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Devi Mahatayam Suktam (देवी माहात्म्यं देवी सूक्तम्)
देवी माहात्म्यं देवी सूक्तम्
(Devi Mahatayam Suktam)
ॐ अहं रुद्रेभिर्वसुभिश्चराम्यहमादित्यैरुत विश्वदेवैः ।
अहं मित्रावरुणोभा बिभर्म्यहमिन्द्राग्नी अहमश्विनोभा ॥1॥
अहं सोममाहनसं बिभर्म्यहं त्वष्टारमुत पूषणं भगम् ।
अहं दधामि द्रविणं हविष्मते सुप्राव्ये यजमानाय सुन्वते ॥2॥
अहं राष्ट्री संगमनी वसूनां चिकितुषी प्रथमा यज्ञियानाम् ।
तां मा देवा व्यदधुः पुरुत्रा भूरिस्थात्रां भूर्यावेशयंतीम् ॥3॥
मया सो अन्नमत्ति यो विपश्यति यः प्राणिति य ईं शृणोत्युक्तम् ।
अमन्तवोमांत उपक्षियंति श्रुधि श्रुतं श्रद्धिवं ते वदामि ॥4॥
अहमेव स्वयमिदं वंदामि जुष्टं देवेभिरुत मानुषेभिः ।
यं कामये तं तमुग्रं कृणोमि तं ब्रह्माणं तमृषिं तं सुमेधाम् ॥5॥
अहं रुद्राय धनुरातनोमि ब्रह्मद्विषे शरवे हंत वा उ ।
अहं जनाय समदं कृणोम्यहं द्यावापृथिवी आविवेश ॥6॥
अहं सुवे पितरमस्य मूर्धन् मम योनिरप्स्वंतः समुद्रे ।
ततो वितिष्ठे भुवनानु विश्वोतामूं द्यां वर्ष्मणोप स्पृशामि ॥7॥
अहमेव वात इव प्रवाम्यारभमाणा भुवनानि विश्वा ।
परो दिवापर एना पृथिव्यैतावती महिना संबभूव ॥8॥
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः ॥
॥ इति ऋग्वेदोक्तं देवीसूक्तं समाप्तम् ॥
॥तत् सत्॥
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