Shri Hari Bhajan (श्री हरि भजन)

श्री हरि भजन (Shri Hari Bhajan) जो भजे हरि को सदा जो भजे हरि को सदा सो परम पद पायेगा देह के माला तिलक और भस्म नहिं कुछ काम के प्रेम भक्ति के बिना नहिं नाथ के मन भायेगा दिल के दर्पण को सफ़ा कर दूर कर अभिमान को खाक हो गुरु के चरण की तो प्रभु मिल जायेगा छोड़ दुनिया के मज़े और बैठ कर एकांत में ध्यान धर हरि के चरण का फिर जनम नहीं पायेगा हट भरोसा मन में रख कर जो भजे हरि नाम को कहत ब्रह्मानंद ब्रह्मानंद में ही समायेगा हरि तुम बहुत हरि तुम बहुत अनुग्रह कीन्हो साधन धाम विविध दुर्लभ तनु मोहे कृपा कर दीन्हो कोटिन्ह मुख कहि जात न प्रभु के एक एक उपकार तदपि नाथ कछु और मांगिहे दीजो परम उदार हरि नाम सुमिर हरि नाम सुमिर हरि नाम सुमिर हरि नाम सुमिर सुख धाम जगत में जीवन दो दिन का जगत में जीवन दो दिन का सुंदर काया देख लुभाया लाड़ करे तन का छूटा साँस विगत भयी देही ज्यों माला मनका पाप कपट कर माया जोड़ी गर्व करे धन का सभी छोड़ कर चला मुसाफिर वास हुआ वन का ब्रह्मानन्द भजन कर बंदे नाथ निरंजन का जगत में जीवन दो दिन का जो घट अंतर जो घट अंतर हरि सुमिरै ताको काल रूठि का करिहै जे चित चरन धरे सहस बरस गज युद्ध करत भयै छिन एक ध्यान धरै चक्र धरे वैकुण्ठ से धायै बाकी पेज सरे जहं जहं दुसह कष्ट भगतन पर तहं तहं सार करे सूरजदास श्याम सेवे ते दुष्तर पार करे हरि हरि हरि हरि सुमिरन हरि हरि हरि हरि सुमिरन करो हरि चरणारविन्द उर धरो हरि की कथा होये जब जहाँ गंगा ह चलि आवे तहां यमुना सिंधु सरस्वती आवे गोदावरी विलम्ब न लावे सर्व तीर्थ को वासा तहां सूर हरि कथा होवे जहां नारायण जिनके हिरदय नारायण जिनके हिरदय में सो कछु करम करे न करे रे पारस मणि जिनके घर माहीं सो धन संचि धरे न धरे सूरज को परकाश भयो जब दीपक जोत जले न जले रे नाव मिली जिनको जल अंदर बाहू से नीर तरे न तरे रे ब्रह्मानंद जाहि घट अंतर काशी में जाये मरे न मरे रे भजो रे भेया भजो रे भेया राम गोविंद हरी राम गोविंद हरी भजो रे भेया राम गोविंद हरी जप तप साधन नहिं कछु लागत खरचत नहिं गठरी हरि ॐ हरि ॐ हरि ॐ हरि ॐ मेरा बोले रोम रोम हरि ॐ हरि ॐ हरि ॐ हरि ॐ

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