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Guru Stotram || गुरु स्तोत्रम् : गुरुवार के दिन पूजा के दौरान करें गुरु स्तोत्र का पाठ
Guru Stotram (गुरु स्तोत्रम्)
गुरु स्तोत्र (गुरु स्तुति): गुरु स्तोत्र, स्कंद पुराण में वर्णित गुरु गीता के 14 श्लोकों का संग्रह है। यह एक संवाद है, जो भगवान शिव और माता पार्वती के बीच गुरु की महिमा पर आधारित है। गुरु स्तोत्र सतगुरु की स्तुति है।‘गु’ का अर्थ है अंधकार और ‘रु’ का अर्थ है उसे दूर करने वाला। गुरु वह है जो सत्य के अज्ञान रूपी अंधकार को दूर कर हमें आत्मा का साक्षात्कार करवाते हैं। गुरु स्तोत्र उस सतगुरु की स्तुति है, जिन्होंने हमें आत्मज्ञान का दर्शन कराया है। यह गुरु और भगवान के प्रति आभार व्यक्त करने का माध्यम है, जिन्होंने हमारे जीवन में मार्गदर्शन के लिए एक गुरु का आशीर्वाद दिया। यदि हमारे पास अभी तक गुरु नहीं है, तो गुरु स्तोत्र का जाप भगवान से यह प्रार्थना है कि हमें सतगुरु का मार्गदर्शन प्राप्त हो। जब हमारी प्रार्थना सच्ची होती है, तो भगवान हमारी ओर गुरु को भेजते हैं। गुरु स्तोत्र का जाप हमारे गुरु भक्ति को विकसित और सुदृढ़ करता है। हमें अपने गुरु के प्रति कृतज्ञ होना चाहिए और गुरु से भक्ति और समर्पण की प्रार्थना करनी चाहिए। सबसे महत्वपूर्ण है हमारा अपना आत्म प्रयास। हमें अपने मन को शुद्ध करते रहना चाहिए। जब हम एक सच्चे गुरु के योग्य बन जाते हैं, तो वे स्वयं हमारे पास आ जाते हैं। गुरु स्तोत्र का जाप हमारा आत्म प्रयास है।गुरु स्तोत्रम् (Guru Strotram)
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुस्साक्षात्परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ॥
अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जनशलाकया।
चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः॥
अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरं।
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः ॥
अनेकजन्मसंप्राप्तकर्मबन्धविदाहिने ।
आत्मज्ञानप्रदानेन तस्मै श्री गुरवे नमः ॥
मन्नाथः श्रीजगन्नाथो मद्गुरुः श्रीजगद्गुरुः।
ममात्मासर्वभूतात्मा तस्मै श्री गुरवे नमः ॥
बर्ह्मानन्दं परमसुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिम्,
द्वन्द्वातीतं गगनसदृशं तत्त्वमस्यादिलक्ष्यम्।
एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधीसाक्षिभूतं,
भावातीतं त्रिगुणरहितं सद्गुरुं तं नमामि ॥