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Saptashloki Gita Stotra || सप्तश्लोकी गीता स्तोत्र : Divine Wisdom of Lord Krishna
Saptashloki Gita Stotra (सप्तश्लोकी गीता स्तोत्र)
सप्तश्लोकी गीता स्तोत्र (Saptashloki Gita Stotra): श्रीमद्भगवद्गीता भारत के वैदिक दर्शन का सार प्रस्तुत करती है और यह सनातन धर्म का सच्चा ग्रंथ है, जो सबसे प्राचीन है और धर्म का मार्ग प्रशस्त करता है। श्री वेदव्यास ने महाभारत में कहा है कि गीता को बड़े मनोयोग से पढ़ना चाहिए, क्योंकि इसमें भगवान विष्णु स्वयं मनुष्यों के लिए आचार संहिता का वर्णन करते हैं। इसलिए सनातन धर्म के अन्य शास्त्रों का अध्ययन करने की आवश्यकता नहीं है। यह मान्यता है कि हिंदू धर्म के अन्य शास्त्रों में भगवान के सीधे दिव्य ज्ञान का उपदेश नहीं है, जबकि **श्रीमद्भगवद्गीता** में स्वयं भगवान ने यह ज्ञान दिया है। वास्तव में, गीता को हिंदू धर्म का एक प्रामाणिक ग्रंथ माना जाता है और इसे धर्मनिरपेक्ष उद्देश्यों के लिए भी उपयोग किया जाता है, जैसे शपथ ग्रहण के समय। सप्तश्लोकी गीता गीता के सात महत्वपूर्ण श्लोकों का संग्रह है, जो गीता के पूरे सार को सरल और संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत करता है। इसे पढ़ने और समझने से जीवन में धर्म, कर्तव्य और ज्ञान के मार्ग पर चलने की प्रेरणा मिलती है।सप्तश्लोकी गीता (Saptashloki Gita Stotra)
ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म व्याहरन्मामनुस्मरन् ।
यः प्रयाति त्यजन्देहं स याति परमां गतिम् ॥ १ ॥
स्थाने हृषीकेश तव प्रकीर्त्या जगत्प्रहृष्यत्यनुरज्यते च ।
रक्षांसि भीतानि दिशो द्रवन्ति सर्वे नमस्यन्ति च सिद्धसंघाः ॥ २ ॥
सर्वतः पाणिपादं तत्सर्वतोऽक्षिशिरोमुखम् ।
सर्वतः श्रुतिमल्लोके सर्वमावृत्य तिष्ठति ।। ३ ।।
कविं पुराणमनुशासितारमणोरणीयांसमनुस्मरेद्यः ।
सर्वस्य धातारमचिन्त्यरूपमादित्यवर्णं तमसः परस्तात् ॥ ४ ॥
ऊर्ध्वमूलमधः शाखमश्वत्थं प्राहुरव्ययम् ।
छन्दांसि यस्य पर्णानि यस्तं वेद स वेदवित् ॥ ५ ॥
सर्वस्य चाहं हृदि सन्निविष्टो मत्तः स्मृतिर्ज्ञानमपोहनं च ।
वेदैश्च सर्वैरहमेव वेद्यो वेदान्तकृद्वेदविदेव चाहम् ॥ ६ ॥
मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु ।
मामेवैष्यसि युक्त्वैवमात्मानं मत्परायणः ॥ ७ ॥
इति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसंवादे सप्तश्लोकी गीता सम्पूर्णा ।
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