Bhagawati Kali Puja Vidhi (भगवती काली पूजा विधि)

भगवती काली पूजा विधि (Bhagawati Kali Puja Vidhi) दिवाली पूजा के दौरान काली पूजा का विशेष महत्व है। दिवाली पूजा के दौरान अन्य महत्वपूर्ण पूजाओं के साथ संपूर्ण दिवाली पूजा विधि में काली पूजा भी सम्मिलित होती है। यद्यपि भगवती काली की मूर्ति की पूजा करने के स्थान पर, लेखनी-दवात, अर्थात कलम और स्याही की बोतल, को देवी काली के रूप में माना जाता है और उनकी पूजा स्वयं देवी काली के रूप में की जाती है। काली पूजा आरंभ करने के लिए, लेखनी-दवात को पूजा स्थल पर स्थापित किया जाता है। दाहिने हाथ की अनामिका अंगुली से उन पर स्वास्तिक चिह्न अंकित किया जाता है। स्वास्तिक को रोचना, लाल चंदन, या रोली के लेप से बनाना चाहिए। लेखनी-दवात पर स्वास्तिक बनाने के बाद, काली पूजा आरंभ की जा सकती है। (1.) ध्यान (Dhyana) पूजन की प्रारंभिक प्रक्रिया भगवती काली के ध्यान से आरंभ की जानी चाहिए। भगवती काली का प्रतीकात्मक प्रतिरूप, लेखनी और दवात के समक्ष स्थापित किया जाना चाहिए। इस ध्यान के दौरान, भगवती काली का स्मरण करते हुए निम्नलिखित मंत्र का जाप करना अनिवार्य है। सद्यश्चिन्न-शिरः कृपाणमभयं हस्तैरवरं बिभ्रतिम्। घोरस्याम शिरसं सृजम सुरुचिरामुन्मुक्त-केशवलिम्॥ श्रीक्कस्रिक-प्रवाहहं शमशान-निलयं श्रुतयोः शवलंकृतिम। श्यामांगी कृत-मेखलं शवा-करैरदेविम भजे कालिकाम्॥ (2.) आह्वान/आवाहन (Aavahan) भगवती काली का ध्यान करने के उपरांत, लेखनी-दवात के समक्ष निम्नलिखित मंत्र से उनका आह्वान करें। भगवती काली का आह्वान करते समय, आपके हाथ लेखनी-दवात के सामने आवाहन मुद्रा में होने चाहिए। आवाहन मुद्रा को दोनों हथेलियों को जोड़कर और दोनों अंगूठों को अंदर की ओर मोड़कर बनाया जाता है। ॐ देवेशी! भक्ति-सुलभे! परिवार-समन्विते! यावत् त्वं पूययिष्यामि, तावत् त्वं सुस्थिर भव॥ दुष्पारे घोरा-संसार-सागरे पतितम सदा। त्रयस्व वरदे, देवि! नमस्ते चित-परातमिके॥ ये देवा, यश्च देव्याश्च, चलितयं चलन्ति हि। आवाहयामि तं सर्वं कालिके, परमेश्वरी॥ प्राणं रक्षां, यशो रक्षां, रक्षां दारणं, सुतं, धनं। सर्व-रक्षा-कारी यस्मात् त्वं हि देवी, जगन्मये॥ प्रविष्य तिष्ठ यज्ञेस्मिन् यावत् पूजं करोम्यहम्। सर्वानन्द-करे, देवि! सर्व सिद्धिं प्रयच्छ मे॥ तिष्ठत्रा कालिके, मतः! सर्व-कल्याण-हेतवे। पूजं गृहणा सुमुखी! नमस्ते शंकर प्रिये॥ ॥श्रीमहा-काली-देवीं आवाहयामि॥ (3.) प्रथम पुष्पांजलि (Pushpanjali-1) जब भगवती काली का आह्वान करके वे पधार जाएं, तो पांच पुष्प अंजलि में लेकर (दोनों हाथों की हथेलियां जोड़कर) लेखनी-दवात के समक्ष अर्पित करें तथा निम्नलिखित मंत्र बोलते हुए भगवती काली को आसन प्रदान करें। नाना-रत्न-संयुक्तम्, कर्ता-स्वर-विभूषितम्। असनम देव-देवेशि! प्रित्यर्थं प्रति-गृह्यतम॥ ॥ श्रीमहा-काली-देव्यै असनार्थे पंच-पुष्पाणि समर्पयामि॥ (4.) द्वितीय पुष्पांजलि (Pushpanjali-2) इसके पश्चात, निम्नलिखित मंत्रों का जाप करते हुए चंदन, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य से भगवती काली की पूजा करें। ॐ श्रीकाली-देव्यै नमः पदयोः पद्यं समर्पयामि। ॐ श्रीकाली-देव्यै नमः शिरसि अर्घ्यं समर्पयामि। ॐ श्रीकाली-देव्यै नमः गंधाक्षतम् समर्पयामि। ॐ श्रीकाली-देव्यै नमः पुष्पम समर्पयामि। ॐ श्रीकाली-देव्यै नमः धूपं घृपयामि। ॐ श्रीकाली-देव्यै नमः दीपं दर्शयामि। ॐ श्रीकाली-देव्यै नमः नैवेद्यं समर्पयामि। ॐ श्रीकाली-देव्यै नमः आचमान्यं समर्पयामि। ॐ श्रीकाली-देव्यै नमः ताम्बूलम समर्पयामि। (5.) तृतीय पुष्पांजलि (Pushpanjali-3) उपरोक्त वर्णित विधि से पूजन करने के उपरांत, बाएं हाथ में गंध, अक्षत और पुष्प ग्रहण करें। दाहिने हाथ से निम्नलिखित मंत्र का जाप करते हुए उन्हें लेखनी-दवात के ऊपर या समीप अर्पित करें। ॐ महा-काल्यै नमः। अनेन पूजनेन श्रीकाली देवी प्रीयताम्, नमो नमः।