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Shri Durga Ji Arti || श्री दुर्गाजी की आरती : जगजननजीय ! जय ! मा - माँ दुर्गा की महिमा
Shri Durga Ji Arti (श्री दुर्गाजी की आरती)
श्री दुर्गा जी की आरती माँ दुर्गा के शौर्य, शक्ति और करुणा की स्तुति है। इसमें माँ दुर्गा को संसार की रक्षक, संकट हरने वाली, और दुष्टों का नाश करने वाली देवी के रूप में पूजा जाता है। आरती में माँ दुर्गा के नवदुर्गा के रूपों, उनके पराक्रम, प्रेम, और आशीर्वाद का वर्णन किया गया है। Goddess Durga, जिन्हें Mahishasurmardini और Shakti के नाम से जाना जाता है, की यह आरती नवरात्रि और अन्य त्योहारों पर विशेष महत्व रखती है।
श्रीदुर्गाजी
जगजननजीय ! जय ! मा ! जगजननजीय ! जय !!|
भयहारिणि,भवतारिणि,भवभाभिनि जय जय॥टेक॥
तू ही सत-चित-सुखमय शुद्ध ब्रह्मरूपा।
सत्य. सनातन सुन्दर पर-शिव सुर-भूपा॥१॥जग०॥
आदि अनादि अनामय अविचल अविनाशी।
अमल अनन्त अगोचर अज आनँदराशी॥२॥जग०॥
अविकारी, अघहारी, अकल कलाधारी।
कर्ता विधि,भर्ता हरि,हर सँहारकारी॥३॥जग०॥
तू विधि-वधू, रमा, तू उमा, महामाया।
मूल प्रकृति,विद्या तू,तू जननी जाया॥४॥जग०॥
राम,कृष्ण तू,सीता, ब्रजरानी राधा।
तू वाञ्छाकल्पद्रुम हारिणि सब बाधा॥५॥जग०॥
दश विद्या,नव दुर्गा नाना शस्त्रकरा।
अष्टमातृका,योगिनि,नव-नव-रूप-धरा॥६॥जग०॥
तू परधामनिवासिनि,महाविलासिनि तू ।
तू ही श्मशानविहारिणि, ताण्डबलासिनि तू॥७॥जग०॥
सुर-मुनि-मोहिनि सौम्या तू शोभाधारा।
विवसन विकट-सरूपा,प्रलयमयी धारा॥८॥जग०॥
तू ही स्नेहसुधामयि, तू अति गरलमना।
रलविभूषित तू ही,तू ही अस्थि-तना॥९॥जग०॥
मूलाधारनिवासिनि, इह-पर-सिद्धप्रदे ।
कालातीता काली,कमला तू वरदे॥ १०॥जग०॥
शक्ति शक्तिधर तू ही नित्य अभेदमयी।
भेदप्रदर्शिनि वाणी विमले! वेदत्रयी॥ ११॥जग०॥
हम अति दीन दुखी माँ! विपत-जाल घेरे।
हैं कपूत अति कपटी, पर बालक तेरे ॥१२॥ जग०॥
निज स्वभाववश जननी! दयादृष्टि कीजै।
करुणा कर करुणामयि! चरण-शरण दीजै॥ १३॥जग०॥
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