Dhayan-Mantra Collection

    Maa Tara Dhayan mantra (मां तारा ध्यान)

    ताराध्यान प्रत्यालीढपदां घोरां मुण्डमालाविभूषिताम् । खर्वी लम्बोदरीं भीमां व्याघ्रचर्मावृतां कटौ ।। नवयौवनसम्पन्नां पश्वमुद्राविभूषिताम् । चतुर्भुजां ललज्जिह्वां महाभीमां वरप्रदाम् ।। बङ्ग‌कर्तृसमायुक्तसव्येतर भुजद्वयाम् । कपोलोत्पलसंयुक्तसव्यपाणियुगान्विताम् । पिङ्गापैकजटां ध्यायेन्मौलावक्षोभ्यभूषिताम् । बालार्कमण्डलाकारलोचनत्यभूषिताम् । ज्वलच्चितामध्यगतां घोरदंष्ट्राकरालिनीम् । ह्यलंकारविभूषिताम् ह्यलंकारविभूषिताम् । विश्वव्यापकतोयान्तः श्वेतपद्योपरि स्थिताम् ।। टीका-तारा देवी एक पद (पाँव) आगे किए हुए बीरपद से बिराजमान हैं और वे घोररूपिणी, मुण्डमाला से विभूषित सर्वा, लम्बोदरी, भीमा, व्याघ्र चर्म पहिरने वाली नवयुवती, पञ्चमुद्रा विभूषित, चतुर्भुज चलायमान जिह्वा महाभीमा एवम् वरदायिनी है। इनके दक्षिण दाहिने दोनों हाथों में खङ्ग और कैची तथा वाम (वायें) दोनों हाथों में कपाल और उत्पल विद्यमान है। इनकी जटायें पिगल वर्ण, मस्तक में क्षोभरहित शोभित और तीनों नेत्र तरुण-अरुण के समान रक्तवर्ण है। यह जलती हुई चिता में स्थित, घोरदंष्ट्रा, कराला स्वीय आवेश में हास्यमुखी, सब प्रकार के अलंकारों से अलंकृत (विभूषित) और विश्वव्यापिनी जल के भीतर श्वेतपद्म पर स्थिर है (नीलतन से) Note:- तारा ध्यान की विधि मूल सस्कृत में दी जा रही है और फिर उसका भाषा में अर्थ भी लिखा है। साधकों को ध्यान करते समय (मूलमंत्र) संस्कृत का ही उपयोग करना चाहिए ।

    Maa Kali dhayan mantra (कालीध्यानम्‌)

    कालीध्यानम्‌ करालवदनां घोरां मुत्त्ककेशीं चतुर्भुजाम्‌ । कालिकां दक्षिणां दिव्यां मुण्डमालाविभूषिताम्‌ । सद्यश्छिन्नाशिर: खङ्गवामाधोर्द्धकराम्बुजाम्‌ । अभयं वरदञ्चैव दक्षिणाधोद्धँपाणिकाम् ॥ महामेघप्रभां श्यामां तथा चैव दिगम्बरीम्‌ । कण्ठावसत्त्कमुण्डालीगलद्रुधिरचर्च्चिताम्‌ ॥ कर्णावतंसतानीतशवयुग्मभयानकाम्‌ । घोरदंष्ट्राकरालास्यां पीनोन्नतपयोधराम्‌ ॥ शवानां करसंघातै: कृतकाञ्चीं हसन्मुखम् । सृक्कच्छटागलद्रत्त्कधाराविस्फूरिताननाम्‌ । घोररावां महारौद्रीं श्मशानालयवासिनीम् । बालार्कमण्डलाकारलोचनत्रितयान्विताम् ॥ दन्तुरां दक्षिणव्यापिमुत्त्कालम्बिकचोच्चयाम् । शवरूपमहादेवहृदयोपरि संस्थिताम् ॥ शिवाभिघोररावाभिश्चतुर्दिक्षु समन्विताम्‌ ॥ महाकालेन च समं विपरतरतातुराम्‌ ॥ सुखप्रसन्नवदनां स्मेराननसरोरुहाम्‌ । एवं संचिन्तयेत्‌ कालीं सर्व्वकाससमृद्धिदाम्‌ ॥ कालिकादेवी भयंकरमुखवाली, घोरा, विखरे केशों वाली, चतुर्भुज तथा मुण्डमाला से अलंकृत हैं । उनकी वाम ओर के दोनों हाथों में तत्काल छेदन किये हुए मृतक का मस्तक एवं खङ्ग है । दक्षिण ओर के दोनों हाथों में अभय और वरमुद्रा विद्यमान हैं । कण्ठ में मुण्डमाला से देवी गाढ़े मेघ के समान श्यामवेर्ण, दिगम्बरा कण्ठ में स्थित मुण्डमाला से टेपकते रुघिर द्वौरा लिप्त शरीर वाली, घोरदैष्ट्रो ERROR करालवदना और ऊंचेस्तन वाली हैं । उनके दोनों श्रवण (कान) दोमुतक मुण्डभूषणरूप से शोभा पाते हैं, देवी की कमर में मृतक के हाथों की करधनी विद्यमान है, वह हास्य मुखी हैं । उनके दोनों होंठों से रक्त की धारा क्षरित होने के कारण उनका बदन कम्पित होता है, देवी घोर नाद वॉली, महाभयंकरी और श्मशान वासिनी हैं उनके तीनों नेत्र तरुण अरुण की भांति हैं । बड़े दाँत और लम्बायमान केशकलाप से युक्त हैं, वह शवरूपी महादेव केहृदये पर स्थित हैं उनके चारों ओर घोर रव गीदड़ी भ्रमण करती हैं । देवी महाकाल के सहित विपरीत विहार में आसत्त्क हैं, वह प्रसन्नमुखी सुहास्यवदन और सर्व्वकाम समृद्धिदायिनी हैं, इस प्रकार उनका ध्यान करें ॥ आदौ, त्रिकोणमालिख्य त्रिकोणं तदबहिर्लिखेत् । ततो वे विलिखेन्मंत्री, त्रिकोणत्रयसुत्तमम् ॥ ततोवूत्तं समालिख्य लिखेदष्टदलं ततः । वृत्तं विलिख्य विधिवत्‌ लिखे द्भूपूरमेककम्‌ । मध्ये तु बैन्दबं चक्रं बीजसायाविभूषितम् ॥। पहले बिन्दु फिर निजबीज “क्री” फिर भुवनेश्वरी बीज “ह्ली' लिखे इसके बाहर त्रिकोण और उसके बाहर चार त्रिकोण अंकित करके वृत्त अष्टदलपद्म और पुनर्वार वृत्त अंकित करें । उसके बाहर चतुर्द्वार अंकित करना चाहिए।यह काली की पूजा का यन्त्र है ॥ नोट-यंत्र को भोजपत्र पर अष्टगंध से लिखना चाहिए ।

    Shiv Dhyaan Mantra (शिव ध्यान मंत्र)

    शिव ध्यान मंत्र (Shiv Dhyaan Mantra) ॥ शिव ध्यान मंत्र ॥ ॐ डिं डिं डिंकत डिम्ब डिम्ब डमरु, पाणौ सदा यस्य वै। फुं फुं फुंकत सर्पजाल हृदयं, घं घं च घण्टा रवम् ॥ वं वं वंकत वम्ब वम्ब वहनं, कारुण्य पुण्यात् परम् ॥ भं भं भंकत भम्ब भम्ब नयनं, ध्यायेत् शिवम् शंकरम् ॥ यावत् तोय धरा धरा धर धरा, धारा धरा भूधरा ॥ यावत् चारु सुचारु चारू चमरं, चामीकरं चामरं ॥ यावत् रावण राम राम रमणं, रामायणे श्रूयताम् ॥ तावत् भोग विभोग भोगमतुलम् यो गायते नित्यसः ॥ यस्याग्रे द्राट द्राट द्रुट दुट ममलं, टंट टंट टंटटम् ॥ तैलं तैलं तु तैलं खुखु खुखु खुखुमं, खंख खंख सखंखम्॥ डंस डंस डुडंस डुहि चकितं, भूपकं भूय नालम् ॥ ध्यायस्ते विप्रगाहे सवसति सवलः पातु वः चंद्रचूडः ॥ गात्रं भस्मसितं सितं च हसितं हस्ते कपालं सितम् ॥ खद्वांग च सितं सितश्च भृषभः, कर्णेसिते कुण्डले । गंगाफनेसिता जटापशु पतेश्चनद्रः सितो मूर्धनि । सोऽयं सर्वसितो ददातु विभवं, पापक्षयं सर्वदा ॥ ॥ इति शिव ध्यानम् ॥

    Panchdev Dhyaan Mantra (पंचदेव ध्यान मंत्र )

    ।। पंचदेव ध्यान मंत्र ।। (Panchdev Dhyaan Mantra) श्री गणेश मंत्रः “प्रातः स्मरामि गणनाथमनाथबन्धुं सिन्दूरपूरपरिशोभितगण्डयुग्मम् । उद्दण्डविघ्नपरिखण्डनचण्डदण्ड- माखण्डलादिसुरनायकवृन्दवन्धम्।।” सूर्य देव मंत्रः “प्रातः स्मरामि खलु तत्सवितुर्वरेण्यं, रूपं हि मण्डलमृचोअथ तनुर्यन्जूषि। सामानि यस्य किरणाः प्रभावादिहेतुं, ब्रह्माहरात्मकमलक्ष्यमचिन्त्यरूपम्।।" भगवान विष्णु मंत्र: “प्रातः स्मरामि भवभीतिमहार्तिनाशं नारायणं गरुडवाहनमब्जनाभम्। महाभिभृतवरवारणमुक्तिहेतुं चक्रायुधं तरुणवारिजपत्रनेत्रम् ॥" भगवान शिव मंत्रः “प्रातः स्मरामि भवभीतिहरं सुरेशं गङ्गाधरं वृषभवाहनमम्बिकेशम् । खट्वाङ्गशूलवरदाभयहस्तमीशं संसाररोगहरमौषधमद्वितीयम् ॥" मां दुर्गा मंत्रः प्रातः स्मरामि शरदिन्दुकरोज्ज्वलाभां सद्रत्नवन्मकरकुण्डलहारभूषाम् । दिव्यायुधोर्जितसुनीलसहस्त्रहस्तां रक्तोत्पलाभचरणां भवतीं परेशाम् ।।