Shri Mahakali Chalisa (श्री महाकाली चालीसा)

श्री महाकाली चालीसा ॥ दोहा ॥ जय जय सीताराम के मध्यवासिनी अम्ब। देहु दर्श जगदम्ब अब, करो न मातु विलम्ब।। जय तारा जय कालिका जय दश विद्या वृन्द। काली चालीसा रचत एक सिद्धि कवि हिन्द॥ प्रातः काल उठ जो पढ़े, दुपहरिया चा शाम। दुःख दारिद्रता दूर हों सिद्धि होय सब काम॥ ॥ चौपाई ॥ जय काली कंकाल मालिनी, जय मंगला महा कपालिनी। रक्तबीज बधकारिणि माता, सदा भक्त जननकी सुखदाता। शिरो मालिका भूषित अंगे, जय काली जय महा मतंगे। हर हृदयारविन्द सुविलासिनि, जय जगदम्बा सकल दुःख नाशिनि। ह्रीं काली श्रीं महाकराली, की कल्याणी दक्षिणाकाली। जय कलावती जय विद्यावती, जय तारा सुन्दरी भहामति। देहु सुबुद्धि हरहु सब संकट, होहु भक्त के आगे परगट। जय ॐ कारे जय हुंकारे, महा शक्ति जय अपरम्पारे। कमला कलियुग दर्प विनाशिनी, सदा भक्त जन के भयनाशिनी। अब जगदम्ब म देर लगाबहु, दुख दरिद्रता मोर हटावहु। जयति कराल कालिका माता, कालानल समान द्युतिगाता। जयशंकरी सुरेशि सनात्तनि, कोटि सिद्धि कवि मातु पुरात्तनि। कपर्दिनी कलि कल्प बिमोचनि, जय विकसित नव नलिनबिलोचनि। आनन्द करणि आनन्द निधाना, देहुमातु मोहि निर्मल ज्ञाना। करुणामृत सागर कृपामयी, होहु दुष्ट जनपर अब निर्दयी। सकल जीव तोहि परम पिचारा, सकल विश्व तोरे आधारा। प्रलय काल में नर्तन कारिणि, जय जननी सब जगकी पालनि। महोदरी महेश्वरी माया, हिमगिरि सुता विश्व की छाया। स्वछन्द रद मारद धुनि माही, गर्जत तुम्ही और कोउ नाही। स्फुरति मणिगणाकार प्रताने, तारागण तू ब्योंम विताने। श्री धारे सन्तम हितकारिणी, अग्नि पाणि अति दुष्ट विदारिणि। धूघ्र विलोचनि प्राण विमोचनि, शुम्भ निशुम्भ मथनि वरलोचनि। सहस भुजी सरोरुह मालिनी, चामुण्डे मरघट की वासिनी। खप्पर मध्य सुशोणित साजी, मारेड माँ महिषासुर पाजी। अम्ब अम्बिका चण्ड चण्डिका, सब एके तुम आदि कालिका। अजा एकरूपा बहुरूपा, अकथ चरित्र तव शक्ति अनूपा। कादम्बरी पानरत श्यामा, जय मातंगी काम के धामा। कमलासन वासिनी कमलायनि, जय श्यामा जय जय श्यामायनि। मातंगी जय जयति प्रकृति हे, जयति भक्ति उर कुमति सुमति है। कोटिब्रह्य शिव विष्णु कामदा, जयति अहिंसा धर्म जन्मदा। जल थल नभमण्डल में व्यापिनी, सौदामिनि मध्य अलापिनि। झननन तच्छु मरिरिन नादिनि, जय सरस्वती वीणा वादिनी। ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे, कलित कण्ठ शोभित नरमुण्डा। जय ब्रह्माण्ड सिद्धि कवि माता, कामाख्या और काली माता। हिंगलाज विन्ध्याचल वासिनि, अद्रुहासिनी अरु अघन नाशिनी। कितनी स्तुति करू अखण्डे, तू ब्रह्माण्डे शक्तिजितचण्डे। करातु कृपा सथपे जगदम्बा, रहहिं निशंक तोर अवलम्बा। बतुर्भुजी काली तुम श्यामा, रूप तुम्हार महा अभिरामा। खड्ग और खप्पर कर सौहत, सुर नर मुनि सबको मन मोहत। तुम्हरी कृपा पावे जो कोई, रोग शोक नहि ताकह होई। जो यह पाठ करे चालीसा, तापर कृपा करहि गौरीशा। ॥ दोहा ॥ जय कपालिनी जय शिवा, जय जय जय जगदम्ब। सदा भक्तजन केरि दुःख हरहु मातु अवलम्ब॥