ऋग्वेद प्रथम मण्डल सूक्त ९

ऋग्वेद - प्रथम मंडल सूक्त ९ ऋषि - मधुच्छन्दा वैश्वामित्रः देवता- इन्द्र । छंद- गायत्री इन्द्रेहि मत्स्यन्धसो विश्वभिः सोमपर्वभिः । महाँ अभिष्टिरोजसा ॥१॥ हे इन्द्रदेव ! सोमरूपी अन्नों से आप प्रफुल्लित होते हैं, अतः अपनी शक्ति से दुर्दान्त शत्रुओं पर विजय श्री वरण करने की क्षमता प्राप्त करने हेतु आप (यज्ञशाला में) पधारें ॥१॥ एमेनं सृजता सुते मन्दिमिन्द्राय मन्दिने । चक्रिं विश्वानि चक्रये ॥२॥ (हे याजको !) प्रसन्नता देने वाले सोमरस को (निचोड़कर) तैयार करो तथा सम्पूर्ण कार्यों के कर्ता इन्द्र देव के लिये सामर्थ्य बढ़ाने वाले इस सोम को अर्पित करो ॥२॥ मत्स्वा सुशिप्र मन्दिभिः स्तोमेभिर्विश्वचर्षणे । सचैषु सवनेष्वा ॥३॥ हे उत्तम शस्त्रों से सुसज्जित (अथवा शोभन नासिका वाले), सर्वद्रष्टा इन्द्रदेव ! हमारे इन यज्ञों में आकर प्रफुल्लता प्रदान करने वाले स्तोत्रों से आप आनन्दित हों ॥३॥ असृग्रमिन्द्र ते गिरः प्रति त्वामुदहासत । अजोषा वृषभं पतिम् ॥४॥ है इन्द्रदेव ! आपकी स्तुति के लिये हमने स्तोत्रों की रचना की है। हे बलशाली और पालनकर्ता इन्द्रदेव! इन स्तुतियों द्वारा की गई प्रार्थना को आप स्वीकार करें ॥४॥ सं चोदय चित्रमर्वाग्राध इन्द्र वरेण्यम् । असदित्ते विभु प्रभु ॥५॥ हे इन्द्रदेव ! आप ही विपुल ऐश्वर्यों के अधिपति हैं, अतः विविध प्रकार के श्रेष्ठ ऐश्वर्यों को हमारे पास प्रेरित करें, अर्थात् हमें श्रेष्ठ ऐश्वर्य प्रदान करें ॥५॥ अस्मान्त्सु तत्र चोदयेन्द्र राये रभस्वतः । तुविद्द्युम्न यशस्वतः ॥६॥ हे प्रभूत ऐश्वर्य सम्पन्न इन्द्रदेव ! आप वैभव की प्राप्ति के लिये हमें श्रेष्ठ कर्मों में प्रेरित करें, जिससे हम परिश्रमी और यशस्वी हो सकें ॥६॥ सं गोमदिन्द्र वाजवदस्मे पृथु श्रवो बृहत् । विश्वायुर्धेह्यक्षितम् ॥७॥ हे इन्द्रदेव ! आप हमें गौओं, धन-धान्यों से युक्त अपार वैभव एवं अक्षय पूर्णायु प्रदान करें ॥७॥ अस्मे धेहि श्रवो बृहद्युम्नं सहस्रसातमम् । इन्द्र ता रथिनीरिषः ॥८॥ हे इन्द्रदेव ! आप हमें प्रभूत यश एवं विपुल ऐश्वर्य प्रदान करें तथा बहुत से रथों में भरकर अन्नादि प्रदान करें ॥८ ॥ वसोरिन्द्रं वसुपतिं गीर्भिर्गुणन्त ऋग्मियम् । होम गन्तारमूतये ॥९॥ धनों के अधिपति, ऐश्वर्यों के स्वामी, ऋचाओं से स्तुत्य इन्द्रदेव का हम स्तुतिपूर्वक आवाहन करते हैं। वे हमारे यज्ञ में पधार कर, हमारे ऐश्वर्य की रक्षा करें ॥९॥ सुतेसुते न्योकसे बृहद्बृहत एदरिः । इन्द्राय शूषमर्चति ॥१०॥ सोम को सिद्ध (तैयार) करने के स्थान यज्ञस्थल पर यज्ञकर्ता, इन्द्रदेव के पराक्रम की प्रशंसा करते हैं॥१०॥

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