की सामग्री तैयार की। धर्म से रथ, ज्ञान से सारथी, वैराग्य से ध्वजा, तपस्या से धनुष, विद्या से कवच, क्रिया से बाण और अपनी समस्त शक्तियों से अन्य वस्तुओं का निर्माण किया। भगवान शंकर ने उस दिव्य रथ पर सवार हो कर धनुष बाण धारण किया तथा अभिजीत मुहूर्त में बाण चला कर उन तीनों दुर्भेध पुरों को भस्म कर दिया। उन तीनों पुरों के भस्म होते ही स्वर्ग में दुंदुभियाँ बजने लगी और देवता, ऋषि, पितर और सिध्देश्वर आनंद से जय जय कार करते हुए पुष्पों की वर्षा करने लगे। क्योंकि पशु रूप में समस्त देवताओं ने अपने अधिपति के रूप में शिवजी की उपासना की इसलिए महादेव को ‘पशुपति’ भी कहा जाता है और उन तीनों पुरों को भस्म करने के कारण स्वरूप भगवान शंकर ‘त्रिपुरारि’ भी कहलाये। “ब्रह्मा मुरारी त्रिपुरांतकारी भानु शशि भूमि सुतो बुधश्च गुरुश्च शुक्रः शनि राहु केतवः सर्वे ग्रहाः शान्ति करा भवन्तु।” ।। ॐ नमो भगवते वसुदेवाय:।। (संदर्भ – शिवपुराण तथा श्री मदभागवत महापुराण)

Ekadashi Vrat Katha:

Ekadashi Vrat Katha: The Story Behind Ekadashi

The Ekadashi Vrat Katha, a legend narrated by Lord Krishna to Yudhishthira in the Mahabharata, is a tale that highlights the spiritual significance of Ekadashi fasting. As per the story, once upon a time, there lived a demon named Mura who terrorized both heaven and earth. Even the Devas, celestial beings, were helpless against him, as Mura grew stronger by the day, plunging the world into darkness and chaos. To save the universe from Mura's tyranny, Lord Vishnu, the protector, intervened. A fierce battle erupted between Vishnu and Mura. Exhausted from the continuous fighting, Lord Vishnu sought rest in a cave. Taking advantage of this, Mura tried to attack him in his slumber. However, in that moment, a radiant, divine energy emanated from Lord Vishnu and took the form of a goddess, named Ekadashi. She fought Mura valiantly, ultimately defeating and slaying him. When Lord Vishnu awoke, he was overjoyed to see Mura defeated and praised Ekadashi for her bravery. Impressed by her dedication, Lord Vishnu blessed her, declaring that those who observed a fast on Ekadashi Tithi, in devotion to her, would be rid of their sins and receive his divine blessings. Thus, the practice of Ekadashi fasting began, symbolizing the triumph of good over evil and leading devotees on a path to Moksha (salvation).

Ekadashi Aarti

Devotees sing the Ekadashi Aarti with devotion to express their love and reverence for Lord Vishnu on Ekadashi. The following is a traditional aarti dedicated to Lord Vishnu, often recited during Ekadashi Vrat: Shri Hari Aarti Om Jai Jagdish Hare, Swami Jai Jagdish Hare, Bhakta jano ke sankat, daas jano ke sankat, kshan mein door kare॥ Om Jai Jagdish Hare॥ Jo dhyave phal paave, dukh binse man ka, Swami dukh binse man ka, sukh sampatti ghar aave॥ Om Jai Jagdish Hare॥ Mata pita tum mere, sharan gahu main kiski, Swami sharan gahu main kiski, tum bin aur na dooja॥ Om Jai Jagdish Hare॥ Tum Puran Parmaatma, tum Antaryami, Swami tum Antaryami, Parbrahm Parameshwar॥ Om Jai Jagdish Hare॥ Tum Karuna ke sagar, tum paalan karta, Swami tum paalan karta, main sevak tum swami॥ Om Jai Jagdish Hare॥ Din bandhu dukh harta, tum rakshak mere, Swami tum rakshak mere, aape raksha karna॥ Om Jai Jagdish Hare॥ Vishva ka paalanhara, tum sab ke swami, Swami tum sab ke swami, namra hoke prarthna॥ Om Jai Jagdish Hare॥

Embracing Ekadashi as a Pathway to Moksha

Ekadashi is more than just fasting; it is a sacred observance that harmonizes mind, body, and soul with the divine. By fasting and engaging in Ekadashi rituals, individuals can transcend worldly desires, clear past karma, and align themselves with the path toward Moksha. This holy occasion allows devotees to rid themselves of material attachments and progress on a spiritual journey. Observing Ekadashi Vrat can become a regular ritual for those devoted to spiritual growth, drawing them closer to peace, fulfillment, and ultimately, salvation.

Ekadashi Vrat 2025: Significance, Benefits, and Rituals

In Hinduism, Ekadashi Vrat is a revered fast dedicated to Lord Vishnu. It is believed that observing the Ekadashi fast purifies the soul, and it is thought to bring prosperity, peace, and ultimately pave the way for Moksha (salvation). The Mahabharata even references Ekadashi as a special fast, where Lord Krishna advised Yudhishthira on its divine power. Devotees observe Ekadashi with devotion to counteract negative influences from planetary movements, attain blessings from ancestors, and ensure success in all endeavors.

The Spiritual and Scientific Benefits of Ekadashi Fasting

Fasting on Ekadashi has both spiritual and physical benefits, making it a unique practice that cleanses the body and mind. Here are some key benefits: 1. Spiritual Cleansing: Fasting on Ekadashi helps cleanse one's consciousness, offering an opportunity for deep reflection and spiritual growth. It’s a time to connect with the divine and attain mental peace. 2. Detoxification: By abstaining from certain foods, devotees allow their digestive systems to rest, aiding in detoxification and improving metabolism. 3. Elimination of Sins: It is believed that those who observe the Ekadashi Vrat with dedication are absolved of past sins and gain divine favor, bringing positive energy and happiness into their lives. 4. Improved Willpower: The Ekadashi fast enhances self-control and mental discipline, which are crucial for personal and spiritual growth. 5. Health Benefits: Apart from spiritual advantages, fasting impacts metabolism and promotes cellular repair, which has been supported by modern scientific studies on fasting practices.

How to Observe Ekadashi Vrat: Rituals and Guidelines

Observing Ekadashi requires following a few key rules and practices to maximize its benefits. Here is a step-by-step guide to observing Ekadashi Vrat: 1. Preparation on Dashami: Start the preparation a day before Ekadashi, known as Dashami. Avoid foods such as onions, garlic, lentils, meat, and any food considered tamasic (dull or impure). This day is also ideal for introspection and calming the mind. 2. The Day of Ekadashi: Abstinence and Fasting: On Ekadashi, many devotees choose Nirjala (without water) fasting, though others consume fruits, milk, or water depending on their strength and health. Ensure you have a clear intention for the fast and remain focused on spiritual pursuits. Temple Visit and Prayers: After a morning bath, visit a temple and recite the Gita or chant “Om Namo Bhagavate Vasudevaya.” Worship Lord Vishnu with dedication, and avoid any physical or mental impurities. Charity and Helping Others: Ekadashi is a day for charity; donating food, clothes, or money to the needy is highly auspicious. 3. Breaking the Fast on Dwadashi: The day following Ekadashi is called Dwadashi. On this day, worship Lord Vishnu, offer food and dakshina to Brahmins, and break your fast with a simple meal before the Trayodashi Tithi begins.

Foods to Eat and Avoid During Ekadashi Vrat

During Ekadashi, some devotees follow a strict water-only fast, while others consume fruits, milk, and nuts. Avoid grains, pulses, rice, meat, and onions. Fasting food includes: Fruits, milk, and nuts for a light, nutritious option Sabudana (tapioca), potatoes, and other light snacks if required

What Not to Do on Ekadashi

To maintain the purity of the fast, there are a few guidelines to follow: Avoid Plucking Leaves: Plucking leaves is prohibited. If needed, only use leaves that have naturally fallen. Refrain from Anger and Negativity: Keep a peaceful mind and avoid conflicts. Celibacy: Brahmacharya (celibacy) should be followed strictly during the fast. Avoid Housework That Might Harm Living Beings: Refrain from sweeping floors to avoid harming insects, as even unintentionally killing life on Ekadashi is discouraged.

Ekadashi Dates and Muhurat in 2025

Each Ekadashi Tithi has its own significance and is associated with various legends. Here are some notable Ekadashi dates and their significance in 2025:These dates are indicative of specific fasts, each celebrated with its unique customs and rituals, highlighting different aspects of spiritual devotion. Observing Ekadashi Vrat on these dates according to the Indian Standard Time Muhurat amplifies its benefits. Pausha Putrada Ekadashi: January 10, 2025 (Friday) Shattila Ekadashi: January 25, 2025 (Saturday) Jaya Ekadashi: February 8, 2025 (Saturday) Vijaya Ekadashi: February 24, 2025 (Monday) Amalaki Ekadashi: March 10, 2025 (Monday) Papmochani Ekadashi: March 25, 2025 (Tuesday) Vaishnava Papmochani Ekadashi: March 26, 2025 (Wednesday) Kamada Ekadashi: April 8, 2025 (Tuesday) Varuthini Ekadashi: April 24, 2025 (Thursday) Mohini Ekadashi: May 8, 2025 (Thursday) Apara Ekadashi: May 23, 2025 (Friday) Nirjala Ekadashi: June 6, 2025 (Friday) Vaishnava Nirjala Ekadashi: June 7, 2025 (Saturday) Yogini Ekadashi: June 21, 2025 (Saturday) Vaishnava Yogini Ekadashi: June 22, 2025 (Sunday) Devshayani Ekadashi: July 6, 2025 (Sunday) Kamika Ekadashi: July 21, 2025 (Monday) Shravana Putrada Ekadashi: August 5, 2025 (Tuesday) Aja Ekadashi: August 19, 2025 (Tuesday) Parsva Ekadashi: September 3, 2025 (Wednesday) Indira Ekadashi: September 17, 2025 (Wednesday) Papankusha Ekadashi: October 3, 2025 (Friday) Rama Ekadashi: October 17, 2025 (Friday) Devutthana Ekadashi: November 1, 2025 (Saturday) Vaishnava Devutthana Ekadashi: November 2, 2025 (Sunday) Utpanna Ekadashi: November 15, 2025 (Saturday) Mokshada Ekadashi: December 1, 2025 (Monday) Saphala Ekadashi: December 15, 2025 (Monday) Pausha Putrada Ekadashi: December 30, 2025 (Tuesday) Vaishnava Pausha Putrada Ekadashi: December 31, 2025 (Wednesday)

श्रीमदभागवत गीता को सम्पूर्ण ग्रन्थ क्यों कहा जाता है ?

गीता पूर्ण ज्ञान की गङ्गा है, गीता अमृतरस की ओजस धारा है। गीता इस दुष्कर संसार सागर से पार उतरनेके लिये अमोघ तरणी है। गीता भावुक भक्तों के लिये गम्भीर तरङ्गमय भावसमुद्र है। गीता, कर्मयोग परायण मनुष्य को सत्यलोकमें ले जाने के लिये दिव्य विमान रूप है । गीता ज्ञानयोगनिष्ठ मनुष्य को जीवन्मुक्त बनानेके लिये अमृत समुद्र रूपहै, गीतासंसार मरुभूमिमें जले हुए दु:खित जीवनके लिये मधुर जलसे पूर्ण मरू उद्यान है। जितना भी कहा जाये, शब्दों में गीता की अपूर्व गाथा का वर्णन हो ही नहीं सकता है। गीता एक पूर्ण ग्रन्थ है जिसमे सम्पूर्ण उपनिषदों का आध्यात्मिक ज्ञान सारतत्व में उदित हुआ है इसलिए गीता को गीतोउपनिषद (उपनिषद को गीत या गान के रूप में है) भी कहा गया है। कर्म, उपासना और ज्ञान तीनों के विज्ञानं का अंश और तीनों का सामजस्य गीता में प्रकट है। पूर्ण वस्तु वही है, जिसमें जीव की पूर्णता विधान करनेके लिये पूर्ण उपदेश किया गया हो। जीवकी पूर्णता त्रिभाव की पूर्णता के द्वारा ही हो सकती है। उसमे शरीर आधिभौतिक भाव है, मन अधिदैवभाव है और बुद्धि अभ्यात्मभाव है, इसलिये शरीर, मन और बुद्धि तीनों की पूर्णता से ही साधक पूर्ण ब्रह्म रूप को प्राप्त कर सकता है। शरीर की पूर्णता कर्म से, मन की पूर्णता उपासना से और बुद्धि की पूर्णता ज्ञान से होती है। इसलिये जिस पुस्तक में कर्म, उपासना और ज्ञान, तीनों का ही पूर्णतया वर्णन किया गया है, वही पूर्ण पुस्तक है। पूर्ण होने का एक और कारण भगवान का वाक्य है, क्योकि भगवान पूर्ण है। गीता में गीतामें समाधि-भाषा पूर्ण है, जिसमें समस्त उपदेशों का ज्ञान भरा हुआ है। इस प्रकार की ज्ञानमयी भाषा को पूर्ण ज्ञानी के सिवाय और कोई नही कह सकता है, क्योंकि समाधि भाषाके कहने वाले केवल पूर्ण समाधिस्थ पुरुष ही हो सकते हैं। वेदों में कर्मकाण्ड, उपासनाकाण्ड और ज्ञानकाण्ड का जीवों के उद्धारके लिये पूर्ण वर्णन किया गया है, इसलिये वेद भगवान का वाक्य हैं , इसी प्रकार गीता में भी अठारह अध्यायों में कर्म, उपासना और ज्ञान का वर्णन किया गया है। इसके सब अध्यायो में सब तरह की बातें होने पर भी प्रधानतः पहले छ: अध्यायोंमें कर्म का, अगले छ: अध्यायों में उपासना का और अंत के छ: अध्यायों में ज्ञान का उपदेश किया गया है, इसलिये गीता पूर्ण है। पूर्णताका और एक लक्षण हैं साम्प्रदायिक का आभाव और निष्पक्ष उदार भाव की प्रधानता। ऋषियों की बुद्धि और साम्प्रदायिक पुरुषों की बुद्धि में इतना ही अन्तर है। ऋषियों की बुद्धि पूर्ण होने के कारण उसमें साम्प्रदायिक पक्षपात नही रहता एवं उसमें किसी एक भाव की प्रधानता मानकर दूसरे भावों की निन्दा नही की जाती। भगवान वेदव्यास ने पूर्ण ऋषि होनेसे भिन्न भिन्न पुराणोंमें सभी ज्ञानों का वर्णन किया है परन्तु किसी की भी निंदा नहीं की। साम्प्रदायिक पुरुषों बुद्धि इस प्रकारकी नहीं होती, वे एक ही भावको प्रधान मानकर औरों की निन्दा करते है। भारतवर्ष में जब से इस प्रकारके साम्प्रदायिक मतों का प्रचार हुआ है, तभी से भारतमें अशान्ति और मतद्वैधता फैल गई है, और एक दूसरे की निन्दा व ईर्षा फैला कर धर्म के नाम पर अधर्म होने लगा है। परन्तु गीता में इस प्रकार के विचार नहीं हैं, क्योंकि गीता भगवानके मुख से उच्चारित हुआ पूर्ण ग्रन्थ है, इसलिये गीता सम्पूर्ण मनुष्य जाति का सामान रूप से कल्याण करने वाली है । इसमें कर्मी के लिये निष्काम कर्म का उदारभाव, भक्तों के लिये भक्ति का मधुरभाव और ज्ञानीके लिये परम ज्ञान का गम्भीरभाव, सभी भाव सामजस्य से वर्णिंत किये गए हैं, जिससे गीता का पाठ करके सभी धर्म के लोग सन्तुष्ट होते हैं। गीता की एक और पूर्णता यह है कि, गीता में भक्ति के छ: अध्याय कर्म और ज्ञान के बीच में रखे गये है, क्योंकि भक्ति में मध्य में होने से कर्म मिश्रित, शुद्ध और ज्ञान मिश्रित यह तीनो प्रकार की भक्ति, सभी मनुष्यों का कल्याण कर सकती है। भक्ति सभी साधनों का प्राणरूप है, चाहे कर्मी हो, चाहे ज्ञानी हो, भक्ति मध्य में न होने से दोनों में बंधन की आशङ्का रहती है। भक्तिहीन कर्म अहंकार और कर्तृत्व उत्पन्न कर सकता है, परन्तु यदि कर्मी अपने को भगवान का निमित्तमात्र मानकर, जगत सेवा को भागवत सेवा समझकर, भक्ति के साथ कर्म करे तो, उस कर्म से अहंकार या बन्धन उत्पन्न नही होगा I उसी प्रकार भक्ति विहीन ज्ञान वाले मनुष्य में तर्कबुद्धि और अभिमान उत्पन्न होकर, ज्ञानमार्गी पुरुष को बंधन में डाल सकता है, परन्तु ज्ञान के मूल में भक्ति रहने से ज्ञानी भक्त पूर्ण बन जायगा, केवल तार्किक और अभिमानी नही रहेगा, जिससे उसको पूर्णज्ञान की प्राप्ति होगी। भगवान श्रीकृष्ण्द्र ने गीता में मध्य के अध्यायों में भक्ति को इसीलिए भी रखा है क्योंकि दो विरुद्ध पक्षों में विवाद के समय, मध्यस्थ शान्त पुरुष ही विवाद को मिटाता है और विवाद को आगे नहीं बढ़ने देता। कर्म और ज्ञान में सदा ही विवाद है । कर्म जो कुछ कहता है ज्ञान उससे उल्टा कहता है। कर्म के मत में जगत् सत्य है और ज्ञान के मतमें जगत् मिथ्या है । कर्म के मत में मनुष्य को कर्मी होना चाहिये और ज्ञान के मत में निष्कर्मी होना चाहिये । इसलिये श्रीभगवान श्रीकृष्ण ने दोनों के मध्य में भक्ति को रख कर कर्म और ज्ञान का विवाद मिटा दिया है । पूर्णता का और एक लक्षण यह है कि, गीता में परपस्पर दोनो विरुद्ध भावों में सामजस्य रखा गया है। पूर्ण पुरुष वही है जिनमें सुख दुःख आदि में सामान भाव रखने के शक्ति हो। उसके मन में सुख में हर्ष तथा दु:ख में विषाद का भाव नहीं उत्पन्न होता, क्योंकि वह सुख दु:ख से परे आनन्दमय साम्यदशा को प्राप्त कर लेता है । पूर्णावतार में भी यही लक्षम पाया जाता है, क्योंकि, पूर्णज्ञानी होनेके कारण उनमें सकल प्रकार के विरुद्ध भावों का सामजस्य रहता है। भगवान श्रीकृष्ण में इसी प्रकार परस्पर विरुद्ध भावों का सामजस्य था, इससे स्पष्ट सिद्ध होता है कि, वे भगवानके पूर्णावतार थे और उन्ही पूर्णावतार के श्रीमुख से उच्चारित गीता सम्पूर्ण ग्रन्थ है। ।।ॐ नमो भगवते वासुदेवाय:।।

भगवान् शिव के विभिन्न स्वरूपों का ध्यान

ll ॐ नमः शम्भवाय च l मयोभवाय च l नमः शङ्कराय च l मयस्कराय च l नमः शिवाय च l शिवतराय च ll ll मंगलस्वरुप भगवान् शिव ll कृपाललितविक्षणं स्मितमनोज्ञवत्राम्बुजं शशांकलयोज्ज्वलं शमितघोरपत्रयम। करोतु किमपि स्फुरतपरमसौख्यसच्चिद्वपूर्धराधरसुताभुजोद्वलयितं महो मङ्गलम ।। जिनकी कृपापूर्ण चितवन बड़ी ही सुन्दर है, जिसका मुखारविन्द मन्द मुस्कान की छटा से अत्यंत मनोहर दिखाई देता है, जो चन्द्रमा की कला से प्ररम उज्जवल है, जो आध्यात्मिक आदि तीनो तापों को शान्त कर देने में समर्थ हैं, जिनका स्वरुप सच्चिन्मय एवं परमानन्द से प्रकाशित होता है, तथा जी गिरिजानन्दिनी पार्वती के भुजपाश से आवेष्टित है, वह शिवनामक अनिवर्चनीय तेज पुंज सबका मंगल करें। ll भगवान् शंकर ll वन्दे वंदनतुष्टमानसमतिप्रेमप्रियं प्रमेदं पूर्ण पूर्णकरं प्रपूर्णनिखिलैश्वयैकवासं शिवम् । सत्यं सत्यमयं त्रिसत्यविभवं सत्यप्रियं सत्यदं विष्णुब्रह्मानुतं स्वकीयकृपयोपात्ताकृतिं शंकरम ।। वंदना मात्र से जिनका मन प्रसन्न हो जाता है, जिन्हे प्रेम अत्यंत प्यारा है, जो प्रेम प्रदान करने वाले, पूर्णनन्दमय, भक्तों की अभिलाषा पूर्ण वाले, सम्पूर्ण ऐश्वर्यों के एकमात्र आवास स्थान कल्याणस्वरूप हैं, सत्य जिनका विग्रह है, जो सत्यमय हैं, जिनका ऐश्वर्य त्रिकाल बाधित है, जो सत्यप्रिय एवं सत्य प्रदाता हैं, ब्रह्मा और विष्णु जिनकी स्तुति करते हैं, स्वेच्छानुसार शरीर धारण करने वाले उन भगवान् शंकर की मैं वंदना करता हूँ। ll गौरीशंकर भगवान् शिव ll विश्वोद्भवस्तिथितलयादिषु हेतुमेकं गौरीपतिं विदिततत्व मनन्तकीर्तिम। मायाश्रयं विगतमायमचिन्त्यरूपं बोधस्वरूपमलं हि शिवं नमामि ।। जो विश्व की उत्त्पति, स्थिति और लय आदि के एक मात्र कारण हैं, गौरी गिरिजकुमारी उमा के पति हैं, तत्वज्ञ हैं, जिनकी कीर्ति का कहीं अंत नहीं है, जो माया के आश्रय होकर भी उससे अत्यंत दूर हैं तथा जिनका जिनका स्वरुप अचिन्त्य है, उन विमल बोध स्वरुप भगवान् शिव को मैं प्रणाम करता हूँ। ll भगवान् महाकाल ll सृष्टारोડपि प्रजानां प्रबलभवभयाद यं नमस्यन्ति देवा यश्चित्ते सम्प्रविष्टोડप्यवहितमनसां ध्यान मुक्तात्मना च। लोकनामादिदेवा: स जयतु भगवाछ्रींमहाकालनामा विभ्राण: सोमलेखामहिवलययुतं व्यक्तलिंग कपालम ।। प्रजा की सृष्टि करने वाले प्रजापति देव भी प्रबल संसार भय से मुक्त होने के लिए जिन्हे नमस्कार करते हैं, जो सावधान चित्तवाले ध्यान परायण महात्माओं के हृदयमंदिर में सुखपूर्वक विद्यमान होते हैं और चन्द्रमा की कला, सर्पों के कंगन तथा व्यक्त चिन्ह वाले कपाल को धारण करते हैं, सम्प्पोर्ण लोगों के आदि देव उन भगवान् महाकाल की जय हो। ll भगवान् अर्धनारीश्वर ll नीलप्रवालरुचिरं विलसतित्रनेत्रं पाशारुणोत्पलकपालत्रिशूलहस्तम। अर्धाम्बिकेशमनिशं प्रविभक्तभूषं बालेंदुबद्धमुकुटं प्रणमामि रूपम ।। श्री शंकर जी का शरीर नीलमणि और प्रवाल के सामान सुन्दर (नीललोहित) है, तीन नेत्र हैं, चारों हाथों में पाश, लाल कमल , कपाल और शूल हैं, आधे अंग में अम्बिका जी और आधे में महादेव जी हैं। दोनों अलग अलग श्रंगारों से सज्जित हैं, ललाट पर अर्धचंद्र है और मस्तक पर मुकुट सुशोभित है, ऐसे स्वरुप को नमस्कार है। ll श्री नीलकंठ ll बालाकार्यायुततेजस धृत जटा जुटेन्दु खण्डोज्ज्वलं नागेन्द्रे: कृतभूषणं जपवटीं शूलं कपालं करै: । खट्वाङ्ग दधतं त्रिनेत्रविल सप्तञ्चाननं सुन्दरं व्याघ्रत्वकपरिधानमब्जनिलयं श्री नीलकण्ठं भजे ।। भगवान् नीलकंठ दस हज़ार बाल सूर्यों के समान तेजस्वी हैं, सी पर जटाजूट, ललाट पर अर्धचंद्र और मस्तक पर सापों का मुकुट धारण किये हैं, चारों हाथों में जपमाला, शूल नरकपाल और खट्वाङ्ग – मुद्रा है। तीन नेत्र हैं, पांच मुख हैं, अति सुन्दर विग्रह है, बाघम्बर धारण किये हुए हैं और सुन्दर पद्म पर विराजित हैं। इन श्रीनीलकण्ठदेव जी का भजन करना चाहिए। ll श्री महामृत्युञ्जय ll हस्ताभ्यां कलाशद्वयामृतरसैराप्लावयन्तं शिरो द्वाभ्यां तौ दधतं मृगाक्षवलये द्वाभ्यां वहन्तं परम। अङ्गनस्य स्तकरद्वयामृतघटं कैलासकान्तं शिवं स्वच्छामभोजगतं नवेन्दुमुकुटं देवं त्रिनेत्रं भजे ।। त्रियम्बकदेव अष्टभुज हैं। उनके एक हाथ में अक्षमाला और दुसरे में मृगमृदा है, दो हाथों से दो कलशों में अमृतरस लेकर उसमे अपने मस्तक को आप्लावित कर रहे हैं और दो हाथों से उन्ही कलशों को थामे हुए हैं। शेष दो हाथ उन्होंने अपने अङ्क पर रखे हुए हैं और उनमे दो अमृत पूर्ण घट हैं। वे श्वेत पद्म पर विराजमान हैं, मुकुट पर बालचंद्र सुशोभित हैं, मुख मंडल पर तीन नेत्र शोभायमान हैं। ऐसे देवाधिदेव कैलासपति श्री शंकर की मैं शरण ग्रहण करता हूँ। ll नमस्तेस्तु भगवन्, विश्वेश्वराय महादेवाय, त्रैय्मबकाय त्रिपुरान्तकाय, त्रिकाग्नि कालाय, कालाग्नि रुद्राय, नीलकण्ठाय मृत्युंजयाय, सर्वेश्वराय सदाशिवाय श्रीमान महादेवाय नमः ll ll ॐ नमो भगवते वासुदेवाय: ll

हिन्दू धर्म में कितने देवता हैं ? 33 प्रकार के, 33 करोड़, 33,33,333 या फिर 33,333? इन सब गणनाओं का स्रोत क्या है?

यह एक विवादित प्रश्न है जिसके बारे में ज्ञान का सर्वथा अभाव पिछले कुछ वर्षो तक था। वर्तमान काल में समाज में कुछ ज्ञान प्रचारित हुआ है। परंतु उसके स्रोत की जानकारी और सही ज्ञान अभी भी स्पष्ट नहीं है । केवल यही प्रचारित किया जाता है कि कोटि का अर्थ करोड़ नहीं प्रकार है और इस तरह हिन्दू धर्म में 33 प्रकार के देवता हैं। हिन्दू मानते हैं कि उनके 33 करोड़ देवता हैं यह असत्य मुख्य तौर पर अज्ञानियों, मलेच्छों या अंग्रेज़ी अनुवादकों के द्वारा प्रचारित किया गया है। जिन्होंने ऋग्वेद के मात्र एक श्लोक के आधार पर यह भ्रामकता फैलाई की हिन्दू धर्म के शास्त्र मानते है की हिन्दू धर्म में 33 करोड़ देवी देवता हैं परंतु उसी ऋग्वेद के अन्य श्लोकों का या अथर्ववेद या बृहदारणयकोपनिषद के श्लोकों का विश्लेषण करने की कोई आवश्यकता नहीं समझी। ऋग्वेद संहिता मंडल 1 सूक्त 45 का श्लोक 2 इस प्रकार है: श्रु॒ष्टी॒वानो॒ हि दा॒शुषे॑ दे॒वा अ॑ग्ने॒ विचे॑तसः । तान्रो॑हिदश्व गिर्वण॒स्त्रय॑स्त्रिंशत॒मा व॑ह ॥ अर्थात :- हे अग्निदेव ! विशिष्ट ज्ञान सम्पन्न देवगण, हवि दाता के लिए उत्तम सुख देते हैं। हे रोहित वर्ण अश्व वाले (रक्तवर्ण की ज्वालाओं से सुशोभित) स्तुत्य अग्निदेव ! उन तैन्तीस कोटि देवों को यहाँ यज्ञ स्थल पर ले कर आएँ । जबकि मंडल 1 के ही सूक्त 34 का श्लोक 11 इस प्रकार है: आ ना॑सत्या त्रि॒भिरे॑काद॒शैरि॒ह दे॒वेभि॑र्यातं मधु॒पेय॑मश्विना । प्रायु॒स्तारि॑ष्टं॒ नी रपां॑सि मृक्षतं॒ सेध॑तं॒ द्वेषो॒ भव॑तं सचा॒भुवा॑ ॥ अर्थात :- हे अश्विनी कुमारों! आप दोनो, तैन्तीस देवताओं के सहित इस यज्ञ में मधुपान के लिए पधारें। हमारी आयु बढ़ायें और हमारे पापों को भली भाँति विनष्ट करें। हमारे प्रति द्वेष की भावना को समाप्त करके सभी कार्यों में सहायक बने। इसी प्रकार अथर्वेवेद संहिता के कांड 11 सूक्त 5 (ओदन सूक्त) के श्लोक 3 में कहा गया है “एतस्माद वा ओदनात त्रयस्त्रिंशंत लोकन निर्मीमीत प्रजापति: ।।” अर्थात :- प्रजापति ने इस महिमाशाली ओदन से तैन्तीस देवों या लोकों को रचना की। और अथर्वेवेद संहिता के ही कांड 10 सूक्त 7 के श्लोक 13 में कहा गया है “यस्य त्रयस्त्रिंशंद अंगे सर्वे समाहिता:। स्कम्भ तं बरुहि कतम: सिव्देव स:।।” अर्थात :-जिस स्कम्भ के अंग में समस्त तैन्तीस देव स्थिर हैं, उसे बताएँ । इस प्रकार केवल एक श्लोक के एक शब्द “स्त्रय॑स्त्रिंशत॒मा” के अर्थ का अनर्थ बता कर यह साबित करने की कोशिश की गयी की हिन्दू वेद 33 करोड़ देवताओं की मान्यता को स्वीकार करते हैं। जबकि “स्त्रय॑स्त्रिंशत॒मा” का अर्थ निकलता है 33 कोटि। ‘कोटि’ मतलब ‘करोड़’ भी होता है और ‘श्रेणी’ या ‘प्रकार’ भी परन्तु ऊपर परन्तु ऊपर वर्णित सभी श्लोकों का समान अर्थ निकालने से 33 कोटि का अर्थ केवल ‘ 33 श्रेणी या प्रकार’ की निकाला जा सकता है ’33 करोड़’ नहीं। उपरोक्त से यह तो स्पष्ट हो गया की हिन्दू धर्म में 33 प्रकार के देवता है । अब प्रश्न यह है कि वेदों में वर्णित 33 देवता कौन हैं? इस प्रश्न का उत्तर बृहदारणयकोपनिषद के तीसरे अध्याय नवे ब्राह्मण संवाद में मिलता है। शकल्य विदग्ध अत्यंत अभिमानी थे और उन्होंने अभिमान में भर कर याज्ञवल्क से प्रश्न पूछने आरम्भ कर दिए। शकल्य के देवगणो के बारे में पूछने पर याज्ञ ने उनकी संख्या 3303 बतायी और देवताओं के बारे में पूछने पर 33 प्रकार। पुनः प्रश्न पूछने पर याज्ञवल्क्य के कहा 3303 देवगण हैं परंतु देवता केवल 33 हैं । याज्ञवल्क्य ने 33 प्रकार के देवताओं की गणना इस प्रकार बतायी: 8 वसु – सूर्य , चन्द्रमा , नक्षत्र , पृथ्वी , जल , अग्नि , वायु और आकाश । 11 रूद्र – दस प्राण , ग्यारहवाँ जीवात्मा। 12 आदित्य – 12 महीने। 1 देवराज इंद्र और 1 प्रजापति या ब्रह्माजी अग्नि पुराण में 33 प्रकार के देवताओं की व्याख्या इस प्रकार है : 8 वसु- आप, ध्रुव, सोम, धर, अनिल, अनल, प्रत्युष और प्रभाष। 11 रूद्र – हर, बहुरुप, त्रयँबक,अपराजिता, बृषाकापि, शँभू, कपार्दी, रेवात, मृगव्याध, शर्वा, और कपाली। 12 आदित्य- विष्णु, शक्र, तव्षटा, धाता, आर्यमा, पूषा, विवसान, सविता, मित्र, वरुण, भग और अंशु 1 देवराज इंद्र और 1 प्रजापति या ब्रह्माजी इस प्रकार 8+11+12+1+1=33 श्रेणी या प्रकार के देवता हुए। श्री विष्णु पुराण में भी स्पष्ट कहा गया है – 8 वसु, 11 रूद्र, 12 आदित्य, प्रजापति और वषटाकार ये तैन्तीस वेदोक्त्त देवता अपनी इच्छा अनुसार जन्म लें वाले हैं। ( प्रथम अंश, अध्याय 15, श्लोक 137) अब प्रश्न यह है की 33,333 की संख्या का स्त्रोत क्या है ? इसका वर्णन श्री विष्णु पुराण के इस श्लोक में मिलता है : त्रय स्त्रिंशत्सहस्त्रनी त्रयस्त्रिंश्च्चतानी च। त्रय स्त्रिं शत्त्था देवा पिबंती क्षणदाकरम।। तैन्तीस हज़ार, तैन्तीस सौ तैन्तीस देवगण चंद्रस्थ अमृत का पान करते है। ध्यान देने योग्य यह है की यहाँ ‘देवता’ का नहीं ‘देवगण’ शब्द का प्रयोग हुआ है । गण का अर्थ है ‘ अनुचर’ या ‘सहायक’ और इसका संदर्भ 33 प्रकार के देवताओं के 33, 333, अनुचरों या गणो के रूप में लिया जा सकता है। जैसे भगवान शिव के प्रमुख गण नन्दी महाराज हैं, विष्णु भगवान के जय और विजय हैं। 33,33,333 की संख्या पूर्णत: कपोल कल्पित है और हिन्दू वेद, पुराण या धर्म शास्त्र इस संख्या को अनुमोदित नहीं करते। सार रूप में यही कहा जा सकता है की हिन्दू धर्म में 33 श्रेणी या प्रकार के देवता है और 33,333 देवगण या देवताओं के अनुचर हैं परंतु श्री भगवान केवल एक ही शक्ति हैं जो विभिन्न रूपों में अवतरित होते हैं। ।।ॐ नमो भगवते वासुदेवाय:।।

Maha Kumbh Mela Prayagraj 2025:

Maha Kumbh Mela 2025 - हर 12 साल में महाकुंभ का आयोजन चार प्रमुख स्थलों—प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में होता है, जो सनातन संस्कृति के प्रमुख केंद्र हैं। साल 2025 में यह भव्य आयोजन प्रयागराज में होगा, जहाँ अनुमान है कि लगभग 10 करोड़ श्रद्धालु पवित्र संगम में डुबकी लगाने आएंगे। यह आयोजन 13 जनवरी से शुरू होकर 26 फरवरी तक चलेगा। महाकुंभ मेला केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है बल्कि आध्यात्मिकता, संस्कृति और आस्था का विशाल संगम है।

महाकुंभ मेला के प्रमुख स्नान दिवस (Kumbh Mela 2025)

Mahakumbh 2025 Sanan Tithi: प्रयागराज में महाकुंभ की शुरुआत 13 जनवरी 2025 को पौष पूर्णिमा स्नान के साथ होगी, और इसका समापन 26 फरवरी 2025 को महाशिवरात्रि के अंतिम स्नान के साथ होगा. इस महाकुंभ के शाही स्नान की प्रमुख तिथियां यहां देख लीजिए: मकर संक्रांति - 14 जनवरी 2025 पौष पूर्णिमा - 25 जनवरी 2025 मौनी अमावस्या - 9 फरवरी 2025 वसंत पंचमी - 12 फरवरी 2025 माघी पूर्णिमा - 19 फरवरी 2025 महाशिवरात्रि - 26 फरवरी 2025 इन दिनों पर लाखों श्रद्धालु संगम में स्नान करते हैं, जिससे संगम का पवित्र जल और भी पवित्र हो जाता है। हर स्नान दिवस का विशेष महत्व होता है और इसे धार्मिक दृष्टि से अत्यंत शुभ माना जाता है।

कुंभ मेले का पौराणिक इतिहास

कुंभ मेले की उत्पत्ति समुद्र मंथन की पौराणिक कथा से जुड़ी हुई है। मान्यता है कि देवताओं और असुरों ने अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन किया, जिससे अमृत कलश प्रकट हुआ। अमृत को लेकर देवताओं और असुरों के बीच युद्ध छिड़ गया। इस संघर्ष के दौरान भगवान विष्णु ने अपने वाहन गरुड़ को अमृत के घड़े की सुरक्षा का दायित्व सौंपा। गरुड़ जब अमृत कलश लेकर आकाश मार्ग से उड़ान भर रहे थे, तब अमृत की कुछ बूंदें पृथ्वी पर चार स्थानों—प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन, और नासिक—पर गिरीं। ये स्थान तब से पवित्र माने जाते हैं, और यही कारण है कि हर 12 साल में इन स्थानों पर कुंभ मेले का आयोजन होता है। यह भी कहा जाता है कि देवताओं और असुरों के बीच 12 दिवसीय युद्ध हुआ, जो मानव समय के अनुसार 12 वर्षों के बराबर है। इसी पौराणिक संदर्भ के कारण हर 12 वर्ष में कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है, जो आध्यात्मिकता, आस्था और भारतीय संस्कृति का अद्वितीय संगम है।

प्रयागराज महाकुंभ मेला की महिमा और विशेषता

महाकुंभ मेला में चारों दिशाओं से श्रद्धालु एकत्रित होते हैं, जो पवित्र गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम में स्नान कर अपने पापों से मुक्ति की आशा रखते हैं। इस महोत्सव में संगम पर स्नान करना और साधु-संतों का दर्शन करना अत्यंत शुभ माना जाता है। प्रयागराज में महाकुंभ की दिव्यता हर बार श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करती है।

प्रयागराज महाकुंभ 2025 की तिथि और स्थान

महाकुंभ मेला 2025 का आयोजन प्रयागराज में 13 जनवरी से 26 फरवरी तक होगा। यह मेला कुंभनगर जिले के 6000 हेक्टेयर क्षेत्र में फैलेगा, जिसमें से 4000 हेक्टेयर में मेला क्षेत्र और 1900 हेक्टेयर में पार्किंग सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी। प्रशासन द्वारा मेले के दौरान आने वाले 10 करोड़ श्रद्धालुओं की सुरक्षा के लिए अभूतपूर्व व्यवस्था की जा रही है, जिसमें आधुनिक तकनीकों का भी सहारा लिया जाएगा।

महाकुंभ की धार्मिक और सांस्कृतिक महत्ता

महाकुंभ मेला न केवल धार्मिक आस्था का संगम है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और परंपराओं का भी प्रतीक है। यहाँ विभिन्न संप्रदायों के साधु-संतों का मिलन होता है और धर्म की ध्वजा लहराते हुए वे अपने अनुयायियों को सत्मार्ग पर चलने का संदेश देते हैं। महाकुंभ मेले में सनातन धर्म के विभिन्न अखाड़ों के साधु, संत, नागा संन्यासी, और महामंडलेश्वर अपने शिविरों में प्रवास करते हैं और यहाँ आने वाले श्रद्धालुओं के मार्गदर्शक भी होते हैं।

अखाड़ों की भागीदारी

महाकुंभ मेले में देशभर के प्रमुख अखाड़ों की भागीदारी होती है, जो इस आयोजन की शोभा को और बढ़ाते हैं। पंच दशनाम जूना अखाड़ा ने इस बार की पेशवाई और नगर प्रवेश की तिथियां तय कर ली हैं। विजयदशमी के दिन, 12 अक्टूबर 2024 को अखाड़ा प्रयागराज के लिए रवाना होगा। इस दौरान नागा संन्यासी, महामंडलेश्वर, महंत, साधु-संत, और मठाधीश रथों और पालकियों के साथ कुंभ नगर में प्रवेश करेंगे।

नगर प्रवेश और शाही पेशवाई

तीन नवंबर को यम द्वितीया के दिन जूना अखाड़ा हाथी-घोड़े, बग्घी, सुसज्जित रथों और पालकियों के साथ नगर में प्रवेश करेगा। इस विशेष जुलूस में भक्तों की भीड़ उमड़ेगी और कुंभ नगर के शिविर में देवता का स्वागत किया जाएगा। शरद पूर्णिमा के दिन, 16 अक्टूबर को अखाड़े के रमता पंच और अन्य नागा संन्यासी रामपुर के सिद्ध हनुमान मंदिर परिसर में प्रवास करेंगे, जहाँ से उनकी धार्मिक यात्रा का आरंभ होगा।

धर्म ध्वजा की स्थापना

23 नवंबर को काल भैरव अष्टमी के अवसर पर कुंभ मेला छावनी में भूमि पूजन कर धर्म ध्वजा की स्थापना की जाएगी। यह ध्वजा स्थापना अखाड़ों की विशेष परंपरा है और इसे शुभता और आस्था का प्रतीक माना जाता है। इस धार्मिक आयोजन के साथ ही पूरे कुंभ क्षेत्र में धार्मिक गतिविधियाँ प्रारंभ हो जाएंगी। प्रयागराज महाकुंभ मेला 2025 एक ऐसा आयोजन है जो श्रद्धा, आस्था, और भारतीय संस्कृति का परिचायक है। यह आयोजन न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है बल्कि विश्वभर से आने वाले करोड़ों श्रद्धालुओं के लिए एक आध्यात्मिक यात्रा है। यह मेला भारतीय संस्कृति और सनातन परंपरा का ऐसा विशाल दृश्य प्रस्तुत करता है जो अनंत काल तक लोगों के दिलों में बसेगा।

कुम्भ मेले का ज्योतिषीय महत्व

कुम्भ मेले का ज्योतिषीय महत्व भारत में कुम्भ मेले का सामाजिक-सांस्कृतिक, पौराणिक व आध्यात्मिक महत्व तो है ही साथ ही ज्योतिष के नज़रिये से भी यह मेला बहुत अहमियत रखता है। दरअसल इस मेले का निर्धारण ही ज्योतिषीय गणना से होता है। सूर्य, चंद्रमा, शनि और बृहस्पति यानि गुरु ज्योतिष शास्त्र में बहुत ही अहम स्थान रखते हैं। कुम्भ मेले में भी इन ग्रहों की बहुत अहमियत होती है। इन्हीं ग्रहों की स्थितियों के आधार पर कुंभ मेले का आयोजन होता है। आइए जानते हैं कुम्भ मेले का ज्योतिषीय महत्व।

कुम्भ मेले का काल निर्धारण

अब यह प्रश्न स्वाभाविक ही है कि सूर्य, चंद्रमा, शनि और गुरु का ऐसा क्या योगदान रहा है कि इन्हीं को कुंभ मेले के काल निर्धारण का आधार बनाया गया है तो हम आपको बताते हैं कि स्कंदपुराण में इन ग्रहों के योगदान का उल्लेख मिलता है। दरअसल जब समुद्र मंथन के पश्चात अमृत कलश यानि सुधा कुम्भ की प्राप्ति हुई तो देवताओं व दैत्यों में उसे लेकर युद्ध छिड़ गया। 12 दिनों तक चले युद्ध में 12 स्थानों पर कुम्भ से अमृत की बूंदें छलकी जिनमें चार हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक भारतवर्ष में हैं बाकि स्थान स्वर्गलोक में माने जाते हैं। इस दौरान दैत्यों से अमृत की रक्षा करने में सूर्य, चंद्रमा, शनि व गुरु का बहुत ही अहम योगदान रहा। स्कंदपुराण में लिखा है कि - चन्द्रः प्रश्रवणाद्रक्षां सूर्यो विस्फोटनाद्दधौ। दैत्येभ्यश्र गुरू रक्षां सौरिर्देवेन्द्रजाद् भयात्।। सूर्येन्दुगुरूसंयोगस्य यद्राशौ यत्र वत्सरे। सुधाकुम्भप्लवे भूमे कुम्भो भवति नान्यथा।। यानि चंद्रमा ने अमृत छलकने से, सूर्य ने अमृत कलश टूटने से, बृहस्पति ने दैत्यों से तथा शनि ने इंद्र के पुत्र जयंत से इस कलश को सुरक्षित रखा। कुंभ मेला तभी लगता है जब ये ग्रह विशेष स्थान में होते हैं। इसमें देव गुरु बृहस्पति वृषभ राशि में होते हैं। सूर्य व चंद्रमा मकर राशि में होते हैं। माघ मास की अमावस्या यानि मौनी अमावस्या की स्थिति को देखकर भी कुम्भ मेले का आयोजन किया जाता है। कुल मिलाकर ग्रह ऐसे योग बनाते हैं जो कि स्नान दान व मनुष्य मात्र के कल्याण के लिये बहुत ही पुण्य फलदायी होता है। जिन-जिन स्थानों में कुम्भ मेले का आयोजन होता है उन स्थानों पर यह योग आमतौर पर 12वें साल में बनता है। कभी कभी 11वें साल भी ऐसे योग बन जाते हैं। सूर्य और चंद्रमा की स्थिति तो हर स्थान पर हर साल बनती है। इसलिये हर वर्ष वार्षिक कुंभ मेले का भी आयोजन होता है। उज्जैन और नासिक में जहां यह सिंहस्थ के नाम से जाना जाता है वहीं हरिद्वार व प्रयागराज में कुंभ कहा जाता है। चारों स्थानों पर मेले का आयोजन भिन्न-भिन्न तिथियों में पड़ता है

कुम्भ के समय ग्रह बनाते हैं शुभ योग

प्रयागराज में जब पूर्ण कुंभ मेला लगता है उस समय गुरु वृषभ राशि में होते हैं जो कि शुक्र की राशि है। शुक्र दैत्यों के गुरु के थे जिन्हें ज्योतिषशास्त्र में ऐश्वर्य भोग व प्रेम में वृद्धि करने वाला ग्रह माना जाता है। इनकी राशि में बृहस्पति के आने से मनुष्य के विचार सात्विक हो जाते हैं। आध्यात्मिक दृष्टि से मनुष्य की प्रवृति तमोगुणी, रजोगुणी व सतोगुणी मानी जाती है। रज व तम राजसी व तामसि प्रवृति के प्रतिक हैं जो कि मनुष्य मात्र के आध्यात्मिक विकास में बाधक माने जाते हैं। जब मनुष्य की प्रवृति सात्विक होती है तभी वह अपना आध्यात्मिक विकास कर पाता है। वृषभ राशि में गुरु ऐसा करने में सहायक होते हैं। वहीं सूर्य व चंद्रमा भी मकर राशि में होने पर ज्ञान व भक्ति की भावना का विकास करते हैं। गंगा, यमुना, गोदावरी, शिप्रा आदि पवित्र नदियों के समीप रहकर तो व्यक्ति की आस्था और भी बढ़ जाती है। ऐसे में अपने अल्प प्रयासों से ही श्रद्धालु धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों पुरुषार्थों को सहज ही प्राप्त कर सकते हैं।

आधुनिक विज्ञान और सनातनधर्म

आधुनिक विज्ञान और सनातनधर्म लेख के प्रारम्भ में हम स्पष्ट करना चाहते है हैं कि लेख का उद्देश्य किसी व्यक्ति विशेष अथवा समुदाय की भावनाओं को आहत करना नाही है। ना ही हमारा उद्देश्य सनातन धर्म शास्त्रों के अतिरिक्त किसी भी ज्ञान का अनुमोदन करना है परंतु क्योंकि प्रश्न धर्म की आस्था और सिद्धांतों पर उठाया गया है, हम सनातन धर्म और विज्ञान के सम्बंध को उजागर कर रहे हैं। वर्तमान समय में समस्त संसार में विज्ञान का प्रभाव है । प्रकृति के अनेक चमत्कारों को विज्ञान के सिद्धांतों के रूप में स्थापित करने के कारण मनुष्यों का विश्वास विज्ञान के सिद्धांतों पर अत्यधिक बढ़ गया है। यहाँ तक कि आस्था तथा धर्म द्वारा स्थापित धारणाओं को भी विज्ञान के सिद्धांतों पर परखने की कोशिश की जाती है । परंतु विज्ञान के सिद्धांतों पर कोई सवाल नही उठाया जाता क्योंकि पाठ्यक्रम में यही पढ़ाया जाता है और यही सब पढ़ कर धर्म की धारणाओं पर सवाल उठाना आधुनिकता का प्रतीक माना जाता है। परंतु विज्ञान की भी अपनी सीमाएँ हैं। विज्ञान ‘कैसे’ (how) के सिवाय ‘क्यो’ (why) का उत्तर एक सीमा तक ही दे सकता है । उस सीमा तक पहुँचने के पश्चात प्रकृतिके नियम (Law of nature) का बहाना बना कर प्रश्नो को सीमीत कर दिया जाता है । ऐसे चमत्कार ‘क्यों’ होते है, कौन सी अदृश्य, अलोकिक शक्ति कारण रूप से सबके भीतर निहित रह कर प्रकृति के नियमों को निर्धारित करती है, इसका पता विज्ञान अभी तक नही लगा पाया। परंतु अध्यात्मशास्त्र (Philosophy) को यह ज्ञान प्राप्त है । स्थूल सूक्ष्म प्रकृति की लीला को विज्ञान और कारण प्रकृति के अलौकिक रहस्यको अध्यात्मविद्या प्रकट करती है । सनातन धर्म मे ‘विज्ञान’ शब्द के अनेक प्रकार के लक्षण ओर अर्थ बताए गये हैं । उपनिषदादि शास्त्रों में अनुभवगम्य विद्या तथा पराविद्याके अर्थमें ‘विज्ञान’ शब्दका प्रयोग इस प्रकार देखने में आता है: ‘विज्ञानमानन्दं ब्रह्म’ – बृहदारण्यक्र उपनिषद ।। ‘विज्ञानसारथिर्यस्तु मनः प्रग्रहवान् नरः’ – कठोपनिषत् । ‘विज्ञार्न प्रज्ञानम्’ – ऐतरेय आरण्यक । ‘विज्ञानेन वा ऋग्वेद विजानाति’ – छान्दोग्य उपनिषद । ‘श्रज्ञानेनाष्टृतं लोकं विज्ञानं तेन मुह्यति’ । ‘विज्ञार्न निर्मल सूक्ष्र्म निर्विकल्पं यदव्ययम्। – कूर्म पुराण द्वितीय अध्याय । इन प्रकार सनातन धर्म में ‘विज्ञान’ शब्द का प्रयोग आत्मोपलब्धिमूलक ज्ञान, वर्तमान से अतीत शुद्ध निर्विकल्प ज्ञान यही अर्थ प्रतिपादित किया गया है। ‘ज्ञान तेऽहं सविश्ञानमिव वह्न्यायशेपतः’ ( गीता ७।२ ) ऐसा कह कर श्रीभगवान ने गीतामें अनुभवात्मक ज्ञान को ही ‘विज्ञान’ कहा है । अत: स्थूल और सूक्ष्म दोनों अर्थों में ही ‘विज्ञान’ शब्द का प्रयोग होता है यह स्पष्ट है परंतु वर्तमान समय में लोग केवल पाश्चात्य विज्ञान में ही विज्ञान की परिभाषा को सीमित करते हैं। Herbert Spencer (27 April 1820 – 8 December 1903) an English philosopher, biologist anthropologist, sociologist and prominent classical liberal political theorist of the Victorian era has said Science is partially unified knowledge and philosophy is completely unified knowledge ‘ अर्थात विज्ञान एक असम्पूर्ण ज्ञान है परंतु पूर्ण ज्ञान करानेवाला दर्शन शास्त्र ही है। इसी प्रकार प्रख्यात वैज्ञानिक John Tyndall whose initial scientific fame arose in the 1850s from his study of diamagnetism and later he made discoveries in the realms of infrared radiation and the physical properties of air has said: Science understands much of the intermediate phase of things that we call nature, of which it is the product, but science knows nothing of the origin or destiny of nature Who or what made the sun and gave his rays their alleged power ? Who of what made and bestowed upon the ultimate particles of matter their wondrous power of varied interaction ? Science does not know the mystery, though pushed back, remains unaltered (Fragments of Science Vol II ) अर्थात प्रकृति के कुछ हिस्सों को विज्ञान प्रकट कर सकता है, परंतु प्रकृति के आदि अनंत का विज्ञान को कोई ज्ञान नही है। सूर्य कैसे और किसने उत्पन्न किया। सूर्य की किरणो को असीम शक्ति किसने दी । अणु परमाणुओं को किसने बनाया और उनको अद्भुत असीम शक्ति किसने दी , यह सब प्रश्न विज्ञान में अनुत्तरित है। कुछ वैज्ञानिकों ने कुछ निष्कर्ष निकाला है परंतु यथार्थ से वह अभी भी दूर है। केवल ऐसा हो सकता है पर विचार किया गया है। इसी प्रकार Herbert Spencer ने भी विज्ञान और धर्म के विषय में कहा है- if the religion and science are to be reconciled, the basis of reconciliation must be this deepest, widest and certain of all facts – that the power that the universe manifests to us is utterly inscrutable. धर्म और विज्ञान यदि इन दोनोकी यदि एकता करनी ही तो एकता का यह स्तर होना होनी चाहिये कि समस्त विश्व मे गूढ़ रूपसे निहित और समस्त विश्वमे प्रकाशमान समस्त विश्वके हेतुभूत कारण शक्ति को हम जान ही नही सकते । अर्थात इस शक्ति को जानना विज्ञान के बस से बाहर है, इसका वर्णन केवल धर्म ही कर सकता है। पश्चिम देशों में केवल विज्ञान का ही प्रचार हुआ है, अध्यात्मविद्या या धर्म का नही । धर्म के नाम पर पाश्चात्य संस्कृति केवल एक ही पुस्तक का अनुमोदन करती है। परंतु सनातन धर्म में प्राचीन महर्षियो ने विज्ञान तथा अध्यात्मविद्या दोनो का प्रसार किया। इसी कारण सनातन धर्म शास्त्रों में लौकिक प्रकृतिराज्य तथा अलौकिक ब्रह्मराज्य दोनो का तत्व ज्ञान निरूपण उत्तम तथा पूर्ण रीतिसे किया जा सका है। आयुर्वेद, चिकित्साशास्त्र तथा वेदोक्त मंत्र इसके स्पष्ट प्रमाण हैं। इस आधार पर परखा जाए तो केवल सनातनधर्म ही पूर्ण विज्ञानानुकूल (Scientific) धर्म है। क्योकि यह कोई दस-बीस नियमो से बना हुआ ‘ सम्प्रदाय’ या ‘मजहव’ नही है l इसके अनन्त नियम हैं। जीव जगत में जन्म लेकर परमात्मा मे लीन होने तक क्रमोन्नति के पथ मे चलनेके लिये मनुष्य अनेक जन्मों मे स्वभावतः जिन नियमोका आश्रय करता है, उन सभी को सनातन धर्म समाविष्ट करता है। ये नियम प्रकृति के निम्नस्तर में कुछ और है, मध्यस्तर मे कुछ और है और उच्च, उच्चतर, उच्चतम स्तरो मे कुछ विशेष ही होते है। ये सब प्रकृतिक नियम है और विज्ञान भी प्रकृति भी के नियम को ( Law of nature ) ही व्यक्त करता है । अतः सनातन धर्म विज्ञान अनुमोदित धर्म है । इसका प्रत्यक्ष प्रमाण विश्व भर में आयुर्वेद, चिकित्सा शास्त्र और योग की धूम है। अतः उपरोक्त वर्णन से स्पष्ट प्रमाणित होता है कि विज्ञान धर्म से भिन्न या विपरीत नही है, किन्तु उसके एक अंश का प्रकाशक मात्र है। प्रकृतिके स्थूल, सूक्ष्म, कारण और तुरीय ये चार विभाग होते है। इनमेंसे स्थूल विभाग का और सूक्ष्मके कुछ अंशका प्रकाशन विज्ञान के द्वारा होता है । बाकी सूक्ष्म, कारण, तुरीय इन तीनोंका प्रकाश करनेवाला अध्यात्मज्ञान या धर्म है। जहां पर प्रकृति पुरुष मे विलीन है और पुरुषसे उसकी भिन्नना प्रतीत नही होती है, उसका नाम तुरीय दशा है। जहां पर प्रकृति पुरुपकी शक्तिको पाकर ब्रह्मा-विष्णु-रुद्र क्रमसे अनन्तविश्वकी जननी वनती है वह उसकी कारण दशा है सूक्ष्मदशामे विविध दैवीशक्ति, विद्युत्शक्ति आदि रूपसे प्रकृतिका कार्य देखनेमे आता है। इनमे से केवल विद्युत् शक्ति आदिके कार्य का पता विज्ञान को लगा है। पृथ्वी की अन्य शक्ति कैसे कार्य करती है वह विज्ञान बता सकता है किन्तु किस अचिन्त्य मौलिक शक्तिके प्रभावसे, क्यो इस प्रकारसे कार्य करती है, वह विज्ञान बताने में असमर्थ है। इसी कारण हमने कहा है कि सनातनधर्म आधुनिक विज्ञानसे विपरीत नही है। आधुनिक विज्ञान उसके एक अंशका प्रतिपादक है, वह एक अंश तथा प्रकृतिके अन्य तीन अंश और प्रकृति में विराजमान सत्-चित्-आनन्दरूप परमात्मा सभीका प्रतिपादक, पथभदर्शक श्रीसनातनधर्म है । इसी प्रकारसे आधुनिक विज्ञान और सनातनधर्म का चिरन्तन सम्बन्ध सिद्ध किया गया है और इस तथ्य को पश्चिम देश के विद्वानो ने स्वीकार भी किया है । ” Religion and science are necessary co relatives. They stand respectively for those two antithetical modes of consciousness which cannot exists as under. – Spenser धर्म और विज्ञान के भीतर आवश्यक सम्बंध विद्यमान है, वे याथक्रम ऐसी दो अनुभूति के उपाय रूप में रहते हैं जिनको प्रथक करना असम्भव है। Science is a part of Religion, both astronomy and medicines received their first impulse from the evgencies of religious worship. The laws of phonetics were investigated because the wrath of the gods followed the wrong pronounciation of a single letter of the sacrificial formulas. Grammar and etymology had the task of securing the right understanding of the holy texts. Geometry was developed in India from the rules for the construction of alters. Spencer’s Principles of Sociology Vol III विज्ञान धर्म के एक अंश का प्रतिपादक है । ज्योतिष शास्त्रशास्त्र और चिकित्साशास्त्र रूपी दोनो की उत्पत्ति धार्मिक पूजा से ही है । ध्वनि विज्ञान की उत्पतिका कारण वैदिक यज्ञ मे वेद मन्त्र का ग़लत उच्चारण करके भगवान के क्रोध से बचना था । व्याकरण आदि शब्दशास्त्र धार्मिक पुस्तको के यथार्थ ज्ञान को व्याखित कराने के लिये ही बनाए गए हैं। यज्ञअधि निर्माणके नियमो के आधार पर ही जयमिति या रेखा गणित नामक विज्ञान शास्त्रकी उन्नति हुई है। इस प्रकार पश्चिमी वैज्ञानिकों, विद्वानो ने भी विज्ञान को धर्म का एक अंश मात्र ही बताया है जिसकी व्याख्या वैज्ञानिक सिद्धांत करने में असमर्थ है उसकी व्याख्या धार्मिक अवधारणाएँ या सिद्धांत अत्यंत सरलता से कर सकते हैं। आशा है की उपरोक्त लेख से विज्ञान से प्रेरित होकर धर्म पर प्रश्न उठाने वालों को कुछ सीख मिलेगी तथा धर्म से विपरीत प्रश्नो को कुछ विराम मिलेगा। ।।ॐ नमो भगवते वसुदेवाय:।।

सनातन धर्म क्या है? धर्म की क्या परिभाषा है?

धर्म की क्या परिभाषा है? सनातन धर्म क्या है? क्या तर्कों द्वारा धर्म पर प्रश्न चिन्ह लगाना उचित है ? इस विषय के प्रश्न के उत्तर देते समय हमें महाभारत के अनुसाशन पर्व के दानधर्म पर्व का स्मरण आता है जिसमे भीष्म पितामह ने धर्मराज युधिष्ठिर को सांत्वना देने के लिए अनेक प्रकार के धर्मों का वर्णन विभिन्न विषयों तथा कथाओं के द्वारा किया था (राजधर्म का वर्णन भीष्म पितामह शांतिपर्व में ही कर चुके थे)। दानधर्म पर्व में १६६ अध्याय और ७५५६ श्लोको के द्वारा भीष्म पितामह ने धर्मराज युधिष्ठिर को धर्म तथा दान की पहचान तथा महत्वता की व्याख्या की। जिस ‘धर्म‘ की परिभाषा को भीष्म पितामह जैसे, महापंडित, ज्ञानी, सर्वगुण संपन्न देवता भी एक पृष्ठ में ना दे पाए उस ‘धर्म‘ को परिभाषित करने का सामर्थ्य हम जैसे किसी तुच्छ मनुष्य में नहीं है। परन्तु फिर भी हम इसका प्रश्न के उत्तर देने का प्रयास इस लेख द्वारा कर रहे हैं। सर्वप्रथम, धर्म को अंग्रेजी भाषा के शब्द Religion के साथ जोड़ कर नहीं देखना चाहिए। Religion शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द religio से हुई है जिसको re (again ) + ligare (to connect or bind) means which binds one from doing any thing wrong निकलता है जो की हिन्दू धर्म शास्त्रों में वर्णित धर्म की परिभाषा से पृथक है। Religion शब्द का अर्थ नैतिक जीवन को उत्तम बनाना भी हो सकता है। परन्तु हिन्दू धर्म शास्त्रों धर्म शब्द का अर्थ अनंत असीम है। धर्म शब्द धृ धातु से बना है जिसका अर्थ होता है – “जो शक्ति चराचर समस्त विश्व को धारण करे उसी का नाम धर्म है। धर्म उस शक्ति को भी कह सकते हैं जो जड़ अथवा चेतन समस्त विश्व की रक्षा करे। धर्मो: विश्वस्य जगत: प्रतिष्ठा – तैतरीय आरण्यक का यह मन्त्र इसी का द्योतक है की समस्त विश्व की स्थिति धर्म के द्वारा ही होती है। सम्पूर्ण हिन्दू धर्म शास्त्रों में केवल धर्म और अधर्म की की महत्वता पर ही विचार किया गया है – यही धर्म की व्यापकता का लक्षण है परन्तु पश्चिमि शिक्षा के फलस्वरुप हम हम धर्म के व्यापक लक्षण को भूल कर उसे अतिसंकीर्ण “religion” या “मजहब” समझते हैं, यही हमारी बड़ी भूल है। महाभारत के कर्ण पर्व में भगवन श्री कृष्ण ने कहा है: धारणाद्धर्ममित्याहुधर्मो धारयते प्रजा:। यत्स्याद्धारण संयुक्तं स धर्म इति निष्चय:।। धर्म धारण करता है इसलिए धर्म को धर्म कहा जाता है, जो धारण करने की योग्यता रखता है वही धर्म है ईश्वर की जो अलौकिक शक्ति सम्पूर्ण संसार की रक्षा करती है उसी का नाम धर्म है। जो शक्ति पृथ्वी के अंदर रहकर उसके पृथित्व को, जल में रह कर उसके जलत्व को तथा तेज में रहकर उसकी उष्णता को नियंत्रित करती है, जिस शक्ति के ना रहने से पृथ्वी के समस्त पदार्थ अपने स्वरूपों से पलट सकते हैं, जो शक्ति इस पंचयभूत को एवं मनुष्य, पशु, पक्षी, वृक्ष और गृह नक्षत्र आदि पंचयभौतिक पदार्थों को अपने स्वरुप में स्थित रखे वही धर्म है। जिस शक्तिने जीव को जड़ से पृथक कर रखा है और जो प्रतिदिन विभिन्न जीवों की स्वतन्त्र सत्ता की रक्षा कर रही है एवं जो शक्ति वृक्ष आदि स्थावर से लेकर जीव को क्रमशः उद्दृत करती हुई अन्त में मोक्षप्रास करा देती है, उसी एकमात्र व्यापक शक्ति का नाम धर्म है । इसलिये वैशेषिक दर्शन के कर्ता महर्षि कणाद ने कहा है कि: यतोऽभ्युदयनिःश्रेयससिद्धिः स धर्मः । जिससे ऐहिक तथा पारलौकिक अभ्युदय और मोक्ष प्राप्त हो, वही धर्म है । धर्म ही जगत में अभ्युदय और नि:श्रेयस देनेवाला प्रकृतिके अनुकूल धर्मका अनुशासन है । विश्वको धारण करनेवाली यह शक्ति नित्य है, इसी कारण धर्म का नाम सनातन धर्म है। यज्ञ, दान, तप, कर्म, उपासना, ज्ञान आदि इसके अनेक अंग होते है । सनातनधर्म के अंगो और उपांगो के विस्तार पर जब विज्ञानवित पुरुषगण ध्यान देते है तो उनको प्रमाणित होता है कि सनातनधर्म के किसी न किसी अङ्गोपाङ्गकी सहायता से पृथिवी भर के सभी धर्म, पन्थ और सम्प्रदायो को धर्म साधनो की सहायता प्राप्त हुई है । इसी मूल धर्म के आधार पर शाखा प्रशाखा या इसकी छायारूपसे ससार के सभी ‘Religion’ या ‘मजहब‘ बने हैं जापानियोंकी पितृ पूजा इसी धर्म के भीतर है, प्राचीन रोमन कैथोलिक की एंजेल (Angel ) उपासना रूप से देवोपासना तथा पारसियो के जोरोस्तार (Zoroastrian) धर्मान्तर्गत समुद्र अग्नि आदि त्रिभूति उपासना रूपसे देवोपासना भी इसीके भीतर है। मुहम्मदीय और ईसामसीह भक्तिप्रधान उपासना भी इसी की छाया से बनी हुई है । बौद्धो तथा जैनो की बुद्धदेवपूजा, ऋषभदेवपूजा आदि तथा तीर्थङ्करपूजा अवतारोपासना रूप से इसी के भीतर है। शक्ति, शैव, वैष्णव आदि साम्प्रदायिक जनो की पश्चदेवोपासना तो इसके भीतर है ही, सिख पंथ की गुरु पूजा भी विभूति पूजा तथा अवतारोपासना रूपसे इसी के भीतर है और राजयोगपरायण वैराग्यवान साधक की निर्गुण निराकार अन्तिम ब्रह्मपूजा भी इसी के भीतर है। जो धर्म अनादि काल से हिन्दुओं में से प्रवृत है और जो धर्म आगे भी अनंत काल तक रहेगा, वही सदा का धर्म सनातन धर्म है। इस पृथ्वी पर अनेक धर्माभास उत्पन्न हुए हैं और आगे भी होते रहेंगे परन्तु ‘जातस्य ही ध्रुवो मृत्य:‘ अर्थात उत्पन्न होने वाले का विनाश अवश्य है यही प्रकृति का नियम है। इस पृथ्वी पर केवल सनातन धर्म का ही कोई जन्मदाता नहीं है, सनातन धर्म का जन्म किसी तिथि में नहीं हुआ। अतः अजन्मा होने के कारण सनातन धर्म ही आदि और अनंत है – साक्षात् श्री भगवान् की शक्ति है। जब भगवान् सनातन हैं, तो उनका धर्म भी सनातन है। यदि यह कहा जाए की धर्म तो नित्य है फिर उससे स्वर्ग आदि अनित्य लोकों की प्राप्ति कैसे संभव है तो इसका उत्तर यह है की जब धर्म का संकल्प नित्य होता है अर्थात अनित्य कामनाओं का त्याग करके निष्काम भाव से धर्म अनुष्ठान किया जाता है, उस समय किये हुए धर्म से नित्य परमात्मा की प्राप्ति होती है। सभी मनुष्यों के शरीर एक से होते हैं और सबकी आत्मा भी समान है किन्तु धर्म युक्त संकल्प और आचरण ही मनुष्य के उत्थान का कारण बनता है। समय, काल और विचार के साथ धर्म भी बदलता रहता है और यही सनातन धर्म की विशेषता है की वह प्रत्येक धारक को अपने अनुसार धर्म को धारण करने की स्वतंत्रता देता है। सतयुग में धर्म तपस्या था, द्वापर में यज्ञ, त्रेता में उपासना और कलयुग में केवल प्रभु नाम समरण से धर्म का पालन संभव है। इसी प्रकार गृहस्थ आश्रम का धर्म अन्य तीन आश्रमों – ब्रह्मचर्य, वानप्रस्थ तथा सन्यास से पृथक है और विद्यार्थी का धर्म, व्यस्क से और व्यस्क का वृद्ध से अलग है। सनातन धर्म में समस्त कर्मों के चार लक्ष्य बताये गए हैं- काम , अर्थ धर्म और मोक्ष। पृथ्वीलोक पर जन्मा मनुष्य इन्ही चार कारणों को धर्म लक्ष्य बना कर भगवान् की उपासना करता है। “यदा वै करोति सुखमेव लब्ध्वा करोति नासुखंलब्ध्वा करोति, सुखमेव लब्ध्वा करोति” अर्थात् सुख ही को लक्ष्य करके जीवकी सकल चेष्टा होती है। दु:खके लिये किसी की भी कोई चेष्टा नही होती है। अतः धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष मे से किसी वर्ग में भी प्रवर्ति सुख के लिये ही होती है। अर्थ, काम लक्ष्य परायण मनुष्य जाति अर्थ, काम मे ही परमसुख मानकर उसी के लिये पुरुषार्थ करती है । धर्म मोक्ष लक्ष्य परायण मनुष्य जाति धर्म मोक्ष में ही आत्यन्तिक सुख जानकर उसीके लिये पुरुषार्थ मे प्रवृत्त हो जाती है। लक्ष्य सुखलाभ करना सभी का है केवल अधिकार, आचार तथा विचार का अंतर है। सनातन धर्म में अर्थ, काम की अपेक्षा धर्म, मोक्ष को ही श्रेष्ठतर लक्ष्य माना गया है तथा अर्थ, काम के प्रति सनातन धर्मियों को उपेक्षा करने का उपदेश दिया है। केवल अर्थ, काम को ही अपना सुख मान लेने वाले जीव के चित्त मे विषयवासना उत्पन्न होती है और जीव अर्थ काम का दास होकर इन्द्रियसुखके लिये उन्मत्त हो जाता है। विषयवासनाका स्वरूप यह है कि न जातु कामः कामानामुपभोगेन शाम्यति । हविषा कृष्णवत्र्मेव भूय एवाभिवर्द्धते ॥ विषयभोगके द्वारा विषयवासना निवृत्त नही होती है, किंतु धृतपुष्ट अग्नि की तरह उत्तरोत्तर वृद्धिगत होती रहती है । इसलिये जिस मनुष्य जाति का अर्थ काम ही लक्ष्य है, धर्मानुकूल अर्थ, काम लक्ष्य नही है वह मनुष्य जाति वासना की दास बन कर उसी की तृप्ति के लिये संसार में किसी प्रकार के अधर्माचरणमे भी संकोच नही करती है। अर्थ मे आसक्त जीव मिथ्या, प्रतारणा, चोरी, कपट व्यवहार, दूसरे को ठगना, नरहत्या आदि सभी पाप कर्म के द्वारा अर्थसंग्रहमें रात दिन व्यग्र रहता है। काम में आसक्त जीव उससे भी अधिक पशुभावको प्रास हो जाता है। इसलिये जिस मनुष्य जाति मे धर्महीन काम ही लक्ष्य है वहां के स्री पुरुषो मे व्यभिचारका विस्तार होना स्वतः सिद्ध है। इसके कितने ही उदाहरण हम प्रत्यक्ष रूप से वर्त्तमान विश्व में देख सकते है। यही कारण है की सनातन धर्म में केवल अर्थ काम के लिए ही उपासना ना करके धर्मानुकूल अर्थ काम को ही उपासना का लक्ष्य रखने को कहा है ताकि धर्म रहित अर्थ काम का जो दुःखमय परिणाम है वह जीव को ना प्राप्त हो कर धर्मानुकूल अर्थकाम के द्वारा आनंदमय मोक्ष की प्राप्ति हो। परमपिता परमेश्वर को समझने का प्रयास करना, उनके विभिन्न नामों का भजन – स्मरण- कीर्तन, भगवान् में निष्ठा रख कर उनका पाद्य अर्चन, मनुष्यों में प्रेम तथा समभाव, विश्व के कल्याण की भावना, अपने आश्रम में वर्णित सदाचार का पालन कर भगवत भक्ति के द्वारा अंत में मोक्ष की प्राप्ति का प्रयास ही सनातन धर्म है। अत: सनातन धर्म को छोड़कर अन्य पंथो, सम्प्रदायों और मजहबों की अवधारणाओं में विश्वास कर सनातन धर्म की ही निन्दा करना अज्ञानमात्र है। महाभारत में भी कहा गया है : संशय: सुगमस्त्र दुर्गमसत्स्य निर्णय:। दृष्टं श्रुतमनन्तं हि यत्र संशय दर्शनम।। धार्मिक विषयों में संदेह उपस्थित करना अत्यंत सुगम है किन्तु उसका निर्णय करना बहुत कठिन होता है प्रत्यक्ष और आगम दोनों का ही कोई अंत नहीं है। दोनों में ही संदेह उत्पन्न किया जा सकता है। प्रत्यक्षं कारणं दृष्ट्वा हैतुका: प्राज्ञमनिन:। नास्तीत्येवं व्यवसान्ति सत्यं संशयमेव च।। अपने को बुद्धिमान माननेवाले हेतुवादी तार्किक प्रत्यक्ष कारण की और ही दृष्टि रखकर परोक्ष वास्तु का आभाव मानते हैं। सत्य होने पर भी उसके अस्तित्व में संदेह करते हैं तदयुक्तं व्यवस्यन्ति बाला: पंडित मानिन: । अथ चेन्मन्यसे चैकं कारणं किं भवेदिति ।। शक्यन दीर्घेण कालेन युक्तेनातींद्रतेन च प्राणयात्रामने कां च कल्पमानेन भारत । तत्वपरेनैव् नान्येन शक्यं ह्योतस्य दर्शनम।। किन्तु वे बालक हैं। अहंकारवश अपने को पंडित मानते हैं। अत: वे जो पर्वोक्त निश्चय करते हैं, वह असंगत है आकाश में नीलिमा प्रत्यक्ष दिखाई देने पर भी वह मिथ्या ही है, अत: केवल प्रत्यक्ष के बल से सत्य का निर्णय नहीं किया जा सकता। धर्म इश्वर और परलोक आदि के विषय में शास्त्र प्रमाण ही श्रेष्ठ हैं; क्योंकि अन्य प्रमाणों की वहां तक पहुँच नहीं हो सकती। यदि यह कहा जाये की एकमात्र ब्रह्म ही जगत का कारण कैसे हो सकता है तो इसका उत्तर यह है की मनुष्य आलस्य छोड़ कर दीर्घकाल तक योग का अभ्यास कर, तत्व का साक्षात्कार करने के लिए निरंतर प्रत्यनशील बना रहे, तभी इस तत्व का दर्शन कर सकता है। अंत में महर्षि वेदव्यास जी की भविष्यवाणी – संघे शक्ति कलौ युगे – एकता द्वारा ही कलियुग में राजकीय शक्ति का लाभ हो सकता है याद आती है। यदि हमें कलियुग में अपना अस्तिव्त बनाये रखना है तो समस्त हिन्दू धर्माचारियों को अपने समस्त भेदभाव भुला कर एक होने के आवश्यकता है। ।।ॐ नमो भगवते वासुदेवाय:।।

पुराण शास्त्र

दर्शन शास्त्र, स्मृति शास्त्र आदि की तरह पुराण शास्त्र भी उपयोगी शास्त्र हैं क्योंकि वेदों में जिन तत्वों का वर्णन कठिन और गूढ़ वैदिक भाषा द्वारा किया गया है, पुराण में उन्ही गूढ़ तत्वों को सरल लौकिक भाषा में समझाया गया है। यही कारण है की पुराण शास्त्रों को इतना महत्त्व दिया जाता है। छांदग्योनिशद में कहा गया है – ऋग्वेदं भगवोऽध्येमी यजुर्वेदम सामवेदमथ्ववरणं। चतुर्थमितिहासं पुराणं पञ्चमं वेदानां वेदम।। मैं ऋग यजु साम और अथर्ववेद को जानता हूँऔर पांचवां वेद इतिहास पुराण भी मैं जानता हूँ। श्री भगवान् वेदव्यास जी कहते हैं की महापुराण अट्ठारह है: अष्टादशं पुराणानि पुराणज्ञा: प्रचक्षते। ब्रह्मं पाद्यं वैष्णवं च शैवं भागवतं तथा ।। तथान्यं नारदीयश्च मार्कण्डेश्च सप्तमम । आग्नेयमष्टचैव भविष्यं नवमं स्मृतम ।। दशम ब्रह्मवैवर्तं लैंगमेकडशं स्मृतम । वाराहं द्वादशचैव स्कान्दं चैव त्रयोदशम ।। चतुर्दशम वामनश्चय कौमर पंचदशं; स्मृतम। मात्स्यं च गरूड़श्चैव् ब्रह्मांडश्चैव् तत परम ।। ब्रह्मपुराण, पद्मपुराण, विष्णु पुराण, शिव पुराण, भागवत पुराण, नारद पुराण, मार्कण्डेय पुराण, अग्नि पुराण, भविष्य पुराण, ब्रह्मवैवर्तपुराण, लिंग पुराण, वराह पुराण, स्कन्द पुराण, वामन पुराण, कूर्म पुराण, मतस्य पुराण, गरुड़पुराण, ब्रह्माण्ड पुराण यही अट्ठारह महापुराण हैं इसी प्रकार उपपुराण भी अट्ठारह हैं: आद्यं सनत्कुमारोक्तं नारसिंहमथापरम्। तृतीयं वायवीयं च कुमारेणनुभाषितम ।। चतुर्थं शिव धर्माख्यां साक्षानंदीशभाषितम । दुर्वासोक्तमाश्चरं नारदीयमत: परम ।। नंदिकेश्वरयुग्मश्च तथैवाशनसेरितम । कापिलं वरुणं सामबं कालिकाह्वयमेव च।। माहेश्वरं तथा देवी ! देवं सव्वार्थसायकम । पराषरोक्तमपरं मारीचं भास्कराह्वयम ।। सनत्कुमारोक्त आद्य, नारसिंह, कुमारोक्त, वायवीय, नंदीश भाषित, शिवधर्म, दुर्वासा, नारदीय, नंदिकेश्वर के दो, उशना, कपिल, वारुण, साम्ब, कालिका, महेश्वर, दैव, पराशर, मारीच, भास्कर यह अट्ठारह उपपुराण हैं। उपरोक्त महापुराण तथा, उपपुराणों के अतिरिक्त और भी अनेक पुराण मिलते हैं जो की औपपुराण हैं, जिनकी संख्या भी अट्ठारह है। इस प्रकार से पुराणशास्त्र महापुराण, उपपुराण, औपपुराण, इतिहास और पुराणसंहिता इन पांच भागों में विभक्त है। पुराणों के अतिरिक्त जो इतिहासग्रन्थ हैं – श्री रामायण व् महाभारत वे भी पुराणों के अंदर ही हैं। हरिवंश पुराण महाभारत के अंतर्गत ही माना जाता है। पुराण और इतिहास शास्त्रों को कुछ आचार्यों ने कर्म विज्ञान प्रधान – महाभारत , ज्ञानविज्ञान प्रधान – रामायण और पंचोउपासना प्रधान – अन्य पुराण में भी विभक्त किया है। वास्तव में अन्य पुराणों में पंचोउपासना की पुष्टि की गयी है। जगजनम को आदिकारण मान कर ही विभिन्न पुराणों में श्रीविष्णु, श्री सूर्य, श्री भगवती, श्री गणपति और श्री सदाशिव की उपासना का समर्थन किया गया है। प्रधान देवताओं की स्तुति के कारण ही विभिन्न मतों के द्वारा विभिन्न पुराणों को महापुराण माना जाता है। महापुराणों के लक्षण का वर्णन इस प्रकार किया गया है सर्गश्च प्रतिसर्गश्च वंशो मन्वन्तराणि च । वंशानुचरितं चैव पुराणं पञ्चलक्षणम् ॥ महाभूतों की सृष्टि, समस्त चराचर की सृष्टि, वंशावली, मन्वन्तर वर्णन और प्रधान वंशो के व्यक्तियों का विवरण, पुराणों के ये पांच लक्षण हैं। पुराणों में तीन प्रकार की भाषा वर्णित की गयी है – समाधि, लौकिक तथा परकीय। इसी कारण से पुराणों के मूल रहस्य को समझने में भ्रान्ति होती है जो उपयुक्त ज्ञान के द्वारा दूर हो सकता है। पुराणों में अनेकों ऐसी कथाएं मिलती हैं जो लौकिक भाषा में वर्णित हैं परन्तु सभी का आध्यात्मिक भाव निकालने पर कथाओं का सही भाव निकला जा सकता है। उदाहरण के लिए शिवमहापुराण में एक कथा आती है की नारायण जल के अंदर सोये हुए थे, उनके नाभि कमल से ब्रह्मा जी प्रकट हुए फिर उन दोनों में यह मतभेद हो गया की कौन बड़े हैं, उनमे वादविवाद चल ही रहा था की उनके बीच एक प्रचंड ज्योतिर्लिंग प्रकट हो गया, ब्रह्मा जी ऊपर की ओर गए और विष्णुजी नीचे की ओर परन्तु कोई भी उसके आदि या अंत का पता नहीं लगा पाया, जिससे उनको पता चला की उनके बीच कोई तीसरा भी है जो सबसे श्रेष्ठ हैं, इस बात को जान कर उन्होंने विवाद बंद कर दिया इत्यादि। यदि लौकिक भाषा में पढ़ा जाए जो इसका साधारण अर्थ यह निकलता है की भगवान् सदाशिव ही तीनो देवताओं में सर्वप्रथम है परन्तु यदि आध्यात्मिक दृष्टि से इसका अर्थ यह निकलता है यह अनादि अनंत शरीररूपी विराटपुरुष ही सच्चिदानंद परब्रह्म का चिन्ह या लिंग है। क्योंकि यह कथा शिवपुराण की है और पुराण भावप्रधान ग्रन्थ है तो शिवपुराण के शिव साधारण शिव नहीं है परन्तु परब्रह्म परमात्मा स्वरुप हैं। यही अर्थ श्रीविष्णुपुराण, ब्रह्म पुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण आदि में वर्णित कथाओं का निकलना चाहिए। इति पुराणशास्त्र। ।।ॐ नमो भगवते वासुदेवाय:।।

Makar Sankranti 2025: तारीख, दान पुण्य मुहूर्त

मकर संक्रांति 2025: तारीख, दान पुण्य मुहूर्त संक्रांति के पर्व का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। जब भी सूर्य मकर राशि में जाते हैं तो उसे मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है। मकर संक्रांति का पर्व देशभर में अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है। वैसे तो साल भर में 12 संक्रांति आती हैं लेकिन, इन सभी में से मकर संक्रांति का विशेष महत्व बताया गया है। देश के कई अलग-अलग हिस्सों में मकर संक्रांति को अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है। कब है मकर संक्रांति 2025 ? पंचांग के अनुसार, सूर्य 14 जनवरी को सुबह 8 बजकर 55 मिनट पर धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करेंगे। ऐसे में मकर संक्रांति का पर्व 14 जनवरी 2025 मंगलवार के दिन मनाया जाएगा। मकर संक्रान्ति मुहूर्त संक्रान्ति करण: बालव संक्रान्ति दिन: Tuesday / मंगलवार संक्रान्ति अवलोकन दिनाँक: जनवरी 14, 2025 संक्रान्ति गोचर दिनाँक: जनवरी 14, 2025 संक्रान्ति का समय: 09:03 ए एम, जनवरी 14 संक्रान्ति घटी: 6 (दिनमान) संक्रान्ति चन्द्रराशि: कर्क Karka संक्रान्ति नक्षत्र: पुनर्वसु (चर संज्ञक) Punarvasu मकर संक्रांति 2025 दान पुण्य शुभ मुहूर्त ? 14 जनवरी 2025 मंगलवार के दिन दान पुण्य के लिए सुबह में 7 बजकर 15 मिनट से लेकर 1 बजकर 25 मिनट का समय दान पुण्य के लिए सबसे उत्तम समय रहेगा। ब्रह्म मुहूर्त में 5 बजकर 27 मिनट से 6 जकर 21 मिनट तक भी स्नान दान पुण्य किया जाता है। अमृत चौघड़िया सुबह 7 बजकर 55 मिनट से 9 बजकर 29 मिनट तक भी आप दान पुण्य कर सकते हैं।

Makar Sankranti 2025: Dates,Timings,Significance

मकर संक्रान्ति संक्रान्ति का दिन भगवान सूर्य को समर्पित है और इस दिन को सूर्य देव की पूजा के लिये महत्वपूर्ण माना जाता है। यद्यपि हिन्दु कैलेण्डर में बारह संक्रान्तियाँ होती हैं परन्तु मकर संक्रान्ति अपने धार्मिक महत्व के कारण सभी संक्रान्तियों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। मकर संक्रान्ति की लोकप्रियता के कारण, ज्यादातर लोग इसे केवल संक्रान्ति ही कहते हैं। मकर संक्रान्ति का प्रारम्भ एवम् महत्व मकर संक्रान्ति एक महत्वपूर्ण दिन है क्योंकि वैदिक ज्योतिष के अनुसार इस दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है। हिन्दु धर्म में सूर्य को देवता माना जाता है जो कि पृथ्वी पर सभी जीवित प्राणियों का पोषण करते हैं। अतः इस दिन सूर्य देव की पूजा की जाती है। यद्यपि हिन्दु कैलेण्डर में उन सभी बारह दिनों को शुभ माना जाता है जब सूर्य देव एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं। इन बारह दिनों को सूर्य देव की पूजा करने, पवित्र जल निकायों में धार्मिक स्नान करने और दान इत्यादि कार्यों को करने के लिये महत्वपूर्ण माना जाता है। परन्तु जिस दिन सूर्य देव मकर राशि में प्रवेश प्रारम्भ करते हैं उस दिन को सूर्य देव की पूजा के लिये वर्ष का सर्वाधिक शुभ दिन माना जाता है। बहुत से लोग मकर संक्रान्ति को गलत तौर पर उत्तरायण के दिन के रूप में मनाते हैं। जबकि मकर संक्रान्ति और उत्तरायण दो अलग-अलग खगोलीय और धार्मिक घटनायें हैं। हालाँकि हज़ारों वर्ष पहले (लाहिरी अयनांश के अनुसार वर्ष 285 सी.ई. में) मकर संक्रान्ति और उत्तरायण दोनों का दिन एक ही था। उत्तरायण शब्द उत्तर और अयन का संयोजन है जिसका अर्थ क्रमशः उत्तर और छह महीने की अवधि है। अत: उत्तरायण की परिभाषा के अनुसार यह शीत अयनकाल के दिन आता है। इस दिन सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने के कारण मकर संक्रान्ति का विशेष महत्व है और उत्तरायण इसीलिये महत्वपूर्ण है क्योंकि सूर्य छः माह की अपनी दक्षिणी गोलार्ध की यात्रा पूर्ण कर उत्तरी गोलार्ध में प्रवेश करते हैं। आधुनिक भारत में, लोगों ने किसी भी धार्मिक गतिविधियों के लिये शीत अयनकाल का पालन करना बन्द कर दिया है, यद्यपि भीष्म पितामह ने अपने शरीर को छोड़ने के लिये उत्तरायण अर्थात शीत अयनकाल को ही चुना था। महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि उत्तरायण का दिन महाभारत युग में भी मकर संक्रान्ति के दिन के साथ मेल नहीं खा रहा था। उपरोक्त विवरण के आधार पर हम कह सकते हैं कि वैदिक ज्योतिष के अनुसार सूर्य देव की पूजा करने के लिये शीत अयनकाल का दिन भी धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण है। मकर संक्रान्ति फसल कटाई का प्रमुख त्योहार है, यह भी एक गलत धारणा है। मकर संक्रान्ति का दिन लगातार शीत अयनकाल से दूर होता जा रहा है। उदाहरण के लिये वर्ष 1600 में, मकर संक्रान्ति 9 जनवरी को थी और वर्ष 2600 में, मकर संक्रान्ति 23 जनवरी को होगी। 2015 से 5000 वर्षों के बाद, अर्थात वर्ष 7015 में मकर संक्रान्ति 23 मार्च को मनायी जायेगी, जो कि भारत में सर्दियों के मौसम और वसन्त सम्पात के काफी समय बाद होगी। इससे ज्ञात होता है कि संक्रान्ति या अन्य हिन्दु त्यौहारों का मौसम के अनुसार मनाये जाने से कोई सम्बन्ध नहीं है। यद्यपि वर्तमान समय में भारत के कुछ क्षेत्रों में फसल कटाई का मौसम मकर संक्रान्ति के दौरान पड़ता है और इससे संक्रान्ति के उत्सव पर उत्साह में वृद्धि होती है। संक्रान्ति के देवता संक्रान्ति के अवसर पर सूर्य की देवता रूप में पूजा की जाती है। दक्षिण भारत में, संक्रान्ति के अगले दिन भगवान कृष्ण की भी पूजा की जाती है। दक्षिण भारत में प्रसिद्ध मान्यताओं के अनुसार, भगवान कृष्ण ने मकर संक्रान्ति के अगले दिन गोवर्धन पर्वत को उठाया था। देवताओं के अलावा मकर संक्रान्ति के अवसर पर पालतू पशुओं जैसे कि गाय और बैलों की पूजा की जाती है। संक्रान्ति दिनाँक और समय मकर संक्रान्ति का दिन हिन्दु सौर कैलेण्डर के अनुसार तय किया जाता है। मकर संक्रान्ति तब मनायी जाती है जब सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है और यह दिन अधिकांश हिन्दु कैलेण्डरों में दसवें सौर माह के प्रथम दिन पड़ता है। वर्तमान में संक्रान्ति का दिन ग्रेगोरियन कैलेण्डर के अनुसार 14 जनवरी या 15 जनवरी को पड़ता है। यदि संक्रान्ति का क्षण सूर्यास्त से पहले आता है तो संक्रान्ति को उसी दिन मनाया जाता है अन्यथा अगले दिन मनाया जाता है। संक्रान्ति त्यौहारों की सूची अधिकांश क्षेत्रों में संक्रान्ति उत्सव दो से चार दिनों तक चलता है। इन चार दिनों में प्रत्येक दिन संक्रान्ति उत्सव अलग-अलग नामों और अनुष्ठानों के साथ मनाया जाता है। दिन 1 - लोहड़ी, माघी, भोगी पण्डिगाई दिन 2 - मकर संक्रान्ति, पोंगल, पेड्डा पाण्डुगा, उत्तरायण, माघ बिहु दिन 3 - मट्टू पोंगल, कनुमा पाण्डुगा दिन 4 - कानुम पोंगल, मुक्कानुमा संक्रान्ति पर अनुष्ठान संक्रान्ति के अवसर पर कई अनुष्ठानों का आयोजन किया जाता है। ये अनुष्ठान एक राज्य से दूसरे राज्य और एक ही राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न होते हैं। यद्यपि अधिकांश क्षेत्रों की कुछ महत्वपूर्ण अनुष्ठान निम्नलिखित हैं - मकर संक्रान्ति के एक दिन पहले अनुष्ठानिक अलाव/अग्नि जलाना उगते हुये सूर्य देव की पूजा करना पवित्र जल निकायों में पवित्र डुबकी लगाना अर्थात स्नान करना पोंगल बनाकर प्रसाद के रूप में बांटना (तमिलनाडु में) जरूरतमन्दों को दान या भिक्षा देना पतंग उड़ाना विशेष रूप से गुजरात में पालतू पशुओं की पूजा करना अर्थात सम्मान का भाव प्रकट करना तिल और गुड़ की मिठाइयाँ बनाना तेल स्नान करना (अधिकतर दक्षिण भारत में) संक्रान्ति की क्षेत्रीय भिन्नता मकर संक्रान्ति उन कुछ त्यौहारों में से एक है जिन्हें पूरे भारत में एकमत से मनाया जाता है। यद्यपि, मकर संक्रान्ति को मनाने के लिये प्रत्येक राज्य और क्षेत्र के अपने रीति-रिवाज और अनुष्ठान होते हैं साथ ही इससे जुड़ी स्थानीय किंवदन्तियाँ भी होती हैं। ज्ञात रहे कि संक्रान्ति की अवधारणा सभी क्षेत्रीय कैलेण्डरों में, चन्द्र या सौर कैलेण्डरों की भिन्नता होने के बावजूद, समान है अधिकांश क्षेत्रों में मकर संक्रान्ति का एक स्थानीय नाम होता है। संक्रान्ति तमिलनाडु में तमिलनाडु में, संक्रान्ति को पोंगल के रूप में जाना जाता है और इसे चार दिनों तक मनाया जाता है। संक्रान्ति गुजरात में गुजरात में, संक्रान्ति को उत्तरायण के रूप में मनाया जाता है। संक्रान्ति आन्ध्र प्रदेश में आन्ध्र प्रदेश में संक्रान्ति को पेड्डा पाण्डुगा के नाम से जाना जाता है और तमिलनाडु की तरह यहाँ भी इसे चार दिनों तक मनाया जाता है। संक्रान्ति असम में असम में, संक्रान्ति को माघ बिहु अथवा भोगाली बिहु अथवा मगहर दोमही के नाम से जाना जाता है। संक्रान्ति पंजाब में पंजाब में, संक्रान्ति को लोहड़ी के रूप में मनाया जाता है और मकर संक्रान्ति से एक दिन पहले मनाया जाता है। संक्रान्ति कर्णाटक में कर्णाटक में संक्रान्ति को संक्रान्थि और मकर संक्रमण के नाम से जाना जाता है। हालाँकि, सभी क्षेत्रों में संक्रान्ति को प्रकाश और ऊर्जा के देवता सूर्य देव के प्रति आभार प्रकट करने के दिन के रूप में मनाया जाता है, जो पृथ्वी पर सभी जीवों का पोषण करते हैं।

Tulsi Vivah vidhi: देव उठनी एकादशी पर तुलसी विवाह की संपूर्ण विधि

Tulsi Pujan Diwas 2024: तुलसी पूजन दिवस 2024 तुलसी पूजन दिवस हर वर्ष 25 दिसंबर को मनाया जाता है, और 2024 में भी यह 25 दिसंबर को मनाया जा रहा है। इस दिन हिंदू धर्म में पवित्र मानी जाने वाली तुलसी के पौधे की पूजा की जाती है। तुलसी को देवी लक्ष्मी का अवतार माना जाता है और यह भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, तुलसी की पूजा से घर में सुख, समृद्धि और शांति आती है। तुलसी के पौधे का धार्मिक महत्व होने के साथ-साथ औषधीय गुण भी हैं। यह तनाव कम करने, प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने और विभिन्न संक्रमणों से बचाव में सहायक है। आयुर्वेद में तुलसी का विशेष स्थान है और इसे कई बीमारियों के उपचार में उपयोग किया जाता है। तुलसी पूजन दिवस पर भक्तगण तुलसी के पौधे के समक्ष दीप जलाते हैं, उसे फूलों और माला से सजाते हैं, और प्रसाद अर्पित करते हैं। इस अवसर पर तुलसी के पौधे को घर में लगाने के लिए भी प्रोत्साहित किया जाता है, जिससे पर्यावरण को शुद्ध रखने में सहायता मिलती है। तुलसी पूजन दिवस हमें हमारी सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं की याद दिलाता है और प्रकृति के प्रति हमारे कर्तव्यों का बोध कराता है। इस दिन तुलसी की पूजा कर हम अपने जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और शांति का स्वागत करते हैं।

तुलसी विवाह की विधि यहाँ जाने

• देव उठनी एकादशी या तुलसी विवाह के दिन जिन्हें कन्यादान करना होता है वे व्रत रखते हैं और शालिग्राम की ओर से पुरुष वर्ग एकत्रित होते हैं। • शाम के समय सारा परिवार इसी तरह तैयार हो जैसे विवाह समारोह के लिए होते हैं। • अर्थात् वर पक्ष और वधू पक्ष वाले अलग-अलग होकर एक ही जगह विवाह विधि संपन्न करते हैं। • कई घरों में गोधूलि बेला पर विवाह होता है या यदि उस दिन अभिजीत मुहूर्त हो तो उसमें भी विवाह कर सकते हैं। • जिन घरों में तुलसी विवाह होता है वे स्नानादि से निवृत्त होकर तैयार होते हैं और विवाह एवं पूजा की तैयारी करते हैं। • इसके बाद आंगन में चौक सजाते हैं और चौकी स्थापित करते हैं। • आंगन नहीं हो तो मंदिर या छत पर भी तुलसी विवाह करा सकते हैं। • तुलसी का पौधा एक पटिए पर आंगन, छत या पूजा घर में बिलकुल बीच में रखें। • तुलसी के गमले के ऊपर गन्ने का मंडप सजाएं। • इसके साथ ही अष्टदल कमल बनाकर चौकी पर शालिग्राम को स्थापित करके उनका श्रृंगार करते हैं। • अष्टदल कमल के उपर कलश स्थापित करने के बाद कलश में जल भरें, कलश पर सातिया/स्वस्तिक बनाएं। • कलश पर आम के 5 पत्ते वृत्ताकार रखें और नारियल लपेटकर आम के पत्तों के ऊपर रख दें। • तुलसी देवी पर समस्त सुहाग सामग्री के साथ लाल चुनरी चढ़ाएं। • गमले में शालिग्राम जी रखें। • अब लाल या पीले वस्त्र धारण करके तुलसी के गमले को गेरू से सजाएं और इससे शालिग्राम की चौकी के दाएं ओर रख दें। • गमले और चौकी के आसपास रंगोली या मांडना बनाएं, घी का दीपक जलाएं। • इसके बाद गंगा जल में फूल डुबाकर ‘ॐ श्री तुलस्यै नमः' मंत्र का जाप करते हुए माता तुलसी और शालिग्राम पर गंगा जल का छिड़काव करें। • अब माता तुलसी को रोली और शालिग्राम को चंदन का तिलक लगाएं। • अब तुलसी और शालिग्राम के आसपास गन्ने से मंडप बनाएं। • मंडप पर उस पर लाल चुनरी ओढ़ा दें। • अब तुलसी माता को सुहाग का प्रतीक साड़ी से लपेट दें और उनका वधू (दुल्हन) की तरह श्रृंगार करें। • शालिग्राम जी पर चावल नहीं चढ़ाते हैं। उन पर तिल चढ़ाई जा सकती है। • तुलसी और शालिग्राम जी पर दूध में भीगी हल्दी लगाएं। • शालिग्राम जी को पंचामृत से स्नान कराने के बाद उन्हें पीला वस्त्र पहनाएं। • अब तुलसी माता, शालिग्राम और मंडप को दूध में भिगोकर हल्दी का लेप लगाएं। • अब पूजन की सभी सामग्री अर्पित करें जैसे फूल, फल इत्यादि। • अब कोई पुरुष शालिग्राम को चौकी सहित गोद में उठाकर तुलसी की 7 बार परिक्रमा कराएं। • इसके बाद तुलसी और शालिग्राम को खीर और पूड़ी का भोग लगाएं। • विवाह के दौरान मंगल गीत गाएं। • तुलसी जी का विवाह विशेष मंत्रोच्चारण के साथ करना चाहिए। • इसके बाद दोनों की आरती करें। • और इस विवाह संपन्न होने की घोषणा करने के बाद प्रसाद बांटें। • कर्पूर से आरती करें और यह मंत्र- 'नमो नमो तुलजा महारानी, नमो नमो हरि की पटरानी' बोलें। • तुलसी और शालिग्राम को खीर और पूड़ी का भोग लगाएं। • फिर 11 बार तुलसी जी की परिक्रमा करें। • प्रसाद को मुख्य आहार के साथ ग्रहण करें और प्रसाद का वितरण जरूर करें। • प्रसाद बांटने के बाद सभी सदस्य एकत्रित होकर भोजन करते हैं।

Top 25 Happy New Year 2025 Wishes: इन बेहतरीन संदेशों के जरिए प्रियजनों को भेजें नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।

पुराना साल बीत चुका है। उससे मिली खट्टी-मीठी यादों और ढेर सारे अनुभवों के साथ दुनिया 2024 को विदा कर 2025 में प्रवेश कर चुकी है। यह वर्ष किसी के लिए बहुत ही चुनौतीपूर्ण रहा, तो किसी के लिए सबसे बेस्ट ईयर। हम यही कामना करते हैं कि 2025 आपके जीवन में खूब सारी खुशियां लेकर आए। हर साल की तरह, नया साल 2025 भी हमारे जीवन में उत्साह और उमंग लेकर आए। इस मौके पर, नए साल की शुभकामनाएं भेजना एक परंपरा बन चुकी है।

Best Happy New Year Hindi Shayari Messages 2025

1. नया साल आया बनकर उजाला, खुल जाए आपकी किस्मत का ताला, हमेशा आप पर मेहरबान रहे ऊपर वाला, यही दुआ करता है आपका ये दोस्त प्यारा। Happy new year 2025 2. आनेवाला यह साल आपके लिए सबसे अच्छा रहें, और ईश्वर आपको और ज़्यादा कामयाब बनाएं, इसी दुआ के साथ आपको नए साल की हार्दिक शुभकामनाएं देते है.. 3. न कोई रंज का लम्हा किसी के पास आए खुदा करे कि नया साल सब को रास आए सपने लाया हूं… दस्तक दी किसी ने कहा सपने लाया हूं, खुश रहो आप हमेशा, इतनी दुआ लाया हू। Happy New Year 2025 4. नया साल नयी खुशियाँ लायेगा नयी उम्मीदों को जगायेगा परायापन को करके दूर सबके दिलों में अपनेपन को लायेगा.. हैप्पी न्यू ईयर 5. नए साल की आने वाली वाली शाम, सिर्फ तेरे ही नाम, होगी चाहत की एक अलग मुकाम करेंगे मोहब्बत तुझे सुबह शाम. हैप्पी न्यू इयर 6. चारों तरफ हो खुशियां ही खुशियां, दरवाजे पर सजाएं रंगोली की सौगात आपकी जिंदगी में आए खुशियों की बारात मुबारक हो आपको नव वर्ष बार-बार 7. दिन को रात से पहले चाँद को सितारों से पहले दिल को धड़कन से पहले और आपको सबसे पहले हैप्पी न्यू ईयर 8. सुख, संपत्ति, सादगी, सफलता, स्वास्थ्य, सम्मान शान्ति एवं समृध्दि मंगलकामनाओं के साथ मेरे एवं मेरे परिवार की तरफ से आपको और आप के परिवार को नये साल की हार्दिक शुभकामनाएं।। Happy New Year 2025 9. नवंबर गया, दिसंबर गया, गए सारे त्योहार, नए साल की बेला पर झूम रहा संसार, अब जिसका आपको था बेसब्री से इंतजार, मंगलमय हो आपका 2025 का साल। Happy New Year 2025 10. मिले आपको शुभ संदेश, धरकर खुशियों का वेश पुराने साल को अलविदा कहें आने वाले नव वर्ष की हार्दिक बधाई! 11. अच्छे लोगों को हम दिल में रखते हैं उनकी खुशियों के लिए दर्द सहते हैं कोई हमसे पहले विश न कर दे आपको इसलिए सबसे पहले हैप्पी न्यू ईयर करते हैं! 12. रिश्ते को यूं ही बनाए रखना, दिलों में चिराग हमारी यादों के जलाए रखना, 2024 का सुहाने सफर के लिए शुक्रिया, ऐसे ही 2025 में अपना साथ बनाए रखना। 13. भूल जाओ वो बीता साल, गले लगाओ ये आने वाला नया साल, करो दुआ सब मिलकर इस परमात्मा से, की पूरे हो सपने इस साल, नए साल की ढेर सारी शुभकामनाएं। Happy New Year 14. सदा दूर रहो गम की परछाइयों से सामना ना हो कभी तन्हाईयों से हर अरमान हर ख्वाब पूरा हो आपका, यही दुआ है दिल की गहराइयों से नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं। 15. साल आते रहेंगे और जाते रहेंगे, लेकिन मेरा प्यार हमेशा परिवार के लिए एक जैसा बना रहेगा। इसमें कभी कमी नहीं आएगी, उल्टा यह दोगुनी गति से बढ़ेगा। हैप्पी न्यू ईयर 16. नवंबर गया, दिसंबर गया, गए सारे त्योहार, नए साल की बेला पर झूम रहा संसार, अब जिसका आपको था बेसब्री से इंतजार, मंगलमय हो आपका 2025 का साल। 17. जनवरी गई, फरवरी गई, गये सारे त्योहार। नए साल की बेला पर झूम रहा संसार अब जिसका आपको था बेसब्री से इंतजार, मंगलमय हो आपके लिए 2025 का साल। हैप्पी न्यू ईयर 18. सच्चे दिल से न्यू ईयर मनाना सबको खुशी का हिस्सा बनाना अपना पराया सब भुला कर दिल से सब को गले लगाना। न्यू ईयर की शुभकामनाएं 19. मुझको बदल रहे हो, हर साल की तरह, और मैं भी जा रहा हूं, हर बार की तरह अगर तुम जो कुछ न बदले, तो मेरा जाना फिजूल है, अगर अब भी जो न समझे, तो मेरा आना फिजूल है। हैप्पी न्यू ईयर 20. अपने दिल को कल की आशाओं से और अपने मन को कल की यादों से भर दें आप को न्यू ईयर की शुभकामनाएं हैप्पी न्यू ईयर 21. भूल जाओ बीता हुआ कल दिल में बसा लो, आने वाली पल खुशियां लेकर आएगा, आने वाला कल Happy New Year! 22. दोस्त को दोस्ती से पहले प्यार को मोहब्बत से, पहले खुशी को गम से पहले और आप को सबसे। से पहले नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं। 23. आपकी राहों में फूलों को बिखराकर लाया है नववर्ष, महकी हुई बहारों की खुशबू लाया है नववर्ष। नववर्ष की शुभकामनाएं 24. आपकी आंखों में सजे है जो भी सपने, और दिल में छुपी है जो भी अभिलाषाएं, यह नया वर्ष उन्हें सच कर जाए, आप के लिए यही है हमारी शुभकामनाएं। 25. सफलता मिलती रहे आपको जीवन की हर राह में, खुशी चमकती रहे आपकी निगाह में, हर कदम पर मिले खूशी की बहार आपको, ये दोस्त देता है नए साल मुबारक हो आपको।

नए साल की शुभकामनाएं: हिंदी में सुंदर संदेश और शायरी

नए साल का आगमन हमारे लिए खुशी, नई उम्मीदें और सपनों को साथ लेकर आता है। यह समय अपने प्रियजनों के साथ इस खुशी को साझा करने और उन्हें शुभकामनाएं देने का है। हिंदी में शुभकामनाएं और शायरी दिल से जुड़ी होती हैं, जो भावनाओं को खूबसूरती से व्यक्त करती हैं।

नए साल के लिए संदेश

शुभकामनाएं भेजने के लिए कुछ अद्वितीय और सरल संदेश:- पारिवारिक संदेश: "नए साल में आपके परिवार में सुख-शांति और खुशियों की बहार हो। आपका हर दिन उम्मीदों से भरा हो। शुभ नववर्ष 2025!" "यह साल आपके जीवन में ढेर सारी खुशियां लाए और आपके परिवार के लिए ढेर सारी उपलब्धियां। हैप्पी न्यू ईयर!" दोस्तों के लिए संदेश: "दोस्ती के हर रंग में रंगी आपकी जिंदगी, 2025 में और भी चमके और आपके सपने साकार हों। शुभ नया साल!" "दोस्ती की यह डोर हमेशा मजबूत बनी रहे। इस नए साल में हमारी यारी और गहरी हो। नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं!"

नए साल की शायरी

शायरी के माध्यम से भावनाएं व्यक्त करना एक अनोखा और प्रभावशाली तरीका है। 1. "नए साल में नए ख्वाब सजाएं, पुराने गम को दिल से मिटाएं। ये साल लाए खुशियों का पैगाम, चलो सब मिलकर जश्न मनाएं।" 2. हर साल कुछ देकर जाता है हर नया साल कुछ लेकर आता है, चलो इस साल कुछ अच्छा करके दिखाए नया साल मनाएंगे! 3. गुल ने गुलशन से गुलफाम भेजा है सितारों ने आसमान से सलाम भेजा है मुबारक हो आपको नया साल हमने एडवांस में यह पैगाम भेजा है। 4. रिश्ते को यूं ही बनाए रखना, दिलों में चिराग हमारी यादों के जलाए रखना, 2024 का सुहाने सफर के लिए शुक्रिया, ऐसे ही 2025 में अपना साथ बनाए रखना। 5. नए वर्ष की पावन बेला में यही संदेश हमारा है, शुभ रहे सब मंगल रहे, 2025 के नव वर्ष का हर दिन आपके लिए विशेष और खुशियों से परिपूर्ण रहे। Happy New Year 6. आपकी आंखो में सजे सभी सपने पूरे हो इस साल, मुबारक हो आपको खुशियों से भरा 2025 का यह नया साल। 7. हर साल आता है, हर साल जाता है इस नए साल में आपको वो सब मिले जो आपका दिल चाहता है। नया साल मुबारक हो 8. दुख का एक लम्हा भी आपके पास न आए, दुआ है मेरी कि ये साल आपके लिए खास बन जाए। हैप्‍पी न्‍यू ईयर 2025 9. नव वर्ष की पावन बेला में है यही, शुभ संदेश,हर दिन आए आपके, जीवन में लेके खुशियां विशेष, नववर्ष की शुभकामनाएं। 10. बीते साल को विदा इस कदर करते हैं, जो नहीं किया वो भी कर गुजरते हैं। नए साल के आने की खुशियां तो सब मनाते हैं, हम इस बार बीते साल की यादों का जश्न मनाते है। हैप्पी न्यू ईयर

NEW YEAR 2025: नए साल पर भूलकर भी न करें ये काम

New Year 2025 : नए साल के स्वागत की तैयारी हर कोई कर रहा है। नव वर्ष के आगमन के लिए लोग काफी उत्साहित होते हैं। उत्साह में धूमधाम से जश्न मनाते हैं। न्यू ईयर रिज़ॉल्यूशन बनाते हैं लेकिन अक्सर अधिक उत्साह में हमसे कुछ गलतियाँ हो जाती हैं, जिनके कारण साल की शुरुआत ही खराब होती है। नये साल पर घूमने जा रहे हों या घर पर पार्टी कर रहे हों, कुछ बातों को अवॉइड करें। वहीं साल की शुरुआत बेहतर तरीके से करें। आइये जानते हैं कि नये साल पर क्या करें और क्या न करें। नए साल पर क्या करें साल की शुरुआत सुबह जल्दी उठकर एक स्वस्थ लाइफस्टाइल को अपनाकर करें। नव वर्ष पर बड़ों का आशीर्वाद लेकर दिन की शुरुआत करें। दोस्तों और परिजनों को नव वर्ष की शुभकामनाएं दें। किसी जरूरतमंद की मदद से साल शुरू करें। आप मन्दिर जा सकते हैं, या घर पर पूजा कर सकते हैं। नए साल के पहले दिन नहीं करें ये काम काला रंग नए साल के पहले दिन काले कपड़े नहीं पहनें. काल रंग नकारात्मकता का प्रतीक है और शास्त्रों के अनुसार किसी अच्छे कार्य और दिन की शुरुआत शुभ रंग के वस्त्र पहनकर करनी चाहिए, क्योंकि इसका शुभ प्रभाव जीवन पर पड़ता है. गुस्से और नकारात्मक भावनाओं को हावी न होने दें गुस्सा और नकारात्मक भावनाओं का प्रभाव: गुस्सा और ईर्ष्या जैसी भावनाएं मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य दोनों को नुकसान पहुंचाती हैं। यह आपके रिश्तों में खटास ला सकता है और दूसरों के साथ आपके संबंध खराब कर सकता है। गुस्से में किए गए निर्णय अक्सर गलत साबित होते हैं। बिना सोचे-समझे वादे न करें बिना सोचे-समझे वादे का असर: जब आप कोई ऐसा वादा करते हैं जिसे आप पूरा नहीं कर सकते, तो यह आपके विश्वास और संबंधों को नुकसान पहुंचा सकता है। यह आपकी छवि को भी खराब कर सकता है, चाहे आप परिवार, दोस्तों या पेशेवर संबंधों में हों। अनुशासनहीनता से बचें अनुशासनहीनता का प्रभाव: बिना अनुशासन के जीवन जीने से लक्ष्य प्राप्त करना कठिन हो जाता है। यह आपकी उत्पादकता, मानसिक शांति और आत्म-सम्मान को प्रभावित कर सकता है।

New Year 2025: साल के पहले दिन जरूर करें ये काम

New Year 2025: नववर्ष 2025 के आगमन को लेकर सभी में उत्साह है. हर व्यक्ति की इच्छा है कि नए वर्ष में उसके जीवन में सुख, समृद्धि और खुशहाली बनी रहे. ज्योतिष विशेषज्ञों का कहना है कि वर्ष 2025 की शुरुआत में कुछ विशेष उपाय करने से पूरे वर्ष धन की देवी मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त की जा सकती है. आइए, जानते हैं कि वर्ष 2025 की शुरुआत में किन कार्यों को करने से नया वर्ष शानदार और खुशहाल बन सकता है. सूक्तम का पाठ करें नए साल 2025 की शुरुआत में कुछ शुभ मंत्रों का पाठ करना अत्यंत लाभकारी माना जाता है. विशेष रूप से लक्ष्मी सूक्त और गायत्री मंत्र का पाठ करने से घर में शांति और समृद्धि का वास होता है. प्रातःकाल शांत मन से इन मंत्रों का जाप करने से मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है और वातावरण में सकारात्मकता का संचार होता है। जरूरतमंदों की सहायता करें दान करना सदैव शुभ माना जाता है. नए साल के दिन किसी जरूरतमंद को भोजन, वस्त्र या अपनी सामर्थ्यानुसार कुछ भी दान करें. यह मान्यता है कि दान करने से घर में समृद्धि आती है और ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त होता है। गणेश की पूजा नववर्ष के पहले दिन गणेश मंदिर में जाकर भगवान गणेश को दूर्वा अर्पित करें. इसके साथ ही भगवान को लड्डू या मोदक का भोग अर्पित करें और अपने जीवन में सुख-समृद्धि की प्रार्थना करें. भगवान गणेश की पूजा करने से शुभ फल मिलता है। अतीत से सीखें और भविष्य की तैयारी करें नए साल को एक नई शुरुआत का अवसर मानते हुए अतीत की गलतियों और अनुभवों से सीखना बेहद महत्वपूर्ण है। यह आपके जीवन को सुधारने और सही दिशा में आगे बढ़ने में मदद करता है। आइए इसे विस्तार से समझते हैं: 1. अतीत का विश्लेषण करें बीते साल में जो भी घटनाएं हुईं, उन पर सोचें। सफलता और असफलता दोनों को याद करें। उन कारणों को समझें जिनसे आप असफल हुए या सफल रहे। 2. गलतियों से सीखें यह समझने की कोशिश करें कि आपसे कहाँ चूक हुई। उन गलतियों को न दोहराने का संकल्प लें। उदाहरण: यदि आप समय पर काम पूरा नहीं कर पाए, तो बेहतर समय प्रबंधन सीखें। 3. सकारात्मक सोच रखें हर अनुभव को सीखने का मौका समझें। अपने भविष्य को लेकर उत्साहित रहें।

महाकुम्भ 2025

कुम्भ का महत्व

पौराणिक महत्व

परम्परा-कुम्भ मेला के मूल को 8वी शताब्दी के महान दार्शनिक शंकर से जोड़ती है, जिन्होंने वाद विवाद एवं विवेचना हेतु विद्वान संन्यासीगण की नियमित सभा संस्थित की। कुम्भ मेला की आधारभूत किंवदंती पुराणों (किंवदंती एवं श्रुत का संग्रह) से अनुयोजित है, जो यह स्मरण कराती है कि कैसे अमृत के पवित्र कलश के लिए सुर एवं असुरों में संघर्ष हुआ जिससे समुद्र मंथन के अंतिम रत्न के रूप में अमृत प्राप्त हुआ तथा भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर अमृत कलश को अपने वाहन गरुड़ को दे दिया, गरुड़ उस अमृत कलश को लेकर असुरो से बचाते हुए पलायन किया, इस पलायन में अमृत की कुछ बूंदे हरिद्वार, नासिक, उज्जैन और प्रयाग में गिरी। सम्बन्धित नदियों के भूस्थैतिक गतिशीलता का अमृत के प्रभाव ने परिवर्तित कर दिया ऐसा विश्वास किया जाता है जिससे तीर्थयात्रीगण को पवित्रता, मांगलिकता और अमरत्व के भाव में स्नान करने का एक अनूठा अवसर प्राप्त होता है। शब्द कुम्भ पवित्र अमृत कलश से व्युत्पन्न हुआ है।

ज्योतिषीय महत्व

ज्योतिषाचार्यों द्वारा वृष राशि में गुरु मकर राशि में सूर्य तथा चंद्रमा माघ मास में अमावस्या के दिन कुम्भ पर्व की स्थिति देखी गयी है। इसलिए प्रयाग के कुम्भ पर्व के विषय में- "वृषराषिगतेजीवे" के समान ही "मेषराशिगतेजीवे" ऐसा उल्लेख मिलता है। कुम्भ पर्वों का जो ग्रह योग प्राप्त होता है वह लगभग सभी जगह सामान्य रूप से बारहवे वर्ष प्राप्त होता है, परन्तु कभी-कभी ग्यारहवें वर्ष भी कुम्भ पर्व की स्थिति देखी जाती है। यह विषय अत्यन्त विचारणीय हैं, सामान्यतया सूर्य चंद्र की स्थिति प्रतिवर्ष चारोंं स्थलों में स्वतः बनती है। उसके लिए प्रयाग में कुम्भ पर्व के समय वृष के गुरु रहते हैं जिनका स्वामी शुक्र है। शुक्रग्रह ऐश्वर्य भोग एवं स्नेह का सम्वर्धक है। गुरु ग्रह के इस राशि में स्थित होने से मानव के वैचारिक भावों में परम सात्विकता का संचार होता है जिससे स्नेह, भोग एवं ऐश्वर्य की सम्प्राप्ति के विचार में जो सात्विकता प्रवाहित होती है उससे उनके रजोगुणी दोष स्वतः विलीन होते हैं। तथैव मकर राशिगत सूर्य समस्त क्रियाओं में पटुता एवमेव मकर राशिस्थ चंद्र परम ऐश्वर्य को प्राप्त कराता है। फलतः ज्ञान एवं भक्ति की धारा स्वरूप गंगा एवं यमुना के इस पवित्र संगम क्षेत्र में चारों पुरूषार्थों की सिद्धि अल्पप्रयास में ही श्रद्धालु मानव के समीपस्थ दिखाई देती है। प्रत्येक ग्रह किसी विशिष्ट राशि में एक सुनिश्चित समय तक विद्यमान रहता है, जैसे सूर्य एक राशि में 30 दिन 26 घडी 17 पल 5 विपल का समय लेता है एवं चंद्रमा एक राशि में लगभग 2.5 दिन तक रहता है, तथैव बृहस्पति एक राशि का भोग 361 दिन 1 घडी 36 पल में करता है। स्थूल गणना के आधार पर वर्ष भर का काल बृहस्पति का मान लिया जाता है, किन्तु सौर वर्ष के अनुसार एक वर्ष में चार दिन 13 घडी एवं 55 पल का अन्तर बार्हस्पत्य वर्ष से होता है जो 12 वर्ष में 50 दिन 47 घडी का अन्तर पड़ता है और यही 84 वर्षों में 355 दिन 29 घडी का अन्तर बन जाता है। इसीलिए 50वें वर्ष जब कुम्भ पर्व आता है तब वह 11वें वर्ष ही पड़ जाता है।

सामाजिक महत्व

प्राथमिक स्नान कर्म के अतिरिक्त पर्व का सामाजिक पक्ष विभिन्न यज्ञों का अनुष्ठान, वेद मंत्रों का उच्चारण, प्रवचन, नृत्य, भक्ति भाव के गीतों, आध्यात्मिक कथानकों पर आधारित कार्यक्रमों, प्रार्थनाओं, धार्मिक सभाओं के चारों ओर घूमता हैं, जहाँ प्रसिद्ध संतों एवं साधुओं के द्वारा विभिन्न सिद्धांतों पर वाद-विवाद एवं विचार-विमर्श करते हुए मानक स्वरूप प्रदान किया जाता है। पर्व पर गरीबों एवं वंचितों को अन्न एवं वस्त्र के दान का भी महत्त्व है। विभिन्न पर्वों पर तीर्थयात्रियों एवं श्रद्धालुओं के द्वारा संतों को आध्यात्मिक भाव के साथ गाय एवं स्वर्ण दान भी किया जाता है। मानव मात्र का कल्याण, सम्पूर्ण विश्व में सभी मनुष्यों के मध्य वसुधैव कुटुम्बकम के रूप में अच्छा सम्बन्ध बनाये रखने के साथ आदर्श विचारों एवं गूढ़ ज्ञान का आदान प्रदान कुम्भ का मूल तत्त्व और संदेश है। कुम्भ भारत और विश्व के जन सामान्य को आदिकाल से आध्यात्मिक रूप से एक सूत्र में पिरोता रहा है और भविष्य में भी कुम्भ का यह स्वरुप विद्यमान रहेगा।

महाकुंभ 2025 स्नान की तिथियां

• महाकुंभ प्रथम स्नान तिथि : पौष शुक्ल एकादशी 10 जनवरी 2025 शुक्रवार • महाकुंभ द्वितीया स्नान तिथि : पौष पूर्णिमा 13 जनवरी 2025 सोमवार • महाकुंभ चतुर्थ स्नान तिथि : माघ कृष्ण एकादशी 25 जनवरी, 2025, शनिवार । • महाकुंभ पंचम स्नान तिथि : माघ कृष्ण त्रयोदशी 27 जनवरी, 2025 , सोमवार। • महाकुंभ अष्टम स्नान तिथि : माघ शुक्ल सप्तमी (रथ सप्तमी)-4 फरवरी, 2025 ई., मंगलवार । • महाकुंभ नवम स्नान तिथि : माघ शुक्ल अष्टमी (भीष्माष्टमी) -5 फरवरी, 2025 ई., बुधवार। • महाकुंभ दशम स्नान तिथि : माघ शुक्ल एकादशी (जया एकादशी) -8 फरवरी, 2025 ई., शनिवार। • महाकुंभ एकादश स्नान तिथि : माघ शुक्ल त्रयोदशी (सोम प्रदोष व्रत) - 10 फरवरी, 2025, सोमवार । • महाकुंभ द्वादश स्नान तिथि : माघ पूर्णिमा, 12 फरवरी, 2025, बुधवार। • महाकुंभ त्रयोदश स्नान तिथि : फाल्गुन कृष्ण एकादशी, 24 फरवरी, 2025, सोमवार। • महाकुंभ चतुर्दश स्नान पर्व : महाशिवरात्रि, 26 फरवरी, 2025, बुधवार। आस्था, विश्वास, सौहार्द एवं संस्कृतियों के मिलन का पर्व है “कुम्भ”। ज्ञान, चेतना और उसका परस्पर मंथन कुम्भ मेले का वो आयाम है जो आदि काल से ही हिन्दू धर्मावलम्बियों की जागृत चेतना को बिना किसी आमन्त्रण के खींच कर ले आता है। कुम्भ पर्व किसी इतिहास निर्माण के दृष्टिकोण से नहीं शुरू हुआ था अपितु इसका इतिहास समय के प्रवाह से साथ स्वयं ही बनता चला गया। वैसे भी धार्मिक परम्पराएं हमेशा आस्था एवं विश्वास के आधार पर टिकती हैं न कि इतिहास पर। यह कहा जा सकता है कि कुम्भ जैसा विशालतम् मेला संस्कृतियों को एक सूत्र में बांधे रखने के लिए ही आयोजित होता है। धार्मिकता एवं ग्रह-दशा के साथ-साथ कुम्भ पर्व को तत्त्वमीमांसा की कसौटी पर भी कसा जा सकता है, जिससे कुम्भ की उपयोगिता सिद्ध होती है। कुम्भ पर्व का विश्लेषण करने पर ज्ञात होता है कि यह पर्व प्रकृति एवं जीव तत्त्व में सामंजस्य स्थापित कर उनमें जीवनदायी शक्तियों को समाविष्ट करता है। प्रकृति ही जीवन एवं मृत्यु का आधार है, ऐसे में प्रकृति से सामंजस्य अति-आवश्यक हो जाता है। कहा भी गया है “यद् पिण्डे तद् ब्रह्माण्डे” अर्थात् जो शरीर में है, वही ब्रह्माण्ड में है, इस लिए ब्रह्माण्ड की शक्तियों के साथ पिण्ड (शरीर) कैसे सामंजस्य स्थापित करे, उसे जीवनदायी शक्तियाँ कैसे मिले इसी रहस्य का पर्व है कुम्भ।

सूर्य भगवान: ऊर्जा, जीवन और समृद्धि के प्रतीक

सूर्य भगवान: ऊर्जा, जीवन और समृद्धि के प्रतीक परिचय सूर्य भगवान, जिन्हें सूर्य देव, आदित्य और सूर्य नारायण के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म में ऊर्जा, जीवन और समृद्धि के प्रतीक हैं। वे वेदों और पुराणों में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं और ब्रह्मांड के केंद्र में स्थित सूर्य देवता के रूप में पूजे जाते हैं। सूर्य भगवान की पूजा से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य, धन-धान्य और शक्ति की प्राप्ति होती है। सूर्य भगवान का महत्व सूर्य भगवान की पूजा से हमें उनके अद्वितीय गुणों और शक्तियों का आशीर्वाद मिलता है। वे जीवन के सबसे महत्वपूर्ण स्रोत हैं, जो सभी जीवों को ऊर्जा और प्रकाश प्रदान करते हैं। उनके द्वारा प्रदत्त ऊर्जा हमारे जीवन में स्थिरता और समृद्धि लाती है। सूर्य भगवान की पूजा का महत्व 1. ऊर्जा और जीवन: सूर्य भगवान जीवन और ऊर्जा के स्रोत हैं, उनकी पूजा से शरीर में ऊर्जा और vitality बनी रहती है। 2. स्वास्थ्य और समृद्धि: सूर्य देव की कृपा से शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार होता है और जीवन में समृद्धि आती है। 3. धन और ऐश्वर्य: सूर्य भगवान की पूजा से धन, ऐश्वर्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है। 4. मानसिक शांति: सूर्य देवता की पूजा से मानसिक शांति और आत्म-संयम की प्राप्ति होती है। 5. धार्मिक अनुशासन: सूर्य भगवान की पूजा से धार्मिक अनुशासन और सत्कर्मों का पालन करने की प्रेरणा मिलती है। सूर्य भगवान के प्रमुख स्थल 1. सूर्य मंदिर, कोणार्क: उड़ीसा में स्थित यह मंदिर सूर्य भगवान को समर्पित है और इसकी वास्तुकला अद्वितीय है। 2. सूर्य मंदिर, गवालियर: मध्य प्रदेश में स्थित यह मंदिर सूर्य देव की पूजा के लिए प्रसिद्ध है। 3. सूर्य मंदिर, modhera: गुजरात में स्थित यह मंदिर सूर्य देवता के विशेष रूप से पूजा स्थल के रूप में प्रसिद्ध है। 4. सूर्य मंदिर, मऊ: उत्तर प्रदेश के मऊ में स्थित यह मंदिर भी सूर्य भगवान की पूजा के लिए महत्वपूर्ण है। सूर्य भगवान से जुड़ी प्रमुख कथाएँ 1. सप्ताश्वर कथा: पुराणों के अनुसार, सूर्य भगवान ने सप्ताश्वर नामक सात घोड़ों को अपनी रथ के लिए जोड़ा, जिनकी मदद से वे आकाश में यात्रा करते हैं और पृथ्वी को प्रकाश और ऊर्जा प्रदान करते हैं। 2. सूर्य-चंद्रमा कथा: सूर्य भगवान और चंद्रमा के बीच का संबंध और उनकी कथाएँ भी पुराणों में वर्णित हैं, जिसमें उनके मिलन और वियोग की घटनाएँ शामिल हैं। 3. सुर्य पुत्र कर्ण: महाभारत में कर्ण को सूर्य भगवान का पुत्र बताया गया है, जिनकी वीरता और दानशीलता की कहानियाँ प्रसिद्ध हैं। सूर्य भगवान की पूजा और साधना विधि 1. स्नान और शुद्धिकरण: सूर्य भगवान की पूजा से पहले स्नान करके शुद्धि प्राप्त करें और शुद्ध वस्त्र पहनें। 2. प्रणाम और ध्यान: सूर्य भगवान के सामने खड़े होकर प्रणाम करें और उनका ध्यान लगाएं। 3. अर्घ्य अर्पण: सूर्य देव को ताजे जल या शुद्ध दूध अर्पित करें, जो "अर्घ्य" के रूप में जाना जाता है। 4. मंत्र जाप: सूर्य भगवान के मंत्र का जाप करें और ध्यान लगाएं। 5. सूर्य स्तोत्रसूर्य भगवान के प्रमुख मंत्र 1. मूल मंत्र: "ॐ सूर्याय नमः।" 2. आदित्य हृदय स्तोत्र: "नमः सूर्याय शान्ताय सर्वरोग निवारिणे।" 3. सूर्य स्तोत्र: "नमः सूर्याय च सोमाय मङ्गलाय बुधाय च।" सूर्य भगवान की साधना के लाभ 1. ऊर्जा और शक्ति: सूर्य भगवान की साधना से शरीर में ऊर्जा और शक्ति का संचार होता है। 2. स्वास्थ्य और समृद्धि: सूर्य देवता की कृपा से शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार होता है और जीवन में समृद्धि आती है। 3. मानसिक शांति: सूर्य भगवान की साधना से मानसिक शांति और आत्म-संयम की प्राप्ति होती है। 4. धार्मिक अनुशासन: सूर्य देवता की साधना से धार्मिक अनुशासन और सत्कर्मों का पालन करने की प्रेरणा मिलती है। 5. धन और ऐश्वर्य: सूर्य भगवान की साधना से धन, ऐश्वर्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है। सूर्य भगवान की कृपा से जीवन में ऊर्जा, स्वास्थ्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है, और हमें जीवन की चुनौतियों का सामना करने की शक्ति मिलती है। सूर्य भगवान की पूजा और साधना से हमारे जीवन में सकारात्मक बदलाव आते हैं और हम आध्यात्मिक उन्नति की ओर अग्रसर होते हैं।

श्री राम जी: धर्म, आदर्श और वीरता के प्रतीक

श्री राम जी: धर्म, आदर्श और वीरता के प्रतीक परिचय श्री राम जी, जिन्हें रामचन्द्र, रघुकुल नंदन और मर्यादा पुरुषोत्तम के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म के आदर्श व्यक्तित्व हैं। वे भगवान विष्णु के सातवें अवतार माने जाते हैं और भारतीय पौराणिक कथाओं, विशेषकर रामायण, में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। श्री राम जी के जीवन और चरित्र से हमें धर्म, आदर्श और वीरता का वास्तविक स्वरूप जानने को मिलता है। श्री राम जी का जीवन श्री राम जी का जन्म अयोध्या के राजा दशरथ और रानी कौशल्या के पुत्र के रूप में हुआ था। उनके जीवन की प्रमुख घटनाएँ और शिक्षाएँ निम्नलिखित हैं: 1. वनवास: श्री राम जी को 14 वर्षों के वनवास के लिए भेजा गया, जिसमें उन्होंने कठिनाइयों का सामना किया और धर्म की रक्षा की। 2. सीता हरण और रावण वध: रावण द्वारा माता सीता का अपहरण करने पर, श्री राम जी ने लक्ष्मण और हनुमान के साथ मिलकर सीता को रावण के कब्जे से मुक्त किया और रावण का वध किया। 3. राज्याभिषेक: वनवास समाप्त होने के बाद, श्री राम जी को अयोध्या का राजा बनाया गया और उन्होंने अपने शासन में आदर्श प्रबंधन और न्याय की मिसाल पेश की। श्री राम जी की पूजा का महत्व श्री राम जी की पूजा करने से हमें उनके आदर्श, धर्म और बलिदान की प्रेरणा मिलती है। वे सत्य, न्याय, और भक्ति के प्रतीक हैं और उनकी पूजा से जीवन में अनुशासन और संतुलन बनाए रखने में मदद मिलती है। श्री राम जी की पूजा के लाभ 1. धर्म और आदर्श: श्री राम जी के जीवन से हमें धर्म और आदर्श का पालन करने की प्रेरणा मिलती है। 2. शक्ति और साहस: उनकी पूजा से मानसिक और शारीरिक शक्ति की प्राप्ति होती है, और कठिनाइयों का सामना करने की क्षमता बढ़ती है। 3. सुख और शांति: श्री राम जी की कृपा से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है। 4. भक्ति और विश्वास: उनकी पूजा से सच्ची भक्ति और विश्वास का विकास होता है। 5. धार्मिक अनुशासन: श्री राम जी के आदर्शों को अपनाने से जीवन में अनुशासन और नैतिकता की वृद्धि होती है। श्री राम जी से जुड़े प्रमुख स्थल 1. राम जन्मभूमि, अयोध्या: यह स्थल श्री राम जी का जन्मस्थान है और यहाँ का मंदिर भारतीय भक्तों के लिए एक प्रमुख तीर्थ स्थल है। 2. रामेश्वरम, तमिलनाडु: यह स्थल समुद्र के पार राम सेतु के निर्माण की जगह के रूप में प्रसिद्ध है। 3. चित्रकूट, उत्तर प्रदेश: यहाँ पर श्री राम जी ने वनवास के दौरान समय बिताया था और यह स्थल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। 4. सीतामढ़ी, बिहार: यह स्थल माता सीता के जन्मस्थान के रूप में मान्यता प्राप्त है। श्री राम जी से जुड़ी प्रमुख कथाएँ 1. रामायण कथा: श्री राम जी का जीवन और उनके कार्यों का वर्णन "रामायण" में विस्तृत रूप से किया गया है, जिसमें उनके वनवास, सीता हरण और रावण वध की घटनाएँ शामिल हैं। 2. रामसेतु निर्माण: रामायण के अनुसार, श्री राम जी ने अपने बल और बुद्धि से रामसेतु का निर्माण किया ताकि भगवान राम और उनकी सेना लंका पहुंच सके। 3. श्री राम की रघुकुल परंपरा: श्री राम जी का रघुकुल परंपरा और उनके आदर्श राजधर्म का पालन भारतीय इतिहास और संस्कृति में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। श्री राम जी की पूजा और साधना विधि 1. स्नान और शुद्धिकरण: श्री राम जी की प्रतिमा या चित्र को शुद्ध जल से स्नान कराएं और शुद्ध वस्त्र पहनाएं। 2. धूप और दीप: धूप और दीप जलाकर श्री राम जी की आरती करें। 3. नैवेद्य: श्री राम जी को मिष्ठान्न, फल, और अन्य शुद्ध खाद्य पदार्थ भोग के रूप में अर्पित करें। 4. मंत्र जाप: श्री राम जी के मंत्र का जाप करें और उनका ध्यान लगाएं। 5. रामायण पाठ: श्री राम जी की स्तुति और महिमा के लिए रामायण का पाठ करें। श्री राम जी के प्रमुख मंत्र 1. मूल मंत्र: "ॐ श्री रामाय नमः।" 2. राम स्तोत्र: "रामचंद्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणम्।" 3. रामचरित मानस: "श्रीरामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणम्।" श्री राम जी की साधना के लाभ 1. धर्म और आदर्श: श्री राम जी की साधना से जीवन में धर्म और आदर्श का पालन होता है। 2. शक्ति और साहस: श्री राम जी की कृपा से अद्वितीय शक्ति और साहस की प्राप्ति होती है। 3. सुख और शांति: श्री राम जी की साधना से सुख और शांति की प्राप्ति होती है। 4. भक्ति और विश्वास: श्री राम जी की साधना से सच्ची भक्ति और विश्वास का विकास होता है। 5. धार्मिक अनुशासन: श्री राम जी की साधना से जीवन में अनुशासन और नैतिकता की वृद्धि होती है। श्री राम जी की कृपा से जीवन में सुख, शांति, और समृद्धि की प्राप्ति होती है, और हमें हर कठिनाई का सामना करने की शक्ति मिलती है। श्री राम जी की पूजा न केवल हमारे जीवन को बेहतर बनाती है, बल्कि हमें आध्यात्मिक मार्ग पर आगे बढ़ने में भी मदद करती है। भगवान श्री राम की भक्ति से हमारे जीवन में सकारात्मक बदलाव आते हैं और हम आत्मिक उन्नति की ओर अग्रसर होते हैं।

32 कोटि देवी-देवता: हिंदू धर्म का विस्तार

32 कोटि देवी-देवता: हिंदू धर्म का विस्तार परिचय हिंदू धर्म में 32 कोटि देवी-देवताओं की अवधारणा प्रचलित है, जो इस धर्म की विशालता और विविधता को दर्शाती है। "कोटि" शब्द का अर्थ "प्रकार" या "वर्ग" होता है, जो यह संकेत देता है कि यह संख्या प्रतीकात्मक है और विभिन्न दिव्य शक्तियों और अवधारणाओं को दर्शाती है। इन देवी-देवताओं की पूजा, साधना और अनुष्ठान से मानव जीवन के विभिन्न पहलुओं में समृद्धि, शांति और उन्नति प्राप्त होती है। प्रमुख देवी-देवता त्रिदेव 1. ब्रह्मा: सृष्टि के रचयिता, वेदों के ज्ञाता और सृष्टि की उत्पत्ति के प्रतीक। 2. विष्णु: पालनकर्ता, संसार की रक्षा और संरक्षण का कार्य करते हैं। 3. महेश (शिव): संहारकर्ता, पुनर्जन्म और संहार का प्रतीक। प्रमुख देवियाँ 1. सरस्वती: विद्या और कला की देवी। 2. लक्ष्मी: धन, समृद्धि और वैभव की देवी। 3. पार्वती (दुर्गा, काली): शक्ति, साहस और मां का प्रतीक। 32 कोटि देवी-देवताओं की विशेषताएँ अग्नि देवता 1. अग्नि: यज्ञों और अग्नि की देवता। 2. सूर्य: प्रकाश, ऊर्जा और स्वास्थ्य के देवता। 3. वायु: वायु और जीवन शक्ति के देवता। 4. वरुण: जल और समुद्र के देवता। नवग्रह 1. सूर्य: केंद्र में स्थित ग्रह, आत्मा का प्रतीक। 2. चंद्रमा: मन, भावना और मानसिक शांति का प्रतीक। 3. मंगल: शक्ति, साहस और युद्ध का प्रतीक। 4. बुध: बुद्धि, संचार और व्यापार का प्रतीक। 5. बृहस्पति: ज्ञान, धर्म और गुरु का प्रतीक। 6. शुक्र: प्रेम, सौंदर्य और भोग का प्रतीक। 7. शनि: न्याय, कर्म और अनुशासन का प्रतीक। 8. राहु: अर्धग्रह, छाया ग्रह, रहस्य और जटिलता का प्रतीक। 9. केतु: अर्धग्रह, छाया ग्रह, मुक्ति और आध्यात्मिकता का प्रतीक। अष्टविनायक 1. मयूरेश्वर: मयूरेश्वर गणपति। 2. सिद्धिविनायक: सिद्धि प्रदान करने वाले गणपति। 3. बालेश्वर: बालगणेश। 4. वरदविनायक: वरदान देने वाले गणपति। 5. चिंतामणि: चिंताओं का हरण करने वाले गणपति। 6. गिरिजात्मज: गिरिजा (पार्वती) के पुत्र गणपति। 7. विघ्नेश्वर: विघ्नों का हरण करने वाले गणपति। 8. महागणपति: महान गणपति। दस महाविद्या 1. काली: समय और मृत्यु की देवी। 2. तारा: तारक शक्ति की देवी। 3. त्रिपुर सुंदरी: सौंदर्य और सृजन की देवी। 4. भुवनेश्वरी: ब्रह्मांड की देवी। 5. छिन्नमस्ता: आत्म बलिदान की देवी। 6. त्रिपुरा भैरवी: तंत्र की देवी। 7. धूमावती: विधवा और धूम का प्रतीक। 8. बगलामुखी: वाणी और विद्या की देवी। 9. मातंगी: तंत्र विद्या की देवी। 10. कमला: धन और समृद्धि की देवी। अन्य प्रमुख देवी-देवता 1. हनुमान: शक्ति, भक्ति और साहस का प्रतीक। 2. दत्तात्रेय: त्रिदेवों का सम्मिलित रूप। 3. शनि: न्याय और कर्म के देवता। 4. नागदेवता: सर्पों के देवता, रक्षा और समृद्धि के प्रतीक। 5. अयप्पा: धर्म और शक्ति के प्रतीक। 6. कार्तिकेय: युद्ध और साहस के देवता। पूजा और साधना हिंदू धर्म में 32 कोटि देवी-देवताओं की पूजा विधि और साधना विविध होती है। विभिन्न देवताओं के लिए विशेष मंत्र, स्तोत्र और अनुष्ठान होते हैं। भक्तजन विभिन्न देवताओं की पूजा उनके विशेष दिन, पर्व और अवसरों पर करते हैं। यह पूजा और साधना मानसिक शांति, शारीरिक स्वास्थ्य, और आध्यात्मिक उन्नति के लिए की जाती है। निष्कर्ष 32 कोटि देवी-देवताओं की अवधारणा हिंदू धर्म की विशालता और विविधता को दर्शाती है। यह दर्शाती है कि प्रत्येक देवता और देवी मानव जीवन के विभिन्न पहलुओं और आवश्यकताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन देवी-देवताओं की पूजा और साधना से हमें संपूर्ण जीवन की समृद्धि, शांति और उन्नति की प्राप्ति होती है। हिंदू धर्म की इस व्यापकता और विविधता को समझना और सम्मानित करना ही सच्ची भक्ति और आध्यात्मिकता का मार्ग है।

श्री हनुमान जी: शक्ति, भक्ति और पराक्रम के प्रतीक

श्री हनुमान जी: शक्ति, भक्ति और पराक्रम के प्रतीक श्री हनुमान जी, जिन्हें बजरंगबली, पवनपुत्र और महावीर के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म में अद्वितीय पराक्रम, भक्ति और शक्ति के प्रतीक हैं। वे भगवान शिव के रुद्रावतार और भगवान राम के अनन्य भक्त माने जाते हैं। हनुमान जी की पूजा और साधना से भक्तों को अद्वितीय शक्ति, साहस और भक्ति की प्राप्ति होती है। हनुमान जी की पूजा का महत्व हनुमान जी की पूजा करने से हमें उनके अद्वितीय गुणों और शक्तियों का आशीर्वाद मिलता है। वे वायु के देवता पवन के पुत्र हैं और उन्हें असीमित शक्ति और साहस का प्रतीक माना जाता है। हनुमान जी के भक्तों के लिए, वे संकटमोचक और अद्वितीय भक्ति के आदर्श हैं। हनुमान जी की पूजा के लाभ 1. संकटों से मुक्ति: हनुमान जी को संकटमोचक माना जाता है, जो अपने भक्तों को जीवन की हर कठिनाई और संकट से मुक्ति दिलाते हैं। 2. शक्ति और साहस: हनुमान जी की पूजा से मानसिक और शारीरिक शक्ति की प्राप्ति होती है। 3. भक्ति और विश्वास: भगवान राम के प्रति हनुमान जी की अटूट भक्ति से हमें सच्ची भक्ति और विश्वास का आदर्श मिलता है। 4. स्वास्थ्य और समृद्धि: हनुमान जी की कृपा से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है और जीवन में समृद्धि आती है। 5. बुरी शक्तियों से रक्षा: हनुमान जी की पूजा से नकारात्मक ऊर्जा और बुरी शक्तियों से रक्षा होती है। 6. विद्या और ज्ञान: हनुमान जी को ज्ञान के देवता भी माना जाता है, उनकी पूजा से विद्या और बुद्धि की वृद्धि होती है। हनुमान जी से जुड़े प्रमुख मंदिर 1. हनुमानगढ़ी, अयोध्या: उत्तर प्रदेश के अयोध्या में स्थित यह मंदिर हनुमान जी के सबसे प्रमुख मंदिरों में से एक है। 2. महावीर मंदिर, पटना: बिहार की राजधानी पटना में स्थित यह मंदिर हनुमान जी के भक्तों के लिए प्रमुख तीर्थ स्थल है। 3. हनुमान मंदिर, कंबोडिया: कंबोडिया के अंकोर वाट में स्थित हनुमान जी का यह मंदिर भी महत्वपूर्ण है। 4. हनुमान धारा, चित्रकूट: उत्तर प्रदेश के चित्रकूट में स्थित यह स्थल हनुमान जी के भक्तों के लिए विशेष स्थान रखता है। हनुमान जी से जुड़ी प्रमुख कथाएँ 1. सिंदूर कथा: एक बार माता सीता ने हनुमान जी से पूछा कि वे अपने पूरे शरीर पर सिंदूर क्यों लगाते हैं। हनुमान जी ने उत्तर दिया कि वे ऐसा इसलिए करते हैं ताकि भगवान राम की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि बनी रहे। इस कथा से हमें हनुमान जी की अटूट भक्ति का उदाहरण मिलता है। 2. लक्ष्मण मुर्छा कथा: जब लक्ष्मण जी युद्ध में मूर्छित हो गए थे, तब हनुमान जी ने संजीवनी बूटी लाकर उन्हें पुनः जीवित किया। इस कथा से हनुमान जी की शक्ति और साहस का परिचय मिलता है। 3. रामसेतु निर्माण: रामायण में वर्णित कथा के अनुसार, हनुमान जी ने अपने बल और बुद्धि से रामसेतु का निर्माण किया ताकि भगवान राम और उनकी सेना लंका पहुंच सके। हनुमान जी की पूजा और साधना विधि 1. स्नान और शुद्धिकरण: हनुमान जी की प्रतिमा या चित्र को शुद्ध जल से स्नान कराएं और शुद्ध वस्त्र पहनाएं। 2. धूप और दीप: धूप और दीप जलाकर हनुमान जी की आरती करें। 3. नैवेद्य: हनुमान जी को मिष्ठान्न, फल, और अन्य शुद्ध खाद्य पदार्थ भोग के रूप में अर्पित करें। 4. मंत्र जाप: हनुमान जी के मंत्र का जाप करें और उनका ध्यान लगाएं। 5. हनुमान चालीसा: हनुमान चालीसा का पाठ करें, जो हनुमान जी की स्तुति और महिमा का वर्णन करता है। हनुमान जी के प्रमुख मंत्र 1. मूल मंत्र: "ॐ हनुमंते नमः।" 2. हनुमान चालीसा: "श्री गुरु चरन सरोज रज, निज मन मुकुर सुधारि। बरनऊं रघुवर बिमल जसु, जो दायक फल चारि॥" 3. हनुमान अष्टक: "बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार। बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेश विकार॥" हनुमान जी की साधना के लाभ 1. संकटों से मुक्ति: हनुमान जी की साधना से जीवन के सभी संकटों और परेशानियों से मुक्ति मिलती है। 2. शक्ति और साहस: हनुमान जी की कृपा से अद्वितीय शक्ति और साहस की प्राप्ति होती है। 3. भक्ति और विश्वास: हनुमान जी की साधना से सच्ची भक्ति और विश्वास का विकास होता है। 4. स्वास्थ्य और समृद्धि: हनुमान जी की कृपा से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है और जीवन में समृद्धि आती है। 5. विद्या और ज्ञान: हनुमान जी की साधना से विद्या और बुद्धि की वृद्धि होती है। हनुमान जी की कृपा से जीवन में सुख, शांति, और समृद्धि की प्राप्ति होती है, और हमें हर कठिनाई का सामना करने की शक्ति मिलती है। हनुमान जी की पूजा न केवल हमारे जीवन को बेहतर बनाती है, बल्कि हमें आध्यात्मिक मार्ग पर आगे बढ़ने में भी मदद करती है। भगवान हनुमान की भक्ति से हमारे जीवन में सकारात्मक बदलाव आते हैं और हम आत्मिक उन्नति की ओर अग्रसर होते हैं।

दस महाविद्या: शक्ति और ज्ञान की देवी

दस महाविद्या: शक्ति और ज्ञान की देवी दस महाविद्या हिंदू धर्म की दस प्रमुख देवियों का समूह है, जिन्हें शक्ति का स्वरूप और विभिन्न आध्यात्मिक और तांत्रिक साधनाओं का प्रतिनिधित्व माना जाता है। ये देवियाँ देवी महाकाली के विभिन्न रूप हैं और हर एक का अपना विशेष महत्व और पूजन विधि है। दस महाविद्याओं की पूजा और साधना से भक्तों को अद्वितीय शक्ति, ज्ञान, और सिद्धियों की प्राप्ति होती है। 1. महाकाली महाकाली को समय और मृत्यु की देवी माना जाता है। उनका स्वरूप अंधकारमय और भयंकर है, जो बुराई और अज्ञानता का नाश करती हैं। - मंत्र: ॐ क्रीं कालिकायै नमः। - पूजा का लाभ: बुरी शक्तियों से रक्षा, साहस की प्राप्ति, और आध्यात्मिक उन्नति। 2. तारा तारा देवी को ज्ञान और तंत्र की देवी माना जाता है। वे बुराई को नष्ट करने और अपने भक्तों को मार्गदर्शन प्रदान करने वाली हैं। - मंत्र: ॐ ह्रीं स्त्रीम हुम फट। - पूजा का लाभ: आत्मज्ञान, विपत्तियों से मुक्ति, और बुरी शक्तियों से रक्षा। 3. षोडशी (त्रिपुरा सुंदरी) षोडशी को सौंदर्य और प्रेम की देवी माना जाता है। वे त्रिपुरा सुंदरी के नाम से भी जानी जाती हैं और तांत्रिक साधनाओं में महत्वपूर्ण हैं। - मंत्र: ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुंदरीयै नमः। - पूजा का लाभ: प्रेम, सौंदर्य, और भौतिक समृद्धि की प्राप्ति। 4. भुवनेश्वरी भुवनेश्वरी को विश्व की अधीश्वरी माना जाता है। वे ब्रह्मांड की रचना, संरक्षण, और संहार की शक्ति की अधिष्ठात्री हैं। - मंत्र: ॐ ह्रीं भुवनेश्वर्यै नमः। - पूजा का लाभ: मानसिक शांति, जीवन की समृद्धि, और भौतिक विकास। 5. भैरवी भैरवी को भय और अज्ञानता का नाश करने वाली देवी माना जाता है। उनका स्वरूप उग्र है और वे अपने भक्तों की रक्षा करती हैं। - मंत्र: ॐ ऐं ह्रीं क्लीं भैरव्यै नमः। - पूजा का लाभ: भूत-प्रेत बाधाओं से मुक्ति, साहस और शक्ति की प्राप्ति। 6. छिन्नमस्ता छिन्नमस्ता को आत्म-त्याग और शक्ति की देवी माना जाता है। वे अपने सिर को अपने ही हाथ में धारण करती हैं, जो आत्मबलिदान का प्रतीक है। - मंत्र: ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वज्र वैरोचनीये हुं हुं फट स्वाहा। - पूजा का लाभ: बलिदान की भावना, आत्म-शुद्धि, और बुरी शक्तियों से मुक्ति। 7. धूमावती धूमावती को विधवा और दु:ख की देवी माना जाता है। वे दु:ख और शोक की स्थिति में भी शक्ति प्रदान करती हैं। - मंत्र: ॐ धूं धूं धूमावत्यै स्वाहा। - पूजा का लाभ: बुरी आत्माओं से रक्षा, दु:ख और शोक से मुक्ति, और आंतरिक शक्ति की प्राप्ति। 8. बगलामुखी बगलामुखी को शत्रुओं का नाश करने वाली देवी माना जाता है। वे तंत्र साधनाओं में महत्वपूर्ण हैं और बुरी शक्तियों को नष्ट करती हैं। - मंत्र: ॐ ह्रीं बगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिव्हां कीलय बुद्धिं विनाशय ह्रीं ॐ स्वाहा। - पूजा का लाभ: शत्रुओं से सुरक्षा, कानूनी मामलों में सफलता, और तंत्र शक्ति की प्राप्ति। 9. मातंगी मातंगी को विद्या और कला की देवी माना जाता है। वे संगीत, ज्ञान, और कला की अधिष्ठात्री हैं। - मंत्र: ॐ ह्रीं ऐं क्लीं ह्रीं हुं मातंग्यै नमः। - पूजा का लाभ: ज्ञान की वृद्धि, कला और संगीत में सफलता, और आध्यात्मिक उन्नति। 10. कमला कमला को धन और समृद्धि की देवी लक्ष्मी का तांत्रिक रूप माना जाता है। वे धन, सौभाग्य, और समृद्धि की अधिष्ठात्री हैं। - मंत्र: ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं कमलवासिन्यै स्वाहा। - पूजा का लाभ: धन और समृद्धि की प्राप्ति, भौतिक सुख-समृद्धि, और सौभाग्य की प्राप्ति। दस महाविद्याओं की साधना और पूजा विधि 1. स्नान और शुद्धिकरण: देवी की प्रतिमा या चित्र को शुद्ध जल से स्नान कराएं और शुद्ध वस्त्र पहनाएं। 2. धूप और दीप: धूप और दीप जलाकर देवी की आरती करें। 3. नैवेद्य: देवी को मिष्ठान्न, फल, और अन्य शुद्ध खाद्य पदार्थ भोग के रूप में अर्पित करें। 4. मंत्र जाप: देवी के मंत्र का जाप करें और उनका ध्यान लगाएं। 5. हवन: हवन करें और उसमें देवी के मंत्रों का उच्चारण करें। दस महाविद्याओं के लाभ 1. आध्यात्मिक जागरण: आत्म-साक्षात्कार और आध्यात्मिक उन्नति की प्राप्ति। 2. सुरक्षा: बुरी आत्माओं और नकारात्मक शक्तियों से रक्षा। 3. सिद्धियों की प्राप्ति: तंत्र साधना और मंत्र जाप से विभिन्न सिद्धियों की प्राप्ति। 4. सुख-समृद्धि: धन, सौभाग्य, और समृद्धि की प्राप्ति। 5. ज्ञान और कला: ज्ञान, विद्या, और कला में सफलता। 6. शत्रु नाश: शत्रुओं और कानूनी मामलों में सफलता। दस महाविद्याओं की पूजा और साधना से भक्तों को अद्वितीय शक्ति, ज्ञान, और सिद्धियों की प्राप्ति होती है। ये देवियाँ हमारे जीवन को सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ने में मदद करती हैं और हमें हर कठिनाई का सामना करने की शक्ति देती हैं। माँ महाविद्याओं की कृपा से हमारे जीवन में सुख, शांति, और समृद्धि की प्राप्ति होती है, और हम आत्मिक उन्नति की ओर अग्रसर होते हैं।

माँ काली: शक्ति, रक्षण, और विनाश की देवी

माँ काली: शक्ति, रक्षण, और विनाश की देवी माँ काली, जिन्हें काली माता, महाकाली, और कालिका के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म की प्रमुख देवियों में से एक हैं। वे शक्ति की देवी हैं और उन्हें विनाश और पुनर्जन्म का प्रतीक माना जाता है। माँ काली का रूप भयावह और शक्तिशाली है, जो बुराई और अज्ञानता को नष्ट करती है। उनकी पूजा से भक्तों को शक्ति, साहस, और बुरी आत्माओं से रक्षा मिलती है। माँ काली की पूजा का महत्व और लाभ माँ काली की पूजा क्यों करते हैं? माँ काली की पूजा उनके अद्वितीय रूप और शक्तियों का आशीर्वाद पाने के लिए की जाती है। वे बुरी शक्तियों, राक्षसों, और अज्ञानता को नष्ट करती हैं और अपने भक्तों को सुरक्षा प्रदान करती हैं। माँ काली का ध्यान और पूजा हमें आंतरिक शक्ति, साहस, और आत्मविश्वास प्राप्त करने में मदद करती है। माँ काली की पूजा के लाभ 1. शक्ति और साहस: माँ काली की पूजा से आंतरिक शक्ति और साहस मिलता है। 2. सुरक्षा: बुरी आत्माओं और नकारात्मक शक्तियों से रक्षा होती है। 3. अज्ञानता का नाश: अज्ञानता और अंधकार का नाश होता है और ज्ञान का प्रकाश प्राप्त होता है। 4. मानसिक शांति: मानसिक तनाव और चिंता से मुक्ति मिलती है। 5. कष्टों से मुक्ति: जीवन में आने वाले कष्ट और बाधाओं को दूर करने में सहायता मिलती है। 6. आध्यात्मिक उन्नति: आत्मा की शुद्धि और आध्यात्मिक विकास के लिए माँ काली की पूजा अत्यंत महत्वपूर्ण है। 7. सकारात्मक ऊर्जा: माँ काली की पूजा से घर और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। 8. रोगों से मुक्ति: माँ काली की कृपा से शारीरिक और मानसिक रोगों से मुक्ति मिलती है। 9. संकटों का समाधान: जीवन में आने वाले संकटों और समस्याओं का समाधान होता है। 10. आत्म-साक्षात्कार: आत्म-साक्षात्कार और आध्यात्मिक जागरण की प्राप्ति होती है। किस अवसर पर माँ काली की पूजा करते हैं? 1. काली पूजा: दिवाली के अगले दिन, पश्चिम बंगाल और अन्य स्थानों पर माँ काली की विशेष पूजा की जाती है। इस दिन देवी की प्रतिमा की स्थापना और पूजा की जाती है। 2. अमावस्या: प्रत्येक अमावस्या के दिन माँ काली की पूजा की जाती है। इस दिन विशेष रूप से देवी के मंत्रों का जाप और हवन किया जाता है। 3. महाकाली जयंती: यह पर्व माँ काली के अवतरण का दिन है, जो विशेष रूप से बंगाल में मनाया जाता है। 4. नवरात्रि: शारदीय नवरात्रि के दौरान माँ काली की विशेष पूजा और आराधना की जाती है। माँ काली से जुड़े प्रमुख मंदिर और तीर्थ स्थल 1. दक्षिणेश्वर काली मंदिर: कोलकाता, पश्चिम बंगाल में स्थित यह मंदिर माँ काली को समर्पित सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। 2. कालिका मंदिर: कालिका पहाड़ी, दिल्ली में स्थित यह मंदिर माँ काली की प्रमुख पूजा स्थली है। 3. कालीघाट काली मंदिर: कोलकाता में स्थित यह मंदिर माँ काली का अत्यंत महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। 4. कामाख्या मंदिर: गुवाहाटी, असम में स्थित यह मंदिर शक्ति पीठों में से एक है और माँ काली की पूजा का प्रमुख केंद्र है। माँ काली से जुड़ी प्रमुख कथाएँ 1. दुर्गा सप्तशती: माँ काली की उत्पत्ति और महिषासुर मर्दिनी के रूप में उनकी कथा दुर्गा सप्तशती में वर्णित है। देवी दुर्गा ने माँ काली को असुरों के संहार के लिए उत्पन्न किया था। 2. रक्तबीज वध: माँ काली ने रक्तबीज नामक असुर का वध किया, जिसकी रक्त की हर बूंद से एक नया रक्तबीज उत्पन्न होता था। माँ काली ने उसे मारकर उसका रक्त पी लिया, जिससे वह पुनः जीवित न हो सका। 3. माँ काली और भगवान शिव: एक कथा के अनुसार, माँ काली ने अपनी क्रोधावस्था में सम्पूर्ण संसार को नष्ट करने का संकल्प किया। तब भगवान शिव ने अपने शरीर को उनके सामने लिटा दिया। जब माँ काली ने भगवान शिव पर कदम रखा, तो उनका क्रोध शांत हो गया। माँ काली ध्यान और साधना 1. काली मंत्र: "ॐ क्रीं कालिकायै नमः" मंत्र का जाप करने से माँ काली की कृपा प्राप्त होती है। यह मंत्र मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति के लिए अत्यंत प्रभावी है। 2. काली ध्यान: माँ काली की ध्यान साधना में उनकी प्रतिमा या चित्र के सामने ध्यान लगाना, उनकी मूर्ति के सामने धूप-दीप जलाना और उनकी स्तुति में भजन-कीर्तन करना शामिल है। 3. काली चालीसा: काली चालीसा का पाठ माँ काली की महिमा का गुणगान करता है और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए अत्यंत प्रभावी माना जाता है। माँ काली की पूजा विधि 1. स्नान और शुद्धिकरण: माँ काली की प्रतिमा या चित्र को शुद्ध जल से स्नान कराएं। 2. वस्त्र और आभूषण: माँ काली को सुन्दर वस्त्र और आभूषण पहनाएं। 3. धूप और दीप: धूप और दीप जलाकर माँ काली की आरती करें। 4. नैवेद्य: माँ काली को मिष्ठान्न, फल, और अन्य शुद्ध खाद्य पदार्थ भोग के रूप में अर्पित करें। 5. आरती और मंत्र: माँ काली की आरती करें और "ॐ क्रीं कालिकायै नमः" मंत्र का जाप करें। माँ काली के प्रतीक और उनके महत्व 1. मुण्डमाला: माँ काली की मुण्डमाला उनके भयंकर रूप और राक्षसों के संहार का प्रतीक है। 2. त्रिशूल: माँ काली का त्रिशूल शक्ति और साहस का प्रतीक है। 3. कृपाण: माँ काली की कृपाण अज्ञानता और बुरी शक्तियों के विनाश का प्रतीक है। 4. जीभ: माँ काली की बाहर निकली जीभ उनके क्रोध और शक्ति का प्रतीक है। माँ काली की स्तुतियाँ और भजन 1. काली चालीसा: काली चालीसा का पाठ माँ काली की महिमा का गुणगान करता है और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए अत्यंत प्रभावी माना जाता है। 2. काली भजन: माँ काली के भजन गाकर भक्त उनकी कृपा प्राप्त करते हैं और भक्ति में वृद्धि होती है। 3. काली स्तुति: काली स्तुति का पाठ करने से भक्त माँ काली की कृपा प्राप्त करते हैं और भक्ति में वृद्धि होती है। माँ काली की कृपा से जीवन में शक्ति, साहस, और सुरक्षा की प्राप्ति होती है, और हमें हर कठिनाई का सामना करने की शक्ति मिलती है। माँ काली की पूजा न केवल हमारे जीवन को बेहतर बनाती है, बल्कि हमें आध्यात्मिक मार्ग पर आगे बढ़ने में भी मदद करती है। माँ काली की भक्ति से हमारे जीवन में सकारात्मक बदलाव आते हैं और हम आत्मिक उन्नति की ओर अग्रसर होते हैं।

भगवान श्रीकृष्ण: प्रेम, ज्ञान, और भक्ति के देवता

भगवान श्रीकृष्ण: प्रेम, ज्ञान, और भक्ति के देवता भगवान श्रीकृष्ण, जिन्हें गोविंद, गोपाल, और मुरलीधर के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक हैं। वे विष्णु जी के अवतार माने जाते हैं और उनके जीवन की कहानियाँ और शिक्षाएँ भक्तों के लिए अनमोल धरोहर हैं। श्रीकृष्ण का जीवन प्रेम, भक्ति, और ज्ञान का प्रतीक है। वे गीता के उपदेशक और महाभारत के नायक हैं, जिन्होंने धर्म और अधर्म के बीच के संघर्ष में पांडवों का मार्गदर्शन किया। श्रीकृष्ण जी की पूजा का महत्व और लाभ श्रीकृष्ण जी की पूजा क्यों करते हैं? श्रीकृष्ण जी की पूजा करने से उनके अद्वितीय गुणों और शक्तियों का आशीर्वाद मिलता है। वे बालकृष्ण के रूप में बाल लीलाओं के लिए प्रसिद्ध हैं, यौवन में गोपियों के साथ रास लीला, और कुरुक्षेत्र में अर्जुन को गीता का उपदेश देने वाले उपदेशक के रूप में। उनकी पूजा हमें प्रेम, भक्ति, और ज्ञान की प्राप्ति में मदद करती है। श्रीकृष्ण जी की पूजा के लाभ 1. प्रेम और भक्ति: श्रीकृष्ण जी की पूजा से प्रेम और भक्ति की भावना में वृद्धि होती है। 2. ज्ञान का प्रकाश: गीता के उपदेशों से जीवन में ज्ञान और सही मार्गदर्शन प्राप्त होता है। 3. आध्यात्मिक उन्नति: आध्यात्मिक विकास और आत्मा की शुद्धि होती है। 4. सुख और समृद्धि: जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है। 5. संकटों से मुक्ति: जीवन में आने वाली कठिनाइयों और संकटों से मुक्ति मिलती है। 6. सकारात्मक ऊर्जा: श्रीकृष्ण जी की पूजा से घर और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। 7. धार्मिक संतुलन: धर्म और अधर्म के बीच संतुलन बनाने में सहायता मिलती है। किस अवसर पर श्रीकृष्ण जी की पूजा करते हैं? 1. जन्माष्टमी: भाद्रपद महीने की अष्टमी को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया जाता है। 2. गोपाष्टमी: कार्तिक महीने में गोपाष्टमी के दिन गोधन की पूजा और भगवान श्रीकृष्ण की विशेष पूजा की जाती है। 3. राधाष्टमी: राधा जी के जन्मोत्सव पर भी श्रीकृष्ण जी की पूजा की जाती है। 4. कृष्ण लीला: विभिन्न अवसरों पर श्रीकृष्ण लीला का आयोजन किया जाता है, जिसमें उनकी लीलाओं का नाट्य रूपांतरण होता है। श्रीकृष्ण जी से जुड़े प्रमुख मंदिर और तीर्थ स्थल 1. श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर, मथुरा: उत्तर प्रदेश के मथुरा में स्थित यह मंदिर श्रीकृष्ण जी का जन्मस्थान है। 2. द्वारकाधीश मंदिर, द्वारका: गुजरात के द्वारका में स्थित यह मंदिर श्रीकृष्ण जी का प्रमुख मंदिर है। 3. गोविंद देव जी मंदिर, जयपुर: राजस्थान के जयपुर में स्थित यह मंदिर भी श्रीकृष्ण जी की पूजा का महत्वपूर्ण स्थल है। 4. बांके बिहारी मंदिर, वृंदावन: वृंदावन में स्थित यह मंदिर राधा-कृष्ण की प्रेम की अद्वितीय स्थली है। 5. इस्कॉन मंदिर, वृंदावन: इस्कॉन मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण की पूजा और भजन-कीर्तन का विशेष महत्व है। श्रीकृष्ण जी से जुड़ी प्रमुख कथाएँ 1. बाल लीलाएँ: भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाएँ, जैसे मक्खन चोरी, कालिया नाग का वध, और पूतना वध, भक्ति और प्रेम की अद्वितीय कथाएँ हैं। 2. गोवर्धन पूजा: इंद्र के क्रोध से गोकुलवासियों को बचाने के लिए श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी अंगुली पर उठा लिया। 3. रास लीला: श्रीकृष्ण और गोपियों की रास लीला प्रेम और भक्ति की अद्वितीय कथा है। 4. गीता उपदेश: महाभारत के युद्ध के दौरान अर्जुन को दिए गए गीता के उपदेश जीवन के महत्व और धर्म के पालन का मार्गदर्शन करते हैं। श्रीकृष्ण ध्यान और साधना 1. कृष्ण मंत्र: "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का जाप करने से श्रीकृष्ण जी की कृपा प्राप्त होती है। 2. कृष्ण भजन: श्रीकृष्ण के भजन गाकर भक्त प्रेम और भक्ति में मग्न हो जाते हैं। 3. कृष्ण अष्टकम: श्रीकृष्ण अष्टकम का पाठ उनकी महिमा का गुणगान करता है और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए अत्यंत प्रभावी माना जाता है। श्रीकृष्ण जी की पूजा विधि 1. स्नान और शुद्धिकरण: श्रीकृष्ण जी की प्रतिमा या चित्र को शुद्ध जल से स्नान कराएं। 2. वस्त्र और आभूषण: श्रीकृष्ण जी को सुन्दर वस्त्र और आभूषण पहनाएं। 3. धूप और दीप: धूप और दीप जलाकर श्रीकृष्ण जी की आरती करें। 4. नैवेद्य: श्रीकृष्ण जी को मिष्ठान्न, फल, और अन्य शुद्ध खाद्य पदार्थ भोग के रूप में अर्पित करें। 5. आरती और मंत्र: श्रीकृष्ण जी की आरती करें और "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का जाप करें। श्रीकृष्ण जी के प्रतीक और उनके महत्व 1. मुरली: श्रीकृष्ण की मुरली प्रेम और संगीत का प्रतीक है। 2. मोरे के पंख: श्रीकृष्ण के मस्तक पर मोर पंख सौंदर्य और दिव्यता का प्रतीक है। 3. पीतांबर: श्रीकृष्ण का पीतांबर वस्त्र समृद्धि और शुद्धता का प्रतीक है। 4. वृंदावन: वृंदावन, राधा-कृष्ण के प्रेम की अद्वितीय स्थली है और उनकी भक्ति का प्रमुख केंद्र है। श्रीकृष्ण जी के स्तुतियाँ और भजन 1. श्रीकृष्ण अष्टकम: श्रीकृष्ण अष्टकम का पाठ श्रीकृष्ण जी की महिमा का गुणगान करता है और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए अत्यंत प्रभावी माना जाता है। 2. कृष्ण भजन: श्रीकृष्ण के भजन गाकर भक्त प्रेम और भक्ति में मग्न हो जाते हैं और श्रीकृष्ण जी की कृपा प्राप्त करते हैं। 3. श्रीकृष्ण स्तुति: श्रीकृष्ण स्तुति का पाठ करने से भक्त श्रीकृष्ण जी की कृपा प्राप्त करते हैं और भक्ति में वृद्धि होती है। भगवान श्रीकृष्ण की कृपा से जीवन में प्रेम, भक्ति, और ज्ञान की प्राप्ति होती है, और हमें हर कठिनाई का सामना करने की शक्ति मिलती है। श्रीकृष्ण जी की पूजा न केवल हमारे जीवन को बेहतर बनाती है, बल्कि हमें आध्यात्मिक मार्ग पर आगे बढ़ने में भी मदद करती है। भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति से हमारे जीवन में सकारात्मक बदलाव आते हैं और हम आत्मिक उन्नति की ओर अग्रसर होते हैं।

माता राधा: प्रेम और भक्ति की देवी

माता राधा: प्रेम और भक्ति की देवी माता राधा, जिन्हें राधारानी या श्री राधिका के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म की प्रमुख देवियों में से एक हैं। वे भगवान श्रीकृष्ण की अर्धांगिनी और उनकी परमप्रिया मानी जाती हैं। राधा जी को प्रेम और भक्ति की देवी के रूप में पूजा जाता है। वे भक्ति, समर्पण और निस्वार्थ प्रेम की प्रतीक हैं। उनकी पूजा उनके भक्तों को आध्यात्मिक प्रेम और परम भक्ति का अनुभव कराती है। राधा जी की पूजा का महत्व और लाभ राधा जी की पूजा क्यों करते हैं? राधा जी की पूजा करने से हमें उनके दिव्य प्रेम और भक्ति का आशीर्वाद मिलता है। वे भगवान श्रीकृष्ण के साथ एकात्म हैं और उनकी भक्ति हमें ईश्वर के प्रति प्रेम और समर्पण की ओर प्रेरित करती है। राधा जी का ध्यान और पूजा हमें आंतरिक शांति, प्रेम, और भक्ति की प्राप्ति में मदद करती है। राधा जी की पूजा के लाभ 1. अद्वितीय प्रेम: राधा जी की पूजा से अद्वितीय और निस्वार्थ प्रेम की प्राप्ति होती है। 2. भक्ति का विकास: भक्ति और समर्पण में वृद्धि होती है। 3. आध्यात्मिक उन्नति: आध्यात्मिक विकास और आत्मा की शुद्धि होती है। 4. आंतरिक शांति: मानसिक शांति और संतुलन की प्राप्ति होती है। 5. सद्भाव और सौहार्द: पारिवारिक और सामाजिक जीवन में सद्भाव और सौहार्द बढ़ता है। 6. भगवान कृष्ण की कृपा: भगवान श्रीकृष्ण की कृपा प्राप्त होती है। किस अवसर पर राधा जी की पूजा करते हैं? 1. राधाष्टमी: भाद्रपद महीने की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को राधाष्टमी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन राधा जी का जन्मोत्सव मनाया जाता है और उनकी विशेष पूजा की जाती है। 2. जन्माष्टमी: श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दौरान भी राधा जी की पूजा की जाती है, क्योंकि वे भगवान श्रीकृष्ण की अर्धांगिनी हैं। 3. कार्तिक मास: कार्तिक महीने में राधा-कृष्ण की पूजा का विशेष महत्व होता है। इस दौरान भक्त राधा जी और श्रीकृष्ण की कथा सुनते और भजन-कीर्तन करते हैं। राधा जी से जुड़े प्रमुख मंदिर और तीर्थ स्थल 1. राधा रानी मंदिर, बरसाना: उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में स्थित यह मंदिर राधा जी का प्रमुख मंदिर है और उनकी जन्मस्थली माना जाता है। 2. बांके बिहारी मंदिर, वृंदावन: वृंदावन में स्थित यह मंदिर राधा-कृष्ण की प्रेम की अद्वितीय स्थली है। 3. राधा गोविंद मंदिर, जयपुर: राजस्थान के जयपुर में स्थित यह मंदिर भी राधा-कृष्ण की पूजा का प्रमुख स्थल है। 4. राधा बल्लभ मंदिर, वृंदावन: वृंदावन में स्थित यह मंदिर राधा-कृष्ण की पूजा का महत्वपूर्ण केंद्र है। राधा जी से जुड़ी प्रमुख कथाएँ 1. राधा-कृष्ण का प्रेम: राधा जी और श्रीकृष्ण का प्रेम अद्वितीय और दिव्य माना जाता है। उनकी प्रेम कहानियाँ भक्ति और समर्पण का प्रतीक हैं। 2. गोपियों के साथ रास लीला: राधा जी और गोपियों के साथ श्रीकृष्ण की रास लीला, प्रेम और भक्ति की अद्वितीय घटना मानी जाती है। 3. राधा का त्याग: राधा जी का श्रीकृष्ण के प्रति निस्वार्थ प्रेम और त्याग, भक्ति और समर्पण की अद्वितीय मिसाल है। राधा ध्यान और साधना 1. राधा मंत्र: "राधे कृष्णा" मंत्र का जाप करने से राधा जी की कृपा प्राप्त होती है। यह मंत्र प्रेम और भक्ति के लिए अत्यंत प्रभावी है। 2. राधा वंदना: राधा वंदना का पाठ करने से देवी राधा की कृपा प्राप्त होती है और भक्ति में वृद्धि होती है। 3. राधा अष्टकम: राधा अष्टकम का पाठ राधा जी की महिमा का गुणगान करता है और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए अत्यंत प्रभावी माना जाता है। राधा जी की पूजा विधि 1. स्नान और शुद्धिकरण: राधा जी की प्रतिमा या चित्र को शुद्ध जल से स्नान कराएं। 2. वस्त्र और आभूषण: राधा जी को सुन्दर वस्त्र और आभूषण पहनाएं। 3. धूप और दीप: धूप और दीप जलाकर राधा जी की आरती करें। 4. नैवेद्य: राधा जी को मिष्ठान्न, फल, और अन्य शुद्ध खाद्य पदार्थ भोग के रूप में अर्पित करें। 5. आरती और मंत्र: राधा जी की आरती करें और "राधे कृष्णा" मंत्र का जाप करें। राधा जी के प्रतीक और उनके महत्व 1. कमल: राधा जी का कमल प्रेम और पवित्रता का प्रतीक है। 2. मोरपंख: राधा जी के मस्तक पर मोरपंख सौंदर्य और दिव्यता का प्रतीक है। 3. पुष्प: राधा जी के पुष्प भक्ति और समर्पण का प्रतीक हैं। 4. वृंदावन: वृंदावन, राधा-कृष्ण के प्रेम की अद्वितीय स्थली है और उनकी भक्ति का प्रमुख केंद्र है। राधा जी के स्तुतियाँ और भजन 1. राधा वंदना: राधा वंदना का पाठ करने से देवी राधा की कृपा प्राप्त होती है और भक्ति में वृद्धि होती है। 2. राधा अष्टकम: राधा अष्टकम का पाठ राधा जी की महिमा का गुणगान करता है और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए अत्यंत प्रभावी माना जाता है। 3. राधा कृष्ण भजन: राधा-कृष्ण के भजन गाकर भक्त प्रेम और भक्ति में मग्न हो जाते हैं और राधा जी की कृपा प्राप्त करते हैं। भगवान राधा की कृपा से जीवन में प्रेम, भक्ति, और समर्पण की प्राप्ति होती है, और हमें हर कठिनाई का सामना करने की शक्ति मिलती है। राधा जी की पूजा न केवल हमारे जीवन को बेहतर बनाती है, बल्कि हमें आध्यात्मिक मार्ग पर आगे बढ़ने में भी मदद करती है। देवी राधा की भक्ति से हमारे जीवन में सकारात्मक बदलाव आते हैं और हम आत्मिक उन्नति की ओर अग्रसर होते हैं।

माता सरस्वती: विद्या और कला की देवी

माता सरस्वती: विद्या और कला की देवी माता सरस्वती, जिन्हें विद्या, संगीत, कला और ज्ञान की देवी के रूप में पूजा जाता है, हिंदू धर्म की प्रमुख देवियों में से एक हैं। वे ब्रह्मा जी की पत्नी और सृष्टि की आधार हैं। उनका वाहन हंस है और वे वीणा धारण करती हैं। सरस्वती जी की पूजा उनके भक्तों को ज्ञान, बुद्धि, और कला में निपुणता प्रदान करती है। सरस्वती जी की पूजा का महत्व और लाभ सरस्वती जी की पूजा क्यों करते हैं? सरस्वती जी की पूजा करने से हमें उनके अद्वितीय गुणों और शक्तियों का आशीर्वाद मिलता है। वे अपने भक्तों को विद्या, बुद्धि, और संगीत कला का वरदान देती हैं। सरस्वती जी का ध्यान और पूजा हमें मानसिक शांति और संतुलन की प्राप्ति में मदद करती है। सरस्वती जी की पूजा के लाभ 1. ज्ञान और बुद्धि: सरस्वती जी की पूजा से ज्ञान और बुद्धि की प्राप्ति होती है। 2. संगीत और कला: संगीत, कला, और साहित्य में निपुणता मिलती है। 3. विद्या की प्राप्ति: शिक्षा में सफलता और विद्या की प्राप्ति होती है। 4. मानसिक शांति: मानसिक शांति और संतुलन की प्राप्ति होती है। 5. स्मरण शक्ति: स्मरण शक्ति में सुधार होता है। 6. रचनात्मकता: रचनात्मकता और नवीनता की वृद्धि होती है। 7. आध्यात्मिक उन्नति: आत्मा की शुद्धि और आध्यात्मिक विकास के लिए सरस्वती जी की पूजा अत्यंत महत्वपूर्ण है। किस अवसर पर सरस्वती जी की पूजा करते हैं? 1. वसंत पंचमी: वसंत पंचमी का पर्व सरस्वती पूजा के लिए प्रमुख दिन है। इस दिन विशेष रूप से विद्या की देवी सरस्वती जी की पूजा की जाती है। 2. शरद पूर्णिमा: शरद पूर्णिमा के दिन भी सरस्वती जी की पूजा की जाती है। 3. नवरात्रि: नवरात्रि के दौरान सरस्वती जी की पूजा का विशेष महत्व है, विशेषकर अंतिम तीन दिनों में। 4. शिक्षा आरंभ: किसी भी शिक्षा या पाठ्यक्रम की शुरुआत से पहले सरस्वती जी की पूजा की जाती है। सरस्वती जी से जुड़े प्रमुख मंदिर और तीर्थ स्थल 1. सरस्वती मंदिर, पुष्कर: राजस्थान के पुष्कर में स्थित यह मंदिर सरस्वती जी को समर्पित है। 2. बसर सरस्वती मंदिर: आंध्र प्रदेश के बसर में स्थित यह मंदिर भी सरस्वती जी की पूजा का प्रमुख केंद्र है। 3. कोल्लूर मूकाम्बिका मंदिर: कर्नाटक के कोल्लूर में स्थित यह मंदिर सरस्वती जी को समर्पित है। 4. सरस्वती मंदिर, काशी: उत्तर प्रदेश के काशी (वाराणसी) में स्थित यह मंदिर भी सरस्वती जी को समर्पित है। सरस्वती जी से जुड़ी प्रमुख कथाएँ 1. सृष्टि की रचना: सरस्वती जी को सृष्टि की रचना में ब्रह्मा जी की सहायक माना जाता है। उन्होंने सृष्टि को ज्ञान और विद्या से आलोकित किया। 2. महिषासुर मर्दिनी: देवी सरस्वती ने महिषासुर के आतंक से देवताओं को मुक्त कराने के लिए देवी दुर्गा के साथ मिलकर महिषासुर का वध किया। 3. दधिचि की हड्डियों से अस्त्र निर्माण: सरस्वती जी की कृपा से महर्षि दधिचि ने अपनी हड्डियों का त्याग किया, जिससे वज्र अस्त्र का निर्माण हुआ और देवताओं ने असुरों को पराजित किया। सरस्वती ध्यान और साधना 1. सरस्वती मंत्र: "ॐ ऐं सरस्वत्यै नमः" मंत्र का जाप करने से सरस्वती जी की कृपा प्राप्त होती है। यह मंत्र बुद्धि और विद्या के लिए अत्यंत प्रभावी है। 2. सरस्वती वंदना: सरस्वती वंदना का पाठ करने से देवी सरस्वती की कृपा प्राप्त होती है और शिक्षा में सफलता मिलती है। 3. सरस्वती चालीसा: सरस्वती चालीसा का पाठ सरस्वती जी की महिमा का गुणगान करता है और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए अत्यंत प्रभावी माना जाता है। सरस्वती जी की पूजा विधि 1. स्नान और शुद्धिकरण: सरस्वती जी की प्रतिमा या चित्र को शुद्ध जल से स्नान कराएं। 2. वस्त्र और आभूषण: सरस्वती जी को सफेद वस्त्र और आभूषण पहनाएं। 3. धूप और दीप: धूप और दीप जलाकर सरस्वती जी की आरती करें। 4. नैवेद्य: सरस्वती जी को खीर, फल, मिठाई, और अन्य शुद्ध खाद्य पदार्थ भोग के रूप में अर्पित करें। 5. आरती और मंत्र: सरस्वती जी की आरती करें और "ॐ ऐं सरस्वत्यै नमः" मंत्र का जाप करें। सरस्वती जी के प्रतीक और उनके महत्व 1. वीणा: सरस्वती जी की वीणा संगीत और कला का प्रतीक है। 2. हंस: सरस्वती जी का वाहन हंस पवित्रता और ज्ञान का प्रतीक है। 3. वेद: सरस्वती जी के हाथों में वेद ज्ञान और विद्या का प्रतीक हैं। 4. कमल: सरस्वती जी का कमल सत्य और पवित्रता का प्रतीक है। 5. श्वेत वस्त्र: सरस्वती जी के श्वेत वस्त्र पवित्रता और सच्चाई का प्रतीक हैं। सरस्वती जी के स्तुतियाँ और भजन 1. सरस्वती वंदना: सरस्वती वंदना का पाठ करने से देवी सरस्वती की कृपा प्राप्त होती है और शिक्षा में सफलता मिलती है। 2. सरस्वती चालीसा: सरस्वती चालीसा का पाठ सरस्वती जी की महिमा का गुणगान करता है और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए अत्यंत प्रभावी माना जाता है। 3. सरस्वती स्तोत्र: सरस्वती स्तोत्र का पाठ सरस्वती जी की आराधना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और उनकी कृपा प्राप्त करने में सहायक होता है। भगवान सरस्वती की कृपा से जीवन में ज्ञान, बुद्धि, और कला की प्राप्ति होती है, और हमें हर कठिनाई का सामना करने की शक्ति मिलती है। सरस्वती जी की पूजा न केवल हमारे जीवन को बेहतर बनाती है, बल्कि हमें आध्यात्मिक मार्ग पर आगे बढ़ने में भी मदद करती है। देवी सरस्वती की भक्ति से हमारे जीवन में सकारात्मक बदलाव आते हैं और हम आत्मिक उन्नति की ओर अग्रसर होते हैं।

भगवान गणेश: विघ्नहर्ता और उनकी पूजा का महत्व

भगवान गणेश: विघ्नहर्ता और उनकी पूजा का महत्व भगवान गणेश, जिन्हें गजानन, गणपति, विनायक, और एकदंत के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक हैं। वे बुद्धि, समृद्धि और सौभाग्य के देवता माने जाते हैं। भगवान गणेश को सभी शुभ कार्यों की शुरुआत में पूजा जाता है क्योंकि वे विघ्नों को हरने वाले माने जाते हैं। उनका वाहन मूषक और उनके चार हाथ होते हैं। गणेश जी की पूजा उनके भक्तों को सुख, शांति और समृद्धि प्रदान करती है। गणेश जी की पूजा का महत्व और लाभ गणेश जी की पूजा क्यों करते हैं? गणेश जी की पूजा करने से हमें उनकी अनन्त कृपा और आशीर्वाद मिलता है। वे अपने भक्तों को बुद्धि, समृद्धि और सफलता का वरदान देते हैं और जीवन में आने वाली हर बाधा को दूर करते हैं। गणेश जी का ध्यान और पूजा हमें भौतिक और आध्यात्मिक उन्नति में मदद करती है। गणेश जी की पूजा के लाभ बुद्धि और ज्ञान: गणेश जी की पूजा से बुद्धि और ज्ञान की प्राप्ति होती है। सफलता: जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है। विघ्नों का नाश: सभी प्रकार के विघ्नों और बाधाओं का नाश होता है। शांति और संतोष: मानसिक शांति और संतोष की प्राप्ति होती है। धन और समृद्धि: धन और समृद्धि की प्राप्ति होती है। स्वास्थ्य: शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है। सकारात्मक ऊर्जा: गणेश जी की पूजा से घर और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। शत्रुओं से सुरक्षा: गणेश जी की पूजा से शत्रुओं और बुरी आत्माओं से रक्षा होती है। संतान प्राप्ति: निःसंतान दंपतियों के लिए गणेश जी की पूजा संतान प्राप्ति के लिए लाभकारी होती है। मोक्ष प्राप्ति: गणेश जी की पूजा से मोक्ष की प्राप्ति होती है और जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिलती है। किस अवसर पर गणेश जी की पूजा करते हैं? गणेश चतुर्थी: यह भगवान गणेश का सबसे महत्वपूर्ण पर्व है, जो भाद्रपद महीने में मनाया जाता है। इस दिन गणेश जी की मूर्ति की स्थापना और दस दिनों तक पूजा-अर्चना की जाती है। संकष्टी चतुर्थी: हर महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है और गणेश जी की पूजा की जाती है। विनायक चतुर्थी: हर महीने की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है। दीवाली: दीवाली के दिन लक्ष्मी पूजा के साथ गणेश जी की भी पूजा की जाती है। नाग पंचमी: इस दिन गणेश जी के साथ नाग देवता की पूजा की जाती है। विवाह और गृह प्रवेश: किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत से पहले गणेश जी की पूजा की जाती है। गणेश जी से जुड़े प्रमुख मंदिर और तीर्थ स्थल सिद्धिविनायक मंदिर: मुंबई में स्थित यह मंदिर भगवान गणेश को समर्पित सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। दगडूशेठ हलवाई गणपति मंदिर: पुणे में स्थित यह मंदिर गणेश भक्तों के लिए विशेष महत्व रखता है। अष्टविनायक मंदिर: महाराष्ट्र में स्थित आठ प्रमुख गणेश मंदिरों का समूह है, जो अष्टविनायक के नाम से जाना जाता है। कणिपकम विनायक मंदिर: आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में स्थित यह मंदिर गणेश जी को समर्पित है। रणथंभौर त्रिनेत्र गणेश मंदिर: राजस्थान के रणथंभौर किले में स्थित यह मंदिर भी प्रमुख गणेश मंदिरों में से एक है। गणेश जी से जुड़ी प्रमुख कथाएँ गणेश का जन्म: इस कथा के अनुसार, माता पार्वती ने अपने उबटन से गणेश जी की मूर्ति बनाकर उनमें प्राण फूंके थे। शिव जी ने अज्ञानता में गणेश जी का सिर काट दिया और फिर हाथी का सिर लगाकर उन्हें पुनः जीवित किया। गणेश और कार्तिकेय की परिक्रमा: यह कथा बताती है कि जब गणेश और कार्तिकेय में परिक्रमा करने की प्रतियोगिता हुई, तो गणेश जी ने अपने माता-पिता शिव और पार्वती की परिक्रमा करके प्रथम स्थान प्राप्त किया। गणेश का विवाह: इस कथा में गणेश जी के विवाह की कहानी है, जिसमें उनकी पत्नियाँ रिद्धि और सिद्धि हैं। गणेश और चंद्रमा: यह कथा बताती है कि गणेश जी ने चंद्रमा को श्राप दिया था क्योंकि चंद्रमा ने उनकी हंसी उड़ाई थी। इसके परिणामस्वरूप, गणेश चतुर्थी के दिन चंद्रमा देखने को अपशकुन माना जाता है। गणेश ध्यान और साधना गणेश मंत्र: "ॐ गण गणपतये नमः" मंत्र का जाप करने से गणेश जी की कृपा प्राप्त होती है। यह मंत्र बुद्धि और सफलता के लिए अत्यंत प्रभावी है। गणेश अथर्वशीर्ष: गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करने से गणेश जी की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में सुख-शांति और समृद्धि का संचार होता है। गणेश चालीसा: गणेश चालीसा का पाठ गणेश जी की महिमा का गुणगान करता है और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए अत्यंत प्रभावी माना जाता है। गणेश जी की पूजा विधि स्नान और शुद्धिकरण: गणेश जी की प्रतिमा या चित्र को शुद्ध जल से स्नान कराएं। इसके बाद गंगा जल, दूध, दही, घी, शहद, और शक्कर से अभिषेक करें। दूर्वा घास: गणेश जी की प्रतिमा पर दूर्वा घास चढ़ाएं। यह उनकी पूजा में महत्वपूर्ण है। धूप और दीप: धूप और दीप जलाकर गणेश जी की आरती करें। नैवेद्य: गणेश जी को मोदक, लड्डू, फल, मिठाई और अन्य शुद्ध खाद्य पदार्थ भोग के रूप में अर्पित करें। आरती और मंत्र: गणेश जी की आरती करें और "ॐ गण गणपतये नमः" मंत्र का जाप करें। गणेश जी के प्रतीक और उनके महत्व हाथी का सिर: गणेश जी का हाथी का सिर बुद्धि और ज्ञान का प्रतीक है। चार हाथ: गणेश जी के चार हाथ उनके अनेक गुणों और शक्तियों का प्रतीक हैं। मोदक: गणेश जी का प्रिय भोजन मोदक समृद्धि और खुशी का प्रतीक है। मूषक: गणेश जी का वाहन मूषक उनकी सर्वव्यापकता और विनम्रता का प्रतीक है। त्रिशूल: गणेश जी का त्रिशूल शक्ति और साहस का प्रतीक है। गणेश जी के स्तुतियाँ और भजन गणेश अथर्वशीर्ष: गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करने से गणेश जी की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में सुख-शांति और समृद्धि का संचार होता है। गणेश चालीसा: गणेश चालीसा का पाठ गणेश जी की महिमा का गुणगान करता है और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए अत्यंत प्रभावी माना जाता है। गणपति स्तोत्र: गणपति स्तोत्र का पाठ गणेश जी की आराधना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और उनकी कृपा प्राप्त करने में सहायक होता है। भगवान गणेश की कृपा से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है, और हमें हर कठिनाई का सामना करने की शक्ति मिलती है। गणेश जी की पूजा न केवल हमारे जीवन को बेहतर बनाती है, बल्कि हमें आध्यात्मिक मार्ग पर आगे बढ़ने में भी मदद करती है। भगवान गणेश की भक्ति से हमारे जीवन में सकारात्मक बदलाव आते हैं और हम आत्मिक उन्नति की ओर अग्रसर होते हैं।

देवी लक्ष्मी: धन, समृद्धि और उनकी पूजा का महत्व

देवी लक्ष्मी: धन, समृद्धि और उनकी पूजा का महत्व देवी लक्ष्मी, जिन्हें श्री, महालक्ष्मी और लक्ष्मीजी के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म की प्रमुख देवियों में से एक हैं। वे धन, समृद्धि, ऐश्वर्य, और सौभाग्य की देवी मानी जाती हैं। देवी लक्ष्मी भगवान विष्णु की पत्नी हैं और उनके साथ रहने से हर घर में सुख-शांति और समृद्धि का निवास होता है। लक्ष्मीजी की पूजा उनके भक्तों को धन, वैभव और सफलता की प्राप्ति में मदद करती है। लक्ष्मी जी की पूजा का महत्व और लाभ लक्ष्मी जी की पूजा क्यों करते हैं? लक्ष्मी जी की पूजा करने से हमें उनकी अनन्त कृपा और आशीर्वाद मिलता है। वे अपने भक्तों को धन और समृद्धि का वरदान देती हैं और जीवन में सुख, शांति और संतोष का संचार करती हैं। लक्ष्मी जी का ध्यान और पूजा हमें भौतिक और आध्यात्मिक उन्नति में मदद करती है। लक्ष्मी जी की पूजा के लाभ 1. धन और समृद्धि: लक्ष्मी जी की पूजा से धन और समृद्धि की प्राप्ति होती है। 2. सौभाग्य: जीवन में सौभाग्य और सफलता का संचार होता है। 3. शांति और संतोष: मानसिक शांति और संतोष की प्राप्ति होती है। 4. स्वास्थ्य: शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है। 5. सकारात्मक ऊर्जा: लक्ष्मी जी की पूजा से घर और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। 6. ऋद्धि और सिद्धि: जीवन में हर प्रकार की ऋद्धि और सिद्धि की प्राप्ति होती है। 7. रोगों से मुक्ति: देवी लक्ष्मी की कृपा से शारीरिक और मानसिक रोगों से मुक्ति मिलती है। 8. शत्रुओं से सुरक्षा: लक्ष्मी जी की पूजा से शत्रुओं और बुरी आत्माओं से रक्षा होती है। 9. पारिवारिक सुख: पारिवारिक जीवन में सुख-शांति और समृद्धि का संचार होता है। 10. मोक्ष प्राप्ति: लक्ष्मी जी की पूजा से मोक्ष की प्राप्ति होती है और जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिलती है। किस अवसर पर लक्ष्मी जी की पूजा करते हैं? 1. दीवाली: यह देवी लक्ष्मी का सबसे महत्वपूर्ण पर्व है, जो कार्तिक महीने में मनाया जाता है। इस दिन लक्ष्मी पूजन, दीपदान और घरों की साफ-सफाई की जाती है। 2. कोजागरी पूर्णिमा: यह आश्विन महीने की पूर्णिमा को मनाया जाता है और लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है। 3. शरद पूर्णिमा: इस दिन विशेष रूप से चंद्रमा और देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है। 4. धनतेरस: दीवाली से दो दिन पहले धनतेरस को देवी लक्ष्मी और धन्वंतरि की पूजा की जाती है। 5. शुक्रवार: प्रत्येक शुक्रवार को देवी लक्ष्मी की विशेष पूजा की जाती है। 6. अक्षय तृतीया: इस दिन देवी लक्ष्मी की पूजा करने से अक्षय फल की प्राप्ति होती है। 7. व्रत और उपवास: विशेष व्रत और उपवास के दिनों में देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है, जैसे कि वरलक्ष्मी व्रत। लक्ष्मी जी से जुड़े प्रमुख मंदिर और तीर्थ स्थल 1. श्री महालक्ष्मी मंदिर: महाराष्ट्र के कोल्हापुर में स्थित यह मंदिर देवी महालक्ष्मी को समर्पित है। 2. पद्मनाभस्वामी मंदिर: केरल के तिरुवनंतपुरम में स्थित यह मंदिर भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी दोनों को समर्पित है। 3. लक्ष्मी नारायण मंदिर: दिल्ली में स्थित यह मंदिर देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु को समर्पित है। 4. अश्वथामा मंदिर: मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित इस मंदिर में देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। 5. सिद्धिविनायक मंदिर: मुंबई में स्थित यह मंदिर देवी लक्ष्मी और भगवान गणेश को समर्पित है। लक्ष्मी जी से जुड़ी प्रमुख कथाएँ 1. समुद्र मंथन: इस पौराणिक कथा के अनुसार, जब देवताओं और असुरों ने अमृत के लिए समुद्र मंथन किया, तो देवी लक्ष्मी समुद्र से उत्पन्न हुईं और भगवान विष्णु को अपना पति चुना। 2. वामन अवतार: इस कथा में भगवान विष्णु ने वामन रूप में अवतार लिया और राजा बलि को तीन पग भूमि के बहाने संपूर्ण पृथ्वी, आकाश और पाताल का दान लिया। इस घटना में देवी लक्ष्मी भी महत्वपूर्ण भूमिका में थीं। 3. द्रौपदी की अक्षय पात्र: महाभारत में, जब पांडव वनवास में थे, तो देवी लक्ष्मी ने द्रौपदी को अक्षय पात्र का वरदान दिया, जिससे भोजन की कभी कमी नहीं हुई। 4. धनतेरस: यह कथा भगवान धन्वंतरि और देवी लक्ष्मी के उत्पन्न होने की है, जब वे समुद्र मंथन से प्रकट हुए थे। लक्ष्मी ध्यान और साधना 1. लक्ष्मी मंत्र: "ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः" मंत्र का जाप करने से देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। यह मंत्र धन और समृद्धि के लिए अत्यंत प्रभावी है। 2. श्री सूक्त: श्री सूक्त का पाठ करने से देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है और घर में सुख-शांति और समृद्धि का संचार होता है। 3. लक्ष्मी अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र: लक्ष्मी जी के 108 नामों का पाठ करने से उनकी कृपा प्राप्त होती है और जीवन की सभी बाधाओं से मुक्ति मिलती है। लक्ष्मी जी की पूजा विधि 1. स्नान और शुद्धिकरण: लक्ष्मी जी की प्रतिमा या चित्र को शुद्ध जल से स्नान कराएं। इसके बाद गंगा जल, दूध, दही, घी, शहद, और शक्कर से अभिषेक करें। 2. कमल पुष्प: लक्ष्मी जी की प्रतिमा पर कमल के पुष्प चढ़ाएं। यह उनकी पूजा में महत्वपूर्ण है। 3. धूप और दीप: धूप और दीप जलाकर लक्ष्मी जी की आरती करें। 4. नैवेद्य: लक्ष्मी जी को भोग लगाएं। इसमें फल, मिठाई और अन्य शुद्ध खाद्य पदार्थ शामिल हो सकते हैं। 5. आरती और मंत्र: लक्ष्मी जी की आरती करें और "ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः" मंत्र का जाप करें। लक्ष्मी जी के प्रतीक और उनके महत्व 1. कमल: लक्ष्मी जी का कमल पर बैठना शुद्धि और आध्यात्मिक जागृति का प्रतीक है। 2. गज (हाथी): लक्ष्मी जी का गज (हाथी) उनकी सर्वव्यापकता और शक्ति का प्रतीक है। 3. सोने के सिक्के: लक्ष्मी जी के हाथ से निकलते सोने के सिक्के धन और समृद्धि का प्रतीक हैं। 4. शंख: लक्ष्मी जी का शंख शुद्धि और पवित्रता का प्रतीक है। 5. अक्षय पात्र: लक्ष्मी जी का अक्षय पात्र उनकी अनन्त कृपा और संपन्नता का प्रतीक है। लक्ष्मी जी की स्तुतियाँ और भजन 1. श्री सूक्त: श्री सूक्त का पाठ करने से देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है और घर में सुख-शांति और समृद्धि का संचार होता है। 2. लक्ष्मी अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र: लक्ष्मी जी के 108 नामों का पाठ करने से उनकी कृपा प्राप्त होती है और जीवन की सभी बाधाओं से मुक्ति मिलती है। 3. लक्ष्मी चालीसा: लक्ष्मी चालीसा का पाठ देवी लक्ष्मी की महिमा का गुणगान करता है और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए अत्यंत प्रभावी माना जाता है। देवी लक्ष्मी की कृपा से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है, और हमें हर कठिनाई का सामना करने की शक्ति मिलती है। लक्ष्मी जी की पूजा न केवल हमारे जीवन को बेहतर बनाती है, बल्कि हमें आध्यात्मिक मार्ग पर आगे बढ़ने में भी मदद करती है। देवी लक्ष्मी की भक्ति से हमारे जीवन में सकारात्मक बदलाव आते हैं और हम आत्मिक उन्नति की ओर अग्रसर होते हैं।

भगवान विष्णु: पालक और उनकी पूजा का महत्व

भगवान विष्णु: पालक और उनकी पूजा का महत्व भगवान विष्णु, जिन्हें नारायण, हरि और केशव के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक हैं। वे त्रिमूर्ति के हिस्से के रूप में ब्रह्मा और शिव के साथ त्रिदेव में शामिल हैं। भगवान विष्णु को सृष्टि के पालनकर्ता और संरक्षक माना जाता है, जो संसार की रक्षा के लिए समय-समय पर विभिन्न अवतारों में अवतरित होते हैं। विष्णु जी की पूजा उनके भक्तों को शांति, समृद्धि और भक्ति की प्राप्ति में मदद करती है। विष्णु जी की पूजा का महत्व और लाभ विष्णु जी की पूजा क्यों करते हैं? विष्णु जी की पूजा करने से हमें उनके अनन्त गुणों और शक्तियों का आशीर्वाद मिलता है। वे अपने भक्तों की रक्षा करते हैं और उन्हें जीवन में सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं। विष्णु जी का धैर्य, करुणा और स्नेह हमें जीवन की चुनौतियों से निपटने और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। विष्णु जी की पूजा के लाभ 1. शांति और सद्भाव: विष्णु जी की पूजा से जीवन में शांति और सद्भाव का संचार होता है। 2. समृद्धि: आर्थिक समस्याओं से छुटकारा पाने और समृद्धि प्राप्त करने में मदद मिलती है। 3. स्वास्थ्य: शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है। 4. कष्टों से मुक्ति: जीवन में आने वाले कष्ट और बाधाओं को दूर करने में सहायता मिलती है। 5. आध्यात्मिक उन्नति: आत्मा की शुद्धि और आध्यात्मिक विकास के लिए विष्णु जी की पूजा अत्यंत महत्वपूर्ण है। 6. सकारात्मक ऊर्जा: विष्णु जी की पूजा से घर और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। 7. संतान प्राप्ति: निःसंतान दंपतियों के लिए विष्णु जी की पूजा संतान प्राप्ति के लिए अत्यंत लाभकारी होती है। 8. ज्ञान और बुद्धि: विद्यार्थियों के लिए ज्ञान, बुद्धि और एकाग्रता में वृद्धि होती है। 9. मोक्ष प्राप्ति: विष्णु जी की पूजा से मोक्ष की प्राप्ति होती है और जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिलती है। किस अवसर पर विष्णु जी की पूजा करते हैं? 1. एकादशी व्रत: हर महीने की शुक्ल और कृष्ण पक्ष की एकादशी को विष्णु जी की विशेष पूजा की जाती है। इस दिन उपवास रखकर भगवान विष्णु का ध्यान किया जाता है। 2. वैष्णव एकादशी: यह एकादशी का सबसे पवित्र व्रत माना जाता है, जिसमें विष्णु जी की आराधना की जाती है। 3. वैशाख मास: वैशाख महीने में विष्णु जी की विशेष पूजा की जाती है। इस समय पवित्र नदियों में स्नान करना और विष्णु जी के मंत्रों का जाप करना अत्यंत शुभ माना जाता है। 4. कार्तिक मास: कार्तिक महीने में विष्णु जी की पूजा का विशेष महत्व है। इस दौरान दीपदान, तुलसी पूजा और विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ किया जाता है। 5. श्रीविष्णु सहस्रनाम: विष्णु जी के 1000 नामों का पाठ करने से उनकी कृपा प्राप्त होती है और जीवन की सभी बाधाओं से मुक्ति मिलती है। विष्णु जी से जुड़े प्रमुख मंदिर और तीर्थ स्थल 1. तिरुपति बालाजी मंदिर: आंध्र प्रदेश के तिरुमला में स्थित यह मंदिर भगवान विष्णु के वेंकटेश्वर स्वरूप को समर्पित है और भारत के सबसे प्रसिद्ध और धनवान मंदिरों में से एक है। 2. जगन्नाथ मंदिर: ओडिशा के पुरी में स्थित यह मंदिर भगवान जगन्नाथ को समर्पित है, जो विष्णु जी का एक रूप हैं। 3. बद्रीनाथ मंदिर: उत्तराखंड के गढ़वाल हिमालय में स्थित, यह मंदिर भगवान विष्णु के बद्रीनारायण स्वरूप को समर्पित है और चार धाम यात्रा का हिस्सा है। 4. रणछोड़राय मंदिर: गुजरात के द्वारका में स्थित यह मंदिर भगवान कृष्ण, जो कि विष्णु जी का अवतार हैं, को समर्पित है। 5. पद्मनाभस्वामी मंदिर: केरल के तिरुवनंतपुरम में स्थित यह मंदिर भगवान विष्णु के अनंतशयनम रूप को समर्पित है। विष्णु जी से जुड़ी प्रमुख कथाएँ 1. वामन अवतार: इस कथा में भगवान विष्णु ने वामन रूप में अवतार लेकर राजा बलि को तीन पग भूमि के बहाने संपूर्ण पृथ्वी, आकाश और पाताल का दान लिया और उसे पाताल लोक भेज दिया। 2. नरसिंह अवतार: भगवान विष्णु ने नरसिंह रूप धारण कर हिरण्यकश्यप का वध किया और अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा की। 3. कूर्म अवतार: सागर मंथन के समय भगवान विष्णु ने कूर्म (कछुआ) रूप धारण कर मंदराचल पर्वत को अपनी पीठ पर धारण किया और देवताओं तथा असुरों की मदद की। 4. राम अवतार: भगवान विष्णु ने राम के रूप में अवतार लेकर रावण का वध किया और धर्म की स्थापना की। 5. कृष्ण अवतार: भगवान विष्णु ने कृष्ण के रूप में अवतार लेकर कंस का वध किया और गीता का उपदेश दिया। विष्णु ध्यान और साधना 1. विष्णु मंत्र: "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का जाप करने से विष्णु जी की कृपा प्राप्त होती है। यह मंत्र शांति, समृद्धि और भक्ति के लिए अत्यंत प्रभावी है। 2. विष्णु सहस्रनाम: विष्णु जी के 1000 नामों का पाठ करने से उनकी कृपा प्राप्त होती है और जीवन की सभी बाधाओं से मुक्ति मिलती है। 3. श्रीसूक्त: श्रीसूक्त का पाठ करने से लक्ष्मी नारायण की कृपा प्राप्त होती है और घर में सुख-शांति और समृद्धि का संचार होता है। विष्णु जी की पूजा विधि 1. स्नान और शुद्धिकरण: विष्णु जी की प्रतिमा या चित्र को शुद्ध जल से स्नान कराएं। इसके बाद गंगा जल, दूध, दही, घी, शहद, और शक्कर से अभिषेक करें। 2. तुलसी दल: विष्णु जी की प्रतिमा पर तुलसी के पत्ते चढ़ाएं। यह उनकी पूजा में महत्वपूर्ण है। 3. धूप और दीप: धूप और दीप जलाकर विष्णु जी की आरती करें। 4. नैवेद्य: विष्णु जी को भोग लगाएं। इसमें फल, मिठाई और अन्य शुद्ध खाद्य पदार्थ शामिल हो सकते हैं। 5. आरती और मंत्र: विष्णु जी की आरती करें और "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का जाप करें। विष्णु जी के प्रतीक और उनके महत्व 1. शंख: विष्णु जी का शंख शुद्धि और पवित्रता का प्रतीक है। 2. चक्र: विष्णु जी का सुदर्शन चक्र धर्म और न्याय का प्रतीक है। 3. गदा: विष्णु जी की गदा शक्ति और साहस का प्रतीक है। 4. कमल: विष्णु जी का कमल पर बैठना शुद्धि और आध्यात्मिक जागृति का प्रतीक है। 5. गरुड़: विष्णु जी का वाहन गरुड़ उनकी सर्वव्यापकता और शक्ति का प्रतीक है। विष्णु जी की स्तुतियाँ और भजन 1. विष्णु सहस्रनाम: विष्णु जी के 1000 नामों का पाठ करने से उनकी कृपा प्राप्त होती है और जीवन की सभी बाधाओं से मुक्ति मिलती है। 2. नारायण कवच: नारायण कवच का पाठ करने से विष्णु जी की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में आने वाली सभी बाधाओं से रक्षा होती है। 3. विष्णु चालीसा: विष्णु चालीसा का पाठ विष्णु जी की महिमा का गुणगान करता है और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए अत्यंत प्रभावी माना जाता है। भगवान विष्णु की कृपा से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है, और हमें हर कठिनाई का सामना करने की शक्ति मिलती है। विष्णु जी की पूजा न केवल हमारे जीवन को बेहतर बनाती है, बल्कि हमें आध्यात्मिक मार्ग पर आगे बढ़ने में भी मदद करती है। भगवान विष्णु की भक्ति से हमारे जीवन में सकारात्मक बदलाव आते हैं और हम आत्मिक उन्नति की ओर अग्रसर होते हैं।

देवी दुर्गा: शक्ति की अधिष्ठात्री और उनकी पूजा का महत्व

देवी दुर्गा: शक्ति की अधिष्ठात्री और उनकी पूजा का महत्व देवी दुर्गा, जिन्हें आदिशक्ति, पार्वती, महिषासुरमर्दिनी और शेरावाली के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म की प्रमुख देवियों में से एक हैं। वे शक्ति और पराक्रम की देवी मानी जाती हैं और उनके कई रूप हैं जो भक्तों को आशीर्वाद, सुरक्षा और समृद्धि प्रदान करते हैं। दुर्गा जी की पूजा उनके भक्तों को आत्मबल, साहस और कठिनाइयों से लड़ने की शक्ति प्रदान करती है। दुर्गा जी की पूजा का महत्व और लाभ दुर्गा जी की पूजा क्यों करते हैं? दुर्गा जी की पूजा करने से हमें उनके अद्वितीय गुणों और शक्तियों का आशीर्वाद मिलता है। वे दस भुजाओं वाली देवी हैं, जो अपने हर हाथ में विभिन्न अस्त्र-शस्त्र धारण किए हुए हैं, जिससे वे भक्तों की हर प्रकार की बाधा और संकट से रक्षा करती हैं। दुर्गा जी को शक्ति, साहस और संयम की प्रतीक माना जाता है, जो हमें जीवन की चुनौतियों से निपटने की शक्ति और आत्मविश्वास प्रदान करती हैं। दुर्गा जी की पूजा के लाभ 1. सुरक्षा: दुर्गा जी की पूजा से शत्रुओं और बुरी शक्तियों से रक्षा होती है। 2. शक्ति और साहस: दुर्गा जी की कृपा से आत्मबल और साहस प्राप्त होता है। 3. स्वास्थ्य: शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है। 4. समृद्धि: आर्थिक समस्याओं से छुटकारा पाने और समृद्धि प्राप्त करने में मदद मिलती है। 5. कष्टों से मुक्ति: जीवन में आने वाले कष्ट और बाधाओं को दूर करने में सहायता मिलती है। 6. आध्यात्मिक उन्नति: आत्मा की शुद्धि और आध्यात्मिक विकास के लिए दुर्गा जी की पूजा अत्यंत महत्वपूर्ण है। 7. सकारात्मक ऊर्जा: दुर्गा जी की पूजा से घर और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। 8. संतान प्राप्ति: निःसंतान दंपतियों के लिए दुर्गा जी की पूजा संतान प्राप्ति के लिए अत्यंत लाभकारी होती है। 9. ज्ञान और बुद्धि: विद्यार्थियों के लिए ज्ञान, बुद्धि और एकाग्रता में वृद्धि होती है। 10. मोक्ष प्राप्ति: दुर्गा जी की पूजा से मोक्ष की प्राप्ति होती है और जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिलती है। किस अवसर पर दुर्गा जी की पूजा करते हैं? 1. नवरात्रि: यह दुर्गा जी का सबसे महत्वपूर्ण पर्व है, जो वर्ष में दो बार, चैत्र और अश्विन माह में मनाया जाता है। इस दौरान नौ दिनों तक दुर्गा जी के नौ रूपों की पूजा की जाती है। भक्त उपवास रखते हैं, दुर्गा सप्तशती का पाठ करते हैं और कन्या पूजन करते हैं। 2. दुर्गाष्टमी: नवरात्रि के अष्टमी तिथि को दुर्गाष्टमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन दुर्गा जी की विशेष पूजा की जाती है और व्रत रखा जाता है। 3. महाष्टमी: यह नवरात्रि का अष्टम दिन होता है, जिसमें दुर्गा जी के महागौरी रूप की पूजा की जाती है। इस दिन हवन और कन्या पूजन का विशेष महत्व है। 4. विजयादशमी (दशहरा): नवरात्रि के नौ दिनों के उपरांत दसवें दिन विजयादशमी मनाई जाती है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। इस दिन रावण दहन का आयोजन भी होता है। 5. माघ गुप्त नवरात्रि: यह पर्व माघ महीने में मनाया जाता है और इसमें भी दुर्गा जी की नौ दिनों की पूजा की जाती है। दुर्गा जी से जुड़े प्रमुख मंदिर और तीर्थ स्थल 1. वैष्णो देवी मंदिर: जम्मू और कश्मीर में स्थित यह मंदिर दुर्गा जी के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है, जहाँ माता वैष्णो देवी की गुफा स्थित है। 2. कालीघाट मंदिर: कोलकाता, पश्चिम बंगाल में स्थित यह मंदिर माँ काली को समर्पित है, जो दुर्गा जी का एक रूप है। 3. कामाख्या मंदिर: असम के गुवाहाटी में स्थित, यह मंदिर शक्तिपीठों में से एक है और देवी कामाख्या को समर्पित है। 4. अम्बाजी मंदिर: गुजरात में स्थित यह मंदिर देवी अम्बाजी को समर्पित है और शक्तिपीठों में से एक है। 5. दक्षिणेश्वर काली मंदिर: कोलकाता के निकट स्थित, यह मंदिर माँ काली को समर्पित है और स्वामी रामकृष्ण परमहंस की तपोभूमि रहा है। दुर्गा जी से जुड़ी प्रमुख कथाएँ 1. महिषासुर वध: यह कथा बताती है कि कैसे देवी दुर्गा ने महिषासुर नामक राक्षस का वध किया था, जो देवताओं को परेशान कर रहा था। दुर्गा जी ने महिषासुर का वध कर बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक स्थापित किया। 2. शुम्भ-निशुम्भ वध: देवी दुर्गा ने शुम्भ और निशुम्भ नामक दो शक्तिशाली राक्षसों का वध किया था, जिन्होंने स्वर्ग पर कब्जा करने का प्रयास किया था। 3. रक्तबीज वध: रक्तबीज नामक राक्षस को हर बूँद से एक नया राक्षस उत्पन्न हो जाता था। दुर्गा जी ने काली रूप धारण कर उसके रक्त को पी लिया और उसे मार डाला। दुर्गा ध्यान और साधना 1. दुर्गा मंत्र: "ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे" मंत्र का जाप करने से दुर्गा जी की कृपा प्राप्त होती है। यह मंत्र शक्ति और साहस की प्राप्ति के लिए अत्यंत प्रभावी है। 2. दुर्गा सप्तशती: दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से देवी दुर्गा की कृपा प्राप्त होती है और जीवन की सभी बाधाओं से मुक्ति मिलती है। 3. काली ध्यान: दुर्गा जी के काली रूप की साधना में उनके काली रूप की प्रतिमा या चित्र के सामने ध्यान लगाना, उनकी मूर्ति के सामने धूप-दीप जलाना और उनकी स्तुति में भजन-कीर्तन करना शामिल है। दुर्गा जी की पूजा विधि 1. स्नान और शुद्धिकरण: दुर्गा जी की प्रतिमा या चित्र को शुद्ध जल से स्नान कराएं। इसके बाद गंगा जल, दूध, दही, घी, शहद, और शक्कर से अभिषेक करें। 2. सिंदूर अर्पण: दुर्गा जी की प्रतिमा पर सिंदूर चढ़ाएं। यह उनकी पूजा में महत्वपूर्ण है। 3. धूप और दीप: धूप और दीप जलाकर दुर्गा जी की आरती करें। 4. नैवेद्य: दुर्गा जी को भोग लगाएं। इसमें फल, मिठाई और अन्य शुद्ध खाद्य पदार्थ शामिल हो सकते हैं। 5. आरती और मंत्र: दुर्गा जी की आरती करें और "ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे" मंत्र का जाप करें। दुर्गा जी के प्रतीक और उनके महत्व 1. शेर: दुर्गा जी का वाहन शेर उनकी शक्ति और पराक्रम का प्रतीक है। 2. त्रिशूल: दुर्गा जी का त्रिशूल बुराई का संहार और धर्म की स्थापना का प्रतीक है। 3. कमल: दुर्गा जी का कमल पर बैठना, शुद्धि और आध्यात्मिक जागृति का प्रतीक है। 4. सिंहवाहिनी: दुर्गा जी का सिंह पर सवार होना साहस और निडरता का प्रतीक है। 5. अस्त्र-शस्त्र: दुर्गा जी के दस हाथों में विभिन्न अस्त्र-शस्त्र धारण किए हुए हैं, जो उनकी सर्वव्यापी शक्ति का प्रतीक हैं। दुर्गा जी की स्तुतियाँ और भजन 1. दुर्गा चालीसा: दुर्गा चालीसा का पाठ दुर्गा जी की महिमा का गुणगान करता है और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए अत्यंत प्रभावी माना जाता है। 2. दुर्गा सप्तशती: दुर्गा सप्तशती के 700 श्लोकों का पाठ करने से दुर्गा जी की कृपा प्राप्त होती है और जीवन की सभी बाधाओं से मुक्ति मिलती है। 3. महिषासुरमर्दिनी स्तोत्र: यह स्तोत्र दुर्गा जी के महिषासुर पर विजय की कथा का वर्णन करता है और उनकी महिमा का गुणगान करता है। देवी दुर्गा की कृपा से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है, और हमें हर कठिनाई का सामना करने की शक्ति मिलती है। दुर्गा जी की पूजा न केवल हमारे जीवन को बेहतर बनाती है, बल्कि हमें आध्यात्मिक मार्ग पर आगे बढ़ने में भी मदद करती है। देवी दुर्गा की भक्ति से हमारे जीवन में सकारात्मक बदलाव आते हैं और हम आत्मिक उन्नति की ओर अग्रसर होते हैं।

भगवान शिव: महादेव की महिमा और पूजा के लाभ

भगवान शिव: महादेव की महिमा और पूजा के लाभ भगवान शिव, जिन्हें महादेव, शंकर, भोलेनाथ और नीलकंठ के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक हैं। वे त्रिमूर्ति के हिस्से के रूप में ब्रह्मा और विष्णु के साथ त्रिदेव में शामिल हैं। भगवान शिव को संहार और पुनर्जन्म का प्रतीक माना जाता है, जो न केवल संहारक बल्कि संरक्षक और सृजनकर्ता भी हैं। शिव जी की पूजा उनके भक्तों को आशीर्वाद, शांति और समृद्धि प्रदान करती है। शिव जी की पूजा का महत्व और लाभ शिव जी की पूजा क्यों करते हैं? शिव जी की पूजा करने से हमें उनके अद्वितीय गुणों और शक्तियों का आशीर्वाद मिलता है। वे त्रिनेत्रधारी हैं, जो भूत, वर्तमान और भविष्य को देखते हैं और अपने भक्तों को सही मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। शिव जी को ध्यान, योग और तपस्या के देवता माना जाता है, जो हमें आंतरिक शांति और मानसिक संतुलन की प्राप्ति में मदद करते हैं। उनके भक्तों के लिए, शिव जी शक्ति, साहस और धैर्य का प्रतीक हैं। शिव जी की पूजा के लाभ 1. मन की शांति: शिव जी की पूजा से मानसिक शांति और तनाव से मुक्ति मिलती है। 2. समृद्धि: आर्थिक समस्याओं से छुटकारा पाने और समृद्धि प्राप्त करने में मदद मिलती है। 3. स्वास्थ्य: शिव जी की कृपा से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है। 4. कष्टों से मुक्ति: जीवन में आने वाले कष्ट और बाधाओं को दूर करने में सहायता मिलती है। 5. आध्यात्मिक उन्नति: आत्मा की शुद्धि और आध्यात्मिक विकास के लिए शिव जी की पूजा अत्यंत महत्वपूर्ण है। 6. रोगों से मुक्ति: शिव जी की कृपा से शारीरिक और मानसिक रोगों से मुक्ति मिलती है। 7. सकारात्मक ऊर्जा: शिव जी की पूजा से घर और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। 8. शत्रुओं से सुरक्षा: शिव जी की पूजा से शत्रुओं और बुरी आत्माओं से रक्षा होती है। 9. संतान प्राप्ति: निःसंतान दंपतियों के लिए शिव जी की पूजा संतान प्राप्ति के लिए अत्यंत लाभकारी होती है। 10. मोक्ष प्राप्ति: शिव जी की पूजा से मोक्ष की प्राप्ति होती है और जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिलती है। किस अवसर पर शिव जी की पूजा करते हैं? 1. महाशिवरात्रि: यह भगवान शिव का सबसे महत्वपूर्ण पर्व है, जो फाल्गुन महीने में मनाया जाता है। इस दिन भक्त पूरी रात जागरण कर शिवलिंग की पूजा करते हैं। महाशिवरात्रि पर विशेष रूप से शिवलिंग पर बेलपत्र, जल, दूध, और धतूरा चढ़ाया जाता है। 2. सावन सोमवार: श्रावण महीने के प्रत्येक सोमवार को शिव जी की विशेष पूजा की जाती है। इस समय शिवलिंग पर जल, दूध और बेलपत्र चढ़ाए जाते हैं, और शिव भक्त व्रत रखते हैं। 3. प्रदोष व्रत: हर त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है, जो शिव जी की पूजा का विशेष दिन है। इस दिन विशेष रूप से संध्याकाल में शिव जी की पूजा की जाती है। 4. कावड़ यात्रा: श्रावण महीने में शिव भक्त गंगाजल लाकर शिवलिंग पर चढ़ाते हैं। यह यात्रा गंगा नदी से जल लाने की धार्मिक यात्रा होती है। 5. श्रावण मास: पूरे श्रावण महीने में शिव भक्त विशेष पूजा, उपवास और रुद्राभिषेक करते हैं। इस दौरान शिवलिंग पर जल, दूध, शहद, और बेलपत्र चढ़ाए जाते हैं। 6. मासिक शिवरात्रि: प्रत्येक महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मासिक शिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। इस दिन शिवलिंग की पूजा और रात्रि जागरण किया जाता है। शिव जी से जुड़े प्रमुख मंदिर और तीर्थ स्थल 1. काशी विश्वनाथ मंदिर: वाराणसी, उत्तर प्रदेश में स्थित, यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। इसे मोक्ष प्राप्ति का द्वार माना जाता है। 2. केदारनाथ मंदिर: उत्तराखंड के गढ़वाल हिमालय में स्थित, यह ज्योतिर्लिंगों में से एक है और चार धाम यात्रा का हिस्सा है। 3. महाकालेश्वर मंदिर: उज्जैन, मध्य प्रदेश में स्थित, यह मंदिर भी एक प्रमुख ज्योतिर्लिंग है। यहाँ की महाकाल आरती प्रसिद्ध है। 4. सोमनाथ मंदिर: गुजरात में स्थित, यह भी बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। इसे कई बार पुनर्निर्मित किया गया है। 5. रामेश्वरम मंदिर: तमिलनाडु में स्थित, यह मंदिर दक्षिण भारत के सबसे महत्वपूर्ण तीर्थ स्थलों में से एक है। इसे रामायण से जोड़ा जाता है। शिव जी से जुड़ी प्रमुख कथाएँ 1. सागर मंथन: इस पौराणिक कथा के अनुसार, जब देवताओं और असुरों ने अमृत के लिए समुद्र मंथन किया, तो मंथन से हलाहल विष उत्पन्न हुआ। इस विष को पूरी दुनिया से बचाने के लिए भगवान शिव ने उसे अपने कंठ में धारण किया, जिससे उनका कंठ नीला हो गया और उन्हें नीलकंठ के नाम से जाना जाने लगा। 2. गंगा का धरती पर अवतरण: यह कथा बताती है कि कैसे भगवान शिव ने गंगा नदी को अपनी जटाओं में धारण किया ताकि उसका प्रचंड वेग कम हो सके और धरती पर शांतिपूर्ण अवतरण हो सके। 3. त्रिपुरासुर वध: भगवान शिव ने त्रिपुर नामक तीन दैत्यों का वध किया था जो कि तीन नगरों में रहते थे और अत्याचार मचा रहे थे। शिव जी ने इन तीनों नगरों को अपने धनुष से एक साथ नष्ट किया। शिव ध्यान और साधना 1. शिव मंत्र: "ॐ नमः शिवाय" मंत्र का जाप करने से शिव जी की कृपा प्राप्त होती है। यह मंत्र मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति के लिए अत्यंत प्रभावी है। 2. शिव ध्यान: शिव जी की ध्यान साधना में शिवलिंग या उनकी मूर्ति के सामने ध्यान लगाना, उनकी मूर्ति के सामने धूप-दीप जलाना और उनकी स्तुति में भजन-कीर्तन करना शामिल है। 3. रुद्राभिषेक: रुद्राभिषेक शिव जी की विशेष पूजा विधि है जिसमें शिवलिंग पर दूध, दही, शहद, घी, शक्कर, और गंगा जल चढ़ाया जाता है। शिव जी की पूजा विधि 1. स्नान और शुद्धिकरण: शिवलिंग को शुद्ध जल से स्नान कराएं। इसके बाद गंगा जल, दूध, दही, घी, शहद, और शक्कर से अभिषेक करें। 2. बेलपत्र अर्पण: बेलपत्र अर्पण करना शिव जी की पूजा में महत्वपूर्ण है। त्रिदलीय बेलपत्र को शिवलिंग पर अर्पित करें। 3.धूप और दीप: धूप और दीप जलाकर शिव जी की आरती करें। 4.नैवेद्य: शिव जी को भोग लगाएं। इसमें फल, मिठाई और अन्य शुद्ध खाद्य पदार्थ शामिल हो सकते हैं। 5.आरती और मंत्र: शिव जी की आरती करें और "ॐ नमः शिवाय" मंत्र का जाप करें। शिव जी के प्रतीक और उनके महत्व 1.त्रिशूल: शिव जी का त्रिशूल उनके त्रिगुण - सत्त्व, रजस, और तमस का प्रतीक है। 2.डमरू: डमरू से उत्पन्न नाद ब्रह्मांड की उत्पत्ति और विनाश का प्रतीक है। 3.चंद्रमा: शिव जी के मस्तक पर चंद्रमा समय और चक्र का प्रतीक है। 4.गंगा: गंगा का अवतरण उनके जल तत्व और जीवनदायिनी शक्ति का प्रतीक है। 5.सर्प: शिव जी के गले में सर्प काल और जीवन-मृत्यु के चक्र का प्रतीक है। शिव जी की स्तुतियाँ और भजन 1. शिव तांडव स्तोत्र: रावण द्वारा रचित यह स्तोत्र शिव जी के तांडव नृत्य का वर्णन करता है और उनकी महिमा का गुणगान करता है। 2. महामृत्युंजय मंत्र: "ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।" यह मंत्र जीवन में संकटों से मुक्ति दिलाने और स्वास्थ्य की रक्षा के लिए अत्यंत प्रभावी माना जाता है। 3. लिंगाष्टकम: यह स्तोत्र शिवलिंग की महिमा का वर्णन करता है और शिव जी की कृपा प्राप्ति के लिए इसका पाठ किया जाता है। भगवान शिव की कृपा से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है, और हमें हर कठिनाई का सामना करने की शक्ति मिलती है। शिव जी की पूजा न केवल हमारे जीवन को बेहतर बनाती है, बल्कि हमें आध्यात्मिक मार्ग पर आगे बढ़ने में भी मदद करती है। भगवान शिव की भक्ति से हमारे जीवन में सकारात्मक बदलाव आते हैं और हम आत्मिक उन्नति की ओर अग्रसर होते हैं।