No festivals today or in the next 14 days. 🎉

सूर्य व शनि की कुंभ राशि में युति, बढ़ेंगी हिंसक घटनाएं, जानिए क्या होगा 12 राशियों पर असर

12 फरवरी 2025 तक सूर्य मकर राशि पर रहेंगे तत्पश्चात 12 फरवरी 2025 को सूर्य का कुंभ संक्रांति काल प्रारंभ होगा
Sun and Saturn Conjunction in Aquarius: सूर्य का transit period ज्योतिषीय रूप से बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि सूर्य आत्मा के कारक ग्रह हैं जिसका प्रभाव प्रत्येक व्यक्ति पर पड़ता है। वर्तमान में सूर्य Capricorn zodiac sign पर गोचर कर रहे हैं। 12 फरवरी 2025 तक सूर्य मकर राशि पर रहेंगे तत्पश्चात 12 फरवरी 2025 को सूर्य का Kumbh Sankranti period प्रारंभ होगा अर्थात सूर्य Aquarius zodiac sign में प्रवेश करेंगे। सूर्य अपने पुत्र शनि की मूल त्रिकोण राशि कुंभ में 14 मार्च 2025 तक रहेंगे।
वर्तमान में Saturn planet कुंभ राशि में स्थित हैं, अर्थात एक वर्ष बाद फिर से Sun-Saturn Conjunction in Aquarius बनेगा। यह योग world events, राजनीति और 12 राशियों पर सकारात्मक एवं नकारात्मक प्रभाव डालेगा। कुंभ राशि पर सूर्य-शनि की युति ज्योतिषीय दृष्टि से शुभ नहीं मानी जाती। इसके प्रभाव से violent incidents में वृद्धि हो सकती है और राजनीति में बड़े बदलाव देखने को मिल सकते हैं। इस astrological conjunction से आतंकी घटनाएं बढ़ सकती हैं और बड़े नेताओं की सुरक्षा पर सवाल उठ सकते हैं।
12 राशियों पर प्रभाव:
🔸 Aries (मेष): मेष राशि वाले जातकों के लिए सूर्य एकादश भाव में गोचर करेंगे, जहां पर शनि ग्रह पहले से विराजमान हैं। लाभ भाव में सूर्य शनि की युति मेष राशि वाले जातकों के लिए बहुत अच्छी मानी जाती है| Sun-Saturn transit लाभ भाव में होगा, जिससे आय में वृद्धि होगी, मान-सम्मान मिलेगा और नए career opportunities मिल सकते हैं।
🔸 Taurus (वृषभ):वृषभ राशि वाले जातकों के लिए सूर्य एवं शनि की युति दशम भाव में होगी। दशम भाव में सूर्य शनि का योग पिता के स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं माना जाता तथा कार्य क्षेत्र में भी रुकावटों का सामना करना पड़ सकता है। दशम भाव में युति होने से job promotion के मौके बनेंगे लेकिन मेहनत अधिक करनी पड़ेगी। Father’s health पर ध्यान देना होगा।
🔸 Gemini (मिथुन): मिथुन राशि वाले जातकों के लिए सूर्य शनि की युति नवम भाव में होगी, नवम भाव में सूर्य शनि के योग से इन राशि वालों को यात्रा का अवसर प्राप्त हो सकता है तथा धार्मिक यात्रा के अवसर मिलेंगे | नवम भाव में युति से travel opportunities मिलेंगी, लेकिन भाई-बंधुओं से मतभेद हो सकता है।
🔸 Cancer (कर्क): कर्क राशि वाले जातकों के लिए सूर्य शनि की युति अष्टम भाव में होगी, अष्टम भाव में सूर्य शनि का योग स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं माना जाता। अतः इनको स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखना पड़ेगा, सूर्य शनि के प्रभाव से आर्थिक हानि के योग भी बन सकते हैं। अष्टम भाव में सूर्य-शनि का योग financial loss और स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म दे सकता है।
🔸 Leo (सिंह): सिंह राशि वाले जातकों के लिए सूर्य का गोचर सप्तम भाव में होगा, सप्तम भाव में सूर्य शनि के प्रभाव से जीवनसाथी के साथ में मतभेद हो सकते हैं तथा कार्य क्षेत्र में भी रुकावटों का सामना करना पड़ सकता है। सप्तम भाव में यह planetary conjunction वैवाहिक जीवन में तनाव और कार्यक्षेत्र में बाधाएं ला सकता है।
🔸 Virgo (कन्या): कन्या राशि वाले जातकों के लिए सूर्य शनि का योग छठे भाव में होगा। इसके प्रभाव से इनका शत्रु पक्ष निर्बल होगा, कर्ज से राहत मिल सकती है। छठे भाव में युति होने से loan clearance, रोजगार और financial growth होगी।
🔸 Libra (तुला): तुला राशि वाले जातकों के लिए सूर्य शनि का योग पंचम भाव में होगा, इसके प्रभाव से इनकी कार्य सिद्धि में रुकावटें आ सकती हैं तथा संतान सुख में भी कमी हो सकती है | पंचम भाव में सूर्य-शनि का योग संतान से मतभेद और career obstacles ला सकता है।
🔸 Scorpio (वृश्चिक): वृश्चिक राशि वाले जातकों के लिए सूर्य शनि का योग चतुर्थ भाव में होगा। इसके प्रभाव से उनके कार्य क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी तथा उच्च अधिकारियों के साथ में मतभेद हो सकते हैं| चतुर्थ भाव में युति होने से कार्यक्षेत्र में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी लेकिन debt relief मिल सकती है।
🔸 Sagittarius (धनु): धनु राशि वाले जातकों के लिए सूर्य शनि का योग तृतीय भाव में होगा। तृतीय भाव में सूर्य शनि के प्रभाव से व्यक्ति का पराक्रम, साहस, मान सम्मान में बढ़ोतरी होगी | तृतीय भाव में यह zodiac alignment साहस, मान-सम्मान में वृद्धि देगा और नए business opportunities देगा।
🔸 Capricorn (मकर): मकर राशि वाले जातकों के लिए सूर्य शनि का योग द्वितीय भाव में होगा, इसके प्रभाव से मकर राशि वालों के पारिवारिक मतभेद बढ़ सकते हैं।| द्वितीय भाव में यह युति family disputes और धन हानि का कारण बन सकती है।
🔸 Aquarius (कुंभ): कुंभ राशि वाले जातकों के लिए सूर्य शनि का योग लग्न भाव में होगा। इसके प्रभाव से कुंभ राशि वालों को मानसिक अशांति हो सकती है, जीवनसाथी के साथ में मतभेद हो सकते हैं| लग्न भाव में mental stress, वैवाहिक जीवन में तनाव और कार्यक्षेत्र में बाधाएं उत्पन्न कर सकता है।
🔸 Pisces (मीन): मीन राशि वाले जातकों के लिए सूर्य शनि द्वादश भाव में योग करेंगे इसके प्रभाव से उनकी विदेश यात्रा का योग बनेगा, पारिवारिक मतभेद हो सकते हैं। द्वादश भाव में यह foreign travel के योग बनाएगा और कर्ज से मुक्ति दिला सकता है।

Related Blogs

Shri Vindhyeshwari Ji Arti (श्री विन्ध्येश्वरी जी की आरती)

श्री विंध्येश्वरी जी की आरती माँ Vindhyeshwari के divine form और spiritual powers की स्तुति है। इस आरती में देवी Vindhyavasini, Durga, और Mahashakti की glory, grace, और भक्तों पर होने वाले blessings का वर्णन किया गया है। यह आरती भक्तों को spiritual growth, happiness, prosperity, और peace की प्राप्ति की प्रेरणा देती है। माँ Vindhyeshwari, जिन्हें Jagadamba, Shakti Swaroopini, और Durga Mata के नाम से भी जाना जाता है, उनकी पूजा भक्तों को divine protection, mental peace, और positive energy प्रदान करती है। भक्तगण माँ Vindhyavasini की इस आरती के माध्यम से देवी की कृपा प्राप्त करते हैं, जो inner strength, faith, और devotional bliss प्रदान करती है।
Arti

Durga Puja Vidhi (दुर्गा पूजा विधि)

दुर्गा पूजा विधि (Durga Puja Vidhi) हम नवरात्रि के दौरान मनाई जाने वाली दुर्गा पूजा विधि का विस्तृत विवरण प्रस्तुत कर रहे हैं। दी गई पूजा विधि में षोडशोपचार (दुर्गा पूजा विधि) के सभी सोलह चरण शामिल हैं। (1.) ध्यान और आवाहन (Dhyana and Avahana) पूजा देवी दुर्गा के ध्यान और आह्वान से शुरू होनी चाहिए। देवी दुर्गा की मूर्ति के सामने आवाहन मुद्रा (दोनों हथेलियों को जोड़कर और दोनों अंगूठों को अंदर की ओर मोड़कर बनाई जाती है) दिखाकर निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करना चाहिए। सर्वमंगला मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणि नमोअस्तु ते॥ ब्रह्मरूपे सदानंदे परमानंद स्वरूपिणी। द्रुत सिद्धिप्रदे देवि नारायणी नमोअस्तु ते॥ शरणागतदिनर्तपरितानपरायणे। सर्वस्यार्तिहारे देवी नारायणी नमोअस्तु ते॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः आवाहनं समर्पयामि॥ (2.) आसन (Asana) देवी दुर्गा का आह्वान करने के बाद, अंजलि में पांच फूल लें (दोनों हाथों की हथेलियां जोड़कर) और उन्हें मूर्ति के सामने छोड़ दें तथा निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए देवी दुर्गा को आसन प्रदान करें। अनेक रत्नसंयुक्तं नानामणिगणान्वितम्। कर्तस्वरमयं दिव्यमासनाम् प्रतिगृह्यतम॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः आसनं समर्पयामि॥ (3.) पाद्य प्रक्षालन (Padya Prakshalana) देवी दुर्गा को आसन प्रदान करने के पश्चात, निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए उनके पैर धोने के लिए जल अर्पित करें। गङ्गादि सर्वतीर्थेभ्यो मया प्रार्थनायाहृतम्। तोयमेतत्सुखस्पर्श पाद्यार्थम् प्रतिगृह्यताम्॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः पद्यं समर्पयामि॥ (4.) अर्घ्य समर्पण (Arghya Samarpan) पाद्य अर्पण के पश्चात, निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए देवी दुर्गा को सुगंधित जल अर्पित करें। गंधपुष्पक्षतैरयुक्तमार्घ्यं संपादितं मया। गृहाणा त्वं महादेवी प्रसन्न भव सर्वदा॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः अर्घ्यं समर्पयामि॥ (5.) आचमन समर्पण (Achamana Samarpan) अर्घ्य देने के पश्चात, निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए देवी दुर्गा को आचमन हेतु जल अर्पित करें। अचम्यतम त्वया देवी भक्ति मे ह्याचलं कुरु। इप्सितं मे वरं देहि परतं च परम गतिम्॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः आचमनीयं जलं समर्पयामि॥ (6.) स्नान (Snana) आचमन के पश्चात, निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए देवी दुर्गा को स्नान के लिए जल अर्पित करें। पयोदधि घृतं क्षीरं सीताय च समन्वितम्। पंचामृतमनेनाद्य कुरु स्नानं दयानिधे॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः स्ननीयं जलं समर्पयामि॥ (7.) वस्त्र (Vastra) स्नान के बाद, निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए देवी दुर्गा को नए वस्त्र के रूप में मोली अर्पित करें। वस्त्रं च सोम दैवत्यं लज्जायस्तु निवारणम्। मया निवेदितं भक्त्या गृहाणा परमेश्वरी॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः वस्त्रं समर्पयामि॥ (8.) आभूषण समर्पण (Abhushana Samarpan) वस्त्रार्पण के बाद, निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए देवी दुर्गा को आभूषण अर्पित करें। हार कङ्कण केयूर मेखला कुण्डलादिभिः। रत्नाढ्यं कुण्डलोपेतं भूषणं प्रतिगृह्यताम्॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः आभूषणं समर्पयामि॥ (9.) चन्दन समर्पण (Chandan Samarpan) आभूषण अर्पित करने के बाद, निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए देवी दुर्गा को चंदन अर्पित करें। परमानन्द सौभाग्यं परिपूर्ण दिगन्तरे। गृहाण परमं गन्धं कृपया परमेश्वरि॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः चन्दनं समर्पयामि॥ (10.) रोली समर्पण (Roli Samarpan) अब, निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए देवी दुर्गा को अखंड सौभाग्य के प्रतीक के रूप में रोली (कुमकुम) अर्पित करें। कुमकुमम कांतिदं दिव्यं कामिनी काम संभवम्। कुमकुमेनार्चिते देवि प्रसिदा परमेश्वरी॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः कुमकुमं समर्पयामि॥ (11.) कज्जलार्पण (Kajjalarpan) कुमकुम अर्पित करने के बाद, निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए देवी दुर्गा को काजल अर्पित करें। कज्जलं कज्जलं रम्यं सुभगे शान्तिकारिके। कर्पूर ज्योतिरुत्पन्नं गृहाण परमेश्वरि॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः कज्जलं समर्पयामि॥ (12.) मङ्गल द्रव्यार्पण (A.) सौभाग्य सूत्र (Sugandhita Dravya) काजल चढ़ाने के बाद, निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए देवी दुर्गा को सौभाग्य सूत्र अर्पित करें। सौभाग्यसूत्रं वरदे सुवर्ण मणि संयुते। कण्ठे बध्नामि देवेशि सौभाग्यं देहि मे सदा॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः सौभाग्यसूत्रं समर्पयामि॥ (B.) सुगन्धित द्रव्य (Sugandhita Dravya) अब, निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए देवी दुर्गा को सुगंध अर्पित करें। चन्दनागारू कर्पूरैः संयुतं कुंकुमं तथा। कस्तुर्यादि सुगंधश्च सर्वांगेषु विलेपनम्॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः सुगंधिताद्रव्यं समर्पयामि॥ (C.) हरिद्रा समर्पण (Haridra Samarpan) अब, निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए देवी दुर्गा को हल्दी अर्पित करें। हरिद्रारञ्जिते देवि सुख सौभाग्यदायिनी। तस्मात्त्वां पूजयाम्यत्र सुखशान्तिं प्रयच्छ मे॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः हरिद्राचूर्णं समर्पयामि॥ (D.) अक्षत समर्पण (Akshata Samarpan) हरिद्रा अर्पण के बाद, निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए देवी दुर्गा को अक्षत (अखंडित चावल) अर्पित करें। रंजितः कंकुमुद्येन न अक्षतश्चतिशोभनः। ममैषा देवी दानेना प्रसन्न भव शोभने॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः अक्षतं समर्पयामि॥ (13.) पुष्पांजलि (Pushpanjali) अब निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए देवी दुर्गा को पुष्पांजलि अर्पित करें। मंदरा पारिजातादि पाटलि केतकनि च। जाति चंपका पुष्पाणि गृहणेमणि शोभने॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः पुष्पाञ्जलिं समर्पयामि॥ (14.) बिल्वपत्र (Bilvapatra) अब निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए देवी दुर्गा को बिल्वपत्र अर्पित करें। अमृतोद्भव श्रीवृक्षो महादेवी! प्रिया सदा. बिल्वपत्रं प्रयच्छमि पवित्रं ते सुरेश्वरी॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः बिल्वपत्राणि समर्पयामि॥ (15.)धूप समर्पण (Dhoop Samarpan) अब निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए देवी दुर्गा को धूप अर्पित करें। दशांग गुग्गुला धुपं चंदनगारू संयुतम। समर्पितं मया भक्त्या महादेवी! प्रतिगृह्यतम॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः धूपमाघ्घ्रापयमि समर्पयामि॥ (16.) दीप समर्पण (Deep Samarpan) अब निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए देवी दुर्गा को दीप अर्पित करें। घृतवर्त्तिसमायुक्तं महतेजो महोज्ज्वलम्। दीपं दास्यामि देवेषी! सुप्रीता भव सर्वदा॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः दीपं समर्पयामि॥ (17.) नैवेद्य (Naivedya) अब निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए देवी दुर्गा को नैवेद्य अर्पित करें। अन्नं चतुर्विधं स्वादु रसैः षडभिः समन्वितम्। नैवेद्य गृह्यतम देवि! भक्ति मे ह्यचला कुरु॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः नैवेद्यं निवेदयामि॥ (18.) ऋतुफला (Rituphala) अब निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए देवी दुर्गा को ऋतुफल अर्पित करें। द्राक्षाखर्जुरा कदलीफला समग्रकपीठकम। नारिकेलेक्षुजाम्बदि फलानि प्रतिगृह्यतम॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः ऋतुफलनि समर्पयामि॥ (19.) आचमन (Achamana) अब निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए देवी दुर्गा को आचमन के लिए जल अर्पित करें। कामारिवल्लभे देवि करवाचमनमम्बिके। निरंतररामहम वन्दे चरणौ तव चंडिके॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः आचमनीयं जलं समर्पयामि॥ (20.) नारिकेल समर्पण (Narikela Samarpan) अब निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए देवी दुर्गा को नारिकेल (नारियल) अर्पित करें। नारिकेलम च नारंगिम कलिंगमंजीरं त्वा। उर्वारुक च देवेषि फलन्येतानि गह्यताम्॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः नारिकेलं समर्पयामि॥ (21.) तंबुला (Tambula) अब निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए देवी दुर्गा को ताम्बूल (पान और सुपारी) अर्पित करें। एलालवंगं कस्तूरी कर्पूरैः पुष्पवसीतम। विटिकं मुखवसार्थ समर्पयामि सुरेश्वरी॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः ताम्बूलं समर्पयामि॥ (22.) दक्षिणा (Dakshina) अब निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए देवी दुर्गा को दक्षिणा (उपहार) अर्पित करें। पूजा फल समृद्धियर्था तवग्रे स्वर्णमीश्वरी। स्थापितम् तेन मे प्रीता पूर्णं कुरु मनोरथम्॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः दक्षिणं समर्पयामि॥ (23.) पुस्तक पूजा एवं कन्या पूजन (Book worship and girl worship) (A.) पुस्तक पूजा (Pustak) दक्षिणा अर्पित करने के पश्चात, अब निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए दुर्गा पूजा के दौरान उपयोग में आने वाली पुस्तकों की पूजा करें। नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः। नमः प्रकृतियै भद्रयै नियतः प्रणतः स्मतम्॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः पुस्तक पूजयामि॥ (B.) दीप पूजा (Deep Puja) पुस्तकों की पूजा के पश्चात, निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए दुर्गा पूजा के दौरान दीप जलाएं और दीप देव की पूजा करें। शुभम् भवतु कल्याणमारोग्यं पुष्टिवर्धनम्। आत्मतत्त्व प्रबोधाय दीपज्योतिर्नमोअस्तु ते॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः दीपं पूजयामि॥ (C.) कन्या पूजन (Kanya Pujan) दुर्गा पूजा के दौरान कन्या पूजन का भी विशेष महत्व है। इसलिए दुर्गा पूजा के बाद कन्याओं को आमंत्रित कर उन्हें स्वादिष्ट भोजन कराया जाता है और दक्षिणा यानी उपहार दिए जाते हैं। कन्याओं को दक्षिणा देते समय निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करना चाहिए। सर्वस्वरूपे! सर्वेशे सर्वशक्ति स्वरूपिणी। पूजम गृहण कौमारी! जगन्मातरनमोअस्तु ते॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः कन्या पूजयामि॥ (24.) नीराजन (Nirajan) अब निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करने के पश्चात देवी दुर्गा की आरती करें। नीराजनं सुमंगल्यं कर्पूरेण समन्वितम्। चन्द्रार्कवह्नि सदृशं महादेवी! नमोअस्तु ते॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः कर्पूर निराजनं समर्पयामि॥ (25.) प्रदक्षिणा (Pradakshina) अब निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए फूलों से प्रतीकात्मक प्रदक्षिणा (देवी दुर्गा की बाएं से दाएं परिक्रमा) करें। प्रदक्षिणं त्रयं देवि प्रयत्नेन प्रकल्पितम्। पश्यद्य पावने देवि अम्बिकायै नमोअस्तु ते॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः प्रदक्षिणं समर्पयामि॥ (26.) क्षमापन (Kshamapan) अब निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए पूजा के दौरान हुई किसी भी ज्ञात-अज्ञात गलती के लिए देवी दुर्गा से क्षमा मांगें। अपराधा शतम् देवि मत्कृतम् च दीने दीने। क्षमायतम पावने देवी-देवेष नमोअस्तु ते॥
Puja-Vidhi

Devi Mahatmyam Argala Stotram (देवी माहात्म्यं अर्गला स्तोत्रम्)

Argala Stotram देवी Durga को समर्पित एक शक्तिशाली hymn है, जिसे अक्सर Chandi Path या Durga Saptashati के दौरान पाठ किया जाता है। यह stotram विभिन्न verses से बना है, जो माँ की विभिन्न forms का आह्वान कर protection, prosperity, victory, और removal of obstacles की प्रार्थना करते हैं। "Argala" शब्द का अर्थ "bolt" या "lock" होता है, और जिस प्रकार किसी मूल्यवान वस्तु को पाने के लिए lock को खोलना आवश्यक होता है, उसी प्रकार Argala Stotram का पाठ Divine Mother की grace और blessings को प्राप्त करने के लिए एक sacred practice माना जाता है।
Stotra

Narayaniyam Dashaka 78 (नारायणीयं दशक 78)

नारायणीयं दशक 78 भगवान नारायण की महिमा का वर्णन करता है और उनके आशीर्वाद की प्रार्थना करता है।
Narayaniyam-Dashaka

Shri Durga Mata Stuti (श्री दुर्गा माता स्तुति)

Durga Stuti: धार्मिक ग्रंथों के अनुसार तीनों काल को जानने वाले महर्षि वेद व्यास ने Maa Durga Stuti को लिखा था, उनकी Durga Stuti को Bhagavati Stotra नाम से जानते हैं। कहा जाता है कि महर्षि वेदव्यास ने अपनी Divine Vision से पहले ही देख लिया था कि Kaliyuga में Dharma का महत्व कम हो जाएगा। इस कारण Manushya नास्तिक, कर्तव्यहीन और अल्पायु हो जाएंगे। इसके कारण उन्होंने Veda का चार भागों में विभाजन भी कर दिया ताकि कम बुद्धि और कम स्मरण-शक्ति रखने वाले भी Vedas का अध्ययन कर सकें। इन चारों वेदों का नाम Rigveda, Yajurveda, Samaveda और Atharvaveda रखा। इसी कारण Vyasaji Ved Vyas के नाम से विख्यात हुए। उन्होंने ही Mahabharata की भी रचना की थी।
Stuti

Shiva Bhujanga Prayat Stotram (शिव भुजंग प्रयात स्तोत्रम्)

शिव भुजंग प्रयात स्तोत्रम भगवान शिव की अपार महिमा और उनकी अद्भुत शक्तियों का वर्णन करने वाला एक पवित्र स्तोत्र है। इसे संस्कृत भाषा में भुजंग प्रयात छंद में रचा गया है, जो अपने लय और माधुर्य के लिए प्रसिद्ध है। इस स्तोत्र में भगवान शिव को "Destroyer of Evil", "Lord of Meditation", और "Supreme God" के रूप में संबोधित किया गया है। "Shiva Mantras", "Hindu Prayers", और "Shiva Stotras" जैसे विषयों में रुचि रखने वाले पाठकों के लिए यह स्तोत्र अत्यंत प्रभावशाली है। यह स्तोत्र भगवान शिव के सौम्य और रौद्र रूपों की आराधना का माध्यम है, जो भक्तों को उनके संरक्षण और कृपा का अनुभव कराता है। शिव भुजंग प्रयात स्तोत्रम का पाठ करने से "spiritual awakening", "inner peace", और "divine blessings" प्राप्त होते हैं। यह स्तोत्र विशेष रूप से भगवान शिव के "Tandava", "Meditative State", और "Cosmic Power" का गुणगान करता है। "Mahadev Worship", "Shivratri Prayers", और "Shiva's Cosmic Dance" जैसे विषयों से प्रेरणा लेने वालों के लिए यह स्तोत्र जीवन में भक्ति और ऊर्जा का एक उत्कृष्ट स्रोत है।
Stotra

Uma Maheshwar Stotram (उमा महेश्वर स्तोत्रम्)

उमा महेश्वर स्तोत्रम् भगवान शिव और माता पार्वती की संयुक्त महिमा का वर्णन करता है। इसमें उमा (पार्वती) और महेश्वर (शिव) के दिव्य स्वरूप, उनकी करूणा, और उनकी शक्ति की स्तुति की गई है। यह स्तोत्र दर्शाता है कि शिव और शक्ति का मिलन सृष्टि के संतुलन और हर जीव के कल्याण का आधार है। कैलाश पर्वत पर निवास करने वाले इस दिव्य युगल का स्मरण जीवन के संकटों को दूर करता है और भक्तों को सुख, शांति, और समृद्धि प्रदान करता है। यह स्तोत्र कृष्णपक्ष और शुक्लपक्ष की पूजाओं में विशेष रूप से फलदायी माना जाता है। शिव और पार्वती के इस अद्वितीय स्वरूप की आराधना से जीवन में आध्यात्मिक संतुलन और सांसारिक सफलता का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
Stotra

Narayaniyam Dashaka 27 (नारायणीयं दशक 27)

नारायणीयं का सत्ताईसवां दशक भगवान विष्णु की असीम कृपा और उनके भक्तों के प्रति उनके अनुग्रह का वर्णन करता है। इस दशक में, भगवान की कृपा और उनके भक्तों के प्रति उनके प्रेम की महिमा की गई है। भक्त भगवान की अनंत कृपा और उनकी दिव्यता का अनुभव करते हैं।
Narayaniyam-Dashaka

Today Panchang

12 March 2025 (Wednesday)

Sunrise06:34 AM
Sunset06:28 PM
Moonrise04:49 PM
Moonset06:03 AM, Mar 13
Shaka Samvat1946 Krodhi
Vikram Samvat2081 Pingala