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Navavarana Vidhi (नवावर्ण विधि)
नवावर्ण विधि (Navavarana Vidhi)
श्रीगणपतिर्जयति । ॐ अस्य श्रीनवावर्णमंत्रस्य ब्रह्मविष्णुरुद्रा ऋषयः,
गायत्र्युष्णिगनुष्टुभश्छंदांसि श्रीमहाकालीमाहालक्ष्मीमहासरस्वत्यो देवताः,
ऐं बीजं, ह्रीं शक्ति:, क्लीं कीलकं, श्रीमहाकालीमाहालक्ष्मीमहासरस्वतीप्रीत्यर्थे जपे
विनियोगः॥
ऋष्यादिन्यासः
ब्रह्मविष्णुरुद्रा ऋषिभ्यो नमः, मुखे ।
महाकालीमाहालक्ष्मीमहासरस्वतीदेवताभ्यो नमः,हृदि । ऐं बीजाय नमः, गुह्ये ।
ह्रीं शक्तये नमः, पादयोः । क्लीं कीलकाय नमः, नाभौ । ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै
विच्चे -- इति मूलेन करौ संशोध्य
करन्यासः
ॐ ऐं अंगुष्ठाभ्यां नमः । ॐ ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः । ॐ क्लीं मध्यमाभ्यां
नमः । ॐ चामुंडायै अनामिकाभ्यां नमः । ॐ विच्चे कनिष्ठिकाभ्यां नमः । ॐ ऐं
ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ।
हृदयादिन्यासः
ॐ ऐं हृदयाय नमः । ॐ ह्रीं शिरसे स्वाह । ॐ क्लीं शिखायै वषट् । ॐ चामुंडायै
कवचाय हुम् । ॐ विच्चे नेत्रत्रयाय वौषट् । ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे
अस्त्राय फट् ।
अक्षरन्यासः
ॐ ऐं नमः, शिखायाम् । ॐ ह्रीं नमः, दक्षिणनेत्रे । ॐ क्लीं नमः, वामनेत्रे । ॐ
चां नमः, दक्षिणकर्णे । ॐ मुं नमः, वामकर्णे । ॐ डां नमः,
दक्षिणनासापुटे । ॐ यैं नमः, वामनासापुटे । ॐ विं नमः, मुखे । ॐ च्चें
नमः, गुह्ये ।
एवं विन्यस्याष्टवारं मूलेन व्यापकं कुर्यात् ।
दिङ्न्यासः
ॐ ऐं प्राच्यै नमः । ॐ ऐं आग्नेय्यै नमः । ॐ ह्रीं दक्षिणायै नमः । ॐ ह्रीं
नैऋत्यै नमः । ॐ क्लीं पतीच्यै नमः । ॐ क्लीं वायुव्यै नमः । ॐ चामुंडायै
उदीच्यै नमः । ॐ चामुंडायै ऐशान्यै नमः । ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे
ऊर्ध्वायै नमः । ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे भूम्यै नमः ।
ध्यानम्
ॐ खड्गं चक्रगदेषुचापपरिघांछूलं भुशुंडीं शिरः
शंखं संदधतीं करैस्त्रिनयनां सर्वांगभूषावृताम् ।
नीलाश्मद्युतिमास्यपाददशकां सेवे महाकालिकां
यामस्तौत्स्वपिते हरौ कमलजो हंतुं मधुं कौटभम् ॥
ॐ अक्षस्रक्परशू गदेषुकुलिशं पद्मं धनुः कुंडिकां
दंडं शक्तिमसिं च चर्म जलजं घंटां सुराभाजनम् ।
शूलं पाशसुदर्शने च दधतीं हस्तैः प्रवालप्रभां
सेवे सैरिभमर्दिनीमिह महालक्ष्मीं सरोजस्थिताम् ॥
ॐ घंटाशूलहलानि शंखमुसले चक्रं धनुः सायकम् ।
हस्ताब्जैर्धधतीं घनांतविलसच्छीतांशुतुल्यप्रभाम् ।
गौरीदेहसमुद्भवां त्रिजगताधारभूतां महा ।
पूर्वामत्र सरस्वतीमनुभजे शुंभादिदैत्यार्धिनीम् ॥
ॐ मां मालें महामाये सर्वशक्तिस्वरूपिणि ।
चतुर्वर्गस्त्वयि न्यस्तस्तस्मान्मे सिद्धिदा भव ॥
ॐ अविघ्नं कुरु माले त्वं गृह्णामि दक्षिणे करे ।
जपकाले च सिद्ध्यर्थं प्रसीद ममसिद्धये ॥
ऐं ह्रीं अक्षमालिकायै नमः ॥ 108 ॥
ॐ मां मालें महामाये सर्वशक्तिस्वरूपिणि ।
चतुर्वर्गस्त्वयि न्यस्तस्तस्मान्मे सिद्धिदा भव ॥
ॐ अविघ्नं कुरु माले त्वं गृह्णामि दक्षिणे करे ।
जपकाले च सिद्ध्यर्थं प्रसीद ममसिद्धये ॥
ॐ अक्षमालाधिपतये सुसिद्धिं देहि देहि सर्वमंत्रार्थसाधिनि
साधय साधय सर्वसिद्धिं परिकल्पय परिकल्पय मे स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे ॥ 108 ॥
गुह्यातिगुह्यगोप्त्री त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपम् ।
सिद्धिर्भवतु मे देवि त्वत्प्रसादान्महेश्वरि ॥
ॐ अक्षमालाधिपतये सुसिद्धिं देहि देहि सर्वमंत्रार्थसाधिनि
साधय साधय सर्वसिद्धिं परिकल्पय परिकल्पय मे स्वाहा ।
गुह्यातिगुह्यगोप्त्री त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपम् ।
सिद्धिर्भवतु मे देवि त्वत्प्रसादान्महेश्वरि ॥
करन्यासः
ॐ ह्रीं अंगुष्ठाभ्यां नमः । ॐ चं तर्जनीभ्यां नमः । ॐ डिं मध्यमाभ्यां
नमः । ॐ कां अनामिकाभ्यां नमः । ॐ यैं कनिष्ठिकाभ्यां नमः । ॐ ह्रीं
चंडिकायै करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ।
हृदयादिन्यासः
खड्गिनी शूलिनी घोरा गदिनी चक्रिणी तथा ।
शंखिनी चापिनी बाणभुशुंडी पैघायुधा । हृदयाय नमः ॥
ॐ शूलेन पाहि नो देवि पाहि खड्गेन चांबिके ।
घंटास्वनेन नः पाहि चापज्यानिःस्वनेन च । शिरसे स्वाहा ॥
ॐ प्राच्यां रक्ष प्रतींच्यां च रक्ष चंडिके रक्ष दक्षिणे ।
भ्रामणेनात्मशूलस्य उत्तरस्यां तथेश्वरि । शिखायै वषट् ॥
ॐ सौम्यानि यानि रूपाणि त्रैलोक्ये विचरंति ते ।
यानि चात्यर्थघोराणि तै रक्षास्मांस्तथा भुवम् । कवचाय हुम् ॥
ॐ खड्गशूलगदादीनि यानिचास्त्राणि तेऽंबिके ।
करपल्लव संगीनि तैरस्मान् रक्ष सर्वतः । नेत्रत्रयाय वौषट् ॥
ॐ सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते ।
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे नमोऽस्तुते । अस्त्राय फट् ॥
ध्यानम्
ॐ विद्युद्दामप्रभां मृगपतिस्कंधस्थितां भीषणाम् ।
कन्याभिः करवालखेटविलसद्धस्ताभिरासेविताम् ।
हस्तैश्चक्रगदासिखेटविशिखांश्चापं गुणं तर्जनीम् ।
बिभ्राणामनलात्मिकां शशिधरां दुर्गां त्रिनेत्रां भजे ॥
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प्रिया सदा. बिल्वपत्रं प्रयच्छमि पवित्रं ते सुरेश्वरी॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः बिल्वपत्राणि समर्पयामि॥ (15.)धूप समर्पण (Dhoop Samarpan) अब निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए देवी दुर्गा को धूप अर्पित करें। दशांग गुग्गुला धुपं चंदनगारू संयुतम। समर्पितं मया भक्त्या महादेवी! प्रतिगृह्यतम॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः धूपमाघ्घ्रापयमि समर्पयामि॥ (16.) दीप समर्पण (Deep Samarpan) अब निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए देवी दुर्गा को दीप अर्पित करें। घृतवर्त्तिसमायुक्तं महतेजो महोज्ज्वलम्। दीपं दास्यामि देवेषी! सुप्रीता भव सर्वदा॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः दीपं समर्पयामि॥ (17.) नैवेद्य (Naivedya) अब निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए देवी दुर्गा को नैवेद्य अर्पित करें। अन्नं चतुर्विधं स्वादु रसैः षडभिः समन्वितम्। नैवेद्य गृह्यतम देवि! भक्ति मे ह्यचला कुरु॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः नैवेद्यं निवेदयामि॥ (18.) ऋतुफला (Rituphala) अब निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए देवी दुर्गा को ऋतुफल अर्पित करें। द्राक्षाखर्जुरा कदलीफला समग्रकपीठकम। नारिकेलेक्षुजाम्बदि फलानि प्रतिगृह्यतम॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः ऋतुफलनि समर्पयामि॥ (19.) आचमन (Achamana) अब निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए देवी दुर्गा को आचमन के लिए जल अर्पित करें। कामारिवल्लभे देवि करवाचमनमम्बिके। निरंतररामहम वन्दे चरणौ तव चंडिके॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः आचमनीयं जलं समर्पयामि॥ (20.) नारिकेल समर्पण (Narikela Samarpan) अब निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए देवी दुर्गा को नारिकेल (नारियल) अर्पित करें। नारिकेलम च नारंगिम कलिंगमंजीरं त्वा। उर्वारुक च देवेषि फलन्येतानि गह्यताम्॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः नारिकेलं समर्पयामि॥ (21.) तंबुला (Tambula) अब निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए देवी दुर्गा को ताम्बूल (पान और सुपारी) अर्पित करें। एलालवंगं कस्तूरी कर्पूरैः पुष्पवसीतम। विटिकं मुखवसार्थ समर्पयामि सुरेश्वरी॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः ताम्बूलं समर्पयामि॥ (22.) दक्षिणा (Dakshina) अब निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए देवी दुर्गा को दक्षिणा (उपहार) अर्पित करें। पूजा फल समृद्धियर्था तवग्रे स्वर्णमीश्वरी। स्थापितम् तेन मे प्रीता पूर्णं कुरु मनोरथम्॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः दक्षिणं समर्पयामि॥ (23.) पुस्तक पूजा एवं कन्या पूजन (Book worship and girl worship) (A.) पुस्तक पूजा (Pustak) दक्षिणा अर्पित करने के पश्चात, अब निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए दुर्गा पूजा के दौरान उपयोग में आने वाली पुस्तकों की पूजा करें। नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः। नमः प्रकृतियै भद्रयै नियतः प्रणतः स्मतम्॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः पुस्तक पूजयामि॥ (B.) दीप पूजा (Deep Puja) पुस्तकों की पूजा के पश्चात, निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए दुर्गा पूजा के दौरान दीप जलाएं और दीप देव की पूजा करें। शुभम् भवतु कल्याणमारोग्यं पुष्टिवर्धनम्। आत्मतत्त्व प्रबोधाय दीपज्योतिर्नमोअस्तु ते॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः दीपं पूजयामि॥ (C.) कन्या पूजन (Kanya Pujan) दुर्गा पूजा के दौरान कन्या पूजन का भी विशेष महत्व है। इसलिए दुर्गा पूजा के बाद कन्याओं को आमंत्रित कर उन्हें स्वादिष्ट भोजन कराया जाता है और दक्षिणा यानी उपहार दिए जाते हैं। कन्याओं को दक्षिणा देते समय निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करना चाहिए। सर्वस्वरूपे! सर्वेशे सर्वशक्ति स्वरूपिणी। पूजम गृहण कौमारी! जगन्मातरनमोअस्तु ते॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः कन्या पूजयामि॥ (24.) नीराजन (Nirajan) अब निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करने के पश्चात देवी दुर्गा की आरती करें। नीराजनं सुमंगल्यं कर्पूरेण समन्वितम्। चन्द्रार्कवह्नि सदृशं महादेवी! नमोअस्तु ते॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः कर्पूर निराजनं समर्पयामि॥ (25.) प्रदक्षिणा (Pradakshina) अब निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए फूलों से प्रतीकात्मक प्रदक्षिणा (देवी दुर्गा की बाएं से दाएं परिक्रमा) करें। प्रदक्षिणं त्रयं देवि प्रयत्नेन प्रकल्पितम्। पश्यद्य पावने देवि अम्बिकायै नमोअस्तु ते॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः प्रदक्षिणं समर्पयामि॥ (26.) क्षमापन (Kshamapan) अब निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए पूजा के दौरान हुई किसी भी ज्ञात-अज्ञात गलती के लिए देवी दुर्गा से क्षमा मांगें। अपराधा शतम् देवि मत्कृतम् च दीने दीने। क्षमायतम पावने देवी-देवेष नमोअस्तु ते॥Puja-Vidhi
Durga Saptashati Siddha Samput Mantra (दुर्गा सप्तशती सिद्ध सम्पुट मंत्र)
Durga Saptashati Siddha Samput Mantra देवी दुर्गा की "Divine Power" और "Cosmic Energy" का आह्वान करता है, जो "Supreme Goddess" और "Protector of the Universe" के रूप में पूजा जाती हैं। यह मंत्र विशेष रूप से दुर्गा सप्तशती के "Sacred Protection" और "Victory over Evil" के रूप में प्रभावी होता है। इस मंत्र का जाप "Goddess Durga Prayer" और "Spiritual Protection Mantra" के रूप में किया जाता है। इसके नियमित पाठ से जीवन में "Positive Energy" का संचार होता है और व्यक्ति को "Divine Blessings" मिलती हैं। Durga Saptashati Siddha Samput Mantra का पाठ "Victory Prayer" और "Blessings for Prosperity" के रूप में किया जाता है। यह मंत्र मानसिक शांति, आत्मिक बल और "Inner Peace" को बढ़ाता है। इसका जाप करने से व्यक्ति को "Divine Protection" और "Spiritual Awakening" प्राप्त होती है। इस मंत्र से भक्तों के जीवन में सुख-समृद्धि और शांति आती है।MahaMantra
Katyayani Mantra (कात्यायनि मंत्र)
Katyayani Mantra Hindu Goddess Worship के लिए एक powerful mantra है, जिसे विशेष रूप से unmarried girls early marriage और happy married life के लिए chant करती हैं। Goddess Katyayani, Maa Durga Avatar, को protector of devotees माना जाता है, जो remove obstacles in marriage और bless with marital happiness करती हैं। Navratri Puja और Katyayani Vrata में इस sacred mantra chanting से positivity and divine grace प्राप्त होती है। Spiritual seekers और devotees of Goddess Durga इस mantra for wish fulfillment का नियमित जाप करते हैं, जिससे harmony in relationships और spiritual success प्राप्त होती है।Mantra
Durga Saptashati Chapter 7 (दुर्गा सप्तशति सप्तमोऽध्यायः) देवी माहात्म्यं
दुर्गा सप्तशति सप्तमोऽध्यायः: यह देवी दुर्गा के माहात्म्य का वर्णन करने वाला सातवां अध्याय है।Durga-Saptashati-Sanskrit
Manidweep varnan - 1 (Devi Bhagavatam) मणिद्वीप वर्णन - 1 (देवी भागवतम्)
मणिद्वीप का वर्णन देवी भागवतम् के अनुसार। यह खंड देवी के स्वर्गीय निवास, मणिद्वीप की दिव्य और आध्यात्मिक महत्ता का अन्वेषण करता है। देवी की भक्ति और आध्यात्मिक ज्ञान चाहने वालों के लिए आदर्श।Manidvipa-Varnan
Manidvipa Varnan - 3 (Devi Bhagavatam) मणिद्वीप वर्णन - 3 (देवी भागवतम्)
मणिद्वीप का वर्णन देवी भागवतम् के अनुसार। यह खंड देवी के स्वर्गीय निवास, मणिद्वीप की दिव्य और आध्यात्मिक महत्ता का अन्वेषण करता है। देवी की भक्ति और आध्यात्मिक ज्ञान चाहने वालों के लिए आदर्श।Manidvipa-Varnan
Shri Durga Mata Stuti (श्री दुर्गा माता स्तुति)
Durga Stuti: धार्मिक ग्रंथों के अनुसार तीनों काल को जानने वाले महर्षि वेद व्यास ने Maa Durga Stuti को लिखा था, उनकी Durga Stuti को Bhagavati Stotra नाम से जानते हैं। कहा जाता है कि महर्षि वेदव्यास ने अपनी Divine Vision से पहले ही देख लिया था कि Kaliyuga में Dharma का महत्व कम हो जाएगा। इस कारण Manushya नास्तिक, कर्तव्यहीन और अल्पायु हो जाएंगे। इसके कारण उन्होंने Veda का चार भागों में विभाजन भी कर दिया ताकि कम बुद्धि और कम स्मरण-शक्ति रखने वाले भी Vedas का अध्ययन कर सकें। इन चारों वेदों का नाम Rigveda, Yajurveda, Samaveda और Atharvaveda रखा। इसी कारण Vyasaji Ved Vyas के नाम से विख्यात हुए। उन्होंने ही Mahabharata की भी रचना की थी।Stuti