Dhumavati(10 Mahavidya) (धूमावती)

धूमावती धूमावती एक बार पार्वती ने महादेव जी से अपनी क्षुधा को निवारण करने का निवेदन किया। महादेव जी चुप रह गये। कई बार निवेदन करने पर भी जब देवाधिदेव ने उनकी ओर ध्यान नहीं दिया, तब उन्होंने महादेव जी को ही निगल लिया। उनके शरीर से धूमराशि निकली। तब शिवजी ने शिवा से कहा कि 'आपकी मनोहर मूर्ति बगला अब 'धूमावती' या 'धूम्रा' कही जायगी।' यह धूमावती वृद्धास्वरूपा, डरावनी और भूख-प्यास से व्याकुल स्त्री-विग्रहवत् अत्यन्त शक्तिमयी हैं। अभिचार कर्मों में इनकी उपासना का विधान है। विश्व की अमाङ्गल्यपूर्ण अवस्था की अधिष्ठात्री शक्ति 'धूमावती' हैं। ये विधवा समझी जाती हैं, अतएव इनके साथ पुरुष का वर्णन नहीं है। यहाँ पुरुष अव्यक्त है। चैतन्य, बोध आदि अत्यन्त तिरोहित होते हैं। इनके ध्यान में बताया गया है कि ये भगवती विविर्णा, चञ्चला, दुष्टा एवं दीर्घ तथा गलित अम्बर (वसन) धारण करने वाली, खुले केशों वाली, विरल दन्त बाली, विधवा रूप में रहने वाली, काक-ध्वज वाले रथ पर आरूढ, लम्बे-लम्बे पयोधरों वाली, हाथ में शूर्प (सूप) लिए हुए, अत्यन्त रूक्ष नेत्रों वाली, कम्पित-हस्ता, लम्बी नासिका वाली, कुटिल-स्वभावा, कुटिल नेत्रों से युक्त, क्षुधा, पिपासा से पीड़ित, सदैव भयप्रदा और कलह की निवास-भूमि हैं । पुत्र-लाभ, धन-रक्षा और शत्रु-विजय के लिए धूमावती की साधना उपासना का विधान है।