ऋग्वेद चतुर्थ मण्डलं सूक्त ५५

ऋग्वेद-चतुर्थ मंडल सूक्त ५५ ऋषि - वामदेवो गौतमः देवता - विश्वे देवा । छंद त्रिष्टुप, ८-१० गायत्री को वस्त्राता वसवः को वरूता द्यावाभूमी अदिते त्रासीथां नः । सहीयसो वरुण मित्र मर्तात्को वोऽध्वरे वरिवो धाति देवाः ॥१॥ हे वसुओ ! आप लोगों के बीच में रक्षक कौन है? दुःखों का निवारण करने वाला कौन है ? हे अखण्डनीया द्यावा-पृथिवि ! आप हमारी सुरक्षा करें। हे मित्रावरुण! आप लोग बलशाली रिपुओं से भी हमारी सुरक्षा करें। हे देवो! आप लोगों के बीच में कौन से देव यज्ञ में हमें ऐश्वर्य प्रदान करने वाले हैं? ॥१॥ प्र ये धामानि पूर्व्याण्यर्चान्वि यदुच्छान्वियोतारो अमूराः । विधातारो वि ते दधुरजस्रा ऋतधीतयो रुरुचन्त दस्माः ॥२॥ जो देवता स्तुति करने वालों को प्राचीन स्थान प्रदान करते हैं तथा अज्ञानान्धकार को विनष्ट करते हैं, वे फल प्रदायक देवता सदैव श्रेष्ठ फल प्रदान करते हैं। वे सत्कर्म करने वाले देवता दर्शनीय होकर सुशोभित होते हैं ॥२॥ प्र पस्त्यामदितिं सिन्धुमर्कैः स्वस्तिमीळे सख्याय देवीम् । उभे यथा नो अहनी निपात उषासानक्ता करतामदब्धे ॥३॥ सबको आश्रय प्रदान करने वाली अदिति, सिन्धु तथा स्वस्ति देवी की मित्रता प्राप्त करने के लिए हम स्तोत्रों द्वारा उनकी प्रार्थना करते हैं । द्यावा-पृथिवी हमारी सुरक्षा करें। अहोरात्र की अधिष्ठात्री देवी उषासानक्ता हमारी कामनाओं को सम्पादित करें ॥३॥ व्यर्यमा वरुणश्चेति पन्थामिषस्पतिः सुवितं गातुमग्निः । इन्द्राविष्णू नृवदु षु स्तवाना शर्म नो यन्तममवद्वरूथम् ॥४॥ अर्यमा तथा वरुणदेव यज्ञ मार्ग को प्रकाशित करें तथा अन्न के अधिपति अग्निदेव हर्षकारी मार्ग को दिखलायें। इन्द्र और विष्णुदेव भली-भाँति प्रशंसित होकर हम लोगों को, सन्तानों तथा बलों से युक्त मनोहर सुख प्रदान करें ॥४॥ आ पर्वतस्य मरुतामवांसि देवस्य त्रातुरव्रि भगस्य । पात्पतिर्जन्यादंहसो नो मित्रो मित्रियादुत न उरुष्येत् ॥५॥ पर्वत, मरुद्गण तथा संरक्षक भगदेव की रक्षण सामथ्र्यों की हम कामना करते हैं। सबका पालन करने वाले वरुणदेव, मनुष्य सम्बन्धी पापों से बचायें । मित्रदेव सखा भाव से हमारी सुरक्षा करें ॥५॥ नू रोदसी अहिना बुध्येन स्तुवीत देवी अप्येभिरिष्टैः । समुद्रं न संचरणे सनिष्यवो घर्मस्वरसो नद्यो अप व्रन् ॥६॥ हे देवी द्यावा-पृथिवि ! जिस प्रकार ऐश्वर्य प्राप्त करने की कामना करने वाले लोग बीच में जाने के लिए समुद्र की प्रार्थना करते हैं, उसी प्रकार इच्छित कार्य लाभ के निमित्त 'अहिर्बुध्य' नामक देव के साथ हम आपकी प्रार्थना करते हैं। तेज ध्वनि करने वाली सरिताओं को आप मुक्त करें ॥६॥ देवैर्नो देव्यदितिर्नि पातु देवस्त्राता त्रायतामप्रयुच्छन् । नहि मित्रस्य वरुणस्य धासिमर्हामसि प्रमियं सान्वग्नेः ॥७॥ देवताओं के साथ अदिति देवी हमारा पोषण करें तथा संरक्षण करने वाले इन्द्रदेव प्रमादरहित होकर हमारी सुरक्षा करें। हम मित्र, वरुण तथा अग्निदेवों के सोम रूप पोषक अन्नों में बाधा नहीं डाल सकते, उन्हें यज्ञादि से संवर्धित कर सकते हैं ॥७॥ अग्निरीशे वसव्यस्याग्निर्महः सौभगस्य । तान्यस्मभ्यं रासते ॥८॥ वे अग्निदेव ऐश्वर्य तथा सौभाग्य के अधिपति हैं, अतः हम लोगों को वे ऐश्वर्य तथा सौभाग्य प्रदान करें ॥८॥ उषो मघोन्या वह सूनृते वार्या पुरु । अस्मभ्यं वाजिनीवति ॥९॥ हे धनसम्पन्न, सत्यरूप वचन वाली तथा अन्न प्रदान करने वाली उषादेवि ! हम लोगों को आप अत्यन्त मनोहर धन प्रदान करें ॥९॥ तत्सु नः सविता भगो वरुणो मित्रो अर्यमा । इन्द्रो नो राधसा गमत् ॥१०॥ जिस ऐश्वर्य के साथ सविता, भग, मित्रावरुण, इन्द्र तथा अर्यमा देवगण पधारते हैं, उस ऐश्वर्य को वे सब देव हमें प्रदान करें ॥१०॥

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