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Sudarshan Ashtottara Sata Naam Stotram || सुदर्शन अष्टोत्तर शत नाम स्तोत्रम् : Full Lyrics with Benefits
Sudarshan Ashtottara Sata Naam Stotram (सुदर्शन अष्टोत्तर शत नाम स्तोत्रम्)
Sudarshan Ashtottara Sata Naam Stotram भगवान Vishnu के Sudarshan Chakra की महिमा और शक्ति का वर्णन करता है, जिसे "Divine Weapon" और "Protector of Dharma" के रूप में जाना जाता है। इस स्तोत्र का पाठ नकारात्मक ऊर्जा, बुरी शक्तियों और शत्रुओं से रक्षा के लिए किया जाता है। यह स्तोत्र "Sudarshan Chakra Hymn" और "Divine Protection Prayer" के रूप में प्रसिद्ध है। इसके पाठ से मानसिक शांति, सकारात्मक ऊर्जा और सुरक्षा प्राप्त होती है। इसे "Sacred Chant for Protection" और "Lord Vishnu Devotional Hymn" के रूप में पढ़ने से जीवन में सफलता और आध्यात्मिक जागरूकता बढ़ती है।सुदर्शन अष्टोत्तर शत नाम स्तोत्रम्
(Sudarshan Ashtottara Sata Naam Stotram)
सुदर्शनश्चक्रराजः तेजोव्यूहो महाद्युतिः ।
सहस्रबाहु-र्दीप्तांगः अरुणाक्षः प्रतापवान् ॥ 1॥
अनेकादित्यसंकाशः प्रोद्यज्ज्वालाभिरंजितः ।
सौदामिनी-सहस्राभः मणिकुंडल-शोभितः ॥ 2॥
पंचभूतमनोरूपो षट्कोणांतर-संस्थितः ।
हरांतः करणोद्भूत-रोषभीषण-विग्रहः ॥ 3॥
हरिपाणिलसत्पद्मविहारारमनोहरः ।
श्राकाररूपस्सर्वज्ञः सर्वलोकार्चितप्रभुः ॥ 4॥
चतुर्दशसहस्रारः चतुर्वेदमयो-ऽनलः ।
भक्तचांद्रमसज्योतिः भवरोग-विनाशकः ॥ 5॥
रेफात्मको मकारश्च रक्षोसृग्रूषितांगकः ।
सर्वदैत्यग्रीवनाल-विभेदन-महागजः ॥ 6॥
भीमदंष्ट्रोज्ज्वलाकारो भीमकर्मा विलोचनः ।
नीलवर्त्मा नित्यसुखो निर्मलश्री-र्निरंजनः ॥ 7॥
रक्तमाल्यांबरधरो रक्तचंदनरूषितः ।
रजोगुणाकृतिश्शूरो रक्षःकुल-यमोपमः ॥ 8॥
नित्यक्षेमकरः प्राज्ञः पाषंडजनखंडनः ।
नारायणाज्ञानुवर्ती नैगमांतःप्रकाशकः ॥ 9॥
बलिनंदनदोर्दंड-खंडनो विजयाकृतिः ।
मित्रभावी सर्वमयो तमोविध्वंसकस्तथा ॥ 10॥
रजस्सत्त्वतमोद्वर्ती त्रिगुणात्मा त्रिलोकधृत् ।
हरिमायागुणोपेतो-ऽव्ययो-ऽक्षस्वरूपभाक् ॥ 11॥
परमात्मा परंज्योतिः पंचकृत्य-परायणः ।
ज्ञानशक्ति-बलैश्वर्य-वीर्य-तेजः-प्रभामयः ॥ 12॥
सदसत्परमः पूर्णो वाङ्मयो वरदोऽच्युतः ।
जीवो गुरुर्हंसरूपः पंचाशत्पीठरूपकः ॥ 13॥
मातृकामंडलाध्यक्षो मधुध्वंसी मनोमयः ।
बुद्धिरूपश्चित्तसाक्षी सारो हंसाक्षरद्वयः ॥ 14॥
मंत्र-यंत्र-प्रभावज्ञो मंत्र-यंत्र-मयो विभुः ।
स्रष्टा क्रियास्पद-श्शुद्धः आधारश्चक्र-रूपकः ॥ 15॥
निरायुधो ह्यसंरंभः सर्वायुध-समन्वितः ।
ओम्काररूपी पूर्णात्मा आंकारस्साध्य-बंधनः ॥ 16॥
ऐंकारो वाक्प्रदो वग्मी श्रींकारैश्वर्यवर्धनः ।
क्लींकारमोहनाकारो हुंफट्क्षोभणाकृतिः ॥ 17॥
इंद्रार्चित-मनोवेगो धरणीभार-नाशकः ।
वीराराध्यो विश्वरूपः वैष्णवो विष्णुरूपकः ॥ 18॥
सत्यव्रतः सत्यधरः सत्यधर्मानुषंगकः'
नारायणकृपाव्यूह-तेजश्चक्र-स्सुदर्शनः ॥ 19॥
॥ श्री सुदर्शनाष्टोत्तरशतनाम स्तोत्रं संपूर्णम्॥
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