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भगवान् शिव के विभिन्न स्वरूपों का ध्यान

ll ॐ नमः शम्भवाय च l मयोभवाय च l नमः शङ्कराय च l मयस्कराय च l नमः शिवाय च l शिवतराय च ll
ll मंगलस्वरुप भगवान् शिव ll
कृपाललितविक्षणं स्मितमनोज्ञवत्राम्बुजं शशांकलयोज्ज्वलं शमितघोरपत्रयम।
करोतु किमपि स्फुरतपरमसौख्यसच्चिद्वपूर्धराधरसुताभुजोद्वलयितं महो मङ्गलम ।।
जिनकी कृपापूर्ण चितवन बड़ी ही सुन्दर है, जिसका मुखारविन्द मन्द मुस्कान की छटा से अत्यंत मनोहर दिखाई देता है, जो चन्द्रमा की कला से प्ररम उज्जवल है, जो आध्यात्मिक आदि तीनो तापों को शान्त कर देने में समर्थ हैं, जिनका स्वरुप सच्चिन्मय एवं परमानन्द से प्रकाशित होता है, तथा जी गिरिजानन्दिनी पार्वती के भुजपाश से आवेष्टित है, वह शिवनामक अनिवर्चनीय तेज पुंज सबका मंगल करें।
ll भगवान् शंकर ll
वन्दे वंदनतुष्टमानसमतिप्रेमप्रियं प्रमेदं पूर्ण पूर्णकरं प्रपूर्णनिखिलैश्वयैकवासं शिवम् ।
सत्यं सत्यमयं त्रिसत्यविभवं सत्यप्रियं सत्यदं विष्णुब्रह्मानुतं स्वकीयकृपयोपात्ताकृतिं शंकरम ।।
वंदना मात्र से जिनका मन प्रसन्न हो जाता है, जिन्हे प्रेम अत्यंत प्यारा है, जो प्रेम प्रदान करने वाले, पूर्णनन्दमय, भक्तों की अभिलाषा पूर्ण वाले, सम्पूर्ण ऐश्वर्यों के एकमात्र आवास स्थान कल्याणस्वरूप हैं, सत्य जिनका विग्रह है, जो सत्यमय हैं, जिनका ऐश्वर्य त्रिकाल बाधित है, जो सत्यप्रिय एवं सत्य प्रदाता हैं, ब्रह्मा और विष्णु जिनकी स्तुति करते हैं, स्वेच्छानुसार शरीर धारण करने वाले उन भगवान् शंकर की मैं वंदना करता हूँ।
ll गौरीशंकर भगवान् शिव ll
विश्वोद्भवस्तिथितलयादिषु हेतुमेकं गौरीपतिं विदिततत्व मनन्तकीर्तिम।
मायाश्रयं विगतमायमचिन्त्यरूपं बोधस्वरूपमलं हि शिवं नमामि ।।
जो विश्व की उत्त्पति, स्थिति और लय आदि के एक मात्र कारण हैं, गौरी गिरिजकुमारी उमा के पति हैं, तत्वज्ञ हैं, जिनकी कीर्ति का कहीं अंत नहीं है, जो माया के आश्रय होकर भी उससे अत्यंत दूर हैं तथा जिनका जिनका स्वरुप अचिन्त्य है, उन विमल बोध स्वरुप भगवान् शिव को मैं प्रणाम करता हूँ।
ll भगवान् महाकाल ll
सृष्टारोડपि प्रजानां प्रबलभवभयाद यं नमस्यन्ति देवा यश्चित्ते सम्प्रविष्टोડप्यवहितमनसां ध्यान मुक्तात्मना च।
लोकनामादिदेवा: स जयतु भगवाछ्रींमहाकालनामा विभ्राण: सोमलेखामहिवलययुतं व्यक्तलिंग कपालम ।।
प्रजा की सृष्टि करने वाले प्रजापति देव भी प्रबल संसार भय से मुक्त होने के लिए जिन्हे नमस्कार करते हैं, जो सावधान चित्तवाले ध्यान परायण महात्माओं के हृदयमंदिर में सुखपूर्वक विद्यमान होते हैं और चन्द्रमा की कला, सर्पों के कंगन तथा व्यक्त चिन्ह वाले कपाल को धारण करते हैं, सम्प्पोर्ण लोगों के आदि देव उन भगवान् महाकाल की जय हो।
ll भगवान् अर्धनारीश्वर ll
नीलप्रवालरुचिरं विलसतित्रनेत्रं पाशारुणोत्पलकपालत्रिशूलहस्तम।
अर्धाम्बिकेशमनिशं प्रविभक्तभूषं बालेंदुबद्धमुकुटं प्रणमामि रूपम ।।
श्री शंकर जी का शरीर नीलमणि और प्रवाल के सामान सुन्दर (नीललोहित) है, तीन नेत्र हैं, चारों हाथों में पाश, लाल कमल , कपाल और शूल हैं, आधे अंग में अम्बिका जी और आधे में महादेव जी हैं। दोनों अलग अलग श्रंगारों से सज्जित हैं, ललाट पर अर्धचंद्र है और मस्तक पर मुकुट सुशोभित है, ऐसे स्वरुप को नमस्कार है।
ll श्री नीलकंठ ll
बालाकार्यायुततेजस धृत जटा जुटेन्दु खण्डोज्ज्वलं नागेन्द्रे: कृतभूषणं जपवटीं शूलं कपालं करै: ।
खट्वाङ्ग दधतं त्रिनेत्रविल सप्तञ्चाननं सुन्दरं व्याघ्रत्वकपरिधानमब्जनिलयं श्री नीलकण्ठं भजे ।।
भगवान् नीलकंठ दस हज़ार बाल सूर्यों के समान तेजस्वी हैं, सी पर जटाजूट, ललाट पर अर्धचंद्र और मस्तक पर सापों का मुकुट धारण किये हैं, चारों हाथों में जपमाला, शूल नरकपाल और खट्वाङ्ग – मुद्रा है। तीन नेत्र हैं, पांच मुख हैं, अति सुन्दर विग्रह है, बाघम्बर धारण किये हुए हैं और सुन्दर पद्म पर विराजित हैं। इन श्रीनीलकण्ठदेव जी का भजन करना चाहिए।
ll श्री महामृत्युञ्जय ll
हस्ताभ्यां कलाशद्वयामृतरसैराप्लावयन्तं शिरो द्वाभ्यां तौ दधतं मृगाक्षवलये द्वाभ्यां वहन्तं परम।
अङ्गनस्य स्तकरद्वयामृतघटं कैलासकान्तं शिवं स्वच्छामभोजगतं नवेन्दुमुकुटं देवं त्रिनेत्रं भजे ।।
त्रियम्बकदेव अष्टभुज हैं। उनके एक हाथ में अक्षमाला और दुसरे में मृगमृदा है, दो हाथों से दो कलशों में अमृतरस लेकर उसमे अपने मस्तक को आप्लावित कर रहे हैं और दो हाथों से उन्ही कलशों को थामे हुए हैं। शेष दो हाथ उन्होंने अपने अङ्क पर रखे हुए हैं और उनमे दो अमृत पूर्ण घट हैं। वे श्वेत पद्म पर विराजमान हैं, मुकुट पर बालचंद्र सुशोभित हैं, मुख मंडल पर तीन नेत्र शोभायमान हैं। ऐसे देवाधिदेव कैलासपति श्री शंकर की मैं शरण ग्रहण करता हूँ।
ll नमस्तेस्तु भगवन्, विश्वेश्वराय महादेवाय, त्रैय्मबकाय त्रिपुरान्तकाय, त्रिकाग्नि कालाय,
कालाग्नि रुद्राय, नीलकण्ठाय मृत्युंजयाय, सर्वेश्वराय सदाशिवाय श्रीमान महादेवाय नमः ll
ll ॐ नमो भगवते वासुदेवाय: ll

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