Arti Collection

    Bhagwan Mahadev Arti (भगवान् महादेव )

    भगवान् महादेव हर हर हर महादेव! सत्य, सनातन, सुन्दर, शिव! सबके स्वामी। अविकारी, अबविनाशी, अज, अन् न्तर्याभी॥ ९ ॥हर हर०॥ आदि, अनन्त, अनामय, अकल, कलाधारी। अमल, अरूप, अगोचर, अखिचल, अधघहारी॥ २॥हर० हर०II ब्रह्म, विष्णु, महेश्वर, तुम म त्रिमूर्तिधारी। कर्ता, भर्ता, धर्ता तुम ही संहारी॥ ३ ॥हर हर०॥ रक्षक, भक्षक, प्रेरक, प्रिय, औढरदानी। साक्षी, परम अकर्ता, कर्ता, अभिमानी॥ ४ ॥ हर हर०॥ मणिमय-भवन निवासी, अति भोगी, रागी। सदा श्मशान विहारी, योगी वैरागी॥ ५ ॥ हर हर०॥ छाल-कपाल, गरल-गल, मुण्डमाल, व्याली। चिताभस्मतन, त्रिनयन, अयनमहाकाली॥ ६ ॥ हर हर०॥ प्रेत-पिशाच-सुसेवित, पीतजटाधारी। विवसन विकट रूपधर रुद्र प्रलयकारी॥ ७ ॥ हर हर०॥ शुभ्र-सौम्य, सुरसरिधर, शशिधर, सुखकारी। अतिकमनीय, शान्तिकर, शिवमुनि-मन-हारी॥ ८ ॥ हर हर०॥ निर्गुण, सगुण, निरञ्जन , जगमय, नित्य-प्रभो। कालरूप केवल हर! कालातीत विभो॥ ९ ॥हर हर०॥ सत् , चित् , आनंद, रसमय, करुणामय धाता। प्रेम-सुधा-निधि, प्रियतम, अखिल विश्व त्राता॥ १०॥ हर हर०॥ हम अतिदीन, दयामय ! चरण-शरण दीजे। सब बिधि निर्मल मति कर अपना कर लीजे॥ ११॥ हर हर०॥

    Bhagwan Shri Shivshankar Arti (भगवान् श्रीशिवशंकर)

    भगवान् श्रीशिवशंकर हरि कर दीपक, बजावें संख सुरपति, गनपति झाँझ, भेरों झाल झरत हैं। नारदके कर बीन, सारदा गावत जस, चारिमुख चारि वेद बिधि उचरत हैं॥ घटमुख रटत सहस्त्रमुख सिव सिव, सनक-सनंदनादि पाँयन परत हैं। ‘बालकृष्ण' तीनि लोक, तीस और तीनि कोटि, एते शिव-शंकरकी आरति करत हैं॥

    Bhagwan Shrishankar Arti (भगवान् श्रीशंकर)

    भगवान् श्रीशंकर जयति जयति जग-निवास, शंकर सुखकारी॥ अजर अमर अज अरूप, सत चित आनंदरूप, व्यापक ब्रह्मस्वरूप, भव! भव-भय-हारी॥ जयति०॥ शोभित बिधुबाल भाल, सुरसरिमय जटाजाल, तीन नयन अति विशाल, मदन-दहन-कारी ॥जयति०॥ भक्तहेतु धरत शूल, करत कठिन शूल फूल, हियकी सब हरत हूल अचल शान्तिकारी॥ जयति०॥ अमल अरुण चरणकमल सफल करत काम सकल, भक्ति-मुक्ति देत विमल, माया-भ्रम-टारी ॥जयति०॥ कार्तिकेययुत गणेश, हिमतनया सह महेश, राजत कैलास-देश, अकल कलाधारी॥ जयति०॥ भूषण तन भूति व्याल, मुण्डमाल कर कपाल, सिंह-चर्म हस्ति खाल, डमरू कर धारी॥जयति०॥ अशरण जन नित्य शरण, आशुतोष आर्तिहरण, सब विधि कल्याण-करण जय जय त्रिपुरारी ॥जयति०॥

    Bhagwan Kailashwashi Arti (भगवान् कैलासवासी)

    भगवान् कैलासवासी शीश गंग अर्धग पार्वती सदा विराजत कैलासी। नंदी भृंगी नृत्य करत हैं, धरत ध्यान सुर सुखरासी॥ शीतल मन्द सुगन्ध पवन बह बैठे हैं शिव अविनाशी। करत गान गन्धर्व सप्त स्वर राग रागिनी मधुरासी॥ यक्ष-रक्ष-भैरव जहँ डोलत, बोलत हैं वनके वासी। कोयल शब्द सुनावत सुन्दर, भ्रमर करत हैं गुंजा-सी॥ कल्पद्रुम अरु पारिजात तरु लाग रहे हैं लक्षासी। कामधेनु कोटिन जहँ डोलत करत दुग्धकी वर्षा-सी॥ सूर्यकान्त सम पर्वत शोभित, चन्द्रकान्त सम हिमराशी। नित्य छहों ऋतु रहत सुशोभित सेवत सदा प्रकृति-दासी॥ ऋषि-मुनि देव दनुज नित सेवत, गान करत श्रुति गुणराशी। ब्रह्मा-विष्णु निहारत निसिदिन कछु शिव हमकूँ फरमासी॥ ऋद्धि सिद्धिके दाता शंकर नित सतू चित् आनँदराशी। जिनके सुमिरत ही कट जाती कठिन काल-यमकी फाँसी॥ त्रिशूलधरजीका नाम निरंतर प्रेम सहित जो नर गासी। दूर होय विपदा उस नर की जन्म-जन्म शिवपद पासी॥ कैलासी काशीके वासी अविनाशी मेरी सुध लीजो। सेवक जान सदा चरननको अपनो जान कृपा कीजो॥ तुम तो प्रभुजी सदा दयामय अवगुण मेरे सब ढकियो। सब अपराध क्षमाकर शंकर किंकरकी विनती सुनियो॥

    Bhagwan Shri Bholenath Arti (भगवान् श्रीभोलेनाथजी)

    भगवान् श्रीभोलेनाथजी अभयदान दीजै दयालु प्रभु सकल सृष्टिके हितकारी। भोलेनाथ भक्त-दुखगंजन भवभंजन शुभ सुखकारी॥ दीनदयालु कृपालु कालरिपु अलखनिरंजन शिव योगी। मंगल रूप अनूप छबीले अखिल भुवनके तुम भोगी॥ बाम अंग अति रँगरस-भीने उमा-वदनकी छबि न्यारी॥ भोलेनाथ० असुर-निकंदन सब दुखभंजन वेद बखाने जग जाने। रुण्ड-माल गल व्याल भाल-शशि नीलकंठ शोभा साने॥ गंगाधर त्रिशूलधर विषधर बाघम्बरधर गिरिचारी॥ भोलेनाथ० यह भवसागर अति अगाध है पार उतर कैसे बूझै। ग्राह मगर बहु कच्छप छाये मार्ग कहो कैसे सूझै॥ नाम तुम्हारा नौका निर्मल तुम केवट शिव अधिकारी॥ भोलेनाथ० मैं जानूँ तुम सदगुणसागर अवगुण मेरे सब हरियो। किंकरकी विनती सुन स्वामी सब अपराध क्षमा करियो॥ तुम तो सकल विश्वके स्वामी मैं हूँ प्राणी संसारी॥ भोलेनाथ० काम-क्रोध-लोभ अति दारुण इनसे मेरो वश नाहीं। द्रोह-मोह-मद संग न छोड़ै आन देत नहिं तुम ताई॥ क्षुधा-तृषा नित लगी रहत है बढ़ी विषय तृष्णा भारी॥ भोलेनाथ० तुम ही शिवजी कर्ता हर्ता तुम ही जगके रखवारे। तुम ही गगन मगन पुनि पृथिवी पर्वतपुत्रीके प्यारे॥ तुम ही पवन हुताशन शिवजी तुम ही रवि-शशि तमहारी॥ भोलेनाथ० पशुपति अजर अमर अमरेश्वर योगेश्वर शिव गोस्वामी। वृषभारूढ़ गूढ़ गुरु गिरिपति गिरिजावललभ निष्कामी॥ सुषमासागर रूप उजागर गावत हैं सब नरनारी॥ भोलेनाथ० महादेव देवोंके अधिपति फणिपति-भूषण अति साजे। दीप्त ललाट लाल दोउ लोचन उर आनत ही दुख भाजे॥ परम प्रसिद्ध पुनीत पुरातन महिमा त्रिभुवन-विस्तारी॥ भोलेनाथ० ब्रह्मा-विष्णु-महेश-शेष मुनि-नारद आदि करत सेवा। सबकी इच्छा पूरन करते नाथ सनातन हर देवा॥ भक्ति-मुक्तिके दाता शंकर नित्य-निरंतर सुखकारी॥ भोलेनाथ० महिमा इृष्ट महेश्वरकी जो सीखे सुने नित्य गावे। अष्टसिद्धि-नवनिधि सुखसम्पति स्वामिभक्ति मुक्ती पावै॥ श्रीअहिभूषण प्रसन्न होकर कृपा कीजिये त्रिपुरारी॥ भोलेनाथ०

    Shri Devi jii Arti (1) (श्रीदेवीजी आरती )

    श्रीदेवी-वन्दना देवि प्रपन्नातिहे प्रसीद प्रसीद मातर्जगतोऽखिलस्य। प्रसीद विश्वेश्वरि पाहि विश्वं त्वमीएवरी देवि चराचरस्य॥ श्रीदेवीजी जय जय देवि जयति जय, जय मोहिनिरूपे। मामिह जननि समुद्धर पतितं भवकूपे॥ ध्रुवपदम् ॥ प्रवरातीरनिवासिनि निगमप्रतिपाद्ये पारावारविहारिणि नारायणि हृद्ये ॥ प्रपञ्चसारे जगदाधारे श्रीविद्ये प्रपन्नपालननिरते मुनिवृन्दाराध्ये। १ ॥ जय जय० ॥ दिव्यसुधाकरवदने कुन्दोज्ज्वलरदने पदनखनिर्जितमदने मधुकैटभकदने। विकसितपङ्कजनयने पन्नगपतिशयने खगपतिवहने गहने सङ्कटवनदहने॥ २॥ जय जय०॥ मञ्जीराङ्कितचरणे मणिमुक्ताभरणे कञ्चुकिवस्त्रावरणे वक्त्राम्बुजधरणे। शक्रामयभयहरणे भूसुरसुखकरणे करुणां कुरु मे शरणे गजनक्रोद्धरणे॥ ३॥ जय जय०॥ छित्वा राहुग्रीवां पासि त्वं विबुधान् ददासि मृत्युमनिष्टं पीयूषं विबुधान् । विहरसि दानवऋद्धानू समरे संसिद्धान् मध्वमुनीशएवरवरदे पालय संसिद्धान् ॥ ४॥ जय जय०॥

    Shri Devi Ji Arti (2 ) (श्रीदेवीजी)

    श्रीदेवी-वन्दना देवि प्रपन्नातिहे प्रसीद प्रसीद मातर्जगतोऽखिलस्य। प्रसीद विश्वेश्वरि पाहि विश्वं त्वमीएवरी देवि चराचरस्य॥ श्रीदेवीजी जय जय, जगजननि देवि सुर-नर-मुनि-असुर-सेवि, भुक्ति-मुक्ति-दायिनि भयहरणि कालिका। मंगल-मुद-सिद्धि-सदनि, पर्वशर्वरीश-वदनि, ताप-तिमिर तरुण-तरणि-किरणमालिका॥ १॥ वर्म-चर्म-कर-कृपाण_ शूल-शेल-धनुष-बाण- धरणि, दलनि दानव-दल, रण-करालिका। पूतना-पिशाच-प्रेत डाकिनि-शाकिनि-समेत भूत-ग्रह-बेताल-खग-मृगालि-जालिका ॥ २॥ जय महेश-भामिनी अनेक-रूप-नामिनी, समस्त-लोक-स्वामिनी हिमशैल-बालिका। रघुपति-पद परम प्रेम, तुलसी यह अचल नेम, देहु है प्रसन्न पाहि प्रनतपालिका॥ ३॥

    Shri Durga Ji Arti (श्रीदुर्गाजी)

    श्रीदुर्गाजी जगजननजीय ! जय ! मा ! जगजननजीय ! जय !!| भयहारिणि,भवतारिणि,भवभाभिनि जय जय॥टेक॥ तू ही सत-चित-सुखमय शुद्ध ब्रह्मरूपा। सत्य. सनातन सुन्दर पर-शिव सुर-भूपा॥१॥जग०॥ आदि अनादि अनामय अविचल अविनाशी। अमल अनन्त अगोचर अज आनँदराशी॥२॥जग०॥ अविकारी, अघहारी, अकल कलाधारी। कर्ता विधि,भर्ता हरि,हर सँहारकारी॥३॥जग०॥ तू विधि-वधू, रमा, तू उमा, महामाया। मूल प्रकृति,विद्या तू,तू जननी जाया॥४॥जग०॥ राम,कृष्ण तू,सीता, ब्रजरानी राधा। तू वाञ्छाकल्पद्रुम हारिणि सब बाधा॥५॥जग०॥ दश विद्या,नव दुर्गा नाना शस्त्रकरा। अष्टमातृका,योगिनि,नव-नव-रूप-धरा॥६॥जग०॥ तू परधामनिवासिनि,महाविलासिनि तू । तू ही श्मशानविहारिणि, ताण्डबलासिनि तू॥७॥जग०॥ सुर-मुनि-मोहिनि सौम्या तू शोभाधारा। विवसन विकट-सरूपा,प्रलयमयी धारा॥८॥जग०॥ तू ही स्नेहसुधामयि, तू अति गरलमना। रलविभूषित तू ही,तू ही अस्थि-तना॥९॥जग०॥ मूलाधारनिवासिनि, इह-पर-सिद्धप्रदे । कालातीता काली,कमला तू वरदे॥ १०॥जग०॥ शक्ति शक्तिधर तू ही नित्य अभेदमयी। भेदप्रदर्शिनि वाणी विमले! वेदत्रयी॥ ११॥जग०॥ हम अति दीन दुखी माँ! विपत-जाल घेरे। हैं कपूत अति कपटी, पर बालक तेरे ॥१२॥ जग०॥ निज स्वभाववश जननी! दयादृष्टि कीजै। करुणा कर करुणामयि! चरण-शरण दीजै॥ १३॥जग०॥

    Shri Amba Ji Arti (श्रीअम्बाजी)

    श्रीअम्बाजी जय अम्बे गौरी मैया जय श्यामागौरी। तुमको निशिदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिवजी॥१॥जय अम्बे० माँग सिंदूर विराजत टीको मृगमदको। उज्ज्बलसे दोउ नैना,चंद्रवदन नीको॥२॥जय अम्बे० कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजै। रक्त-पुष्प गल माला,कण्ठनपर साजै॥३॥जय अम्बे० केहरि वाहन राजत, खड्ग खपर धारी। सुर-नर-मुनि-जन सेवत,तिनके दुखहारी॥४॥जय अम्बे० कानन कुण्डल शोभित,नासाग्रे मोती। कोटिक चंद्र दिवाकर सम राजत ज्योती॥५॥जय अम्बे० शुम्भ निशुम्भ विदारे,महिषासुर-घाती। धूम्रविलोचन नैना निशिदिन मदमाती॥६॥जय अम्बे० चण्ड मुण्ड संहारे,शोणितबीज हरे। मधु कैटभ दोउ मारे,सुर भयहीन करे॥७॥जय अम्बे० ब्रह्माणी, रुद्राणी तुम कमलारानी। आगम-निगम-बखानी,तुम शिव पटरानी॥८॥जय अम्बे० चौंसठ योगिनि गावत,नृत्य करत भैरूँ। बाजत ताल मृदंगा औ बाजत डमरू॥९॥जय अम्बे० तुम ही जगकी माता,तुम ही हो भरता। भक्त तनकी दुख हरता सुख सम्पति करता॥१०॥जय अम्बे० भुजा चार अति शोभित, वर-मुद्रा धारी। मनवांछित फल पावत,सेवत नर-नारी॥ ११॥जय अम्बे० कंचन थाल विराजत अगर कपुर बाती। (श्री)मालकेतुमें राजत कोटिरतन ज्योती॥१२॥जय अम्बे० (श्री)अम्बेजीकी आरति जो कोइ नर गावे। कहत शिवानॉद स्वामी,सुख सम्पति पावै॥१३॥जय अम्बे०

    Shri Devi Ji Arti (3) श्रीदेवीजी

    श्रीदेवीजी आरति कीजै शैल-सुताकी ॥ आरति०॥ जगदंबाकी आरति कीजै। स्नेह-सुधा, सुख सुन्दर लीजै॥ जिनके नाम लेत दृग भीजै। ऐसी वह माता वसुधाकी॥ आरति०॥ पाप-विनाशिनि कलि-मल-हारिणि,। दयामयी, भवसागरतारिणि॥ शस्त्र-धारिणी, शैल-विहारिणि। बुद्धाशि गणपति माताकी॥ आरति ०॥ सिंहवाहिनी मातु भवानी। गौरव-गान करैं जगप्रानी॥ शिवके हृदयासनकी रानी। करैं आरती मिल-जुल ताकी॥ आरति०॥

    Shri Jwala-Kali Devi Ji Arti (श्रीज्वाला-काली देवीजी)

    श्रीज्वाला-काली देवीजी ‘मंगल' की सेवा, सुन मेरी देवा! हाथ जोड़ तेरे द्वार खड़े। पान-सुपारी, ध्वजा-नारियल ले ज्वाला तेरी भेंट धरे॥ सुन जगदम्बे न कर बिलंबे संतनके भंडार भरे। संतन प्रतिपाली सदा खुशाली जै काली कल्याण करे॥१॥टेक॥ ‘बुद्ध’ विधाता तू जगमाता मेरा कारज सिद्ध करे। चरण-कमलका लिया आसरा शरण तुम्हारी आन परे॥ जब-जब भीर पड़े भक्तनपर तब-तब आय सहाय करे। संतन प्रतिपाली०॥ २॥ “गुरु 'के बार सकल जग मोह्यो तरुणीरूप अनूप धरे। माता होकर पुत्र खिलाबै, कहीं भार्या भोग करे॥ 'शुक्र' सुखदाई सदा सहाई संत खड़े जयकार करे। संतन प्रतिपाली०॥ ३॥ ब्रह्मा विष्णु महेस फल लिये भेंट देन तब द्वार खड़े। अटल सिंहासन बैठी माता सिर सोनेका छत्र फिरे॥ वार 'शनिश्चर' कुंकुम बरणी, जब लुंकड़पर हुकुम करे। संतन प्रतिपाली०॥ ४॥ खड्ग खपर त्रैशूल हाथ लिये रक्तबीजकूँ भस्म करे। शुंभ निशुंभ क्षणहिमें मारे महिषासुरको पकड़ दले॥ ‘आदित' वारी आदि भवानी जन अपनेका कष्ट हरे। संतन प्रतिपाली०॥ ५॥ कुपित होय कर दानव मारे चण्ड मुण्ड सब चूर करे। जब तुम देखो दयारूप हो, पलमें संकट दूर टरे॥ ‘सोम’ स्वभाव धर्यो मेरी माता जनकी अर्ज कबूल करे। संतन प्रतिपाली०॥ ६॥ सात बारकी महिमा बरनी सब गुण कौन बखान करे। सिंहपीठपर चढ़ी भवानी अटल भवनमें राज्य करे॥ दर्शन पावें मंगल गावें सिध सांधक तेरी भेंट धरे। संतन प्रतिपाली०॥ ७॥ ब्रह्म वेद पढ़े तेरे द्वारे शिवशंकर हरि ध्यान करे। इन्द्र कृष्ण तेरी करैं आरती चमर कुबेर डुलाय करे॥ जय जननी जय मातु भवानी अचल भवनमें राज्य करे। संतन प्रतिपाली सदा खुशाली जय काली कल्याण करे॥ ८ ॥

    Shri Parvatvasini Jwala Ji Arti (श्रीपर्वतवासिनी ज्वालाजी)

    श्रीपर्वतवासिनी ज्वालाजी सुन मेरी देवी पर्वतवासिनि तेरा पार न पाया॥ टेक ॥ पान सुपारी ध्वजा नारियल ले तेरे भेंट चढ़ाया॥ सुवा चोली तेरे अंग विराजै केसर तिलक लगाया। नंगे पाँव तेरे अकबर जाकर सोनेका छत्र चढ़ाया॥ ऊँचे-ऊँचे पर्वत बना देवालय नीचे शहर बसाया। सत्ययुग त्रेता द्वापर मध्ये कलियुग राज सवाया॥ धूप दीप नैवेद्य आरती मोहन भोग लगाया। धानू भगत मैया ( तेरा ) गुण गावै मन वांछित फल पाया॥

    Bhagwan Surya Arti (भगवान् सूर्य)

    श्रीसूर्य-वन्दना नमो नमस्तेउस्तु सदा विभावसो सर्वात्मने सप्तहयाय भानवे। अनन्तशक्तिर्मणिभूषणेन वदस्व भक्तिं मम मुक्तिमव्ययाम् ॥ भगवान् सूर्य जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति-नन्दन। त्रिभुवन-तिमिर-निकन्दन भक्त-हृदय-चन्दन॥ टेक ॥ सप्त-अश्वरथ राजित एक चक्रधारी। दुखहारी, सुखकारी, मानस-मल-हारी ॥ जय० ॥ सुर-मुनि- भूसुर-वंदित, विमल विभवशाली | अघ-दल-दलन दिवाकर दिव्य किरण माली॥ जय०॥ सकल-सुकर्म-प्रसविता सविता शुभकारी। विश्व-विलोचन मोचन भव-बंधन भारी ॥ जय० ॥ कमल-समूह-विकासक, नाशक त्रय तापा। सेवत सहज हरत अति मनसिज-संतापा॥ जय०॥ नेत्र-व्याधि-हर सुरवर भू-पीड़ा-हारी | वृष्टि-विमोचन संतत परहित-ब्रतधारी ॥ जय० ॥ सूर्यदेव करुणाकर अब करुणा कीजे। हर अज्ञान-मोह सब तत्त्वज्ञान दीजै॥ जय०॥

    Shri Hanuman Ji Arti (श्रीहनुमानजी)

    श्रीहनुमत् -वन्दन अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम् । सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं रघुपतिवरदूतं वातजातं नमामि॥ श्रीहनुमानजी जयति मंगलागार, संसार, भारापहर, वानराकार विग्रह पुरारी। राम-रोषानल, ज्वालमाला-मिषध्वान्तचर-सलभ-संहारकारी ॥ १॥ जयति मरुदंजनामोद-मंदिर, नतग्रीवसुग्रीव-दुःखैकबंधो। यातुधानोद्धत-क्रुद्धकालाग्निहर, सिद्ध-सुर-सज्जनानंदसिंधो॥ २॥ जयति रुद्राग्रणी, विश्ववंद्याग्रणी, विश्वविख्यात-भट-चक्रवर्ती । सामगाताग्रणी, कामजेताग्रणी, रामहित, रामभक्तानुवर्ती ॥ ३॥ जयति संग्रामजय, रामसंदेशहर, कौशला-कुशल-कल्याणभाषी। राम-विरहार्क-संतप्त-भरतादि-नर-नारि-शीतलकरणकल्पशाषी ॥ ४॥ जयति सिंहासनासीन सीतारमण, निररिव्र निर्भर हरष नृत्यकारी। राम संभ्राज शोभा-सहित सर्वदा तुलसि-मानस-रामपुर-विहारी ॥ ५॥

    Shri Hanuman Ji Arti ( 2) (श्रीहनुमान् जी)

    श्रीहनुमान् जी(1) मंगल-मूरति मारुत-नंदन। सकल-अमंगल-मूल-निकंदन॥ १॥ पवन-तनय संतन-हितकारी। हृदय विराजत अवध बिहारी॥ २॥ मातु-पिता, गुरु गनपति, सारद। सिवा-समेत संभु, सुक-नारद॥ ३॥ चरन बंदि बिनवों सब काहू। देहु रामपद-नेह-निबाहू॥ ४॥ बंदौं राम-लखन-बैदेही। जे तुलसीके परम सनेही॥ ५॥ श्रीहनुमानजी(2) वन्दे सन्त श्रीहनुमन्तं रामदासममलं बलवन्तम् । रामकथामृतमधु निपिबन्तं परमप्रेमभरेण नटन्तम् ॥ १॥ प्रेमरुद्धगलम श्रुवहन्तं पुलकाड्चितवपुषा विलसन्तम् । सर्व राममयं पश्यन्तं राघवनाम सदा प्रजपन्तम् ॥ २॥ कदाचिदानन्देन हसन्तं क्वचित् कदाचिदपि प्ररुदन्तम् । सदभक्तिपथं समुपदिशन्तं विट्वुलपन्तथं प्रति सुखयन्तम् ॥ ३॥

    Shri Hanuman LaLa Ji Arti (श्री हनुमान लला जी आरती)

    श्रीहनुमानललाजी आरती कीजै हनुमानललाकी। दुष्टदलन रघुनाथ कलाकी ॥ टेक ॥ जाके बलसे गिरिवर काँपै। रोग दोष जाके निकट न झाँपै॥ अंजनिपुत्र महा बलदाई। संतनके प्रभु सदा सहाई॥ दे बीरा रघुनाथ पठाये। लंका जारि सीय सुधि लाये॥ लंका-सो कोट समुद्र-सी खाई। जात पवनसुत बार न लाई॥ लंका जारि असुर संहारे। सीतारामजीके काज सँवारे॥ लक्ष्मण मूछित पड़े सकारे । आनि सजीवन प्रान उबारे॥ पैठि पताल तोरि जम-कारे । अहिरावनकी भुजा उखारे॥ बायें भुजा असुरदल मारे। दहिने भुजा संतजन तारे॥ सुर नर मुनि आरती उतारे। जय जय जय हनुमान उचारे॥ कंचन थार कपूर लौ छाई। आरति करत अंजना माई॥ जो हनुमानजीकी आरति गावै | बसि बैकुंठ परम पद पावै॥

    Shri Badrinathji Arti (भगवान् श्रीबदरीनाथजी)

    भगवान् श्रीबदरीनाथजी जय जय श्रीबदरीनाथ जयति योग-ध्यानी॥ टेक ॥ निर्गुण सगुण स्वरूप, मेघवर्ण अति अनूप, सेवत चरण सुरभूप, ज्ञानी विज्ञानी॥ जय जय०॥ झलकत है शीश छत्र, छबि अनूप अति विचित्र, बरनत पावन चरित्र सकुचत बरबानी॥ जय जय०॥ तिलक भाल अति विशाल, गलमें मणि-मुक्त-माल, प्रततपाल अति दयाल, सेवक सुखदानी॥ जय जय०॥ कानन कुंडल ललाम, मूरति सुखमाकी धाम, सुमिरत हों सिद्धि काम, कहत गुण बरखानी॥ जय जय०॥ गावत गुण शंभु, शेष, इन्द्र, चन्द्र अरू दिनेश, विनवत श्यामा हमेश जोरि जुगल पानी॥ जय जय०॥

    Shri Ganpatiji Arti (श्रीगणपतिजी आरती)

    श्रीगणपति-वन्दन खर्वं स्थूलतनुं गजेन्द्रवदनं लम्बोदरं सुन्दरं प्रस्यन्दन्मदगन्धलुब्धमधुपव्यालोलगण्डस्थलम्‌। दन्ताघातविदारितारिरुधिरै: सिन्दूरशोभाकरं वन्दे शैलसुतासुतं गणपतिं सिद्धिप्रदं कामदम्‌ ॥ भगवान्‌ श्रीगणपतिजी श्रीगनपति भज प्रगट पार्वती अंक बिराजत अविनासी। ब्रह्मा-बिष्नु-सिवादि सकल सुर करत आरती उल्लासी॥ त्रिसूलधरको भाग्य मानिकेँ सब जुरि आये कैलासी। करत ध्यान, गंधर्व गान-रत, पुष्पनकी हो वर्षा-सी॥ धनि भवानि व्रत साधि लह्यो जिन पुत्र परम गोलोकासी। अचल अनादि अखंड परात्पर भक्तहेतु भव-परकासी ॥ विद्या-ब���द्धि-निधान गुनाकर बिघ्तबिनासन दुखनासी। तुष्टि पुष्टि सुभ लाभ लक्षिम संग रिद्धि सिद्धि-सी हैं दासी॥ सब कारज जग होत सिद्ध सुभ द्वादस नाम कहे छासी । कामधेनु चिंतामनि सुरतरू चार पदारथ देतासी॥ गज-आनन सुभ सदन रदन इक सुंडि ढुंढि पुर पूजा-सी। चार भुजा मोदक-करतल सजि अंकुस धारत फरसा-सी॥ ब्याल सूत्र ज्यनेत्र भाल ससि उन्दुरवाहन सुखरासी। जिनके सुमिरन सेवन करते टूट जात जमकी फाँसी॥ कृष्णपाल धरि ध्यान निरन्तर मन लगाय जो कोइ गासी। दूर करें भवकी बाधा प्रभु मुक्ति जन्म निजपद पासी॥

    Shri Ganeshji Arti (श्रीगणेशजी आरती )

    भगवान्‌ श्रीगणेशजी जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा। माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥ जय गणेश०॥ एकदन्त दयावन्त चार भुजा धारी। मस्तक सिन्दूर सोहे मूसे की सवारी॥ जय गणेश०॥ अन्धन को आँख देत कोढ़िन को काया। बाँझन को पुत्र देत निर्धन को माया॥ जय गणेश०॥ लडुअन कौ भोग लगे सन्त करें सेवा। पान चढ़ें फूल चढ़ें और चढ़ें मे वा॥ जय गणेश०॥ दीनन की लाज राखो शम्भु-सुतवारी। कामना को पूरा करो जग बलिहारी॥ जय गणेश०॥

    Sarvrup Bhagwan Arti (सर्वरूप भगवान्‌ आरती)

    सर्वरूप हरि-वन्दन ये शैवा: समुपासते शिव इति ब्रहति वेदान्तिनो बौद्धा बुद्ध इति प्रमाणपटव: कर्तेति नैयायिका: । अर्हन्नित्यथ जैनशासनरता: कर्मेति मीमांसका: सोड्यं वो विदधातु वाज्छितफलं त्रैलोक्यनाथो हरि: ॥ सर्वरूप भगवान्‌ जय जगदीश हरे, प्रभु! जय जगदीश हरे। मायातीत, महेश्वर मन-वच-बुद्धि परे॥ टेक ॥ आदि, अनादि, अगोचर, अविचल, अविनाशी। अतुल, अनन्त, अनामय, अमित, शक्ति-राशी ॥ १॥ जय० अमल, अकल, अज, अक्षय, अव्यय, अविकारी। सत-चित-सुखमय, सुन्दर शिव सत्ताधारी॥ २॥ जय० विधि-हरि-शंकर-गणपति-सूर्य-शक्तिरूपा | विश्व चराचर तुम ही, तुम ही जगभूपा॥ ३॥ जय० माता-पिता-पितामह-स्वामि-सुद्दद भर्ता । विश्वोत्यादक पालक रक्षक संहर्ता ॥ ४ ॥ जय० साक्षी, शरण, सखा, प्रिय, प्रियतम, पूर्ण प्रभो। केवल-काल कलानिधि, कालातीत, विभो॥ ५॥ जय० राम-कृष्ण, करुणामय, प्रेमामृत-सागर। मन-मोहन मुरलीधर , नित-नव नटनागर॥ ६॥ जय० सब बिधि हीन, मलिन-मति, हम अति पातकि-जन। प्रभुपद-विमुख अभागी, कलि-कलुधषित तन-मन॥ ७॥ जय० आश्रय-दान दयार्णव! हम सबको दीजै। पाप-ताप हर हरि! सब, निज-जन कर लीजै॥ ८ ॥ जय०

    Shri Ganesh Ji Arti (1) (श्रीगणेशजी आरती)

    भगवान्‌ श्रीगणेशजी आरति गजवदन विनायककी। सुर-मुनि-पूजित गणनायककी ॥ टेक ॥ एकदंत शशिभाल गजानन, विघ्नविनाशक शुभगुण कानन, शिवसुत वन्दमान-चतुरानन, दुःखविनाशक सुखदायककी ॥ सुर०॥ ऋणद्धि-सिद्धि-स्वामी समर्थ अति, विमल बुद्धि दाता सुविमल-मति, अघ-वन-दहन, अमल अबिगत गति, विद्या-विनय-विभव-दायककी ॥ सुर०॥ पिज्ञलनयन, विशाल शुंडधर, धूम्रवर्ण शुचि वजकुश-कर, लम्बोदर बाधा-विपत्ति-हर, सुर-वन्दित सब विधि लायककी ॥ सुर०॥

    Jagdishwar Ji Arti (जगदीश्वर आरती)

    भगवान्‌ जगदीश्वर ॐ जय जगदीश हरे, प्रभु! जय जगदीश हरे॥ भक्तजनों के संकट छिनमें दूर करे॥ॐ॥ जो ध्यावै फल, पावै, दुख विनसे मनका॥प्रभु०॥ सुख-सम्पति घर आवै, कष्ट मिटै तनका॥ॐ॥ मात-पिता हि मेरे, शरण गहूँ किसकी ॥ प्रभु०॥ तुम बिन न दूजा, आस करूँ जिसकी॥ ॐ ॥ तुम पूरन परमात्मा, तुम अन्तर्यामी ॥प्रभु०॥ पारब्रह्मा परमेश्वर, तुम सबके स्वामी॥ ॐ ॥ तुम करुणाके सागर तुम पालन-कर्ता ॥ प्रभु० ॥ मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥ ॐ ॥ तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपती ॥ प्रभु० ॥ किस बिधि मिलूँ दयामय! मैं तुमको कुमती॥ ॐ ॥ दीनबन्धु दुखहर्ता तुम ठाकुर मेरे ॥ प्रभु० ॥ अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥ ॐ ॥ विषय-विकार मिटाओ, पाप हरो देवा॥ प्रभु०॥ श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, सं तनकी सेवा॥ ॐ ॥

    Brahma, Vishnu, Mahesh Aarti (भगवान्‌ ब्रह्मा, विष्णु, महेश आरती )

    भगवान्‌ ब्रह्मा, विष्णु, महेश जय शिव औंकारा, भज शिव औंकारा। ब्रह्मा विष्णु सदाशिव अर्द्धंगी धारा ॥ ॐ हर हर महादेव ॥ एकानन चतुरानन पञ्चानन राजै। हंसासन गरुडासन वृषवाह न साजै॥ २॥ ॐ हर हर० दो भुज चारु चतुर्भुज दशभुज अति सोहै। तीनों रूप निरखते त्रिभुवन-जन मोहै॥ ३॥ ॐ हर हर० अक्षमाला वनमाला रुण्डमाला धारी। त्रिपुरारी कंसारी करमाला धारी ॥ ४ ॥ ॐ हर हर० श्वेताम्बर पीताम्बर बाघाम्बर अंगे। सनकादिक गरुडादिक भूतादिक संगे॥ ५॥ ॐ हर हर० कर. मध्ये. सुकमण्डलु चक्र शूलधारी। सुखकारी दुखहारी जग-पालनकारी ॥ ६॥ ॐ हर हर० ब्रह्मा. विष्णु सदाशिव जानत अविवेका। प्रणवाक्षरमें शोभित ये तीनों एका॥ ७॥ ॐ हर हर० त्रिगुणस्वामिकी आरति जो कोइ नर गावै। भनत शिवानन्द स्वामी मनवाज्छित पावै॥ ८ ॥ ॐ हर हर०

    Panjchayatan Aarti (पञज्चायतन आरती)

    पञज्चायतन जय केशव हर गजमुख सवित- नगतनयेडहं चरणौ तब कलये॥ टेक ॥ करुणापारावारं कलिमलपरिहारमू । कद्रूसुतशयितारं 'करधृतकह्वारम्‌ ॥ घनपटलाभशरीर॑ कमलोद्भवपितरम्‌ । कलये विष्णुमुदारं कमलाभर्तारम्‌॥ जय०॥ १॥ भूधरजारतिलीलं मड़लकरशीलम्‌। भुजगेशस्मृतिलोलं भुजगावलिमालम्‌ ॥ भूषाकृतिमतिविमलं संधृतगाड्जलम्‌। भूयो नौमि कृपालं भूतेश्वरमतुलम्‌॥ जय० ॥ २॥ विघ्नारण्यहुताशं विहितानयनाशम्‌। विपदवनीधरकुलिशं विधृतांकुशपाशम्‌ ॥ विजयार्कज्वलिताशं॑ विदलितभवपाशम्‌। विनता: स्मो वयमनिशं विद्याविभवेशम्‌ ॥ जय० ॥ ३ ॥ कश्यपसूनुमुदारं कालिन्दीपितरम्‌। कालत्रितयविहारं कामुकमन्दारम्‌॥ कारुण्याब्धिमपार कालानलमदरम्‌ । कारणतत्त्वविचारं कामय ऊष्मकरम्‌॥ जय०॥ '४॥ निगमैरनुतपदकमले निहतासुरजाले । हस्ते धृतकरवाले निर्जरजनपाले॥ नितरां कृष्णकृपाले निरवधिगुणलीले। निर्जरनुतपदकमले नित्योत्सवशीले॥ जय०॥ ५॥

    Shri Satyanarayanji Arti (श्री सत्यनारायणजी आरती)

    भगवान्‌ श्रीसत्यनारायणजी जय लक्ष्मीरमणा, श्रीलक्ष्मीरमणा। सत्यनारायण स्वामी जन-पातक-हरणा॥ जय० ॥ टेक ॥ रत्नजटित सिंहासन अद्भुत छबि राजै। नारद करत निराजन घंटा ध्वनि बाजै॥ जय० ॥ प्रकट भये कलि कारण, द्विजको दरस दियो। बूढ़े ब्राह्मण बनकर कंचन-महल कियो॥ जय० ॥ दुर्बल भील कठारो, जिनपर कृपा करी। चन्द्रचूड़ एक राजा, जिनकी बिपति हरी॥ जय० ॥ वैश्य मनोरथ पायो, श्रद्धा तज दीन्‍हीं। सो फल भोग्यो प्रभुजी फिर अस्तुति कीन्हीं ॥ जय० ॥ भाव-भक्तिके कारण छिन-छिन रूप धरणो। श्रद्धा धारण कीनी, तिनको काज सरथो॥ जय० ॥ ग्वाल-बाल सँग राजा वनमें भक्ति करी। मनवांछित फल दीन्हों दीनदयालु हरी॥ जय० ॥ चढ़त प्रसाद सवायो कदलीफल, मेवा। धूप-दीप-तुलसीसे राजी सत्यदेवा ॥ जय० ॥ (सत्य) नारायणजीकी आरति जो कोड़ नर गावै। तन-मन-सुख-सम्पति मन-वांछित फल पावै॥ जय० ॥

    Shri LaxmiNarayan Ji Arti (श्रीलक्ष्मीनारायणजी आरती)

    भगवान्‌ श्रीलक्ष्मीनारायणजी जय लक्ष्मी-विष्णो। जय लक्ष्मीनारायण, जय लक्ष्मी-विष्णो। जय माधव, जय श्रीपति, जय जय जय विष्णो॥ १ ॥ जय० ॥ जय चम्पा सम-वर्णे जय नीरदकान्ते। जय मन्द-स्मित-शोभे जय अद्भुत शान्ते॥ २॥ जय०॥ कमल वराभय-हस्ते शदिकधारिन्‌। जय कमलालयवासिनि गरुडासनचारिन्‌॥ ३ ॥ जय०॥ सच्चिन्मयकरचरणे सच्चिन्मयमूर्ते । दिव्यानन्द-विलासिनि जय सु खमयमूर्ते ॥ ४॥ जय० ॥ तुम त्रिभुवनकी माता, तुम सबके त्राता। तुम लोक-त्रय-जननी, तुम सबके धाता॥५॥ जय० ॥ तुम धन-जन-सुख-संतति-जय देनेवाली। परमानन्द-बिधाता तुम हो वनमाली॥ ६॥ जय० ॥ तुम हो सुमति घरोंमें, तुम सबके स्वामी। चेतन और अचेतनके अन्तर्यामी ॥ ७॥ जय० ॥ शरणागत हूँ, मुझपर कृपा करो माता। जय लक्ष्मी-नारायण नव-मंगल-दाता॥ ८ ॥ जय० ॥

    Shri Laxmi Arti (श्रीलक्ष्मी आरती)

    श्रीलक्ष्मी-वन्दना महालशिम नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं सुरेश्वरि । हरिप्रिये नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं दयानिधे ॥ श्रीलक्ष्मीजी ॐ जय लक्ष्मी माता, (मैया) जय लक्ष्मी माता। तुमको निसिदिन सेवत हर-विष्णू-धाता॥ ॐ ॥ उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता। सूर्य-चन्द्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता॥ ॐ ॥ दुर्गारूप निरंजनि, सुख-सम्पति दाता। जो कोइ तुमको ध्यावत, ऋधि-सिधि-धन पाता ॥ ॐ ॥ तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभदाता। कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनि, भवनिधिकी त्राता॥ ॐ ॥ जिस घर तुम रहती, तहँ सब सद्गुण आता। सब सम्भव हो जाता, मन नहिं घबराता॥ ॐ ॥ तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न हो पाता। खान-पानका वैभव सब तुमसे आता॥ ॐ ॥ शुभ-गुण-मन्दिर सुन्दर, क्षीरोदधि-जाता। रत्न चतुर्दश तुम बिन कोई नहिं पाता॥ ॐ॥ महालष्मी (जी) की आरति, जो कोई नर गाता। उर आनन्द समाता, पाप उतर जाता॥ ॐ ॥

    Shri Dashavatar Arti (श्रीदशावतार आरती)

    श्रीदशावताररूप हरि-वन्दना वेदानुद्धरते जगन्निवहते भूगोलमुद्धिश्नते दैत्यं दारयते बलिं छलयते क्षत्रक्षयं कुर्वते। पौलस्त्यं जयते हलं कलयते कारुण्यमातन्वते म्लेच्छान्‌ मूर्छयते दशाकृतिकृते कृष्णाय तुभ्यं नम: ॥ श्रीदशावतार ॐ प्रलयपयोधिजले घृतवानसि वेदम्‌। विहितवहित्रचरित्रमखेदम्‌ ॥ केशव धृतमीनशरीर जय जगदीश हरे॥ १॥ झितिरतिविपुलतरे तव तिष्ठति पृष्ठे। धरणिधरणकिणचक्रगरिष्ठे ॥ केशव धृतकच्छपरूप जय जगदीश हरे॥ २ ॥ वसति दशनशिखरे धरणी तव लग्ना । शशिनि कलड्डूकलेव निमग्ना ॥ केशव धृतशूकररूप जय जगदीश हरे॥ ३ ॥ तव करकमलवरे नखमद्भुतश्रृम्‌। दलितहिरण्यकशिपुतनुभूडम्‌ ॥ केशव धृतनरहरिरूप जय जगदीश हरे॥ ४ ॥ छलयसि विक्रमणे बलिमद्भुतवामन । पदनखनीरजनितजनपावन ॥ केशव धृतवामनरूप जय जगदीश हरे॥ ५ ॥ क्षत्रियरुधिरमये जगदपगतपापम्‌। स्नपयसि पयसि शमितभवतापम्॥ केशव धृतभृगुपतिरूप जय जगदीश हरे॥ ६ ॥ वितरसि दिक्षु रणे दिक्पतिकमनीयम्‌। दशमुखमौलिबलिं रमणीयम्‌ ॥ केशव धृतरघुपतिवेष जय जगदीश हरे॥ ७ ॥ वहसि वपुषि विशदे वसनं जलदाभम्‌। हलहतिभीतिमिलितयमुनाभम्‌ ॥ केशव धृतहलधररूप जय जगदीश हरे॥ ८ ॥ निन्दसि यज्ञविधेरहह श्रुतिजातम्‌। सदयहृदयदर्शितपशुघातम्‌ ॥ केशव धृतबुद्धशरीर जय जगदीश हरे॥ ९ ॥ म्लेच्छनिवहनिधने कलयसि करवालम्‌ । धूमकेतुमिव किमपि करालम्‌ ॥ केशव धृतकल्किशरीर जय जगदीश हरे॥ १०॥ श्रीजयदेवकवेरिदमुदितमुदारम्‌ I श्रृणु सुखदं शुभदं भवसारम्‌ ॥ केशव धृतदशबविधरूप जय जगदीश हरे॥ ११॥

    Shri Ram Arti (श्रीराम आरती)

    श्रीराम-वन्दना श्रीरामचन्द्र रघुपुद्व राजवर्य राजेन्द्र राम रघुनायक राघवेश। राजाधिराज रघुनन्दन रामचन्द्र दासोज्हमद्य भवत: शरणागतोउस्मि॥ भगवान्‌ श्रीराम कृत्वा शिरसि निदेशं पितुरंसे चापम्‌। कृतमखरक्षो हतवान्‌ कौशिकहत्तापम्‌ ॥ गत्वा तेनैव समं मिथिलाधीशसद: । शिवधनुषा सह भगन: शूरम्मन्यमदः ॥ १॥ जय जय रघुकुलभूषण भगवन्‌ दाशरथे। रमतां त्वयि चित्तमिदं शंकरगीतकथे॥ स्पृष्टा पदरजसा ते शैली मुनियोषा। साध्वीष्वाद्यं लेभे पदमपगतदोषा ॥ उपह्तबदरा शबरी जात्यातिजघन्या। दृष्टवा ते दपड्जमभवद् भुवि धन्या॥ २॥ कपिकुलजोडप्येको भुवि हनुमान्‌ सफलजनु: । सुधिया येन नियुक्ता तव कार्ये स्वतनु: ॥ तीर्णों मृत्यु: कृत्वा त्वां सुहदं प्रेष्ठम्‌। स्थाने प्राहुर्मुनयो यं सुधियां श्रेष्ठम्‌॥ ३॥ पारं लवणाम्भोधे: कपिसेनां नेतुम्‌। रचयामासिथ जलधे: पृष्ठेडद्भुतसेतुम्‌ ॥ दृष्टे यस्मिज्जन्तो: शमलं याति लयम्‌। पतिते देहे पश्यति नासौ यमनिलयम्‌ ॥ ४ ॥ पातकपर्वतवज्रं राघव तव नाम। श्रेय:सम्पत्तीनां पदकमलं धाम ॥ ध्यायन्त्यभ्नश्यामं त्वां शम्भुप्रमुखा: । केशवसाम्यं यान्ति न तव भजने विमुखा: ॥ ५॥

    Shri Ramchandra Arti (श्रीरामचन्द्र आरती)

    भगवान्‌ श्रीरामचन्द्र श्रीरामचंद्र कृपालु भजु मन हरण भव भय दारुणम्‌। नवकंजलोचन, कंज-मुख कर-कंज पद कंजारुणम्‌ ॥ १॥ कंदर्प अगणित अमित छवि, नवनील नीरद सुंदरम्‌। पटपीत मानहु तड़ित रुचि शुचि नौभि जनक सुता वरम्‌ ॥ २॥ भजु दीनबंधु दिनेश दानव-दैत्यवंश निकंदनम्‌। रघुनंद आनँदकंद कोशलचंद दशरथ-नंदनम्‌ ॥ ३ ॥ सिर मुकुट कुंडल तिलक चारु उदार अंग विभूषणम्‌। आजानुभुज शर-चाप-धर संग्राम-जित-खर -दूषणम्‌ ॥ ४॥ इति बदति तुलसीदास शंकर-शेष-मुनि-मन-रंजनम्‌। मम हृदय कंज निवास कुरु कामादि-खल-दल-गंजनम्‌॥ ५ ॥

    Shri Ramchandra Arti (1) (श्रीरामचन्द्र आरती)

    भगवान्‌ श्रीरामचन्द्र बंदौं रघुपति करुना-निधान । जाते छूटै भव-भेद ग्यान॥ १॥ रघुबंस-कुमुद-सुखप्रद निसेस । सेवत पद-पंकज अज-महेस ॥ २॥ निज भक्त-हृदय पाथोज-भृंग । लावन्यबपुष अगनित अनंग॥ ३॥ अति प्रबल मोह-तम-मारतंड । अग्यान-गहन-पावक-प्रचंड ॥ ४॥ अभिमान-सिंधु-कुम्भज उदार । सुरंजन, भंजन भूमिभार॥ ५॥ रागादि-सर्पगन-पन्नगारि । कंदर्प-नाग-मृगपति, मुरारि॥ ६॥ भव-जलधि-पोत चरनारबिंद । जानकी-रवन आनंद-कंद ॥ ७॥ हनुमंत-प्रेम-बापी-मराल । निष्काम कामधुक गो दयाल ॥ ८ ॥ त्रैलोक-तिलक, गुनगहन राम । कह तुलसिदास बिश्राम-धाम ॥ ९॥

    Shri Vindhyeshwari Ji Arti (आरती श्री विन्ध्येश्वरी)

    आरती श्री विन्ध्येश्वरी देवी जी सुन मेरी देवी पर्वतवासिनि, तेरा पार न पाया॥ टेक ॥ पान सुपारी ध्वजा नारियल, ले तेरी भेंट चढ़ाया॥ सुवा चोली तेरे अंग विराजै, केशर तिलक लगाया। नंगे पांव तेरे अकबर जाकर, सोने का छत्र चढ़ाया॥ ऊँचे ऊँचे पर्वत बना देवालय, नीचे शहर बसाया। सत्युग त्रेता द्वापर मध्ये, कलयुग राज सवाया॥ धूप दीप नैवेद्य आरती, मोहन भोग लगाया। ध्यानू भगत मैया (तेरा) गुण गावैं, मन वांछित फल पाया॥

    Shri Saraswati Arti (श्री सरस्वती आरती)

    आरती श्री सरस्वती जी की आरती करूं सरस्वती मातु, हमारी हो भव भय हारी हो। हंस वाहन पदमासन तेरा, शुभ्र वस्त्र अनुपम है तेरा। रावण का मन कैसे फेरा, वर मांगत वन गया सबेरा। यह सब कृपा तिहारी, उपकारी हो मातु हमारी हो। तमोज्ञान नाशक तुम रवि हो, हम अम्बुजन वि कास करती हो। मंगल भवन मातु सरस्वती हो, बहुमूकन वाचाल करती हो। विद्या देने वाली वीणा, धारी हो मातु हमारी। तुम्हारी कृपा गणनायक, लायक विष्णु भये जग के पालक। अम्बा कहायी सृष्टि ही कारण, भये शम्भु संसार ही घालक। बन्दों आदि भवानी जग, सुखकारी हो मातु हमारी। सदबुद्धि विद्याबल मोही दीजै, तुम अज्ञान हटा रख लीजै। जन्मभूमि हित अर्पण कीजै, कर्मवीर भस्महिं कर दीजे। ऐसी विनय हमारी भवभय, हरी, मातु हमारी हो, आरती करूं सरस्वती मातु॥

    Shri Janaki Ji Arti (श्रीजानकीजी)

    श्रीजानकीजी (Shri Janaki Ji) आरति कीजै जनक-ललीकी । राममधुपमन कमल-कलीकी ॥ रामचंद्र मुखचंद्र चकोरी । अंतर साँवर बाहर गोरी। सकल सुमंगल सुफल फलीकी ॥ पिय दृगमृग जुग बंधन डोरी । पीय प्रेम रस-राशि किशोरी। पिय मन गति विश्राम थलीकी ॥ रूप-रास-गुननिधि जग स्वामिनि। प्रेम प्रबीन राम अभिरामिनि। सरबस धन ‘हरिचंद’ अलीकी ॥

    Shri Krishnan Jii Arti (श्री कृष्णन जी आरती)

    भगवान्‌ श्रीकृष्ण आरति श्रीकृष्ण कन्हैयाकी, मथुरा-कारागृह-अवतारी, गोकुल जसुदा-गोद-विहारी, नंदलाल नटवर गिरिधारी, वासुदेव हलधर-भैयाकी ॥ आरति० ॥ मोर-मुकुट पीताम्बर छाजै, कटि काछनि, कर मुरलि विराजे, पूर्ण सरद ससि मुख लखि लाजै, काम कोटि छबि जितवैयाकी ॥ आरति०॥। गोपीजन-रस-रास-विलासी, कौरव-कालिय-कंस-बिनासी, हिमकर-भानु-कृसानु-प्रकासी, सर्वभूत-हिय-बसवैयाकी ॥ आरति० ॥ कहुँ रन चढ़े भागि कहुँ जावै, कहुँ नूप कर, कहुँ गाय चरावै, कहुँ जागेस, बेद जस गावै, जग नचाय ब्रज-नचवैयाकी ॥ आरति०॥। अगुन-सगुन लीला-बपु-धारी, अनुपम गीता-ज्ञान-प्रचारी, दामोदर सब बिधि बलिहारी, बिप्र-धेनु-सुर-रखबवैयाकी ॥ आरति ०॥

    Bhagwan Natwar Ji Arti (भगवान नटवर जी की आरती)

    भगवान्‌ नटवर आरति कीजै श्रीनटवरकी । गोवर्धन-धर बंशीधरकी ॥ टेक ॥ नंद-सुवन जसुमतिके लाला, गोधन गोपी प्रिय गोपाला, देवप्रिय असुरनके काला, मोहन विश्वविमोहन वरकी ॥ जय वसुदेव-देवकी-नन्दन, कालयवन-कंसादि-निकन्दन, जगदाधार अजय जगबंदन, नित्य नवीन परम सुंदरकी ॥ अकल कलाधर सकल विश्वधर, विश्वम्भर कामद करुणाकर, अजर, अमर, मायिक, मायाहर, निर्गुन चिन्मय गुणमन्दिरकी ॥ पाण्डव-पूत शा परीक्षित रक्षक, अतुलित आ। अघ-मूषक-भक्षक, जगमय जगत निरीह निरीक्षक ब्रह्म परात्पर परमेश्वरकी ॥ नित्य सत्य गोलोकविहारी, अजाव्यक्त लीलावपुधारी, लीलामय लीलाविस्तारी, मधुर मनोहर राधावरकी ॥

    Shri Janaki Ji Arti (श्रीजानकीजी)

    श्रीजानकी-वन्दन उदभवस्थितिसंहारकारिणीं क्लेशहारिणीम्‌ । सर्वश्रेयस्करीं सीतां नतोड्हें रामवल्लभाम्‌ ॥ श्रीजानकीजी (Shri Janaki JI Arti) आरती जनक-ललीकी कीजै। सुबरन-थार बारि घृत-बाती, तन निज खारि रूप-रस पीजै॥ गौर-बरन सुंदर तन सोभा नख-सिख छवि नैननि भरि लीजै। सरस-माधुरी स्वामिनि मेरी चरन-कमलमें चित नित दीजै॥

    Shri Janaki Ji Arti 2 (श्रीजानकीजी)

    श्रीजानकीजी आरति कीजै जनक-ललीकी । राममधुपमन कमल-कलीकी ॥ रामचंद्र मुखचंद्र चकोरी । अंतर साँवर बाहर गोरी। सकल सुमंगल सुफल फलीकी ॥ पिय दृगमृग जुग बंधन डोरी । पीय प्रेम रस-राशि किशोरी। पिय मन गति विश्राम थलीकी ॥ रूप-रास-गुननिधि जग स्वामिनि। प्रेम प्रबीन राम अभिरामिनि। सरबस धन ‘हरिचंद’ अलीकी ॥