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Brahmasukti || ब्रह्मसूक्ति : Full Lyrics with Benefits
Brahmasukti (ब्रह्मसूक्ति )
ब्रह्मसुक्ति एक दिव्य ग्रंथ है जो ब्रह्मा (Creator God) की सृष्टि की शक्ति (Creative Power) और ज्ञान का वर्णन करता है। इसमें ब्रह्मा की भूमिका को सृष्टि के रचनाकार (Cosmic Creator) के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जो वेदों (Vedas) और ज्ञान के स्रोत (Source of Wisdom) के प्रतीक हैं। यह ग्रंथ व्यक्ति को आध्यात्मिक जागृति (Spiritual Awakening) और जीवन के मूल उद्देश्य (Purpose of Life) को समझने की प्रेरणा देता है। ब्रह्मसुक्ति में ब्रह्मा के मंत्रों (Mantras), उनकी कृपा (Divine Grace), और सत्कर्मों (Righteous Deeds) के महत्व को बताया गया है, जो व्यक्ति को सफलता (Success) और आत्मिक संतुलन (Inner Balance) की ओर ले जाते हैं।ब्रह्मसूक्ति(Brahmasukti)
सत्यव्रतं सत्यपरं त्रिसत्यं सत्यस्य योनिं निहितं च सत्ये।
सत्यस्य सत्यमृतसत्यनेत्रं सत्यात्मकं त्वां रणं प्रपन्नाः ॥ १।
नमस्ते सते ते जगत्कारणाय नमस्ते चिते सर्वलोकाश्रयाय।
नमोःद्वैततत्वाय पुक्तिप्रदाय नमो ब्रह्मणे व्यापिने शाश्चताय॥२II
त्वमेकं शरण्यं त्वमेकं वरेण्यं त्वमेकं जगत्पालकं स्वप्रकाशम्।
त्वमेकं जगत्कर्तृ पातृ प्रहरत त्वमेकं परं निश्चलं निर्विकल्पम्॥३॥
भयानां भयं भीषणं भीषणानां गतिः प्राणिनां पावनं पावनानाम् I
महोच्यैः पदानां नियन्त् नियन्तृ त्वमेकं त्वमेकं परेषां परं रक्षणं रक्ष ।।४॥
वयं त्वां स्मरामों वयं त्वां भजामो वयं त्वां जगत्साक्षिरूपं नमाम:।
सदेकं निधानं निरालम्बमीशं भवाम्भोधिपोतं शरण्यं ब्रजापः ॥५॥
जन्माद्यस्य यतोऽन्वेयादितरतश्चार्थष्वभिन्ञः स्वराट्
तेने ब्रह्य हदा य आदिकवये मुहान्ति यत्सूरयः I
तेजोवारिमृदां यथा विनिमयो यत्र त्रिसर्गोऽमृषा
धाम्ना स्वेन सदा निरस्तकुहकं सत्यं परं धीमहि॥६॥
ब्रह्मा दक्षः कुबेरो यम्वरुणमरुद्ह्विचद्धेन्द्ररुद्रा:
शैला नदः समुद्रा ग्रहगणमनुजा दैत्यगन्धर्वनागाः।
द्वीपा नक्षत्रतारा रविवसुमुनयो व्योम भूरश्चिनौ चं
संलीना यस्य सर्वे वपुषि स भगवान् पातु नो विश्वरूपः || ७॥
अम्भोधिः स्थलतां स्थलं जलधितां धूलीलवः शैलतां
मेरुर्मृत्कणतां तृणं कुलिशतां वज्रं तृणप्रायताम् ।
वहिः शीतलतां हिमं दहनतामायाति यस्येच्छया
लीलादुर्ललिताद्धुतव्यसनिने देवाय तस्मै नमः ॥८॥