Bhairavarupa Shiva Stuti (भैरवरूप शिव स्तुति)

॥ भैरवरूप शिव स्तुति ॥ (Bhairavarupa Shiva Stuti) देव, भीषणाकार, भैरव, भयंकर, भूत-प्रेत-प्रमथाधिपति, विपति-हर्ता । मोह-मूषक-मार्जार, संसार-भय-हरण, तारण-तरण, अभय कर्ता ॥ अतुल बल, विपुलविस्तार, विग्रहगौर, अमल अति धवल धरणीधराभं । शिरसि संकुलित-कल-जूट पिंगलजटा, पटल शत-कोटि-विद्युच्छटाभं ॥ भ्राज विबुधापगा आप पावन परम, मौलि-मालेव शोभा विचित्रं । ललित लल्लाटपर राज रजनीशकल, कलाधर, नौमि हर धनद-मित्रं ॥ इंदु-पावक-भानु-भानुनयन, मर्दन-मयन, गुण-अयन, ज्ञान-विज्ञान-रूपं । रमण-गिरिजा, भवन भूधराधिप सदा, श्रवण कुंडल, वदनछवि अनूपं ॥ चर्म-चर्म असि-शूल-धर, डमरु-शर-चाप-कर, यान वृषभेश, करुणा-निधानं । जरत सुर-असुर, नरलोक शोकाकुलं, मृदुलचित, अजित, कृत गरलपानं ॥ भस्म तनु-तनुभूषणं, भूषणंव्याघ्र-चर्माम्बरं, उरग-नर-मौलि उर मालधारी । डाकिनी, शाकिनी, खेचरं, भूचरं, यंत्र-मंत्र-भंजन, प्रबल कल्मषारी ॥ काल-अतिकाल, कलिकाल, व्यालादि-खग, त्रिपुर-मर्दन, भीम-कर्म भारी । सकल लोकान्त-कल्पान्त शूलाग्र कृत दिग्गजाव्यक्त-गुण नृत्यकारी ॥ पाप-संताप-घनघोर संसृति दीन, भ्रमत जग योनि नहिं कोपि त्राता । पाहि भैरव-रूप राम-रूपी रुद्र, बंधु, बंधुगुरु, जनक, जननी, विधाता ॥ यस्य गुण-गण गणति विमल मति शारधा, निगम नारद-प्रमुख ब्रह्मचारी । शेष, सर्वेश, आसीन आनंदवन, दास टुलसी प्रणत-त्रासहारी ॥