Shri Bagalamukhi (10 Mahavidya) (श्री बगलामुखी)

श्रीबगला श्रीबगला सत्ययुग में सम्पूर्ण जगत् को नष्ट करने वाला तूफान आया । प्राणियों के जीवन पर संकट आया देखकर महा विष्णु चिन्तित हो गये और वे सौराष्ट्र देश में हरिद्रा सरोवर के समीप जाकर भगवती को प्रसन्न करने के लिए तप करने लगे। श्रीविद्या ने उस सरोवर से निकलकर 'पीताम्बरा' के रूप में उन्हें दर्शन दिया और बढ़ते हुए जल-वेग तथा विध्वंसकारी उत्पात का स्तम्भन किया। वास्तव में दुष्ट वही है, जो जगत् के या धर्म के छन्द का अतिक्रमण करता है। बगला उसका स्तम्भन किंवा नियन्त्रण करने काली महाशक्ति हैं। वे परमेश्वर की सहायिका हैं और वाणी, विद्या तथा गति को अनुशासित करती हैं। वें सर्वसिद्धि देने में समर्थ और उपासकों की वाष्ठाकल्पतरु हैं । श्रीबगला को 'त्रिशक्ति' भी कहा जाता है सत्ये काली च श्रीविद्या कमला भुवनेश्वरी । सिद्धविद्या महेशानि त्रिशक्तिर्बगला शिवे ॥ श्रीबगला पीताम्बरा को तामसी मानना उचित नहीं, क्योंकि उनके आभिचारिक कृत्यों में रक्षा की ही प्रधानता होती है और यह कार्य इसी शक्ति द्वारा होता है । शुक्ल-आयुर्वेद की माध्यदिन संहिता के पांचवें अध्याय की २३, २४, २५वीं कण्डिकाओं में अभिचार-कर्मकी निवृत्ति में श्रीबगलामुखी को ही सर्वोत्तम बताया गया है, । अर्थात् शत्रु के विनाश के लिए जो कृत्याविशेष को भूमि में गाड़ देते हैं, उन्हें नष्ट करने वाली वैष्णवी महाशक्ति श्रीबगलामुखी ही हैं। सिद्धेश्वर-तन्त्र के बगलापटल में मन्त्र जपादि के विषय में विशेष विधान बताए गए हैं, जो इस प्रकार हैं- पीताम्बरधरो भूत्वा पूर्वाशाभिमुखः स्थितः । लक्षमेकं जपेन्मन्त्रं हरिद्राग्रन्थिमालया ॥ ब्रह्मचर्यरतो नित्यं प्रयतो ध्यानतत्परः । प्रियंगुकुसुमेनापि पीतपुष्पैश्च होमयेत् ॥ बगला के जप में पीले रंग का विशेष महत्त्व है। जपकर्ता को पीला वस्त्र पहन कर हत्वी की गांठ की माला से जप करना चाहिए। देवी की पूजा और होम में पीले पुष्पों, प्रियंगु, कनेर, गेंदा आदि के पुष्पों का प्रयोग करना चाहिए। शुचिर्भूत हो पीले कपड़े पहन कर साथक पूर्वाभिमुख बैठ कर ही जप करे। उसे ब्रह्मचर्य का पालन अनिवार्यतः करना चाहिए और सदैव पवित्र रहकर भगवती का ध्यान करना चाहिए । श्रीबगला के साधक श्रीप्रजापति ने यह उपासना वैदिक रीति से की और वे सृष्टि की संरचना में सफल हुए। श्रीप्रजापति ने इस महाविद्या का उपदेश सनकादिक मुनियों को किया। सनत्कुमार ने श्रीनारद को तथा श्रीनारद ने सांख्ययन नामक परमहंस को बताया तथा सांख्यायन ने ३६ पटलों में उपनिबद्ध बगला-तन्त्र की रचना की। दूसरे उपासक भगवान् श्रीविष्णु हुए, जिनका वर्णन 'स्वतन्त्र तन्त्र' में मिलता है। तीसरे उपासक श्रीपरशुराम जी हुए तथा श्रीपरशुराम जी ने पह विद्या आचार्य द्रोण को बतायी । महर्षि व्यवन ने भी इसी विद्या के प्रभाव से इन्द्र के वज को स्तम्भित कर दिया था। श्रीमद्‌ङ्गोविन्दपाद की समाधि में विघ्न डालने वाली रेवा नदी का स्तम्भन श्री शंकराचार्य ने इसी विद्या के बल से किया ना। महामुनि श्रीनिम्बार्क ने एक परिव्राजक को नीमवृक्ष पर सूर्य का दर्शन इसी विद्या के प्रभाव से कराया था। अतः साधकों को चाहिए कि वे श्रीबगला की विधिपूर्वक उपासना करें ।