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श्रीमद भगवद गीता: गीता अध्याय 3 | Gita Adhyay 3 - कर्म योग
Bhagwat Gita third chapter (भगवद गीता तीसरा अध्याय)
भगवद गीता के इस अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण कर्म के महत्व को समझाते हैं और बताते हैं कि मनुष्य को क्यों और कैसे संसार में कार्य करना चाहिए। वे कहते हैं कि सही ढंग से कर्म करने से मन और बुद्धि शुद्ध होती हैं और मिथ्या आसक्तियों से मुक्त हो जाती हैं। इससे आत्मज्ञान प्राप्त करने की क्षमता विकसित होती है, जिसकी शिक्षा पिछले अध्याय में दी गई थी।Page no.
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Bhagavad Gita Eighth Chapter (भगवद गीता आठवां अध्याय)
भगवद गीता आठवां अध्याय "अक्षर ब्रह्म योग" के रूप में प्रसिद्ध है। इसमें श्रीकृष्ण मृत्यु, आत्मा, और परम ब्रह्म के रहस्यों को उजागर करते हैं। वे बताते हैं कि जो व्यक्ति अंतिम समय में ईश्वर का स्मरण करता है, वह उनके परम धाम को प्राप्त करता है। यह अध्याय "अक्षर ब्रह्म", "मोक्ष का मार्ग", और "ध्यान का महत्व" पर आधारित है।Bhagwat-Gita
Gita Govindam Chaturthah Sargah - Snigdh Madhusudanah (गीतगोविन्दं चतुर्थः सर्गः - स्निग्ध मधुसूदनः)
गीतगोविन्दं के चतुर्थ सर्ग में स्निग्ध मधुसूदन का वर्णन किया गया है। यह खंड राधा और कृष्ण के प्रेम और स्नेह को दर्शाता है।Gita-Govindam
Bhagavad Gita Fifteenth Chapter (भगवत गीता पन्द्रहवाँ अध्याय)
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Shrimad Bhagwad Gita Parayaan - Chapter 6 (श्रीमद्भगवद्गीता पारायण - षष्ठोऽध्यायः)
श्रीमद्भगवद्गीता पारायण के षष्ठोऽध्याय में कृष्ण ने अर्जुन को ध्यान योग की महत्ता समझाई है।Shrimad-Bhagwad-Gita-Parayaan
Prahladakrita Narasimha Stotra (प्रह्लादकृतनृसिंहस्तोत्रम्)
यह नृसिंह स्तुतिः आपकी इच्छाओं को पूरा करने और ग्रह शनि के दुष्प्रभाव को दूर करने के लिए एक अद्भुत और बहुत ही प्रभावी स्तोत्र है। यह भगवान शनि देव द्वारा बताया गया है कि जो कोई भी विशेष रूप से शनिवार को इस स्तोत्र का पाठ करेगा, वह शनि के किसी भी नकारात्मक दृष्टि से मुक्त होगा।Stotra
Madhura Ashtakam (मधुरा अष्टकम्)
Madhura Ashtakam (मधुरा अष्टकम): श्री कृष्ण माधुराष्टकम् का धार्मिक ग्रंथों में बहुत अधिक महत्व है, और इसमें श्री कृष्ण की "माधुरता" का जो चित्रण किया गया है, वह अन्य सभी स्तुतियों से बिलकुल अलग है। इस छोटे से स्तोत्र में मुरली मनोहर का अद्भुत रूप सामने आता है, साथ ही उनके सर्वव्यापी और भौतिक रूप में उनके भक्तों के प्रति स्नेह का भी वर्णन किया जाता है। यह स्तोत्र श्री वल्लभाचार्य द्वारा 1478 ई. में रचित था, जो भगवान श्री कृष्ण की महान माधुरता का वर्णन करता है। हिंदू धर्मशास्त्रों के अनुसार, भगवान श्री कृष्ण को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। भगवान कृष्ण की पूजा करने से जीवन में सुंदरता, समृद्धि और ऐश्वर्य प्राप्त होता है। माधुराष्टकम् संस्कृत में रचित है और इसे समझना आसान है। इस स्तोत्र में 'मधुरम्' शब्द का बार-बार उपयोग किया गया है, जो भगवान श्री कृष्ण के सुंदर रूप और उनकी माधुरता को व्यक्त करता है। श्री कृष्ण माधुराष्टकम् में कुल 8 श्लोक होते हैं, और हर श्लोक में 'मधुर' शब्द का प्रयोग 7 बार किया गया है। 'आष्ट' का अर्थ है आठ, और 'मधुराष्टकम्' का मतलब है "आठ श्लोकों वाला मधुर स्तोत्र"। इस स्तोत्र में भगवान श्री कृष्ण के रूप, उनके नृत्य, उनके लीला, उनके प्यारे रूप आदि की इतनी सुंदरता और माधुर्यता का वर्णन किया गया है कि भक्त केवल भगवान कृष्ण के रूप को ही नहीं, बल्कि उनके सम्पूर्ण अस्तित्व को भी आकर्षण के रूप में महसूस करते हैं। भगवान श्री कृष्ण के होठ, उनका रूप, उनकी प्यारी मुस्कान, उनकी आँखें, उनका त्रिभंगी रूप, सब कुछ 'मधुर' है। हिंदू मान्यता के अनुसार, श्री कृष्ण माधुराष्टकम् का नियमित पाठ करने से भगवान कृष्ण प्रसन्न होते हैं और उनके आशीर्वाद से जीवन में सुख, समृद्धि और सौंदर्य प्राप्त होता है।Ashtakam
Uddhava Gita - Chapter 6 (उद्धवगीता - षष्ठोऽध्यायः)
उद्धवगीता के षष्ठोऽध्याय में उद्धव और कृष्ण की वार्ता में आत्म-साक्षात्कार और मुक्ति पर चर्चा होती है।Uddhava-Gita
Bhagavad Gita Twelveth Chapter (भगवद गीता बारहवाँ अध्याय)
भगवद गीता बारहवाँ अध्याय "भक्ति योग" के नाम से प्रसिद्ध है। इसमें भगवान श्रीकृष्ण भक्ति को सबसे सरल और श्रेष्ठ मार्ग बताते हैं। वे कहते हैं कि जो भक्त पूर्ण श्रद्धा और प्रेम के साथ उनकी आराधना करता है, वह उनका प्रिय होता है। यह अध्याय "भक्ति की महिमा", "ईश्वर के प्रति प्रेम", और "सच्चे भक्त के गुण" का वर्णन करता है।Bhagwat-Gita