No festivals today or in the next 14 days. 🎉
Shri Gayatri Chalisa || श्री गायत्री चालीसा : आध्यात्मिक शक्ति, ज्ञान और समृद्धि प्राप्ति के लिए एक शक्तिशाली प्रार्थना
Shri Gayatri Chalisa (श्री गायत्री चालीसा)
गायत्री चालीसा माँ गायत्री पर आधारित है, जिन्हें Vedmata, Savitri, और Adishakti भी कहा जाता है। Gayatri mantra "ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्" का जाप चालीसा पाठ के दौरान करना mental clarity, peace, और positive energy लाने में सहायक है।
श्री गायत्री चालीसा
॥ दोहा ॥
ह्रीं, श्रीं क्लीं मेधा, प्रभा, जीवन ज्योति प्रचंड।
शांति क्रांति, जागृति, प्रगति, रचना शक्ति अखंड॥
जगत जननि, मंगल करनि, गायत्री सुख धाम।
प्रणवों सावित्री, स्वधा स्वाहा पूरन काम॥
॥ चौपाई ॥
भूर्भुवः स्वः ॐ युत जननी, गायत्री नित कलिमल दहनी।
अक्षर चौबीस परम पुनीता, इसमें बसे शास्त्र, श्रुति, गीता।
शाश्वत सतोगुणी सतरूपा, सत्य सनातन सुधा अनूपा।
हंसारूढ़ श्वेताम्बर धारी, स्वर्ण कांति शुचि गगन बिहारी।
पुस्तक, पुष्प, कमण्डलु, माला, शुभ्र वर्ण तनु नयन विशाला।
ध्यान धरत पुलकित हिय होई, सुख उपजत दुःख-दुरमति खोई।
कामधेनु तुम सुर तरु छाया, निराकार की अद्भुत माया।
तुम्हारी शरण गहै जो कोई, तरै सकल संकट सों सोई।
सरस्वती लक्ष्मी तुम काली, दिपै तुम्हारी ज्योति निराली।
तुम्हारी महिमा पार न पावैं, जो शारद शतमुख गुण गावैं।
चार वेद की मातु पुनीता, तुम ब्रह्माणी गौरी सीता।
महामन्त्र जितने जग माहीं, कोऊ गायत्री सम नाहीं।
सुमिरत हिय में ज्ञान प्रकासै, आलस पाप अविद्या नासै।
सृष्टि बीज जग जननि भवानी, कालरात्रि वरदा कल्याणी।
ब्रह्मा विष्णु रुद्र सुर जेते, तुम सों पावें सुरता तेते।
तुम भक्तन की भक्त तुम्हारे, जननिहिं पुत्र प्राण ते प्यारे।
महिमा अपरम्पार तुम्हारी, जय जय जय त्रिपदा भयहारी।
पूरित सकल ज्ञान विज्ञाना, तुम सम अधिक न जग में आना।
तुमहिं जान कछु रहै न शेषा, तुमहिं पाय कछु रहै न क्लेशा।
जानत तुमहिं तुमहिं द्वैजाई, पारस परसि कुधातु सुहाई।
तुम्हारी शक्ति दिपै सब ठाई, माता तुम सब ठौर समाई।
ग्रह नक्षत्र ब्रह्माण्ड घनेरे, सब गतिवान तुम्हारे प्रेरे।
सकल सृष्टि की प्राण विधाता, पालक, पोषक, नाशक, त्राता।
मातेश्वरी दया व्रतधारी, मम सन तरें पातकी भारी।
जा पर कृपा तुम्हारी होई, तापर कृपा करे सब कोई।
मन्द बुद्धि ते बुद्धि बल पावै, रोगी रोग रहित है जावें।
दारिद मिटे, कटे सब पीरा, नाशै दुःख हरै भव भीरा।
गृह क्लेश चित चिन्ता भारी, नासै गायत्री भय हारी।
सन्तति हीन सुसन्तति पावें, सुख सम्पति युत मोद मनावें।
भूत पिशाच सबै भय खावें, यम के दूत निकट नहिं आवें।
जो सधवा सुमिरे चित लाई, अछत सुहाग सदा सुखदाई।
घर वर सुखप्रद लहँ कुमारी, विधवा रहें सत्यव्रत धारी।
जयति जयति जगदंब भवानी, तुम सम और दयालु न दानी।
जो सद्गुरु सों दीक्षा पावें, सो साधन को सफल बनावें।
सुमिरन करें सुरुचि बड़ भागी, लहै मनोरथ गृही विरागी।
अष्ट सिद्धि नवनिधि की दाता, सब समर्थ गायत्री माता।
ऋषि, मुनि, यति, तपस्वी, योगी, आरत, अर्थी, चिन्तत, भोगी।
जो जो शरण तुम्हारी आवै, सो सो मन वांछित फल पावै।
बल, बुद्धि, विद्या, शील स्वभाऊ, धन, वैभव, यश, तेज, उछाऊ।
सकल बढ़ें उपजें सुख नाना, जो यह पाठ करै धरि ध्याना।
॥ दोहा ॥
यह चालीसा भक्ति युत, पाठ करें जो कोय।
तापर कृपा प्रसन्नता, गायत्री की होय॥