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Shivkrita Ganesh Stuti || शिवकृता गणेश स्तुति : A Sacred Hymn by Lord Shiva Praising Lord Ganesha
Shivkrita Ganesh Stuti (शिवकृता गणेश स्तुति)
Shivkrita Ganesh Stuti भगवान गणेश की महिमा का वर्णन करती है, जो "Remover of Obstacles" और "Lord of New Beginnings" के रूप में पूजित हैं। यह स्तोत्र विशेष रूप से गणेश जी के जन्म और उनकी शक्तियों का आह्वान करता है, जिन्हें "Divine Blessings" और "Success Giver" माना जाता है। यह स्तोत्र "Ganesh Devotional Hymn" और "Spiritual Success Prayer" के रूप में प्रसिद्ध है। इसके पाठ से भक्तों को जीवन में सुख, समृद्धि और आंतरिक शांति प्राप्त होती है। Shivkrita Ganesh Stuti को "Lord Ganesh Chant" और "Blessings for Prosperity" के रूप में पढ़ने से सभी कार्यों में सफलता मिलती है।॥ शिवकृता गणेश स्तुति ॥
(Shivkrita Ganesh Stuti)
शिव उवाच ।
नमस्ते विघ्नराजाय नमस्ते विघ्नहारिणे ।
विघ्नकर्त्रे गणेशाय विघ्नानां पतये नमः ॥
लम्बोदराय सर्वाय वक्रतुण्डस्वरूपिणे ।
त्रैगुण्येन जगद्रूपनानाभेदप्रधारिणे ॥
नैर्गुण्येन च वै साक्षाद्ब्रह्मरूपधराय च ।
नमो नमो बन्धहन्त्रे भक्तानां पालकाय ते ॥
अभक्तेभ्यस्तमोदाय नानाभयकराय च ।
हेरम्बाय नमस्तुभ्यं वेदवेद्याय शाश्वते ॥
अनन्ताननरूपायानन्तबाह्वङ्घ्रिकाय ते ।
अनन्तकरकर्णायानन्तोदरधराय ते ॥
नमो नमस्ते गणनायकाय ते
अनादिपूज्याय च सर्वरूपिणे ।
अखण्डलीलाकरपूर्णमूर्तये
महोत्कटायास्तु नमो महात्मने ॥
आदौ च निर्माय विधिं रजोमयं
तेनैव सृष्टिं विदधासि देव ।
सत्त्वात्मकं विष्णुमथो हि मध्ये
निर्माय पासि त्वमखण्डविक्रम ॥
अन्ते तमोरूपिणमेव सृष्ट्वा
शम्भुं स्वशक्त्या हरसि त्वमाद्य ।
एवंविधं त्वां प्रवदन्ति वेदाः
तं वै गणेशं शरणं प्रपद्ये ॥
मायामयं वै गुणपं तु सृष्ट्वा
तस्मात्पुरस्त्वं गणराज चादौ ।
स्वानन्दसंज्ञे नगरे विभासि सिद्ध्या
च वुद्ध्या सहितः परेश ॥
तं त्वां गणेशं शरणं प्रपद्ये
स्थितं सदा हृत्सु च योगिनां वै ।
वेदैर्न वेद्यं मनसा न लभ्यं
तं वक्रतुण्डं हृदि चिन्तयामि ॥
अर्धनारीश्वरत्वं यत्तद्गतं मेऽधुना प्रभो ।
शक्तिहीनत्वमापन्नो नष्टवत्कर्मणा कृतः ॥
नानैश्वर्ययुता देवी सा गता गणप प्रभो ।
अनीश्वरपदं प्राप्तं मम वै देवदेव भोः ॥
निर्गुणोऽहं सदा शम्भुः सगुणः सर्वभाववित् ।
शत्त्या युक्तो यदा स्वामिन्नधुना किं करोम्यहम् ॥
शक्तिहीनः पदा गन्तुं न शक्नोमि गणेश्वर ।
अतस्त्वं कृपया देव शक्तं मां कुरु कर्मणि ॥
ततः प्रादुरभूत्तस्य पुरतः स गणाधिपः ।
उवाच शङ्करं तत्र हर्षयन् श्लक्ष्णया गिरा ॥
अहो पश्य च मां शम्भो किं शोचसि महेश्वर ।
भवितासि सशक्तिस्त्वं मद्वाक्यान्नात्र संशयः ॥
अहमेवेश्वरो देवो ह्येको ब्रह्माण्डमण्डले ।
तेन गर्वेण युक्तस्त्वं स विघ्नः सहसा कृतः ॥
अधुना ते गतो मोहो मदीया स्मृतिरागता ।
ध्यातस्तुतश्च तेनाऽहं प्रसन्नोऽस्मि न संशयः ॥
हिमाचलसुता देवी भविष्यति न संशयः ।
वृणोषि त्वं सतीं तां वै पार्वतीं च पुनःशिव ॥
रमसे च तया सार्धं मत्तया भावितो दृढम् ।
ईश्वरः सहशक्तिस्त्वं मत्प्रसादात्सदा भव ॥
स्मृतमात्रस्तवाग्रेऽहं प्रत्यक्षः स्यां सदाशिव ।
इति दत्त्वा वरं देवस्तत्रैवान्तरधीयत ॥
इति श्रीमुद्गलपुराणे प्रथमे खण्डे वक्त्रतुण्डचरिते
चतुर्थाध्यायान्तर्गता शिवकृता गणेशस्तुतिः समाप्ता ॥
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