ऋग्वेद प्रथम मण्डल सूक्त २

ऋग्वेद - प्रथम मंडल सूक्त २ ऋषि - मधुच्छन्दा वैश्वामित्रः देवता- १-३ वायुः, ४-६ इन्द्र-वायू, ७-९ मित्रा-वरुणौ। छंद- गायत्री वायवा याहि दर्शतेमे सोमा अरंकृताः । तेषां पाहि श्रुधी हवम् ॥१॥ हे प्रियदर्शी वायुदेव ! हमारी प्रार्थना को सुनकर आप यज्ञस्थल पर आएं । आपके लिए सोमरस प्रस्तुत है, इसका पान करें ॥१॥ वाय उक्थेभिर्जरन्ते त्वामच्छा जरितारः । सुतसोमा अहर्विदः ॥२॥ हे वायुदेव ! सोमरस तैयार करके रखने वाले, उसके गुणों को जानने वाले स्तोता गण स्तोत्रों से आपकी उत्तम प्रकार से स्तुति करते हैं॥२॥ वायो तव प्रपृञ्चती धेना जिगाति दाशुषे । उरूची सोमपीतये ॥३॥ हे वायुदेव ! आपकी प्रभाव शाली वाणी, सोमयाग करने वाले सभी यजमानों की प्रशंसा करती हुई एवं सोमरस का विशेष गुणगान करती हुई, सोमरस पान करने की अभिलाषा से दाता (यजमान) के पास पहुँचती है॥३॥ इन्द्रवायू इमे सुता उप प्रयोभिरा गतम् । इन्दवो वामुशन्ति हि ॥४॥ हे इन्द्रदेव ! हे वायुदेव ! यह सोमरस आपके लिये अभिषुत किया (निचोड़ा) गया है। आप अन्नादि पदार्थों के साथ यहाँ पधारें, क्योंकि यह सोमरस आप दोनों की कामना करता है॥४॥ वायविन्द्रश्च चेतथः सुतानां वाजिनीवसू । तावा यातमुप द्रवत् ॥५॥ हे वायुदेव ! हे इन्द्रदेव ! आप दोनों अन्नादि पदार्थों और धन से परिपूर्ण हैं एवं अभिषुत सोमरस की विशेषता को जानते हैं। अतः आप दोनों शीघ्र ही इस यज्ञ में पदार्पण करें ॥५॥ वायविन्द्रश्च सुन्वत आ यातमुप निष्कृतम् । मक्ष्वित्था धिया नरा ॥६॥ हे वायुदेव ! हे इन्द्रदेव ! आप दोनों बड़े सामर्थ्यशाली हैं। आप यजमान द्वारा बुद्धिपूर्वक निष्पादित सोम के पास अति शीघ्र पधारें ॥६॥ मित्रं हुवे पूतदक्षं वरुणं च रिशादसम् । धियं घृताचीं साधन्ता ॥७॥ घृत के समान प्राणप्रद वृष्टि-सम्पन्न कराने वाले मित्र और वरुण देवों का हम आवाहन करते हैं। मित्र हमें बलशाली बनायें तथा वरुणदेव हमारे हिंसक शत्रुओं का नाश करें ॥७॥ ऋतेन मित्रावरुणावृतावृधावृतस्पृशा । क्रतुं बृहन्तमाशाथे ॥८॥ सत्य को फलितार्थ करने वाले सत्ययज्ञ के पुष्टिकारक देव मित्रावरुणो ! आप दोनों हमारे पुण्यदायी कार्यों (प्रवर्त्तमान सोमयाग) को सत्य से परिपूर्ण करें ॥८॥ कवी नो मित्रावरुणा तुविजाता उरुक्षया । दक्षं दधाते अपसम् ॥९॥ अनेक कर्मों को सम्पन्न कराने वाले विवेकशील तथा अनेक स्थलों में निवास करने वाले मित्रावरुण हमारी क्षमताओं और कार्यों को पुष्ट बनाते हैं ॥९॥

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