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Shri Baglamukhi Kavacham || श्री बगलामुखी कवचं : Full Lyrics; समस्त बाधाओं का नाश करने वाला शक्तिशाली रक्षा स्तोत्र |
Shri Baglamukhi Kavacham ( श्री बगलामुखी कवचं)
Baglamukhi Kavach (बगलामुखी कवच): Maa Baglamukhi दस Mahavidyas में आठवीं Mahavidya मानी जाती हैं। यह एक अत्यंत शक्तिशाली कवच है, जो Evil Intentions से रक्षा करता है। यदि कोई Enemy आपको नुकसान पहुँचाने, आपका Money बर्बाद करने या Gambling, Alcohol, Cigarettes जैसी बुरी आदतों में धकेलने की कोशिश कर रहा है, तो ऐसे में Maa Baglamukhi Kavach का नियमित पाठ करना चाहिए। यह कवच सभी Enemy Problems को समाप्त करता है। यदि आप किसी Property Dispute, Court Case या किसी अन्य विवाद में फंसे हैं, तो इसका पाठ करने से Victory प्राप्त होती है। आज के समय में कुछ लोग Black Magic, Sorcery और Vashikaran से दूसरों को हानि पहुँचाने का प्रयास करते हैं। ऐसे में यदि आप Baglamukhi Gutika धारण करें और Baglamukhi Kavach का नियमित पाठ करें, तो आप Evil Powers और सभी Negative Energies से सुरक्षित रहते हैं। इसलिए हर व्यक्ति को इस कवच का पाठ अवश्य करना चाहिए।॥ श्री बगलामुखी कवचं ॥
(Shri Baglamukhi Kavacham)
॥ अथ ध्यानम् ॥
जिह्वाग्रमादाय करेण देवीं
वामेन शत्रून् परिपीडयन्तीम्।
गदाभि घातेन च दक्षिणेन
पीताम्बराढ्यां द्विभुजां नमामि ॥
॥ अथ बगलामुखी कवचम् ॥
श्रुत्वा च बगलापूजां स्तोत्रं चापि महेश्वर ।
इदानी श्रोतुमिच्छामि कवचं वद मे प्रभो ॥
वैरिनाशकरं दिव्यं सर्वाSशुभविनाशनम् ।
शुभदं स्मरणात्पुण्यं त्राहि मां दु:खनाशनम् ॥
॥ श्री भैरव उवाच ॥
कवचं शृणु वक्ष्यामि भैरवीप्राणवल्लभम् ।
पठित्वा धारयित्वा तु त्रैलोक्ये विजयी भवेत् ॥
ॐ अस्य श्री बगलामुखीकवचस्य नारद ऋषि: ।
अनुष्टप्छन्द: । बगलामुखी देवता । लं बीजम् ।
ऐं कीलकम् पुरुषार्थचष्टयसिद्धये जपे विनियोग:।
ॐ शिरो मे बगला पातु हृदयैकाक्षरी परा ।
ॐ ह्ली ॐ मे ललाटे च बगला वैरिनाशिनी ॥
गदाहस्ता सदा पातु मुखं मे मोक्षदायिनी ।
वैरिजिह्वाधरा पातु कण्ठं मे वगलामुखी ॥
उदरं नाभिदेशं च पातु नित्य परात्परा ।
परात्परतरा पातु मम गुह्यं सुरेश्वरी ॥
हस्तौ चैव तथा पादौ पार्वती परिपातु मे ।
विवादे विषमे घोरे संग्रामे रिपुसङ्कटे ॥
पीताम्बरधरा पातु सर्वाङ्गी शिवनर्तकी ।
श्रीविद्या समय पातु मातङ्गी पूरिता शिवा ॥
पातु पुत्रं सुतांश्चैव कलत्रं कालिका मम ।
पातु नित्य भ्रातरं में पितरं शूलिनी सदा ॥
रंध्र हि बगलादेव्या: कवचं मन्मुखोदितम् ।
न वै देयममुख्याय सर्वसिद्धिप्रदायकम् ॥
पाठनाद्धारणादस्य पूजनाद्वाञ्छतं लभेत् ।
इदं कवचमज्ञात्वा यो जपेद् बगलामुखीम् ॥
पिवन्ति शोणितं तस्य योगिन्य: प्राप्य सादरा: ।
वश्ये चाकर्षणो चैव मारणे मोहने तथा ॥
महाभये विपत्तौ च पठेद्वा पाठयेत्तु य: ।
तस्य सर्वार्थसिद्धि: स्याद् भक्तियुक्तस्य पार्वति ॥
॥ इति श्री बगलामुखी कवचं सम्पूर्णम् ॥