Yantra-Mantra Collection

    Kali Puja yantra (कालीपूजायंत्र)

    कालीपूजायंत्र आदौ त्रिकोणमालिख्य त्रिकोणं तद्वहिर्लिखेत् । ततो वै विलिखेन्मंत्री त्रिकोणत्त्रयमुत्तमम् ।। ततोवृत्तं समालिख्य लिखेदष्टदले ततः । वृत्तं विलिख्य विधिवत् लिखे द्रूपूरमेककम् । मध्ये तु बैन्दवं चक्रं बीजमायाविभूषितम् ।। पहले बिन्दु फिर निजबीज "क्रीं" फिर भुवनेश्वरी बीज "ह्रीं" लिखे इसके बाहर त्रिकोण और उसके बाहर चार त्रिकोण अंकित करके वृत्त अष्टदलपद्म और पुनर्वार वृत्त अंकित करें। उसके बाहर चतुर्द्धार अंकित करना चाहिए। यह काली की पूजा का यन्त्र है। नोट-यंत्र को भोजपत्र पर अष्टगंध से लिखना चाहिए । काली के लिए जप-होम । लक्षमेकं जपेद्विद्यां हविष्याशी दिवा शुचिः। ततस्तु तद्दशांशेन होमयेद्धविषा प्रिये॥ पूजा के अन्त में मूल मंत्र का एक लक्ष जपकर ज़प का दशांश घृत होम करना चाहिए II

    Maa Tara yantra Mantra (तारायन्त्र)

    तारायन्त्र सुवर्णादिपीठे गोरोचनाकुंकुमादिलिप्ते । “ओं आः सुरेखे बजुरेखे ओं फट् स्वाहा” इति मन्त्रेणाधोमुखत्रिकोणगर्भाष्टदलपद्मं वृत्तं चतुरस्त्रं चतुर्द्वारयुत्त्कयंत्रमुद्धरेत्‌ ॥ टीका-स्वर्णादिपीढ़ों (चौकी) पर गोरोचना वा कुंकुमादि से लेप करके “ॐ आ: सुरेखे” इत्यादि मंत्र से अधोमुख त्रिकोण में अष्टदल पद्म (कमल बनावे), उसके बाहर गोलाकार चौकोर और चतुर्द्वार-समन्वित यंत्र खींचे । यह मंत्र हैं, “ॐ ऐं ह्लीं क्रीं हूँ फट्” । तारामंत्र का जप, होम लक्षद्वयं जपेद्विद्यां हविष्याशी जितेन्द्रिय: । पलाशकुसुमैर्देवीं जुहुयात्तहशांशत: ॥ टीका-हविष्याशी और जितेन्द्रय होकर यह मंत्र दो लक्ष जपकर पलाश पुष्प द्वारा उसका दशांश होम करना चाहिए ।