Vivid Bhajan (विविध भजन)

विविध भजन (Vivid Bhajan) बीत गये दिन बीत गये दिन भजन बिना रे भजन बिना रे, भजन बिना रे बाल अवस्था खेल गवांयो जब यौवन तब मान घना रे लाहे कारण मूल गवायो अजहुं न गयी मन की तृष्णा रे कहत कबीर सुनो भई साधो पार उतर गये संत जना रे जब से लगन लगी प्रभु तेरी जब से लगन लगी प्रभु तेरी सब कुछ में तो भूल गयी हूँ बिसर गयी क्या था मेरा बिसर गयी अब कया है मेरा अब तो लगन लगी प्रभु तेरी तू ही जाने क्या होगा जब मैं प्रभु में खो जाती हूं मेघ प्रेम के घिर आते हैं मेरे मन मंदिर मे प्रभु के चारों धाम समा जाते हैं बार बार तू कहता मुझसे जग की सेवा कर तू मन से इसी में मैं हूं सभी में में हूं तू देखे तो सब कुछ मैं हूं भगवान मेरी नैया भगवान मेरी नैया उस पार लगा देना अब तक तो निभाया है आगे भी निभा देना सम्भव है झंझटों में मैं तुम को भूल जाऊँ पर नाथ कहीं तुम भी मुझको न भुला देना तुम देव मैं पुजारी तुम ईश मैं उपासक यह बात सच है तो फिर सच कर के दिखा देना शरण में आये हैं शरण में आये हैं हम तुम्हारी दया करो हे दयालु भगवन सम्हालो बिगड़ी दशा हमारी दया करो हे दयालु भगवन नहम में बल है न हम में शक्ति न हम में साधन न हम में भक्ति तभी कहाआगे ताप हारी दया करो हे दयालु भगवन जो तुम पिता हो तो हम हैं बालक जो तुम हो स्वामी तो हम हैं सेवक जो तुम हो ठाकुर तो हम पुजारी दया करो हे दयालु भगवन प्रदान कर दो महान शक्ति भरो हमारे में ज्ञान भक्ति तुम्हारे दर के हैं हम भिखारी दया करो है दयालु भगवन रे मन प्रभु से रे मन प्रभु से प्रीत करो प्रभु की प्रेम भक्ति श्रद्धा से अपना आप भरो ऐसी प्रीत करो तुम प्रभु से प्रभु तुम माहिं समाये बने आरती पूजा जीवन रसना हरि गुण गाये राम नाम आधार लिये तुम इस जग में विचरो सुर की गति मैं सुर की गति मैं क्या जानूँ एक भजन करना जानूँ अर्थ भजन का भी अति गहरा उस को भी मैं क्या जानूँ प्रभु प्रभु प्रभु कहना जानू नेना जल भरना जानूँ गुण गाये प्रभु न्याय न छोड़े फिर तुम क्यों गुण गाते हो मैं बोला मैं प्रेम दीवाना इतनी बातें क्या जानूं प्रभु प्रभु प्रभु कहना जानं नेना जल भरना जानूँ फुल्वारी के फूल फूल के किसके गुन नित गाते हैं जब पूछा क्या कुछ पाते हो बोल उठे मैं क्या जानूं प्रभु प्रभु प्रभु कहना जानूँ नैना जल भरना जानुं हर सांस में हर बोल में हर सांस में हर बोल में हरि नाम की झंकार है हर नर मुझे भगवान है हर द्वार मंदिर द्वार है ये तन रतन जैसा नहीं मन पाप का भण्डार है पंछी बसेरे सा लगे मुझको सकल संसार है हर डाल में हर पात में जिस नाम की झंकार है उस नाथ के द्वारे तू जा होगा वहीं निस्तार है अपने पराये बन्धुओं का झूठ का व्यवहार है मनके यहां बिखरे हुये प्रभु ने पिरोया तार है प्रभु को बिसार प्रभु को बिसार किसकी आराधना करूं मैं पाकल्पतरु किसीसे क्या याचना करूं मैं मोती मिला मुझे जब मानस के मानसर में कंकड़ बटोरने की क्‍यों चाहना करू मैं मुझको प्रकाश प्रतिपल आनंद आंतरिक है जग के क्षणिक सुखो की क्या कामना करू मैं किसकी शरण में जाऊं किसकी शरण में जाऊं अशरण शरण तुम्हीं हो गज ग्राह से छुड़ाया प्रह्ाद को बचाया द्रौपदी का पट बढ़ाया निर्बल के बल तुम्हीं हो अति दीन था सुदामा आया तुम्हारे धामा धनपति उसे बनाया निर्धन के धन तुम्हीं हो तारा सदन कसाई अजामिल की गति बनाई गणिका सुपुर पठाई पातक हरण तुम्हीं हो मुझको तो हे बिहारी आशा है बस तुम्हारी काहे सुरति बिसारी मेरे तो एक तुम्हीं हो पितु मातु सहायक स्वामी पितु मातु सहायक स्वामी सखा तुमही एक नाथ हमारे हो जिनके कं और आधार नहीं तिन्ह के तुमही रखवारे हो सब भांति सदा सुखदायक हो दुःख दुर्गुण नाशनहारे हो प्रतिपाल करो सिगरे जग को अतिशय करुणा उर धारे हो भुलिहै हम ही तुमको तुम तो हमरी सुधि नाहिं बिसारे हो उपकारन को कछु अंत नही छिन ही छिन जो विस्तारे हो महाराज! महा महिमा तुम्हरी समुदये बिरले बुधवारे हो शुभ शांति निकेतन प्रेम निधे मनमंदिर के उजियारे हो यह जीवन के तुग्ह जीवन हो इन प्राणन के तुम प्यारे हो तुम सों प्रभु पाइ प्रताप हरि केहि के अब और सहारे हो तुम्ही हो माता पिता तुम्ही हो माता पिता तुम्ही हो तुम्ही हो बंधु सखा तुम्ही हो तुम्ही हो साथी तुम्ही सहारे कोई न अपना सिवा तुम्हारे तुम्ही हो नैय्या तुम्ही खेवैय्या तुम्ही हो बंधु सखा तुम्ही हो जो कल खिलेंगे वो फूल हम हैं तुम्हारे चरणों की धूल हम हैं दया की दृष्टि सदा ही रखना तुम्ही हो बंधु सखा तुम्ही हो तुम तजि और कौन पै जाऊं तुम तजि और कोन पे जाऊं काके द्वार जाइ सिर नाऊं पर हाथ कहां बिकाऊं ऐसो को दाता है समरथ जाके दिये अघाऊं अंतकाल तुम्हरो सुमिरन गति अनत कहूं नहिं पाऊं रक अयाची कियू सुदामा दियो अभय पद ठाऊं कामधेनु चिंतामणि दीन्हो कलप वृक्ष तर छाऊं भवसमुद्र अति देख भयानक मन में अधिक डराऊं कीजे कृपा सुमिरि अपनो पन सूरदास बलि जाऊं रंगवाले देर क्या है रंगवाले देर क्‍या है मेरा चोला रंग दे और सारे रंग धी कर रंग अपना रंग दे कितने ही रंगो से मैने आज तक है रंगा इसे पर वो सारे फीके निकले तू ही गाढ़ा रंग दे तूने रंगे हैं ज़मीं और आसमां जिस रंग से बस उसी रंग से तू आछ़्हिर मेरा चोला रंग दे मैं तो जानूंगा तभी तेरी ये रंगन्दाज़ियां जितना धोऊं उतना चमके अब तो ऐसा रंग दे है जगत्राता है जगत्राता विश्वविधाता हे सुखशांतिनिकेतन हे प्रेमके सिंधो दीनके बंधी दुःख दरिद्र विनाशन हे नित्य अखंड अनंत अनादि पूर्ण ब्रह्मसनातन हे जगाअश्रय जगपति जगवंदन अनुपम अलख निरंजन हे प्राण सखा त्रिभुवन प्रतिपालक जीवन के अवलंबन हे दरशन दीजो आय प्यारे दरशन दीजो आय प्यारे तुम बिनो रह्यो ना जाय जल बिनु कमल चंद्र बिनु रजनी वैसे तुम देखे बिनु सजनी आकुल व्याकुल फिरूं रेन दिन विरह कलेजो खाय दिवस न भूख नींद नहीं रैना मुख सों कहत न अवे बेना कहा कहूँ कछु समुझि न आवे मिल कर तपत बुझाय क्यूं तरसाओ अंतरयामी आय मिलो किरपा करो स्वामी मीरा दासी जनम जनम की पड़ी तुम्हारे पाय नैया पडी मंझधार नेया पड़ी मंझधार गुरु बिन केसे लागे पार साहिब तुम मत भूलियो लाख लो भूलग जाये हम से तुमरे और हैं तुम सा हमरा नाहिं अंतरयामी एक तुम आतम के आधार जो तुम छोड़ो हाथ प्रभुजी कौन उतारे पार गुरु बिन कैसे लागे पार मैन अपराधी जन्म को मन में भरा विकार तुम दाता दुख भंजन मेरी करो सम्हार अवगुन दास कबीर के बहुत गरीब निवाज़ जो मैं पूत कपूत हूं कहौं पिता की लाज गुरु बिन केसे लागे पार तूने रात गँवायी तूने रात गँवायी सोय के दिवस गँवाया खाय के हीरा जनम अमोल था कौड़ी बदले जाय सुमिरन लगन लगाय के मुख से कछ ना बोल रे बाहर का पट बंद कर ले अंतर का पट खोल रे माला फेरत जुग हुआ गया ना मन का फेर रे गया ना मन का फेर रे हाथ का मनका छेडि दे मन का मनका फेर दुख में सुमिरन सब करें सुख में करे न कोय रे जो सुख में सुमिरन करे तो दुख काहे को होय रे सुख में सुमिरन ना किया दुख में करता याद रे दुख में करता याद रे कहे कबीर उस दास की कौन सुने फ़रियाद नैनहीन को राह दिखा नैन हीन को राह दिखा प्रभु पग पग ठोकर खाऊ मैं तुग्हरी नगरिया की कठिन उगरिया चलत चलत गिर जाऊँ मैन चहूँ ओर मेरे घोओर अंधेरा भूल न जाऊँ द्वार तेरा एक बार प्रभु हाथ पकड़ लो (३) मन का दीप जलाऊँ मैं प्रभु हम पे कृपा प्रभु हम पे कृपा करना प्रभु हम पे दया करना वैकुण्ठ तो यहीं है इसमें ही रहा करना हम मोर बन के मोहन नाचा करेंगे वन में तुम श्याम घटा बनकर उस बन में उड़ा करना होकर के हम पपीहा पी पी रटा करेंगे तुम स्वाति बूंद बनकर प्यासे पे दया करना हम राधेश्याम जग में तुमको ही निहारेंगे तुम दिव्य ज्योति बन कर नैनों में बसा करना तेरे दर को छोड़ के तेरे दर को छोड़ के किस दर जाऊं मैं देख लिया जग सारा मैने तेरे जेसा मीत नहीं तेरे जेसा प्रबल सहारा तेरे जैसी प्रीत नहीं किन शब्दों में आपकी महिमा गाऊं मैं अपने पथ पर आप चलूं मैं मुझमे इतना ज्ञान नहीं हूं मति मंद नयन का अंधा भला बुरा पहचान नहीं हाथ पकड़ कर ले चलो ठोकर खाऊं मैं उद्धार करो भगवान उद्धार करो भगवान तुम्हरी शरण पड़े भव पार करो भगवान तुम्हरी शरण पड़े कैसे तेरा नाम धियायें कैसे तुम्हरी लगन लगाये हृदय जगा दो ज्ञान तुम्हरी शरण पड़े पंथ मतों की सुन सुन बातें द्वार तेरे तक पहुंच न पाते भटके बीच जहान तुम्हरी शरण पड़े तू ही श्यामल कृष्ण मुरारी राम तू ही गणपति त्रिपुरारी तुम्ही बने हनुमान तुम्हरी शरण पड़े ऐसी अन्तर ज्योति जगाना हम दीनों को शरण लगाना हे प्रभु दया निधान तुम्हरी शरण पड़े मैली चादर ओढ़ के मैली चादर ओढ़ के कैसे द्वार तुम्हारे आऊँ हे पावन परमेश्वर मेरे मन ही मन शरमाऊं तूने मुझको जग में भेजा निर्मल देकर काया आकर के संसार में मैंने इसको दाग लगाया जनम जनम की मैली चादर कैसे दाग छुड़ाऊं निर्मल वाणी पाकर मैने नाम न तेरा गाया नयन मूंद कर हे परमेश्वर कभी न तुझको ध्याया मन वीणा की तारें टूटीं अब क्या गीत सुनाऊँ इन पैरों से चल कर तेरे मन्दिर कभी न आया जहां जहां हो पूजा तेरी कभी न शीश झुकाया हे हरि हर मैं हार के आया अब क्या हार चढ़ाऊं शंकर शिव शम्भु साधु शंकर शिव शम्शु साधु संतन हितकारी लोचन त्रय अति विशाल सोहे नव चन्द्र भाल रण्ड मुण्ड व्याल माल जटा गंग धारी पार्वती पति सुजान प्रमथराज वृषभयान सुर नर मुनि सेव्यमान त्रिविध ताप हारी हमको मनकी शक्ति हमको मनकी शक्ति देना, मन विजय करें दूसरोंकी जयसे पहले, खुदकी जय करें हमको मनकी शक्ति देना भेदभाव अपने दिलसे, साफ कर सकें दूसरोंसे भूल हो तो, माफ कर सकें झूठसे बचे रहें, सचका दम भरें दूसरोंकी जयसे पहले, खुदकी जय करें मुश्किलें पडें तो हमपे, इतना कर्म कर साथ दें तो धर्मका, चलें तो धर्म पर खुदपे हौसला रहे, सचका दम भरें दूसरोंकी जयसे पहले, खुदकी जय करें गौरीनंदन गजानना गौरीनंदन गजानना हे दुःखभंजन गजानना मूषक वाहन गजानना बुद्धीविनायक गजानना विप्नविनाशक गजानना शंकरपूत्र गजानना ऐ मालिक तेरे बंदे हम ऐ मालिक तेरे बंदे हम, ऐसे हो हमारे करम नेकी पर चलें, और बदी से टलं ताकि हंसते हुये निकले दम जब जुलमों का हो सामना, तब तू ही हमें थामना वो बुराई करें, हम भलाई भरि नहीं बदले की हो कामना बढ़ उठे प्यार का हर कदम और मिटे बैर का ये भरम नेकी पर चलें, और बदी से टलं ताकि हंसते हुये निकले दम ये अंधेरा घना छा रहा, तेरा इनसान घबरा रहा हो रहा बेखबर, कुछ न आता नज़र सुख का सूरज छिपा जा रहा है तेरी रोशनी में वो दम जो अमावस को कर दे पूनम नेकी पर चलें, और बदी से टलं ताकि हंसते हुये निकले दम बड़ा कमज़ोर है आदमी, अभी लाखों हैं इसमें कमीं पर तू जो खड़ा, है दयालू बड़ा तेरी कृपा से धरती थमी दिया तूने हमें जब जनम तू ही झेलेगा हम सबके ग़म नेकी पर चलें, और बदी से टलं ताकि हंसते हुये निकले दम ज्योत से ज्योत जगाते ज्योत से ज्योत जगाते चलो प्रेम की गंगा बहाते चलो राह में आए जो दीन दुखी सबको गले से लगाते चलो जिसका न कोई संगी साथी ईश्वर है रखवाला जो निर्धन है जो निर्बल है वह है प्रभू काप्यारा प्यार के मोती लुटाते चलो, प्रेम की गंगा आशा टूटी ममता रूठी छूट गया है किनारा बंद करो मत द्वार दया का दे दो कुछ तो सहारा दीप दया का जलाते चलो, प्रेम की गंगा छाया है छाओं और अंधेरा भटक गैइ हैं दिशाएं मानव बन बैठा है दानव किसको व्यथा सुनाएं धरती को स्वर्ग बनाते चलो, प्रेम की गंगा जैसे सूरज की गर्मी जैसे सूरज की गर्मी से जलते हुए तन को मिल जाये तरुवर कि छाया ऐसा ही सुख मेरे मन को मिला है में जबसे शरण तेरी आया, मेरे राम भटका हुआ मेरा मन था कोई मिल ना रहा था सहारा लहरों से लड़ती हुई नाव को जैसे मिल ना रहा हो किनारा, मिल ना रहा हो किनारा उस लड़खड़ाती हुई नाव को जो किसी ने किनारा दिखाया ऐसा ही सुख मेरे मन को मिला है में जबसे शरण तेरी आया, मेरे राम शीतल बने आग चंदन के जैसी राघव कृपा हो जो तेरी उजियाली पूनम की हो जाएं रातें जो थीं अमावस अंधेरी, जो थीं अमावस अंधेरी युग युग से प्यासी मरुभूमि ने जैसे सावन का संदेस पाया ऐसा ही सुख मेरे मन को मिला है में जबसे शरण तेरी आया, मेरे राम जिस राह की मंजिल तेरा मिलन हो उस पर कदम मैं बढ़ाऊं फूलों में खारों में, पतझड़ बहारों में में कभी डगमगाऊं, मैं न कभी डगमगाऊं पानी के प्यासे को तक़दीर ने जैसे जी भर के अमृत पिलाया ऐसा ही सुख मेरे मन को मिला है में जबसे शरण तेरी आया, मेरे राम मन तड़पत ...

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