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भगवान् श्री भोलेनाथ जी की आरती || अभयदान दीजै दयालु प्रभु - भजन (Abhaydan Deejai Dayalu Prabhu Shiv Aarti)
Bhagwan Shri Bholenath Arti (भगवान् श्री भोलेनाथ जी की आरती )
भगवान भोलेनाथ की आरती भगवान शिव की महिमा का गुणगान करती है। इसमें भोलेनाथ के सरल स्वभाव, दयालुता और उनकी शक्तियों का वर्णन किया गया है। Lord Shiva, जिन्हें Mahadev, Shankar, और Bholenath के नाम से भी जाना जाता है, के भक्त उनकी आरती गाकर दुखों का नाश, शांति, और मोक्ष की कामना करते हैं।
भगवान् श्री भोलेनाथ जी की आरती
अभयदान दीजै दयालु प्रभु, सकल सृष्टिके हितकारी।
भोलेनाथ भक्त-दुखगंजन, भवभंजन शुभ सुखकारी॥
दीनदयालु कृपालु कालरिपु, अलखनिरंजन शिव योगी।
मंगल रूप अनूप छबीले, अखिल भुवनके तुम भोगी॥
बाम अंग अति रँगरस-भीने, उमा-वदन की छबि न्यारी॥
भोलेनाथ भक्त-दु:खगंजन, भवभंजन शुभ सुखकारी ॥
असुर-निकंदन, सब दुखभंजन, वेद बखाने जग जाने।
रुण्ड-माल, गल व्याल, भाल-शशि, नीलकंठ शोभा साने॥
गंगाधर, त्रिशूलधर, विषधर, बाघम्बरधर, गिरिचारी॥
भोलेनाथ भक्त-दु:खगंजन, भवभंजन शुभ सुखकारी ॥
यह भवसागर अति अगाध है पार उतर कैसे बूझै।
ग्राह मगर बहु कच्छप छाये मार्ग कहो कैसे सूझै॥
नाम तुम्हारा नौका निर्मल तुम केवट शिव अधिकारी॥
भोलेनाथ भक्त-दु:खगंजन, भवभंजन शुभ सुखकारी ॥
मैं जानूँ तुम सदगुणसागर, अवगुण मेरे सब हरियो।
किंकरकी विनती सुन स्वामी, सब अपराध क्षमा करियो॥
तुम तो सकल विश्वके स्वामी, मैं हूँ प्राणी संसारी॥
भोलेनाथ भक्त-दु:खगंजन, भवभंजन शुभ सुखकारी ॥
काम-क्रोध-लोभ अति दारुण, इनसे मेरो वश नाहीं।
द्रोह-मोह-मद संग न छोड़ै, आन देत नहिं तुम ताई॥
क्षुधा-तृषा नित लगी रहत है, बढ़ी विषय तृष्णा भारी॥
भोलेनाथ भक्त-दु:खगंजन, भवभंजन शुभ सुखकारी ॥
तुम ही शिवजी कर्ता हर्ता तुम ही जगके रखवारे।
तुम ही गगन मगन पुनि पृथिवी पर्वतपुत्रीके प्यारे॥
तुम ही पवन हुताशन शिवजी तुम ही रवि-शशि तमहारी॥
भोलेनाथ भक्त-दु:खगंजन, भवभंजन शुभ सुखकारी॥
पशुपति अजर अमर अमरेश्वर योगेश्वर शिव गोस्वामी।
वृषभारूढ़ गूढ़ गुरु गिरिपति गिरिजावललभ निष्कामी॥
सुषमासागर रूप उजागर गावत हैं सब नरनारी॥
भोलेनाथ भक्त-दु:खगंजन, भवभंजन शुभ सुखकारी॥
महादेव देवोंके अधिपति फणिपति-भूषण अति साजे।
दीप्त ललाट लाल दोउ लोचन उर आनत ही दुख भाजे॥
परम प्रसिद्ध पुनीत पुरातन महिमा त्रिभुवन-विस्तारी॥
भोलेनाथ भक्त-दु:खगंजन, भवभंजन शुभ सुखकारी॥
ब्रह्मा-विष्णु-महेश-शेष मुनि-नारद आदि करत सेवा।
सबकी इच्छा पूरन करते नाथ सनातन हर देवा॥
भक्ति-मुक्तिके दाता शंकर नित्य-निरंतर सुखकारी॥
भोलेनाथ भक्त-दु:खगंजन, भवभंजन शुभ सुखकारी॥
महिमा इृष्ट महेश्वरकी जो सीखे सुने नित्य गावे।
अष्टसिद्धि-नवनिधि सुखसम्पति स्वामिभक्ति मुक्ती पावै॥
श्रीअहिभूषण प्रसन्न होकर कृपा कीजिये त्रिपुरारी॥
भोलेनाथ भक्त-दु:खगंजन, भवभंजन शुभ सुखकारी॥
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