Bhagwan Shri Bholenath Arti (भगवान् श्रीभोलेनाथजी)

भगवान् श्रीभोलेनाथजी अभयदान दीजै दयालु प्रभु सकल सृष्टिके हितकारी। भोलेनाथ भक्त-दुखगंजन भवभंजन शुभ सुखकारी॥ दीनदयालु कृपालु कालरिपु अलखनिरंजन शिव योगी। मंगल रूप अनूप छबीले अखिल भुवनके तुम भोगी॥ बाम अंग अति रँगरस-भीने उमा-वदनकी छबि न्यारी॥ भोलेनाथ० असुर-निकंदन सब दुखभंजन वेद बखाने जग जाने। रुण्ड-माल गल व्याल भाल-शशि नीलकंठ शोभा साने॥ गंगाधर त्रिशूलधर विषधर बाघम्बरधर गिरिचारी॥ भोलेनाथ० यह भवसागर अति अगाध है पार उतर कैसे बूझै। ग्राह मगर बहु कच्छप छाये मार्ग कहो कैसे सूझै॥ नाम तुम्हारा नौका निर्मल तुम केवट शिव अधिकारी॥ भोलेनाथ० मैं जानूँ तुम सदगुणसागर अवगुण मेरे सब हरियो। किंकरकी विनती सुन स्वामी सब अपराध क्षमा करियो॥ तुम तो सकल विश्वके स्वामी मैं हूँ प्राणी संसारी॥ भोलेनाथ० काम-क्रोध-लोभ अति दारुण इनसे मेरो वश नाहीं। द्रोह-मोह-मद संग न छोड़ै आन देत नहिं तुम ताई॥ क्षुधा-तृषा नित लगी रहत है बढ़ी विषय तृष्णा भारी॥ भोलेनाथ० तुम ही शिवजी कर्ता हर्ता तुम ही जगके रखवारे। तुम ही गगन मगन पुनि पृथिवी पर्वतपुत्रीके प्यारे॥ तुम ही पवन हुताशन शिवजी तुम ही रवि-शशि तमहारी॥ भोलेनाथ० पशुपति अजर अमर अमरेश्वर योगेश्वर शिव गोस्वामी। वृषभारूढ़ गूढ़ गुरु गिरिपति गिरिजावललभ निष्कामी॥ सुषमासागर रूप उजागर गावत हैं सब नरनारी॥ भोलेनाथ० महादेव देवोंके अधिपति फणिपति-भूषण अति साजे। दीप्त ललाट लाल दोउ लोचन उर आनत ही दुख भाजे॥ परम प्रसिद्ध पुनीत पुरातन महिमा त्रिभुवन-विस्तारी॥ भोलेनाथ० ब्रह्मा-विष्णु-महेश-शेष मुनि-नारद आदि करत सेवा। सबकी इच्छा पूरन करते नाथ सनातन हर देवा॥ भक्ति-मुक्तिके दाता शंकर नित्य-निरंतर सुखकारी॥ भोलेनाथ० महिमा इृष्ट महेश्वरकी जो सीखे सुने नित्य गावे। अष्टसिद्धि-नवनिधि सुखसम्पति स्वामिभक्ति मुक्ती पावै॥ श्रीअहिभूषण प्रसन्न होकर कृपा कीजिये त्रिपुरारी॥ भोलेनाथ०