ऋग्वेद चतुर्थ मण्डलं सूक्त ४३

ऋग्वेद - चतुर्थ मंडल सूक्त ४३ ऋषि - पुरमीलहाजमीलहौ सौहोत्रौ देवता - आश्विनौ । छंद - त्रिष्टुप क उ श्रवत्कतमो यज्ञियानां वन्दारु देवः कतमो जुषाते । कस्येमां देवीममृतेषु प्रेष्ठां हृदि श्रेषाम सुष्टुतिं सुहव्याम् ॥१॥ यजनीय देवताओं के बीच में कौन देवता हमारी स्तुति सुनेंगे? कौन से देवता वन्दन योग्य स्तोत्रों का सेवन करेंगे? देवताओं के बीच में किस देवता के लिए हम अत्यन्त प्रिय, प्रकाशमान तथा हवि युक्त प्रार्थना करें ॥१॥ को मृळाति कतम आगमिष्ठो देवानामु कतमः शम्भविष्ठः । रथं कमाहुर्द्रवदश्वमाशुं यं सूर्यस्य दुहितावृणीत ॥२॥ कौन से देव हम मनुष्यों को हर्षित करते हैं तथा हमारे यज्ञ मण्डप में पधारने के लिए सबसे ज्यादा आतुरता प्रकट करते हैं? देवताओं के बीच में कौन से देवता हम मनुष्यों को सबसे ज्यादा हर्षित करते हैं ? किसका रथ द्रुतगामी तथा वेगवान् अश्वों से सम्पन्न है, जिसको सूर्य की पुत्री ने स्वीकार किया था? ॥२॥ मक्षु हि ष्मा गच्छथ ईवतो दूयूनिन्द्रो न शक्तिं परितक्म्यायाम् । दिव आजाता दिव्या सुपर्णा कया शचीनां भवथः शचिष्ठा ॥३॥ हे दिव्य और श्रेष्ठ पर्ण वाले अश्विनीकुमारो! आप दोनों द्युलोक से पधारने वाले हैं। अनेक बलों में किस बल के कारण आप अत्यधिक बलशाली बन जाते हैं? रात्रि में आप इन्द्रदेव के समान बल प्रकट करते हैं। अभिषवण काल में होने वाले कार्यों के प्रति आप अतिशीघ्र गमन करते हैं ॥३॥ का वां भूदुपमातिः कया न आश्विना गमथो हूयमाना । को वां महश्चित्त्यजसो अभीक उरुष्यतं माध्वी दस्रा न ऊती ॥४॥ हे मधुर स्वभाव वाले तथा रिपुओं का विनाश करने वाले अश्विनीकुमारो ! कौन-सी प्रार्थना आप दोनों के अनुकूल होगी? आप किस स्तुति से आहूत किये जाने पर हमारे समीप पधारेंगे। आपके अत्यधिक क्रोध को कौन व्यक्ति सहन कर सकता है? अपने रक्षण के साधनों द्वारा आप हमारी सुरक्षा करें ॥४॥ उरु वां रथः परि नक्षति द्यामा यत्समुद्रादभि वर्तते वाम् । मध्वा माध्वी मधु वां प्रुषायन्यत्सीं वां पृक्षो भुरजन्त पक्वाः ॥५॥ हे अश्विनीकुमारो ! आप दोनों का विशाल रथ द्युलोक में चारों ओर गमन करता है। वह समुद्र से आपकी ओर पधारता है। आप दोनों के निमित्त परिपक्व जौ के साथ सोमरस संयुक्त हुआ है। हे मधुर जल को पैदा करने वाले तथा रिपुओं के विनाशक अश्विनीकुमारो याजकगण आपके लिए सोमरस में दूध मिश्रित कर रहे हैं ॥५॥ सिन्धुर्ह वां रसया सिञ्चदश्वान्घृणा वयोऽरुषासः परि ग्मन् । तदू षु वामजिरं चेति यानं येन पती भवथः सूर्यायाः ॥६॥ विशाल नदी ने आपके अश्वों का रसयुक्त जल के द्वारा सिंचन किया है। पक्षी के सदृश द्रुतगामी, प्रकाशवान् तथा रक्त वर्ण वाले घोड़े चारों तरफ गमन करते हैं। आपका वह द्रुतगामी रथ विख्यात है, जिसके द्वारा आप दोनों सूर्य का पालन करने वाले बनते हैं ॥६॥ इहेह यद्वां समना पपृक्षे सेयमस्मे सुमतिर्वाजरत्ना । उरुष्यतं जरितारं युवं ह श्रितः कामो नासत्या युवद्रिक् ॥७॥ हे शक्तिरूपी अन्न को अपने समीप रखने वाले अश्विनीकुमारो ! समान विचार वाले आप दोनों के लिए हम स्तुतियाँ समर्पित करते हैं। वे श्रेष्ठ स्तुतियाँ हम याजकों के लिए फल देने वाली हों। हे अश्विनीकुमारो ! आप दोनों हमारी सुरक्षा करें। हमारी कामनाएँ आपकी ओर गमन करती हैं ॥७॥