Maa Kali dhayan mantra (कालीध्यानम्‌)

कालीध्यानम्‌ करालवदनां घोरां मुत्त्ककेशीं चतुर्भुजाम्‌ । कालिकां दक्षिणां दिव्यां मुण्डमालाविभूषिताम्‌ । सद्यश्छिन्नाशिर: खङ्गवामाधोर्द्धकराम्बुजाम्‌ । अभयं वरदञ्चैव दक्षिणाधोद्धँपाणिकाम् ॥ महामेघप्रभां श्यामां तथा चैव दिगम्बरीम्‌ । कण्ठावसत्त्कमुण्डालीगलद्रुधिरचर्च्चिताम्‌ ॥ कर्णावतंसतानीतशवयुग्मभयानकाम्‌ । घोरदंष्ट्राकरालास्यां पीनोन्नतपयोधराम्‌ ॥ शवानां करसंघातै: कृतकाञ्चीं हसन्मुखम् । सृक्कच्छटागलद्रत्त्कधाराविस्फूरिताननाम्‌ । घोररावां महारौद्रीं श्मशानालयवासिनीम् । बालार्कमण्डलाकारलोचनत्रितयान्विताम् ॥ दन्तुरां दक्षिणव्यापिमुत्त्कालम्बिकचोच्चयाम् । शवरूपमहादेवहृदयोपरि संस्थिताम् ॥ शिवाभिघोररावाभिश्चतुर्दिक्षु समन्विताम्‌ ॥ महाकालेन च समं विपरतरतातुराम्‌ ॥ सुखप्रसन्नवदनां स्मेराननसरोरुहाम्‌ । एवं संचिन्तयेत्‌ कालीं सर्व्वकाससमृद्धिदाम्‌ ॥ कालिकादेवी भयंकरमुखवाली, घोरा, विखरे केशों वाली, चतुर्भुज तथा मुण्डमाला से अलंकृत हैं । उनकी वाम ओर के दोनों हाथों में तत्काल छेदन किये हुए मृतक का मस्तक एवं खङ्ग है । दक्षिण ओर के दोनों हाथों में अभय और वरमुद्रा विद्यमान हैं । कण्ठ में मुण्डमाला से देवी गाढ़े मेघ के समान श्यामवेर्ण, दिगम्बरा कण्ठ में स्थित मुण्डमाला से टेपकते रुघिर द्वौरा लिप्त शरीर वाली, घोरदैष्ट्रो ERROR करालवदना और ऊंचेस्तन वाली हैं । उनके दोनों श्रवण (कान) दोमुतक मुण्डभूषणरूप से शोभा पाते हैं, देवी की कमर में मृतक के हाथों की करधनी विद्यमान है, वह हास्य मुखी हैं । उनके दोनों होंठों से रक्त की धारा क्षरित होने के कारण उनका बदन कम्पित होता है, देवी घोर नाद वॉली, महाभयंकरी और श्मशान वासिनी हैं उनके तीनों नेत्र तरुण अरुण की भांति हैं । बड़े दाँत और लम्बायमान केशकलाप से युक्त हैं, वह शवरूपी महादेव केहृदये पर स्थित हैं उनके चारों ओर घोर रव गीदड़ी भ्रमण करती हैं । देवी महाकाल के सहित विपरीत विहार में आसत्त्क हैं, वह प्रसन्नमुखी सुहास्यवदन और सर्व्वकाम समृद्धिदायिनी हैं, इस प्रकार उनका ध्यान करें ॥ आदौ, त्रिकोणमालिख्य त्रिकोणं तदबहिर्लिखेत् । ततो वे विलिखेन्मंत्री, त्रिकोणत्रयसुत्तमम् ॥ ततोवूत्तं समालिख्य लिखेदष्टदलं ततः । वृत्तं विलिख्य विधिवत्‌ लिखे द्भूपूरमेककम्‌ । मध्ये तु बैन्दबं चक्रं बीजसायाविभूषितम् ॥। पहले बिन्दु फिर निजबीज “क्री” फिर भुवनेश्वरी बीज “ह्ली' लिखे इसके बाहर त्रिकोण और उसके बाहर चार त्रिकोण अंकित करके वृत्त अष्टदलपद्म और पुनर्वार वृत्त अंकित करें । उसके बाहर चतुर्द्वार अंकित करना चाहिए।यह काली की पूजा का यन्त्र है ॥ नोट-यंत्र को भोजपत्र पर अष्टगंध से लिखना चाहिए ।