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Alabhya Gayatri Kavacham || अलभ्य श्री गायत्री कवचम् : Full Lyrics
Alabhya Gayatri Kavacham (अलभ्य श्री गायत्री कवचम्)
अलभ्य श्री गायत्री कवचम् एक दिव्य spiritual armor है, जो माता Goddess Gayatri की कृपा से साधक को अद्भुत protection and wisdom प्रदान करता है। इस sacred kavach का पाठ करने से साधक को divine blessings प्राप्त होती हैं और वह हर प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षित रहता है। यह powerful mantra मानसिक शांति, आध्यात्मिक शक्ति और positive energy को बढ़ाने में सहायक है। श्री Gayatri Kavacham का नियमित पाठ करने से व्यक्ति को success, prosperity और spiritual growth प्राप्त होती है। जो व्यक्ति अपने जीवन में knowledge, intelligence और आत्मिक बल चाहता है, उसके लिए यह sacred shield अत्यंत प्रभावशाली है। यह divine armor व्यक्ति के मन, शरीर और आत्मा को शुद्ध करता है तथा उसे peace, happiness और समृद्धि की ओर अग्रसर करता है। Goddess Gayatri की कृपा से व्यक्ति के भीतर clarity of mind आती है और वह अपने जीवन के सही मार्ग को पहचानने में सक्षम होता है।॥ अलभ्य श्री गायत्री कवचम् ॥
(Alabhya Gayatri Kavacham)
॥ विनियोगः ॥
ॐ अस्य श्रीगायत्रीकवचस्य ब्रह्माविष्णुरुद्राः ऋषयः ।
ऋग्यजुःसामाथर्वाणि छन्दांसि ।
परब्रह्मस्वरूपिणी गायत्री देवता । भूः बीजम् ।
भुवः शक्तिः । स्वः कीलकम् । सुवः कीलकम् ।
चतुर्विंशत्यक्षरा श्रीगायत्रीप्रीत्यर्थे जपे विनियोगः ।
॥ ध्यानं ॥
वस्त्राभां कुण्डिकां हस्तां, शुद्धनिर्मलज्योतिषीम् ।
सर्वतत्त्वमयीं वन्दे, गायत्रीं वेदमातरम् ॥
मुक्ताविद्रुमहेमनीलधवलैश्छायैः मुखेस्त्रीक्षणैः ।
युक्तामिन्दुनिबद्धरत्नमुकुटां तत्त्वार्थवर्णात्मिकाम् ॥
गायत्रीं वरदाभयाङ्कुशकशां शूलं कपालं गुणैः ।
शङ्खं चक्रमथारविन्दयुगलं हस्तैर्वहन्तीं भजे ॥
॥ कवच पाठः ॥
ॐ ॐ ॐ ॐ भूः ॐ ॐ भुवः ॐ ॐ स्वः ॐ ॐ त
ॐ ॐ त्स ॐॐ वि ॐ ॐ तु ॐ ॐ र्व ॐ ॐ रे
ॐ ॐ ण्यं ॐ ॐ भ ॐ ॐ र्गो ॐॐ दे ॐ ॐ व
ॐ ॐ स्य ॐ ॐ धी ॐ ॐ म ॐ ॐ हि ॐ ॐ धि
ॐॐ यो ॐ ॐ यो ॐ ॐ नः ॐ ॐ प्र ॐ ॐ चो
ॐ ॐ द ॐॐ या ॐ ॐ त् ॐ ॐ ।
ॐ ॐ ॐ ॐ भूः ॐ पातु मे मूलं चतुर्दलसमन्वितम् ।
ॐ भुवः ॐ पातु मे लिङ्गं सज्जलं षट्दलात्मकम् ।
ॐ स्वः ॐ पातु मे कण्ठं साकाशं दलषोडशम् । सुवः
ॐ त ॐ पातु मे रूपं ब्राह्मणं कारणं परम् ।
ॐ त्स ॐ ब्रह्मरसं पातु मे सदा मम ।
ॐ वि ॐ पातु मे गन्धं सदा शिशिरसंयुतम् ।
ॐ तु ॐ पातु मे स्पर्शं शरीरस्य कारणं परम् ।
ॐ र्व ॐ पातु मे शब्दं शब्दविग्रहकारणम् ।
ॐ रे ॐ पातु मे नित्यं सदा तत्त्वशरीरकम् ।
ॐ ण्यं ॐ पातु मे अक्षं सर्वतत्त्वैककारणम् ।
ॐ भ ॐ पातु मे श्रोत्रं शब्दश्रवणैककारणम् ।
ॐ र्गो ॐ पातु मे घ्राणं गन्धोत्पादानकारणम् ।
ॐ दे ॐ पातु मे चास्यं सभायां शब्दरूपिणीम् ।
ॐ व ॐ पातु मे बाहुयुगलं च कर्मकारणम् ।
ॐ स्य ॐ पातु मे लिङ्गं षट्दलयुतम् ।
ॐ धी ॐ पातु मे नित्यं प्रकृति शब्दकारणम् ।
ॐ म ॐ पातु मे नित्यं नमो ब्रह्मस्वरूपिणीम् ।
ॐ हि ॐ पातु मे बुद्धिं परब्रह्ममयं सदा ।
ॐ धि ॐ पातु मे नित्यमहङ्कारं यथा तथा ।
ॐ यो ॐ पातु मे नित्यं जलं सर्वत्र सर्वदा ।
ॐ यो ॐ पातु मे नित्यं जलं सर्वत्र सर्वदा ।
ॐ नः ॐ पातु मे नित्यं तेजःपुञ्जो यथा तथा ।
ॐ प्र ॐ पातु मे नित्यमनिलं कायकारणम् ।
ॐ चो ॐ पातु मे नित्यमाकाशं शिवसन्निभम् ।
ॐ द ॐ पातु मे जिह्वां जपयज्ञस्य कारणम् ।
ॐ यात् ॐ पातु मे नित्यं शिवं ज्ञानमयं सदा ।
ॐ तत्त्वानि पातु मे नित्यं, गायत्री परदैवतम् ।
कृष्णं मे सततं पातु, ब्रह्माणि भूर्भुवः स्वरोम् ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो
देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।
ॐ जातवेदसे सुनवाम सोममाराती
यतो निदहाति वेदाः ।
स नः पर्षदति दुर्गाणि विश्वा
नावेवं सिन्धुं दुरितात्यग्निः ।
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् ।
ऊर्वारिकमिव बन्धनात् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॥
ॐ नमस्ते तुरीयाय सर्शिताय पदाय
परो रजसेऽसावदों मा प्रापत ॥
॥ इति श्री कवचं गायत्री सम्पूर्णा ॥
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श्री गायत्री सहस्रनाम स्तोत्रम् (Shri Gayatri Sahasranama Stotram) में देवी गायत्री (Goddess Gayatri) के एक हजार पवित्र नामों (holy names) का संग्रह है। यह स्तोत्र ज्ञान (knowledge), आध्यात्मिक शक्ति (spiritual power), और मोक्ष (salvation) की प्राप्ति के लिए अत्यंत प्रभावशाली माना गया है। गायत्री देवी को वेदों की माता (Mother of Vedas) और ब्रह्मांडीय ऊर्जा (cosmic energy) का स्रोत माना जाता है। इस स्तोत्र का पाठ (chanting) श्रद्धा (devotion) और समर्पण (dedication) के साथ करने से व्यक्ति के जीवन में शांति (peace), समृद्धि (prosperity), और सकारात्मकता (positivity) का आगमन होता है। देवी गायत्री अपने भक्तों को अज्ञानता (ignorance) से मुक्त कर दिव्यता (divinity) की ओर ले जाती हैं।Sahasranama-Stotram
Nitya Sandhya Vandanam (नित्य संध्या वंदनम्)
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Shri Gayatri Kavacham (श्री गायत्री कवचम्)
श्री Gayatri Kavach एक महान Kavach है जिसे स्वयं भगवान Shri Narayana ने Maharishi Narada को सिखाया और Maharishi Ved Vyasa द्वारा इसे रचित किया गया। Shri Gayatri Kavach का उल्लेख Shrimad Devi Bhagavata Purana के 12वें Skandha के तीसरे अध्याय में किया गया है। भगवान Sriman Narayana ने Maharishi Narada को Devi Gayatri के इस दिव्य Kavach की महिमा और इसे जपने से मिलने वाले Punya के बारे में बताया। भगवान ने कहा कि इस पवित्र Kavach का पाठ करने से साधक के समस्त Pap नष्ट हो जाते हैं, सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं, और साधक को Moksha की प्राप्ति होती है। भगवान Sriman Narayana ने आगे बताया कि Devi Gayatri का यह दिव्य Kavach सभी बाधाओं और बुराइयों को नष्ट करने में सक्षम है। यह साधक को 64 प्रकार के Knowledge (Art Forms) प्रदान करने और Moksha देने में समर्थ है। इसके अलावा, जो भी व्यक्ति Gayatri Kavach का पाठ करता है या इसकी महिमा को सुनता है, वह एक हजार Gau-Daan (एक हजार Cows का दान) के बराबर Punya प्राप्त करता है। इस प्रकार Shri Gayatri Kavach एक अत्यंत पवित्र और प्रभावशाली रचना है, जो जीवन के सभी कष्टों को समाप्त कर, साधक को Divinity और Moksha की ओर ले जाती है।Kavacha
Shri Gayatri Chalisa (श्री गायत्री चालीसा)
गायत्री चालीसा माँ गायत्री पर आधारित है, जिन्हें Vedmata, Savitri, और Adishakti भी कहा जाता है। Gayatri mantra "ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्" का जाप चालीसा पाठ के दौरान करना mental clarity, peace, और positive energy लाने में सहायक है।Chalisa
Gayatryashtotrashata Namastotram (गायत्र्यष्टोत्तरशत नामस्तोत्रम्)
गायत्र्यष्टोत्तरशत नामस्तोत्रम् (Gayatryashtotrashata Namastotram) तरुणादित्यसङ्काशा सहस्रनयनोज्ज्वला । विचित्रमाल्याभरणा तुहिनाचलवासिनी ॥ 1 ॥ वरदाभयहस्ताब्जा रेवातीरनिवासिनी । प्रणित्ययविशेषज्ञा यन्त्राकृतविराजित ॥ 2 ॥ भद्रपादप्रिया चैव गोविन्दपथगामिनी । देवर्षिगणसंस्तुत्या वनमालाविभूषिता ॥ 3 ॥ स्यन्दनोत्तमसंस्था च धीरजीमूतनिस्वना । मत्तमातङ्गगमना हिरण्यकमलासना ॥ 4 ॥ दीनजनोद्धारनिरता योगिनी योगधारिणी । नटनाट्यैकनिरता प्रणवाद्यक्षरात्मिका ॥ 5 ॥ चोरचारक्रियासक्ता दारिद्र्यच्छेदकारिणी । यादवेन्द्रकुलोद्भूता तुरीयपथगामिनी ॥ 6 ॥ गायत्री गोमती गङ्गा गौतमी गरुडासना । गेयगानप्रिया गौरी गोविन्दपदपूजिता ॥ 7 ॥ गन्धर्वनगरागारा गौरवर्णा गणेश्वरी । गदाश्रया गुणवती गह्वरी गणपूजिता ॥ 8 ॥ गुणत्रयसमायुक्ता गुणत्रयविवर्जिता । गुहावासा गुणाधारा गुह्या गन्धर्वरूपिणी ॥ 9 ॥ गार्ग्यप्रिया गुरुपदा गुहलिङ्गाङ्गधारिणी । सावित्री सूर्यतनया सुषुम्नानाडिभेदिनी ॥ 10 ॥ सुप्रकाशा सुखासीना सुमति-स्सुरपूजिता । सुषुप्त्यवस्था सुदती सुन्दरी सागराम्बरा ॥ 11 ॥ सुधांशुबिम्बवदना सुस्तनी सुविलोचना । सीता सत्त्वाश्रया सन्ध्या सुफला सुविधायिनी ॥ 12 ॥ सुभ्रू-स्सुवासा सुश्रोणी संसारार्णवतारिणी । सामगानप्रिया साध्वी सर्वाभरणभूषिता ॥ 13 ॥ वैष्णवी विमलाकारा महेन्द्री मन्त्ररूपिणी । महलक्ष्मी-र्महासिद्धि-र्महामाया महेश्वरी ॥ 14 ॥ मोहिनी मदनाकारा मधुसूदनचोदिता । मीनाक्षी मधुरावासा नगेन्द्रतनया उमा ॥ 15 ॥ त्रिविक्रमपदाक्रान्ता त्रिस्वरा त्रिविलोचना । सूर्यमण्डलमध्यस्था चन्द्रमण्डलसंस्थिता ॥ 16 ॥ वह्निमण्डलमध्यस्था वायुमण्डलसंस्थिता । व्योममण्डलमध्यस्था चक्रिणी चक्ररूपिणी ॥ 17 ॥ कालचक्रवितानस्था चन्द्रमण्डलदर्पणा । ज्योत्स्नातपासुलिप्ताङ्गी महामारुतवीजिता ॥ 18 ॥ सर्वमन्त्राश्रया धेनुः पापघ्नी परमेश्वरी । नमस्तेऽस्तु महालक्ष्मी-र्महासम्पत्तिदायिनि ॥ 19 ॥ नमस्ते करुणामूर्ते नमस्ते भक्तवत्सले । गायत्र्याः प्रजपेद्यस्तु नाम्नामष्टोत्तरं शतम् ॥ 20 ॥ तस्य पुण्यफलं वक्तुं ब्रह्मणापि न शक्यते । इति श्रीगायत्र्यष्टोत्तरशतनामस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।Stotra