ऋग्वेद चतुर्थ मण्डलं सूक्त ३२

ऋग्वेद - चतुर्थ मंडल सूक्त ३२ ऋषि - वामदेवो गौतमः देवता - इन्द्र, २३-२४ इन्द्राश्वौ । छंद गायत्री आ तू न इन्द्र वृत्रहन्नस्माकमर्थमा गहि । महान्महीभिरूतिभिः ॥१॥ हे वृत्रहन्ता ! आप महान् बनकर, संरक्षण के विविध साधनों सहित हमारे पास आएँ ॥१॥ भृमिश्चिद्धासि तूतुजिरा चित्र चित्रिणीष्वा । चित्रं कृणोष्यूतये ॥२॥ हे इन्द्रदेव ! आप पुरुषार्थ करने वाले तथा हमें समृद्ध करने वाले हैं। हे अद्भुत शक्तिशाली इन्द्रदेव! आप अद्भुत कर्म करने वाले मनुष्यों को, सुरक्षा के लिए विलक्षण बल प्रदान करते हैं ॥२॥ दभ्रेभिश्चिच्छशीयांसं हंसि व्राधन्तमोजसा । सखिभिर्ये त्वे सचा ॥३॥ हे इन्द्रदेव ! जो याजक आपके साथ निवास करते हैं, उन थोड़े से मित्रों के सहयोग से आप उच्छंखलता बरतने वाले बड़े-बड़े रिपुओं को भी विनष्ट कर देते हैं ॥३॥ वयमिन्द्र त्वे सचा वयं त्वाभि नोनुमः । अस्मास्माँ इदुदव ॥४॥ हे इन्द्रदेव ! हम आपके साथ निवास करते हैं तथा आपकी प्रार्थना करते हैं, अतः आप हमें विशेष रूप से संरक्षण प्रदान करें ॥४॥ स नश्चित्राभिरद्रिवोऽनवद्याभिरूतिभिः । अनाधृष्टाभिरा गहि ॥५॥ हे वज्रधारी इन्द्रदेव ! आप अनेक प्रकार के प्रार्थनीय तथा रिपुओं द्वारा परास्त न किये जाने योग्य रक्षण साधनों से सम्पन्न होकर हमारे समीप पधारें ॥५॥ भूयामो षु त्वावतः सखाय इन्द्र गोमतः । युजो वाजाय घृष्वये ॥६॥ हे इन्द्रदेव ! हम आपके समान गौओं से सम्पन्न व्यक्तियों के मित्र हों । प्रचुर अन्न-धन के निमित्त हम आपके साथ मिलते हैं ॥६॥ त्वं ह्येक ईशिष इन्द्र वाजस्य गोमतः । स नो यन्धि महीमिषम् ॥७॥ हे इन्द्रदेव ! गौओं (प्रकाशयुक्त किरणों) से पैदा हुए अन्न पर आप अकेले ही शासन करते हैं, अतः आप हमें प्रचुर अन्न प्रदान करें ॥७॥ न त्वा वरन्ते अन्यथा यद्दित्ससि स्तुतो मघम् । स्तोतृभ्य इन्द्र गिर्वणः ॥८॥ हे प्रार्थनीय इन्द्रदेव ! जब आप प्रशंसित होकर स्तुति करने वालों को ऐश्वर्य प्रदान करने की अभिलाषा करते हैं, तब कोई भी किसी तरह आपको रोक नहीं सकता ॥८॥ अभि त्वा गोतमा गिरानूषत प्र दावने । इन्द्र वाजाय घृष्वये ॥९॥ हे इन्द्रदेव ! ऋषि गौतम' अपनी प्रार्थनाओं के द्वारा आपको समृद्ध करते हैं तथा श्रेष्ठ अन्न दान करने के निमित्त आपकी प्रार्थना करते हैं ॥९॥ प्र ते वोचाम वीर्या या मन्दसान आरुजः । पुरो दासीरभीत्य ॥१०॥ हे इन्द्रदेव ! सोमरस पान से हर्षित होकर अपने दासों की पुरियों पर चढ़ाई करके उन्हें विदीर्ण कर दिया; अतः हम आपके उस शौर्य का वर्णन करते हैं ॥१०॥ ता ते गृणन्ति वेधसो यानि चकर्थ पौंस्या । सुतेष्विन्द्र गिर्वणः ॥११॥ हे प्रशंसनीय इन्द्रदेव ! आपने जिस शौर्य को प्रकट किया। सोम रस तैयार होने पर ज्ञानी जन आपके उसे शौर्य की प्रशंसा करते हैं ॥११॥ अवीवृधन्त गोतमा इन्द्र त्वे स्तोमवाहसः । ऐषु धा वीरवद्यशः ॥१२॥ हे इन्द्रदेव! प्रशंसा करने वाले 'गौतम ऋषि आपकी कीर्ति को समृद्ध करते हैं। इसलिए आप इन्हें सन्तानों से सम्पन्न करें तथा अन्न प्रदान करें ॥१२॥ यच्चिद्धि शश्वतामसीन्द्र साधारणस्त्वम् । तं त्वा वयं हवामहे ॥१३॥ हे इन्द्रदेव! यद्यपि समस्त याजकों के लिए आप सहज उपलब्ध देव हैं, फिर भी हमें स्तुति करने वाले आपको विशेष रूप से आहूत करते हैं ॥१३॥ अर्वाचीनो वसो भवास्मे सु मत्स्वान्धसः । सोमानामिन्द्र सोमपाः ॥१४॥ सबको निवास प्रदान करने वाले हे इन्द्रदेव! आप सोमरस पान करने वाले हैं। आप हम याजकों के सम्मुख पधारें तथा सोमरस पान करके हर्षित हों ॥१४॥ अस्माकं त्वा मतीनामा स्तोम इन्द्र यच्छतु । अर्वागा वर्तया हरी ॥१५॥ हे इन्द्रदेव ! हम आपकी स्तुति करने वाले हैं। हमारी स्तुतियाँ आपको हमारे समीप ले आएँ। आप अपने अश्वों को हमारी ओर प्रेरित करें ॥१५॥ पुरोळाशं च नो घसो जोषयासे गिरश्च नः । वधूयुरिव योषणाम् ॥१६॥ हे इन्द्रदेव ! आप हमारे पुरोड़ाश रूपी अन्न का सेवन करें। जिस तरह स्त्री की अभिलाषा करने वाले पुरुष स्त्री के वचनों को ध्यानपूर्वक सुनते हैं, उसी प्रकार आप हमारी प्रार्थनाओं को सुनें ॥१६॥ सहस्रं व्यतीनां युक्तानामिन्द्रमीमहे । शतं सोमस्य खार्यः ॥१७॥ हम स्तुति करने वाले लोग द्रुतगामी, कुशल, शिक्षित तथा रिपुओं को परास्त करने वाले सहस्रों अश्वों को इन्द्रदेव से माँगते हैं। इसके अलावा सैकड़ों की संख्या में सोम की खारियों (कलशों) की याचना करते हैं ॥१७॥ सहस्रा ते शता वयं गवामा च्यावयामसि । अस्मत्रा राध एतु ते ॥१८॥ हे इन्द्रदेव! हम आपकी सैकड़ों तथा हजारों की संख्या वाली गौओं को आपसे प्राप्त करते हैं। आपका धन भी हमारे समीप आए ॥१८॥ दश ते कलशानां हिरण्यानामधीमहि । भूरिदा असि वृत्रहन् ॥१९॥ हे इन्द्रदेव ! हम आपके स्वर्ण से पूर्ण दस कलशों को प्राप्त करते हैं । हे वृत्रहन्ता इन्द्रदेव ! आप प्रचुर दान प्रदान करने वाले हैं ॥१९॥ भूरिदा भूरि देहि नो मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि ॥२०॥ प्रचुर दानदाता हे इन्द्रदेव! आप हमें प्रचुर ऐश्वर्य प्रदान करें। आप हमें थोड़ा धन नहीं, वरन् विपुल धन प्रदान करें; क्योंकि आप प्रचुर ऐश्वर्य प्रदान करने की अभिलाषा करते हैं ॥२०॥ भूरिदा ह्यसि श्रुतः पुरुत्रा शूर वृत्रहन् । आ नो भजस्व राधसि ॥२१॥ हे वृत्रहन्ता, शूरवीर इन्द्रदेव! आप अत्यधिक ऐश्वर्य प्रदाता के रूप में अनेकों मनुष्यों में प्रसिद्ध हैं। आप अपने ऐश्वर्य में हमें भागीदार बनाएँ ॥२१॥ प्र ते बभ्रू विचक्षण शंसामि गोषणो नपात् । माभ्यां गा अनु शिश्रथः ॥२२॥ मेधावी तथा विनाशक हे इन्द्रदेव! आप गौओं के पालन करने वाले हैं। हम आपके भूरे वर्ण के अश्वों की प्रशंसा करते हैं। इन अश्वों के द्वारा आप हमारी गौओं को नष्ट न करें ॥ २२॥ कनीनकेव विद्रधे नवे द्रुपदे अर्भक । बभ्रू यामेषु शोभेते ॥२३॥ हे इन्द्रदेव! आपके भूरे रंग के अश्व दृढ़ काष्ठ निर्मित कठपुतली की तरह (पूरी तरह नियंत्रित होकर) यज्ञ में शोभा पाते हैं ॥२३॥ अरं म उस्रयाम्णेऽरमनुस्रयाम्णे । बभ्रू यामेष्वस्रिधा ॥२४॥ हे इन्द्रदेव ! जब हम बैलों से युक्त रथ पर गमन करें या पैरों द्वारा गमन करें, तब आपके भूरे रंग के हिंसा रहित घोड़े हमारे लिए हितकारी हों ॥२४॥

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