ऋग्वेद चतुर्थ मण्डलं सूक्त ६

ऋग्वेद–चतुर्थ मंडल सूक्त ६ ऋषि - वामदेवो गौतमः देवता - अग्नि । छंद - त्रिष्टुप, ऊर्ध्व ऊ षु णो अध्वरस्य होतरग्ने तिष्ठ देवताता यजीयान् । त्वं हि विश्वमभ्यसि मन्म प्र वेधसश्चित्तिरसि मनीषाम् ॥१॥ यज्ञ के सम्पादक हे अग्ने ! आप सर्वश्रेष्ठ याज्ञिक हैं। अतः हम याजकों से आप ऊँचे स्थान पर विराजमान हों। आप ही हमारी स्तुतियों को सुनने वाले हैं। आप विद्वान् याजकों की बौद्धिक क्षमता को बढ़ाने वाले हैं ॥१॥ अमूरो होता न्यसादि विक्ष्वग्निर्मन्द्रो विदथेषु प्रचेताः । ऊर्ध्वं भानुं सवितेवाश्रेन्मेतेव धूमं स्तभायदुप द्याम् ॥२॥ ज्ञानवान्, यज्ञसम्पादक, हर्षप्रदायक तथा मेधावी अग्निदेव यज्ञ में याजकों के बीच प्रतिष्ठित होकर सुशोभित होते हैं। वे आदित्य के सदृश अपनी रश्मियों को ऊर्ध्वमुखी करते हैं तथा स्तम्भ के सदृश द्युलोक के ऊपर धूम्र को स्थापित करते हैं (अर्थात् यज्ञीय ऊर्जा का ऊर्ध्व लोकों तक विस्तार करते हैं) ॥२॥ यता सुजूर्णी रातिनी घृताची प्रदक्षिणिदेवतातिमुराणः । उदु स्वरुर्नवजा नाक्रः पश्वो अनक्ति सुधितः सुमेकः ॥३॥ याजकों ने घृत से परिपूर्ण प्राचीन सुवा पात्र हाथ में सँभाल लिया है। यज्ञ संवर्धक अध्वर्युगण यज्ञ के चारों तरफ प्रदक्षिणा करते हैं तथा नवनिर्मित यूप सीधा खड़ा है। आक्रामक, प्रदीप्त, सर्वदर्शी तथा श्रेष्ठ प्रतिभाशाली अग्निदेव प्रज्वलित हो रहे हैं ॥३॥ स्तीर्णे बर्हिषि समिधाने अग्ना ऊर्ध्वा अध्वर्युर्जुजुषाणो अस्थात् । पर्यग्निः पशुपा न होता त्रिविष्ट्येति प्रदिव उराणः ॥४॥ कुश-आसनों के बिछाये जाने पर तथा अग्नि के प्रज्वलित होने पर याजक देवताओं को हर्षित करने के लिए खड़े होते हैं । यज्ञ सम्पादक, तेजस्वी तथा महान् गुण सम्पन्न अग्निदेव, समर्पित की गई आहुतियों को विस्तृत करते हुए तीनों लोकों में फैलाते हैं। इस प्रकार सबका पालन करते हैं ॥४॥ परि त्मना मितद्रुरेति होताग्निर्मन्द्रो मधुवचा ऋतावा । द्रवन्त्यस्य वाजिनो न शोका भयन्ते विश्वा भुवना यदभ्राट् ॥५॥ देवों का आवाहन करने वाले, सबको हर्ष प्रदान करने वाले तथा मधुर ध्वनि करने वाले यज्ञाग्नि देव, सामान्य गति से चारों ओर घूमते हैं। उनकी रश्मियाँ वेगवान् अश्व की तरह चारों ओर दौड़ती हैं और उनके प्रज्वलित होने पर सभी लोक उनसे भयभीत हो जाते हैं ॥५॥ भद्रा ते अग्ने स्वनीक संदृग्घोरस्य सतो विषुणस्य चारुः । न यत्ते शोचिस्तमसा वरन्त न ध्वस्मानस्तन्वी रेप आ धुः ॥६॥ हे श्रेष्ठ ज्वालाओं वाले अग्निदेव ! आप शत्रुओं को भयभीत करने वाले तथा सब जगह विद्यमान रहने वाले हैं। आपकी श्रेष्ठ तथा हितकारी छवि भली प्रकार दिखायी देती है; क्योंकि रात्रि के अंधकार द्वारा आपका आलोक ढुका नहीं जा सकता। आसुरी वृत्ति के दुष्टजन आपके शरीर में पाप की स्थापना (आपका दुरुपयोग) नहीं कर सकते ॥६॥ न यस्य सातुर्जनितोरवारि न मातरापितरा नू चिदिष्टौ । अधा मित्रो न सुधितः पावकोऽग्निर्दीदाय मानुषीषु विक्षु ॥७॥ सबको पैदा करने वाले हे अग्निदेव! आपके दान (पोषण या प्रकाश) को कोई रोक नहीं सकता। माता-पिता रूप द्युलोक तथा भूलोक भी आपकी कामना को तुरन्त पूर्ण करने में सक्षम नहीं होते। आप ज्ञानवान् तथा शुद्ध करने वाले हैं। आप सज्जनों के मध्य परम हितैषी मित्र की भाँति प्रकाशित होते हैं ॥७॥ द्विर्यं पञ्च जीजनन्त्संवसानाः स्वसारो अग्निं मानुषीषु विक्षु । उषर्बुधमर्यो न दन्तं शुक्रं स्वासं परशुं न तिग्मम् ॥८॥ बहिन रूप दसों अँगुलियाँ जिन अग्निदेव को अरणि मन्थन द्वारा प्रकट करती हैं; वे अग्निदेव प्रातः काल में जागने वाले, आहुतियों को ग्रहण करने वाले, तेज वाले तथा सुन्दर शरीर वाले हैं। वे तीक्ष्ण फरसे की तरह विरोधी असुरों का संहार करने वाले हैं ॥८॥ तव त्ये अग्ने हरितो घृतस्ना रोहितास ऋज्वञ्चः स्वञ्चः । अरुषासो वृषण ऋजुमुष्का आ देवतातिमह्वन्त दस्माः ॥९॥ हे अग्निदेव ! आपके वे घोड़े (प्रकाश किरणे) यज्ञ में बुलाये जाते हैं। वे लाल रंग वाले, श्रेष्ठ चाल वाले, आलोक फैलाने वाले, सुगठित शरीर वाले, घृत बढ़ाने वाले, युवा तथा दर्शनीय हैं ॥९॥ ये ह त्ये ते सहमाना अयासस्त्वेषासो अग्ने अर्चयश्चरन्ति । श्येनासो न दुवसनासो अर्थ तुविष्वणसो मारुतं न शर्धः ॥१०॥ हे अग्ने ! आपकी वे किरणें रिपुओं को परास्त करने वाली, प्रकाशित होने वाली, गतिशील तथा वंदनीय हैं। वे अश्वों के सदृश अपने निर्धारित स्थान पर गमन करती हैं तथा मरुतों की तरह अत्यधिक शब्द करती हैं ॥१०॥ अकारि ब्रह्म समिधान तुभ्यं शंसात्युक्थं यजते व्यू धाः । होतारमग्निं मनुषो नि षेदुर्नमस्यन्त उशिजः शंसमायोः ॥११॥ हे प्रज्वलित अग्निदेव ! आपके निमित्त हम याजकों ने स्तोत्र रचित किये हैं। हम उक्थों (स्तोत्रों) का उच्चारण करते हैं तथा यज्ञ करते हैं। आप उन्हें ग्रहण करें। यजमानों द्वारा प्रार्थनीय होता रूप अग्निदेव की पूजा करते हुए श्रेष्ठ ऐश्वर्य की अभिलाषा से याजकगण यज्ञस्थल पर आसीन होते हैं ॥११॥

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