Shri Hanuman Ji Arti ( 2) (श्रीहनुमान् जी)

श्रीहनुमान् जी(1) मंगल-मूरति मारुत-नंदन। सकल-अमंगल-मूल-निकंदन॥ १॥ पवन-तनय संतन-हितकारी। हृदय विराजत अवध बिहारी॥ २॥ मातु-पिता, गुरु गनपति, सारद। सिवा-समेत संभु, सुक-नारद॥ ३॥ चरन बंदि बिनवों सब काहू। देहु रामपद-नेह-निबाहू॥ ४॥ बंदौं राम-लखन-बैदेही। जे तुलसीके परम सनेही॥ ५॥ श्रीहनुमानजी(2) वन्दे सन्त श्रीहनुमन्तं रामदासममलं बलवन्तम् । रामकथामृतमधु निपिबन्तं परमप्रेमभरेण नटन्तम् ॥ १॥ प्रेमरुद्धगलम श्रुवहन्तं पुलकाड्चितवपुषा विलसन्तम् । सर्व राममयं पश्यन्तं राघवनाम सदा प्रजपन्तम् ॥ २॥ कदाचिदानन्देन हसन्तं क्वचित् कदाचिदपि प्ररुदन्तम् । सदभक्तिपथं समुपदिशन्तं विट्वुलपन्तथं प्रति सुखयन्तम् ॥ ३॥