No festivals today or in the next 14 days. 🎉
Narayaniyam Dashaka 95 (नारायणीयं दशक 95)
नारायणीयं दशक 95 (Narayaniyam Dashaka 95)
आदौ हैरण्यगर्भीं तनुमविकलजीवात्मिकामास्थितस्त्वं
जीवत्वं प्राप्य मायागुणगणखचितो वर्तसे विश्वयोने ।
तत्रोद्वृद्धेन सत्त्वेन तु गुणयुगलं भक्तिभावं गतेन
छित्वा सत्त्वं च हित्वा पुनरनुपहितो वर्तिताहे त्वमेव ॥1॥
सत्त्वोन्मेषात् कदाचित् खलु विषयरसे दोषबोधेऽपि भूमन्
भूयोऽप्येषु प्रवृत्तिस्सतमसि रजसि प्रोद्धते दुर्निवारा ।
चित्तं तावद्गुणाश्च ग्रथितमिह मिथस्तानि सर्वाणि रोद्धुं
तुर्ये त्वय्येकभक्तिश्शरणमिति भवान् हंसरूपी न्यगादीत् ॥2॥
संति श्रेयांसि भूयांस्यपि रुचिभिदया कर्मिणां निर्मितानि
क्षुद्रानंदाश्च सांता बहुविधगतयः कृष्ण तेभ्यो भवेयुः ।
त्वं चाचख्याथ सख्ये ननु महिततमां श्रेयसां भक्तिमेकां
त्वद्भक्त्यानंदतुल्यः खलु विषयजुषां सम्मदः केन वा स्यात् ॥3॥
त्वत्भक्त्या तुष्टबुद्धेः सुखमिह चरतो विच्युताशस्य चाशाः
सर्वाः स्युः सौख्यमय्यः सलिलकुहरगस्येव तोयैकमय्यः ।
सोऽयं खल्विंद्रलोकं कमलजभवनं योगसिद्धीश्च हृद्याः
नाकांक्षत्येतदास्तां स्वयमनुपतिते मोक्षसौख्येऽप्यनीहः ॥4॥
त्वद्भक्तो बाध्यमानोऽपि च विषयरसैरिंद्रियाशांतिहेतो-
र्भक्त्यैवाक्रम्यमाणैः पुनरपि खलु तैर्दुर्बलैर्नाभिजय्यः ।
सप्तार्चिर्दीपितार्चिर्दहति किल यथा भूरिदारुप्रपंचं
त्वद्भक्त्योघे तथैव प्रदहति दुरितं दुर्मदः क्वेंद्रियाणाम् ॥5॥
चित्तार्द्रीभावमुच्चैर्वपुषि च पुलकं हर्षवाष्पं च हित्वा
चित्तं शुद्ध्येत्कथं वा किमु बहुतपसा विद्यया वीतभक्तेः ।
त्वद्गाथास्वादसिद्धांजनसततमरीमृज्यमानोऽयमात्मा
चक्षुर्वत्तत्त्वसूक्ष्मं भजति न तु तथाऽभ्यस्तया तर्ककोट्या॥6॥
ध्यानं ते शीलयेयं समतनुसुखबद्धासनो नासिकाग्र-
न्यस्ताक्षः पूरकाद्यैर्जितपवनपथश्चित्तपद्मं त्ववांचम्।
ऊर्ध्वाग्रं भावयित्वा रविविधुशिखिनः संविचिंत्योपरिष्टात्
तत्रस्थं भावये त्वां सजलजलधरश्यामलं कोमलांगम् ॥7॥
आनीलश्लक्ष्णकेशं ज्वलितमकरसत्कुंडलं मंदहास-
स्यंदार्द्रं कौस्तुभश्रीपरिगतवनमालोरुहाराभिरामम् ।
श्रीवत्सांकं सुबाहुं मृदुलसदुदरं कांचनच्छायचेलं
चारुस्निग्धोरुमंभोरुहललितपदं भावयेऽहं भवंतम् ॥8॥
सर्वांगेष्वंग रंगत्कुतुकमिति मुहुर्धारयन्नीश चित्तं
तत्राप्येकत्र युंजे वदनसरसिजे सुंदरे मंदहासे
तत्रालीनं तु चेतः परमसुखचिदद्वैतरूपे वितन्व-
न्नन्यन्नो चिंतयेयं मुहुरिति समुपारूढयोगो भवेयम् ॥9॥
इत्थं त्वद्ध्यानयोगे सति पुनरणिमाद्यष्टसंसिद्धयस्ताः
दूरश्रुत्यादयोऽपि ह्यहमहमिकया संपतेयुर्मुरारे ।
त्वत्संप्राप्तौ विलंबावहमखिलमिदं नाद्रिये कामयेऽहं
त्वामेवानंदपूर्णं पवनपुरपते पाहि मां सर्वतापात् ॥10॥
Related to Vishnu
Shri Badrinathji Arti (भगवान् श्री बदरीनाथ जी की आरती)
भगवान श्री बद्रीनाथ जी की आरती हिंदू धर्म में भगवान विष्णु के बद्रीनारायण स्वरूप की वंदना है। बद्रीनाथ धाम, जो चारधाम यात्रा का महत्वपूर्ण हिस्सा है, को मोक्ष और दिव्यता का स्थान माना जाता है। इस आरती में भगवान विष्णु की कृपा, शांति, संपत्ति, और मोक्ष का गुणगान किया गया है। Badrinath Ji Aarti गाने से भक्तों को धार्मिक शुद्धि, आत्मिक शांति, और जीवन में स्थिरता की प्राप्ति होती है।Arti
Narayaniyam Dashaka 58 (नारायणीयं दशक 58)
नारायणीयं दशक 58 भगवान नारायण की महिमा का गुणगान करता है और उनकी कृपा का वर्णन करता है।Narayaniyam-Dashaka
Narayaniyam Dashaka 96 (नारायणीयं दशक 96)
नारायणीयं दशक 96 भगवान विष्णु की महिमा का गुणगान करता है और उनके अनंत गुणों का वर्णन करता है। यह अध्याय भक्तों को भगवान के प्रति असीम श्रद्धा और भक्ति से भर देता है।Narayaniyam-Dashaka
Narayaniyam Dashaka 99 (नारायणीयं दशक 99)
नारायणीयं दशक 99 भगवान विष्णु की कृपा और उनके भक्तों के प्रति उनकी करुणा का वर्णन करता है। यह अध्याय भगवान के अनंत प्रेम और करुणा को दर्शाता है।Narayaniyam-Dashaka
Narayaniyam Dashaka 77 (नारायणीयं दशक 77)
नारायणीयं दशक 77 भगवान नारायण की महिमा का गुणगान करता है और उनकी कृपा की प्रार्थना करता है।Narayaniyam-Dashaka
Narayaniyam Dashaka 85 (नारायणीयं दशक 85)
नारायणीयं का पचासीवां दशक भगवान विष्णु की महिमा और उनके अद्वितीय गुणों का वर्णन करता है। इस दशक में भगवान के विभिन्न रूपों और उनकी दिव्य लीलाओं का गुणगान किया गया है। भक्त भगवान की अनंत कृपा और उनकी दिव्यता का अनुभव करते हैं।Narayaniyam-Dashaka
Narayaniyam Dashaka 100 (नारायणीयं दशक 100)
नारायणीयं दशक 100 भगवान विष्णु के अवतारों और उनकी दिव्य लीलाओं का वर्णन करता है। यह अध्याय भक्तों को भगवान के अनंत रूपों और लीलाओं के प्रति श्रद्धा से भर देता है।Narayaniyam-Dashaka
Narayaniyam Dashaka 82 (नारायणीयं दशक 82)
नारायणीयं का बयासीवां दशक भगवान विष्णु के अनंत रूपों और उनकी सर्वव्यापकता का वर्णन करता है। इस दशक में भगवान की सर्वव्यापकता और उनके विभिन्न रूपों के माध्यम से उनकी महिमा का गुणगान किया गया है। भक्त भगवान की अनंत कृपा और उनकी दिव्यता का अनुभव करते हैं।Narayaniyam-Dashaka