ऋग्वेद चतुर्थ मण्डलं सूक्त ५४

ऋग्वेद-चतुर्थ मंडल सूक्त ५४ ऋषि - वामदेवो गौतमः देवता - सविता । छंद - जगती, ६ त्रिष्टुप अभूद्देवः सविता वन्द्यो नु न इदानीमह्न उपवाच्यो नृभिः । वि यो रत्ना भजति मानवेभ्यः श्रेष्ठं नो अत्र द्रविणं यथा दधत् ॥१॥ सवितादेव उदित हो रहे हैं, हम उनकी वन्दना करते हैं। जो मानवों को ऐश्वर्य प्रदान करते हैं तथा हमारे इस यज्ञ में हमें श्रेष्ठ धन प्रदान करते हैं, वे सवितादेव दिन के इस भाग में याजकों के द्वारा प्रशंसनीय होते हैं ॥१॥ देवेभ्यो हि प्रथमं यज्ञियेभ्योऽमृतत्वं सुवसि भागमुत्तमम् । आदिद्दामानं सवितर्क्यूर्णषऽनूचीना जीविता मानुषेभ्यः ॥२॥ हे सवितादेव ! उदयकाल में आप यज्ञ के योग्य देवों को अमृतमय सार तत्त्वों का उत्तम भाग प्रदान करते हैं, फिर उदित होकर दीप्तिमान् रश्मियों को विस्तीर्ण करते हैं और प्राणियों के निमित्त रश्मियों के द्वारा जीवन का विस्तार करते हैं ॥२॥ अचित्ती यच्चकृमा दैव्ये जने दीनैर्दक्षैः प्रभूती पूरुषत्वता । देवेषु च सवितर्मानुषेषु च त्वं नो अत्र सुवतादनागसः ॥३॥ हे सवितादेव ! हमने भूल से दुर्बलता के कारण, धनाभिमानवश अथवा मनुष्य होने के गर्व से आपके प्रति, देवताओं या मनुष्यों के प्रति जो पाप किया हो, आप इस यज्ञ में हमें उस पाप से मुक्त करें ॥३॥ न प्रमिये सवितुर्दैव्यस्य तद्यथा विश्वं भुवनं धारयिष्यति । यत्पृथिव्या वरिमन्ना स्वङ्‌गुरिर्वमन्दिवः सुवति सत्यमस्य तत् ॥४॥ जिससे समस्त लोकों को धारण करते हैं, सवितादेव की वह सामर्थ्य कभी विनष्ट नहीं होगी। सुन्दर हाथों वाले जो सवितादेव पृथ्वी तथा धुलोक को विस्तृत होने के निमित्त प्रेरित करते हैं, उन सविता देव का कर्म सत्य है ॥४॥ इन्द्रज्येष्ठान्बृहद्भयः पर्वतेभ्यः क्षयाँ एभ्यः सुवसि पस्त्यावतः । यथायथा पतयन्तो वियेमिर एवैव तस्थुः सवितः सवाय ते ॥५॥ हे सवितादेव ! अत्यधिक धनवान् इन्द्रदेव हमें याजकों के बीच वंदनीय हैं। आप हम मनुष्यों को विशाल पर्वतों से भी अधिक बड़ा बनाएँ। इन याजकों को आप घरों से युक्त स्थान प्रदान करें, जिससे वे आपके जाने के समय आपके द्वारा नियन्त्रित हों तथा आपकी आज्ञा में चलें ॥५॥ ये ते त्रिरहन्त्सवितः सवासो दिवेदिवे सौभगमासुवन्ति । इन्द्रो द्यावापृथिवी सिन्धुरद्भिरादित्यैर्नो अदितिः शर्म यंसत् ॥६॥ हे सवितादेव ! जो याजक आपके लिए नित्य प्रति तीन बार सौभाग्यजनक सोमरस अभिषुत करते हैं। उन याजकों के लिए तथा हमारे लिए, इन्द्रदेव, द्यावा-पृथिवी, जल पूर्ण नदियाँ तथा आदित्यों के साथ अदिति देवी सुख प्रदान करें ॥६॥

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