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Makar Sankranti 2025: Dates,Timings,Significance

मकर संक्रान्ति
संक्रान्ति का दिन भगवान सूर्य को समर्पित है और इस दिन को सूर्य देव की पूजा के लिये महत्वपूर्ण माना जाता है। यद्यपि हिन्दु कैलेण्डर में बारह संक्रान्तियाँ होती हैं परन्तु मकर संक्रान्ति अपने धार्मिक महत्व के कारण सभी संक्रान्तियों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। मकर संक्रान्ति की लोकप्रियता के कारण, ज्यादातर लोग इसे केवल संक्रान्ति ही कहते हैं।
मकर संक्रान्ति का प्रारम्भ एवम् महत्व
मकर संक्रान्ति एक महत्वपूर्ण दिन है क्योंकि वैदिक ज्योतिष के अनुसार इस दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है। हिन्दु धर्म में सूर्य को देवता माना जाता है जो कि पृथ्वी पर सभी जीवित प्राणियों का पोषण करते हैं। अतः इस दिन सूर्य देव की पूजा की जाती है। यद्यपि हिन्दु कैलेण्डर में उन सभी बारह दिनों को शुभ माना जाता है जब सूर्य देव एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं। इन बारह दिनों को सूर्य देव की पूजा करने, पवित्र जल निकायों में धार्मिक स्नान करने और दान इत्यादि कार्यों को करने के लिये महत्वपूर्ण माना जाता है। परन्तु जिस दिन सूर्य देव मकर राशि में प्रवेश प्रारम्भ करते हैं उस दिन को सूर्य देव की पूजा के लिये वर्ष का सर्वाधिक शुभ दिन माना जाता है।
बहुत से लोग मकर संक्रान्ति को गलत तौर पर उत्तरायण के दिन के रूप में मनाते हैं। जबकि मकर संक्रान्ति और उत्तरायण दो अलग-अलग खगोलीय और धार्मिक घटनायें हैं। हालाँकि हज़ारों वर्ष पहले (लाहिरी अयनांश के अनुसार वर्ष 285 सी.ई. में) मकर संक्रान्ति और उत्तरायण दोनों का दिन एक ही था। उत्तरायण शब्द उत्तर और अयन का संयोजन है जिसका अर्थ क्रमशः उत्तर और छह महीने की अवधि है। अत: उत्तरायण की परिभाषा के अनुसार यह शीत अयनकाल के दिन आता है।
इस दिन सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने के कारण मकर संक्रान्ति का विशेष महत्व है और उत्तरायण इसीलिये महत्वपूर्ण है क्योंकि सूर्य छः माह की अपनी दक्षिणी गोलार्ध की यात्रा पूर्ण कर उत्तरी गोलार्ध में प्रवेश करते हैं। आधुनिक भारत में, लोगों ने किसी भी धार्मिक गतिविधियों के लिये शीत अयनकाल का पालन करना बन्द कर दिया है, यद्यपि भीष्म पितामह ने अपने शरीर को छोड़ने के लिये उत्तरायण अर्थात शीत अयनकाल को ही चुना था। महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि उत्तरायण का दिन महाभारत युग में भी मकर संक्रान्ति के दिन के साथ मेल नहीं खा रहा था। उपरोक्त विवरण के आधार पर हम कह सकते हैं कि वैदिक ज्योतिष के अनुसार सूर्य देव की पूजा करने के लिये शीत अयनकाल का दिन भी धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण है।
मकर संक्रान्ति फसल कटाई का प्रमुख त्योहार है, यह भी एक गलत धारणा है। मकर संक्रान्ति का दिन लगातार शीत अयनकाल से दूर होता जा रहा है। उदाहरण के लिये वर्ष 1600 में, मकर संक्रान्ति 9 जनवरी को थी और वर्ष 2600 में, मकर संक्रान्ति 23 जनवरी को होगी। 2015 से 5000 वर्षों के बाद, अर्थात वर्ष 7015 में मकर संक्रान्ति 23 मार्च को मनायी जायेगी, जो कि भारत में सर्दियों के मौसम और वसन्त सम्पात के काफी समय बाद होगी। इससे ज्ञात होता है कि संक्रान्ति या अन्य हिन्दु त्यौहारों का मौसम के अनुसार मनाये जाने से कोई सम्बन्ध नहीं है। यद्यपि वर्तमान समय में भारत के कुछ क्षेत्रों में फसल कटाई का मौसम मकर संक्रान्ति के दौरान पड़ता है और इससे संक्रान्ति के उत्सव पर उत्साह में वृद्धि होती है।
संक्रान्ति के देवता
संक्रान्ति के अवसर पर सूर्य की देवता रूप में पूजा की जाती है। दक्षिण भारत में, संक्रान्ति के अगले दिन भगवान कृष्ण की भी पूजा की जाती है। दक्षिण भारत में प्रसिद्ध मान्यताओं के अनुसार, भगवान कृष्ण ने मकर संक्रान्ति के अगले दिन गोवर्धन पर्वत को उठाया था।
देवताओं के अलावा मकर संक्रान्ति के अवसर पर पालतू पशुओं जैसे कि गाय और बैलों की पूजा की जाती है।
संक्रान्ति दिनाँक और समय
मकर संक्रान्ति का दिन हिन्दु सौर कैलेण्डर के अनुसार तय किया जाता है। मकर संक्रान्ति तब मनायी जाती है जब सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है और यह दिन अधिकांश हिन्दु कैलेण्डरों में दसवें सौर माह के प्रथम दिन पड़ता है।
वर्तमान में संक्रान्ति का दिन ग्रेगोरियन कैलेण्डर के अनुसार 14 जनवरी या 15 जनवरी को पड़ता है। यदि संक्रान्ति का क्षण सूर्यास्त से पहले आता है तो संक्रान्ति को उसी दिन मनाया जाता है अन्यथा अगले दिन मनाया जाता है।
संक्रान्ति त्यौहारों की सूची
अधिकांश क्षेत्रों में संक्रान्ति उत्सव दो से चार दिनों तक चलता है। इन चार दिनों में प्रत्येक दिन संक्रान्ति उत्सव अलग-अलग नामों और अनुष्ठानों के साथ मनाया जाता है।
दिन 1 - लोहड़ी, माघी, भोगी पण्डिगाई
दिन 2 - मकर संक्रान्ति, पोंगल, पेड्डा पाण्डुगा, उत्तरायण, माघ बिहु
दिन 3 - मट्टू पोंगल, कनुमा पाण्डुगा
दिन 4 - कानुम पोंगल, मुक्कानुमा
संक्रान्ति पर अनुष्ठान
संक्रान्ति के अवसर पर कई अनुष्ठानों का आयोजन किया जाता है। ये अनुष्ठान एक राज्य से दूसरे राज्य और एक ही राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न होते हैं। यद्यपि अधिकांश क्षेत्रों की कुछ महत्वपूर्ण अनुष्ठान निम्नलिखित हैं -
मकर संक्रान्ति के एक दिन पहले अनुष्ठानिक अलाव/अग्नि जलाना
उगते हुये सूर्य देव की पूजा करना
पवित्र जल निकायों में पवित्र डुबकी लगाना अर्थात स्नान करना
पोंगल बनाकर प्रसाद के रूप में बांटना (तमिलनाडु में)
जरूरतमन्दों को दान या भिक्षा देना
पतंग उड़ाना विशेष रूप से गुजरात में
पालतू पशुओं की पूजा करना अर्थात सम्मान का भाव प्रकट करना
तिल और गुड़ की मिठाइयाँ बनाना
तेल स्नान करना (अधिकतर दक्षिण भारत में)
संक्रान्ति की क्षेत्रीय भिन्नता
मकर संक्रान्ति उन कुछ त्यौहारों में से एक है जिन्हें पूरे भारत में एकमत से मनाया जाता है। यद्यपि, मकर संक्रान्ति को मनाने के लिये प्रत्येक राज्य और क्षेत्र के अपने रीति-रिवाज और अनुष्ठान होते हैं साथ ही इससे जुड़ी स्थानीय किंवदन्तियाँ भी होती हैं। ज्ञात रहे कि संक्रान्ति की अवधारणा सभी क्षेत्रीय कैलेण्डरों में, चन्द्र या सौर कैलेण्डरों की भिन्नता होने के बावजूद, समान है अधिकांश क्षेत्रों में मकर संक्रान्ति का एक स्थानीय नाम होता है।
संक्रान्ति तमिलनाडु में
तमिलनाडु में, संक्रान्ति को पोंगल के रूप में जाना जाता है और इसे चार दिनों तक मनाया जाता है।
संक्रान्ति गुजरात में
गुजरात में, संक्रान्ति को उत्तरायण के रूप में मनाया जाता है।
संक्रान्ति आन्ध्र प्रदेश में
आन्ध्र प्रदेश में संक्रान्ति को पेड्डा पाण्डुगा के नाम से जाना जाता है और तमिलनाडु की तरह यहाँ भी इसे चार दिनों तक मनाया जाता है।
संक्रान्ति असम में
असम में, संक्रान्ति को माघ बिहु अथवा भोगाली बिहु अथवा मगहर दोमही के नाम से जाना जाता है।
संक्रान्ति पंजाब में
पंजाब में, संक्रान्ति को लोहड़ी के रूप में मनाया जाता है और मकर संक्रान्ति से एक दिन पहले मनाया जाता है।
संक्रान्ति कर्णाटक में
कर्णाटक में संक्रान्ति को संक्रान्थि और मकर संक्रमण के नाम से जाना जाता है।
हालाँकि, सभी क्षेत्रों में संक्रान्ति को प्रकाश और ऊर्जा के देवता सूर्य देव के प्रति आभार प्रकट करने के दिन के रूप में मनाया जाता है, जो पृथ्वी पर सभी जीवों का पोषण करते हैं।

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। कात्यायन्यै नेत्रत्रयाय वौषट् । कौमार्यै अस्त्राय फट् । भूर्भुवस्सुवरोमिति दिग्विमोकः ॥ समर्पणं गुह्यादि गुह्य गोप्त्री त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपम् । सिद्धिर्भवतु मे देवी त्वत्प्रसादान्मयि स्थिरान् ॥ 26 फलश्रुतिः नारायण उवाच । एतैर्नामशतैर्दिव्यैः स्तुता शक्रेण धीमता । आयुरारोग्यमैश्वर्यं अपमृत्युभयापहम् ॥ 27 ॥ क्षयापस्मारकुष्ठादि तापज्वरनिवारणम् । चोरव्याघ्रभयं तत्र शीतज्वरनिवारणम् ॥ 28 ॥ माहेश्वरमहामारी सर्वज्वरनिवारणम् । शीतपैत्तकवातादि सर्वरोगनिवारणम् ॥ 29 ॥ सन्निज्वरनिवारणं सर्वज्वरनिवारणम् । सर्वरोगनिवारणं सर्वमंगलवर्धनम् ॥ 30 ॥ शतमावर्तयेद्यस्तु मुच्यते व्याधिबंधनात् । आवर्तयन्सहस्रात्तु लभते वांछितं फलम् ॥ 31 ॥ एतत् स्तोत्रं महापुण्यं जपेदायुष्यवर्धनम् । विनाशाय च रोगाणामपमृत्युहराय च ॥ 32 ॥ द्विजैर्नित्यमिदं जप्यं भाग्यारोग्याभीप्सुभिः । नाभिमात्रजलेस्थित्वा सहस्रपरिसंख्यया ॥ 33 ॥ जपेत्स्तोत्रमिमं मंत्रं वाचां सिद्धिर्भवेत्ततः । अनेनविधिना भक्त्या मंत्रसिद्धिश्च जायते ॥ 34 ॥ संतुष्टा च भवेद्देवी प्रत्यक्षा संप्रजायते । सायं शतं पठेन्नित्यं षण्मासात्सिद्धिरुच्यते ॥ 35 ॥ 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