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Shri Radhashtakam || श्री राधाष्टकम् : A Heartfelt Chant to Worship Goddess Radha
Shri Radhashtakam (श्री राधाष्टकम्)
श्री राधाष्टकम एक भक्ति-प्रधान स्तोत्र है, जिसमें श्री राधा रानी की महिमा का वर्णन किया गया है। श्री राधा को भगवान श्रीकृष्ण की सबसे प्रिय गोपी और प्रेम की देवी माना जाता है। इस अष्टकम में उनके दिव्य सौंदर्य, करूणा, और प्रेमपूर्ण स्वभाव की स्तुति की गई है। श्री राधा रानी वृंदावन, बरसाना, और गोवर्धन पर्वत से गहराई से जुड़ी हुई हैं, जो भक्ति और प्रेम के प्रतीक पवित्र स्थान हैं। इस स्तोत्र में यमुना नदी और कृष्ण लीला का भी उल्लेख है, जो श्री राधा और श्रीकृष्ण के अलौकिक प्रेम को दर्शाते हैं। विशेष रूप से, श्री राधाष्टकम का पाठ श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, राधाष्टमी, और कार्तिक मास के दौरान करने से भक्तों को मोक्ष और परमात्मा की कृपा प्राप्त होती है।॥ श्री राधाष्टकम् ॥
(Shri Radhashtakam)
ॐ दिशिदिशिरचयन्तीं सञ्चयन्नेत्रलक्ष्मीं,
विलसितखुरलीभिः खञ्जरीटस्य खेलाम् ।
हृदयमधुपमल्लीं वल्लवाधीशसूनो-,
रखिलगुणगभीरां राधिकामर्चयामि ॥
पितुरिह वृषभानो रत्नवायप्रशस्तिं,
जगति किल सयस्ते सुष्ठु विस्तारयन्तीम् ।
व्रजनृपतिकुमारं खेलयन्तीं सखीभिः,
सुरभिनि निजकुण्डे राधिकामर्चयामि ॥
शरदुपचितराकाकौमुदीनाथकीर्त्ति-,
प्रकरदमनदीक्षादक्षिणस्मेरवक्त्राम् ।
नटयदभिदपाङ्गोत्तुङ्गितानं गरङ्गां,
वलितरुचिररङ्गां राधिकामर्चयामि ॥
विविधकुसुमवृन्दोत्फुल्लधम्मिल्लधाटी-,
विघटितमदघृर्णात्केकिपिच्छुप्रशस्तिम् ।
मधुरिपुमुखबिम्बोद्गीर्णताम्बूलराग-,
स्फुरदमलकपोलां राधिकामर्चयामि ॥
नलिनवदमलान्तःस्नेहसिक्तां तरङ्गा-,
मखिलविधिविशाखासख्यविख्यातशीलाम् ।
स्फुरदघभिदनर्घप्रेममाणिक्यपेटीं,
धृतमधुरविनोदां राधिकामर्चयामि ॥
अतुलमहसिवृन्दारण्यराज्येभिषिक्तां,
निखिलसमयभर्तुः कार्तिकस्याधिदेवीम् ।
अपरिमितमुकुन्दप्रेयसीवृन्दमुख्यां,
जगदघहरकीर्तिं राधिकामर्चयामि ॥
हरिपदनखकोटीपृष्ठपर्यन्तसीमा-,
तटमपि कलयन्तीं प्राणकोटेरभीष्टम् ।
प्रमुदितमदिराक्षीवृन्दवैदग्ध्यदीक्षा-,
गुरुमपि गुरुकीर्तिं राधिकामर्चयामि ॥
अमलकनकपट्टीदृष्टकाश्मीरगौरीं,
मधुरिमलहरीभिः सम्परीतां किशोरीम् ।
हरिभुजपरिरब्ध्वां लघ्वरोमाञ्चपालीं,
स्फुरदरुणदुकूलां राधिकामर्चयामि ॥
तदमलमधुरिम्णां काममाधाररूपं,
परिपठति वरिष्ठं सुष्ठु राधाष्टकं यः ।
अहिमकिरणपुत्रीकूलकल्याणचन्द्रः,
स्फुटमखिलमभीष्टं तस्य तुष्टस्तनोति ॥
॥ इति श्रीराधाष्टकं सम्पूर्णम् ॥
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