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Ganesha Mahima Stotram (गणेश महिम्ना स्तोत्रम्)
गणेश महिम्ना स्तोत्रम् (Ganesha Mahima Stotram)
अनिर्वाच्यं रूपं स्तवन निकरो यत्र गलितः तथा वक्ष्ये स्तोत्रं प्रथम पुरुषस्यात्र महतः ।
यतो जातं विश्वस्थितिमपि सदा यत्र विलयः सकीदृग्गीर्वाणः सुनिगम नुतः श्रीगणपतिः ॥ 1 ॥
गकारो हेरंबः सगुण इति पुं निर्गुणमयो द्विधाप्येकोजातः प्रकृति पुरुषो ब्रह्म हि गणः ।
स चेशश्चोत्पत्ति स्थिति लय करोयं प्रमथको यतोभूतं भव्यं भवति पतिरीशो गणपतिः ॥ 2 ॥
गकारः कंठोर्ध्वं गजमुखसमो मर्त्यसदृशो णकारः कंठाधो जठर सदृशाकार इति च ।
अधोभावः कट्यां चरण इति हीशोस्य च तमः विभातीत्थं नाम त्रिभुवन समं भू र्भुव स्सुवः ॥ 3 ॥
गणाध्यक्षो ज्येष्ठः कपिल अपरो मंगलनिधिः दयालुर्हेरंबो वरद इति चिंतामणि रजः ।
वरानीशो ढुंढिर्गजवदन नामा शिवसुतो मयूरेशो गौरीतनय इति नामानि पठति ॥ 4 ॥
महेशोयं विष्णुः स कवि रविरिंदुः कमलजः क्षिति स्तोयं वह्निः श्वसन इति खं त्वद्रिरुदधिः ।
कुजस्तारः शुक्रो पुरुरुडु बुधोगुच्च धनदो यमः पाशी काव्यः शनिरखिल रूपो गणपतिः ॥5 ॥
मुखं वह्निः पादौ हरिरसि विधात प्रजननं रविर्नेत्रे चंद्रो हृदय मपि कामोस्य मदन ।
करौ शुक्रः कट्यामवनिरुदरं भाति दशनं गणेशस्यासन् वै क्रतुमय वपु श्चैव सकलम् ॥ 6 ॥
सिते भाद्रे मासे प्रतिशरदि मध्याह्न समये मृदो मूर्तिं कृत्वा गणपतितिथौ ढुंढि सदृशीम् ।
समर्चत्युत्साहः प्रभवति महान् सर्वसदने विलोक्यानंदस्तां प्रभवति नृणां विस्मय इति ॥7 ॥
गणेशदेवस्य माहात्म्यमेतद्यः श्रावयेद्वापि पठेच्च तस्य ।
क्लेशा लयं यांति लभेच्च शीघ्रं श्रीपुत्त्र विद्यार्थि गृहं च मुक्तिम् ॥ 8 ॥
॥ इति श्री गणेश महिम्न स्तोत्रम् ॥
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