Shri Janaki Ji Arti (श्रीजानकीजी)

श्रीजानकी-वन्दन उदभवस्थितिसंहारकारिणीं क्लेशहारिणीम्‌ । सर्वश्रेयस्करीं सीतां नतोड्हें रामवल्लभाम्‌ ॥ श्रीजानकीजी (Shri Janaki JI Arti) आरती जनक-ललीकी कीजै। सुबरन-थार बारि घृत-बाती, तन निज खारि रूप-रस पीजै॥ गौर-बरन सुंदर तन सोभा नख-सिख छवि नैननि भरि लीजै। सरस-माधुरी स्वामिनि मेरी चरन-कमलमें चित नित दीजै॥