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Dasaratha Shatakam (दाशरथी शतकम्)

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Raghav Stuti (राघव स्तुति)

Shri Raghav Stuti (राघव स्तुति) भगवान Shri Ram की महिमा का गुणगान करने वाला एक अत्यंत प्रभावशाली स्तोत्र है। यह स्तुति श्रीराम के divine virtues, strength, compassion, और righteousness का वर्णन करती है। सनातन धर्म में श्रीराम को Maryada Purushottam कहा गया है, जो धर्म और आदर्शों के प्रतीक हैं। श्रीराम की भक्ति से peace, prosperity, और spiritual growth प्राप्त होती है। इस स्तुति का नियमित पाठ करने से जीवन की सभी बाधाएँ दूर होती हैं और मन को inner strength एवं devotion प्राप्त होती है। Shri Raghav Stuti का पाठ करने से भगवान श्रीराम की विशेष कृपा प्राप्त होती है और जीवन में सुख-शांति बनी रहती है।
Stuti

Shri Ram Charit Manas (श्री राम चरित मानस) किष्किन्धाकाण्ड(Kishkindhakanda)

श्री राम चरित मानस(Shri Ram Charit Manas) श्री राम चरित मानस - किष्किन्धाकाण्ड श्रीगणेशाय नमः श्रीजानकीवल्लभो विजयते श्रीरामचरितमानस चतुर्थ सोपान (किष्किन्धाकाण्ड) कुन्देन्दीवरसुन्दरावतिबलौ विज्ञानधामावुभौ शोभाढ्यौ वरधन्विनौ श्रुतिनुतौ गोविप्रवृन्दप्रियौ। मायामानुषरूपिणौ रघुवरौ सद्धर्मवर्मौं हितौ सीतान्वेषणतत्परौ पथिगतौ भक्तिप्रदौ तौ हि नः ॥ 1 ॥ ब्रह्माम्भोधिसमुद्भवं कलिमलप्रध्वंसनं चाव्ययं श्रीमच्छम्भुमुखेन्दुसुन्दरवरे संशोभितं सर्वदा। संसारामयभेषजं सुखकरं श्रीजानकीजीवनं धन्यास्ते कृतिनः पिबन्ति सततं श्रीरामनामामृतम् ॥ 2 ॥ सो. मुक्ति जन्म महि जानि ग्यान खानि अघ हानि कर जहँ बस सम्भु भवानि सो कासी सेइअ कस न ॥ जरत सकल सुर बृन्द बिषम गरल जेहिं पान किय। तेहि न भजसि मन मन्द को कृपाल सङ्कर सरिस ॥ आगें चले बहुरि रघुराया। रिष्यमूक परवत निअराया ॥ तहँ रह सचिव सहित सुग्रीवा। आवत देखि अतुल बल सींवा ॥ अति सभीत कह सुनु हनुमाना। पुरुष जुगल बल रूप निधाना ॥ धरि बटु रूप देखु तैं जाई। कहेसु जानि जियँ सयन बुझाई ॥ पठे बालि होहिं मन मैला। भागौं तुरत तजौं यह सैला ॥ बिप्र रूप धरि कपि तहँ गयू। माथ नाइ पूछत अस भयू ॥ को तुम्ह स्यामल गौर सरीरा। छत्री रूप फिरहु बन बीरा ॥ कठिन भूमि कोमल पद गामी। कवन हेतु बिचरहु बन स्वामी ॥ मृदुल मनोहर सुन्दर गाता। सहत दुसह बन आतप बाता ॥ की तुम्ह तीनि देव महँ कोऊ। नर नारायन की तुम्ह दोऊ ॥ दो. जग कारन तारन भव भञ्जन धरनी भार। की तुम्ह अकिल भुवन पति लीन्ह मनुज अवतार ॥ 1 ॥ कोसलेस दसरथ के जाए । हम पितु बचन मानि बन आए ॥ नाम राम लछिमन दू भाई। सङ्ग नारि सुकुमारि सुहाई ॥ इहाँ हरि निसिचर बैदेही। बिप्र फिरहिं हम खोजत तेही ॥ आपन चरित कहा हम गाई। कहहु बिप्र निज कथा बुझाई ॥ प्रभु पहिचानि परेउ गहि चरना। सो सुख उमा नहिं बरना ॥ पुलकित तन मुख आव न बचना। देखत रुचिर बेष कै रचना ॥ पुनि धीरजु धरि अस्तुति कीन्ही। हरष हृदयँ निज नाथहि चीन्ही ॥ मोर न्याउ मैं पूछा साईं। तुम्ह पूछहु कस नर की नाईम् ॥ तव माया बस फिरुँ भुलाना। ता ते मैं नहिं प्रभु पहिचाना ॥ दो. एकु मैं मन्द मोहबस कुटिल हृदय अग्यान। पुनि प्रभु मोहि बिसारेउ दीनबन्धु भगवान ॥ 2 ॥ जदपि नाथ बहु अवगुन मोरें। सेवक प्रभुहि परै जनि भोरेम् ॥ नाथ जीव तव मायाँ मोहा। सो निस्तरि तुम्हारेहिं छोहा ॥ ता पर मैं रघुबीर दोहाई। जानुँ नहिं कछु भजन उपाई ॥ सेवक सुत पति मातु भरोसें। रहि असोच बनि प्रभु पोसेम् ॥ अस कहि परेउ चरन अकुलाई। निज तनु प्रगटि प्रीति उर छाई ॥ तब रघुपति उठाइ उर लावा। निज लोचन जल सीञ्चि जुड़आवा ॥ सुनु कपि जियँ मानसि जनि ऊना। तैं मम प्रिय लछिमन ते दूना ॥ समदरसी मोहि कह सब कोऊ। सेवक प्रिय अनन्यगति सोऊ ॥ दो. सो अनन्य जाकें असि मति न टरि हनुमन्त। मैं सेवक सचराचर रूप स्वामि भगवन्त ॥ 3 ॥ देखि पवन सुत पति अनुकूला। हृदयँ हरष बीती सब सूला ॥ नाथ सैल पर कपिपति रही। सो सुग्रीव दास तव अही ॥ तेहि सन नाथ मयत्री कीजे। दीन जानि तेहि अभय करीजे ॥ सो सीता कर खोज कराइहि। जहँ तहँ मरकट कोटि पठाइहि ॥ एहि बिधि सकल कथा समुझाई। लिए दुऔ जन पीठि चढ़आई ॥ जब सुग्रीवँ राम कहुँ देखा। अतिसय जन्म धन्य करि लेखा ॥ सादर मिलेउ नाइ पद माथा। भैण्टेउ अनुज सहित रघुनाथा ॥ कपि कर मन बिचार एहि रीती। करिहहिं बिधि मो सन ए प्रीती ॥ दो. तब हनुमन्त उभय दिसि की सब कथा सुनाइ ॥ पावक साखी देइ करि जोरी प्रीती दृढ़आइ ॥ 4 ॥ कीन्ही प्रीति कछु बीच न राखा। लछमिन राम चरित सब भाषा ॥ कह सुग्रीव नयन भरि बारी। मिलिहि नाथ मिथिलेसकुमारी ॥ मन्त्रिन्ह सहित इहाँ एक बारा। बैठ रहेउँ मैं करत बिचारा ॥ गगन पन्थ देखी मैं जाता। परबस परी बहुत बिलपाता ॥ राम राम हा राम पुकारी। हमहि देखि दीन्हेउ पट डारी ॥ मागा राम तुरत तेहिं दीन्हा। पट उर लाइ सोच अति कीन्हा ॥ कह सुग्रीव सुनहु रघुबीरा। तजहु सोच मन आनहु धीरा ॥ सब प्रकार करिहुँ सेवकाई। जेहि बिधि मिलिहि जानकी आई ॥ दो. सखा बचन सुनि हरषे कृपासिधु बलसींव। कारन कवन बसहु बन मोहि कहहु सुग्रीव ॥ 5 ॥ नात बालि अरु मैं द्वौ भाई। प्रीति रही कछु बरनि न जाई ॥ मय सुत मायावी तेहि न्AUँ। आवा सो प्रभु हमरें ग्AUँ ॥ अर्ध राति पुर द्वार पुकारा। बाली रिपु बल सहै न पारा ॥ धावा बालि देखि सो भागा। मैं पुनि गयुँ बन्धु सँग लागा ॥ गिरिबर गुहाँ पैठ सो जाई। तब बालीं मोहि कहा बुझाई ॥ परिखेसु मोहि एक पखवारा। नहिं आवौं तब जानेसु मारा ॥ मास दिवस तहँ रहेउँ खरारी। निसरी रुधिर धार तहँ भारी ॥ बालि हतेसि मोहि मारिहि आई। सिला देइ तहँ चलेउँ पराई ॥ मन्त्रिन्ह पुर देखा बिनु साईं। दीन्हेउ मोहि राज बरिआई ॥ बालि ताहि मारि गृह आवा। देखि मोहि जियँ भेद बढ़आवा ॥ रिपु सम मोहि मारेसि अति भारी। हरि लीन्हेसि सर्बसु अरु नारी ॥ ताकें भय रघुबीर कृपाला। सकल भुवन मैं फिरेउँ बिहाला ॥ इहाँ साप बस आवत नाहीं। तदपि सभीत रहुँ मन माहीँ ॥ सुनि सेवक दुख दीनदयाला। फरकि उठीं द्वै भुजा बिसाला ॥ दो. सुनु सुग्रीव मारिहुँ बालिहि एकहिं बान। ब्रह्म रुद्र सरनागत गेँ न उबरिहिं प्रान ॥ 6 ॥ जे न मित्र दुख होहिं दुखारी। तिन्हहि बिलोकत पातक भारी ॥ निज दुख गिरि सम रज करि जाना। मित्रक दुख रज मेरु समाना ॥ जिन्ह कें असि मति सहज न आई। ते सठ कत हठि करत मिताई ॥ कुपथ निवारि सुपन्थ चलावा। गुन प्रगटे अवगुनन्हि दुरावा ॥ देत लेत मन सङ्क न धरी। बल अनुमान सदा हित करी ॥ बिपति काल कर सतगुन नेहा। श्रुति कह सन्त मित्र गुन एहा ॥ आगें कह मृदु बचन बनाई। पाछें अनहित मन कुटिलाई ॥ जा कर चित अहि गति सम भाई। अस कुमित्र परिहरेहि भलाई ॥ सेवक सठ नृप कृपन कुनारी। कपटी मित्र सूल सम चारी ॥ सखा सोच त्यागहु बल मोरें। सब बिधि घटब काज मैं तोरेम् ॥ कह सुग्रीव सुनहु रघुबीरा। बालि महाबल अति रनधीरा ॥ दुन्दुभी अस्थि ताल देखराए। बिनु प्रयास रघुनाथ ढहाए ॥ देखि अमित बल बाढ़ई प्रीती। बालि बधब इन्ह भि परतीती ॥ बार बार नावि पद सीसा। प्रभुहि जानि मन हरष कपीसा ॥ उपजा ग्यान बचन तब बोला। नाथ कृपाँ मन भयु अलोला ॥ सुख सम्पति परिवार बड़आई। सब परिहरि करिहुँ सेवकाई ॥ ए सब रामभगति के बाधक। कहहिं सन्त तब पद अवराधक ॥ सत्रु मित्र सुख दुख जग माहीं। माया कृत परमारथ नाहीम् ॥ बालि परम हित जासु प्रसादा। मिलेहु राम तुम्ह समन बिषादा ॥ सपनें जेहि सन होइ लराई। जागें समुझत मन सकुचाई ॥ अब प्रभु कृपा करहु एहि भाँती। सब तजि भजनु करौं दिन राती ॥ सुनि बिराग सञ्जुत कपि बानी। बोले बिहँसि रामु धनुपानी ॥ जो कछु कहेहु सत्य सब सोई। सखा बचन मम मृषा न होई ॥ नट मरकट इव सबहि नचावत। रामु खगेस बेद अस गावत ॥ लै सुग्रीव सङ्ग रघुनाथा। चले चाप सायक गहि हाथा ॥ तब रघुपति सुग्रीव पठावा। गर्जेसि जाइ निकट बल पावा ॥ सुनत बालि क्रोधातुर धावा। गहि कर चरन नारि समुझावा ॥ सुनु पति जिन्हहि मिलेउ सुग्रीवा। ते द्वौ बन्धु तेज बल सींवा ॥ कोसलेस सुत लछिमन रामा। कालहु जीति सकहिं सङ्ग्रामा ॥ दो. कह बालि सुनु भीरु प्रिय समदरसी रघुनाथ। जौं कदाचि मोहि मारहिं तौ पुनि हौँ सनाथ ॥ 7 ॥ अस कहि चला महा अभिमानी। तृन समान सुग्रीवहि जानी ॥ भिरे उभौ बाली अति तर्जा । मुठिका मारि महाधुनि गर्जा ॥ तब सुग्रीव बिकल होइ भागा। मुष्टि प्रहार बज्र सम लागा ॥ मैं जो कहा रघुबीर कृपाला। बन्धु न होइ मोर यह काला ॥ एकरूप तुम्ह भ्राता दोऊ। तेहि भ्रम तें नहिं मारेउँ सोऊ ॥ कर परसा सुग्रीव सरीरा। तनु भा कुलिस गी सब पीरा ॥ मेली कण्ठ सुमन कै माला। पठवा पुनि बल देइ बिसाला ॥ पुनि नाना बिधि भी लराई। बिटप ओट देखहिं रघुराई ॥ दो. बहु छल बल सुग्रीव कर हियँ हारा भय मानि। मारा बालि राम तब हृदय माझ सर तानि ॥ 8 ॥ परा बिकल महि सर के लागें। पुनि उठि बैठ देखि प्रभु आगेम् ॥ स्याम गात सिर जटा बनाएँ। अरुन नयन सर चाप चढ़आएँ ॥ पुनि पुनि चिति चरन चित दीन्हा। सुफल जन्म माना प्रभु चीन्हा ॥ हृदयँ प्रीति मुख बचन कठोरा। बोला चिति राम की ओरा ॥ धर्म हेतु अवतरेहु गोसाई। मारेहु मोहि ब्याध की नाई ॥ मैं बैरी सुग्रीव पिआरा। अवगुन कबन नाथ मोहि मारा ॥ अनुज बधू भगिनी सुत नारी। सुनु सठ कन्या सम ए चारी ॥ इन्हहि कुद्दष्टि बिलोकि जोई। ताहि बधें कछु पाप न होई ॥ मुढ़ तोहि अतिसय अभिमाना। नारि सिखावन करसि न काना ॥ मम भुज बल आश्रित तेहि जानी। मारा चहसि अधम अभिमानी ॥ दो. सुनहु राम स्वामी सन चल न चातुरी मोरि। प्रभु अजहूँ मैं पापी अन्तकाल गति तोरि ॥ 9 ॥ सुनत राम अति कोमल बानी। बालि सीस परसेउ निज पानी ॥ अचल करौं तनु राखहु प्राना। बालि कहा सुनु कृपानिधाना ॥ जन्म जन्म मुनि जतनु कराहीं। अन्त राम कहि आवत नाहीम् ॥ जासु नाम बल सङ्कर कासी। देत सबहि सम गति अविनासी ॥ मम लोचन गोचर सोइ आवा। बहुरि कि प्रभु अस बनिहि बनावा ॥ छं. सो नयन गोचर जासु गुन नित नेति कहि श्रुति गावहीं। जिति पवन मन गो निरस करि मुनि ध्यान कबहुँक पावहीम् ॥ मोहि जानि अति अभिमान बस प्रभु कहेउ राखु सरीरही। अस कवन सठ हठि काटि सुरतरु बारि करिहि बबूरही ॥ 1 ॥ अब नाथ करि करुना बिलोकहु देहु जो बर मागूँ। जेहिं जोनि जन्मौं कर्म बस तहँ राम पद अनुरागूँ ॥ यह तनय मम सम बिनय बल कल्यानप्रद प्रभु लीजिऐ। गहि बाहँ सुर नर नाह आपन दास अङ्गद कीजिऐ ॥ 2 ॥ दो. राम चरन दृढ़ प्रीति करि बालि कीन्ह तनु त्याग। सुमन माल जिमि कण्ठ ते गिरत न जानि नाग ॥ 10 ॥ राम बालि निज धाम पठावा। नगर लोग सब ब्याकुल धावा ॥ नाना बिधि बिलाप कर तारा। छूटे केस न देह सँभारा ॥ तारा बिकल देखि रघुराया । दीन्ह ग्यान हरि लीन्ही माया ॥ छिति जल पावक गगन समीरा। पञ्च रचित अति अधम सरीरा ॥ प्रगट सो तनु तव आगें सोवा। जीव नित्य केहि लगि तुम्ह रोवा ॥ उपजा ग्यान चरन तब लागी। लीन्हेसि परम भगति बर मागी ॥ उमा दारु जोषित की नाई। सबहि नचावत रामु गोसाई ॥ तब सुग्रीवहि आयसु दीन्हा। मृतक कर्म बिधिबत सब कीन्हा ॥ राम कहा अनुजहि समुझाई। राज देहु सुग्रीवहि जाई ॥ रघुपति चरन नाइ करि माथा। चले सकल प्रेरित रघुनाथा ॥ दो. लछिमन तुरत बोलाए पुरजन बिप्र समाज। राजु दीन्ह सुग्रीव कहँ अङ्गद कहँ जुबराज ॥ 11 ॥ उमा राम सम हित जग माहीं। गुरु पितु मातु बन्धु प्रभु नाहीम् ॥ सुर नर मुनि सब कै यह रीती। स्वारथ लागि करहिं सब प्रीती ॥ बालि त्रास ब्याकुल दिन राती। तन बहु ब्रन चिन्ताँ जर छाती ॥ सोइ सुग्रीव कीन्ह कपिर्AU। अति कृपाल रघुबीर सुभ्AU ॥ जानतहुँ अस प्रभु परिहरहीं। काहे न बिपति जाल नर परहीम् ॥ पुनि सुग्रीवहि लीन्ह बोलाई। बहु प्रकार नृपनीति सिखाई ॥ कह प्रभु सुनु सुग्रीव हरीसा। पुर न जाउँ दस चारि बरीसा ॥ गत ग्रीषम बरषा रितु आई। रहिहुँ निकट सैल पर छाई ॥ अङ्गद सहित करहु तुम्ह राजू। सन्तत हृदय धरेहु मम काजू ॥ जब सुग्रीव भवन फिरि आए। रामु प्रबरषन गिरि पर छाए ॥ दो. प्रथमहिं देवन्ह गिरि गुहा राखेउ रुचिर बनाइ। राम कृपानिधि कछु दिन बास करहिङ्गे आइ ॥ 12 ॥ सुन्दर बन कुसुमित अति सोभा। गुञ्जत मधुप निकर मधु लोभा ॥ कन्द मूल फल पत्र सुहाए। भे बहुत जब ते प्रभु आए ॥ देखि मनोहर सैल अनूपा। रहे तहँ अनुज सहित सुरभूपा ॥ मधुकर खग मृग तनु धरि देवा। करहिं सिद्ध मुनि प्रभु कै सेवा ॥ मङ्गलरुप भयु बन तब ते । कीन्ह निवास रमापति जब ते ॥ फटिक सिला अति सुभ्र सुहाई। सुख आसीन तहाँ द्वौ भाई ॥ कहत अनुज सन कथा अनेका। भगति बिरति नृपनीति बिबेका ॥ बरषा काल मेघ नभ छाए। गरजत लागत परम सुहाए ॥ दो. लछिमन देखु मोर गन नाचत बारिद पैखि। गृही बिरति रत हरष जस बिष्नु भगत कहुँ देखि ॥ 13 ॥ घन घमण्ड नभ गरजत घोरा। प्रिया हीन डरपत मन मोरा ॥ दामिनि दमक रह न घन माहीं। खल कै प्रीति जथा थिर नाहीम् ॥ बरषहिं जलद भूमि निअराएँ। जथा नवहिं बुध बिद्या पाएँ ॥ बूँद अघात सहहिं गिरि कैंसेम् । खल के बचन सन्त सह जैसेम् ॥ छुद्र नदीं भरि चलीं तोराई। जस थोरेहुँ धन खल इतराई ॥ भूमि परत भा ढाबर पानी। जनु जीवहि माया लपटानी ॥ समिटि समिटि जल भरहिं तलावा। जिमि सदगुन सज्जन पहिं आवा ॥ सरिता जल जलनिधि महुँ जाई। होई अचल जिमि जिव हरि पाई ॥ दो. हरित भूमि तृन सङ्कुल समुझि परहिं नहिं पन्थ। जिमि पाखण्ड बाद तें गुप्त होहिं सदग्रन्थ ॥ 14 ॥ दादुर धुनि चहु दिसा सुहाई। बेद पढ़हिं जनु बटु समुदाई ॥ नव पल्लव भे बिटप अनेका। साधक मन जस मिलें बिबेका ॥ अर्क जबास पात बिनु भयू। जस सुराज खल उद्यम गयू ॥ खोजत कतहुँ मिलि नहिं धूरी। करि क्रोध जिमि धरमहि दूरी ॥ ससि सम्पन्न सोह महि कैसी। उपकारी कै सम्पति जैसी ॥ निसि तम घन खद्योत बिराजा। जनु दम्भिन्ह कर मिला समाजा ॥ महाबृष्टि चलि फूटि किआरीम् । जिमि सुतन्त्र भेँ बिगरहिं नारीम् ॥ कृषी निरावहिं चतुर किसाना। जिमि बुध तजहिं मोह मद माना ॥ देखिअत चक्रबाक खग नाहीं। कलिहि पाइ जिमि धर्म पराहीम् ॥ ऊषर बरषि तृन नहिं जामा। जिमि हरिजन हियँ उपज न कामा ॥ बिबिध जन्तु सङ्कुल महि भ्राजा। प्रजा बाढ़ जिमि पाइ सुराजा ॥ जहँ तहँ रहे पथिक थकि नाना। जिमि इन्द्रिय गन उपजें ग्याना ॥ दो. कबहुँ प्रबल बह मारुत जहँ तहँ मेघ बिलाहिं। जिमि कपूत के उपजें कुल सद्धर्म नसाहिम् ॥ 15(क) ॥ कबहुँ दिवस महँ निबिड़ तम कबहुँक प्रगट पतङ्ग। बिनसि उपजि ग्यान जिमि पाइ कुसङ्ग सुसङ्ग ॥ 15(ख) ॥ बरषा बिगत सरद रितु आई। लछिमन देखहु परम सुहाई ॥ फूलें कास सकल महि छाई। जनु बरषाँ कृत प्रगट बुढ़आई ॥ उदित अगस्ति पन्थ जल सोषा। जिमि लोभहि सोषि सन्तोषा ॥ सरिता सर निर्मल जल सोहा। सन्त हृदय जस गत मद मोहा ॥ रस रस सूख सरित सर पानी। ममता त्याग करहिं जिमि ग्यानी ॥ जानि सरद रितु खञ्जन आए। पाइ समय जिमि सुकृत सुहाए ॥ पङ्क न रेनु सोह असि धरनी। नीति निपुन नृप कै जसि करनी ॥ जल सङ्कोच बिकल भिँ मीना। अबुध कुटुम्बी जिमि धनहीना ॥ बिनु धन निर्मल सोह अकासा। हरिजन इव परिहरि सब आसा ॥ कहुँ कहुँ बृष्टि सारदी थोरी। कौ एक पाव भगति जिमि मोरी ॥ दो. चले हरषि तजि नगर नृप तापस बनिक भिखारि। जिमि हरिभगत पाइ श्रम तजहि आश्रमी चारि ॥ 16 ॥ सुखी मीन जे नीर अगाधा। जिमि हरि सरन न एकु बाधा ॥ फूलें कमल सोह सर कैसा। निर्गुन ब्रह्म सगुन भेँ जैसा ॥ गुञ्जत मधुकर मुखर अनूपा। सुन्दर खग रव नाना रूपा ॥ चक्रबाक मन दुख निसि पैखी। जिमि दुर्जन पर सम्पति देखी ॥ चातक रटत तृषा अति ओही। जिमि सुख लहि न सङ्करद्रोही ॥ सरदातप निसि ससि अपहरी। सन्त दरस जिमि पातक टरी ॥ देखि इन्दु चकोर समुदाई। चितवतहिं जिमि हरिजन हरि पाई ॥ मसक दंस बीते हिम त्रासा। जिमि द्विज द्रोह किएँ कुल नासा ॥ दो. भूमि जीव सङ्कुल रहे गे सरद रितु पाइ। सदगुर मिले जाहिं जिमि संसय भ्रम समुदाइ ॥ 17 ॥ बरषा गत निर्मल रितु आई। सुधि न तात सीता कै पाई ॥ एक बार कैसेहुँ सुधि जानौं। कालहु जीत निमिष महुँ आनौम् ॥ कतहुँ रहु जौं जीवति होई। तात जतन करि आनेउँ सोई ॥ सुग्रीवहुँ सुधि मोरि बिसारी। पावा राज कोस पुर नारी ॥ जेहिं सायक मारा मैं बाली। तेहिं सर हतौं मूढ़ कहँ काली ॥ जासु कृपाँ छूटहीं मद मोहा। ता कहुँ उमा कि सपनेहुँ कोहा ॥ जानहिं यह चरित्र मुनि ग्यानी। जिन्ह रघुबीर चरन रति मानी ॥ लछिमन क्रोधवन्त प्रभु जाना। धनुष चढ़आइ गहे कर बाना ॥ दो. तब अनुजहि समुझावा रघुपति करुना सींव ॥ भय देखाइ लै आवहु तात सखा सुग्रीव ॥ 18 ॥ इहाँ पवनसुत हृदयँ बिचारा। राम काजु सुग्रीवँ बिसारा ॥ निकट जाइ चरनन्हि सिरु नावा। चारिहु बिधि तेहि कहि समुझावा ॥ सुनि सुग्रीवँ परम भय माना। बिषयँ मोर हरि लीन्हेउ ग्याना ॥ अब मारुतसुत दूत समूहा। पठवहु जहँ तहँ बानर जूहा ॥ कहहु पाख महुँ आव न जोई। मोरें कर ता कर बध होई ॥ तब हनुमन्त बोलाए दूता। सब कर करि सनमान बहूता ॥ भय अरु प्रीति नीति देखाई। चले सकल चरनन्हि सिर नाई ॥ एहि अवसर लछिमन पुर आए। क्रोध देखि जहँ तहँ कपि धाए ॥ दो. धनुष चढ़आइ कहा तब जारि करुँ पुर छार। ब्याकुल नगर देखि तब आयु बालिकुमार ॥ 19 ॥ चरन नाइ सिरु बिनती कीन्ही। लछिमन अभय बाँह तेहि दीन्ही ॥ क्रोधवन्त लछिमन सुनि काना। कह कपीस अति भयँ अकुलाना ॥ सुनु हनुमन्त सङ्ग लै तारा। करि बिनती समुझाउ कुमारा ॥ तारा सहित जाइ हनुमाना। चरन बन्दि प्रभु सुजस बखाना ॥ करि बिनती मन्दिर लै आए। चरन पखारि पलँग बैठाए ॥ तब कपीस चरनन्हि सिरु नावा। गहि भुज लछिमन कण्ठ लगावा ॥ नाथ बिषय सम मद कछु नाहीं। मुनि मन मोह करि छन माहीम् ॥ सुनत बिनीत बचन सुख पावा। लछिमन तेहि बहु बिधि समुझावा ॥ पवन तनय सब कथा सुनाई। जेहि बिधि गे दूत समुदाई ॥ दो. हरषि चले सुग्रीव तब अङ्गदादि कपि साथ। रामानुज आगें करि आए जहँ रघुनाथ ॥ 20 ॥ नाइ चरन सिरु कह कर जोरी। नाथ मोहि कछु नाहिन खोरी ॥ अतिसय प्रबल देव तब माया। छूटि राम करहु जौं दाया ॥ बिषय बस्य सुर नर मुनि स्वामी। मैं पावँर पसु कपि अति कामी ॥ नारि नयन सर जाहि न लागा। घोर क्रोध तम निसि जो जागा ॥ लोभ पाँस जेहिं गर न बँधाया। सो नर तुम्ह समान रघुराया ॥ यह गुन साधन तें नहिं होई। तुम्हरी कृपाँ पाव कोइ कोई ॥ तब रघुपति बोले मुसकाई। तुम्ह प्रिय मोहि भरत जिमि भाई ॥ अब सोइ जतनु करहु मन लाई। जेहि बिधि सीता कै सुधि पाई ॥ दो. एहि बिधि होत बतकही आए बानर जूथ। नाना बरन सकल दिसि देखिअ कीस बरुथ ॥ 21 ॥ बानर कटक उमा में देखा। सो मूरुख जो करन चह लेखा ॥ आइ राम पद नावहिं माथा। निरखि बदनु सब होहिं सनाथा ॥ अस कपि एक न सेना माहीं। राम कुसल जेहि पूछी नाहीम् ॥ यह कछु नहिं प्रभु कि अधिकाई। बिस्वरूप ब्यापक रघुराई ॥ ठाढ़ए जहँ तहँ आयसु पाई। कह सुग्रीव सबहि समुझाई ॥ राम काजु अरु मोर निहोरा। बानर जूथ जाहु चहुँ ओरा ॥ जनकसुता कहुँ खोजहु जाई। मास दिवस महँ आएहु भाई ॥ अवधि मेटि जो बिनु सुधि पाएँ। आवि बनिहि सो मोहि मराएँ ॥ दो. बचन सुनत सब बानर जहँ तहँ चले तुरन्त । तब सुग्रीवँ बोलाए अङ्गद नल हनुमन्त ॥ 22 ॥ सुनहु नील अङ्गद हनुमाना। जामवन्त मतिधीर सुजाना ॥ सकल सुभट मिलि दच्छिन जाहू। सीता सुधि पूँछेउ सब काहू ॥ मन क्रम बचन सो जतन बिचारेहु। रामचन्द्र कर काजु सँवारेहु ॥ भानु पीठि सेइअ उर आगी। स्वामिहि सर्ब भाव छल त्यागी ॥ तजि माया सेइअ परलोका। मिटहिं सकल भव सम्भव सोका ॥ देह धरे कर यह फलु भाई। भजिअ राम सब काम बिहाई ॥ सोइ गुनग्य सोई बड़भागी । जो रघुबीर चरन अनुरागी ॥ आयसु मागि चरन सिरु नाई। चले हरषि सुमिरत रघुराई ॥ पाछें पवन तनय सिरु नावा। जानि काज प्रभु निकट बोलावा ॥ परसा सीस सरोरुह पानी। करमुद्रिका दीन्हि जन जानी ॥ बहु प्रकार सीतहि समुझाएहु। कहि बल बिरह बेगि तुम्ह आएहु ॥ हनुमत जन्म सुफल करि माना। चलेउ हृदयँ धरि कृपानिधाना ॥ जद्यपि प्रभु जानत सब बाता। राजनीति राखत सुरत्राता ॥ दो. चले सकल बन खोजत सरिता सर गिरि खोह। राम काज लयलीन मन बिसरा तन कर छोह ॥ 23 ॥ कतहुँ होइ निसिचर सैं भेटा। प्रान लेहिं एक एक चपेटा ॥ बहु प्रकार गिरि कानन हेरहिं। कौ मुनि मिलत ताहि सब घेरहिम् ॥ लागि तृषा अतिसय अकुलाने। मिलि न जल घन गहन भुलाने ॥ मन हनुमान कीन्ह अनुमाना। मरन चहत सब बिनु जल पाना ॥ चढ़इ गिरि सिखर चहूँ दिसि देखा। भूमि बिबिर एक कौतुक पेखा ॥ चक्रबाक बक हंस उड़आहीं। बहुतक खग प्रबिसहिं तेहि माहीम् ॥ गिरि ते उतरि पवनसुत आवा। सब कहुँ लै सोइ बिबर देखावा ॥ आगें कै हनुमन्तहि लीन्हा। पैठे बिबर बिलम्बु न कीन्हा ॥ दो. दीख जाइ उपवन बर सर बिगसित बहु कञ्ज। मन्दिर एक रुचिर तहँ बैठि नारि तप पुञ्ज ॥ 24 ॥ दूरि ते ताहि सबन्हि सिर नावा। पूछें निज बृत्तान्त सुनावा ॥ तेहिं तब कहा करहु जल पाना। खाहु सुरस सुन्दर फल नाना ॥ मज्जनु कीन्ह मधुर फल खाए। तासु निकट पुनि सब चलि आए ॥ तेहिं सब आपनि कथा सुनाई। मैं अब जाब जहाँ रघुराई ॥ मूदहु नयन बिबर तजि जाहू। पैहहु सीतहि जनि पछिताहू ॥ नयन मूदि पुनि देखहिं बीरा। ठाढ़ए सकल सिन्धु कें तीरा ॥ सो पुनि गी जहाँ रघुनाथा। जाइ कमल पद नाएसि माथा ॥ नाना भाँति बिनय तेहिं कीन्ही। अनपायनी भगति प्रभु दीन्ही ॥ दो. बदरीबन कहुँ सो गी प्रभु अग्या धरि सीस । उर धरि राम चरन जुग जे बन्दत अज ईस ॥ 25 ॥ इहाँ बिचारहिं कपि मन माहीं। बीती अवधि काज कछु नाहीम् ॥ सब मिलि कहहिं परस्पर बाता। बिनु सुधि लेँ करब का भ्राता ॥ कह अङ्गद लोचन भरि बारी। दुहुँ प्रकार भि मृत्यु हमारी ॥ इहाँ न सुधि सीता कै पाई। उहाँ गेँ मारिहि कपिराई ॥ पिता बधे पर मारत मोही। राखा राम निहोर न ओही ॥ पुनि पुनि अङ्गद कह सब पाहीं। मरन भयु कछु संसय नाहीम् ॥ अङ्गद बचन सुनत कपि बीरा। बोलि न सकहिं नयन बह नीरा ॥ छन एक सोच मगन होइ रहे। पुनि अस वचन कहत सब भे ॥ हम सीता कै सुधि लिन्हें बिना। नहिं जैंहैं जुबराज प्रबीना ॥ अस कहि लवन सिन्धु तट जाई। बैठे कपि सब दर्भ डसाई ॥ जामवन्त अङ्गद दुख देखी। कहिं कथा उपदेस बिसेषी ॥ तात राम कहुँ नर जनि मानहु। निर्गुन ब्रह्म अजित अज जानहु ॥ दो. निज इच्छा प्रभु अवतरि सुर महि गो द्विज लागि। सगुन उपासक सङ्ग तहँ रहहिं मोच्छ सब त्यागि ॥ 26 ॥ एहि बिधि कथा कहहि बहु भाँती गिरि कन्दराँ सुनी सम्पाती ॥ बाहेर होइ देखि बहु कीसा। मोहि अहार दीन्ह जगदीसा ॥ आजु सबहि कहँ भच्छन करूँ। दिन बहु चले अहार बिनु मरूँ ॥ कबहुँ न मिल भरि उदर अहारा। आजु दीन्ह बिधि एकहिं बारा ॥ डरपे गीध बचन सुनि काना। अब भा मरन सत्य हम जाना ॥ कपि सब उठे गीध कहँ देखी। जामवन्त मन सोच बिसेषी ॥ कह अङ्गद बिचारि मन माहीं। धन्य जटायू सम कौ नाहीम् ॥ राम काज कारन तनु त्यागी । हरि पुर गयु परम बड़ भागी ॥ सुनि खग हरष सोक जुत बानी । आवा निकट कपिन्ह भय मानी ॥ तिन्हहि अभय करि पूछेसि जाई। कथा सकल तिन्ह ताहि सुनाई ॥ सुनि सम्पाति बन्धु कै करनी। रघुपति महिमा बधुबिधि बरनी ॥ दो. मोहि लै जाहु सिन्धुतट देउँ तिलाञ्जलि ताहि । बचन सहाइ करवि मैं पैहहु खोजहु जाहि ॥ 27 ॥ अनुज क्रिया करि सागर तीरा। कहि निज कथा सुनहु कपि बीरा ॥ हम द्वौ बन्धु प्रथम तरुनाई । गगन गे रबि निकट उडाई ॥ तेज न सहि सक सो फिरि आवा । मै अभिमानी रबि निअरावा ॥ जरे पङ्ख अति तेज अपारा । परेउँ भूमि करि घोर चिकारा ॥ मुनि एक नाम चन्द्रमा ओही। लागी दया देखी करि मोही ॥ बहु प्रकार तेंहि ग्यान सुनावा । देहि जनित अभिमानी छड़आवा ॥ त्रेताँ ब्रह्म मनुज तनु धरिही। तासु नारि निसिचर पति हरिही ॥ तासु खोज पठिहि प्रभू दूता। तिन्हहि मिलें तैं होब पुनीता ॥ जमिहहिं पङ्ख करसि जनि चिन्ता । तिन्हहि देखाइ देहेसु तैं सीता ॥ मुनि कि गिरा सत्य भि आजू । सुनि मम बचन करहु प्रभु काजू ॥ गिरि त्रिकूट ऊपर बस लङ्का । तहँ रह रावन सहज असङ्का ॥ तहँ असोक उपबन जहँ रही ॥ सीता बैठि सोच रत अही ॥ दो. मैं देखुँ तुम्ह नाहि गीघहि दष्टि अपार ॥ बूढ भयुँ न त करतेउँ कछुक सहाय तुम्हार ॥ 28 ॥ जो नाघि सत जोजन सागर । करि सो राम काज मति आगर ॥ मोहि बिलोकि धरहु मन धीरा । राम कृपाँ कस भयु सरीरा ॥ पापिउ जा कर नाम सुमिरहीं। अति अपार भवसागर तरहीम् ॥ तासु दूत तुम्ह तजि कदराई। राम हृदयँ धरि करहु उपाई ॥ अस कहि गरुड़ गीध जब गयू। तिन्ह कें मन अति बिसमय भयू ॥ निज निज बल सब काहूँ भाषा। पार जाइ कर संसय राखा ॥ जरठ भयुँ अब कहि रिछेसा। नहिं तन रहा प्रथम बल लेसा ॥ जबहिं त्रिबिक्रम भे खरारी। तब मैं तरुन रहेउँ बल भारी ॥ दो. बलि बाँधत प्रभु बाढेउ सो तनु बरनि न जाई। उभय धरी महँ दीन्ही सात प्रदच्छिन धाइ ॥ 29 ॥ अङ्गद कहि जाउँ मैं पारा। जियँ संसय कछु फिरती बारा ॥ जामवन्त कह तुम्ह सब लायक। पठिअ किमि सब ही कर नायक ॥ कहि रीछपति सुनु हनुमाना। का चुप साधि रहेहु बलवाना ॥ पवन तनय बल पवन समाना। बुधि बिबेक बिग्यान निधाना ॥ कवन सो काज कठिन जग माहीं। जो नहिं होइ तात तुम्ह पाहीम् ॥ राम काज लगि तब अवतारा। सुनतहिं भयु पर्वताकारा ॥ कनक बरन तन तेज बिराजा। मानहु अपर गिरिन्ह कर राजा ॥ सिंहनाद करि बारहिं बारा। लीलहीं नाषुँ जलनिधि खारा ॥ सहित सहाय रावनहि मारी। आनुँ इहाँ त्रिकूट उपारी ॥ जामवन्त मैं पूँछुँ तोही। उचित सिखावनु दीजहु मोही ॥ एतना करहु तात तुम्ह जाई। सीतहि देखि कहहु सुधि आई ॥ तब निज भुज बल राजिव नैना। कौतुक लागि सङ्ग कपि सेना ॥ छं. -कपि सेन सङ्ग सँघारि निसिचर रामु सीतहि आनिहैं। त्रैलोक पावन सुजसु सुर मुनि नारदादि बखानिहैम् ॥ जो सुनत गावत कहत समुझत परम पद नर पावी। रघुबीर पद पाथोज मधुकर दास तुलसी गावी ॥ दो. भव भेषज रघुनाथ जसु सुनहि जे नर अरु नारि। तिन्ह कर सकल मनोरथ सिद्ध करिहि त्रिसिरारि ॥ 30(क) ॥ सो. नीलोत्पल तन स्याम काम कोटि सोभा अधिक। सुनिअ तासु गुन ग्राम जासु नाम अघ खग बधिक ॥ 30(ख) ॥ मासपारायण, तेईसवाँ विश्राम इति श्रीमद्रामचरितमानसे सकलकलिकलुषविध्वंसने चतुर्थ सोपानः समाप्तः। (किष्किन्धाकाण्ड समाप्त)
Ramcharit-Manas

Shri Ram Arti (श्री राम आरती)

श्री राम आरती भगवान श्रीराम की स्तुति में गाया जाने वाला एक भक्ति गीत है, जो उनके दिव्य रूप, मर्यादा, आदर्श चरित्र और धर्म की स्थापना को समर्पित है।
Arti

Shri Ram Sahasranama Stotram (श्री राम सहस्रनाम स्तोत्रम्)

श्री राम सहस्रनाम राम जी के 1000 गुण हैं। उनका प्रत्येक नाम चेतना के विशेष गुण को दर्शाता है और अत्यन्त महिमाकारी है। सहस्रनाम का पाठ करने वाले या श्रवण करने वाले की चेतना में तथा सम्पूर्ण वातावरण में श्रीराम जी के इन समस्त गुणों का जागरण होता है। श्रीराम नाम पूर्ण पवित्र, मणि के समान प्रकाशमान, अनुपम, बहुमूल्य और अतुलनीय है। श्री राम नाम अज्ञान के अन्धकार को दूर करके जीवन को शुद्ध ज्ञान, अनन्त रचनात्मक शक्ति और आनन्द से परिपूरित कर देने वाला है। श्रद्धा और विश्वास पूर्वक श्रीराम की भक्ति सन्तुष्टि, शाश्वत् शांति, अजेयता और मोक्ष प्रदायक है।
Sahasranama-Stotram

Shri Ram Chalisa

राम चालीसा एक भक्ति गीत है जो भगवान राम के जीवन, आदर्शों और गुणों पर आधारित है। यह 40 छन्दों से मिलकर बनी एक प्रसिद्ध प्रार्थना है। राम चालीसा का पाठ भगवान राम की कृपा पाने, शांति, सुख, और आध्यात्मिक ऊर्जा के लिए किया जाता है। इसे विशेष रूप से राम नवमी, दशहरा, दीपावली, और अन्य रामभक्त त्योहारों पर गाया जाता है। राम चालीसा का पाठ करने से भक्तों को श्रीरामचरितमानस, संपूर्ण रामायण, और हनुमान चालीसा के समान आध्यात्मिक लाभ मिलता है। यह भगवान राम के गुणों जैसे मर्यादा पुरुषोत्तम, धैर्य, और त्याग को उजागर करता है। इस प्रार्थना को सुबह और शाम के समय, राम आरती, राम मंत्र जप, या राम कथा के साथ जोड़कर पाठ करना अत्यधिक शुभ माना गया है।
Chalisa

Ram Stuti (राम स्तुति)

राम स्तुति भगवान राम (Lord Rama), जिन्हें "king of Ayodhya," "Maryada Purushottam," और "symbol of dharma" कहा जाता है, की स्तुति है। यह स्तुति उनके "ideal virtues," "divine compassion," और "righteous leadership" का वर्णन करती है। श्रीराम अपने भक्तों को "spiritual strength," "inner peace," और "moral guidance" प्रदान करते हैं। राम स्तुति का पाठ "devotion," "prosperity," और "divine blessings" प्राप्त करने का माध्यम है।
Stuti

Shri Rama Raksha Stotram (श्री राम रक्षा स्तोत्रम्)

Shri Rama Raksha Stotram भगवान Ram की महिमा और कृपा का स्तवन है, जो "Protector of Dharma" और "Ideal King" के रूप में पूजित हैं। यह Stotram भक्त को जीवन की सभी समस्याओं, भय और बाधाओं से सुरक्षा प्रदान करता है। इसमें भगवान श्रीराम, सीता माता, लक्ष्मण और हनुमान की शक्तियों का आह्वान किया गया है, जो "Spiritual Protector" और "Divine Guardian" के रूप में जाने जाते हैं। इस Stotram के नियमित पाठ से मानसिक शांति, आंतरिक शक्ति और आत्मविश्वास प्राप्त होता है। Shri Rama Raksha Stotram को "Protection Mantra of Lord Ram" और "Powerful Sanskrit Chant" के रूप में भी जाना जाता है। यह Stotram भगवान Ram के प्रति विश्वास और श्रद्धा को गहरा करता है, जिससे जीवन में सुख, शांति और सफलता मिलती है। इसे पढ़ने से भक्त के चारों ओर एक "Divine Shield" का निर्माण होता है, जो नकारात्मक शक्तियों और शत्रुओं से बचाव करता है। यह "Ram Devotional Hymn" हर प्रकार के भय और संकट को दूर करने में सहायक है।
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Shri Ram Mantra (श्री राम मंत्र)

भगवान श्रीराम के मंत्रों का जाप करने से मनचाही कामना पूरी होती है। साधारण से दिखने वाले इन मंत्रों में जो शक्ति छिपी हुई है, वह हर कोई नहीं पहचान सकता। अत: प्रभु श्रीराम के इन 5 सरल मंत्रों का जाप आपके जीवन को परेशानियों से उबार सकता है। इतना ही नहीं, ये मंत्र अपार धन-संपदा की प्राप्ति भी कराते हैं।
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साल में दो बार क्यों मनाया जाता है हनुमान जी का जन्मोत्सव, जानिए रहस्य

Hanuman Janm Katha (हनुमान जन्म कथा): Lord Hanuman को शक्ति, भक्ति और समर्पण का प्रतीक माना जाता है। वे भगवान राम के परम भक्त हैं और Ramayan Epic में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका से सभी परिचित हैं। Hanuman Ji के भक्त उन पर अटूट श्रद्धा रखते हैं और Mahabali Hanuman भी अपने Devotees की रक्षा करते हैं। Chaitra Purnima पर Hanuman Jayanti 2025 मनाई जाती है। इस साल चैत्र माह की पूर्णिमा यानी 12 April 2025 को हनुमान जयंती का उत्सव मनाया जाएगा। वहीं Valmiki Ramayan के अनुसार, Kartik Month Krishna Paksha Chaturdashi को Hanuman Janmotsav मनाया जाता है। इस साल कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी 19 October 2025 को है। अब आपके मन में सवाल उठ रहा होगा कि आखिर दो बार Lord Hanuman Birthday क्यों मनाया जाता है। आइए, विस्तार से जानते हैं। Chaitra Purnima and Hanuman Jayanti चैत्र मास की पूर्णिमा को Hanuman Jayanti Festival के रूप में मनाया जाता है। इसके पीछे एक पौराणिक कथा है। जब बाल Hanuman ने सूर्य को फल समझकर खाने की कोशिश की, तो Indra Dev ने उन पर Vajra से प्रहार किया। इससे Hanuman Ji मूर्छित हो गए। इससे उनके पिता Pawan Dev (Wind God) क्रोधित हो गए और उन्होंने हवा रोक दी। इससे पूरे ब्रह्मांड पर संकट आ गया। Gods of Hinduism की प्रार्थना के बाद Lord Brahma ने Hanuman Ji को दूसरा जीवन दिया। तब सभी देवताओं ने उन्हें अपनी-अपनी Divine Powers प्रदान कीं। जिस दिन उन्हें नया जीवन मिला, वह Chaitra Purnima Tithi थी। इसलिए इस दिन को Hanuman Jayanti Celebration के रूप में मनाया जाता है। Kartik Chaturdashi and Hanuman Janmotsav वहीं Kartik Month Krishna Chaturdashi को Hanuman Janmotsav के रूप में मनाया जाता है। Valmiki Ramayan के अनुसार, Hanuman Ji का Actual Birth इसी दिन हुआ था। इसलिए इस तिथि को उनके Spiritual Birthday के रूप में मनाने की परंपरा है।

चैत्र नवरात्रि की नवमी पर कर लें ये खास उपाय, मातारानी होंगी प्रसन्न

Navratri Remedies (Navratri ke Upay): चैत्र नवरात्रि की नवमी तिथि (Navami Tithi of Chaitra Navratri) मां दुर्गा की Worship के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस दिन Goddess Siddhidatri की पूजा की जाती है, जो सभी प्रकार की Spiritual Powers और Siddhis को प्रदान करने वाली हैं। Mata Durga को प्रसन्न करने और उनका Blessings प्राप्त करने के लिए नवमी तिथि पर कुछ विशेष spiritual rituals किए जा सकते हैं: 1. Kanya Pujan (Girl Worship Ceremony): नवमी के दिन कन्या पूजन का विशेष महत्व है। नौ कन्याओं (जो 2 से 10 वर्ष की हों) को मां दुर्गा के नौ रूपों के प्रतीक के रूप में आमंत्रित करें। उन्हें स्वच्छ स्थान पर बैठाएं, उनके पैर धोएं और रोली-कुमकुम से तिलक करें। उन्हें स्वादिष्ट भोजन (जैसे Puri, Kala Chana, Halwa) खिलाएं और दक्षिणा व उपहार (Gifts for Girls) भेंट करें। कन्याओं को विदा करते समय उनसे आशीर्वाद लें। कन्या पूजन माता को अत्यंत प्रिय है और यह एक powerful Navratri ritual माना जाता है। 2. Havan and Yagya: नवमी के दिन Fire Ritual (Havan) करना बहुत शुभ माना जाता है। आप घर पर ही किसी Pandit की सहायता से या स्वयं Durga Saptashati Mantras से हवन कर सकते हैं। हवन में Barley, Sesame Seeds, Guggul, Pure Ghee और अन्य हवन सामग्री अर्पित करें। Havan Smoke से घर की Negative Energy दूर होती है और Positive Vibes का संचार होता है। 3. Special Worship of Maa Siddhidatri: नवमी के दिन Maa Siddhidatri की Special Puja करें। उन्हें Lotus Flower अर्पित करें, जो उनका प्रिय पुष्प है। 'ॐ देवी सिद्धिदात्र्यै नमः' मंत्र का 108 बार Chanting करें। Maa Siddhidatri Aarti गाएं और उन्हें Halwa, Kala Chana और Poori का Bhog लगाएं। अपनी Wishes मां के समक्ष रखें। 4. Durga Saptashati Path: यदि संभव हो तो नवमी के दिन Durga Saptashati का Full Recitation करें। यदि पूरा पाठ करना संभव न हो तो इसके महत्वपूर्ण अध्याय जैसे Durga Kavach, Kilik Stotra और Argala Stotra का पाठ अवश्य करें। इससे Divine Blessings मिलती हैं। 5. Charity and Donations (Daan-Punya): नवमी के दिन Underprivileged लोगों को Donation देना बहुत शुभ माना जाता है। आप Grains, Clothes, Cash या अपनी श्रद्धा अनुसार किसी भी वस्तु का दान कर सकते हैं। यह act of kindness मां दुर्गा को प्रसन्न करता है। 6. Use of Yellow Color: नवमी के दिन Yellow Color का विशेष महत्व है। पूजा में Yellow Dress पहनें और मां दुर्गा को Yellow Flowers अर्पित करें। यह color positivity और auspiciousness का प्रतीक माना जाता है। 7. Apology Prayer (Kshama Yachna): Navratri के दौरान यदि कोई गलती हो गई हो तो नवमी के दिन Mata Durga से Forgiveness मांगें। सच्चे मन से मांगी गई क्षमा को मां अवश्य स्वीकार करती हैं। 8. Durga Chalisa Path: Maa Durga की स्तुति में Durga Chalisa Recitation करना भी अत्यंत फलदायी होता है और यह आपकी Spiritual Energy को बढ़ाता है। 9. Creative Activities: नवमी के दिन Creative Work में शामिल होना शुभ होता है। आप Arts, Music या किसी भी Positive Activity में अपना समय लगा सकते हैं। 10. Stay Positive: इस दिन पूर्ण रूप से Positive Thoughts में रहें और माँ दुर्गा के प्रति Devotion बनाए रखें। Negative Thinking से बचें।

श्री राम की कृपा पाने के लिए करिए इन मंत्रों का जाप, होगा सौभाग्य का उदय

Ram Navami 2025:R Chaitra Navratri 2025 के अंतिम दिन Ram Navami Festival का पावन पर्व मनाया जाता है। इस बार Ram Navami Date रविवार, 06 अप्रैल 2025 को है। शास्त्रों के अनुसार हिन्दुओं के आराध्य और Lord Vishnu Avatar भगवान श्रीराम ने त्रेता युग में चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को Madhyahna Muhurat (Midday Time) में जन्म लिया था। इसी दिन का उत्सव मनाने के लिए हर साल चैत्र माह में नवरात्र की नवमी तिथि पर रामनवमी मनाई जाती है। इस दिन पूरी दुनिया के Shri Ram Devotees अपने आराध्य Maryada Purushottam Lord Rama की पूरे मन और श्रद्धा से पूजा करते हैं। इस दिन भगवान के जन्म समय यानी मध्याह्न बेला (Midday Puja Time) तक Ram Navami Vrat (Fasting) रखा जाता है। Lord Rama साहस और वीरता का पर्याय हैं। उनकी पूजा से व्यक्ति में Inner Courage and Strength का संचार होता है। श्रीराम की छवि मर्यादा पुरुषोत्तम की है, जिनके पूजन से घर में Peace, Prosperity, and Happiness का वातावरण निर्मित होता है। इसलिए भगवान राम के आशीर्वाद को पाने के लिए Ram Navami Puja Vidhi (Rituals) से भगवान श्रीराम की पूजा करनी चाहिए। पूजा के साथ ही Lord Ram Mantra Chanting करने का भी विधान है। इस आलेख में हम आपको वे अत्यंत प्रभावशाली 108 Powerful Shri Ram Mantras बता रहे हैं, जिनके जाप से आपका कल्याण होगा। 1. ॐ परस्मै ब्रह्मने नम: 2. ॐ सर्वदेवात्मकाय नमः 3. ॐ परमात्मने नम: 4. ॐ सर्वावगुनवर्जिताया नम: 5. ॐ विभिषनप्रतिश्थात्रे नम: 6. ॐ जरामरनवर्जिताया नम: 7. ॐ यज्वने नम: 8. ॐ सर्वयज्ञाधिपाया नम: 9. ॐ धनुर्धराया नम: 10. ॐ पितवाससे नम: 11. ॐ शुउराया नम: 12. ॐ सुंदराया नम: 13. ॐ हरये नम: 14. ॐ सर्वतिइर्थमयाया नम: 15. ॐ जितवाराशये नम: 16. ॐ राम सेतुक्रूते नम: 17. ॐ महादेवादिपुउजिताया नम: 18. ॐ मायामानुश्हा चरित्राया नम: 19. ॐ धिइरोत्तगुनोत्तमाया नम: 20. ॐ अनंतगुना गम्भिइराया नम: 21. ॐ राघवाया नम: 22. ॐ पुउर्वभाश्हिने नम: 23. ॐ मितभाश्हिने नम: 24. ॐ स्मितवक्त्राया नम: 25. ॐ पुरान पुरुशोत्तमाया नम: 26. ॐ अयासाराया नम: 27. ॐ पुंयोदयाया नम: 28. ॐ महापुरुष्हाय नम: 29. ॐ परमपुरुष्हाय नम: 30. ॐ आदिपुरुष्हाय नम: 31. ॐ स्म्रैता सर्वाघा नाशनाया नम: 32. ॐ सर्वपुंयाधिका फलाया नम: 33. ॐ सुग्रिइवेप्सिता राज्यदाया नम: 34. ॐ सर्वदेवात्मकाया परस्मै नम: 35. ॐ पाराया नम: 36. ॐ पारगाया नम: 37. ॐ परेशाया नम: 38. ॐ परात्पराया नम: 39. ॐ पराकाशाया नम: 40. ॐ परस्मै धाम्ने नम: 41. ॐ परस्मै ज्योतिश्हे नम: 42. ॐ सच्चिदानंद विग्रिहाया नम: 43. ॐ महोदराया नम: 44. ॐ महा योगिने नम: 45. ॐ मुनिसंसुतसंस्तुतया नम: 46. ॐ ब्रह्मंयाया नम: 47. ॐ सौम्याय नम: 48. ॐ सर्वदेवस्तुताय नम: 49. ॐ महाभुजाय नम: 50. ॐ महादेवाय नम: 51. ॐ राम मायामारिइचहंत्रे नम: 52. ॐ राम मृतवानर्जीवनया नम: 53. ॐ सर्वदेवादि देवाय नम: 54. ॐ सुमित्रापुत्र सेविताया नम: 55. ॐ राम जयंतत्रनवरदया नम: 56. ॐ चित्रकुउता समाश्रयाया नम: 57. ॐ राम राक्षवानरा संगथिने नम: 58. ॐ राम जगद्गुरवे नम: 59. ॐ राम जितामित्राय नम: 60. ॐ राम जितक्रोधाय नम: 61. ॐ राम जितेंद्रियाया नम: 62. ॐ वरप्रदाय नम: 63. ॐ पित्रै भक्ताया नम: 64. ॐ अहल्या शाप शमनाय नम: 65. ॐ दंदकारंय पुण्यक्रिते नम: 66. ॐ धंविने नम: 67. ॐ त्रिलोकरक्षकाया नम: 68. ॐ पुंयचारित्रकिइर्तनाया नमः 69. ॐ त्रिलोकात्मने नमः 70. ॐ त्रिविक्रमाय नमः 71. ॐ वेदांतसाराय नमः 72. ॐ तातकांतकाय नमः 73. ॐ जामद्ग्ंया महादर्पदालनाय नमः 74. ॐ दशग्रिइवा शिरोहराया नमः 75. ॐ सप्तताला प्रभेत्त्रे नमः 76. ॐ हरकोदांद खान्दनाय नमः 77. ॐ विभीषना परित्रात्रे नमः 78. ॐ विराधवाधपन दिताया नमः 79. ॐ खरध्वा.सिने नमः 80. ॐ कौसलेयाय नमः 81. ॐ सदाहनुमदाश्रिताय नमः 82. ॐ व्रतधाराय नमः 83. ॐ सत्यव्रताय नमः 84. ॐ सत्यविक्रमाय नमः 85. ॐ सत्यवाचे नमः 86. ॐ वाग्मिने नमः 87. ॐ वालिप्रमाथानाया नमः 88. ॐ शरणात्राण तत्पराया नमः 89. ॐ दांताय नमः 90. ॐ विश्वमित्रप्रियाय नमः 91. ॐ जनार्दनाय नमः 92. ॐ जितामित्राय नमः 93. ॐ जैत्राय नमः 94. ॐ जानकिइवल्लभाय नमः 95. ॐ रघुपुंगवाय नमः 96. ॐ त्रिगुनात्मकाया नमः 97. ॐ त्रिमुर्तये नमः 98. ॐ दुउश्हना त्रिशिरो हंत्रे नमः 99. ॐ भवरोगस्या भेश्हजाया नमः 100. ॐ वेदात्मने नमः 101. ॐ राजीवलोचनाय नमः 102. ॐ राम शाश्वताया नमः 103. ॐ राम चंद्राय नमः 104. ॐ राम भद्राया नमः 105. ॐ राम रामाय नमः 106. ॐ सर्वदेवस्तुत नमः 107. ॐ महाभाग नमः 108. ॐ मायामारीचहन्ता नमः इन मंत्रों के उच्चारण के बाद भगवान राम की आरती करें : आरती कीजै श्री रघुवर जी की,सत् चित् आनन्द शिव सुन्दर की। दशरथ तनय कौशल्या नन्दन,सुर मुनि रक्षक दैत्य निकन्दन। अनुगत भक्त भक्त उर चन्दन,मर्यादा पुरुषोतम वर की। आरती कीजै श्री रघुवर जी की... निर्गुण सगुण अनूप रूप निधि,सकल लोक वन्दित विभिन्न विधि। हरण शोक-भय दायक नव निधि,माया रहित दिव्य नर वर की। आरती कीजै श्री रघुवर जी की... जानकी पति सुर अधिपति जगपति,अखिल लोक पालक त्रिलोक गति। विश्व वन्द्य अवन्ह अमित गति,एक मात्र गति सचराचर की। आरती कीजै श्री रघुवर जी की... शरणागत वत्सल व्रतधारी,भक्त कल्प तरुवर असुरारी। नाम लेत जग पावनकारी,वानर सखा दीन दुख हर की। आरती कीजै श्री रघुवर जी की... राम जी की आरती श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन,हरण भवभय दारुणम्। नव कंज लोचन, कंज मुख करकंज पद कंजारुणम्॥ श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन... कन्दर्प अगणित अमित छवि,नव नील नीरद सुन्दरम्। पट पीत मानहुं तड़ित रूचि-शुचिनौमि जनक सुतावरम्॥ श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन... भजु दीनबंधु दिनेशदानव दैत्य वंश निकन्दनम्। रघुनन्द आनन्द कन्द कौशलचन्द्र दशरथ नन्द्नम्॥ श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन... सिर मुकुट कुंडल तिलकचारू उदारु अंग विभूषणम्। आजानुभुज शर चाप-धर,संग्राम जित खरदूषणम्॥ श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन... इति वदति तुलसीदास,शंकर शेष मुनि मन रंजनम्। मम ह्रदय कंज निवास कुरु,कामादि खल दल गंजनम्॥ श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन... मन जाहि राचेऊ मिलहिसो वर सहज सुन्दर सांवरो। करुणा निधान सुजानशील सनेह जानत रावरो॥ श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन... एहि भाँति गौरी असीससुन सिय हित हिय हरषित अली। तुलसी भवानिहि पूजी पुनि-पुनिमुदित मन मन्दिर चली॥ श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन...

महावीर जयंती 2025 शुभकामनाएं: अपने प्रियजनों को भेजें ये सुंदर और प्रेरणादायक विशेज

Mahavir Jayanti 2025 Wishes in Hindi: महावीर जयंती Jain Religion Festival के सबसे पवित्र और महत्वपूर्ण पर्वों में से एक है। यह पर्व जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर Lord Mahavir की जयंती के रूप में मनाया जाता है। Mahavir Jayanti 2025 Date की बात करें तो 2025 में यह पर्व 10 अप्रैल को मनाया जाएगा। इस दिन श्रद्धालु भगवान महावीर के जीवन, उपदेशों और Principles of Non-Violence (Ahimsa), Truth (Satya), Celibacy (Brahmacharya), Non-Possessiveness (Aparigraha) जैसे सिद्धांतों को याद करते हैं और उनके बताए मार्ग पर चलने का संकल्प लेते हैं। इस पावन अवसर पर लोग एक-दूसरे को Mahavir Jayanti Greetings in Hindi भेजते हैं। Lord Mahavir Teachings ने हमें सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी। उनके उपदेश आज भी जीवन को शांत, संयमित और सफल बनाने का रास्ता दिखाते हैं। ऐसे में, जब आप अपने दोस्तों और परिवार को Happy Mahavir Jayanti Quotes भेजते हैं, तो यह न सिर्फ शुभकामनाएं होती हैं, बल्कि उनके जीवन में सकारात्मकता का संदेश भी बन जाती हैं। अगर आप भी अपने प्रियजनों को इस महावीर जयंती पर कुछ खास और दिल से भेजना चाहते हैं, तो यहां आपके लिए हैं Top 20 Mahavir Jayanti Wishes, जो आप WhatsApp, Facebook, Instagram Story या Status for Mahavir Jayanti के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। महावीर जयंती 2025 शुभकामना संदेश हिंदी में (Mahavir Jayanti Wishes in Hindi): 1. "अहिंसा का पाठ पढ़ाया, सत्य का मार्ग दिखाया, भगवान महावीर ने जीवन का सार सिखाया। महावीर जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं!" 2. "सत्य, अहिंसा और करुणा की प्रेरणा, भगवान महावीर का यही है मंत्र अद्वितीय। महावीर जयंती की मंगलकामनाएं।" 3. "जो सत्य और त्याग के पथ पर चले, महावीर वही जो सबका दुःख हर ले। Happy Mahavir Jayanti 2025!" 4. "अहिंसा परमो धर्मः, यही मंत्र अपनाओ हर कदम। भगवान महावीर की जयंती पर हार्दिक शुभकामनाएं!" 5. "महावीर के विचारों को अपनाएं, जीवन को सुंदर और शांत बनाएं। महावीर जयंती की शुभकामनाएं!" 6. "भगवान महावीर के सिद्धांतों पर चलें, अंदर की शांति और सच्चाई से मिलें। Mahavir Jayanti Mubarak Ho!" 7. "चलो अहिंसा का दीप जलाएं, महावीर स्वामी की शिक्षाओं को अपनाएं। महावीर जयंती की हार्दिक बधाई!" 8. "दया, करुणा और संयम की राह पर चलो, जीवन को सफल और सुखी बना लो। महावीर जयंती की मंगलकामनाएं।" 9. "सत्य और प्रेम का हो मार्गदर्शन, हर जीवन में हो शांति और अनुशासन। Mahavir Jayanti Wishes in Hindi!" 10. "बिना हिंसा के भी जीत होती है, ये भगवान महावीर ने दुनिया को सिखाया है। महावीर जयंती पर शांति और प्रेम की शुभकामनाएं।" महावीर जयंती व्हाट्सएप स्टेटस 2025 के लिए (Mahavir Jayanti WhatsApp Status in Hindi): 11. "सत्य अहिंसा का पाठ पढ़ाएं, हर दिल में करुणा जगाएं। Happy Mahavir Jayanti 2025!" 12. "अहिंसा का संदेश फैलाओ, महावीर की राह अपनाओ। महावीर जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं!" 13. "ना हो क्रोध, ना हो छल, बस हो शांति और सबका कल्याण। महावीर जयंती मुबारक हो!" 14. "भगवान महावीर की शिक्षाएं सदा अमर रहें, हम सभी का जीवन उज्ज्वल बनाएं।" 15. "जो अंदर जीत ले, वही सच्चा विजेता। महावीर ने हमें यही सिखाया है। शुभ महावीर जयंती!" 16. "संयम से जीवन जीना, यही है असली सफलता की कुंजी। महावीर जयंती पर यही सीख अपनाएं।" 17. "हर घर में हो अहिंसा की बात, हर मन में हो शांति की बात। महावीर जयंती की ढेरों शुभकामनाएं!" 18. "त्याग और तपस्या की प्रतिमूर्ति, भगवान महावीर को शत्-शत् नमन।" 19. "सभी को मिले शांति और संयम का आशीर्वाद, महावीर जयंती की बहुत-बहुत बधाई।" 20. "महावीर स्वामी की शिक्षाएं हैं अमूल्य धरोहर, चलो उनके पदचिन्हों पर चलकर जीवन बनाएं बेहतर।"

भगवान महावीर चालीसा : जय महावीर दया के सागर

Mahavir Chalisa in Hindi: Jain Dharma अनुसार Bhagwan Mahavir Jain Religion के 24वें Tirthankar हैं। वर्ष 2025 में Mahavir Jayanti 10 अप्रैल, Thursday को मनाई जाएगी। यह दिन Lord Mahavir Birth Anniversary की याद में मनाया जाता है। Mahavir Swami का मानना था कि हमें दूसरों के प्रति वहीं thoughts and behavior रखना चाहिए जो हम स्वयं के लिए पसंद करते हैं। Bhagwan Mahavir का Ghantakarna Mahavir Mool Mantra सबसे अधिक powerful mantra माना गया है। श्री महावीर चालीसा : Mahavir Chalisa दोहा : सिद्ध समूह नमों सदा, अरु सुमरूं अरहन्त। निर आकुल निर्वांच्छ हो, गए लोक के अंत ॥ मंगलमय मंगल करन, वर्धमान महावीर। तुम चिंतत चिंता मिटे, हरो सकल भव पीर ॥ चौपाई : जय महावीर दया के सागर, जय श्री सन्मति ज्ञान उजागर। शांत छवि मूरत अति प्यारी, वेष दिगम्बर के तुम धारी। कोटि भानु से अति छबि छाजे, देखत तिमिर पाप सब भाजे। महाबली अरि कर्म विदारे, जोधा मोह सुभट से मारे। काम क्रोध तजि छोड़ी माया, क्षण में मान कषाय भगाया। रागी नहीं नहीं तू द्वेषी, वीतराग तू हित उपदेशी। प्रभु तुम नाम जगत में सांचा, सुमरत भागत भूत पिशाचा। राक्षस यक्ष डाकिनी भागे, तुम चिंतत भय कोई न लागे। महा शूल को जो तन धारे, होवे रोग असाध्य निवारे। व्याल कराल होय फणधारी, विष को उगल क्रोध कर भारी। महाकाल सम करै डसन्ता, निर्विष करो आप भगवन्ता। महामत्त गज मद को झारै, भगै तुरत जब तुझे पुकारै। फार डाढ़ सिंहादिक आवै, ताको हे प्रभु तुही भगावै। होकर प्रबल अग्नि जो जारै, तुम प्रताप शीतलता धारै। शस्त्र धार अरि युद्ध लड़न्ता, तुम प्रसाद हो विजय तुरन्ता। पवन प्रचण्ड चलै झकझोरा, प्रभु तुम हरौ होय भय चोरा। झार खण्ड गिरि अटवी मांहीं, तुम बिनशरण तहां कोउ नांहीं। वज्रपात करि घन गरजावै, मूसलधार होय तड़कावै। होय अपुत्र दरिद्र संताना, सुमिरत होत कुबेर समाना। बंदीगृह में बँधी जंजीरा, कठ सुई अनि में सकल शरीरा। राजदण्ड करि शूल धरावै, ताहि सिंहासन तुही बिठावै। न्यायाधीश राजदरबारी, विजय करे होय कृपा तुम्हारी। जहर हलाहल दुष्ट पियन्ता, अमृत सम प्रभु करो तुरन्ता। चढ़े जहर, जीवादि डसन्ता, निर्विष क्षण में आप करन्ता। एक सहस वसु तुमरे नामा, जन्म लियो कुण्डलपुर धामा। सिद्धारथ नृप सुत कहलाए, त्रिशला मात उदर प्रगटाए। तुम जनमत भयो लोक अशोका, अनहद शब्दभयो तिहुँलोका। इन्द्र ने नेत्र सहस्र करि देखा, गिरी सुमेर कियो अभिषेखा। कामादिक तृष्णा संसारी, तज तुम भए बाल ब्रह्मचारी। अथिर जान जग अनित बिसारी, बालपने प्रभु दीक्षा धारी। शांत भाव धर कर्म विनाशे, तुरतहि केवल ज्ञान प्रकाशे। जड़-चेतन त्रय जग के सारे, हस्त रेखवत्‌ सम तू निहारे। लोक-अलोक द्रव्य षट जाना, द्वादशांग का रहस्य बखाना। पशु यज्ञों का मिटा कलेशा, दया धर्म देकर उपदेशा। अनेकांत अपरिग्रह द्वारा, सर्वप्राणि समभाव प्रचारा। पंचम काल विषै जिनराई, चांदनपुर प्रभुता प्रगटाई। क्षण में तोपनि बाढि-हटाई, भक्तन के तुम सदा सहाई। मूरख नर नहिं अक्षर ज्ञाता, सुमरत पंडित होय विख्याता। सोरठा : करे पाठ चालीस दिन नित चालीसहिं बार। खेवै धूप सुगन्ध पढ़, श्री महावीर अगार ॥ जनम दरिद्री होय अरु जिसके नहिं सन्तान। नाम वंश जग में चले होय कुबेर समान ॥