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Shri Gauri Ashtakam || श्री गौरीअष्टकम् : A Spiritual Hymn Dedicated to Goddess Gauri
Shri Gauri Ashtakam (श्री गौरीअष्टकम्)
श्री गौरी अष्टकम एक दिव्य स्तोत्र है, जिसमें माँ गौरी की महिमा और उनके अनुग्रह की स्तुति की गई है। इस अष्टकम में माता पार्वती, जिन्हें शिव की अर्धांगिनी भी कहा जाता है, के रूप, गुण और उनके भक्तों पर कृपा का उल्लेख है। इसमें बताया गया है कि माँ गौरी, कैलाश पर्वत की देवी, अपने भक्तों को जीवन की कठिनाइयों से मुक्ति प्रदान करती हैं और उन्हें सुख, समृद्धि और शांति का आशीर्वाद देती हैं। इस स्तोत्र में महादेव के साथ माँ गौरी के प्रेम और शक्ति का वर्णन भी मिलता है। काशी, हरिद्वार, और उज्जैन जैसे पवित्र स्थानों का उल्लेख करते हुए, इस स्तोत्र का पाठ करने से भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति और सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। माँ गौरी, जिन्हें दुर्गा, शक्ति और अन्नपूर्णा के रूप में भी पूजा जाता है, उनकी आराधना करने से न केवल सांसारिक सुख की प्राप्ति होती है, बल्कि आत्मिक शांति भी मिलती है। श्री गौरी अष्टकम का पाठ विशेष रूप से नवरात्रि और महाशिवरात्रि के दिनों में अत्यंत फलदायी माना जाता है।॥ श्री गौरीअष्टकम् ॥
(Shri Gauri Ashtakam)
भज गौरीशं भज गौरीशंगौरीशं भज मन्दमते।
जलभवदुस्तरजलधिसुतरणंध्येयं चित्ते शिवहरचरणम्।
अन्योपायं न हि न हि सत्यंगेयं शङ्कर शङ्कर नित्यम्।
भज गौरीशं भज गौरीशंगौरीशं भज मन्दमते॥
दारापत्यं क्षेत्रं वित्तंदेहं गेहं सर्वमनित्यम्।
इति परिभावय सर्वमसारंगर्भविकृत्या स्वप्नविचारम्।
भज गौरीशं भज गौरीशंगौरीशं भज मन्दमते॥
मलवैचित्ये पुनरावृत्ति:पुनरपि जननीजठरोत्पत्ति:।
पुनरप्याशाकुलितं जठरं किंनहि मुञ्चसि कथयेश्चित्तम्।
भज गौरीशं भज गौरीशंगौरीशं भज मन्दमते॥
मायाकल्पितमैन्द्रं जालं नहि तत्सत्यं दृष्टिविकारम्।
ज्ञाते तत्त्वे सर्वमसारं माकुरु मा कुरु विषयविचारम्।
भज गौरीशं भज गौरीशंगौरीशं भज मन्दमते॥
रज्जौ सर्पभ्रमणा-रोपस्तद्वद्ब्रह्मणि जगदारोप:।
मिथ्यामायामोहविकारंमनसि विचारय बारम्बारम्।
भज गौरीशं भज गौरीशंगौरीशं भज मन्दमते॥
अध्वरकोटीगङ्गागमनं कुरुतेयोगं चेन्द्रियदमनम्।
ज्ञानविहीन: सर्वमतेन नभवति मुक्तो जन्मशतेन।
भज गौरीशं भज गौरीशंगौरीशं भज मन्दमते॥
सोऽहं हंसो ब्रह्मैवाहंशुद्धानन्दस्तत्त्वपरोऽहम्।
अद्वैतोऽहं सङ्गविहीनेचेन्द्रिय आत्मनि निखिले लीने।
भज गौरीशं भज गौरीशंगौरीशं भज मन्दमते॥
शङ्करकिंङ्कर मा कुरु चिन्तांचिंतामणिना विरचितमेतत्।
य: सद्भक्त्या पठति हि नित्यंब्रह्मणि लीनो भवति हि सत्यम्।
भज गौरीशं भज गौरीशंगौरीशं भज मन्दमते॥
॥ इति गौरीशाष्टकं सम्पूर्णम् ॥