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Shri Saraswati Stotra: श्री सरस्वती स्तोत्र | Worship Guide for Wisdom and Knowledge Goddess
Shri Saraswati Stotra (श्रीसरस्वतीस्तोत्रम्)
सरस्वती को प्रसन्न करने और उनके आशीर्वाद प्राप्त करने के कई तरीके हैं। सरस्वती हिंदू धर्म की ज्ञान, संगीत, कला, बुद्धि और प्रकृति की देवी हैं। वह सरस्वती, लक्ष्मी और पार्वती की त्रिमूर्ति का हिस्सा हैं। ये तीनों रूप ब्रह्मा, विष्णु और शिव की त्रिमूर्ति की सृष्टि, पालन और विनाश की प्रक्रिया में सहायता करती हैं। देवी सरस्वती को पश्चिम और मध्य भारत के जैन धर्म के अनुयायियों द्वारा भी पूजनीय माना जाता है।श्रीसरस्वतीस्तोत्रम्
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना ।
या ब्रह्माच्युतशङ्करप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥ १ ॥
आशासु राशीभवदङ्गवल्लीभासैव दासीकृतदुग्धसिन्धुम् ।
मन्दस्मितैर्निन्दितशारदेन्दुं वन्देऽरविन्दासनसुन्दरि त्वाम् ॥ २ ॥
शारदा शारदाम्भोजवदना वदनाम्बुजे ।
सर्वदा सर्वदास्माकं सन्निधिं सन्निधिं क्रियात् ॥ ३ ॥
सरस्वतीं च तां नौमि वागधिष्ठातृदेवताम् ।
देवत्वं प्रतिपद्यन्ते यदनुग्रहतो जनाः ।। ४ ।।
पातु नो निकषग्रावा मतिहेम्नः सरस्वती ।
प्राज्ञेतरपरिच्छेदं वचसैव करोति या ॥ ५ ॥
शुक्लां ब्रह्मविचारसारपरमामाद्यां वीणापुस्तकधारिणीमभयदां जगद्व्यापिनीं जाड्यान्धकारापहाम् ।
हस्ते स्फाटिकमालिकां च दधतीं पद्मासने संस्थितां वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम् ॥ ६ ॥
वीणाधरे विपुलमङ्गलदानशीले भक्तार्तिनाशिनि विरञ्चिहरीशवन्द्ये ।
कीर्तिप्रदेऽखिलमनोरथदे महार्हे विद्याप्रदायिनि सरस्वति नौमि नित्यम् ॥ ७ ॥
श्वेताब्जपूर्णविमलासनसंस्थिते हे श्वेताम्बरावृतमनोहरमनुगात्रे ।
उद्यन्मनोज्ञसितपङ्कजमञ्जुलास्ये विद्याप्रदायिनि सरस्वति नौमि नित्यम् ॥ ८ ॥
मातस्त्वदीयपदपङ्कजभक्तियुक्ता ये त्वां भजन्ति निखिलानपरान्विहाय ।
ते निर्जरत्वमिह यान्ति कलेवरेण भूवह्निवायुगगनाम्बुविनिर्मितेन ॥ ९ ॥
मोह्यन्धकारभरिते हृदये मदीये मातः सदैव कुरु वासमुदारभावे ।
स्वीयाखिलावयवनिर्मलसुप्रभाभिः शीघ्रं विनाशय मनोगतमन्धकारम् ॥ १० ॥
ब्रह्मा जगत् सृजति पालयतीन्दिरेशः शम्भुर्विनाशयति देवि तव प्रभावैः ।
न स्यात्कृपा यदि तव प्रकटप्रभावे न स्युः कथञ्चिदपि ते निजकार्यदक्षाः ॥ ११ ॥
लक्ष्मीर्मेधा धरा पुष्टिगौरी तुष्टिः प्रभा धृतिः ।
एताभिः पाहि तनुभिरष्टाभिर्मा सरस्वति ॥ १२ ॥
सरस्वत्यै नमो नित्यं भद्रकाल्यै नमो नमः ।
वेदवेदान्तवेदाङ्गविद्यास्थानेभ्य एव च ॥ १३ ॥
सरस्वत्ति महाभागे विद्ये कमललोचने ।
विद्यारूपे विशालाक्षि विद्यां देहि नमोऽस्तु ते ॥ १४ ॥
यदक्षरं पदं भ्रष्टं मात्राहीनं च यद्भवेत् ।
तत्सर्वं क्षम्यतां देवि प्रसीद परमेश्वरि ॥ १५ ॥
इति श्रीसरस्वतीस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।
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