ऋग्वेद चतुर्थ मण्डलं सूक्त २९

ऋग्वेद - चतुर्थ मंडल सूक्त २९ ऋषि - वामदेवो गौतमः देवता - इन्द्र । छंद - त्रिष्टुप, आ नः स्तुत उप वाजेभिरूती इन्द्र याहि हरिभिर्मन्दसानः । तिरश्चिदर्यः सवना पुरूण्या‌ङ्ग्षेभिर्गुणानः सत्यराधाः ॥१॥ हे इन्द्रदेव ! आप प्रशंसित होकर हम याजकों को संरक्षण प्रदान करने के लिए हमारे अन्न से सम्पन्न अनेकों यज्ञों में घोड़ों के साथ पधारें। आप आनन्दमय, स्वामी, स्तोत्रों द्वारा प्रशंसित तथा अविनाशी धन से सम्पन्न हैं ॥१॥ आ हि ष्मा याति नर्यश्चिकित्वान्हूयमानः सोतृभिरुप यज्ञम् । स्वश्वो यो अभीरुर्मन्यमानः सुष्वाणेभिर्मदति सं ह वीरैः ॥२॥ मनुष्यों के लिए कल्याणकारी तथा सर्वज्ञाता हे इन्द्रदेव ! आप सोम अभिषव करने वालों के द्वारा आवाहित होकर हमारे यज्ञ के समीप पधारें । श्रेष्ठ अश्वों से सम्पन्न, निर्भय तथा सोम अभिषव करने वालों के द्वारा प्रशंसित इन्द्रदेव मरुतों के साथ आनन्दित होते हैं ॥२॥ श्रावयेदस्य कर्णा वाजयध्यै जुष्टामनु प्र दिशं मन्दयध्यै । उद्वावृषाणो राधसे तुविष्मान्करन्न इन्द्रः सुतीर्थाभयं च ॥३॥ हे मनुष्यो ! इन्द्रदेद को बलिष्ठ बनाने के लिए तथा समस्त दिशाओं में हर्षित होने के लिए, आप उनके कानों में उत्तम स्टे... सुनायें । सोमरस से सम्पन्न शक्तिशाली इन्द्रदेव हम मनुष्यों को ऐश्वर्य प्रदान करने के लिए श्रेष्ठ तीर्थों को भयमुक्त करें ॥३॥ अच्छा यो गन्ता नाधमानमूती इत्था विप्रं हवमानं गृणन्तम् । उप त्मनि दधानो धुर्याशून्सहस्राणि शतानि वज्रबाहुः ॥४॥ वज्रबाहु इन्द्रदेव, सैकड़ों तथा हजारों की संख्या में द्रुतगामी अश्वों को रथ वहन करने के स्थान में नियोजित करके, सुरक्षा के निमित्त याचना करने वालों, आवाहन करने वालों, प्रार्थना करने वालों तथा मेधावी याजों के समीप गमन करते हैं ॥४॥ त्वोतासो मघवन्निन्द्र विप्रा वयं ते स्याम सूरयो गृणन्तः । भेजानासो बृहद्दिवस्य राय आकाय्यस्य दावने पुरुक्षोः ॥५॥ हे ऐश्वर्यवान् इन्द्रदेव ! हम मनुष्य आपकी स्तुति करने वाले हैं। हम ज्ञानी तथा स्तुति करने वाले लोग आपके द्वारा संरक्षित हैं। आप अत्यन्त तेज़ सम्पन्न, प्रार्थना योग्य तथा अन्न से युक्त हैं। ऐश्वर्य दान करने के समय हम मनुष्य आपकी प्रार्थना करें ॥५॥

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