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Shri Sukt || श्री सूक्त : माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए श्री सूक्त पाठ करना शुभ माना गया है|
Shri Sukt (श्री सूक्त)
श्री सूक्त का पाठ करने से महालक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इसे मां लक्ष्मी की अराधना करने के सर्वोत्तम तरीकों में से एक है। श्री यंत्र के सामने श्री सूक्त का पाठ किया जाता है। इस मंत्र में श्री सूक्त के पंद्रह छंदों में अक्षर, शब्दांश और शब्दों के उच्चारण से अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी के ध्वनि शरीर का निर्माण किया जाता है। श्रीसूक्त ऋग्वेद के पांचवे मण्डल के अन्त में होता है। सुक्त में मंत्रों की संख्या पन्द्रह है। सोलहवें मंत्र में फलश्रुति है।श्रीसूक्त (Shri Sukt)
[इस सूक्तके आनन्द कर्दम, चिक््लीत, जातवेद ऋषि; “श्री “ देवता ओर अजुषु प् प्रस्तारपक्ति एवं त्रिद्दुप् छन्द है । देवीके अर्चनमें “श्रीसूक्त” कौ अतिशय मान्यता है । विशेषकर भगवती लक्ष्मीको प्रसन करनेके लिये “श्रीसूक्त“ ' के पाठकी विशेष महिमा बतायी गयी हे । एश्वर्य एवं समृद्धिकी कामनासे इस सूक्तके मन्त्रोंका जप तथा इन मन्त्रोंसे हवन, पूजन अभीष्टदायक होता हे । यह सूक्त ऋक् परिशिष्टमें पठित है। यहाँ यह सूक्त सानुवाद प्रस्तुत किया जा रहा है-]
ॐ हिरण्यवर्णा हरिणीं सुवर्णरजतस्त्रजामू।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म॒ आ बह॥ ९॥
तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम् ॥ २॥
अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रमोदिनीम्।
श्रियं देवीमुप हये श्रीर्मा देवी जुषताम्॥ ३ ॥
कां सोस्मितां हस्तिनादप्रमोदिनीम्
ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम्।
पदोर्थितां पदावर्णां
तामिहोप हये श्रियम्॥ ४॥
चन्द्रं प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं
श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम्।
तां पडिनीमीं शरणं प्र पद्ये
अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे॥५॥
आदित्यवर्णे तपसोऽधि जातो
वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः।
तस्य फलानि तपसा नुदन्तु
या अन्तरा याश्च बाह्या अलक्ष्मीः ॥ ६॥
उपेतु मां देवसखः
कीर्तिश्च मणिना सह ।
प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्टेऽस्मिन्
कीर्तिमृद्धिं ददातु मे॥ ७ ॥
क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम्।
अभूतिमसमृद्धिं च सर्वां निर्णुद मे गृहात्॥ ८ ॥
गन्धद्वारां दुराधर्षा नित्यपुष्टां करीषिणीम्।
ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोप हये श्ियम्॥ ९ ॥
मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि।
पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः ॥ १०॥
कर्दमेन प्रजा भूता मयि सम्भव कर्दम।
श्रियं वासय मे कुले मातरं पदामालिनीम्॥ ११॥
आपः सृजन्तु स्िग्धानि चिक्लीत वस मे गृहे।
नि च देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले॥ १२॥
आर्द्रा पुष्करिणीं पुष्टिं पिङ्कलां पदामालिनीम्।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म॒ आ वह॥ १३॥
आर्द्र यः करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम्
सूर्या हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म॒ आ वह॥ ९४॥
तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान् विन्देयं पुरुषानहम्।॥। ९५॥
यः शुचिः प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम्।
सूक्तं पञ्चदशर्चं च श्रीकामः सततं जपेत् ॥ १६॥
पद्मानने पद्मविपद्मपत्रे पद्मप्रिये पद्मदलायताक्षि ।
विश्वप्रिये विष्णुमनोऽनुकूले त्वत्यादपदां मयि सं नि धत्स्व ॥ ९७॥
पगानने पदाऊरू पाक्षि पदासम्भवे।
तन्मे भजसि पाक्षि येन सोख्यं लभाम्यहम्॥ १८॥
अश्वदायि गोदायि धनदायि महाधने।
धनं मे जुषतां देवि सर्वकामांश्च देहि ये॥ १९॥
पुत्रपोत्रधनं धान्यं हस्त्यश्वाश्वतरी रथम्।
प्रजानां भवसि माता आयुष्मन्तं करोतु मे॥ २०॥
धनमग्निर्धनं वायुर्धनं सूर्यो धनं वसुः ।
धनमिन्द्रो बृहस्पतिर्वरुणो धनमश्विना ॥ २९॥
वैनतेय सोमं पिब॒ सोमं पिबतु वृत्रहा।
सोमं धनस्य सोमिनो मह्यं ददातु सोमिनः ॥ २२॥
न क्रोधो न च मात्सर्य न लोभो नाशुभा मतिः।
भवन्ति कृतपुण्यानां भक्त्या श्रीसूक्तजापिनाम्॥। २३॥
सरसिजनिलये सरोजहस्ते
धवलतरांशुकगन्धमाल्यजोभे
भगवति _ हरिवल्लभे मनोज्ञे
त्रिभुवनभूतिकरि प्र सीद मह्यम्॥ २४॥
विष्णुपत्नीं क्षमां देवीं माधवीं माधवप्रियाम् ।
लक्ष्मीं प्रियसखीं भूमिं नमाम्यच्युतवल्लभाम्॥ २५॥
महालक्ष्म्य च विदाहे विष्णुपल्यै च धीमहि।
तन्नो लक्ष्मीः प्र चोदयात् ॥ २६॥
आनन्दः कर्दमः श्रीदश्चिक्लीत इति विश्रुताः ।
ऋषयः श्रियः पुत्राश्च श्रीरदैवीर्देवता मताः ॥ २७॥
ऋणरोगादिदारिद्रयपापक्षुदपमृत्यवः
भयशोकमनस्तापा नश्यन्तु मम॒ सर्वदा ॥ २८॥
श्रीर्वर्चस्वमायुष्यमारोग्यमाविधाच्छोभमानं महीयते ।
धनं धान्यं पशं बहुपुत्रलाभं शतसंवत्सरं दीर्घमायुः ॥ २९॥
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Ashtalakshmi Stuti देवी Mahalakshmi के eight divine forms, जिन्हें Ashta Lakshmi कहा जाता है, की praise में गाई जाने वाली एक devotional hymn है। यह stotra भक्तों को wealth, prosperity, knowledge, strength, progeny, courage, and success प्रदान करने वाली Devi Lakshmi के विभिन्न स्वरूपों की glory का वर्णन करता है। Ashta Lakshmi के आठ स्वरूप हैं: Adi Lakshmi, जो eternal wealth प्रदान करती हैं; Dhana Lakshmi, जो material prosperity का आशीर्वाद देती हैं; Dhanya Lakshmi, जो agriculture and food का आशीर्वाद देती हैं; Gaja Lakshmi, जो power and royalty प्रदान करती हैं; Santana Lakshmi, जो offspring and family happiness का आशीर्वाद देती हैं; Veera Lakshmi, जो valor and victory प्रदान करती हैं; Vijaya Lakshmi, जो success in all endeavors देती हैं; और Vidya Lakshmi, जो education and wisdom का आशीर्वाद देती हैं। Ashtalakshmi Stuti का chanting विशेष रूप से Fridays, Diwali, और Navratri में अत्यंत फलदायी माना जाता है। इसे pure devotion और clean surroundings में करने से भक्तों के जीवन में peace, prosperity, and divine grace आती है।Stuti
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Goddess Lakshmi Puja के लिए सबसे पहले clean altar पर Lakshmi Mata और Lord Ganesha की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। Kalash Sthapana करें, जिसमें Ganga Jal, betel leaves, coins, और rice grains डालें। फिर incense sticks, diya lighting, और fresh flowers अर्पित कर Shodashopachara Puja विधि से Goddess Lakshmi की पूजा करें। Kumkum, turmeric, sandalwood paste, और sweets अर्पित करने से divine blessings प्राप्त होती हैं। पूजा के दौरान Lakshmi Gayatri Mantra, Shri Sukta, और Kanakdhara Stotra का पाठ करना शुभ माना जाता है, जिससे financial prosperity और wealth abundance प्राप्त होती है। विशेष रूप से Diwali, Dhanteras, Sharad Purnima, Akshaya Tritiya, Kojagari Purnima, और Navratri पर Lakshmi Puja करना अत्यंत शुभ होता है। इन अवसरों पर Goddess Lakshmi की कृपा से luck, prosperity, और success in career प्राप्त होती है। New Business Opening, Housewarming Ceremony, और Financial Year Beginning पर भी यह पूजा करने से positive energy और monetary benefits मिलते हैं।Puja-Vidhi
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