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Shri Narasimha Kavacham || श्री नृसिंह कवच : Powerful Prayer for Protection
Shri Narasimha Kavacham (श्री नृसिंह कवच)
श्री नरसिंह कवच भगवान नरसिंह (Lord Narasimha), जो विष्णु के उग्र अवतार (Fierce Incarnation of Vishnu) हैं, की कृपा और सुरक्षा (Divine Protection) प्राप्त करने के लिए एक पवित्र स्तोत्र है। यह कवच भगवान नरसिंह की अद्भुत शक्ति (Divine Power) और उनके भक्तों की रक्षा (Protection) करने की क्षमता का वर्णन करता है। इसमें भगवान नरसिंह के विभिन्न अंगों की स्तुति (Praise) और उनकी कृपा से नकारात्मक ऊर्जा (Negative Energies) और भय (Fear) से मुक्ति पाने का मार्ग बताया गया है। यह स्तोत्र व्यक्ति को आध्यात्मिक बल (Spiritual Strength), साहस (Courage), और आत्मिक शांति (Inner Peace) प्रदान करता है। श्री नरसिंह कवच को नित्य पाठ करने से भक्तों को रोगों (Diseases), शत्रुओं (Enemies), और जीवन की बाधाओं से सुरक्षा मिलती है।श्री नृसिंह कवच(Shri Narasimha Kavach)
अभिचार प्रयोगों से बचने के लिये गजेन्द्र मोक्ष का प्रयोग सम्पुटित शतचंडी, प्रत्यंगिरा ओर नृसिंह कवच का प्रयोग किया जाता है । अगर कोई अभिचार प्रयोग के चपेट में आ जाए उनकी रक्षा भी नृसिंह कवच से होती है । इसे नीचे दिया जा रहा है ।
किसी भी माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि के दिन शुभ नक्षत्र रहने पर तथा शुभ योग रहने पर गुरु एवं शुक्रोदय काल में इस स्तोत्र को भोजपत्र पर या सादे कागज पर लिख कर अष्टगंध से अनार के कलम से लिखकर षोडशोपचार से पूजा कर दें। साथ ही कवच पर ध्यान लगाकर 108 बार पाठ कर दे ।
इस स्तोत्र के प्रत्येक मन्त्र से घी का हवन ११ बार कर दें। तत्पश्चात् सोना, चाँदी या ताँबा की ताबीज में स्तोत्र को भरकर गले या दाहिने हाथ में धारण करें, मन्त्र काला सूत्र में पहनें। इससे सब प्रकार की पराकृत व्याधि जाती रहती है। दुष्टों के द्वारा किया हुआ अभिचार कर्म समाप्त होकर व्यक्ति निरोग हो जाता है।
नारद उवाच
इन्द्राणि देव सन्देश इड्येश्वर जगत्पते,
महाविष्णु नृसिंह कवचं ब्रुहि मे प्रभो।
यस्य प्रपठनात् विद्धान् त्रैलोक्ये विजयी भवेत्।
ब्रह्मा उवाच
श्रणु नारद वक्ष्यामि पुत्रश्रेष्ठ तपोधन।
कवच नरसिंहस्य अैलोक्ये विजयी भवेत्॥
स्रष्टाहं जगता वत्स पठनात् धारणात् यतः।
लक्ष्मी जगत् क्रयं पाति संहर्ता च महेश्वरः ॥
पठनात् धारणात् देवाः वणवश्च दिगोश्वरः ।
ब्रह्ममन्त्रमयं वक्ष्ये भ्रान्त्यादि विनिवारकम् ॥
यस्य प्रसादात् दुर्वासः त्रैलोक्य विजयी भवेत् ।
पठनात् धारणात् यस्य शास्त्रा च क्रोध भैरवः ॥
त्रैलोक्ये विजयस्यापि कवचस्य प्रजापतिः ।
ऋषिः छन्दस्तु गायत्री नृसिंहो देवता विभुः ॥
क्षौ बीजं मे सिरः पातु चन्द्रवणीं महामनुः ।
ओं उग्रं वीरं महाविष्णुं ज्वलन्तं सर्वतोमुखम् ॥
नृसिंह भीषणं मृत्युमृत्युं नमाम्यहम्।
द्वात्रिशद अक्षरो मंत्रो मंत्रराजः सुरद्रुमः॥
कंठं पातु श्रुवं श्रीं हद् भगवते चक्षुषि मम्।
नरसिंहाय च ज्वाला मालिने पातु कर्णकम्॥
दीप दृष्टाय च तथा अग्निनेत्राय नासिकाम्।
सर्व रक्षोहनाय च तथा सर्वभूतं हिताय च॥
सर्व ज्वर विनाशाय दह दह पदद्दयम्।
रक्ष रश्च वक्रमन्त्रः स्वाहा पातुं मुखं मम॥
तारादि रामचन्द्राय नमः पातु हृद मम।
क्लीं प्रायात्पाशर्वयुग्मं च तारो नमः पदं ततः ॥
नारायणाय नाभिं च आं हीं क्रों श्रो च हुंम् फट्।
षडक्षरः कटि पातु ओं नमो भगवते पदम्॥
वासुदेवाय च पृष्ठं क्लीं कृष्णाय क्लीं उरूद्वयम्।
क्लीं कृष्णाय सदा पातु जानुनी च मनुत्तमः ॥
क्लीं क्लीं क्लीं श्यामलांगाय नमः पायात्पद।
क्षौ नृसिंहाय क्षों च सवगि मे सदावतु ॥
इति तै कथितं वत्स सर्व मन्त्रोद्य विग्रहम्।
तब स्नेहान्मयाख्यातं प्रवक्तव्यं न कष्यचित्।
गुरूपूजां विधायाश गृहणीयात् कवचं ततः ॥