Samavediya Mantrasudha (सामवेदीय मन्त्रसुधा)

सामवेदीय मन्त्रसुधा (Samavediya Mantrasudha) शं नो देवीरभिष्टये शं नो भवन्तु पीतये। योरभि स्रवन्तु नः ॥ सामवेद १।३।१३ दिव्य-गुण-युक्त जल अभीष्ट की प्राप्ति और पीने के लिये कल्याण करने वाला हो तथा सभी ओर से हमारा मंगल करने वाला हो। स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः। स्वस्ति नस्ताक्ष्य अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥ सामवेद २९।३।९ विस्तृत यशवाले इन्द्र हमारा कल्याण करें, सर्वज्ञ पूषा हम सबके लिये कल्याणकारक हों, अनिष्ट का निवारण करने वाले गरुड़ हम सबका कल्याण करें और बृहस्पति भी हम सबके लिये कल्याणप्रद हों। शं चन्द्रमा अप्स्वाऽ३न्तरा सुपर्णो धावते दिवि। न वो हिरण्यनेमयः पदं विन्दन्ति विद्युत वित्तं मे अस्य रोदसी। सामवेद पूर्वा० २।३१।९ अन्तरिक्षवासी चन्द्रमा अपनी श्रेष्ठ किरणों सहित आकाश में गतिशील है। हे विद्युतु रूप स्वर्णमयी सूर्य की रश्मियों! आपके चरणरूपी अग्रभाग को हमारी इन्द्रियाँ पकड़ने में समर्थ नहीं हैं। हे द्यावापृथिवि! मेरी स्तुतियों को स्वीकार करें। रात्रि में सूर्य का प्रकाश आकाश में संचरित रहता है; किंतु हमारी इन्द्रियाँ उसे अनुभव नहीं कर पातीं। चन्द्रमा के माध्यम से ही प्रकाश मिलता है।

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