Tara Kavacha Mantra (तारा-कवच)
तारा-कवच भैरव उवाच दिव्यं हि कबचं देवि ताराया: सर्व्वकामदम् । शृणुष्व परमं तत्तु तव स्नेहात् प्रकाशितम् ॥ टीका-भैरव ने कहा हे देवी! तारा देवी का दिव्य कवच सर्वकाम प्रद और श्नेष्ठ है । तुम्हारे प्रति स्नेह के कारण ही कहता हूँ सुनो। अक्षोभ्य ऋषिरित्यस्य छन्दस्त्रिष्टुबुदात्दृतम् । तारा भगवती देवी मंत्रसिद्धौ प्रकीतितम् ॥ इस कवच के ऋषि अक्षोभ्य हैं, छंद त्रिष्टुप् है देवता भगवती तारा हैं और मंत्र सिद्धियों में इसका विनियोग है । ओंकारों में शिर: पातु ब्रह्मरूपा महेश्वरी। ह्लीङ्कार: पातु ललाटे बीजरूपा महेश्वरी ॥ स्त्रींङ्कारः पातु वदने लज्जारूपा महेश्वरी । हुङ्कारः पातु हृदये तारिणी शत्त्किरूपधृक् ॥ टीका-- ॐ ब्रह्मरूपा महेश्वरी मेरे मस्तक कीं, ह्लीं बीजरूपा महेश्वरी मेरे ललाट की, स्त्री लज्जारूपा महेश्वरी मेरे मुख की और हूँ शत्त्किरूपधारिणी तारिणी मेरे हृदय की रक्षा करें । फट्कार: पातु -सर्व्वांगे सर्वसिद्धि फलप्रदा । खर्वा मां पातु देवेशी गण्डयुग्मे भयापहा ॥ लम्बोदरी संदा स्कन्धयुग्मे पातु महेश्वरी । व्याघ्र चर्मावृता कटिं पातु देवी शिवप्रिया ॥ टीका-फट् सर्वसिद्धि फलप्रदा सर्वांगस्वरूपिणी भयनाशिनी खर्वा देवी कपोलों की, महेश्वरी लम्बोदरी देवी दोनों कन्धो की और व्याघ्रचर्मावृता शिवप्रिया मेरी कटि (कमर) की रक्षा करें । पीनोन्नतस्तनी पातु पार्श्वयुग्मे महेश्वरी । रत्त्कवर्त्तुलनेत्रा च कटिदेशे सदावतु ॥ ललज्जिह्वा सदा पातु नाभौ मां भुवनेश्वरी । करालास्या सदा पातु लिङ्गेर्देवी हरप्रिया॥ टीका-पीनोन्नतस्तनी महेश्वरी दोनों पार्शव की, रक्तगोलनेत्र वाली कटि की, ललजिह्ना, भुवनेश्वरी नाभि की और करालवदना हरप्रिया मेरे लिगस्थान की सदैव रक्षा करें । विवादे कलहे चैव अग्नौ च रणमध्यतः । सर्व्वदा पातु मां देवी झिण्ठीरूपा वृकोदरी ॥ झिन्टीरूपा वृकोदरी देवी विवाद में कलह में अग्नि मध्य में तथा रणमध्य में सदैव मेरी रक्षा करें । सर्व्वदा पातु मां देवी स्वर्गे मर्त्त्ये रसातले । सर्व्वस्त्रभुषिता देवी सर्व्वदेवप्रपुजिता ॥ क्रीं क्रीं हुं हुं फट् २ पाहि पाहि समस्तत: ॥ टीका-सब देवताओं से पूजित समस्त--अस्त्रों से विभूषित देवी मेरी स्वर्ग, मर्त्य और रसातल में रक्षा करें । “क्रीं क्रीं हुँ हुँ फट् फट्” यह क्रीं बीजमंत्र मेरी सब ओर से रक्षा करे । कराला घोरदशना भीमनेत्रा वृकोदरी । अट्टहासा महाभागा विधूर्णितत्रिलोचना ॥। लम्बोदरी जगद्धात्री डाकिनी योगिनीयुता । लज्जारूपा योनिरूपा विकटा देवपूजिता ॥ पातु मां चण्डी मातंगी ह्युग्रचण्डा महेश्वरी ॥ टीका-महाकराल घोर दाँतोंवाली भयंकर नेत्रों और बृकोदरी (भेड़िये के समान उदर वाली) जोर से हँसने वाली, महाभाग वाली, घूर्णित तीन नेत्र वाली, लम्बायमान उदरवाली, जगत् की माता, डाकिनी योगिनियों से युत्त्क, लज्जारूप, योनिरूप, विकट तथा देवताओं से पूजित, उग्रचण्डा महेश्वरी मातंगी मेरी रक्षा करें । जले स्थले चान्तरिक्षे तथा च शत्रुमध्यतः । सर्व्वतः पातु मां देवी खड्गहस्ता जयप्रदा ॥ टीका-खड्ग धारिणी, जय देनेवाली देवी मेरी जल में, स्थल में, शून्य में; शत्रुओंके मध्यमें और अन्यान्य सभी स्थानों में रक्षा करें कवचं प्रपठेद्यस्तु धारयेच्छृणुयादपि । न विद्यते भयं तस्य त्रिषु लोकेषु पार्व्वति । टीका-जो व्यक्ति (साधक) इस कवच को पढ़ते हैं, धारण करते हैं अथवा सुनते हैं, हे पार्वती! उन्हें तीनों लोकों में कहीं भी भय नही रहता है । इति श्रीभाषाटीकासहितं ताराकव्चं संपूर्णम् ।
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